ध्यान आत्मा का भोजन है!!!


 २०
अप्रैल     २०१२

ध्यान के रहस्य, प्रथम दिन
आगे आने वाले तीन दिनों में हम ध्यान के बारे में जानेंगे, क्या आप इस यात्रा के लिए तैयार हैं? तो ठीक है, अपनी बेल्ट बाँध लीजिये, तैयार हो जाइये|
क्या आपको पता है कि ध्यान के लिए असली सीट बेल्ट क्या है? विश्राम की अनुभूति, प्राकृतिक रूप में रहना| अगर आप औपचारिक रहेंगे तब आप ध्यान नहीं कर सकते| ध्यान के लिए अनौपचारिक होना बहुत ज़रूरी है| मुझे लगता है आप सब यहाँ आराम में हैं जैसे खुद के घर पर होते हैं| निश्चित रूप से ये कैलिफोर्निया है यहाँ सब खुद को आराम में पाते हैं, अनौपचारिक रूप में| ये यहाँ की बहुत अच्छी बात है, हम अनौपचारिक हैं, विश्राम में हैं|
तो अब हम ध्यान की आवश्यकता क्यों है ये देखेंगे| हमें ध्यान क्यों करना चाहिए और ध्यान करने के क्या तरीके हैं? मैं इसके लाभ नहीं बताऊँगा, मुझे लगता है आप सब को इसके फायदे के बारे में जानकारी है| लेकिन ध्यान के तरीके और ज़रूरत, और कैसे हम सफलता से ध्यान कर सकते हैं, विभिन्न प्रकार के ध्यान कौन से हैं| ये सब के बारे में हम ज़रूर जानेंगे|
तो पहले ये की ध्यान की ज़रूरत क्या है, हमें ध्यान क्यों करना चाहिए?
हर एक इंसान को इसकी ज़रूरत है क्योंकि ये इन्सान की प्रकृति है कि वो उस सुख को, उस ख़ुशी को ढूँढता है जो कम नहीं होती, ख़त्म नहीं होती, ऐसा प्यार जिसका स्वरुप नहीं बिगड़ता और जो नकारात्मक रूप नहीं लेता, ये तो एकदम प्राकृतिक है, है ना !!!
क्या ध्यान हमारे लिए कुछ नयी सी अनोखी सी बात है? बिलकुल नहीं| ऐसा इसलिए है क्योंकि जन्म लेने से कुछ महीने पहले आप ध्यान में ही थे| आप माँ के गर्भ में थे; कुछ नहीं कर रहे थे, तुम्हे अपना खाना चबाना नहीं होता था, वो सीधे तुम्हारे पेट में पहुंचा दिया जा रहा था, और आप प्रसन्नता से एक द्रव में तैर रहे थे, पलटियां खाते हुए, लात मारते हुए, कभी यहाँ और कभी वहाँ, लेकिन ज़्यादातर समय आप सिर्फ प्रसन्नता से तैर रहे थे, ये ध्यान है| आप कुछ नहीं करते, सब कुछ तुम्हारे लिए किया जाता है| तो ये हर इन्सान की प्रकृति है, हर आत्मा की प्यास उस स्तिथी में रहने की जहाँ वो पूर्ण रूप से विश्राम में हो|
पता है आप ये आराम, ये विश्राम क्यों चाहते हो? क्योंकि एक समय आप उस आराम, उस विश्राम में रह चुके हो, इसलिए फिर उस विश्राम की चाह प्राकृतिक है जिसका आप कभी एक समय में अनुभव कर चुके हो| ध्यान पूर्ण विश्राम है| इसलिए वापस उस स्तिथी में जाना जिसका स्वाद आप इस दुनिया की अफरा तफरी में आने से पहले ही चख चुके हो, एकदम प्राकृतिक है क्योंकि इस ब्रह्माण्ड में सब कुछ चक्रीय है, सब कुछ वापस अपने मूल की ओर जाना चाहता है ओर ये संसार की प्रकृति है| सब कुछ एक चक्र के जैसे चलता है, वापस जाता है सिवाय प्लास्टिक के अगर आप उसको ठीक से इस्तेमाल नहीं करते हो तो|
देखो जब पतझड़ का मौसम आता है तो पत्तियां झड जाती हैं और वापस धरती में, मिट्टी में मिल जाती हैं और प्रकृति का अपना एक तरीका है उन्हें वापिस यहाँ भेजने का| प्रकृति की अपनी एक प्रवृत्ति है उन सब को पुनः चक्रीय करने की जो भी रोज़ रोज़ इकठ्ठा करते हैं जैसे की विचार, संस्करण आदि| उन से छुटकारा पाना और फिर अपनी असली स्तिथी में आना, उसी स्तिथी में जिस में हम इस ग्रह में आये थे, ये ध्यान है| शांति जो हमारा असली स्वरुप है उसमें वापस जाना ध्यान है, पूर्ण ख़ुशी और आनंद ही ध्यान है|
एक ऐसी ख़ुशी जिसमें से उत्तेजना निकल जाए वो ध्यान है, बिना फिक्र का रोमांच ध्यान है| बिना नफरत या किसी और नकारात्मक सोच का प्यार ध्यान है, ध्यान आत्मा के लिए भोजन जैसा है| खाने की भूख नैसर्गिक है ना!! जब आप भूखे होते हो तब आपको उसी वक़्त कुछ खाने को चाहिए, आप प्यासे हो तो पीने को पानी चाहिए| उसी तरह आत्मा को ध्यान की तड़प उठती है और ये सब की फितरत है| इसलिए ही मैं कहता हूँ की इस धरती पर ऐसा कोई भी नहीं जो अन्वेषक ना हो, खोजी ना हो, बस उनको पता नहीं है, वो इस बात को पहचानते नहीं हैं| वो खाना वहाँ ढूँढ़ते हैं जहाँ वो उपलब्ध नहीं, बस यही समस्या है| ये ऐसा ही है कि आपको अपनी कार में गैस भरवानी हो और आप किराने की दुकान पर जाओ, और वहाँ जाकर दुकान के इर्द गिर्द बस घूमते ही रहो और कहते रहो कि मुझे अपनी कार में गैस भरवानी है| लेकिन ऐसा करने से होगा कुछ भी नहीं क्योंकि आपको गैस भरवाने के लिए पेट्रोल स्टेशन ही जाना होगा| इसलिए सही दिशा ढूँढने की ज़रूरत है और वही तो अभी हम कर रहे हैं| ध्यान करने के कौन से रास्ते और तरीके हैं, जिनसे हम अपने अन्दर पूर्ण विश्राम का अनुभव कर सकते हैं|
तो इसके तरीके हैं:
पहला है शारीरिक माध्यम के द्वारा; यानि कि योग और शारीरिक कसरत से| जब हमारा शरीर कुछ विशेष प्रकार के व्यायाम करता है, एक विशेष लय में, तब कुछ थकान होती है और मन ध्यान में उतर जाता है| ये बड़ा रोचक है, जब आप सक्रिय होते हो आप ध्यान नहीं कर सकते, और वहीँ दूसरी ओर जब आपने अच्छे से आराम किया हुआ हो तब भी आप ध्यान नहीं कर सकते| लेकिन जब थकान की एकदम सही मात्रा होती है यानि कि बहुत थकान भी नहीं तब उस बहुत नाज़ुक सी स्तिथी में आप ध्यान में उतर सकते हो| आपका मन ध्यान में चला जाता है और शरीर भी| तो पहला तरीका हुआ शरीर के माध्यम से|
दूसरा है प्राण के द्वारा या साँस के द्वारा| साँसों की लय से आप ध्यान में उतर सकते हो| ये हम सब जानते हैं, सुदर्शन क्रिया इसके सबसे अच्छे उदाहरण में से एक है| जब प्राणायाम और सुदर्शन क्रिया के बाद आप ध्यान के लिए बैठते हो तब बिना किसी प्रयास के ध्यान लग जाता है| तो एक साँस लेने की प्रक्रिया भी ध्यान में जाने का एक रास्ता है|
तीसरा रास्ता है किसी इन्द्रिय के सुख से, किसी दृश्य के द्वारा, आवाज़ के द्वारा, महक से या स्पर्श से| ये पांच इन्द्रियाँ पांच तत्वों से जुड़ी हुई हैं| संसार तत्वों से मिल कर बना है, धरती, जल, वायु, अग्नि एवं आकाश| इन सब के एक भिन्न प्रकार के मिश्रण से ये ब्रम्हांड बना और ये पांचो तत्व से ही हमारी पांचो इन्द्रियाँ जुड़ी हुई हैं| आँखें अग्नि से जुड़ी हुई हैं, महक धरती से, स्वाद जल से, आवाज़ आकाश से, स्पर्श वायु से|
क्या आपको पता है, जब आप पानी में या ताल में होते हो तब आपको स्पर्श का इतना आभास नहीं होता| क्या आप ने कभी इस बात पर ध्यान दिया है? ज्यादा नहीं लेकिन थोड़ा सा, ऐसा इसलिए है क्योंकि ये पांचो तत्व उन सब में मौजूद हैं| जल में वायु तत्व भी है लेकिन बहुत थोड़ा सा| तो इस तरह ब्रहमांड के ये पांचों तत्व पांच इन्द्रियों से जुड़े हुए हैं| और आप किसी भी इन्द्रिय के द्वारा उस अहसास को बढ़ाते हुए ध्यान में जा सकते हैं|
चौथा रास्ता है, मनोभाव के द्वारा, इस के द्वारा भी आप ध्यान में उतर सकते हैं|
पांचवा रास्ता है, ज्ञान या बुद्धि के द्वारा, सिर्फ बैठ कर ऐसे सोचो की आपका शरीर करोड़ों कोशो से बना है| आपको कुछ होता है और कहीं एक उत्तेजना के जैसा अनुभव होता है|
जब आप किसी अन्तरिक्ष संग्रहालय में जाते हैं, तब आपको अपने अन्दर एक आवेश, एक उत्तेजना सी महसूस होती है| आपको कुछ अलग सा अहसास नहीं होता क्या जब आप किसी अन्तरिक्ष संग्रहालय में जाते हैं और उस से बाहर आते हैं| आप में से कितनों ने ऐसा अनुभव किया है| कोई ऐसे संग्रहालय में जाए या ब्रम्हांड से जुड़ी हुई कोई फिल्म देखें अन्दर कहीं कुछ होता है, कुछ आवेश सक्रिय सा होता है| आप एकदम से ऐसे में बाहर आकर किसी पर चिल्ला नहीं सकते| ऐसा लगभग असंभव सा है क्योंकि जिंदगी का अर्थ एकदम से बदलता है जब आपको इस ब्रम्हांड की विशालता का अनुभव होता है|
ये हमारे जीवन के विषय में है| जीवन क्या है? ये धरती क्या है? आकाश मंडल क्या है? आपके अन्दर कुछ होता है? मैंने बताई हुईं, ये सिर्फ एक झलक है कि कैसे आप अपने भीतर के ज्ञान को बढा कर ध्यान की अवस्था में ला सकते हैं|
तप से, ज्ञान से, भावनाओं से, पांच इन्द्रियों से, श्वास से और सुदर्शन क्रिया से और फिर कुछ शारीरिक अदल बदल से हम ध्यान में उतर सकते हैं|
तो याद रखे जैसा मैंने कहा कि ध्यान A .C है (Absolute Comfort : पूर्ण विश्राम) विश्राम कौन नहीं चाहता? सब चाहते हैं| सिर्फ हमें ये पता नहीं है कि हम पूर्ण विश्राम कैसे पा सकते हैं|
ध्यान हलचल से शांति की यात्रा है, आवाज़ से ख़ामोशी की यात्रा| चलो आज के लिए हम यह एक बात याद रखते हैं और थोड़ा ध्यान करते हैं|
देखो तुम्हें ध्यान करने के लिए एकदम गंभीर होने की ज़रूरत नहीं है| ध्यान एकदम प्राकृतिक है, आराम है| जैसे आप घर पर आराम से अपने साथ होते हो वैसे ही समस्त ब्रम्हांड में सब के साथ अपनत्व में होते हो, ठीक है|
गुरुजी इसके बाद सबको ध्यान कराते हैं|

प्रश्न : भगवान के बारे में आपका क्या दृष्टिकोण है?
श्री श्री रविशंकर : हर दृष्टिकोण में भगवान हैं| हम सोचते हैं भगवान स्वर्ग में बैठा हुआ कोई है| नहीं! भगवान प्रेम हैं और प्रेम ही है जिससे सब सृष्टि बनी है| वह आलोचना से परे है, सबके लिए उपलब्ध है, हर क्षण| उस ऊर्जा को आप भगवान कह सकते हैं| वह सब वर्णन और समझ बोध से परे हैं|

प्रश्न : ध्यान करते समय अपने दिमाग की आवाज़ को कैसे शांत करें?
श्री श्री रविशंकर : इसके लिए आप बहुत से उपाय कर सकते हैं| पहला है उसे स्वीकार करना और उससे जूझना नहीं| जब आप उससे लड़ते हैं और सोचते हैं यह शोर नहीं होना चाहिए और उसे हटाना चाहते हैं, जितना आप उसे दूर करना चाहेंगे, उतना ही वह आपसे चिपक जायेगा| चेतना या मन का नियम ऐसा है कि विरोध उसे मिटाता नहीं है बल्कि बढ़ाता है| इसलिए, पहले, उसका विरोध मत करिये|
दूसरा, जैसा मैंने कहा, पांच उपाय हैं जिसके द्वारा आप ध्यान कर सकते हैं| प्राणायाम शोर दूर करने में आपकी सहायता करेगा| सही भोजन भी ध्यान पर असर करता है| व्यायाम, सही आसन और श्रेष्ठ भावनाएं, अच्छी समझ, ये सब ध्यान में सहायता करेंगे|

प्रश्न : प्रिय गुरूजी, मैंने एक बहुत ही भव्य ध्यान पाया जिसमे मैं सचेत था पर शरीर में कोई संवेदना नहीं थी| बस, मैं हूँ का भाव था और फिर मेरा शरीर झटका और मैं वापस आ गया| यह क्या हुआ?
श्री श्री रविशंकर : यह बहुत अच्छा है, आपको एक दृश्य मिला उस भीतरी दशा का, उस चेतना का जो आप हैं| यह सामान्य है और अच्छा है| पर अब कल फिर बैठ कर उसी अनुभव को पाने का प्रयत्न मत करिये| मैं आज भी वही अनुभव करना चाहता हूँ जो मैंने कल किया था| मैं वही सुन्दर भावना महसूस करना चाहता हूँ जो मैंने कल की थी| नहीं| वह दोबारा नहीं होगी| हर दिन एक नया खज़ाना आप के लिए आएगा| इस लिए, बस इस अनुभव को लीजिए और इस से जुड़िये मत| आप इन सब अनुभवों से बहुत बड़े हैं|

प्रश्न : ध्यान करते समय मेरा मन शांत हो जाता है पर मैं मन से आगे नहीं जा पाया हूँ| क्या मैं बहुत ज़्यादा प्रयत्न कर रहा हूँ?
श्री श्री रविशंकर : हाँ| आपको मन के आगे जाने का प्रयत्न नहीं करना चाहिए| अपने ही लिए, कुछ प्रयत्न मत कीजिये, बस स्वाभाविक रूप से सब होने दीजिए|
यदि आप मालिश कराने के लिए जाते हैं, तो आप क्या करते हैं? आप बस मालिश वाले को आपका ख्याल रखने देते हैं| मालिश करने वाला अपना काम करता है और आप कुछ नहीं करते| उसी प्रकार, ध्यान में भी, सृष्टि को आपका ख्याल रखने दीजिए; आपकी आत्मा को सब करने दीजिए|

प्रश्न : कुछ समय से ध्यान करने के बाद, मैं अपने व्यवहार के प्रति जागरूक हो गया हूँ, जैसे आत्मरक्षात्मक ढंग और क्रोध| मैं अपने व्यवहार को कैसे बदलूं?
श्री श्री रविशंकर : जो भी आपको अपने व्यवहार के ऐसे ढंग लगते हैं उनका आप परित्याग कर दीजिए| यदि आप अपने आप को इन ढंगों से पहचानने लगते हैं, कि मैं हमेशा क्रोधित रहता हूँ, या मैं हमेशा आत्मरक्षक ढंग से पेश आता हूँ, तो आप अपने अतीत से या इन ढंगों से चिपक रहे हैं| इस लिए इनका परित्याग कर दीजिए| ये सब कल था और मेरी दुनिया में आया, तो क्या?
कभी कभी आप आकाश में घने काले बादल देखते हैं| पर आकाश का उन पर कोई अधिकार नहीं है| वह बस उन्हें छा कर चले जाने देता है| उसी प्रकार, यह भाव आते हैं, कभी सुखद, कभी दुखद| आपको इनका परित्याग करना है| यह पहला कदम है| इनको आने दीजिए और जाने दीजिए|

प्रश्न : मैंने सुना है कि सालों के ध्यान के बाद मनुष्य का जीवन एक निरंतर ध्यान बन जाता है| क्या आप इसको विस्तार से समझा सकते हैं?
श्री श्री रविशंकर : हाँ| वह अंदर की शांति बनी रहती है, चाहे आप कुछ भी करें| आप चल रहे, बात कर रहे, खा रहे, बातचीत कर रहे, समाचार देख रहे हो, और एक ख़ास धीरता है जो रहती है| आपको उसकी आदत पड़ जाती है| वह आपको छोड़ कर नहीं जाती|
परन्तु, ऐसा अनुभव मुझे कब होगा?, यह मत कहते रहिये| ऐसा कभी भी हो सकता है| क्या फ़र्क पड़ता है? ऐसी प्रवृति होनी चाहिए| यही सबसे उचित है, ठीक है, जैसा भी है|
कबीर का एक बहुत सुन्दर दोहा है| वे भारत के मध्य युग के एक महान संत थे| उन्होंने कहा कि वे प्रभु की खोज में हर समय लगे रहे, यहाँ वहां ढूँढ़ते हुए, पर प्रभु कहाँ हैं? भगवान कहाँ हैं? उन्होंने कहा, जब मैं प्रभु को ढूँढने गया, तो उन्हें नहीं पा सका| पर जब सब प्रयत्न छोड़ कर विश्राम किया, तो अब प्रभु मेरे पीछे हैं| भगवान मेरे पीछे भाग रहे हैं कहते हुए, कबीर, कबीर, कबीर! तो जब उन्होंने भगवन के पीछे भागना बंद कर दिया तो भगवान उनके पीछे भागने लगे| यह सत्य है!
आपको बस जानना है कि कैसे गहरे विश्राम में जायें| कोई प्रयत्न नहीं, क्योंकि जो भी हम प्रयत्न से पाते हैं, वह सांसारिक होता है और सीमित होता है| जो भी हम अध्यात्मिक स्तर पर पाना चाहते हैं, कुछ और श्रेष्ठ, वहां प्रयत्न भाषा नहीं है| सारे प्रयत्न त्यागने होंगे| सब प्रयत्न त्याग दें, और तब आपको कुछ और बड़ा प्राप्त होगा| सांसारिक स्तर केवल दसवां हिस्सा है सम्पूर्ण सृष्टि का, और बाकि नौ हिस्से आध्यात्मिक स्तर है|
देखो, आप प्रेम को प्रयत्न से नहीं उत्पन्न कर सकते, सहानुभूति को प्रयत्न से नहीं ला सकते, ला सकते हो क्या? क्या आप कह सकते हैं, मैं संवेदनशील होने का बहुत प्रयत्न करता हूँ?" आपका अत्यंत प्रयत्न करना ही सबसे बड़ी रूकावट है| आप बस विश्राम करें और आप स्वयं ही संवेदनशील हो जायेंगे| आपकी खुश रहने की कोशिश ही खुशी में एक बड़ी रुकावट है| प्रयत्न सांसारिक दुनिया का शब्द है|
यदि आप प्रयत्न नहीं करेंगे, तो आप धन नहीं कमा सकते, पढ़ नहीं सकते, उत्तम अंक नहीं ला सकते| आप उपाधि नहीं पा सकते यदि आप प्रयत्न नहीं करें| इस लिए, हर सांसारिक कार्य या वास्तु के लिए आपको प्रयत्न करना है| घर बनाने के लिए प्रयत्न करना है| बस बैठे बैठे सोचने से घर नहीं बनेगा| पर कुछ अध्यात्मिक पाने के लिए एकदम विपरीत प्रक्रिया की आवश्यकता है; कोई प्रयत्न नहीं| कुछ क्षण बस बैठने की और कुछ भी ना करने की|
मुझे पता है आप कहोगे कुछ भी न करना तो बहुत कठिन है| मौन रहना कठिन है| पर यह अपने आप हो जाता है| कुछ दिन यहाँ या वहां, और आप देखोगे यह कितना आसान है, सहज है|

प्रश्न : इस चेतना के दायरे को छोड़ कर कोई आध्यात्मिक और मानसिक चेतना और ज्ञान की ओर जाने के लिए क्या करें? शारीरिक चेतना से आगे जाने का सबसे उत्तम तरीका क्या है?
श्री श्री रविशंकर : यह पांचवां पहलू है जो मैंने बताया था, ज्ञान|
आपको यहाँ कुछ छोड़ कर नहीं जाना, यहाँ रहते हुए, इस शोर के बीच, उस सुंदरता को पहचानना है| वह वास्तु जो इतनी भव्य है, अद्भुत है, आकर्षक है, यहीं पर और अभी! पर वो यहाँ और अभी कल होगा! अभी हो गया!