ब्रुसेल्स में व्यवसाय में नीतिशास्त्र के विश्व मंच में श्री श्री रविशंकर जी का संबोधन
५००० साल पूर्व, ऋषि कौटिल्य ने कहा था कि नैतिकता का आधार अर्थव्यवस्था है, अर्थव्यवस्था का आधार राज्य है और राज्य का आधार सभ्य समाज है| यदि सभ्य समाज नैतिकता का पालन नहीं करता, तो इसके लिए राज्य कुछ भी नहीं कर सकता|
और सभ्य समाज को नैतिकता का पालन करना चाहिए|
प्रश्न : समाज का उत्थान कैसे हो सकता है?
श्री श्री रविशंकर : आमतौर पर युवाओं की राय है कि आप यदि अनैतिक नहीं है तो आप सफल नहीं हो सकते, अब लोग आर्थिक संकट के बाद और अधिक जागरूक हो गए हैं|
चीनी में एक ही शब्द का अर्थ संकट और अवसर है| हाल ही में भारत के एक प्रमुख व्यापारी को पूंछा गया है की वे रिश्वत क्यों नहीं लेते| उन्होंने कहा कि वे अच्छी नींद चाहते हैं| लोग एक उदाहरण को देखना चाहते हैं| कई लोग संकट का वर्णन नहीं कर सकते, लेकिन केवल कुछ ही उसे बदल सकते हैं| अच्छा आचरण अच्छी नींद और अच्छे लाभ देता है|
नैतिकपूर्ण आचरण अच्छी अर्थव्यवस्था के लिए आवश्यक हैं| हमें व्यावहारिक समाधान देने की आवश्यकता है| ९० फीसदी आबादी ईमानदार है! लोग उदाहरण और समर्थन के लिए इंतजार कर रहे हैं|
हमें भय और चिंता पैदा किये बिना लोगों को सतर्क करने की जरूरत है| आध्यात्मिक मूल्य मानवो में विश्वास बहाल कर सकते हैं|
हर किसी की जरूरत है और जिम्मेदारिया है| हमें यह देखना हैं कि हम कैसे अपनी जरूरतों को कम करके और जिम्मेदारियों को बढ़ा सकते हैं| आज के विश्व में यह अत्यंत आवश्यक है| जब जरूरत और जिम्मेदारी के बीच का समीकरण बिगड जाता है तो हम सब अस्त व्यस्त हो जाते हैं| हैदराबाद में हमारे लोगों के एक समूह ने उनके व्यापार के लिए लाइसेंस (अनुज्ञप्ति) को प्राप्त करने के लिए रिश्वत देने से इनकार कर दिया| उन्होंने कहा कि हम इस के लिए ५० बार आने को तैयार है, हम आपका सम्मान करते हैं, लेकिन हम रिश्वत नहीं देंगे| इससे लोगों की मानसिकता पूरी तरह से बदल गई| उस समूह को १० लाइसेंस (अनुज्ञप्ति) प्राप्त हुए| युवा लोग, युवा रक्त जिस तरह से व्यापार चलाया जाता है उसे परिणत कर सकते हैं|
हमें राज्य और हितधारकों के बीच उदाहरण स्थापित करने की आवश्यकता है|
व्यापार के बिना कल्याण नहीं हो सकता| तो, हमें इस पर विचार करने की जरूरत है| मुझे खुशी है कि हम सब अलग अलग क्षेत्रों से होने के बावजूद, एक मंच पर साथ में है और इस पर विचार कर रहे हैं कि आर्थिक संकट में कैसे सफलता मिलेगी|
© The Art of Living Foundation
५००० साल पूर्व, ऋषि कौटिल्य ने कहा था कि नैतिकता का आधार अर्थव्यवस्था है, अर्थव्यवस्था का आधार राज्य है और राज्य का आधार सभ्य समाज है| यदि सभ्य समाज नैतिकता का पालन नहीं करता, तो इसके लिए राज्य कुछ भी नहीं कर सकता|
और सभ्य समाज को नैतिकता का पालन करना चाहिए|
प्रश्न : समाज का उत्थान कैसे हो सकता है?
श्री श्री रविशंकर : आमतौर पर युवाओं की राय है कि आप यदि अनैतिक नहीं है तो आप सफल नहीं हो सकते, अब लोग आर्थिक संकट के बाद और अधिक जागरूक हो गए हैं|
चीनी में एक ही शब्द का अर्थ संकट और अवसर है| हाल ही में भारत के एक प्रमुख व्यापारी को पूंछा गया है की वे रिश्वत क्यों नहीं लेते| उन्होंने कहा कि वे अच्छी नींद चाहते हैं| लोग एक उदाहरण को देखना चाहते हैं| कई लोग संकट का वर्णन नहीं कर सकते, लेकिन केवल कुछ ही उसे बदल सकते हैं| अच्छा आचरण अच्छी नींद और अच्छे लाभ देता है|
नैतिकपूर्ण आचरण अच्छी अर्थव्यवस्था के लिए आवश्यक हैं| हमें व्यावहारिक समाधान देने की आवश्यकता है| ९० फीसदी आबादी ईमानदार है! लोग उदाहरण और समर्थन के लिए इंतजार कर रहे हैं|
हमें भय और चिंता पैदा किये बिना लोगों को सतर्क करने की जरूरत है| आध्यात्मिक मूल्य मानवो में विश्वास बहाल कर सकते हैं|
हर किसी की जरूरत है और जिम्मेदारिया है| हमें यह देखना हैं कि हम कैसे अपनी जरूरतों को कम करके और जिम्मेदारियों को बढ़ा सकते हैं| आज के विश्व में यह अत्यंत आवश्यक है| जब जरूरत और जिम्मेदारी के बीच का समीकरण बिगड जाता है तो हम सब अस्त व्यस्त हो जाते हैं| हैदराबाद में हमारे लोगों के एक समूह ने उनके व्यापार के लिए लाइसेंस (अनुज्ञप्ति) को प्राप्त करने के लिए रिश्वत देने से इनकार कर दिया| उन्होंने कहा कि हम इस के लिए ५० बार आने को तैयार है, हम आपका सम्मान करते हैं, लेकिन हम रिश्वत नहीं देंगे| इससे लोगों की मानसिकता पूरी तरह से बदल गई| उस समूह को १० लाइसेंस (अनुज्ञप्ति) प्राप्त हुए| युवा लोग, युवा रक्त जिस तरह से व्यापार चलाया जाता है उसे परिणत कर सकते हैं|
हमें राज्य और हितधारकों के बीच उदाहरण स्थापित करने की आवश्यकता है|
अब मैं आपसे आकाश तत्व के एक अन्य पहेलू के बारे में बात करूँगा, वह भीतर का
आकाश तत्व हैं, जो आपका जीवन चलाता है| इस आकाश तत्व से
आपके सारे विचार और भावनाये उत्पन्न होती हैं और जिसकी आप सिर्फ एक कठपुतली हैं| इसके कुछ नियम हो सकते हैं परन्तु जब आपकी भावनाओं
में उच्च वृद्धि होती है तो आप अपनी भावनाओं के शिकार हो जाते हैं| यदि आपके विचारों
की रचना में पूर्वधारणा है और वह किसी काल्पनिक या बुरी अवधारणाओं में फंस गयी है,
तो आप उस तरह से व्यवहार करते हैं|
हम मनुष्य, सामान्य मनुष्य के साथ मुश्किल यह है कि हम शायद ही कभी अपनी भावनाओं, अपने विचारों की रचना और भीतर क्या हुआ इनके के बारे ध्यान देने के लिए समय निकलते हैं| सोचे बिना हम कृत्य करते हैं, हम अपनी भावनाओ का समाधान किये बिना कृत्य करते हैं| इसलिए जब आपकी भावनायें, धारणायें और पूर्वअवधारणायें आपके कृत्य पर हावी हो जाती हैं तो समय समय पर समाज में अपराध होना निश्चित है, चाहे कोई भी नियम या कानून हो|
हम मनुष्य, सामान्य मनुष्य के साथ मुश्किल यह है कि हम शायद ही कभी अपनी भावनाओं, अपने विचारों की रचना और भीतर क्या हुआ इनके के बारे ध्यान देने के लिए समय निकलते हैं| सोचे बिना हम कृत्य करते हैं, हम अपनी भावनाओ का समाधान किये बिना कृत्य करते हैं| इसलिए जब आपकी भावनायें, धारणायें और पूर्वअवधारणायें आपके कृत्य पर हावी हो जाती हैं तो समय समय पर समाज में अपराध होना निश्चित है, चाहे कोई भी नियम या कानून हो|
आंतरिक नियम भी चौकीदार, दरबान के जैसे हैं, लेकिन भावनायें घर की मालिक हैं| इसलिए जब मालिक हस्तक्षेप करता है तो दरबान रास्ता दे देता है| इसलिए बिलकुल ऐसा ही होता है| यदि आप किसी भी अपराधी से कोई भी बात करे तो वह अपने कृत्य के औचित्य को साबित करेगा या वह पूरी
तरह से असहाय महसूस कर रहा होगा, क्यों कि वह खुद को पीड़ित मानता होगा| इसलिए मैं अक्सर कहता हूँ कि "हर अपराधी के
भीतर एक पीड़ित सहायता के लिए रो रहा होता है|" जब हम पीड़ित
पर ध्यान देते हैं तो अपराधी गायब हो जाता है| और हमें वास्तव में
यही करने की आवश्यकता है, यदि कोई अपराध चाहे वह कोसोवो, सर्बिया और बोस्निया या
श्रीलंका या कहीं भी किया जा रहा है या तो हो चुका है| और 'सामान्य' लोग' ही ऐसा करते हैं
जैसे कि माननीय स्पीकर (सभापति) ने बस कुछ ही मिनटो पहले
उल्लेख किया है| वे सामान्य लोग हैं, लेकिन ऐसा क्या है
कि सामान्य लोग असामान्य अपराध करते हैं, यह उन्हें उनकी भावनाओं के प्रति शिक्षा
के अभाव के कारण होता है| भावनाओं के बारे
में शिक्षा की कमी है|
न तो घर पर और न ही स्कूल में, हमें यह सिखाया जाता है, कि कैसे हम अपने लालच, क्रोध, ईर्ष्या, निराशा और रोष पर काबू पा सके| कोई भी नहीं सिखाता कि कैसे इस मन को नियंत्रित किया जाये जिससे हम सारे कृत्य करते हैं| हमें बाहर के आकाश तत्व के पास जाने की जरूरत नहीं है, क्यों कि पृथ्वी कितनी छोटी है और हम सब एक दुसरे के हैं| यदि हम भीतर के आकाश तत्व पर ध्यान दें तो, हम यही पर जाग सकते हैं|
न तो घर पर और न ही स्कूल में, हमें यह सिखाया जाता है, कि कैसे हम अपने लालच, क्रोध, ईर्ष्या, निराशा और रोष पर काबू पा सके| कोई भी नहीं सिखाता कि कैसे इस मन को नियंत्रित किया जाये जिससे हम सारे कृत्य करते हैं| हमें बाहर के आकाश तत्व के पास जाने की जरूरत नहीं है, क्यों कि पृथ्वी कितनी छोटी है और हम सब एक दुसरे के हैं| यदि हम भीतर के आकाश तत्व पर ध्यान दें तो, हम यही पर जाग सकते हैं|
मैं क्या हूँ, और बाकी सब लोग क्या हैं, इसका अवलोकन करें| तो, हम सब एक हैं, हम एक मानव परिवार, मानव प्रजाति का
हिस्सा हैं| इस सजगता को हम सब में और इस गृह के सब व्यक्ति में होना चाहिए और इस व्यक्तिगत
शिक्षा से सामूहिक संस्कृति को बढ़ावा मिलेगा| समाज की संस्कृति के लिए हर व्यक्ति
उसकी इकाई है| इस लिए एक व्यक्ति समाज
की इकाई है| यदि व्यक्ति
शिक्षित है तो साक्षर समाज होता है| साक्षर समाज के
जैसा कुछ भी नहीं है, व्यक्तियों के माध्यम से साक्षरता आती है| उसी तरह शिक्षा से अपने आप को सँभालना और जानना व्यक्तिगत
रूप से होता जिससे सामूहिक सभ्य, सुसंस्कृत समाज की
रचना होती है|
आज अंधविश्वास, हठधर्मिता और पूर्वाग्रह हमारी सभ्यता पर हावी हैं| क्या आप जानते हैं हठधर्मिता के नाम पर मध्यकालीन
युग या मध्यकालीन अवधि में क्या हुआ, या तो स्पेन में धर्माधिकरण,
या डायन का शिकार या पूर्व में जाति
व्यवस्था| यह सब समाज के लिए आपदा
साबित हुई, और शिक्षा लोगों को इन बीमारियों से उबारेगी| इसी प्रकार, व्यापार जगत में हम
भ्रष्टाचार का सामना कर रहे हैं| यह नैतिकता की कमी
के कारण है और हम इसमें कही खो गए हैं और हमें पता नहीं कि इसके लिए क्या करें| तो इन
स्थितियों में हमें मानव स्वभाव, मन और भावनाओं की प्रकृति के बारे में
आत्मनिरीक्षण करके उसे समझना होगा, और बड़े पैमाने पर जीवन
के उद्देश्य को जानना होगा|
किसी ने हाल ही में कहा है, कि देश के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) को अब सकल घरेलू सुख (GDH), के कारक के साथ मापा जाना चाहिए| आपको देखना चाहिए कि कौन सा राज्य या देश दुसरे से अधिक खुशाल है| एक बड़े बैंक बैलेंस का होना और पूरे जीवन भर उदास रहना समृद्धि नहीं है| आप के पास समृद्धि का आनंद लेने के लिए मन होना चाहिए| आपके पास पर्याप्त भोजन और खाद्य है, लेकिन आप मधुमेह और अवसाद और दिल की समस्या से ग्रस्त है| यह एक स्वस्थ समाज की गिनती में नहीं आता| अर्थव्यवस्था या राजनीति, सामाजिक उद्यमिता या किसी भी गतिविधि, सब कुछ एक ही तथ्य पर केंद्रित है; सामाजिक कल्याण| यदि कल्याण दांव पर होगा, तो कोई अन्य कारक समाज को उठाने के लिए पर्याप्त नहीं होगा| हमें इस पर गौर करने की जरूरत है|
और नैतिकता कल्याण की एक रीढ़ की हड्डी के जैसे हैं और
व्यापार उसके पंख है|किसी ने हाल ही में कहा है, कि देश के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) को अब सकल घरेलू सुख (GDH), के कारक के साथ मापा जाना चाहिए| आपको देखना चाहिए कि कौन सा राज्य या देश दुसरे से अधिक खुशाल है| एक बड़े बैंक बैलेंस का होना और पूरे जीवन भर उदास रहना समृद्धि नहीं है| आप के पास समृद्धि का आनंद लेने के लिए मन होना चाहिए| आपके पास पर्याप्त भोजन और खाद्य है, लेकिन आप मधुमेह और अवसाद और दिल की समस्या से ग्रस्त है| यह एक स्वस्थ समाज की गिनती में नहीं आता| अर्थव्यवस्था या राजनीति, सामाजिक उद्यमिता या किसी भी गतिविधि, सब कुछ एक ही तथ्य पर केंद्रित है; सामाजिक कल्याण| यदि कल्याण दांव पर होगा, तो कोई अन्य कारक समाज को उठाने के लिए पर्याप्त नहीं होगा| हमें इस पर गौर करने की जरूरत है|
व्यापार के बिना कल्याण नहीं हो सकता| तो, हमें इस पर विचार करने की जरूरत है| मुझे खुशी है कि हम सब अलग अलग क्षेत्रों से होने के बावजूद, एक मंच पर साथ में है और इस पर विचार कर रहे हैं कि आर्थिक संकट में कैसे सफलता मिलेगी|
© The Art of Living Foundation