भगवान प्रेम है और संपूर्ण जगत हर तरह से प्रेम से भरा हुआ है


प्रश्न : हम दूसरों की गलती के पीछे उनका इरादा कैसे ना देखें?

श्री श्री रवि शंकर :
हम अकसर लोगों की गलती के पीछे उनका गलत इरादा देखते हैं| अगर हम एक विशाल दृष्टिकोण से देखें तो हर अपराधी हालात का शिकार है| हर अपराधी के अंदर मदद की पुकार करता एक व्यक्ति है| उन्होने सही ज्ञान यां जानकारी के अभाव में, तनाव में यां अपनी संकुचित सोच के कारण अपराध किया हो सकता है| हम केवल अपराध ही देखते हैं पर उस के पीछे सही वजह नहीं देखते|
हर बच्चे को अन्य धर्मों का कुछ ज्ञान होना चाहिए| अगर लोगों को यीशु, कुरान, वेद, जैन धर्म, सिख धर्म, इस्लाम, उपनिष्द और अन्य धर्मो की कुछ जानकारी हो तो दुनिया में एक भी आतंकवादी ना हो| केवल अपने धर्म को सही समझना और अन्य धर्मों के ज्ञान को अस्वीकार करना ही आंतकवाद का मूल कारण है| हम ने सारी दुनिया के खाद्द पद्धार्थ जैसे पेप्सी इत्यादि तो स्वीकार कर लिया पर ज्ञान के मामले में हम अपनी सोच संकीर्ण कर लेते हैं| हर देश में बच्चों के लिए बहु सांस्कृतिक और बहु धार्मिक शिक्षा अनिवार्य है| फिर दुनिया में एक भी व्यक्ति आतंकवादी नहीं होगा|

प्रश्न : आत्मबल को कैसे बढ़ा सकते हैं?

श्री श्री रवि शंकर :
ध्यान और श्वास की क्रिया से भीतर की शक्ति बढ़ती है| इनके अभ्यास से हम अपने केन्द्र से जुड़ते हैं| आत्मबल तीन तरह से आता है - जब तुम प्रेम में होते हो तो प्रतिबद्धता का पालन सहज ही होता है|
जब तुम्हे कोई भय यां लालच होता है तो भी तुम प्रतिबद्धता का पालन करते हो| प्रतिबद्धता का पालन करने के लिए प्रेम सबसे श्रेष्ठ मार्ग है|

प्रश्न : भगवान किस जगह है?

श्री श्री रवि शंकर :
भगवान के लिए कोई जगह ढूंढना व्यर्थ है क्योंकि भगवान हर जगह है| भगवान सम्पूर्ण सृष्टि का जोड़ है| भगवान वो उर्जा है जिसमें हम सब हैं| भगवान स्वर्ग में कोई पुरुष नहीं जो तुम्हे सज़ा देने के लिए बैठा है| भगवान की ऐसी कलपना केवल कुछ किताबों में हो सकती है| भगवान प्रेम है और संपूर्ण जगत हर तरह से प्रेम से भरा हुआ है| जब तुम्हारा मन अपने केन्द्र में विश्राम करता है तो तुम इस उर्जा का अनुभव करते हो|

प्रश्न : अगर खुशी का स्रोत हमारे भीतर है तो आध्यात्मिक गुरु की हमें क्या आवश्यकता है?

श्री श्री रवि शंकर :
तुमने अपने प्रश्न में ही उत्तर भी दे दिया | अगर प्रश्न ना होता तो उत्तर की भी आवश्यकता ना होती| जिस समय तुम्हारे भीतर प्रश्न उठा तुम उत्तर ढूंढते हो और जो तुम्हे उत्तर देता है वो तो गुरु बन ही गया| अगर कोई उत्तर दे और कहे वो गुरु नहीं यां तुम प्रश्न पूछो और कहो कि तुम शिष्य नहीं तो दोनो ही ईमान्दार नहीं हुए| यह ऐसा ही है जैसे एक डॉक्टर तुम्हे कहता है कि वो दवा तो देता है पर डॉक्टर नहीं है यां तुम कहो, " मैं दवा तो लेता हूं पर मैं रोगी नहीं हूं"|

प्रश्न : हमारे जीवन का क्या उद्देश्य है?

श्री श्री रवि शंकर :
यह प्रश्न हर किसी को स्वयं से पूछना चाहिए| अगर कोई तुम्हे उत्तर देता भी है तो उसे स्वीकार मत करो| जिसे पता है वो तुम्हे नहीं बताएगा और जो बताते हैं उन्हे वास्तविक्ता में पता नहीं है| 'जीवन का क्या उद्देश्य है?' – यह बहुत कीमती प्रश्न है| अगर यह सवाल तुम्हारे मन में उठा है तो तुम खुद को बधाई दे सकते हो| इससे हमारे मन के भ्रम दूर हो सकते हैं| इसका कोई एक उत्तर नहीं है| यह एक रास्ता है जिस पर हमें यात्रा करने की आवश्यकता है| 'मैं कौन हूं?', 'मुझे क्या चाहिए?' और 'मेरे जीवन का उद्देश्य क्या है'? - यह प्रश्न हमें जीवन में आगे ले जाते हैं| बहुत से लोग इस प्रश्न के बारे में सोचते भी नहीं|

प्रश्न : भगवान को पाने के लिए कौन से गुण चाहिए?

श्री श्री रवि शंकर :
मुस्कराओ और सेवा करो| अपने मन की चंचलता पर मुस्कराओ| मन के साथ मत बहो | अपनी क्षमता के अनुसार सेवा करो| जितना तुम कर सकते हो उतना ही करो| जो तुम नहीं कर सकते उसकी तुमसे उम्मीद भी नहीं की जाती| अगर तुम डॉक्टर नहीं हो तो तुमसे कोई ईलाज कराने की उम्मीद भी नहीं करता| समाज के हित के लिए सोचो|हम जो भी कमाते हैं उसका कुछ हिस्सा समाज को वापिस जाना चाहिए|
जब मैं स्कूल में था तो सादगी और समता के साथ गर्व जोड़ा जाता था| समता होने से मुस्कान और करुणा बनी रहती है| हिंसक व्यवहार को बुरा और तुच्छ समझा जाता था| आज आक्रामकता और हिंसा के साथ गर्व जोड़ा जाता है| टी वी में हीरो और कॉलेज में हिसंक छात्र आदर्श बन जाते हैं |आदर्श में यह बदलाव दुनिया भर में एक समस्या है| हमें आध्यात्म को वापिस लाने की आवश्यकता है| संतुलित मन और सबके लिए करुणा का भाव रखो|

प्रश्न : हमे धोखाधड़ी और भ्रष्टाचार का सामना कैसे करना चाहिए?

श्री श्री रवि शंकर :
अपनेपन की भावना के अभाव से भ्रष्टाचार होता है| मित्रता की कमी से धोखाधड़ी होती है| हम अपने दोस्तों को धोखा नहीं देते| मित्रता ना हो तो डर रहता है और धोखे की संभावना होती है| डर और केवल अपने बारे में सोचने के कारण भ्रष्टाचार होता है| इसलिए मित्रता और अपनेपन का भाव जगाना आवश्यक है| राजनीति में आध्यात्म, व्यापारिक कम्पनियों में सामाजिक दायित्व की भावना और धर्म में धर्मनिरपेक्षता अनिवार्य है|

प्रश्न: क्या हमें सच में जीवन में उद्देश्य चाहिए यां हम ऐसे ही खुश रह सकते हैं?

श्री श्री रवि शंकर :
तुम ने खुश रहना अपने जीवन का लक्ष्य बना लिया है| तुम्हारे पास तो पहले ही उद्देश्य है| पर क्या तुम खुश रह सकते हो जब तुम्हारे आसपास के लोग खुश नहीं हैं? जब तुम अपने दृष्टिकोण का विकास करते हो तो तुम सब में अपने आप को पाते हो| अगर तुम्हारे आसपास के लोग खुश नहीं हैं तो तुम खुश नहीं रह सकते| तुम जितना अपने केन्द्र में जाते हो तुम दुनिया में सबके साथ एक महसूस करते हो| तुम इंसान, वनस्पति और जानवरों के साथ भी एकता महसूस करते हो| तुम वातावरण की देखभाल करना भी शुरु कर देते हो|

प्रश्न : हम निस्वार्थ कैसे हो सकते हैं? मैं स्वयं में संशय करना कैसे त्याग सकता हूं?

श्री श्री रवि शंकर :
तुम पहले ही स्वार्थी नहीं हो| तुम बस यह जान लो की तुम स्वार्थी नहीं हो| जब तुम स्वार्थी होते हो तो तुम्हारे अंदर होने वाली संवेदना तुम्हे कष्ट देती है| तुम आराम तब महसूस करते हो जब तुम हर कहीं और हर किसी के साथ सहजता से व्यवहार करते हो | यही उदारता है| तुम गुण पैदा नहीं कर सकते| यह जान लो कि तुम्हारे भीतर गुण मौजूद हैं| तब गुण विकसित होते हैं|
तुम जानते हो तुम संशय किस पर करते हो? जो सकारात्मक है तुम्हे संशय उसी पर होता है| अगर कोई तुमसे कहे कि वो तुमसे प्रेम में है तो तुम संशय करते हो| पर तुम किसी के नफरत पर संशय नहीं करते|

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