"ज्ञान का विश्विकर्ण ही आतंकवाद का इलाज है"


डेनवर ,कोलोराडो
अप्रैल.२०.२०१०


हम अपने जीवन में प्राय धन्यवाद बोलते हैं और क्षमा मांगते हैं पर महसूस नहीं करते| यह लगभग वैसे ही है जैसे विमान परिचारिकाएं विमान से उतरते समय आपको बोलती हैं, 'आपका दिन शुभ हो|' विमान प्रचारिका आपका अभिवादन करती है परन्तु बिना किसी भाव के| यही शब्द यदि किसी प्रिय व्यक्ति की ओर से आये तो इनका भाव ओर असर अलग रहता है| हमारा अस्तित्व हमारे शब्दों से अधिक महतव्पूर्ण है| एक बच्चा बिना बोले जो प्रेम का भाव व्यक्त करता है कोई दूसरा बोल कर भी वैसे नहीं कर सकता| हम सब इस भाव के साथ सम्पन्न है परन्तु यह भाव कहीं परेशानी और भागदौड़ में गुम हो गया है| यह तनाव के कारण है| ना तो घर पर और ना ही स्कूल में किसी ने हमें अपने भाव को शुद्ध रखना सिखाया है| यदि हम घर पर गुस्सा हो तो यही गुस्सा लेकर दफ़तर पहुंच जाते हैं|जब हम दफ़तर में परेशान रहते हैं तो यह तनाव हमारे शरीर की कार्य प्रणाली में आ जाता है और हम घर पर भी तनाव में रहते हैं| हम इसे छोड़ नहीं पाते| इसके लिए हमे अपने भीतरी स्रोत में जाना होगा| अब प्रश्न यह है - हम अपने स्रोत के पास कैसे जाएँ? हम अपने भाव को कैसे शुद्ध करें? इसी के लिए ध्यान किया जाता है| ये शोर से मौन की ओर जाना है|
बहुत से लोग सोचते हैं कि ध्यान यानि एकाग्रता| ऐसा नहीं है| बल्कि ध्यान एकाग्रता के विपरीत है| यदि आपको किसी वाहन को चलाना हो तो एकाग्रता की आवश्यकता होती है| यदि आपको विश्राम करना हो तो किसी प्रयास की जरूरत नहीं होती| ध्यान गहरा विश्राम है नाकि एकाग्रता| इसलिए यदि ध्यान में कोई विचार आते हैं तो हम उनके पीछे नहीं भागते| जितना हम उनके पीछे भागते हैं उतने ही और विचार आते हैं| यदि आप किसी विचार से पीछा छुड़ाने का प्रयत्न करते हो तो यह आसानी से नहीं जायेगा| यह और सशक्त हो कर वापिस आ जाएगा| हम एक और रणनीति अपनाते हैं| यदि कोई बुरे विचार आते हैं तो हम उन्हें आने देते हैं| हम उन्हें मित्र बना लेते हैं| तब वे गायब हो जाते हैं| यदि अच्छे विचार आते हैं तो हम उन्हें आने देते हैं तब वे शांत हो जाते हैं| जो कोई भी विचार आये हम उन्हें रोकने की कोशिश नहीं करते| यह एक प्रयास रहित प्रक्रिया है|
ध्यान में उतरने के लिए तीन महत्वपूर्ण नियम हैं| सबसे पहला है - "मुझे इस समय कुछ नहीं चाहिए|" जब आपको कुछ नहीं चाहिए तो आप को कुछ करना भी नहीं होता| यदि आप कहो "मुझे पानी पीना है यां मुझे अपनी अवस्था बदलनी है" तो ध्यान नहीं हो सकता| दूसरा महत्वपूर्ण नियम है - "मैं कुछ नहीं करता"| आप केवल साँस लेते हो| और फिर - "मैं कुछ नहीं हूँ|" ध्यान के समय आप अपने बारे में सभी धारणायों का त्याग कर देते हो| उस समय ना आप बुद्धिमान हो, ना आप मूर्ख हो, ना अमीर हो, ना गरीब हो|तो आप हो क्या? कुछ भी नहीं| "मैं कुछ नहीं हूँ| मैं कुछ नहीं चाहता हूँ| मैं कुछ नहीं करता|" ध्यान के बाद आप दोबारा कुछ हो सकते हो| यह आपकी इच्छा है,परन्तु यदि ध्यान के समय आप स्वयं को महान यां बेकार समझते हो तो आप अपने भीतर विश्राम नहीं कर सकते| उस चेतना में स्थित होने के लिए जिससे हम सब बने हैं यह सबसे पहला कदम है| यह ध्वनी से मौन की यात्रा है|
इस तरह से हम तीन बार ॐ का उच्चारण करके अपने चारों ओर प्रेम और शांति की लहर फैलायेंगे| यह आन्तरिक शांति है| जब हम में यह आन्तरिक शांति होती है,हम में धैर्य होता है और हमारा सोचने का तरीका बेहतर होता है| हमारी निरिक्षण करने की योग्यता और अभिव्यक्ति बेहतर होती है| प्राय हम यह कहते हैं, "कोई भी मुझे नहीं समझता|" हम कभी नहीं कहते, "मैं अपने को अच्छे से व्यक्त नहीं कर पाया|" हमारी अभिव्यक्ति ध्यान से सुधरती है| यह ध्यान का जादू है|
कुछ लोग पूछ्ते हैं ध्यान से क्या होता है? इससे समाज हिंसा रहित हो सकता है| आज कोल्म्बिन हाई स्कूल की ग्यारहवी बर्षगांठ है| अपराधी और अपराध के शिकार हुए दोनों के लिए ही जानने की जरुरत है कि मन को कैसे शांत करना है| ना तो स्कूल में और ना ही घर पर कोई सिखाता है कि नकरात्मक भावनायों से कैसे पीछा छुड़ाना है| ये भावनाएं आती हैं और आप इनमें फस के रह जाते हो| वर्ल्ड हेल्थ संगठन (WHO) की भविष्यवाणी है अगले दस बर्षों में अवसाद (Depression) सबसे बड़ा घातक रोग होगा| अवसाद के बाद कैंसर दूसरा बड़ा घातक रोग होगा| ध्यान इससे निपटने के लिए आवश्यक है| प्राणायाम,योग,सुदर्शन क्रिया और ध्यान से इस तरह के बदलाव लाये जा सकतें हैं|

यदि हर बच्चा हर धर्म के बारे में थोड़ा बहुत सीख ले तो वे कट्टर नहीं बनेंगे| वे ऐसा नहीं कहेंगे,"ओह,केवल मेरे पास सत्य है|" वे देख सकेंगे कि सब में सत्य है| नहीं तो कुछ कमी रह जायेगी| इसे ही मैं ज्ञान का विश्वीकरण कहता हूँ| फिनलैंड में नोकिया फ़ोन बनाते हैं परन्तु दुनिया में सब लोग उनका इस्तेमाल करते हैं| उसी तरह से डेनिश कुकीज़ दुनिया भर में जानी जाती हैं| हालाकि सितार भारत से है पर सब इसे सुनतें हैं| फिर भी जब ज्ञान कि बात आती है तो सब संकुचित हो जाते हैं| इसी कारण से दुनिया में आज आतंकवाद है| यदि इस दुनिया का एक छोटा हिस्सा भी यह सोचे कि सत्य केवल उनके पास है तो सारी दुनिया के लिए मुसीबत हो जाएगी| हम सुरक्षित नहीं हो सकते| ऐसे में आत्मघाती हमलावर होंगे| हमें प्रत्येक बच्चे को बहु धार्मिक शिक्षा देनी होगी | हर बच्चे को उपनिष्द के बारे में कुछ ज्ञान होना चाहिए| उपनिष्द प्रेम से पूर्ण है| इसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती| महात्मा बुद्ध की शिक्षा भी बहुत अनमोल है| सभी को बुद्ध और उनकी शिक्षा के बारे में जानना चाहिए| सभी को दाओइज़म , ईसा मसीह और मुहम्मद ने क्या कहा है -इसका कुछ ज्ञान होना चाहिए| कोई भी अपने धर्म का अनुसरण करते हुए व्यापक दृष्टि कोण रख सकते हैं| यदि आप यहूदी हो तो आप अन्य धर्म के ज्ञान को समझ के भी एक यहूदी रह सकते हो| इससे किसी तरह हमारे जीवन पर अच्छा प्रभाव ही होगा| हमने पोटेटो चिप्स और कोक का तो विश्वीकरण कर दिया परन्तु ज्ञान का नहीं किया| हमें ऐसा करने की जरूरत है| यदि हम जो खर्चा राष्ट्र की रक्षा पर करते हैं उसका कुछ हिस्सा बच्चों को शांति और अहिंसा के प्रति शिक्षित करने पर करें तो दुनिया में बहुत अंतर आ जायेगा|

फिर श्री श्री ने उपस्थित लोगों को ध्यान करवाया|

प्रश्न : माता-पिता बच्चों को कैसे जिम्मेवार बना सकते हैं और दोनो के लिए यह आनंदमय अनुभव बना सकते हैं?

श्री श्री रविशंकर :
उन्हें हर रोज एक नया दोस्त बनाना सिखाओ| उन्हें वे सब हिंसात्मक वीडियो खेल खेलने के लिए मत दो| बच्चों के लिए 'आर्ट ऑफ़ लिविंग' प्रोग्राम हैं – Art Round Training in Exellence| इस प्रोग्राम में बच्चों को खेल खेल में सीखना बहुत अच्छा लगता है| यूरोप में इसे एन ए पि(Non – Aggression Program) के नाम से जाना जाता है| जो बच्चे बहुत आक्रामक होते है वे खुश और मैत्रीपूर्ण बन जाते हैं| माता -पिता के लिए एक प्रोग्राम है - के वाइ सी (Know Your Life)|

प्रश्न : व्यक्तिगत विकास के लिए वे कौन सी बातें हैं जिनके लिए एक व्यक्ति को प्रतिबद्ध होने की जरूरत है?

श्री श्री रवि शंकर :
सबसे पहले समाज के हित के लिए प्रतिबद्ध होना| मुझे यह कहने की आवश्यकता नहीं कि आप को अपने हित के लिए प्रतिबद्ध होना है| तुम पहले ही इसके लिए प्रतिबद्ध हो| अगर आपको प्रतिबद्ध होना है तो मानव कल्याण के लिए कोई बड़ी प्रतिबद्धता लो| ऐसा पहले से ही है| जब हम तनाव से मुक्त होते हैं तो हम स्वभाविक रूप से समाज के प्रति प्रतिबद्ध होते हैं| समाज में बहुत कुछ करने की आवश्यकता है| विशेषरूप से जहाँ पर एक वंश से दूसरे वंश में हिंसा फैल रही है| उन्हें खास तौर पर अहिंसा के बारे शिक्षित करने की आवश्यकता है|

प्रश्न : वे कुछ आदतें क्या हैं जिनसे सफलता मिलेगी?

श्री श्री रविशंकर :
पहले आप को सफलता को परिभाषित करना होगा| बहुत बड़े बैंक खाते हो पर नींद न आए तो यह सफलता नहीं है| आपके पास बहुत से पैसे हो सकते हैं परन्तु उसके साथ यदि आपको बहुत सी स्वास्थ्य सम्बन्धी परेशानियां हैं, डर और चिंता से भरे हो,आपके पास मित्र नहीं है तो यह सफलता नहीं है| मेरे लिए सफलता आपकी मुस्कान से मापी जा सकती है| आपका जीवन कितना मुसकान से भरा है और अन्य लोगों की मुस्कान के लिए आपका क्या योगदान है? आपको अपनी योग्यता में कितना साहस और विश्वास है? आप केवल अपने भविष्य को लेकर चिंतित नहीं हैं- मेरे लिए यह सफलता का निशान है| पैसा जीवन के लिए आवश्यक है परन्तु जीवन केवल पैसे के लिए ही नहीं है|

प्रश्न : प्रेम की परिभाषा क्या है?

श्री श्री रवि शंकर :
प्रेम वह है जिसकी कोई परिभाषा नहीं हो सकती| इसे केवल महसूस किया जा सकता है| यह वह है जिसे हम समझ नहीं सकते|

प्रश्न : अब पृथ्वी को बचाना महत्वपूर्ण क्यों होता जा रहा है?

श्री श्री रवि शंकर :
क्योंकि हम पृथ्वी का इतना शोषण कर रहे हैं जिसे यह सम्भाल नहीं पा रही है| हम व्यक्तिगत रूप से पृथ्वी की कुछ मदद कर सकते हैं| आप किसी सेवा प्रयोजना का हिस्सा बन सकते हो जैसे पेड़ उगाओ, प्लास्टिक बैग का प्रयोग न करने के लिए लोगों को जागरूक करके| आप प्रतिदिन ध्यान कर सकते हो और इन मुद्दों पर विचार कर सकते हो| जब हम कोई इरादा रखते हैं और ध्यान उस पर लगाते हैं तो ये पूरे होने लगते हैं| प्रकृति ने जो हमें मन की शक्ति प्रदान की है हम उसे प्रयोग नहीं करते| यह सबसे बड़ा तोहफा है जो हमे दिया गया है|

प्रश्न : वरिष्ठ प्रबंधन अपनी टीम के बेहतर प्रदर्शन के लिए क्या कर सकती है?

श्री श्री रवि शंकर :
कॉर्पोरेट वातावरण के लिए ’आर्ट ऑफ़ लिविंग’ का एपेक्स(APEX) कोर्से है| वर्ल्ड बैंक के साथ साथ सभी ने इस सराहा है|

प्रश्न : हम ऐसे युग में रह रहे हैं जहाँ घोटाले और धोखाधडी हो रही है| यहाँ तक कि अध्यात्मिक गुरुओं में भी | हम वास्तविक और नकली आध्यत्मिक गुरुओं में अंतर कैसे करें?

श्री श्री रवि शंकर :
यह भारत में बहुत होने लगा है और ऐसी ही कुछ कहानिया यूरोप में भी होने लगीं है| ये बहुत दुःख की बात है| फिर भी मैं कहूंगा कई बार रेलगाड़ियाँ पटरी से उतर जाती हैं परन्तु हम रेल से सफर करना बंद नहीं करते| विमान दर्घटना ग्रस्त हो जाते हैं परन्तु हम उड़ान भरना बंद नहीं करते| कुछ लोग ऐसे होतें हैं जो किसी आकर्षणवश या किसी विशेष प्रयोजन से गलत रास्तों पर चल पड़ते हैं| ये दुर्भाग्य की बात है| मैं यह कहूँगा यदि कोई अध्यात्मिक या धार्मिक नेता कुछ गलत करता है तो उसकी सजा भी दुगनी होनी चाहिए| उसने न केवल अपराध किया है बल्कि उसने एक मत के पुरे संगठन का अपमान किया है| ऐसे नेताओं को अपने आप सामने आना चाहिए| गलती करने पर उन्हें अपने आप सामने आकर माफी मांगनी चाहिए| यदि वे छुपने की कोशिश करें तो उनकी सजा तीनगुनी कर देनी चाहिए| अध्यात्मिक रास्ते पर होकर और गलती छुपाना इस ओर इशारा करता है कि उनमें विश्वास और अपनेपन की कमी है| इस तरह से आप अपनी ही आत्मा और भावना को चोट पहुंचा रहे हो| इसमें कुछ नया नहीं है| रामायण में रावन एक प्रसिद्ध संत था फिर भी उसने सीता का हरण किया| यहाँ तक चिकित्सा के क्षेत्र में ऐसे डाक्टर हैं जो गुर्दे चुराते हैं| आपने बहुत से लोगों के बारे में सुना होगा जो हर क्षेत्र में अविश्वास फैलाते हैं| हमे पक्षपात में पड़ते हुए इसके बारे में मत नहीं बनाना चाहिए| हमे आगे बढ़ना है| मैं इन पर इलज़ाम देने की बजाय इनसे करुणा का भाव रखता हूं | ठीक है उन्होंने गलती की है,अब उन्हें सही रास्ते पर आने दो| प्रत्येक अपराधी के अन्दर एक अपराध का शिकार व्यक्ति मदद की पुकार करता है| यहाँ तक सबसे बड़े अपराधी में भी एक घाव और असंतुष्टि होती है| हमें उस चोट खाए व्यक्ति का इलाज करना है और अपराधी गायब हो जायेगा|

प्रश्न : हम अत्यधिक दुःख और नुकसान से कैसे बाहर आएं?

श्री श्री रवि शंकर :
ध्यान और सुदर्शन क्रिया से आप देखोगे कितनी आसानी से आप इससे बाहर आ जाते हो|

प्रश्न : क्या इस दुनिया में तनाव रहित होना मुमकिन है?

श्री श्री रवि शंकर :
मैं तनाव रहित हूँ | बहुत से और भी ऐसे हैं| यह मुमकिन हैं| आप एक बच्चे के रूप में तनाव से मुक्त थे| आप ऐसे हो सकते हो | आप को वृद्ध होने तक इसका इंतजार नहीं करना है| यह इसी वक्त संभव है|

प्रश्न : क्या हिंसात्मक कार्य उपयुक्त है?

श्री श्री रवि शंकर :
हिंसा को रोकने के लिए सचेत कार्य हिंसात्मक दिख सकता है| पर ऐसा नहीं है| फिर भी मैं मृत्युदंड के पक्ष में नहीं हूँ| मुझे लगता है कि हर किसी में सुधार की गुंजाईश होती है|उन लोगों के लिए दया करो जो हानिकारक कार्य करते हैं और पश्चाताप भी नहीं करते| उनमें शिक्षा की कमी के लिए उन पर दया करो और इसे जानो कि हर अपराधी के अन्दर एक चोट खाया व्यक्ति होता है|

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