विश्वास जीवन में बहुत महत्वपूर्ण है| विश्वास के तीन स्तर/तीन प्रकार
होते हैं: पहला, स्वयं में विश्वास, यानी आत्मविश्वास| दूसरा समाज के नियमों में विश्वास, समाज में अच्छे लोग हैं, इस बात पर विश्वास| और तीसरा एंव सबसे महत्वपूर्ण
प्रकार, जो मुश्किल लगता है, लेकिन बहुत आसान है, ईश्वरीय शक्ति में विश्वास|
वह
दिव्य शक्ति हम सभी में हैं| ऐसा
नहीं कि एक समय में यह भविष्यद्वक्ताओं, संतों, महात्माओं, अवतारों में मौजूद थी, लेकिन अब वहाँ नहीं है, नहीं,
ऐसा नहीं है| यह अभी भी यहीं है, यहाँ मौजूद है हमारे भीतर एक रोशनी (नूर) है|
मेरे यहाँ आने का बस एक ही कारण है, आप सब को याद दिलाना कि आप सब में हर क्षण एक दिव्य रोशनी उज्ज्वलित है| कोई अंतर नहीं पड़ता कि हमारे माता पिता हमसे कितना प्यार करते हैं, इस रोशनी का संबंध हमारे साथ उस प्यार से सौ गुना अधिक मजबूत है| मैं यहाँ आप में यह विश्वास जगाने के लिए ही आया हूँ| और मैं इस के लिए कहीं भी हस्ताक्षर करने के लिए तैयार हूँ|
मेरे यहाँ आने का बस एक ही कारण है, आप सब को याद दिलाना कि आप सब में हर क्षण एक दिव्य रोशनी उज्ज्वलित है| कोई अंतर नहीं पड़ता कि हमारे माता पिता हमसे कितना प्यार करते हैं, इस रोशनी का संबंध हमारे साथ उस प्यार से सौ गुना अधिक मजबूत है| मैं यहाँ आप में यह विश्वास जगाने के लिए ही आया हूँ| और मैं इस के लिए कहीं भी हस्ताक्षर करने के लिए तैयार हूँ|
थोड़ी देर के लिए शांति से बैठे| कुछ समय के लिए विचारों अथवा सांसारिक मामलों से अपने मन को अलग करे और आपको आपने भीतर एक प्रकाश दिखाई देगा - वाह!
आपको आभास होगा – यही है जिसकी मैं खोज में था| जिसके बारे में सब बात करते थे, गाते थे और विश्वास करते थे, और यह मेरे भीतर है!
यह सत्य जानने के बाद आपके रौंगटे घड़े हो जायेंगे, ब्रह्मांड के स्वामी मेरे अंदर बैठे हैं, यह अनुभव हो जाएगा| बस यही है! उसके बाद इस दुनिया कि कोई भी ताकत आपके चेहरे से मुस्कान नही लेजा पायेगी| आप के भीतर ऐसी खुशी उभरने लगेगी कि बाकी सब कुछ बचकाना लगने लगेगा| जाति और धर्म के नाम में ये झगड़े एक नाटक की तरह लगेंगे|
आपको आभास होगा – यही है जिसकी मैं खोज में था| जिसके बारे में सब बात करते थे, गाते थे और विश्वास करते थे, और यह मेरे भीतर है!
यह सत्य जानने के बाद आपके रौंगटे घड़े हो जायेंगे, ब्रह्मांड के स्वामी मेरे अंदर बैठे हैं, यह अनुभव हो जाएगा| बस यही है! उसके बाद इस दुनिया कि कोई भी ताकत आपके चेहरे से मुस्कान नही लेजा पायेगी| आप के भीतर ऐसी खुशी उभरने लगेगी कि बाकी सब कुछ बचकाना लगने लगेगा| जाति और धर्म के नाम में ये झगड़े एक नाटक की तरह लगेंगे|
इस तीसरे तरह का विश्वास यदि थोड़ा
भी उठ जाता है तो यह हमारे जीवन में एक विशाल परिवर्तन लाता है| हमे किसी भी चीज़ की कमी
नहीं लगती, हर कोई अपना बन जाता है| मैंने १५२ देशों की यात्रा की है लेकिन अभी तक कहीं पर भी अजनबी की तरह महसूस नहीं किया| न तो वहां के लोगों ने मुझे एक अजनबी के रूप में देखा और न ही मैं ने किसी को मुझसे अलग समझा| पूरी दुनिया एक ही भगवान है, तो हम एक दूसरे को अजनबी के रूप में कैसे देख सकते हैं? यह स्वाभाविक रूप से और आसानी से होता है, हम विश्लेषण करके यह सब समझ जाते हैं| यही कारण है कि मैंने इस संस्था को “जीवन जीने की कला” का नाम दिया था| इसे तीस साल पहले
शुरू किया गया था| आज आप उत्तरी ध्रुव के अंतिम शहर में जाएँ, जहां सूर्य दो महीने के लिए उदय नहीं होता, वहाँ भी आप लोगों को मिलेंगे जिन्होंने सुदर्शन क्रिया करना सीखा है| दक्षिण ध्रुव, और दुनिया की हर जगह में, लोगों ने इस सरल तकनीक को सीखा है
जिससे सांस के माध्यम से अपने मन को शांत करा जाता हैं|
कोई
फर्क
नहीं
पड़ता कि आप किस में विश्वास करते हैं, या कौन से धर्म का पालन करते हैं, कौन सा शास्त्र पढ़ते हैं, बस एक बात मत भूलें कि हम सब इंसान हैं, और हम बहुत कीमती हैं| मैं ने जीवन जीने की कला में यही बोला है|
तो
विश्वास के तीन प्रकार के होते हैं- सबसे पहले, अपने में- आत्म-विश्वास| एक व्यक्ति यदि कहता है कि 'मैं किसी भी चीज़ में विश्वास नहीं करता’, वह अपने स्वयं में विश्वास के साथ इस बात का बयान करता है|
जो अपने शब्दों में विश्वास करता है, वही यह कह सकते हैं| जिसमे आत्मविश्वास नहीं है, वह एक कदम भी नहीं ले सकता| आज, हमे गरीब लोगों में आत्मविश्वास पैदा करना है| गरीबी उन्मूलन के लिए यही एक रास्ता है| 'मैं कुछ कर सकता हूँ, यह दृष्टिकोण लोगों में होना चाहिए, नाकि ‘दुसरे हमेशा मुझे दें!’
जो अपने शब्दों में विश्वास करता है, वही यह कह सकते हैं| जिसमे आत्मविश्वास नहीं है, वह एक कदम भी नहीं ले सकता| आज, हमे गरीब लोगों में आत्मविश्वास पैदा करना है| गरीबी उन्मूलन के लिए यही एक रास्ता है| 'मैं कुछ कर सकता हूँ, यह दृष्टिकोण लोगों में होना चाहिए, नाकि ‘दुसरे हमेशा मुझे दें!’
आत्मविश्वास सबसे पहले,
उसके बाद, इस दुनिया में अच्छे लोग हैं| कुछ नहीं, कई! लेकिन अच्छे लोगों की चुप्पी के कारण दुनिया बर्बाद हो रही है| बहुत सारे अच्छे लोग हैं| लोगों की अच्छाई में विश्वास होना चाहिए|
देखो, हम आम तौर पर किस पर संदेह
करते हैं? संदेह ईमानदारी पर होता है, बेईमानी पर नहीं| यदि एक ईमानदार व्यक्ति एक बार भी बेईमानी करता है, हम उसकी बेईमानी पर विश्वास करते हैं और उसकी ईमानदारी पर शक करते हैं|
यदि कोई कहता है, 'मैं तुमसे प्यार करता हूँ,’ आप उसे पूछते हैं, ‘सच?’, लेकिन अगर कोई कहता है, 'मैं तुम से नफरत हूँ', तो आप तुरंत विश्वास कर लेते हैं| हमेशा सच्चाई और अच्छाई पर संदेह होता है| यही कारण है कि हम हमेशा भगवान पर शक करते हैं, क्योंकि वह सत्य है| तो समाज में हमे उन लोगों पर विश्वास होना चाहिए, जो शरीफ हैं, महान हैं, अन्यथा, व्यक्ति अधोमुख हो जायगा| हर कोई चोर है, कोई भी ठीक नही है, कोई भी अच्छा नही है| अगर आप इस पर विश्वास करेंगे तो डर जाएंगे और एक कदम आगे चलने में भी असमर्थ हो जाएंगे|
यदि कोई कहता है, 'मैं तुमसे प्यार करता हूँ,’ आप उसे पूछते हैं, ‘सच?’, लेकिन अगर कोई कहता है, 'मैं तुम से नफरत हूँ', तो आप तुरंत विश्वास कर लेते हैं| हमेशा सच्चाई और अच्छाई पर संदेह होता है| यही कारण है कि हम हमेशा भगवान पर शक करते हैं, क्योंकि वह सत्य है| तो समाज में हमे उन लोगों पर विश्वास होना चाहिए, जो शरीफ हैं, महान हैं, अन्यथा, व्यक्ति अधोमुख हो जायगा| हर कोई चोर है, कोई भी ठीक नही है, कोई भी अच्छा नही है| अगर आप इस पर विश्वास करेंगे तो डर जाएंगे और एक कदम आगे चलने में भी असमर्थ हो जाएंगे|
पूरा
सामाजिक ढांचा विश्वास पर टिका हुआ है| टेलीफोन कंपनी आप को इस विश्वास के साथ एक कनेक्शन देती है कि आप पैसे का भुगतान कर देंगे| आपको इस विश्वास पर बिजली दी जाती है कि आप महीने के
बाद भुगतान कर देंगे| आप देखेंगे कि सारी व्यवस्था विश्वास पर आधारित है| आप किसी को चुनाव इस विश्वास पर जितवाते हो कि वह आपके हित का
सोचेंगे| पूरा जीवन केवल विश्वास की एक लहर है| यह दुसरे प्रकार का
विश्वास है|
मैं
पहले ही तीसरे के बारे में बात कर चुका हूँ| एक इकाई है, जिसे हमारी बहुत परवाह है| जब हम बच्चे थे, मैं तो अभी भी बच्चा हूँ! मैं बड़ा हुआ ही नहीं, लेकिन जब हम बच्चे थे, जब भी कोई परेशानी आती, हम क्या करते थे? हम हमारी माँ के पास रोते हुए चले जाते, जब
थोड़े बड़े हुए, तब अपने पिता के पास चले जाते| तो जब कोई दुख आता, हम उसे या तो माता या पिता को देकर खाली हो जाते| हम माँ की गोद में बैठते ही रोना बंद करके, मुस्कराना शुरू कर देते और सभी दुखों को भूल जाते थे| जैसे जैसे हम बड़े हुए, स्कूल और कॉलेज के दौरान, जब हम माता या पिता को कुछ नहीं बता सकते थे, हम हमारे शिक्षक या गुरु को अपने मन की बात कह कर मन हल्का कर लेते थे|
आज, हम इस प्रक्रिया को भूल गए हैं|
और शिक्षक/गुरु के बाद भगवान, जिन पर हमे हमेशा विशास
करते| हम उनके पास जा कर अपने दुःख एंव तकलीफों का समर्पण कर खाली हो जाते|
प्राचीन समाज कि इस व्यवस्था, जिसमे आपका अपनी माँ, पिता, संरक्षक देवी, या भगवान को अपने दुख का आत्मसमर्पण कर खाली हो, मुस्कुराते हुए शांतिपूर्ण हो जाना ही सभी धर्मों का लक्ष्य है| सभी धर्मों का! आध्यात्मिकता का केवल यही अर्थ है| अध्यात्म का क्या मतलब है? सिर्फ एक कोने में बैठ कर कुछ करना आध्यात्मिकता नही है| आध्यात्मिकता का अर्थ है अपनापन और अपनेपन की विस्तार|
प्राचीन समाज कि इस व्यवस्था, जिसमे आपका अपनी माँ, पिता, संरक्षक देवी, या भगवान को अपने दुख का आत्मसमर्पण कर खाली हो, मुस्कुराते हुए शांतिपूर्ण हो जाना ही सभी धर्मों का लक्ष्य है| सभी धर्मों का! आध्यात्मिकता का केवल यही अर्थ है| अध्यात्म का क्या मतलब है? सिर्फ एक कोने में बैठ कर कुछ करना आध्यात्मिकता नही है| आध्यात्मिकता का अर्थ है अपनापन और अपनेपन की विस्तार|
और
जहां अपनापन समाप्त होता है, वहां भ्रष्टाचार शुरू होता है| अपने ही लोगों के प्रति कोई भी भ्रष्ट नहीं हो सकता है| मुझे लगता है कि अकेले कानून के साथ भ्रष्टाचार को हटाना संभव नहीं है| कानून अत्यंत आवश्यक है, एक सख्त कानून की आवश्यकता है, लेकिन इसके साथ साथ, समाज में अपनेपन की भावना होना जरूरी है| 'सभी मेरे अपने हैं|' अपनेपन की एक लहर बढ़नी चाहिए|
यह
भारत की विशेषता रही है| हम स्वीकार करने और हर किसी को गले लगाने की अनूठी कला जानते थे| बीच में कहीं हमने इसे खो दिया है| आज भी गांवों में यह
प्रथा जीवित है|
मैं अक्सर कहता हूँ, हमे इस दुनिया में बहुत कुछ सीखना है| यह पूरी दुनिया हमारा परिवार है, यहाँ सीखने के लिए बहुत कुछ है| जापानी लोगों से हमे क्या सीखना है? पता है आपको? सामूहिक संघ कार्य|एक साथ एक दल बना कर कार्य करना सीखने की जरूरत है| वह एक दुसरे के साथ एक समूह/दल में कार्य करते हैं, यह बहुत शक्तिशाली है!
इसी तरह, जर्मन लोगों से हमे सटीक होना सीखना है| वे जो कुछ भी करते हैं, आप उस में एक भी गलती नहीं खोज पायेंगे| उनकी मशीनरी में, आप एक भी गलती खोजने में सक्षम नहीं होंगें ; वहाँ ऐसी सटीकता है| समय का मतलब, वे समय पर पहुंचेंगे|
एक बार मैं जर्मनी में एक कार्यक्रम के लिये गया| कार्यक्रम ७ बजे था, इसलिए मैं १० मिनट जल्दी पहुँच गया| उस विशाल सभागार में कोई नहीं था| जिस व्यक्ति ने मुझे आमंत्रित किया था, मैं ने उनसे कहा, 'ओह, यहाँ तो कोई नहीं है? यह मेरा पहला अनुभव है कि मैं आ रहा हूँ और यहाँ कोई नहीं आया| तो उन्होंने कहा, 'गुरुजी, अभी कार्यक्रम शुरू होने में ७ मिनट बाकी हैं|' कार्यक्रम शुरू होने से एक मिनट पहले सभागार पूरी तरह से भरा हुआ था! हर कोई अपनी सीट पर बैठ चुका था| सटीकता हमे जर्मन लोगों से सीखनी है| समय का मतलब समय पर कार्य करना है, वे जिस समय कहते हैं, पहुँचते हैं|
और, हम ब्रिटिश से क्या सीख सकते हैं? शिष्टाचार, शालीनता और सभ्यता, वे बहुत सभ्य लोग हैं| कोई धक्का-मुक्का नहीं, वे आराम से चलते हैं| उन से सभ्यता सीखने की जरूरत है|
और क्या आपको पता है कि अमेरिकी लोगों से क्या सीखा जा सकता है? विपणन कौशल| पूर्णिमा की रात को वे चाँद को बेच सकते हैं| उन में ऐसा विपणन कौशल है!
मैं अक्सर कहता हूँ, हमे इस दुनिया में बहुत कुछ सीखना है| यह पूरी दुनिया हमारा परिवार है, यहाँ सीखने के लिए बहुत कुछ है| जापानी लोगों से हमे क्या सीखना है? पता है आपको? सामूहिक संघ कार्य|एक साथ एक दल बना कर कार्य करना सीखने की जरूरत है| वह एक दुसरे के साथ एक समूह/दल में कार्य करते हैं, यह बहुत शक्तिशाली है!
इसी तरह, जर्मन लोगों से हमे सटीक होना सीखना है| वे जो कुछ भी करते हैं, आप उस में एक भी गलती नहीं खोज पायेंगे| उनकी मशीनरी में, आप एक भी गलती खोजने में सक्षम नहीं होंगें ; वहाँ ऐसी सटीकता है| समय का मतलब, वे समय पर पहुंचेंगे|
एक बार मैं जर्मनी में एक कार्यक्रम के लिये गया| कार्यक्रम ७ बजे था, इसलिए मैं १० मिनट जल्दी पहुँच गया| उस विशाल सभागार में कोई नहीं था| जिस व्यक्ति ने मुझे आमंत्रित किया था, मैं ने उनसे कहा, 'ओह, यहाँ तो कोई नहीं है? यह मेरा पहला अनुभव है कि मैं आ रहा हूँ और यहाँ कोई नहीं आया| तो उन्होंने कहा, 'गुरुजी, अभी कार्यक्रम शुरू होने में ७ मिनट बाकी हैं|' कार्यक्रम शुरू होने से एक मिनट पहले सभागार पूरी तरह से भरा हुआ था! हर कोई अपनी सीट पर बैठ चुका था| सटीकता हमे जर्मन लोगों से सीखनी है| समय का मतलब समय पर कार्य करना है, वे जिस समय कहते हैं, पहुँचते हैं|
और, हम ब्रिटिश से क्या सीख सकते हैं? शिष्टाचार, शालीनता और सभ्यता, वे बहुत सभ्य लोग हैं| कोई धक्का-मुक्का नहीं, वे आराम से चलते हैं| उन से सभ्यता सीखने की जरूरत है|
और क्या आपको पता है कि अमेरिकी लोगों से क्या सीखा जा सकता है? विपणन कौशल| पूर्णिमा की रात को वे चाँद को बेच सकते हैं| उन में ऐसा विपणन कौशल है!
जहां
कुछ
भी
नहीं
है, वे कुछ बना कर बेच देते हैं, अमरिकी विपणन कौशल में निपुण हैं|
इसी तरह, भारतीयों से उदारता और अपनापन सीखा जा सकता है| किसी भी गांव में जाएँ ; यदि उनके पास एक गिलास लस्सी है, तो वे आधा आप को दे कर बाकी आधा पीते हैं| यह अपनेपन की भावना, आपको भारत में हर गांव में मिल जायगी| एक भारतीय से आप यह सीख सकते हैं| बड़ों का सम्मान, यह भारत की एक ख़ास विशेषता है|
विदेश में क्या होता है, बुजुर्गों को बाहर फेंक देते हैं| कभी कभी, वे उन्हें एक कार्ड भेज देते हैं, पिता-दिवस या माता-दिवस के दिन पर एक कार्ड| बड़ों का सम्मान ; यह हमारी संस्कृति है| भारत में, सभी धर्मों में, हिंदुओं में, मुसलमानों में, सिखों एंव इसाइओं में, सब में 'बड़ों का आदर' करने की परम्परा है| इस के पीछे एक वैज्ञानिक रहस्य है,क्या आप जानते हैं ?
अगर घर में शादी है, आप सबसे वरिष्ठ व्यक्ति का आशीर्वाद मांगते हैं| है ना? इसमें एक वैज्ञानिक सत्य है, क्या आप जानते हैं कि वह सच क्या है?
क्या आपने कभी सोचा कि आशीर्वाद कौन दे सकते हैं? जिसे खुद के लिए कोई भी जरूरत नहीं है;वह व्यक्ति दूसरों को आशीर्वाद दे सकते हैं| वर्द्ध व्यक्ति, वह संतुष्ट है| वह अपनी सारी सांसारिक जिम्मेदारियों को समाप्त कर चुके हैं, सभी इच्छाओं को हासिल करने के बाद, अब वह संतुष्ट है| तो अब वह दूसरों के आशीर्वाद देने के पात्र है|
इसका मतलब यह नहीं है कि आप वर्द्ध होने तक संतुष्ट नहीं हो सकते, मैं यह नहीं कह रहा हूँ| यदि एक युवा भी संतुष्ट हो जाता है, उसमे एक अद्वितीय शक्ति जाग जाती है, केवल अपने खुद के काम ही नहीं| दिव्यता उसके खुद के काम का ख्याल रखती है| उस युवा में दूसरों की इच्छाओं को पूरा करने की शक्ति आ जाती है| तो अगर आप किसी को आशीर्वाद दें, वह १००% होना ही है|
तो अपने मन को खुश रखना चाहिए, सामग्री, मन में कोई संघर्ष नहीं होना चाहिए, कोई गुस्सा नहीं होना चाहिए|बस यह सब वहाँ नहीं होना चाहिए, यह एक छोटी सी बात है|
इसी तरह, भारतीयों से उदारता और अपनापन सीखा जा सकता है| किसी भी गांव में जाएँ ; यदि उनके पास एक गिलास लस्सी है, तो वे आधा आप को दे कर बाकी आधा पीते हैं| यह अपनेपन की भावना, आपको भारत में हर गांव में मिल जायगी| एक भारतीय से आप यह सीख सकते हैं| बड़ों का सम्मान, यह भारत की एक ख़ास विशेषता है|
विदेश में क्या होता है, बुजुर्गों को बाहर फेंक देते हैं| कभी कभी, वे उन्हें एक कार्ड भेज देते हैं, पिता-दिवस या माता-दिवस के दिन पर एक कार्ड| बड़ों का सम्मान ; यह हमारी संस्कृति है| भारत में, सभी धर्मों में, हिंदुओं में, मुसलमानों में, सिखों एंव इसाइओं में, सब में 'बड़ों का आदर' करने की परम्परा है| इस के पीछे एक वैज्ञानिक रहस्य है,क्या आप जानते हैं ?
अगर घर में शादी है, आप सबसे वरिष्ठ व्यक्ति का आशीर्वाद मांगते हैं| है ना? इसमें एक वैज्ञानिक सत्य है, क्या आप जानते हैं कि वह सच क्या है?
क्या आपने कभी सोचा कि आशीर्वाद कौन दे सकते हैं? जिसे खुद के लिए कोई भी जरूरत नहीं है;वह व्यक्ति दूसरों को आशीर्वाद दे सकते हैं| वर्द्ध व्यक्ति, वह संतुष्ट है| वह अपनी सारी सांसारिक जिम्मेदारियों को समाप्त कर चुके हैं, सभी इच्छाओं को हासिल करने के बाद, अब वह संतुष्ट है| तो अब वह दूसरों के आशीर्वाद देने के पात्र है|
इसका मतलब यह नहीं है कि आप वर्द्ध होने तक संतुष्ट नहीं हो सकते, मैं यह नहीं कह रहा हूँ| यदि एक युवा भी संतुष्ट हो जाता है, उसमे एक अद्वितीय शक्ति जाग जाती है, केवल अपने खुद के काम ही नहीं| दिव्यता उसके खुद के काम का ख्याल रखती है| उस युवा में दूसरों की इच्छाओं को पूरा करने की शक्ति आ जाती है| तो अगर आप किसी को आशीर्वाद दें, वह १००% होना ही है|
तो अपने मन को खुश रखना चाहिए, सामग्री, मन में कोई संघर्ष नहीं होना चाहिए, कोई गुस्सा नहीं होना चाहिए|बस यह सब वहाँ नहीं होना चाहिए, यह एक छोटी सी बात है|
मैं
आपको
बता
दूँ,५५ साल में, आज तक, मैंने एक भी बुरा शब्द नहीं बोला| आज तक एक अभिशाप मेरे मुख से नहीं निकला, यह मेरे स्वभाव में नहीं है| जब आप कठोर शब्द बोलना बंद कर देते हैं
आपमें दूसरों को आशीर्वाद देने के शक्ति जागृत हो जाती
है|
कायदे से, बढ़ती उम्र के साथ हमारे जीवन में संतोष आना चाहिए| लेकिन अक्सर, यह दृश्य आजकल देखने को नहीं मिलता| आखिरी सांस तक, बुजुर्ग अपनी चाबी पर पकड़ रखते हैं| वे उन्हें बच्चों को नहीं देते| वे बैंक में पैसे छोड़ कर मर जाते हैं, और बच्चों उस पैसे के लिये लड़ते रहते हैं|
यह बदलना चाहिए| युवा पीढ़ी को आगे आने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए|
कायदे से, बढ़ती उम्र के साथ हमारे जीवन में संतोष आना चाहिए| लेकिन अक्सर, यह दृश्य आजकल देखने को नहीं मिलता| आखिरी सांस तक, बुजुर्ग अपनी चाबी पर पकड़ रखते हैं| वे उन्हें बच्चों को नहीं देते| वे बैंक में पैसे छोड़ कर मर जाते हैं, और बच्चों उस पैसे के लिये लड़ते रहते हैं|
यह बदलना चाहिए| युवा पीढ़ी को आगे आने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए|
मैं
बहुत खुश हूँ कि उत्तर प्रदेश के एक युवा मुख्यमंत्री बने, और जनता उन से बहुत आशा कर रही है| मैं १६ जिलों कि यात्रा से लौटा हूँ और वहाँ गांवों में बहुत गरीबी है| लोग उम्मीद कर रहे हैं कि देश में, राज्य में, कुछ बदलाव
आयेगा, कि हर किसी को न्याय मिलेगा, सभी जातियों, धर्मों को न्याय प्राप्त होगा, लोग इंतजार कर रहे हैं इस उम्मीद के साथ| मुझे विश्वास है कि हमारे युवा मुख्यमंत्री इस
उम्मीद को पूरा करने में सफल होंगे| ऐसा मुझे लगता है| मैं प्रार्थना करता
हूँ और आशीर्वाद देता हूँ कि वे उत्तर प्रदेश को प्रगतिशील
बनाएंगे| प्रगति हुई है, लेकिन अभी भी बहुत सफर बाकी है|
भ्रष्टाचार का सफाया किना जाना चाहिए, हिंसा को मिटाना चाहिए| समाज में
किसी भी प्रकार की हिंसा नहीं होनी चाहिए, नारी के प्रति हिंसा खत्म होनी चाहिए| इन सब चीजों
का मूल तनाव है| यदि आप तनाव को खत्म करते है और उसके मन में शांति होती
है और दिल खिलने लगता है तो समाज की बीमारियां गायब होने लगती है| बस यहीं
मुझे कहना है|
तो क्या आपको पता चला कैसे आशीर्वाद लेना या देना चाहिए? जब आप संतुष्ट होते हो!
ठीक है, मुझे एक और चीज़ यहाँ कहनी है| आप आज रात
को एक सूची बनाये| आप की क्या जरूरते है और समाज और आपके जीवन में आप क्या
जिम्मेदारियाँ उठाते है? आपके जिमेदारियो की एक सूची और आपके जरूरतों की एक सूची| यदि आपकी
जिम्मेदारियाँ ज्यादा है और आपकी जरूरते कम है, आप का जीवन शांतिपूर्ण होगा| यदि आपकी
जिम्मेदारियाँ कम है और जरूरते ज्यादा तो आप का जीवन दुःख की ओर जायेगा| और जिसकी
व्यक्तिगत कोई भी जरुरत नहीं है लेकिन समाज के लिए पूरी जिम्मेदारी उठाता है,
वह एक नेता है, एक सहज कार्यकर्ता है, और वह राजनीति में जाने लायक होता है| जिसे अपने
लिए कुछ भी नहीं चाहिए, लेकिन औरों के लिए चाहिए| "मैं सभी
के लिए जिम्मेदारी उठाता हूँ" यह सेवा उन्मुख मानसिकता होनी चाहिये| हम कभी
इस पर अपना ध्यान नहीं देते; एक बार हमे बैठकर इसपर ध्यान देना चाहिए| मैं यह
नहीं कह रहा की सभी को संत बन जाना चाहिए, कोई यह नहीं कह सकता, “मुझे कुछ नहीं चाहिए|" यह ठीक है,
जो भी आपको चाहिए उसे
मांगिये, जो भी आप मांगते हो वह मिलगा लेकिन आप की जिम्मेदारियाँ भी बढाइये| आप को अपने
लिए, अपने परिवार के लिए, आपके समुदाय के लिए, समाज के लिए अब इससे और बढाइये, इसकी
वृद्धि कीजिये| आप देखेंगे की आप को कितनी ख़ुशी मिलती है| यह जरुरी
है| और आखिर
में, काफी सारे लोगों को यह पता नहीं चलता की आर्ट ऑफ़ लिविंग क्या है| "क्या
है आर्ट ऑफ़ लिविंग?" इसके बारे में हमे कुछ बताइए"| यह कुछ
लोगों के मन में रहेगा| केवल पांच ही तत्व
है आर्ट ऑफ़ लिविंग के, केवल पांच चीज़े| जीवन में सुख आता
है, दुःख आता है, सुख में और दुःख में मन को कैसे संभाले? धैर्य बनाये रखते हुए, यह
सबसे पहला सबक है, पहला तत्व| यह जरुरी है या
नहीं? हमे अपने मन को संभालना होगा; चाहे ख़ुशी हो या गम हो, हमे अपने मन को नियंत्रित
करना चाहिए पहली बात!
विरोधाभासी बातें होती रहती है| कभी लाभ कभी हानि
कभी सुख कभी दुःख कभी जीत कभी हार| यह चीज़े आती जाती
रहती है लेकिन यदि आदमी भीतर से टूट जाता है, यदि उसका मन पूरी तरह से गिर जाता है,
तो वह कुछ भी नहीं कर पायेगा| मन को संभालने की
कला सबसे पहला सबक है|
आर्ट ऑफ़ लिविंग का दूसरा सबक है; जो भी व्यक्ति जैसा भी है, उसे उसी तरह से स्वीकार
करे| हमे यह
चाहिए की सभी अपने जैसे हो| क्या यह संभव है?
सांस को बहु अपने जैसी होनी चाहिए यह लगता है| "जो भी मैं
कहू वहीँ सही है, और उसे यह स्वीकार करना चाहिए|" पिता को
यह लगता है की उनका पुत्र बिलकुल उनके जैसा कार्य करना चाहए| समाज में
घरो में, इसी वजह से विवाद शुरू होता है| तो मैं यह कहता
हूँ, जो जैसे है वैसा उनका स्वीकार करें| उन्हें
विकसित होने का समय दीजिये| उनकी गति से वह
आगे बढ़ते हैं| यह दूसरा सबक है| तीसरा है,
दूस्र्रा व्यक्ति आप के बारे में क्या सोचता है इसकी चिंता न करें| इस दुनिया में ,
हर एक व्यक्ति का अपना एक सोचने का ढंग है, एक अपना मत होता है| जो भी उसे
सोचना है आप के बारे में, उसे सोचने दीजिये| आप को चिंता
करने की जरुरत नहीं| दूसरा व्यक्ति आपके बारे में क्या सोचता है, यह सोचकर
आप दुखी हो जाते हैं| कितने लोग इस तरह से दुखी हो जाते हैं, दूसरों के मत
को लेकर? यह बेकार है, समय की बर्बादी, जीवन की बर्बादी| जीवन बहुत
मूल्यवान है| इसीलिए मैं कहता हूँ, दूसरो के (मत) के फूट बोल न बने| यह तीसरा
सबक है|
चौथी बात यह की जब हम गलती करते है हम कहते है, "गलती हो गयी,
मैं क्या करू? लेकिन जब कोई और करता है हम कहते है, "उसने जानबुझके किया|"हम दूसरो की
गलतियों को जानबूझकर किया हुआ मानते हैं| यह न करे, माफ़
करे| यह न सोचे
की जब दूसरा व्यक्ति माफ़ी मांगेगा तब मैं उसे माफ़ करूँगा| चाहे वे
माफ़ी मांगे या न मांगे, आप माफ़ कर दीजिये ताकि आपका मन मुक्त हो जायें| आप खुश
रह सकेंगे, आप हल्का महसूस करेंगे| अन्यथा, जिसको भी
आप नफरत करते है, वह आप के मन पर दिन रात कब्ज़ा करेगा| आप उनके
जैसे हो जायेंगे| इसीलिए मैं कहता हूँ, माफ़ कर दीजिये,
तय कर लीजिए चाहे कोई माफ़ी मांगे या नहीं कम से कम आप अपने मन को बचा सकेंगे| क्षमा;
यह बहुत बड़ी चीज़ है आर बहुत जरुरी भी| यदि आप को प्रसन्न
रहना है, आप को क्षमा को अपने जीवन में लाना होगा|
महान ऋषि अष्टवक्र कहते हैं, "यदि आप मुक्ति चाहते हो, आप को दया, क्षमा, इमानदारी
और संतोष का अभ्यास
करना होगा, इन्हें जीवन का अमृत मान लीजिये|”
क्या आप यह अभी कर सकते हो? सभी लोगों को जिनके लिए आप घृणा और दुश्मनी महसूस करते हो,
क्या आप उन्हें माफ़ कर
सकते हो? यह सिर्फ एक मिनिट लगेगा| क्या आप
कर सकते हो? कितने लोग कर सकते हैं ?देखिये कितने खुश होते हैं
हम, मन कितना प्रसन्न
हो जाता है|
यदि आप को क्षमा करना कठिन लगता मैं आपको दूसरा विकल्प देता हूँ| जब गुरु आप के शहर में आते है,
आप का क्या कर्तव्य
है, गुरुदक्षिणा देना| तो मैं दक्षिणा
के रूप में सिर्फ दो चीज़े ही मांगूंगा| एक जिन्हें आप नफरत करते
है, वह नफरत मुझे दक्षिणा
में दे दीजिये| आप उनके साथ मिठाई बांटिये
और अपने रिश्ते को सुधर लीजिये| और दूसरी बात यह
की, यदि कोई चिंता आप के मन
को परेशान कर रही है
तो वह चिंता आप मुझे दक्षिणा में दे दीजिये| मुझे अपनी चिंताएं दे दीजिए| मुझे सिर्फ यही दो चीज़े आपसे दक्षिणा
के रूप में चाहिए| आप जीवन में मुस्कुराते रहिये, आगे बढिए, सेवा के काम में शामिल हो जाइए और
सभी की सेवा कीजिये| यह इश्वर की पूजा है|
"एन कें प्रकारेण यस्य कस्यापि देहिना संतोषम जनेत प्रज्ञा तदेवेश्वर पूजनं"
भगवान की पूजा क्या है? किसी भी प्रकार से, सभी के दिलो में ख़ुशी और संतोष जगाइयें| यह भगवान
की पूजा का सबसे बड़ा प्रकार है| हमारे पूर्वजो ने
कितनी सुन्दर चीज़ कही है?
और पांचवी बात, आर्ट ऑफ़ लिविंग का पांचवा तत्व है, "वर्तमान में जीना! अब
अब अब!
भूतकाल चाहे कैसा भी हो, बीत चूका है, अतीत का दुःख करने से, आप को कुछ नहीं मिलने
वाला| अतीत पर
समय व्यतीत न करे| हम सत्तर से अस्सी प्रतिशत समय जो बीत चूका है उसके विश्लेषण
में बर्बाद कर देते है, "यह क्यों ऐसा हुआ, कैसे हुआ ?"
जो समय बीत चूका है उसपर पश्चाताप/पछतावा करने से कोई फायदा नहीं है| बुद्धिमानी
यही है कि अतीत से सबक ले और वर्तमान में प्रसन्न होकर आगे
बढ़े|
यह जीवन जीने की कला है|
अब आप यह कहेंगे, "गुरूजी, यह सब सुनने में अच्छा लगता है, लेकिन जीवन में
अपनाना मुश्किल है|"
तो मैं यह कहूँगा, "सुदर्शन क्रिया कीजिये, प्राणायाम कीजिये, और देखिये कितनी
आसानी से जीवन में फलित होता है|”
आज पूरी दुनिया में लोग यह कर रहे है, और कितना बड़ा बदलाव उनके जीवन में आया हुआ
है|
मैं इराक तीन बार गया था| वह लोगों ने कहा,"
यह निषेध क्षेत्र है| हम आपको वह जाने नहीं दे सकते|" इराकी सरकार
ने मुझे बारह सुरक्षा वाहन दिए, दो टेंक, एक आगे की तरफ और एक पीछे, और चारो ओर वाहन
के साथ सशस्त्र बंदूकधारी| मैं ने कहा, मैं यहाँ
आम जनता से मिलने आया हूँ| मैं यहाँ सुरक्षा
कवच मैं बैठने नहीं आया हूँ| मैंने उनसे कहा,
"मुझे जो आप कहते हो निषेध क्षेत्र में जाना है|" उन्होंने
कहा, "वहाँ
पर बहुत खतरा है, हम आपको वहाँ पर जाने की अनुमति नहीं दे सकते|" मैंने आग्रह
किया| कभी कभी
आग्रह करना अच्छा होता है| तो मैंने आग्रह
किया कि मुझे जाना है| अंत में उन्होंने कहा, "ठीक है, क्या
कर सकते है? यह अतिथि है और इतना आग्रह कर रहा है| उनको जाने
दो|"
तो मैं गया| मैं शिया परिषद् से मिला| मेरा स्वागत
बहुत गर्मजोशी से हुआ| मैं वहा आदिवासी लोगों से मिला, और बात की| उन्होंने
कहा, "गुरूजी यह आपका दूसरा घर है| हमे छोड़के मत जाइये| आप यही
रहिये|"
कितने प्यार से मेरा स्वागत किया|
८००० पारिवारिक लोग शिया गाँव से निष्कासित किये गए है| तब मैं
सुन्नी इमाम के साथ उस शिया गाँव में गया और दोनों पक्षों की एक दुसरे के साथ बात कराई| मुझे भाषा
नहीं समझ आई क्योंकि सभी अरबी भाषा बोलते हैं| इसीलिए
मैं अनुवादक के साथ बैठा और शांति की स्थापना हुई, और संकल्प लिया गया| लोग फिर
उस गाँव लौटे|
मैंने कहा, "देखिये, आप दोनों उसी अल्लाह में विश्वास रखते हैं, उसी मुहम्मद
में आस्था रखते हो, तो किसी तीसरे व्यक्ति के लिए क्यों लड़ते हो? सात लाख
स्त्री विधवा हुई है, इराक में| उनको देखते ही किसी
भी व्यक्ति का ह्रदय पिघल जायेगा| तब ५० लड़के इराक
से आये और उन्हें बंगलौर में शांति दूत बनने के लिए प्रशिक्षित किया गया| हमे केवल
मरने की कला मालूम है, हमे यह जानना है कि जीवन जीने की कला क्या होती है| आप हमे
सिखायेंगे| उसके पश्चात वहाँ की स्थिति में कितना परिवर्तन आया हुआ
है! बेशक, हमने जो किया वह केवल एक बूँद है, ज्यादा नहीं, सिर्फ एक बूँद| लेकिन एक
बूँद भी कभी कभी काम कर जाती है| इसीलिए मैं कहता
हूँ, हमारे डीएनए में यह है, शांति, मित्रता, सब को गले लगाने की कला भारतीय डीएनए
में हैं| हमे इसे
ज्यादा महत्व देना चाहिए, देश में शांति बनाई रखनी चाहिए और दुसरे लोगों तक भी ले जाना
चाहिए|
आठ साल पहले मैं लखनऊ आया था| लखनऊ के पश्चात
मैं उसी साल पाकिस्तान गया था| इस साल पाकिस्तान से मैं लखनऊ आया हूँ| पाकिस्तान
में भी लोगों ने मेरा भव्य स्वागत किया| तीन केंद्र वहाँ
पर स्थापित हुए है, और हज़ारो लोगों ने प्राणायाम, योगासन, सुदर्शन क्रिया सिखा है और
शांति और राहत का अनुभव किया है| मैंने वहा पर दिग्गज और धार्मिक
लोगों से बातचीत की और उन्होंने भी मेरा बहुत प्यार से स्वागत किया| मुझे ऐसा
नहीं लगा कि मैं दुसरे देश में आया हूँ| मुझे भारत जैसा
ही एहसास हुआ; कितना प्यार और उत्साह| लोगों ने कहा,
"गुरूजी, हम आप के हैं| हम आपके हैं, और
आप हमारे|"
यह संवेदना हम सब में हैं, हम सभी में निहित हैं| इसका यह
मतलब नहीं है कि देश भक्ति नहीं होनी चाहिए| देश भक्ति
हमारे भीतर होनी चाहिए| इसीलिए, देश भक्ति
और देवत्व साथ साथ चलते है| तो मैं कहूँगा,
अपने देश भक्ति को सेवा का कार्य हाथ लेकर व्यक्त कीजिये| लाखो लोग
यहाँ एकत्रित हुए हैं, यदि इतवार को दो घंटे हम लखनऊ को साफ़ करे, तो क्या आप को पता
है कि दुसरे दिन लखनऊ कितना चमकेगा? सब कचरा साफ़ हो जायेगा| सिर्फ नगरपालिका
का ही यह कार्य नहीं है| हम सब हाथ में झाड़ू
लेकर आगे आ सकते हैं| क्या आप यह कर सकते हो? अगले इतवार को, आप सुबह आठ से
सुबह के दस बजे तक अपने संबंधित समुदायों को साफ़ करेंगे| क्या आप
यह करेंगे? अपने घरो को साफ़ रखे, अपने सड़को को साफ़ रखे और अपने पगडण्डी को साफ़ रखे| आन्तरिक
सफाई और बाहरी सफाई हमारा कर्त्तव्य और हमारी जिम्मेदारी है| हमे गन्दगी
से खिलाफ खड़े होना चाहिए|
उसी तरह हमे अभाव के खिलाफ खड़े रहना चाहिए| देश के
सभी बेरोजकर युवा उद्यमी बन सकते हैं| वह बहुत कुछ कर
सकते हैं| हमारे देश में से काफी
सारे उद्योग चीन जा रहे हैं| क्यों? कहीं पर हमने अपनी उद्यमशीलता खो दी है| हमें लगता
है कि सरकार ने हमे रोजगार देना चाहिए| सरकार सभी को कैसे
रोजगार दे सकती है? आप स्वयं अपने पैरो पर खड़े रहिये| मुझे पता
है की इसके लिए प्रशिक्षण की जरुरत है| हमारा आर्ट ऑफ़
लिविंग व्यक्ति विकास केंद्र युवा को प्रशिक्षण देने के लिए तैयार है| युवा को
प्रशिक्षण दिया जायेगा|
देखिये, इस देश में जो पतंग हम उड़ाते है, भगवन गणेश की जो प्रतिमा और दुसरी मूर्तियां
, यह सभी चीन में उत्पादन/बनाया जाता है और यहाँ लाया जाता है| तो हम इन
सभी का यहाँ पर उत्पादन कर सकते हैं| इस देश में हर शहर
की अपनी विशेषता थी| उदहारण, लखनऊ का कुर्ता बहुत विख्यात है| सदियों
से बनारसी साडी, कश्मीरी शाल, हिमाचल के सेब, यह सभी बहुत प्रसिद्ध है, तो
सभी राज्यों की यह विशेषताओं को बढ़ावा मिलना चाहिए|
चीन में, एक पूरा गाँव सिर्फ एक ही वास्तु का उत्पादन करता है| एक गाँव
में केवल सुई बनाई जाती है, दुसरे गाँव में केवल बटन बनाये जाते है| यह प्रवृत्ति
देश की अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देता है| हमे भी यह करना
चाहिए| दूसरा,
पर्यटन एक बहुत अच्छी बात है| बहुत सारे भारत
के संत, पैगम्बर यहाँ उत्तर प्रदेश में पैदा हुए थे| इश्वर ही
जानता है क्यों सभी ने उत्तर प्रदेश को चुना| श्री राम
और श्री कृष्ण यहाँ पैदा हुए, और बहुत सारे महान दिग्गज भी यही पर पैदा हुए| कबीर दासजी
ने भी यही पर जन्म लिया और बुद्ध भी यहाँ पर बहुत लम्बे समय तक रहे| लेकिन यह
धार्मिक स्थल प्रदूषित और गंदे हो गए हैं| इन सभी
स्थानों को साफ़ करना चाहिए और चमकाए जाने का प्रयास किया जाना चाहिए| केवल थोड़ा
सा ध्यान इसे अन्तराष्ट्रीय पर्यटन स्थल बना सकता है| और हमे
अन्याय के खिलाफ खड़े रहना चाहिए| मैंने पहले ही कहा
है की हम सब को भ्रष्टाचार के खिलाफ खड़े रहना होगा| क्या हम
अपने हाथ उठाकर यह वादा कर सकते हैं कि हम न तो रिश्वत लेंगे न रिश्वत देंगे? काफी
सारे जो यहाँ बैठे है अच्छे से रिश्वत ले रहे है| मैं यह
कह रहा हूँ, केवल एक साल के लिए, रिश्वत मत लीजिये| उसके पश्चात
हम देखेंगे कैसा है, एक साल के बाद| एक साल के बाद मैं
फिर आकर शपथ दिलाऊंगा| बिना रिश्वत
लिए आप काम करेंगे| यदि आप हिचकिचा रहे है क्योंकि आप रिश्वत लेना नहीं चाहते
लेकिन जो देना चाहते हैं वह आकर टेबल के नीचे से देते हैं, तब आप क्या करेंगे? मैं
यह कहूँगा कि जितने भी यहाँ एस+ के युवा हैं वह एक पट्टी बनाकर आपके मेज पर चिपकाएंगे
जिसपर लिखा होगा, "मैं रिश्वत नहीं लेता" यह सब युवा ऐसी पट्टी बनाकर आपकी
मेज पर चिपकाएंगे और आपको तकलीफ नहीं होगी| तो जब लोग
यह देखेंगे, तो वह रिश्वत नहीं देंगे और आपको बोलने की भी जरुरत नहीं पड़ेगी| तो यह काम
होना चाहिए, ठीक है? तो हमे अन्याय के खिलाफ खड़े होना चाहिए|
अगला, हमे जाति भेदभाव का त्याग करना पड़ेगा, हमारे देश ने
इसके वजह से
बहुत पिछड़ापन
सहा है| हमारे सभी
साधू संत हज़ारो लोग सभी अलग अलग जाति के थे| हमारे पास
सभी जाति के साधू संत हुए हैं, पिछड़ी जाती के भी है, तो हमे जाती भेदभाव छोड़ देना
चाहिए| सिर्फ यह
याद रखिये की हम सब सिर्फ एक ही जाती के है, मानवता, ठीक है? हमे अज्ञानता के खिलाफ
खड़े होना पड़ेगा| कोई भी अन्धविश्वास या अज्ञानता नहीं होनी चाहिए; हम
सब को खड़ा होना पड़ेगा| तो अब कुछ समय के लिए हम ध्यान करेंगे| जब बहुत
सारे लोग समूह में ध्यान करते हैं उसे यज्ञ कहते हैं और यज्ञ का फल जरुर प्राप्त होगा| तो कोई
भी एक इच्छा अगर हो, तो वह जरुर पूरी होगी|
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