"कोई काम आनंद की अभिव्यक्ति में करना या उस काम को आनंद की उम्मीद में करना - दोनों में अंतर है"
डार कोंसीटीच्युशन हॉल
वाशिंगटन डी सी,
अप्रैल २५,२०१०
'आर्ट ऑफ़ लिविंग' में हम एक योजना को लागु करने के लिए इन्तजार नहीं करते| हम काम करना शुरू कर देतें हैं और जो भी आवश्यक होता है अपने आप आने लगता है| इसे सिद्धि या पूर्णता कहतें हैं - जब जो कुछ भी आवश्यक होगा, मिल जाएगा| प्राणायाम और ध्यान की फिर यहाँ भूमिका है| इस से आप ऐसे बन जाते हो कि कोई कमी ही महसूस नहीं होती| हमें वापिस इस अवस्था में आने की आवश्यकता है| वातानुकूलित कमरे और सब तरह के ठाट का क्या फायदा यदि इससे साथ अनिद्रा और मुधुमेह जैसे रोग हों? इसलिए हमें अपने आसपास सकरात्मक उर्जा पैदा करने की जरूरत है| ये चिंतित रहने यां सोचते रहने से नहीं हो सकता| मैं आपको कार्य करने के दो तरीके बताना चाहूँगा| एक तो यह कि आप कुछ करते हो क्योंकि आप को कुछ चाहिए होता है, आप उस कार्य की पूर्णता से खुशी की उम्मीद करते हो| दूसरा, आनंद की अभिव्यक्ति के साथ कुछ करना ,आप एक कार्य करते हो क्योंकि आपके पास कुछ है| आनंद की अभिव्यक्ति के साथ कुछ करना और आनंद पाने के लिए कुछ करना , दोनों में बहुत अंतर है| आज दुनिया में बहुत से लोग अवसाद से पीड़ित हैं| आंकड़े बतातें हैं कि आने वाले दशक में यह संख्या बढ़ कर ५० प्रतिशत हो जायेगी| दुनिया की आधी जनसंख्या - यह बहुत दुःख की बात है| हमें इसे बदलना होगा| psychiatric दवाएं लेना समाधान नहीं है| ध्यान और प्राणायाम से ही यह बदला जा सकता है|
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