ध्वनि में सामंजस्य सं"गीत है;चाल में सामंजस्य नृत्य है;मन में सामंजस्य ध्यान है;जीवन में सामंजस्य उत्सव है"


अप्रैल २४,२०१०

प्रेम सभी नकरात्मक भावनायों का जन्मदाता है| जिनको उत्तमता से प्रेम होता है वे शीघ्र क्रोधित हो जाते हैं| वे सब कुछ उत्तम चाहते हैं| उनमें पित्त अधिक होता है( प्राचीन विज्ञान आयुर्वेद के अनुसार शरीर की एक विशेषता)| वे हर चीज में पूर्णता ढूंढते हैं| ईर्ष्या प्रेम के कारण होती है| आप किसी से प्रेम करते हो तो ईर्ष्या भी आती है| लालच आता है जब आप लोगों की बजाय वस्तुयों को अधिक चाहते हो| जब आप अपने आप को बहुत ज्यादा प्रेम करते हो तो अभिमान बन जाता है| अभिमान अपने आप को विकृत रूप से प्रेम करना है| इस ग्रह पर कोई एक भी ऐसा नहीं है जो प्रेम नहीं चाहता और प्रेम से अलग रहना चाहता हो| फिर भी हम प्रेम के साथ आने वाले दुःख को नहीं लेना चाहते| ऐसी अवस्था कैसे प्राप्त की जा सकती है? अपने अस्तित्व और आत्मा को शुद्ध करके जो कि आध्यात्म द्वारा ही संभव है| हम पदार्थ और आत्मा दोनों से बने हैं| हमारे शरीर को विटामिन की आवश्यकता होती है| यदि शरीर में कोई पोषक तत्व नहीं हो तो शरीर में इसकी कमी हो जाती है| इसी तरह हम आत्मा भी है| आत्मा सुंदर,सत्य,आनंद,सुख,प्रेम और शांति है| मेरे अनुसार आध्यात्म वह है जिससे ये सारे गुण बढ़ते हैं और सीमाएं खत्म हो जाती है| हम अपने बच्चों और युवायों की इस अध्यात्मिक तरीके से परवरिश कर सकते हैं|
आजकल कॉलेज कैम्पस में हिंसा आम बात हो गई है| यह बड़े दुर्भाग्य की बात है| यदि वहां हिंसा है तो वहां मूलरूप में कुछ गलत है| जब मैं बड़ा हुआ उस समय अहिंसा और समभाव को बहुत गर्व से देखा जाता था| स्कूल और कॉलेजों में शांति,ख़ुशी,उत्सव और आनंद लाना होगा| पर अगर हम स्वयं दु:ख में है तो यह संभव नहीं होगा| पहले हमें अपने दुःख की ओर ध्यान देना होगा| यह कैच २२ की तरह है| यदि आप खुश नहीं हो तो आप दूसरों को खुश करने के लिए कुछ नहीं कर सकते| तो आप कैसे खुश हो सकते हो? खुश रहने के लिए एक व्यापक दृष्टिकोण महत्त्वपूर्ण है| दुखी होने के लिए एक तरीका है| यदि आप हर समय केवल अपने बारे में सोचते रहोगे - "मेरा क्या होगा?", तो आप उदास हो जाओगे| हमें अपने आप को किसी सेवा परियोजना में व्यस्त रखने और अध्यात्मिक अभ्यास की आवश्यकता है, जिससे नकारात्मक भाव खत्म होते हैं| इससे हमारा अस्तित्व शुद्ध होता है, भाव में खुशी आती है और सहज ज्ञान (Intuitive knowledge) प्राप्त होता है| अंतर्ज्ञान (Intuition) आवश्यक है| यदि आप कोई व्यापारी हो तो आपको किस शेयर में पैसे लगायें जाए, यह जानने के लिए अंतर्ज्ञान की आवश्यकता होगी| यदि आप कोई कवि हो या साहित्य से संबंध रखते हो तो भी आपको अंतर्ज्ञान की जरूरत होगी| यदि आप डॉक्टर हो तो आप को अंतर्ज्ञान की जरूरत होगी| डॉक्टर दवाई का सुझाव केवल अवलोकन के आधार पर ही नहीं देते| उसमें किसी और कारण का योगदान भी होता है - अंतर्ज्ञान| यहाँ पर उपस्थित सारे डॉक्टर मेरे साथ सहमत होंगे| अंतर्ज्ञान तब आ सकता है जब हम अपने भीतर जाते हैं| बिना अंतर्ज्ञान और आध्यात्म के जीवन बिना सिम के मोबिल इस्तेमाल करने जैसा है| हम प्रार्थना करतें हैं परन्तु उस स्रोत से सम्पर्क में नहीं होते | तब हम हैरान होते हैं कि हमारी प्रार्थना सुनी क्यों नहीं जा रही| क्योंकि हम में आध्यात्मिकता और मानवीय मूल्य नहीं होते| इस तरह से बहुत से लोग नास्तिक बन जाते हैं| उनके जीवन में एक घटना होती है, उनकी प्रार्थना सफल नहीं होती और वे भ्रम में आ जातें हैं| हम में से हर एक में विशाल क्षमता है| आपके विचार बहुत शक्तिशाली हैं| आप जो चाहें बना सकते हो| इसका मतलब यह नहीं कि कल ही तुम चाँद पर जा सकते हो परन्तु ऐसा होने के लिए पहले दृष्टि रखना आवश्यक है| पहले अंतर्ज्ञान की शक्ति आनी चाहिए| पहले यह विश्वास करो कि आपके लिए असीमित प्रेम और शांति में रहना संभव है| एक बच्चे के रूप में आप इस अवस्था का अनुभव कर चुके हो| तब हम जोश से भरे हुए थे| ऐसा अभ भी संभव है|

तब श्री श्री ने उपस्थित लोगों को ध्यान करवाया|

प्रश्न : क्या थोड़ा अहंकार ठीक है?

श्री श्री रवि शंकर :
अगर आप को पता चलता है कि आप में अहंकार है, तो भगवान के लिए इससे पीछा छुड़ाने की कोशिश मत करो| यदि आप अपने अहंकार से पीछा छुड़वा लेते हो तो यह उससे भी अधिक अहंकार के चक्र का कारण बन जायेगा| इसलिए यदि आप को पता चलता है कि अहंकार है तो इसे अपनी जेब में रख लो| अहंकार का केवल एक ही इलाज है - सरलता से रहो | आप आपने अहंकार से क्यों बचना चाहते हो? क्योंकि यह अन्य लोगों की बजाय आप को ज्यादा परेशान करता है| आप विवश और बेचैन हो जाते हो|आपको लगता है दूसरे लोग आपका आदर नहीं करते| आप अपनी तुलना अन्य लोगों के साथ करते हो| इस लिए मैं यही कहूँगा यदि आपको लगता है आपमें अहंकार है तो इसे रहने दो|हम इसके साथ नहीं उलझेगें| यदि ये आता है तो इसे आने दो|

प्रश्न : आजकल सरकारों और दुनिया की अन्य स्तिथियों में बहुत भ्रष्टाचार है | हम भ्रष्टाचार को कम करने के लिए क्या कर सकतें हैं?

श्री श्री रवि शंकर :
भ्रष्टाचार तब शुरू होता है जब अपनेपन की भावना नहीं रहती| जब हममें अपनेपन की भावना होती है तो हम भ्रष्ट नहीं हो सकते| जब हम सबके साथ अपनेपन की भावना विकसित कर लेते हैं तो भ्रष्टाचार गायब हो जाता है| भ्रष्टाचार अपनेपन की सीमा के बाहर शुरू होता है|

प्रश्न : कोई हर रोज कैसे खुश रह सकता है?

श्री श्री रवि शंकर :
उदास होने के लिए कोई कारण होना चाहिए| खुश होने के लिए किसी कारण की जरूरत नहीं होती|

प्रश्न : जब कोई आपसे घृणा करे और उनकी उपस्थिति में आपको अच्छा न लगे, उस स्थिति में क्या करना चाहिए?

श्री श्री रवि शंकर :
उन्हें आशीर्वाद दो| शांत और निर्मल मन लेज़र की किरन की तरह हो जाता है| तब आपके पास आशीर्वाद की शक्ति आ जाती है| भारत और चीन में एक प्रथा है| जब भी घर में कोई शादी या समारोह हो तो आपको घर में सबसे बड़े व्यक्ति के पास जाकर उनका आशीर्वाद लेते है| इसके पीछे वैज्ञानिक कारण है| जैसे जैसे आप बड़े होते हो तो आप और अधिक निर्मल और संतुष्ट हो जाते हो| एक संतुष्ट मन के पास आशीर्वाद की शक्ति होती है| यदि आप संतुष्ट नहीं हो तो आपके पास आशीर्वाद की शक्ति नहीं होगी,तब आप किसी और को आशीर्वाद कैसे दे सकते हो? यदि आप अपने जीवन में पाने वाली वस्तुओं से कृतज्ञ हो तो आपमें लोगों को आशीर्वाद देने की योग्यता आती है| पहले आप केन्द्रित हो| यदि वे आपसे घृणा करते हैं तो क्या? आप खुश रहो और उनको आशीर्वाद दो कि उनका घृणा से पीछा छूट जाए| प्राय हम लोगों को सुधारने की कोशिश करते हैं क्योंकि उनके रवैये से हम परेशान हो जाते हैं| परन्तु यदि आपक इरादा उनमे बदलाव लाना है क्योंकि उनका बरताव उनको कष्ट दे रहा है तो, धीरे धीरे उनमे बदलाव अवश्य आएगा| क्या आप समझ रहे हो मैं क्या कह रहा हूँ?

प्रश्न : मैं ६३+ आयु का हूँ| क्या 'आर्ट ऑफ़ लिविंग' से मरने की कला भी सीख सकते हैं?

श्री श्री रवि शंकर :
आप भूल जाओ कि आप ६५ के हो| जाग जाओ, अभी देर नहीं हुई है| आपके अंदर गहराई में ऐसा कुछ है जो वृद्ध नहीं हुआ है| वह शुद्ध और गतिशील है| अपने आप को कम मत समझो| अपने आप को बेकार मत समझो| मैं आपको बताता हूँ,आप बैठ कर ध्यान कर सकते हो और आप दुनिया को आशीर्वाद दे सकते हो| तब सब कुछ अलग तरह से होगा| मैं आपके साथ हूँ| आप अकेले नहीं हो| यदि कोई भी किसी समय अकेला ,उदास,दुखी, नाखुश या उदास महसूस करे ,तब यह याद कर लेना आप अकेले नहीं हो| आप बिलकुल भी अकेले नहीं हो|

प्रश्न : क्या आप २०१२ के आसपास आने वाले बर्षों में बदलाव के बारे में कुछ कहेंगे? इसके बाद क्या होगा?

श्री श्री रवि शंकर :
मैं आपको आश्वासन देता हूँ कि हम २०१३ देख पाएंगे| जरा १९९९ में होने वाले अव्यवस्था को याद करो| कुछ लोगों ने छह महीने के लिए घरों में भोजन इकट्ठा करना शुरू कर दिया था | तब भी मैंने कहा था सब सामान्य होगा| २०१२ में भी सब सामान्य होगा| वास्तव में आने वाले बर्षों में आध्यात्म और अधिक फैशन में होगा और लोग और अधिक अध्यात्मिक बन जायेंगे|हर कोई चेतना के बारे में और अधिक समझ पाएंगे| इसी समय यहाँ पर ब्रह्मांड और अस्तित्व की कई परतें हैं| आने वाले समय में और अधिक जानने को मिलेगा| लोग समझ पाएंगे और विज्ञान भी अविष्कार करेगा|

प्रश्न : जब हम अपने आप और संबंधों पर संदेह करने लगें तो क्या करें?

श्री श्री रवि शंकर :
संदेह हमेशा अच्छी बातों पर ही होता है| आप जानते हो यदि कोई आपसे यह कहे कि वे आपसे प्यार करते हैं तो आप पूछ्ते हो,"सचमुच?"| परन्तु यदि कोई अपनी नफरत व्यक्त करता है तो आप इसे सच समझ लेते हो| यदि कोई आपसे पूछे "क्या आप खुश हो?" तो आप कहते हो "मुझे नहीं पता|" | हम जो भी अच्छा है उस पर संदेह करते हैं| हम प्रेम पर संदेह करते हैं| हम लोगों की अच्छाई पर संदेह करते हैं| हम ईमानदारी पर संदेह करते हैं| हम कभी बेईमानी पर संदेह नहीं करते| क्या ऐसा नहीं है? हम अपनी योग्यताओं पर संदेह करते हैं| हम अपनी त्रुटियों पर संदेह नहीं करते| आप अपनी उदासी पर संदेह नहीं करते|परन्तु अपनी ख़ुशी पर हमेशा संदेह करते हो| इस तरह अगर आप ध्यान दें तो संदेह हमेशा अच्छी बातों पर ही होता है|

प्रश्न : हम समाज में सेवा कैसे कर सकते हैं| दूसरा, मैं समाज में अच्छा व्यक्ति कैसे बन सकता हूँ?

श्री श्री रवि शंकर :
बहुत से तरीके हैं| आप 'आर्ट ऑफ़ लिविंग' के अध्यापक या स्वयंसेवक बन सकते हो| आप ग्रामीण बच्चों के स्कूल में मदद कर सकते हो| हजारों पढ़ रहे है और हजारों दाखिले के लिए इन्तजार कर रहे हैं| आप डोलर ए डे (Dollar a Day) प्रयोजना में हिस्सा बन सकते हो| एक दिन का एक डोलर एक बच्चे के लिए शिक्षा, मेडिकल ,भोजन और कपड़े प्रदान करता है| हम इस आडिटोरियम में १००० लोग हैं| यदि हम में से हर कोई एक बच्चे का प्रयोजक बन जाए तो और १००० बच्चों को शिक्षा मिल जाएगी| नहीं तो इन बच्चों को छोटी उम्र में काम करने लिए विवश होना पड़ता है| यदि आप कोई और परियोजना लेना चाहते हो तो
आप का स्वागत है| यदि आप अपना समय, छह महीने या एक बर्ष, देना चाहो तो आप किसी जगह जा सकते हो और लोगों में शांति ला सकते हो|आपका भारत में आपका स्वागत है|

प्रश्न: कभी कभी मुझे पता नहीं चलता मैं सही कर रहा हूँ| मैं साहस खो देता हूँ| ऐसी स्तिथि में क्या करूँ?

श्री श्री रवि शंकर :
ऐसे क्षणों में अपने भीतर विश्राम में रहो| आपके साथ सब सही होगा!

प्रश्न : यदि हर व्यक्ति इस धरती पर कोई एक ऐसा काम करना चाहे जिससे यह दुनिया एक बेहतर स्थान बन सके तो वह क्या होगा?

श्री श्री रवि शंकर :
आप इसे केवल एक ही पर सीमित क्यों कर रहे हो? हम सब कितने अलग अलग हैं| हर कोई अपनी विशेषज्ञता के अनुसार सेवा कर सकते हैं| परन्तु यदि आप केवल एक पर ही जोर देते हैं तो मैं कहूँगा "और अधिक मुस्कुराओ"| कुछ सेवा करो और अपना दायरा धीरे धीरे बढ़ाओ| तब आप और सेवा कर सकते हो| जितनी आप सेवा करते हो, आप उससे अधिक पाते हो |

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