महासागर को देखो,
कैसे लहरें उठती रहती हैं| यह कभी ऊबता नहीं| पक्षी वहीँ गाना गाते रहते हैं, वो ऊबते नहीं| हर सुबह पक्षी गाते हैं, अपने पूरे जीवन| वे कभी नहीं ऊबते| यह केवल मनुष्य है जो ऊब जाता है| “ओह, फिर वहीं चीज़!” और हम क्यों ऊब जाते हैं? अपनी स्मरण शक्ति के
कारण|
आप को याद रहता है
आपने पहले क्या किया है इस लिए आप ऊब जाते हैं| स्मरण शक्ति एक वरदान भी है और
श्राप भी| क्योंकि आप ऊब जाते हैं, आप कुछ और, कुछ नया ढूंढने की आवश्यकता महसूस करते
हैं| ऐसे ही रचनात्मकता आती है; आप परम वास्तु ढूंढते हैं| नहीं तो आप एक जानवर की तरह रह सकते थे प्रतिदिन वहीँ
काम करते| पर आप नहीं कर पाते क्योंकि आप ऊब जाते हैं| है न?
इस प्रकार, उचाटता
एक वरदान है| क्योंकि आप ऊब जाते हैं, आप आगे बढ़ते हैं, आगे देखते हैं, एक खोजी
बनते हैं और ऊंचे उठते हैं| पर साथ ही, उचाटता एक श्राप है क्योंकि यह आपको एक
स्थान पर स्थिर नहीं होने देता; अपने आप में स्थिर, और आपका मन एक से दूसरी जगह
लक्ष्यहीन सा भटकता रहता है| आप हर वस्तु से ऊब जाते हैं और आप किसी कार्य में आनंद नहीं उठा पाते| आप समझ रहे हैं मैं क्या कह रहा हूँ?
उचाटता एक वरदान है
जब यह आपको ज्ञान कि ओर ले जाए| और उचाटता एक श्राप है जब यह आपको निराशा और उदासी
कि ओर ले जाए| यह दो अलग पथ हैं जिन पर उचाटता आपको ले जाती है|
आप ऊब जाते हैं इस
लिए आनंद नहीं ले सकते, और जब आप आनंदित नहीं होते तो आप उदास हों जाते हैं| या,
आप ऊब जाते हैं तो आप उठते हैं और एक नयी तलाश में निकल पड़ते हैं| आप आगे बढ़ते हैं
और स्वयं को देखते हैं जो हर पल नया हैं| क्योंकि आप उससे ऊब जाते हीं जो अल्पकालिक
है, सतह पर है, आप अपने भीतर की गहराई में जाते हैं| आप समझ रहे हैं?
उचाटता वरदान है
क्योंकि यह आपको नित्य नीरस जीवन से दूर ले जाता है, आपको जागरूक बनाता हैं, आप
में नया जीवन भरता है| और श्राप क्योंकि यह आपको स्थिर नहीं होने देता|
जो लोग प्यार में
होते हैं, वो नहीं ऊबते| मन उचाटता नहीं जानता| दिमाग उचाटता जानता है| पर जीवन में यह दोनों आवश्यक हैं| मन और दिमाग| यदि आप केवल मन से सोचते हैं, इसका कोई फायदा नहीं| आप बहुत नरम दिल हो जाते हैं| और यदि आप केवल दिमाग में जीते हैं , तो इसका भी
कोई फायदा नहीं| दोनों में तालमेल रखना ही योग है| आध्यात्मिकता का अर्थ है दिल और दिमाग दोनों में
तालमेल रखना| यह ख़ासतौर पर उन लोगों के लिए हैं जो सोचते हैं कि वे अपने जीवन में असफल रहे
हैं| जो भी सोचता है वह असफल है, बस उठो! तो क्या? जीवन तो शाश्वत है, निरंतर है|
साल में ३६५ दिन
होते हैं और आपके जीवन में कितने साल होंगे! एक या दो दिन आपको लग सकता है कि आपका
जीना व्यर्थ है, जीवन व्यर्थ है, कोई बात नहीं| इसी तरह, इतने जन्मों में हम यहाँ
आये हैं, और हमारी आत्मा बहुत पुरानी है|
देखो, ये चाँद यहाँ
है| तो यदि एक पूर्णिमा पर बहुत बादल हों और चाँद की रोशनी धरती पर नहीं पड़ सके,
तो चाँद उदास नहीं हो जाता| यदि एक पूर्णिमा पर आप चाँद को नहीं देख पाए तो कोई बात नहीं| चाँद फिर भी वहीँ है| उसी तरह, आप के भीतर सामर्थ्य है, ईश्वर्य है जो
सम्पूर्ण है| यदि वह सतह पर नहीं आया तो कोई बात नहीं|
आप में सब विशेष गुण
हैं| यदि कुछ किसी दिन प्रकट नहीं होते, कोई बात नहीं| अपने आपको दोष मत दीजिए,
बहुत अधिक विश्लेषण मत करिये| हम बहुत अधिक मनोविश्लेषण करने लगते हैं, इस हद तक
कि हम परेशान हो जाते हैं और फिर उदास हो जाते हैं| हम अपने प्रति बहुत कठोर हो
जाते हैं|
इतने सारे जन्मों
में से एक जन्म व्यर्थ भी चला गया तो क्या? यह मैं उनके लिए कह रहा हूँ जो बहुत
उदास हैं| मेरी बात को सब पर लागू मत करना और फिर कहना, “ गुरूजी ने कहा है कि अपना जीवन व्यर्थ कर दो| चलो, मैं मदिरापान करता हूँ, मौज करता हूँ और अपने
सारे कर्तव्य भुला देता हूँ”| नहीं!
यह मैं उनके लिए कह
रहा हूँ जो हताश हैं| जो अपने बारे में बहुत बुरा अनुभव कर रहे हैं| मैं उन्हें कह रहा हूँ, कोई बात नहीं, उठो! इतने
साल व्यर्थ हुए हैं, कोई बात नहीं, चिंता मत करो| आने वाले दिन उज्जवल होंगे|
पछतावा तभी होता है
जब आप अतीत की ओर देखते हैं| यदि आप चल रहे हैं और आपका सिर पीछे की ओर मुड़ा है, तो उसे पछतावा कहते हैं| अपना सिर घुमाओ और आगे की ओर देखो, तब सदैव उजाला
रहेगा| यदि पीछे देखेंगे तो आप केवल पछतावा और पछतावा ही करेंगे उसे छोड़ दीजिए और
आगे बढ़िए|
प्रश्न : गुरूजी, मुझे लगता है मेरा
आपसे कुछ गहरा सम्पर्क है| क्या फिर भी आवश्यक है कि मैं व्यक्तिगत रूप से आपसे
मिलूँ?
श्री श्री रविशंकर :
नहीं, आवश्यक नहीं है| पर आपने जब यह प्रश्न पूछा है इसका अर्थ है कि मन में कुछ इच्छा है| कोई बात नहीं, आप वैसे भी अभी यहाँ पर है| हम एक दूसरे को देख सकते हैं, बात कर सकते हैं|
प्रश्न : कितना महत्वपूर्ण है इस पथ
पर अपने धर्म का पालन करना? क्या धर्म हमारे पेशे से निश्चित होता है, या हमारे
लक्ष्य से?
श्री श्री रविशंकर :
धर्म आपके संकल्प से निश्चित होता है| जिसके प्रति आपका संकल्प है, वह आपका धर्म बन जाता
है| जब आप इस पथ पर चलते हैं, तो धर्म पालन स्वाभाविक हो जाता है| यह स्वयं आएगा|
प्रश्न : गुरूजी, क्या सांस और
प्राण में कोई रिश्ता है?
श्री श्री रविशंकर :
सांस से प्राण की वृद्धि होती है| प्राण आपके भीतर की जीवन शक्ति है| सांस और प्राण का बहुत ही घनिष्ठ रिश्ता है|
प्रश्न : मैं सही जीवन साथी कैसे
ढूँढ सकता हूँ?
श्री श्री रविशंकर :
देखो, तुम्हें यह प्रश्न किसी अनुभवी इंसान से पूछना चाहिए, मुझे इसका अनुभव नहीं
है| कोई जिसको पहले सही जीवन साथी न मिला हो और बहुत सी गलतियों के बाद उन्हें
आखिर में सही साथी मिला हो| कोई बुज़ुर्ग दम्पति जिन्हें बहुत तजुर्बा हो| और जब आपको पता चले, तो मुझे भी बताना|
अब, सब से पहले आपको
सही जीवनसाथी चाहिए| ठीक है, आपको सही साथी मिल जायेगा| पर वह साथी भी सही जीवसाठी ढूँढ रहा होगा| तो, क्या आप उसके लिए सही साथी हैं? यह बहुत बड़ा
प्रश्न है| यदि वह आपको सही साथी न समझें तो?
प्रश्न : गुरूजी, यदि पुनर्जीवन है,
क्या व्यक्ति धरती पर जन्म लेता है या कहीं और?
श्री श्री रविशंकर :
धरती पर ही|© The Art of Living Foundation