प्र : गुरूजी, मैं अक्सर उलझन में पड़ जाता हूँ, मैं क्या करूँ?
श्री श्री रवि शंकर : ConFused – Fusion with the consciousness and cosmos. माने अंग्रेजी के confuse शब्द में - 'चेतना और ब्रह्माण्ड के साथ विलय' छुपा हुआ है| तो जब भी तुम उलझन में हो, समझ लो कि तुम्हारा विकास हो रहा है|
प्र : 'सब परिवर्तनशील है' - मैं यह समझता भी हूँ और इस बात से मुझे बड़ी राहत मिलती है| पर अगर सब कुछ बदलने वाला है तो मैं यहाँ किस वजह से हूँ? ऐसा कौन-सा कार्य है जो हमें करने की ज़रुरत है? जब तक मुझे इस सवाल का जवाब नहीं मिल जाता, मैं आगे नहीं बढ़ सकता|
श्री श्री रवि शंकर : ये जो प्रश्न या विचार है कि 'सब कुछ बदल रहा है' , इसने अपना काम कर दिया है| इसने आतंरिक जाँच कि भावना पैदा कर दी है| मैं यहाँ किस वजह से हूँ? ऐसा क्या है जो मुझे करना है? जीवन का उद्देश्य क्या है? ऐसे प्रश्न उठने चाहियें| ये दिमाग को खरोंचते हैं और तुम्हारे लिए एक नया मार्ग खोल देते हैं| इन प्रश्नों का उत्तर पाने की जलदी मत करो | अगर सब कुछ बदल रहा है तो ऐसा कुछ ज़रूर है जो कभी नहीं बदलता| इस ज्ञान का एहसास और इसके साथ जीना ही जीवन है| वही सन्दर्भ बिंदु है| तो इन प्रश्नों को लेकर विस्मित होना जारी रखो| ये जीवन से बेकार की बातों की चिंता हटा देगा, और तुम ईर्ष्यालु, लालची और क्रोधी बनने से बचे रहोगे|
प्र : प्रेम और सत्य क्या है? कोई रिश्ता बनाये रखूं या नहीं, इसका निर्णय कैसे लूँ?
श्री श्री रवि शंकर : प्रेम और सत्य के बीच में एक अनोखा सम्बन्ध है| यदि प्रेम और सत्य के बीच में स्पर्धा हो तो ज़रूर प्रेम की ही जीत होगी| प्रेम के खो जाने के डर से कोई उस व्यक्ति से झूठ बोलता है जिसे वो सबसे ज़्यादा प्रेम करता है| वे डरते हैं कि अगर वे सच बोलेंगे तो उनका प्रेम खो जायेगा| तो शक्तिशाली क्या है? प्रेम शक्तिशाली है, और होना भी चाहिए| प्रेम क्या है? अगर ये तुमने अब तक नहीं जाना है, तो उसे जानने का कोई रास्ता भी नहीं है| इस ग्रह का कोई भी प्राणी ये नहीं कह सकता कि उसे पता नहीं कि प्रेम क्या है| क्योंकि ये हमारा दूसरा अनुभव है| हमारा पहला अनुभव पीड़ा का था| पहले नौ महीने आसान थे| हमें आरामदेह, कुनकुने वातावरण में आहार दिया जाता था| फिर एकदम से तुम्हें एक तंग मार्ग से निकलना पड़ा जहाँ तुम्हारा सर अटक गया था, जो कि बहुत पीड़ादायक था| बच्चा इस पीड़ा के कारण रोता है| पहले कुछ दिन शिशु बड़े विनोदी हाव-भाव और चेहरे बनाता है क्योंकि उसे एक पर्वत को हिलाने जितना महान कार्य किया मालूम पड़ता है| इस दर्द के बाद वे माँ के चेहरे की ओर देखता हैं और माँ का प्यार समझने लगता है| वे एहसास करता है कि वे स्वयं प्रेम है, और ये जानता है कि प्रेम के आलावा और कुछ है ही नहीं| तीन साल के होते-होते वे ये सब भूलने लगता है| यही वक्त है जब उनकी बुद्धि विकसित होने लगती है, और वह १०१ सवाल पूछने लगता है| बच्चा प्रश्न पूछते ही चले जाता है| आधे समय तो वह जवाब सुनता भी नहीं| तो सत्य क्या है? ये बहुत परिपक्व प्रश्न है| तुम प्रेम को जान सकते हो पर सत्य क्या है ये बता नहीं सकते| सत्य वो है जो समय से अप्रभावित है| इस परिभाषा के मुताबिक जो तुम देख रहे हो वो सत्य नहीं है| ये ईमारत सत्य नहीं है, ये पहले नहीं थी और भविष्य में शायद न भी हो| ठीक ऐसे ही शरीर को ले लो| ये भूतकाल में नहीं था और भविष्य में रहने वाला नहीं| तो शरीर भी सत्य नहीं है| जो भी कुछ बदलता है वो सच नहीं है| सत्य वो है जिसका अस्तित्व था, है और रहेगा| ये जो आतंरिक जाँच की भावना है कि वो क्या है जो समय से प्रभावित नहीं होता, तुम्हें उस तत्व की ओर ले जाता है जो कभी नहीं बदलता|
प्र : मैंने एक डॉक्टर को दिखाया था| उन्होंने कहा कि टमाटर, आलू, शिमला मिर्च और बैंगन बड़े घातक हैं| उन्हें नहीं खाना चाहिए| क्या 'श्री श्री आयुर्वेद' भी इस तरह के विचार कि तालीम देता है? मुझे ये सब्जियां बहुत पसंद हैं, क्या करूँ?
श्री श्री रवि शंकर : फ़िक्र मत करो, तुम उन्हें खा सकते हो| आम तौर पर ऐसा कहा जाता है| लेकिन सिर्फ वही सब्जियां खाते मत रहना| उसे सेम, हरी सब्जी या दाल के साथ खाना| किसी भी चीज़ का अतिरिक मात्रा में होना हानिकारक है| बस ये सब ज़्यादा मत खाया करो| उसे रोज़मर्रा की दिनचर्या मत बना देना| हमारा ढांचा मज़बूत है| ये कम प्राण की वजह से होने वाले बुरे असर का मुकाबला कर सकता है|
प्र : आप पहली बार मेरा प्रश्न पढ़ रहे हैं| मैं कभी-कभी उदास हो जाती हूँ क्योंकि मुझे लगता है लड़के मुझे पसंद नहीं करते| किसी ने कभी मुझे बाहर ले जाने के लिए बुलाया नहीं है, और ना ही किसी को मुझसे रिश्ता जोड़ने में दिलचस्पी है और मुझे सचमुच एक प्यारा-सा रिश्ता चाहिए|
श्री श्री रवि शंकर : अच्छा, मुझे इन मामलों का कोई अनुभव नहीं है! क्या तुम्हें यकीन है तुम्हें किसी ने बाहर ले जाने के लिए नहीं बुलाया है?ऐसा भी हो सकता है कि वे शर्मीले हों और तुम भी| जब तुम ऐसा महसूस करते हो कि मैं निकम्मा हूँ, बेकार हूँ, तो उसी तरह कि तरंगें उठतीं हैं| असल में तुम जितना सोचते हो उससे तुम कहीं ज़्यादा लायक हो| सुन्दरता तुम्हारे आत्म-विश्वास और तुम्हारी मुस्कान में है, तुम्हारे भीतर जो शांति है वही सच्ची सुन्दरता है| अपने पर भरोसा रखो और ब्रह्मांड से जुड़े रहो, फिर देखो सब कुछ कैसे बदलता है|
प्र : मैं उन लोगों के प्रति सजग हो गया हूँ जो हमारे खाद्य और जल संचय को नियंत्रित करना चाहते हैं | इसके लिए क्या किया जा सकता है?
श्री श्री रवि शंकर : 'आर्ट ऑफ़ लिविंग' इस पर बहुत ध्यान दे रही है| भारत में कुछ लोग आनुवांशिक रूप से परिष्कृत(Genetically modified plants) पौधों का उत्पादन करना चाहते थे| फ्रांस और अन्य देशों में इस पर प्रतिबन्ध लगाया गया है| 'आर्ट ऑफ़ लिविंग' ने बड़ी दृढ़ता से साथ में खड़े होकर इसका विरोध किया, और सरकार को ये रोकना ही पड़ा| ऐसा कार्य आप अकेले नहीं कर सकते| इसके विरोध में आपको एक जन आन्दोलन के रूप में खड़ा होना पड़ेगा, और इस तरह धरती को न्याय दिलाना होगा| कुछ गिने-चुने लोगों का लालच उनके दिमाग पर चढ़ जाता है | हम वैज्ञानिक प्रयोगों के खिलाफ नहीं हैं, लेकिन ठीक से परिक्षण लिए बिना, इसकी साइड एफ्फेक्ट है कि नहीं इसकी जाँच किये बिना व्यापारिक उद्देश्य के लिए बड़े पैमाने पर उत्पादन करना स्वीकार्य नहीं है| जैसे कि आनुवंशिक रूप से संशोधित कपास की पहले साल में तीन गुना अधिक उपज हुई| दूसरे साल में भी फसल अच्छी हुई | हालाँकि इससे तीसरे साल में पूरी फसल नष्ट हो गयी और कई सारे किसानों ने आत्महत्या की| 'आर्ट ऑफ़ लिविंग' ने किसानों की आशा जगाने के लिए कार्य किया और उन्हें अपने जीवन की कीमत समझने में मदद की| पशु जिन्होंने आनुवंशिक रूप से संशोधित कपास खाया वे मर गए| इन फसलों से फैली वाइरस ने पेड़ों पर बुरा प्रभाव डाला| इससे सारा क्षेत्र अनुपजाऊ बन गया| कंपनी को बहुत सारा मुनाफा हुआ| ये आर्थिक हिंसा है| आतंक के कई रूप हो सकते हैं| आर्थिक हिंसा तब होती है जब कुछ लोगों का लालच बाकी सब लोगों को पीड़ित करता है| वे सारी अर्थ-व्यवस्था को अस्त -व्यस्त कर देते हैं और न जाने कितने घरों को उजाड़ कर रख देते हैं|
प्र : आप अद्भुत हैं| सिर्फ आप के साथ कुछ ही मिनट बिताने से मेरी सारी परेशानियाँ दूर हो गयीं| इन सब के लिए आपका बहुत-बहुत शुक्रिया| आप यीशु(Jesus) और उनके सन्देश के साथ कैसे एकाकार होते हैं?
श्री श्री रवि शंकर : उनका सन्देश प्रेम का था| 'आर्ट ऑफ़ लिविंग' भी उसी के बारे में है| यीशु ने सेवा करने को कहा था, और 'आर्ट ऑफ़ लिविंग' भी सेवा से ही सम्बंधित है| ये यीशु के सन्देश के साथ १०० प्रतिशत बैठती है| हो सकता है ये चर्च की कार्यप्रणाली के अनुकूल न हो पर यीशु के विचारों के साथ ये यक़ीनन बैठती है| यीशु ने ये कभी नहीं कहा, "तुम पापी हो|" पहले के समय में जब लोग अशिष्ट थे, चर्च ने लोगों में भय और अपराध की भावना जगाने की कार्यप्रणाली अपनाई जो शायद इस युग के लिए उचित नहीं है| आज के युग में हम आधुनिक और मैत्रीपूर्ण हैं, हमें अपराध भाव और उदासी ले कर घुमने की ज़रुरत नहीं| हम यीशु के विचारों के साथ १०० प्रतिशत अनुकूल हैं| सबसे पहली प्राथमिकता है - दूसरों को और खुद को दोष मत दो| अगर तुम ऐसा करते रहोगे तो अपने मन को कभी स्थिर नहीं कर पाओगे, तुम लोगों से दूर भागोगे और खुद से भी| अपने आप को दोष देना बंद करो और दूसरों को भी|
प्र : भूतकाल को छोड़ना और समर्पित करना इतना मुश्किल क्यों है? मैं क्या करूँ?
श्री श्री रवि शंकर : कुछ मत करो| बस अतीत में रहो| भूतकाल में जीना इतना आसान नहीं है| उसे स्वीकार करो, उसका सामना करो| तुम ठीक जगह पर हो| अतीत को समर्पित करना, उससे भागने की कोशिश करना नहीं है| ठीक है, आगे बढ़ो| अतीत को दोनों हाथों से गले लगाओ| अनुभवों से गुज़रने में कोई हर्ज़ा नहीं है | उनसे डरो मत| तुम उन्हें संभाल सकते हो| उसे टालते रह कर या उससे नफरत करके तुम उसे दूर नहीं भगा सकोगे|
कोई एक पुस्तक तैयार कर रहा है जिसमें समर्पण के पांच स्तरों का वर्णन है| तुम समर्पण की क्या परिभाषा करोगे? कई बार समर्पण शब्द का दुरुपयोग हुआ है| पहले प्रकार का समर्पण असफलता के समय आता है| जब तुम हार जाते हो, तब दुखी हो जाते हो और सब कुछ छोड़ देते हो| जब जीवन ज़्यादा करके किसी हार को लेकर एक बोझ हो, तब जैसा है वैसे छोड़ देते हैं, ये एक तरह का समर्पण है| दुसरे प्रकार का समर्पण प्रेम से आता है जैसे माँ का प्रेम होता है| माँ के लिए और किसी चीज़ का महत्त्व नहीं है| अगर उसे खुद के और बच्चे के सुख के बीच में चुनना हो तो वह बच्चे का सुख चुनेगी| पति-पत्नी के बीच प्यार का रिश्ता होता है, वे एक दुसरे के साथ बिलकुल आराम से, निडर और बेफिक्र होते हैं| माँ बच्चे से इतनी जुडी हुई होती है, वो बच्चे से इतना प्यार करती है कि बच्चे के लिए वह छोटी-छोटी सुविधाएं और अपने सुख ख़ुशी से छोड़ देती है| तीसरे प्रकार का समर्पण ज़्यादातर ज्ञान से आता है| आपको पता है कि वैसे भी कुछ नहीं है| आप जब इश्वर को समर्पण कर देते हो तब ऐसा होता है| चौथे प्रकार का समर्पण है - ये जानना कि सब भ्रम है| ये सोचना कि तुम्हें कुछ छोड़ना है जो तुम्हारे पास है ही नहीं, ये भ्रम ही है| ये बुद्धिमता का समर्पण है| ये एक आराम की स्थिति है जिसमें हम जानते है कि सब कुछ एक का ही है| इस तरह के समर्पण की स्थिति एक ही जगह पहुंचाती है - जहाँ छोटा मन तुम्हारे विशाल 'स्वरूप' की ओर खुलता है|
प्र : क्या कोई ऐसा अभ्यास है जिसका पालन करने से हमारे पीड़ा के कारण ख़तम हो जाएँ? क्या कोई ऐसी आनंद दायक पद्धति है?
श्री श्री रवि शंकर : वास्तविकता के प्रति सजगता| अपने स्वरूप की पहचान जिससे तुम भक्ति और प्रेम की स्थिति तक जा सकते हो| ये स्वतः ही होता है| समर्पण करने की कोई ज़रुरत नहीं है क्योंकि ये पहले से ही है| ये जानना कि सब कुछ इश्वर का ही है, कांटें भी इश्वर के हैं और साथ ही फूल भी इश्वर के ही हैं| जब तुम समर्पण करते हो तो क्या होता है? तुममें एक अखंड शांति प्रकट होती है, एक मुस्कान जो तुमसे कोई नहीं छीन सकता| तुम आश्चर्य-चकित हो जाते हो कि ये सब भ्रम था| तुम मुस्कुराते हो ये समझ कर कि देने के लिए तुम्हारा अपना कुछ है ही नहीं| फ़र्ज़ करो तालाब में से तुमने मटका भरा और तुम पानी से भरा मटका पकडे हुए हो| फिर तुम वो पानी वापिस तालाब में डाल देते हो| तुम ऐसे इन्सान को क्या कहोगे जिसको लगता है कि उसने तालाब को पानी दिया है? ऐसा करने से ईश्वर से जुड़े रहने की भावना वापिस आती है, और अलगाव की भावना जो दुःख और पीड़ा का कारण है, ख़तम हो जाती है| ईश्वर से जुड़े हुए रहने कि भावना शांति और आनंद लाती है| तो इस आत्म-ज्ञान से, ध्यान के अभ्यास से, सत्संग की ध्वनि में एकाकार हो कर गाने से तुम उस एक चेतना में लीन हो जाते हो| सब लोग साथ में उस चेतना को, उर्जा को, सत्संग की ध्वनि को बांटते हैं - ये सत्संग है| सत्संग में सब जुड़ जाते हैं, सबके मन ब्रह्माण्ड की उर्जा के साथ एक हो जाते हैं| जब आप की जागरूकता केन्द्रित हो तब सत्संग में गाने से अधिक लाभ होता है|
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