"दान संपत्ति को शुद्ध करता है|"


मिडवेस्ट एरलाइन सेंटर
मिलवॉकी

२३ एप्रिल, २०१०

प्रश्न : हम ईश्वर को क्यों ढूँढते हैं जब कि वो तो हमारे भीतर ही है|

श्री श्री रवि शंकर :
क्योंकि हमें पता नहीं है, हमारे मन में उसके बारे में सिर्फ़ एक धारणा है| तुम्हें ईश्वर का पूर्व अनुभव है| अगर तुम्हें मालूम ही न हो कि आम का अस्तित्व है, तो तुम उसे तलाश करने नहीं जाओगे| तुम किसी भी चीज़ जैसे 'बर-बर' की तलाश में नहीं निकलते हो, क्योंकि तुम्हें मालूम है कि 'बर-बर' जैसी चीज़ का अस्तित्व ही नहीं है| तो भूतकल में तुम्हें ईश्वर का अनुभव हुआ है, पर वर्तमान में वो नहीं है| ईश्वर को इधर-उधर मत ढूँढो| अपने भीतर गहराई में जाओ, भीतर देखो| विश्राम करो| वो तुम्हारे भीतर है|

प्रश्न : क्या सचमुच परम सत्य का अस्तित्व है?

श्री श्री रवि शंकर :
आदि शंकराचार्य ने कहा है कि सत्य की परिभाषा वो है जो समय से अछूती है| सत्य वो है जो कल भी था, आज भी है और कल भी रहेगा| तो इस परिभाषा के हिसाब से शारीर और मन सत्य नहीं हैं| सत्य संपूर्ण जगत कि बुनियाद है| हमारे अस्तित्व के केंद्र में कुछ है जो कभी नहीं बदलता और वही परम सत्य है| इसीलिए जब तुम वृद्ध हो जाते हो तब भी तुम्हें लगता नहीं है कि तुम वृद्ध हो गए हो| मन के किसी कोने में हमें मालूम है कि हम में कुछ है जो कभी नहीं बदलता और ना ही मरता है|

प्रश्न : क्या आध्यात्मिक होने के लिए धार्मिक होना ज़रूरी है?

श्री श्री रवि शंकर :
तुम कैसे रहते हो, कैसा महसूस करते हो, और जीवन और ब्रह्मांड के पहलुओं से कैसे जुड़े हो, ये अध्यात्म है| ये सभी धर्मों का निचोड़ है| धर्म के साथ अध्यात्म मिल जाए तो अद्भुत है, पर अध्यात्म के बिना धर्म विनाशकारी होगा!

प्रश्न : हम आनेवाली पीढ़ी के लिए आतंकवाद को किस तरह मिटा सकते हैं?

श्री श्री रवि शंकर :
आतंकवाद तब उठता है जब कोई ये सोचने लगे कि सिर्फ वही स्वर्ग में जायेगा और बाकी सब लोग नरक में जायेंगे| वे सोचते हैं कि वे सबको अपने रस्ते पर चलना सिखा दें ताकि वे भी स्वर्ग में जा सकें| इस तरह की संकुचित विचार-धारा ही दुःख का कारण है| यदि हर बच्चा बहुसांस्कृतिक वातावरण में शिक्षित हो तो उसकी सहनशीलता ज़रूर विकसित होगी| अगर अफ्गानिस्तान के बच्चों को थोड़ा उनके मूल धर्म के बारे में, और थोड़ा हिन्दू, इसाई और दुसरे धर्मों के बारे में सिखाया जाता तो वे शायद इतने असहिष्णु नहीं होते और तालिबान खड़ा नहीं होता| उन्हें बुद्ध और उपनिषद की महान बातों के बारे में थोडा-बहुत मालूम होना चाहिए| कृष्ण ने वही कहा जो कि यीशु ने| बहु-धार्मिक परवरिश विश्व में प्रेम और संवादिता ले आयेगी|
अंतर-धर्मिक शिक्षण और उसके परिचय से प्रेम और संवादिता ज़रूर आयेगी| यदि सभी देश अपने बजट में से २% ज्ञान और बुद्धिमता को सारे विश्व में फ़ैलाने में लगायें तो दुनिया का हरेक बच्चा एक ज्यादा खुश इन्सान बन सकेगा|
भारत से एक छोटी उम्र कि महिला 'आर्ट ऑफ़ लिविंग' की ओर से आईवरी कोस्ट में सिखाने के लिए गयीं| आईवरी कोस्ट में इस्लाम और ईसाई सम्प्रदायों में काफी अन-बन है| वो लोग अलग-अलग गांवों में रहते हैं और सदियों से वे एक दुसरे के प्रति ज़रा भी सहन शील नहीं रहे हैं| उस महिला के वहां रहते हुए सिर्फ एक महीने में उसके कार्य की वजह से दो अलग - अलग धार्मिक सम्प्रदायों के बीच बात-चीत शुरु हुई| मुसलमानों ने ईसाई गाँव में स्कूल खुलवाया| ईसाईयों ने मुसलमानों के लिए रोड और शौचालय बनवाये| ये चमत्कार बहुत कम समय में हुआ| अगर एक व्यक्ति इतना बड़ा बदलाव ला सकता है तो सोचो अगर हम सब साथ मिल जाएँ तो क्या हो सकता है| अगर हम साथ चलें तो कुछ बड़ा हासिल कर सकते हैं|

प्रश्न : आध्यात्मिक जीवन की खोज में धन की क्या जगह होनी चाहिए?

श्री श्री रवि शंकर :
समस्या तब होती है जब तुम पैसे जेब में ही नहीं बल्कि दिमाग में भी ले के घूमते हो| वैसे भी रात-दिन इसके बारे में सोच-सोच के क्या फायदा जब जेब खाली हो? पैसा एक साधन है जीवन को चलाने का, जीवन का लक्ष्य नहीं| विश्वास रखो कि तुम्हें जब भी जितने पैसों कि ज़रुरत होगी, मिल जायेंगे| इस आस्था के साथ प्रयत्न करो और आगे बढ़ो| इसके आलावा जो भी तुम कमाते हो उसका २-३% समाज के लिए खर्च करो| हम इसे धन-शुद्धि कहते हैं|
संस्कृत में एक शब्द है अन्न शुद्धि| इसमें चावल में घी डालने को कहा गया है| अगर तुम बिना कुछ डाले चावल खाओ तो वो तुम्हारे शारीर के लिए इतना अच्छा नहीं है क्योंकि इससे तुम्हारे शारीर में शक़्क़र का प्रमाण एकदम से बढ़ जाता है| तो इस में ज़रा-सा घी डालने से शक़्क़र को स्टार्च में बदलने कि प्रक्रिया धीमी हो जाती है| इस तरह पाचन क्रिया धीमी पड़ने से तुम्हें डायबिटीस होने का खतरा कम रहता है| इसलिए हम कहते हैं घी डालने से चावल शुद्ध हो जाता है| इसी तरह ज़रुरत-मंदों को देने से धन शुद्ध हो जाता है| 'आर्ट ऑफ़ लिविंग' गाँव के स्कूलों में सेवा-कार्य कर रही है|
'डॉलर अ डे' कार्यक्रम में हम बच्चों को भोजन, कपड़े और शिक्षा दिलाते हैं| हमारे पास इस तरह के ज़रुरत-मंदों के लिए ऐसे १०० स्कूल हैं| ये बच्चे को ज़बरदस्ती के बाल-श्रम से छुटकारा दिलाता है| इससे उनके सर से बोझ उतर जाता है | ये बच्चे क्षेत्र में पढ़नेवाली पहली पीढ़ी बनते हैं और ये बदलाव बहुत प्रभावशाली है| ये ऐसा है जैसे किसी को मछली देने के बजाए उसे मछली पकड़ना सिखाना ज्यादा लाभदायक है| साथ ही अगर महिलाओं को ऐसे सशक्त बनाने वाले कार्यक्रम में भारती किया जाये तो बहुत अद्भुत रहेगा| यही ज़रूरी है - शिक्षा जो तकनिकी , वैज्ञानिक और साथ ही आध्यात्मिक हो|

प्रश्न : जो लोग धोखाधड़ी या अन्य अपराध करते हैं उन्हें कैसे प्रेम करते रहें?

श्री श्री रवि शंकर :
ये लोग ऐसे नहीं हैं जिनको सुधारा ही न जा सके| हर अपराधी उसकी कमजोरियों का शिकार है जो मदद की पुकार करता है | अगर तुम गौर से देखो तो पाओगे कि समाज में लालची लोगों के कोई दोस्त नहीं होते| जैसे ही वे दोस्ती करते हैं, लालच गायब हो जाता है|
इसी तरह भ्रष्टाचार मित्रता के अन्दर हो ही नहीं सकता| बेईमान और धोखेबाज़ लोग असल में अपनी कमजोरियों के शिकार होते हैं| क्योंकि इन्हें अध्यात्म कि शिक्षा नहीं दी गयी है| पता है, हमने अपने सब कार्यक्रमों में, खास कर के 'प्रिजन स्मार्ट') प्रोग्राम में देखा है कि एक अपराधी के अन्दर भी एक अच्छी आत्मा है जो मदद के लिए रो रही है और प्यार के लिए तरस रही है| हम उनकी मदद कर सकते हैं|

प्रश्न : नींद के दौरान हमारा मन कितना सक्षम होता है? क्या चेतना की सभी सतहों के पर जाना मुमकिन है?

श्री श्री रवि शंकर :
सजग अवस्था में तुम्हें सबसे अच्छा विश्राम ज्ञान से मिलता है| स्वप्न की अवस्था गहरा विश्राम है| निद्रा उससे भी गहरा विश्राम है| चौथी अवस्था ध्यानावस्था है| यह तुम्हे पूर्ण विश्राम देती है|

प्रश्न : ह्रदय रोग से पीड़ित व्यक्तियों को प्राणायाम और ध्यान से क्या लाभ हो सकता है?

श्री श्री रवि शंकर :
अनुसंधान बताते हैं कि श्वास और ध्यान से कोलेस्ट्रॉल कम होता है और हृदय मजबूत होता है|इनसे तनाव कम होता है, होरमोन नियंत्रित होते हैं और ग्रंथियों पर इसका सकारात्मक प्रभाव पड़ता है|

प्रश्न : हमें सुबह जगने पर सबसे पहले और रात को सोते समय आखिर में क्या करना चाहिए?

श्री श्री रवि शंकर :
आइने में अपना चेहरा देखो और अपने आप को एक बड़ी-सी मुस्कान दो| अगर मुस्कुरा नहीं सकते तो भौहों को चढ़ा के देखो| धीरे धीरे तुम मुस्कुराना शुरू कर दोगे|

प्रश्न : आत्म-प्रेम कितना ज़रूरी है? क्या ये ज़रूरी है कि हम दुनिया को प्यार करने से पहले अपने आप को प्यार करें ?

श्री श्री रवि शंकर :
हाँ, पर बैठ कर यह मत जपते रहो कि "मैं खुद को प्रेम करता हूँ" | क्या तुम "मैं मिल्वौकी में हूँ" ऐसा जपते रहते हो? तुम्हारा शारीर, मन और चेतना सत्य, प्रेम, सौन्दर्य और शांति से बने हैं| बस समझ लो कि तुम अपने आप से प्रेम करते हो| अगर तुम्हें ऐसा लगता है कि तुम खुद से प्रेम नहीं करते तो ये तुम्हारा भ्रम है|

प्रश्न : क्या आप मानते हैं कि यह समय मानव विकास का बड़े पैमाने पर वैश्विक परिवर्तन का युग है?

श्री श्री रवि शंकर :
तीस साल पहले आध्यात्म और ज्ञान पर लोगों को बड़ा पूर्वग्रह था| लोग आध्यात्म को दस कदम दूर रखते थे और सोचते थे ये सब उनके लिए नहीं है| आज इन सब को लोग स्वीकृति से देखते हैं| वे ये देखने के लिए तैयार हैं कि उन्हें इन सब से कितना फायदा है और उनका पूर्वग्रह कम हुआ है| इससे मानवीय मूल्य और ऊपर आएंगे| और २०१२ की फ़िक्र मत करना| मैं तुम्हें विश्वास दिलाता हूँ कि विश्व का विनाश नहीं होने वाला है|

प्रश्न : जिसे हम मृत्यु कहते हैं, उसके परे का अनुभव क्या है?

श्री श्री रवि शंकर :
तुम्हें अभी के अभी सब कुछ क्यों जानना है? मैं नहीं चाहता कि मरने के बाद भी तुम उब जाओ| पहले हम जीवन को समझ लें, उसके बाद हम मृत्यु को समझेंगे|

प्रश्न : संसार में आप सबसे ज्यादा आशावान किस बात के लिए हैं?

श्री श्री रवि शंकर :
मैं अपनी दृष्टि के बारे में सबसे अधिक वास्तविक हूँ| अभी तक 'आर्ट ऑफ़ लिविंग' १५१ देशों में पहुँच चुका है| बहुत से लोग ये तकनीक सीख रहे हैं| अगर मोबाइल फोन की तकनीक दुनिया में सब जगह फ़ैल सकती है, तो लोगों को खुश और शांत बनाने की तकनीक और बुद्धिमता घर-घर क्यों नहीं पहुँच सकती? यह ज़रूर पहुंचेगी| हममें मुश्किल कार्य को संभव करने की दृष्टि होनी चाहिए| ये मेरी आदत और रूचि है|

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