ध्यान से मन में पूर्ण हां होती है


प्रश्न : कभी कभी मैं दिल से बहुत कमज़ोर महसूस करता हूँ। मुझे तब क्या करना चाहिए?

श्री श्री रवि शंकर :
कभी हमे सब छोड़ने की इच्छा होती है। ऐसा तनाव के कारण होता है। उस समय कोई निर्णय नहीं लेना चाहिए। तुम्हे उसपर पछताना पड़ सकता है। पहले अपने स्वभाव में वापिस आजाओ।

प्रश्न : मै आपके पास कैसे आ सकता हूँ?

श्री श्री रवि शंकर :
तुम ऐसा मान कर चलो के तुम पास हो। यह तुम ही हो जो सोचते हो कि तुम पास नहीं हो।

प्रश्न : क्या बाकी के ग्रहों पर जीवन है?

श्री श्री रवि शंकर :
इस ग्रह पर भरपूर जीवन है। पहले इसकी देखरेख करते हैं। फिर बाकी के ग्रहों की तरफ़ बड़ेंगे।

प्रश्न : हमे कैसे पता चले की जीवन किस लिए है?

श्री श्री रवि शंकर :
पहले यह समझो की जीवन किस लिए नहीं है। यह ज़्यादा आसान है। जीवन दुख में रहने के लिए यां औरों को दुखी करने के लिए नहीं है।

प्रश्न : जीवन में जब चुनाव करना कठिन हो जाए तो क्या करना चाहिए?

श्री श्री रवि शंकर :
उसको चुनो जो तुम्हे लंबे समय में फ़ायदा पहुँचाता है। चाहे वो थोड़े समय के लिए दुख ही क्यों ना दे। जो थोड़ी देर की खुशी और आगे चलकर दुख दे वो चुनाव नासमझी है।

प्रश्न : कल आपने कहा था - चुनाव तुम्हारा है और आर्शिवाद मेरा। क्या इसका मतलब मैं कुछ भी चुनाव करुँ, आपका आर्शिवाद हमेशा साथ है?

श्री श्री रवि शंकर :
तुम मुझे एक मुश्किल परिस्थिति में डाल रहे हो। अगर यह तुमहारे व्यवसाय यां रिश्ते से संबंधित है तो चुनाव तुम्हारा है और आर्शिवाद मेरा।

प्रश्न : अगर सब उत्तर भीतर से ही मिलते है तो प्रश्न पूछने का क्या महत्व है?

श्री श्री रवि शंकर :
अगर मैं उत्तर ना दूँ तो। किसी भी उत्तर का क्या महत्व है? तांकि मन में हाँ हो। सब प्रश्न और उत्तर का महत्व मन में हाँ लाना ही है।

प्रश्न : मुझे ऐसा लगता है कि मैं उतनी सेवा नहीं करता जितना मुझे बदले में मिलता है।

श्री श्री रवि शंकर :
सेवा करते रहो।

प्रश्न : क्या समलैंगिकता(homosexuality) गलत है? यह परिवर्तित भी की जा सकती है?

श्री श्री रवि शंकर :
यह केवल एक प्रवृत्ति है। कई बार यह बदल भी जाती है। अपने को लेबल करने की ज़रुरत नहीं है। तुममे अपने माता और पिता दोनो के गुण हैं। कभी पुरुष प्रवृत्ति हावी हो सकति है तो कभी स्त्री प्रवति। इसमे अपने को दोष देने की ज़रुरत नहीं है। तुम केवल माँसपेशियों से बना शरीर नहीं हो। तुम अपनी पहचान लिंग से परे आत्मा से करो। इससे बहुत आराम मिलता है।

प्रश्न : मैने कई लोगों को भोजन करने से पहले प्रार्थना करते देखा है। इसका क्या महत्व है?

श्री श्री रवि शंकर :
जो भी तुमने कल खाया वो तुम्हारे शरीर का हिस्सा बन चुका है। वो सब अभी तुम्हारे साथ यहाँ मौजूद है। सृष्टि में हर वस्तु किसी न किसी तरह से जीवित है। प्राचीन लोग यह जानते थे और इसीलिए उन्होने भोजन से पहले प्रार्थना करने को कहा। मन के विचार केवल उर्जा ही है। भोजन में विचारों को समाने की क्षमता होती है। इसलिए आज भोजन से पहले प्रार्थना करना। भोजन करते समय कुछ बुरा मत सोचना। वहीं से विचारों का चक्र शुरु होता है। यह बहुत वैज्ञानिक है।


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