आलोचना सदैव करुणा और सावधानी से करनी चाहिये!!!


१०
२०१२ मॉन्ट्रियल, कनाडा
मई
प्यार वो है जिस से आप कभी बच नहीं सकते, ये आपका स्वभाव है| या तो ये अपने शुद्ध रूप में मौजूद होता है या बिगड़े हुए रूप में| या तो वो शुद्ध रूप में प्रकट होता है, या फिर बिगड़े हुए रूप में|
प्रेम के विकृत रूप कौन से हैं? क्रोध, ईर्ष्या, घृणा, लालच, और शासन करने की तीव्र इच्छा| ये सारी बातें नकारात्मक संवेदनाएं हैं, और कुछ नहीं सिर्फ प्यार का बिगड़ा हुआ रूप है| आप समझ रहे हैं कि मैं क्या कह रहा हूँ? अगर आप किसी को पसंद नहीं करते, आप उनसे दूर भागते हैं| अगर आप सिर्फ आलोचना ही करते रहे, इसका मतलब ये की आप उन्हें सचमुच पसंद करते हैं| आप उनसे दूर नहीं रह सकते इसलिए आप उनकी आलोचना करते हैं|
तो आलोचना करने का क्या फायदा है? देखिये, जब आप किसी की आलोचना करते हैं, और अगर वो सच में दोषी है तो पहली बार आप उसको भड़काते हो, लेकिन अगर आप लगातार उसकी आलोचना करते रहे तो वो उसके प्रति सुन्न हो जायेगा; उसको फर्क ही नहीं पड़ेगा| मान लीजिये कि कोई सच में चोर है, और आप उसको कहते रहे कि "तुम चोर हो", आप उस पर इलज़ाम लगा कर सिर्फ अपना समय बर्बाद कर रहे हैं, क्योंकि जितनी बार आप उसे कहेंगे, उसको कुछ फर्क ही नहीं पड़ेगा, उस पर कुछ असर ही नहीं होगा| आप पूरा दिन एक मीनार पर खड़े होकर चिल्लाते रहे, "ये एक चोर है, ये एक चोर है", फिर क्या होगा? एक चोर को इस बात से कुछ फर्क ही नहीं पड़ेगा|
इसलिए एक असली दोषी को आपकी आलोचना या इलज़ाम से कुछ फर्क नहीं पड़ता, अगर वो दोषी नहीं है, ईमानदार है, निर्दोष है, सच्चा है तो उसका दिल टूट जायेगा, ये उसकी आत्मा पर असर करेगा, उसकी आत्मा को हिला देगा| और अगर वो एक योगी है तो वो इसको भी अपने ही अच्छे के लिए उपयोग करेगा| अगर वो एक योगी है अर्थात अगर वो बुद्धिमान है, ज्ञानी है, तो कहेगा कि लोग मेरी निंदा करें या प्रशंसा करें मुझे अपनी समता बना कर रखनी है| तो एक योगी इसे अपनी समता बनाये रखने के लिए इस्तेमाल करेगा और सब का भला ही चाहेगा, अगर वो व्यक्ति इतना समझदार नहीं है तो उसका दिल टूट जायेगा, उसको दर्द होगा और वो दर्द आपके पास वापस आएगा| तो किसी भी हालत में किसी की आलोचना करने या दिन रात उसके बारे में भला-बुरा लिखने से कोई प्रयोजन सिद्ध नहीं होगा|
मैंने सुना है की कुछ लोग दिन रात आर्ट ऑफ़ लिविंग के बारे में नकारात्मक लिखते रहते हैं| ऐसा करके कम से कम वो जो काम हम कर रहे हैं उसका अनुसरण तो कर रहे हैं! वो सब तरीके का गंदा लिखते हैं, इस बात से मुझे कुछ फर्क नहीं पड़ता| उनका क्या मकसद है, हम नहीं जानते| क्या वो ऐसा करके लोगो को आर्ट ऑफ़ लिविंग में आने से रोकना चाहते हैं? मैं कहता हूँ, इस से कुछ नहीं होगा, लोग फिर भी आयेंगे| अगर वो नकारात्मक लिखेंगे तो लोग इस बात को जानने के लिए उत्सुक हो जायेंगे और वो फिर भी आयेंगे| तो वो सिर्फ अपना समय और ऊर्जा नष्ट कर रहे हैं| तो दोष देने से कोई परिणाम नहीं निकलता और ये आपको कहीं नहीं ले जा सकता| मान लीजिये अगर आपके दोष देने से कोई सुधर जाता है तो ये बहुत अच्छी बात है| लेकिन एक बात है कि आप किसी दोषी को सिर्फ आरोप लगा कर सुधार नहीं सकते, आप उसको सिर्फ प्यार से करुणा से, बात चीत से सुधार सकते हैं| आरोप लगाने का अर्थ है कि बात चीत का रास्ता बंद करना| अगर कोई दोषी है तो आप उसे सुधारना चाहते हैं तो केवल बात करके ही सुधार सकते हैं| और अगर वो दोषी नहीं तो आप अपनी सारी मेहनत बेकार कर रहे हैं, आप समझ रहे हैं कि मैं क्या कह रहा हूँ? आपकी सब मेहनत बेकार है क्योंकि आप सिर्फ आरोप लगाये जा रहे हैं और उस से कोई फायदा नहीं हो रहा|
मान लीजिये कि आपके घर में कोई ऐसा है जिसे सुधारा नहीं जा सकता और वो आपको परेशान करता है| आपकी माँ, बाप, जीवन-साथी, बच्चे या कोई भी और जो आपको परेशान करता है, आप क्या करते हो? आप उन पर इलज़ाम लगाते रहते हो| आपका अपनी सास को दोषी ठहराना, इस से आपको कुछ हासिल नहीं होगा बल्कि आपको ही और समस्या होने लगेगी| तो उन पर इलज़ाम लगाने से अच्छा है कि आप ऐसे में अपनी समता को बनाये रखें, अपने संतुलन को बनाये रखें| और जब सब कुछ सही है तब सब आपकी तारीफ करते हैं और आप कहते हो कि आप बहुत संतुलित व्यक्ति हो, उस से क्या होता है, इस बात में कोई तुक नहीं| अगर कुछ लोग या एक भी व्यक्ति आप पर इलज़ाम लगा रहा हो जो कार्य आपने किया नहीं उसके लिए और ऐसे में अगर आप अपना संतुलन बना के रखें तो आपने कुछ हासिल किया है, आप कहीं ऊपर के स्तर पर पहुंचे हो| आप समझ रहे हो कि मैं क्या कह रहा हूँ? आपको ऐसे मौके की ज़रूरत है, कोई आप पर दोष लगाये और अपना संतुलन बना के रख सकें, ये जान कर कि वो जो भी कुछ कर रहे हैं वो एकदम बेकार और फालतू है| तो जब कोई निर्दोष व्यक्ति को दोषी ठहरता है वो उसका कुछ भला नहीं कर रहा, हालाँकि सामने वाला ऐसे में भी उन्हें दुआएं ही देगा| वो जो निर्दोष के ऊपर इलज़ाम लगाते हैं वो अच्छी बात नहीं, हालाँकि तर्कसाध्य आलोचना ज़रूरी है|
इसका ये अर्थ नहीं कि आप केवल अच्छी बातें ही कहते रहे जबकि आपको लग रहा हो कि कुछ भी ठीक नहीं, आप एक मुस्कान अपने चेहरे पर लायें और आप के अन्दर बहुत गुस्सा हो, ये भी काम नहीं करेगा| हमें अकृत्रिम बनना होगा, ईमानदार बनना होगा| आप जानते हैं कि गुस्सा अन्दर दबाने से और समस्या पैदा हो जाती है| इसके अलावा हर वक़्त फटने वाला बम का गोला बनना या कभी न फटने वाला बम का गोला बनना और भी खतरनाक काम है, इसलिए हमें जीवन में एक संतुलन, एक ज्ञान बना के रखना चाहिए| मौन, ध्यान और ये सब प्रक्रियाएँ आपकी उस दिशा में ले जाती हैं|
अभी ये मत सोचने लगिए, "ओह, मैं इतने समय से ध्यान कर रहा हूँ, फिर भी मैं अपना आपा खो देता हूँ", कोई बात नहीं| अगर पहले आप अपना आपा १०० बार खोते थे तो अब एक दर्जन बार खोते हो, अगर एक दर्जन बार खोते थे तो अब कभी कभी २-४ बार खोते हो, तो ये हमेशा कम होता ही है| आप कभी भी ये नहीं कह सकते कि ये काम नहीं करता, जब भी आप किसी की आलोचना करते हैं तब सोचिये कि आपको आलोचना का मकसद क्या है? आप उस व्यक्ति को सुधारना चाहते हो क्या इस लिए आलोचना कर रहे हो? और या सिर्फ इसलिए आलोचना कर रहे हो कि अपना गुबार निकालना चाहते हो? आपका मकसद क्या है? आप ऐसा क्यों करना चाहते हो? सिर्फ अपना गुबार निकालने को आलोचना करना ये दिखाता है कि आप कितने नासमझ हैं, कितने ईर्ष्यालु हैं, कि कैसे आपके खुद के मन पर आपका कोई इख्तियार नहीं, और आपको ध्यान करने की कितनी ज्यादा आवश्यकता है बस;है कि नहीं?
कन्नड़ में एक खूबसूरत कहावत है जो मैं स्कूल में पढ़ा करता था, " अगर आपने जंगल में घर बनाया है और आपको जानवरों से डर लगता है तब मैं क्या कह सकता हूँ? अगर आपने समुद्र के किनारे घर बनाया है और आप लहरों से डरते हो तो कोई क्या कह सकता है? उसी तरह अगर आपने पहाड़ी पर घर बनाया है और आप ठंडी हवा से डरते हो तब कोई क्या कह सकता है? इसी प्रकार से अगर आप समाज में रहते हो और निंदा और प्रशंसा से डरते हो और कहते हो कि मैं निंदा और प्रशंसा दोनों ही नहीं चाहता तो मैं आपको क्या कह सकता हूँ? मैं अपने ईश्वर के चरणों में शरण लेता हूँ और और फिर मैं जहाँ भी हूँ वहां सुख से हूँ, सच्चा सुख ईश्वर की शरण में ही है " कितनी सुन्दर बात है!
ऐसे कौन सी जगह है जहाँ डर नहीं है? ये केवल वहां है जब मैं ईश्वर की शरण में जाता हूँ| स्कूल में हम इन छोटी कविताओं पर हंसा करते थे, पर अब शायद उन्होंने ये पुस्तकों से हटा दी हैं| तो ये हमारे लिए एक सबक है कि जब कोई आपकी निंदा करता है या प्रशंसा करता है उनसे सम भाव से बरताव करिए, आलोचना पर खरे उतरिये, और रचनात्मक आलोचना बहुत करुणा से कीजिये| आलोचना सदैव करुणा और सावधानी से करनी चाहिये, तब कार्य होता है| निंदा जब क्रोध से, ईर्ष्या से, या घृणा से की जाती है तब उसका कोई फायदा नहीं होता|

प्रश्न : प्रिय गुरुदेव, मुझे लगता हैं कि वर्तमान शिक्षा प्रणाली अक्सर बच्चों के लिए हानिकारक है| हमें सहयोग देने के बजाय प्रतिस्पर्धा करने के लिए सिखाया जाता हैं और चीज़ों को समझने की ख़ुशी को सीखने के बजाय अंकों और नौकरी के लिए पढ़ाई करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता हैं| हमें जानकारी और वास्तविकताओं का अवशोषण करनें के लिए मजबूर किया जाता हैं, बजाय अपनी गति से चीज़ों और ज्ञान को समझना| इस पर आपका क्या मार्गदर्शन है, गुरूजी? क्या हमें बिना परीक्षा और कठोर पाठ्यक्रम के बिना पाठशाला ढूँढनी चाहियें?
श्री श्री रविशंकर : आपको पता हैं, हालाकिं, शिक्षा प्रणाली सही नहीं है, लेकिन हमें प्रवाह के साथ जाने के लियें मजबूर किया जाता है, क्योंकि उसके बाद ही आपके बच्चों को नौकरी मिलेगीं| उनको एक शैक्षिक मान्यता मिलेगी| चिकित्सा विज्ञान में भी, ऐसे कई पाठ्य पुस्तक हैं जो लम्बे समय पहले लिखें गए थे, लेकिन आज भी सिखाएं जातें हैं| आज की आधुनिक चिकित्सा ने कई सारी चीज़ों को बेमतलब बना दिया है, लेकिन हम फिर भी पुरानी पाठ्य पुस्तकों का ही अध्ययन करतें हैं|
कल मैंने सुना की ४३ ऐसी जींस हैं जो ह्रदय की समस्याओं का कारण हैं, लेकिन हमारा चिकित्सा विज्ञान केवल ५ या ६ ही जानता है|वे केवल उन मानकों के बारे में ही सोचतें हैं| उनकों दुसरें मानकों के बारें में नहीं पता| तो विज्ञान रोज़ रोज़ नवीनीकृत होता जाता है| नयें नयें शोधकर्ता आते जा रहे हैं और पुरानें मापदंड अप्रचलित हो रहे हैं| एक बदलाव हो रहा हैं, लेकिन बच्चें पुराने पाठ्यक्रम ही पढ़ रहे हैं, स्कूल और कोलेजों में| उन्हें पाठ्यक्रम नवीनीकृत करनें के लियें काफी समय लग रहा हैं|
उदहारण के लिए, इतिहास में आर्यन आक्रमण सिद्धांत था, जो कहता हैं की आर्यन मध्य एशिया से आयें और भारत पर आक्रमण किया|आज उन्होंने उसें गलत और एक संपूर्ण असत्य साबित कर दिया हैं|लेकिन आज भी, पाठ्यपुस्तक में यही कहानी लिखी गयी हैं| उनको शायद एक दशक लगेगा इन सब को बदलनें के लियें| लेकिन कोई विकल्प नहीं है| यदि कोई कहता है, "नहीं, मैं यह सब नहीं पढूंगा| मैं अपने आप ही करूँगा", तो उनको डिग्री नहीं मिलेगीं| उनको नौकरी नहीं मिलेगीं| उनको एक शिक्षित व्यक्ति के रूप में नहीं माना जाएगा, हालाकि वे अधिक जानकार हो सकतें हैं| यहाँ आप केवल अपने शौक के लियें अध्ययन कर रहे हैं, अपने सुख के लियें, ज्ञान और जानकारी पाने के लियें, तो आपको कोई शिक्षाविदों की जरुरत नहीं हैं| लेकिन जब आप उसे एक पेशे के रूप में, नौकरी पाने के लिए कर रहे हैं, तो आपको प्रवाह के साथ जाना पड़ेगा| भूतकाल में, कई पंडितों ने कोशिश की है| बहुत लोगों ने इसका प्रयोग किया है, लेकिन इस परियोजना की सफलता एक बड़ा प्रश्न चिन्ह है|हमें नहीं पता कितने विद्यार्थियों ने वहाँ पर पढ़ाई करके नौकरी पाई हैं और अपने पेशे मैं सफलता हांसिल की है| शायद की होगी, लेकिन यह एक बड़ा प्रश्न चिन्ह है| घर पर शिक्षा अमरीका में अच्छा प्रकल्प है, और ज्यादा से ज्यादा लोग घर पर शिक्षा ले रहे हैं| मैं ना नहीं कह रहां हूँ, आपको इसके बारें में पता करना पड़ेगा| यदि आपका पारिवारिक व्यवसाय है तो डिग्री का कोई महत्व नहीं हैं, क्योंकि आपके बच्चें वैसे भी पारिवारिक व्यवसाय ही सँभालने वालें हैं| तब उनको जो करना है, कर सकतें हैं|

प्रश्न : मृत्यु से समय आदर्श मंत्र क्या है, या कौनसी छबि होनी चाहियें? शास्त्रों का कहना है कि यदि ठीक ढंग से किया जाएँ तो आपको मुक्ति मिल सकती है| और मोक्ष के परिवार जन मरते हुए व्यक्ति के कान में क्या उच्चार कर सकतें हैं या कर सकतें हैं?
श्री श्री रविशंकर : मैं कहूँगा, "ॐ नमः शिवाय:|
ॐ नमः शिवायः या ॐ नमो नारायणा या हरी ॐ, इन में से कोई भी|

प्रश्न : आत्मन एक है या अनेक? यदि एक है, तो व्यक्तिगत कर्म कौन ले जाता है और एक शरीर से दुसरे शरीर में लेकर जाता है| क्या चीज़ अभिग्न होने का बाद भी व्यक्तित्व कायम रखता है| क्या एक ही अभग्न है या एक से ज्यादा है?
श्री श्री रविशंकर : जो प्रश्न आपने पूछें हैं, इस पर एक किताब लिखी जा सकती है| हम किसी और समय इस पर चर्चा करेंगे| अभी आप इसके बारे में सोचतें रहे|

प्रश्न : क्या है जिससे आपसे मेरा तार खो जाता है, और फिर मिल जाता है? क्या आप इसपर टिपण्णी कर सकतें हैं? क्या एक दिन यह बदलेगा?
श्री श्री रविशंकर : यह जानियें कि तार खोना एक भ्रम है और तार मिलना एक हकीक़त| कभी कभी जब घने बादल होते हैं, तो नीला आकाश नहीं दिखता| नीला आकाश कहीं गया नहीं है| कुछ पल के बाद वे घने काले बादल गायब हो जायेंगे| आकाश हमेशा होता है| वह बादलों से पहले, बादलों के बाद और बादल के समय, हर समय होतें हैं| उसी तरह तार हमेशा जुड़ा होता है, यह एक आभास है कि वह टूटा हुआ लगता है|

प्रश्न : क्या आपको पता हैं, दर्शक का कौनसा सदस्य है जो सवाल पूँछ रहा है जो जोर से पढ़ा जा रहा है?
श्री श्री रविशंकर : जब तक आप जवाब ग्रहण कर रहे हैं, यह अच्छा है| यह सोचिएं की जवाब किसी और के लियें हैं| वह प्रश्न आपका है और जवाब सिर्फ आपके लियें ही है|

प्रश्न : "" का क्या मतलब हैं, जब हम उसे तीन बार उच्चारते हैं, हममे वह क्या आव्हान करता है?
श्री श्री रविशंकर : आपको पता है, बोस्टन में २०१० में गुरुपूर्णिमा के वक़्त, बोस्टन कनेक्टिकट क्षेत्र से एक महिला ने एक शोध की जहां उन्होंने की ध्वनी को दर्ज किया और कम्प्युटर में डालकर पता किया कि ॐ की आवृत्ति ठीक वैसी ही है जो पृथ्वी की अपनी ही धुरी पर चारों ओर घूर्णन करनें पर होती है| तो, कुछ दृष्टि से, पृथ्वी भी ॐ कह रही है| यह बहुत दिलचस्प बात है| ॐ के आवाज़ का मतलब एक हाथ से ताली बजाना होता है| ॐ एक अनंत ध्वनी है, ॐ एक ऐसी ध्वनी हैं जो ब्रह्माण्ड में हर समय होती है| भूतकाल में, सभी संत जब वे ध्यान की गहराई में उतरे, उनको सिर्फ ॐ की ध्वनी सुनायी दी|तो, ॐ के कई अर्थ है| उसका मतलब है, प्रेम, अनंतता, शुद्धता, शांति| ॐ कई धातु से बना है, अह-ओऊ-माँ| केवल "अह" के ही १९ मतलब है| आप ॐ के कई हज़ार मतलब निकल सकतें हैं| वे सभी मतलब ॐ के साथ जुडे है, तो ॐ पूरे ब्रह्माण्ड के निर्माण का बीज है|ॐ ब्रह्माण्ड की आवाज़ है| बाइबिल में भी, ऐसा कहा गया हाँ, "शुरू में एक शब्द है और वह शब्द इश्वर के साथ है और वह शब्द इश्वर था| वह ॐ है| वहाँ वे नहीं कहतें कौनसा शब्द है, वह शब्द ॐ है| यह सभी धर्मों में एक या दुसरे रूप में मौजूद है| वह एक असली नाम है, "एक ओमकार सतनाम"| ॐ का मतलब सत्य है| वह अनंतता या दिव्यता का नाम है| इसका मतलब प्रेम है| वह ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति है|गुरु ग्रन्थ साहिब में एक सुन्दर वाक्य है, "एक ओमकार सतनाम, करता पुरख|" ॐ से सबकुछ आया हैं, ॐ में सबकुछ रहता हैं, और ॐ में सबकुछ मिलनेवाला हैं, पदार्थ और चेतना| सबसे अच्छी बात यह है कि यह एक पूर्ण स्पंदन है| "आह" शरीर के निचले भाग में असर करती है|"ऊह" मध्य भाग में असर करती हैं और "मम" उपरी भाग में असर करती है| पूरी प्राणशक्ति एक शब्दांश "ॐ" से प्रतिनिधित्व करती है| जन्म से पहले हम उस ध्वनी के भाग थे और मृत्यु के बाद हम उस ध्वनी से साथ मिल जायेंगे, चेतना की ध्वनी|तो ॐ के लियें बहुत कुछ कहाँ जा सकता है, पूरा उपनिषद् हैं, जो मांडूक्य उपनिषद् है तो ॐ के बारे में है| अब, हम सिर्फ ॐ को ही एक मंत्र के रूप में क्यों नहीं लेतें? हमें दुसरें मन्त्रों के उच्चारण की क्यों जरुरत पड़ती हैं? ध्यान से पहले, आप ॐ का उच्चारण करतें हैं और स्पंदन का निर्माण करतें हैं परन्तु ध्यान के लिये हमें अन्य मन्त्रों की जरुरत पड़ती है| केवल "ॐ" का उपयोग नहीं होता, हरी ॐ या ॐ नमः शिवायः या कुछ और का उपयोग होता है ॐ के साथ| केवल एकांत सेवी मनुष्य, जिनको दुनिया से कुछ लेना देना नहीं है या जो बहुत बूढ़े हैं, केवल उनको ॐ की अनुमति दी गयी हैं| फिर भी सिर्फ अकेले ॐ का उच्चारण उचित नहीं है|

प्रश्न : क्या आत्मज्ञान केवल ध्यान से ही हांसिल होता है?
श्री श्री रविशंकर : क्या प्यास केवल पानी से बुझाई जा सकती है? क्या भूख केवल अन्न से मिटाई जा सकती है या क्या नृत्य से आप भूख को मिटा सकतें हैं? आप का क्या कहना है? सेवा का महत्व है, सेवा, ध्यान यह सब आवश्यक है|

प्रश्न : मुझे नहीं पता जीवन में मुझे क्या करना है| मुझे आप से पूछना है परन्तु मुझे यह भी नहीं पता कि क्या पूछना है और वास्तव में मुझे क्या चाहियें| मैं बहुत कम समय में कुछ भी करके ऊब जाता हूँ| मैं बहुत मूडी हूँ|मैं कुछ नही करके खुश या संतुष्ट नहीं हूँ| मैं इस तरह की मनोस्थिति के साथ जीवन कैसे जी सकता हूँ?
श्री श्री रविशंकर : आप को आराम ज्यादा चाहियें| आपके आराम क्षेत्र से बाहर आइये| आप केवल अपने आराम या सुख के बारे में विचार करतें हैं, तब इस स्थिति में आप आ जातें हैं| आप यहाँ हों किसी और को उपयोगी होने के लियें| आप यहाँ पर हों किसी के लियें कुछ उपयोगी करनें के लियें| आप ऊब कैसे जा सकतें हों| यदि आप ऊब भी जातें हों, तब भी आप को करना पड़ेगा क्योंकि वह किसी और को उपयुक्त होता है| यदि आप आत्मकेंद्रित होते हैं, और सोचतें हैं, "यदि मुझे अच्छा लगा तो ही मैं करूँगा", तो यह सेवा नहीं है|यह आपको संतोष नहीं देगा| आपको समझ रहे हैं मैं क्यां कह रहा हूँ? "मुझे लोगों से मिलना पसंद नहीं है", लेकिन क्या आप लोगोंको अपने लिये मिलते हों या उनके लिये? यदि आप लोगों को उनके लिये मिलतें हो, तो आपका जीवन हराभरा होगा| आप कहेंगे,"गुरूजी, आप यह सब कर सकतें हों, पर मेरा क्या? मैं यह सब नहीं कर सकता"| कम से कम आप कुछ तो किजीयें! जो मैं कर रहां हूँ वह आपको करनें की जरुरत नहीं है| कम से कम एक भाग के बराबर तो किजीयें, शायद ५ फीसदी या १० फीसदी| देखियें मैं मुक्त हूँ, लेकिन फिर भी मैं मुक्त नहीं हूँ| मैं हर दिन बंधा हुआ हूँ| आप समझ रहे हैं मैं क्या कह रहां हूँ| आप सभी लोग यहाँ पर आयें हैं मेरे साथ सत्संग करने के लियें| मैं कहूँगा, "ओह, मुझे यहाँ रहना पसंद नहीं, मैं मूडी महसूस कर रहां हूँ| मुझे कहीं जाना हैं, शाविनिगन, त्रुवा रिवीएर और मैं गाड़ी लेकर निकल जाऊँ और आप सभी लोग यहाँ पर बैठ कर गुरूजी का इंतज़ार कर रहें हैं, पर गुरूजी कहाँ है?
मुझे यह सब नहीं करना लेकिन साल के पूरे ३६५ दिन मैं यह कर रहां हूँ| मैं वही प्रश्नों का जवाब दे रहां हूँ| लोग कह रहे हैं, "क्या आप मेरे लियें वर ढूँढेंगे? क्या आप मेरे लियें पत्नी ढूँढेंगे?" या "मुझे नौकरी दिला दो," या यह कर दो या वह कर दो या मेरे साथ एक तस्वीर ले लो आप मेरी क़द्र नहीं करते हों, या आप मेरी क़द्र करतें हों, यह सभी वार्ताएं| क्या में ऊब जाता हूँ? मैं यह सब करीब ३० साल से कर रहां हूँ, ३० साल से ज्यादा, आर्ट ऑफ़ लिविंग से पहलें भी, ४० साल से!
मैं यह नहीं कह सकता कि मुझे सवारी पर जाना है| तो, वही करें जो सभी के लियें लाभदायक है| मुझे आपका समय और काम चाहिये| आपको अच्छा लगता है या नहीं इसकी चिंता न करें, बस काम करें और देखियें| कभी कभी आपको शुरू शुरू में कुछ चीज़ें करना अच्छा नहीं लगता लेकिन बाद में आप उस कर्म का अच्छा फल पाएंगे, आपकी कल्पनाशक्ति से बाहर| तो उसे कम न समझे| आप समझ रहे हैं मैं क्या कह रहा हूँ?
अन्यथा, यही आप सब कुछ केवल अपने आप को संतुष्ट करनें के लियें कर रहे हैं, तो आप ऊब जातें हों, क्योंकि पूरी दुनिया में ऐसा कुछ भी नहीं जो आपको संतुष्ट कर सकें| और आप एक तरह से भाग्यवान हो कि आप बहुत जल्दी ऊब जातें हों| आप कितने खुशनसीब है आप साधक के रूप में सच्चे मनुष्य हों| आप के पास सहीं साधन है बढनें के लियें क्योंकि आप बहुत जल्दी भौतिक वस्तुओं से ऊब जातें हों|यह अच्छा है| एक बहुत अच्छी बात आज कल के बच्चों के साथ भी यह है की वे बहुत जल्दी सभी कुछ से ऊब जातें हैं| लेकिन निराश होने के बजाय उन्हें अपनी उर्जा विकास की एक नयी दिशा की ओर स्थानांतरित करनी चाहियें, ऊपर उठने के लियें|

प्रश्न : क्या शादीशुदा पुरुष उपनयन समारोह में हिस्सा ले सकते हैं?
श्री श्री रविशंकर : हाँ बिलकुल|