२ अप्रैल, २०१२, सोमवार, सिंगापुर
व्यवसाय में
नैतिकता के लिए
विश्व
मंच
आज सबसे जरूरी
हैं मार्गदर्शक| युवा उद्यमियों
को मार्ग दर्शकों
की आवश्यकता है;
उद्योग जो नैतिक
आचरण को अपनाते हैं, जो
उचित
है और
जो
अपनी
सामाजिक जिम्मेदारी को निभाते हैं| यह हो सकता है और वास्तव
में ऐसा होना चाहिए, ऐसे कई कारोबार हैं जिन्होंने
नैतिकता
के नियमों का
पालन किया और उनके कारोबार में तेजी से इजाफा हुआ| ऐसे कारोबारों/उद्योगों पर प्रकाश डाले जाने की आवश्यकता है और
इस
मंच का मुख्य
उद्देश्य है कि इस
तरह के कारोबारों को समझना/उन पर रोशनी
डालना, जो आने वाली पीढ़ियों के मार्ग दर्शक बन सकें, और जिनसे नई पीढ़ी यह सीख सके कि
नैतिक नियमों से कैसे कारोबार में सफलता हासिल की जा सकती है| आप जानते हैं कि धन कमाने के कई साधन हैं, किन्तु चैन से सोने
के लिये ठीक साधनों का प्रयोग करना आवश्यक है| अच्छी नींद और अंदरूनी शांति केवल तब प्राप्त होगी जब आपको यह
ज्ञान होगा कि सब कुछ इमानदारी से कमाया गया है| स्पष्टता, पारदर्शिता और ईमानदारी
से| आमतौर पर
मैं सलाह देता हूँ कि
कंपनियों
एंव
कारखानों
में, सभी
को दोपहर का भोजन
और ध्यान करवाया जाना चाहिए| मेरा अनुग्रह है कि सब लोग एक साथ १०
से
२०
मिनट के लिए
ध्यान
करें और एक साथ भोजन
करें| इस से सब लोग एकजुट हो कर काम
करेंगे| आपका एक
साथ काम करने का मन करेगा, एक साथ-एक दल में होने की भावना बढ़ेगी, और
रचनात्मक
विचार आयेंगे| तो एक
साथ भोजन करना अच्छा है| बस! मैं
कम
बात
करने में और अधिक कार्य करने में विश्वास
रखता हूँ| तो, मैंने जो कहना था, कह दिया, अब यदि आपको कुछ प्रश्न पूछने हैं, तो आप पूछ
सकते हैं |
प्रश्न : इससे पहले आपने
“स्वहित को पुनर्परिभाषित” करने पर एक बहुत
ही रोचक चर्चा
की थी| क्या आप एक बार
फिर उस बारे
में कुछ कह
सकते हैं |
श्री श्री रविशंकर : हाँ, स्वहित बहुत महत्वपूर्ण है| आपको यह ज्ञान होना आवश्यक है, कि यदि आप अल्पकालिक लाभ के लिए अनैतिक तरीकों/साधनों का प्रयोग करते हैं, तो आप दीर्घकाल में जोखिम का सामना करेंगे| यह आपके स्वयं के हित में नहीं है| यह वास्तव में स्वयं आपदा है| यह स्वहित दिखाई देता है, लेकिन वास्तव में यह आपके लिए स्वयं आपदा होगा| एक अन्य दृष्टिकोण है, अपने आप में, अधिक लोगों को शामिल करें, समाज को भी शामिल करें| जब आप ‘स्वयं’ कहते हैं, आप केवल अपने आप को, या अपने कर्मचारियों, या आपकी कंपनी के बारे में सोचते हैं| अब, अगर समाज में कोई स्थायी विकास न हो तो आपकी कंपनी भी नहीं रह सकती| अगर लोगों में क्रय करने की शक्ति नहीं है, तो इतनी सारी चीज़ें के निर्माण का कोई मतलब ही नहीं है| यदि कोई उन्हें खरीद ही नहीं सकता तो आप क्या करोगे? तो, आपको अपने स्वयं के हित में भी लोगों की क्रय शक्ति के बारे में सोचने की जरूरत है| यह निर्माण शक्ति जितनी ही महत्वपूर्ण है, जो आप अपने लिये चाहते हैं| तो लोगों की क्रय शक्ति भी आपके स्वयं के हित में शामिल हो जाती है| मुझे लगता है कि एक पूरे समाज के संदर्भ में स्वहित को देखना एक अच्छा तरीका है|
श्री श्री रविशंकर : हाँ, स्वहित बहुत महत्वपूर्ण है| आपको यह ज्ञान होना आवश्यक है, कि यदि आप अल्पकालिक लाभ के लिए अनैतिक तरीकों/साधनों का प्रयोग करते हैं, तो आप दीर्घकाल में जोखिम का सामना करेंगे| यह आपके स्वयं के हित में नहीं है| यह वास्तव में स्वयं आपदा है| यह स्वहित दिखाई देता है, लेकिन वास्तव में यह आपके लिए स्वयं आपदा होगा| एक अन्य दृष्टिकोण है, अपने आप में, अधिक लोगों को शामिल करें, समाज को भी शामिल करें| जब आप ‘स्वयं’ कहते हैं, आप केवल अपने आप को, या अपने कर्मचारियों, या आपकी कंपनी के बारे में सोचते हैं| अब, अगर समाज में कोई स्थायी विकास न हो तो आपकी कंपनी भी नहीं रह सकती| अगर लोगों में क्रय करने की शक्ति नहीं है, तो इतनी सारी चीज़ें के निर्माण का कोई मतलब ही नहीं है| यदि कोई उन्हें खरीद ही नहीं सकता तो आप क्या करोगे? तो, आपको अपने स्वयं के हित में भी लोगों की क्रय शक्ति के बारे में सोचने की जरूरत है| यह निर्माण शक्ति जितनी ही महत्वपूर्ण है, जो आप अपने लिये चाहते हैं| तो लोगों की क्रय शक्ति भी आपके स्वयं के हित में शामिल हो जाती है| मुझे लगता है कि एक पूरे समाज के संदर्भ में स्वहित को देखना एक अच्छा तरीका है|
प्रश्न : मैं नेतृत्व सिखाता हूँ, विशेष रूप
से
सार्वजनिक
नेतृत्व
और मैं उन लोगों की मदद
करना चाहता हूँ जो व्यवहारवाद और
भ्रष्टाचार का सामना
कर रहे हैं| एक
बड़े
पैमाने पर कैसे
निर्णय
लेना चाहिए और संतोष के
मामले में व्यक्तिगत
निर्णय कैसे लें|
आंतरिक संतोष या व्यावहारिकता का निर्णय लेने वाले लोगों की मैं कैसे मदद करूँ|कृपया सलाह दें|
आंतरिक संतोष या व्यावहारिकता का निर्णय लेने वाले लोगों की मैं कैसे मदद करूँ|कृपया सलाह दें|
श्री श्री रविशंकर : आप
बस उनकी दृष्टि
का
विस्तार
कीजिये| 'चलो, उठो
और देखो कि
आप
क्या
करना चाहते हो| आप कर चोरी करना चाहते हो, लेकिन अगले
वर्ष पकड़े जाओगे और ठीक भुगतान
करोगे और साथ में जुर्माना भी देना पड़ेगा| तो क्यों ना अपने करों
का ठीक से भुगतान कर दिया जाये? भुगतान करो और आगे बढ़ों|’ आपको पता है, यह दृष्टिकोण, यह विचार
उन्हें
दिए
जाने की आवश्यकता
है|
निरंतर
विकास और सतत
विकास तभी संभव है जब
आप
को अपने भीतर
स्पष्ट
लग
रहा हो| यह
पहली
बात है| दूसरी बात, पैसे कमाने
के लिए कोई
आसान
रास्ता नहीं है| यह उद्यमियों
को समझाने
की
आवश्यकता है, विशेष
रूप
से
युवा
उद्यमियों को| वे
जल्दी से और आसानी से बहुत अमीर बनना चाहते
हैं, और इसमें उनका पतन होने का खतरा
है| यह शिक्षा
बहुत
महत्वपूर्ण
है| मैं समाज में
एक
बड़ा अंतर देख रहा हूँ, आज के लोगों का रवैया
पांच
से दस साल
पहले
के
उद्यमियों
से अलग है क्योंकि कई कंपनियों
बहुत तेजी से बढ़ी और
फिर
ढह
गयी| कोई भी
उन कंपनियों कि सूची में
गिना
जाना नहीं चाहता| इन
उदाहरणों ने लोगों को गलत
रास्ते पर न चलने में मदद की
है|
प्रश्न : तनाव, हिंसा
और
भ्रष्टाचार
की
इस
दुनिया
में, व्यापार
शुरू करने वाले
युवाओं
के
लिए
अपका क्या
संदेश
है?
श्री श्री रविशंकर : हमे यह जानना आवश्यक है कि पूरी दुनिया भ्रष्ट नहीं है| कुछ लोग हैं, जो भ्रष्टाचार में लिप्त हैं| हमे यह भी याद रखना चाहिए कि भ्रष्टाचार वहाँ शुरू होता है जहां अपनापन समाप्त होता है| हमे इस पर ध्यान देना चाहिए| कोई भी अपने सम्बन्धियों के साथ भ्रष्ट नहीं हो सकता, जहाँ भी अपनेपन की भावना है, भ्रष्ट होने की भावना असंभव हो जाती है| भ्रष्टाचार शुरू होता है जहां अपनेपन की भावना समाप्त होती है| तो आप को लोगों में अपनेपन की भावना का विस्तार करने के लिये शिक्षित करना है| मैं इसे आध्यात्मिकता कहता हूँ| आध्यात्मिकता वह है जो लोगों के बीच अपनेपन की भावना को बढ़ावा देती है, वहाँ प्राकृतिक तौर से इमानदारी और एक दूसरे के लिए देखभाल करने की प्रवृत्ति होती है| इन स्तिथियों में भ्रष्टाचार असंभव हो जाता है|
श्री श्री रविशंकर : हमे यह जानना आवश्यक है कि पूरी दुनिया भ्रष्ट नहीं है| कुछ लोग हैं, जो भ्रष्टाचार में लिप्त हैं| हमे यह भी याद रखना चाहिए कि भ्रष्टाचार वहाँ शुरू होता है जहां अपनापन समाप्त होता है| हमे इस पर ध्यान देना चाहिए| कोई भी अपने सम्बन्धियों के साथ भ्रष्ट नहीं हो सकता, जहाँ भी अपनेपन की भावना है, भ्रष्ट होने की भावना असंभव हो जाती है| भ्रष्टाचार शुरू होता है जहां अपनेपन की भावना समाप्त होती है| तो आप को लोगों में अपनेपन की भावना का विस्तार करने के लिये शिक्षित करना है| मैं इसे आध्यात्मिकता कहता हूँ| आध्यात्मिकता वह है जो लोगों के बीच अपनेपन की भावना को बढ़ावा देती है, वहाँ प्राकृतिक तौर से इमानदारी और एक दूसरे के लिए देखभाल करने की प्रवृत्ति होती है| इन स्तिथियों में भ्रष्टाचार असंभव हो जाता है|
प्रश्न : गुरुजी, हम सब नैतिकता, सदाचार और व्यक्तिगत लाभ के विषय में चर्चा करते हैं। मेरे विचार में एक मानव
में आध्यात्मिकता का अंश होना भी आवश्यक है। आप किसी भी धर्म को मानते हों, आपके मन में कुछ नियम अवश्य होते हैं जो कि धर्म या आध्यात्मिकता के द्वारा
आते हैं और तब आप सदाचार या नैतिकता के विषय में सोचते हैं और तभी आप सही हो पाते
हैं। मैं इस प्रकार से सोचता हूँ। स्वामीजी के इस बारे में क्या विचार हैं?
श्री श्री रविशंकर : मैं आप को एक उदाहरण देना चाहता हूँ। आप जानते हो न जहाँ
भी भीड़ होती है, वहाँ हमेशा चोरियां भी होती हैं, विशेष रूप से भारत जैसे देशों में। जब भारी भीड़ होती है, चोरियां होती हैं। पर, जब कुंभ का मेला(गंगा नदी पर सामूहिक
हिंदू तीर्थ) लगता है, जहाँ पर कि 3 करोड़
से भी अधिक लोग एक ही स्थान पर जमा होते हैं, एक भी चोरी की खबर नहीं आती। क्यों? क्योंकि वहां पर
कुछ पवित्रता, कुछ धार्मिकता का भाव होता है और कुछ यह भावना जुड़ी होती है
कि, ‘ओह! मैं यहाँ तीर्थ
के लिये आया हूँ!’ लोग अपनी चीज़ें, अपने लैपटॉप ऐसे ही रख देते हैं और इधर-उधर टहलते रहते हैं, और कोई भी उन्हें चुराता नहीं है, जोकि वैसे देखा जाये तो अविश्वसनीय सा
लगता है। वैसे तो, यदि आप पुराना चश्मा भी ऐसे ही रख दें तो वह चोरी हो जाता
है; आपकी चप्प्पल तक चोरी हो जाती है। और कुम्भ के मेले में
आपका लैपटॉप तक कोई नहीं चुराता, यह अद्भुत है!
देने की भावना, दूसरों के साथ बाँटने की भावना अधिक प्रबल रहती है।
मैं आपको एक घटना सुनाना चाहूँगा। इलाहाबाद में जनवरी का एक बहुत ठंडा दिन था; बहुत ही ठंडा, लगभग शून्य या इससे भी एक डिग़्री कम। रात को मैं अपने पचास
स्वयं सेवकों के साथ कंबल बाँटने निकला। वहाँ कुछ बहुत ही निर्धन लोग थे, जोकि बड़ी दूर दूर से तीर्थ करने और गंगा में स्नान करने आये थे। उनके पास
ज्यादा सुविधायें नहीं थी। इसलिये हम बहुत ही निर्धन लोगों को कम्बल बाँट रहे थे।
एक लड़का पुल के नीचे खड़ा था और काँप रहा था। वह शायद २० या २२ वर्ष का रहा
होगा। जब हमने उसको कम्बल दिये, तो वह बोला, “नहीं, मुझे आज रात इसकी आवश्यकता नहीं है। मैं
आज रात गुज़ार कर चला लूँगा। पर वहाँ पुल के नीचे कुछ बूढ़ी औरतें, कुछ बुजुर्ग लोग हैं। उनको इस कम्बल की अधिक आवश्यकता है। कृपया यह उन्हें दे
दीजिये।" उसने इशारा करते
हुये कहा, “वो देखिये, ५०० मीटर दूर वे बुजुर्ग लोग हैं, कृपया उन्हें दे दीजिये। उन्हें इसकी
अधिक जरूरत है। मैं तो जवान हूँ,मेरा गुज़ारा हो जायेगा।"
पता है, इस प्रकार दूसरों का ध्यान रखने की भावना सच में मेरे दिल
को छू गई। यह लड़का केवल टी-शर्ट पहने हुये था और सर्दी से काँप रहा था, परंतु, फिर भी कह रहा था, “नहीं! पहले उनका
ध्यान रखिये। यदि कुछ बच जायेगा, तो मैं ले लूँगा।"
यह एक दूसरे का ध्यान रखने की भावना अद्भुत है और विशेष रूप से निर्धन लोगों
में यह पहले से मौज़ूद है।
इसलिये, नैतिकता, या आध्यात्मिकता, सद्गुणों को, उन मानवीय गुणों को जोकि हम सब के
भीतर हैं, बाहर निकलते हैं।
तीन महीने पहले उत्तर-पश्चिमी दिल्ली के पुलिस कमिश्नर ने हमारे एक टीचर को
आमंत्रित किया। उन्होंने उसे बताया कि उनके पास लगभग ३५० उपद्रवी हैं। जानते हैं
उपद्रवी कौन होते हैं? ये वो असामाजिक तत्व हैं जो डकैतियां और
दूसरे बुरे काम करते हैं। आप उन्हें जेल में भी नहीं डाल पाते, पर वे समाज के लिये सिरदर्द होते हैं। आप उन्हें समाज में गुंडे कहते हैं।
इसलिये कमिश्नर ने उन सबको इकट्ठा किया, ३५० लोगों को, और फिर हमारे टीचर को बुलाया और पूंछा कि
वह इनके बारे में कुछ कर सकते हैं क्या? वह इन लोगों में कुछ नैतिकता या
आध्यात्मिकता जगाना चाहते थे।
इन लोगों से निपटना बहुत कठिन था, परंतु ६ दिनों के भीतर उनमें कितना बड़ा
परिवर्तन आ गया। हमने हर दिन उनके साथ दो या तीन घंटे बिताये, और कुछ मिनट का ध्यान करवाया, कुछ श्वास क्रियायें करवाईं, कुछ वार्तायें करीं, और ६ दिन बाद वे पूरी तरह से बदल चुके
थे। उन्हीं असामाजिक तत्वों ने सफाई अभियान, स्वास्थ्य-जागृति अभियान चलाने शुरु कर
दिये और उत्तर-पश्चिमी दिल्ली में अपराध की दर ९०% तक गिर गई। निस्संदेह पुलिस
कमिश्नर अत्यधिक प्रसन्न थे और उन्होंने कहा, “हम ऐसा सब जगह
क्यों नहीं करते।"
हमने कहा, “हाँ, हम सब यह करने के लिये पहले से भी अधिक तैयार हैं।"
देखिये कोई भी यह नहीं सिखाता कि तनाव से छुटकारा कैसे पाया जाये। यह बातें
करने से या सलाह देने से दूर नहीं होता। आपको उन्हें तनाव से छुटकारा पाने और मन
को शांत करने की कुछ तकनीक, कुछ प्रक्रियायें सिखाने की आवश्यकता है।
आप को उन्हें एक शांत और संयमित मन से सोचना सिखाना होगा, यह आवश्यक है। इसलिये, यही चीज़ हमने पनामा में की।
शिकागो में, बहुत से स्कूलों में जहाँ पर कि अपराध दर बहुत अधिक थी, वहाँ हमने कुछ श्वास प्रक्रियायें और ध्यान सिखाया। हमारे सिखाने के बाद, कक्षाओं में अपराध की घटनायें २६८ से घट कर मात्र ६० ही रह गईं।
शिक्षा विभाग बहुत खुश था। इस तरह, आखिरकार हम हिंसा और तनाव के संबन्ध में
कुछ कर पाये। लोगों को स्वयं के पास वापस लाकर।
मेरे विचार में हमारी शिक्षा प्रणाली को तनाव कम करने के तरीके सिखाने चाहिये।
तनाव बहुत ही सामान्य होता जा रहा है। मैं प्राय: इसे मानसिक रूप से स्वस्थ रहने
की विद्या कहता हूँ। हमें दाँत स्वस्थ रखने के विषय में तो सिखाते हैं, पर मानसिक स्वास्थ्य को भूल जाते हैं। हमें विद्यार्थियों को स्कूल और कॉलेज
के दिनों से ही यह सिखाने की आवश्यकता है कि अपने मन को कैसे स्वस्थ रखें और तनाव
और चिंता से पागल न हो जायें। ३०% युरोप आज अवसाद से ग्रस्त है, मैं नहीं जानता कि यहाँ सिंगापुर में अवसाद की प्रतिशत क्या है। शायद इतनी
अधिक नहीं, लगभग २०% लोग तो अवसादग्रस्त होंगे ही। ऐसा कुछ साल पहले
नहीं था, है न? आर्थिक रूप से हम जितने मजबूत हो रहे हैं
हमारे सामने ऐसी समस्यायें आनी नहीं चाहिये। पर वास्तव में ऐसा हो रहा है। इसलिये
हमें अपने लोगों को आध्यात्मिक मूल्य सिखाने की आवश्यकता है, आपका क्या ख्याल है?
क्या आप ऐसा नहीं सोचते? आध्यात्मिकता वह है जो आपकी हर मौके पर
केंद्रित रहने में सहायता करती है; आध्यात्मिकता केवल बैठे रहने और किसी
धार्मिक अभ्यास को करते रहना नहीं है, बल्कि जीवन को एक अधिक व्यापक दृष्टिकोण
से देखना है। धर्म निसंदेह ही हमारे जीवन का एक हिस्सा है पर आध्यात्मिकता थोड़ी
अलग है। यह स्वयं के जीवन को मूल्यों और व्यापक दृष्टि से देखना है।
प्रश्न : विश्व में बहुत से देश लोभ को एक अच्छी संस्कृति
के रूप में सम्मान देते हैं। सिंगापुर में हम भाग्यशाली हैं कि हमारी
सरकार मध्यवर्तन द्वारा धनी और निर्धन के बीच दूरी को दूर करने का प्रयत्न कर रही
है। पर दूसरे देशों में ऐसा नहीं है। गुरुजी, आपके ज्ञान और आर्ट ऑफ लिविंग के काम में
शामिल होने के बाद स्वयं सेवक के रूप में हम इसमें भाग ले सकते हैं। परंतु यह अभी
भी एक बड़ी चुनौती है, क्योंकि हम एक ऐसे समाज में रहते हैं
जोकि नियमों और सरकारी नीतियों की ऐसी व्यवस्था से शासित है, जहाँ लोभ, लाभ कमाना, करोड़पति बनना मानवीय अस्तित्व के लिये
अच्छे मूल्य माने जाते हैं। इसलिये कृपया इस विषय में बतायें और हमारा कुछ सात्विक मार्गदर्शन
करें।
श्री श्री रविशंकर : देखिये, उद्यमशीलता और प्रतिस्पर्धा होना बहुत
अच्छा है। उनकी समाज में आवश्यकता है। परंतु खेल के नियमों का पालन न करना और
नियमों का पालन किये बिना खेल जीतने की कोशिश करना दुर्भाग्यपूर्ण होगा।
अत:, हम मनचाहा परिणाम पाने के लिये लोभ तो कर सकते हैं, लेकिन किसी भी मूल्य पर नहीं। आप समझ रहे हैं न मैं क्या कह रहा हूँ? जानते हैं न, आपको उतना ही खाना चाहिये जितना कि आप खा सकते हैं। आप खाना
चाहते हैं तो खाइये। पर ब्युलिमिया के शिकार मत हो जाइये, जहाँ आप खाना बंद ही न कर पायें और, और अधिक खाने के लिये आपको बार बार खाना
बाहर निकालना पड़े। यह ब्युलिमिया के रोग को अच्छे से बताता है।
इसलिये, मैं उद्यमशीलता के खिलाफ नहीं हूँ, न ही
मैं कम्पनियों के बड़ा लाभ कमाने के खिलाफ हूँ। जितना भी लाभ कमाना चाहते हैं, कमाइये, पर
नैतिकता से। और जितना अधिक लाभ आप कमायें उतना ही अधिक सी एस आर (कोर्पोरेट सामाजिक जिम्मेदारी) में लगायें। समाज सेवा
करें। और, यदि
ऐसा हो पाये, तो जो
भी व्यापार आप कर रहे हैं बढ़ता जायेगा। नहीं तो तेज़ी से ऊपर जाना और फिर तेज़ी से
नीचे गिरना तो बहुत ही आसान है। और यही बीते सालों ने लोगों को सिखाया है। आज लोग
इसके प्रति जागरुक हो गये हैं।© The Art of Living Foundation