ज्ञान ही है, जो हर बुरे सपने को एक सुन्दर सपने में परिवर्तित कर देता है!!!


१७
२०१२ सोफिया, बुल्गारिया
मई
प्रश्न : क्या हम अपनी वास्तविकता स्वयं ही बनाते हैं, या फिर सब कुछ पहले से ही निर्धारित है?
श्री श्री रविशंकर : क्या आपके घर में पालतू कुत्ता है? (उत्तर: हाँ)
देखिये, जब आप पार्क में जाते हैं, तब आप उसके गले में पट्टा बाँध के ले जाते हैं| यह वैध है| अब जितनी लंबी उस पट्टे की रस्सी है, उतना ही स्वतंत्र आपका कुत्ता है| सही कहा न? वह या तो पट्टे के एकदम पास बैठ सकता है, या फिर जितनी लंबी रस्सी है, उतना दूर जा सकता है| इतनी ही उसकी स्वतंत्रता है| अगर आपने किसी कुत्ते को एक ही क्षेत्र में रहने के लिए ट्रेन(सिखाया) किया हुआ है, तो फिर उसकी स्वतंत्रता उतनी बड़ी हो जाती है| वह २० कि.मी. के दायरे में ही रहेगा|
इसी तरह, जीवन में प्रत्येक व्यक्ति के पास कुछ स्वतंत्रता होती है, और कुछ चीज़ें निश्चित हैं|
मनुष्यों में यह स्वतंत्रता होती है, क्यों क़ि उनमें बुद्धि होती है| पशुओं का जीवन निर्धारित होता है| वे कभी भी बहुत ज्यादा नहीं खाते| उनका जीवन प्रकृति के साथ लय में होता है, लेकिन हम मनुष्यों में आज़ादी होती है, कि या तो हम प्रकृति के साथ लय में रहें, या फिर प्रकृति के नियमों का उल्लंघन करें| क्या आप समझ रहें हैं, मैं क्या कह रहा हूँ?
जब आप प्रकृति के साथ संरेखित हो जाते हैं, तब सामंजस्य होता है| और जब आप प्रकृति के नियमों के विरुद्ध जाते हैं, तब वही सामंजस्य टूट जाता है| इसलिए, जीवन में, बहुत सी बातें निर्धारित होती हैं, और कुछ बातें आपकी इच्छा के अनुसार होती हैं|
मैं आपको एक और उदाहरण देता हूँ| जब बारिश हो रही होती है, तब आप उसमें भीगे या नहीं, यह आपकी इच्छा पर निर्भर करता है| आप चाहें तो छाता या रेनकोट (बरसाती) ले सकते हैं और भीगने से बच सकते हैं|
तो जीवन इच्छाशक्ति और भाग्य दोनों का समावेश है| आप जितना ध्यान में गहरा जायेंगे, उतने ही अधिक प्रसन्न आप होंगे, जितना आप प्रकृति के साथ एक सुर में आएंगे, उतनी अधिक आपकी इच्छाशक्ति प्रबल होगी|

प्रश्न : जब जीवन समाप्त हो जाता है, तब दुनिया तो समाप्त नहीं होती| लेकिन जब दुनिया समाप्त हो जाती है, तब जीवन का अंत हो जाता है| क्या इस दुनिया का कोई अंत है?
श्री श्री रविशंकर : अगर आप किसी टेनिस की गेंद को देखें, और फिर मुझसे पूछें कि यह गेंद कहाँ से शुरू होती है, और कहाँ खत्म होती है, तो मैं क्या कह सकता हूँ?
इस सृष्टि में तीन चीज़ें हैं, जो न तो कभी शुरू होती हैं, और न ही कभी खत्म होती हैं|
१.        दैवीय प्रकाश, या चेतना, जिसका न तो कोई आरंभ है, और न ही कोई अंत|
२.      जीवन का कोई आरंभ नहीं है, और कोई अंत नहीं है|
३.      यह पृथ्वी, हमारी दुनिया का कोई आरंभ नहीं है, और कोई अंत नहीं है|

यह पृथ्वी गोल है| यह अपना स्वरुप बदल लेगी, मगर यह चलती रहेगी| घबराईये नहीं, दुनिया खत्म नहीं हो रही है, खास तौर पर वर्ष २०१२ में| दुनिया केवल अमेरिका की फिल्मों में खत्म होती है|

प्रश्न : मुझे स्वप्न आया था, कि मैं इस कोर्स में आ रहा हूँ, और मुझे आपके स्वप्न भी आते रहें हैं| क्या स्वप्न एक तरह का अंतर्ज्ञान होते हैं?
श्री श्री रविशंकर : स्वप्न ६ प्रकार के होते हैं| क्या आप जानना चाहते हैं?
पहला प्रकार है, दिन में सपने देखना| उसे हम छोड़ देते हैं| यह अपने आप में कोई सपना नहीं है|
दूसरे प्रकार का स्वप्न है, जो आपके भूतकाल के अनुभवों के बारे में होता है| आपके भूतकाल के अनुभव और छाप स्वप्न की तरह आते हैं|
तीसरे प्रकार का स्वप्न है आपकी इच्छाएं और भय; वे भी आपको स्वप्न की तरह आती हैं|
चौथे प्रकार का स्वप्न होता है अंतर्ज्ञान, या किसी विषय में पूर्वज्ञान हो जाना| जो होने वाला है, वह हमें पहले से ही स्वप्न के रूप में ज्ञात हो जाता है|
पांचवे प्रकार के स्वप्न का आपसे कोई सीधा सम्बन्ध नहीं होता| आप जिस जगह पर सो रहें हैं, यह उस पर निर्भर करता है| आपको कुछ चेहरे दिखते हैं, या कुछ ऐसी भाषाएँ सुनायी देती हैं, जिनके बारे में आप कुछ नहीं जानते|
छटवें तरह के स्वप्न होते हैं, जो इन सबका मिश्रण होते हैं| और ९९ प्रतिशत सपने इसी तरह के होते हैं| तो इसलिए, उत्तम है, कि अगर आप स्वप्न को समझने की कोशिश न करें, या उनके बारे में ज्यादा परेशान न हों!
आप नहीं जानते, हो सकता है, आपके कुछ स्वप्न अंतर्ज्ञान या पूर्वज्ञान हो सकते हैं, और कुछ केवल आपके भय या चिंता को दर्शा सकते हैं| इसलिए, बेहतर है, कि आप उसे भूल जाएँ, एक कप चाय पीएं, और खुश रहें| सपने से जाग जाएँ!
ज्ञानी लोग तो इस जीवन को भी स्वप्न की तरह देखते हैं| आपको अपने पूरे अतीत को स्वप्न की तरह देखना है| वह सब चला गया, है न? बिल्कुल एक सपने की तरह|
सपने और कुछ नहीं, बल्कि पुरानी बातों की स्मृतियाँ हैं| वह सब तो चला गया! और यह वर्तमान भी सपना ही तो बन जाएगा| यह भी चला जाएगा| और कल, परसों, और तीन साल बाद, आप सब अपने घर चले जायेंगे, और कहेंगे, ओह, हम सब बुल्गारिया में थे| यह सब एक सपने की तरह है|’
इसी तरह अगर आप सोचें, आप हर एक दिन के बाद दूसरा दिन जियेंगे, एक दिन के बाद दूसरा दिन, इसी धरती पर अगले ५० साल तक, और फिर आप अचानक जागेंगे, और कहेंगे, ओह, यह सब तो एक सपने की तरह था, ये सब तो चला गया|’ सही है न!
और यह ज्ञान ही है, जो हर बुरे सपने को एक सुन्दर सपने में परिवर्तित कर देता है|
प्रश्न : क्या कोई आत्मा उसी परिवार में दोबारा जन्म ले सकती है?
श्री श्री रविशंकर : ऐसा संभव है, यदि व्यक्ति अपने नाती-पोतों से बहुत अधिक आसक्त है| अगर मन में एक यही विचार है, मेरा पोता, मेरा पोता, तब वे वहां जन्म लेंगे| (चित्त पर) सबसे गहरा प्रभाव ही अगले जन्म का कारण बनता है|

प्रश्न : क्या केवल व्यक्तिगत कर्म होता है, या कोई राष्ट्र कर्म भी होता है?
श्री श्री रविशंकर : कर्म की इतनी सारी परतें होती हैं| व्यक्तिगत कर्म, पारिवारिक कर्म, सामाजिक कर्म, राष्ट्र कर्म और समय कर्म भी| कर्म की इतनी सारी परतें होती हैं| लेकिन यह सब बदला जा सकता है|
जब आप बैठ कर ध्यान करते हैं, तो कितनी तरह के परिवर्तन होते हैं| यह मत सोचिये, कि आप केवल अपने लिए ध्यान कर रहें हैं| जब आप क्रिया करते हैं, या ध्यान करते हैं, आप न केवल अपना कर्म सकारात्मक बना रहें हैं, बल्कि आप इस ग्रह पर भी प्रभाव डाल रहें हैं, और बाक़ी सूक्ष्म स्तरों पर भी प्रभाव डाल रहें हैं| जब आप ध्यान करते हैं, तो वह मृत लोगों तक भी शान्ति और संतुष्टि पहुँचाता है|

प्रश्न : हम अपने जीवन का लक्ष्य कैसे खोजें?
श्री श्री रविशंकर : अपना लक्ष्य जानने के लिए, पहले हमारे मन को साफ़ होना पड़ेगा| और खाली और खोखला ध्यान मन को बहुत अधिक साफ़ कर देता है| जब मन साफ़ होता है, तब अंतर्ज्ञान उभरता है|
यह सोचिये, कि किस तरह मैं लोगों के काम आ सकता हूँ, और जब आप अपने आस पास के लोगों के काम आने लगते हैं, जब आपका जीवन सेवा के लिए ही होता है, तब आप पाते हैं, कि आपका जीवन बहुत सार्थक और परिपूर्ण है|
अगर आपका जीवन केवल अपने आप पर ही केंद्रित है, मेरा क्या होगा, मुझे क्या मिलेगा? मैं और कितना ज्यादा खुश हो सकता हूँ? अगर आप सिर्फ इसी बात पर ध्यान देंगे, तो आप अवसाद से ग्रस्त हो जायेंगे|
देखिये, आपकी सारी शक्तियां और प्रतिभाएं केवल दूसरों के प्रति उपयोग के लिए ही हैं| अगर प्रकृति ने आपको अच्छी वाणी दी है, तो क्या वह आपके लिए है, या दूसरों के लिए? क्या आप खुद ही गातें हैं और अपना गाना खुद ही सुनते हैं? अगर प्रकृति ने आपको एक सुन्दर आवाज़ दी है, तो वह दूसरे लोगों को आनंद देने के लिए हैं|
अगर प्रकृति ने आपको एक सुन्दर रूप दिया है, तो वह आपके लिए है, या दूसरों के लिए? यह दूसरे लोगों के लिए है, ताकि वे आपको देखें और आनंदित हों| तो आपके अंदर जो भी शक्ति है, वह आपके लिए है ही नहीं, वह दूसरों के लिए हैं|
कोई भी शक्ति या प्रतिभा जो आपके पास है, उसका दो तरह से उपयोग हो सकता है| या तो आप उस ताकत का प्रयोग दूसरों से लड़ने में लगाएं, या फिर उसका प्रयोग दूसरों की सेवा में लगाएं| सदियों से, दुनिया के लोग शक्ति पाते हैं, मगर सिर्फ लोगों से लड़ने के लिए, है न? किसी ने शक्ति पायी, सिर्फ इसलिए ताकि वह दूसरे से लड़ सकें, और आप किससे लड़ते हैं ; सिर्फ उससे जो आपके बराबर हो|
निश्चित ही कोई अपने से कम ताकत वाले से नहीं लड़ेगा| कोई उसी से लड़ेगा, जो कम से कम शक्ति में उसके बराबर हो| और किसी को भी अपनी शक्ति का प्रयोग लड़ कर, उसमे आनंद नहीं मिला है| अगर आप इस मिली हुई शक्ति का सदुपयोग करते हैं, दूसरों की सेवा के लिए करते हैं, तब वह तृप्ति और खुशी देता है|
तो आपके पास जो भी कुछ है ; शक्ति, सौंदर्य, धन, रूप, वाणी, वे सब सदुपयोग करने के लिए ही हैं, दूसरों की सेवा के लिए| तब आप पायेंगे, कि आपका जीवन कितना परिपूर्ण है|

प्रश्न : (मानसिक रूप से असंतुलित बच्चों के बारे में प्रश्न)
श्री श्री रविशंकर : बस उनके पास जाईये, और उनके साथ कुछ देर खेलिए| इतना काफी है| ऐसा मत सोचिये, कि वे दुखी हैं, या उदास हैं| वे किसी दूसरे ही आयाम में रहते हैं| वे यहाँ आपसे सेवा लेने आयें हैं, बस!

प्रश्न : अगर कोई मदद लेने से इनकार करे, तो क्या हमें उनकी सेवा करने का अधिकार है? यह जानते हुए, कि उनकी इच्छाशक्ति पूजनीय है, क्या हमें फिर भी उनकी मदद करनी चाहिये?
श्री श्री रविशंकर : मैं आपसे एक प्रश्न पूछना चाहता हूँ| मान लीजिए, कि एक बच्चा एक छोटे से चबूतरे पर भाग रहा है, और वहां से गिरने का खतरा है, तो आप क्या करेंगे? क्या आप उस बच्चे को उसकी स्वतंत्रता देंगे? नहीं, आप उस बच्चे को रास्ता दिखायेंगे, और उसे वापस ले आयेंगे, है न?
इसी तरह अगर कोई ड्रग्स (नशीले पदार्थ) लेता है, और आप जानते हैं, कि यह उनके लिए हानिकारक है, तो आप क्या जाकर उनकी मदद नहीं करेंगे? इसी तरह हमें पूर्णतया कोशिश करनी चाहिये, कि हम अपनी कुशलता का उपयोग करते हुए लोगों को परेशानियों से निकालें|
मान लीजिए, परिवार में कोई मानसिक रूप से बीमार है| और वह दवाईयां लेने से इनकार करता है, तो परिवार क्या करता है? उसे ऐसा ही छोड़ देता है? वह हिंसक हो सकता है, और सबको चोट पहुंचा सकता है| तो जो परिवारवाले समझदार होते हैं, वे उसकी दवा को जूस में या दूध में मिला कर दे देते हैं, और वह उसे पीने के बाद बेहतर महसूस करता है|
तो इसलिए, पूर्ण कुछ भी नहीं है| आपको किसी परिस्थिति के मुताबिक ही अपनी बुद्धि लगानी होती है| आप किसी की मदद करने के लिए उसे विवश तो नहीं करेंगे| मान लीजिए, कोई सड़क के गलत तरफ गाड़ी चलाना चाहें, तो वे यह तो नहीं कह सकते कि यह तो मेरी इच्छाशक्ति है कि मैं गलत तरफ गाड़ी चला रहा हूँ| जब आप समाज में रहते हैं, तो आपको कुछ नियमों का पालन तो करना ही होता है| इसी तरह, अगर आप किसी की मदद भी करना चाहते हैं, तो आपको कुछ नियमों का पालन करना चाहिये| किसी पर ज़ोर मत डालिए, लेकिन साथ ही साथ किसी का इंतज़ार भी मत करिये, कि वे आपको अपने घर की आग बुझाने का निमंत्रण देंगे| अगर आपके पड़ोसी के घर में आग लग गयी है, तो आप उनके फोन का या निमंत्रण पत्र का इंतज़ार नहीं करेंगे, और फिर आग बुझाने नहीं जायेंगे| आप भागेंगे, और आग बुझाने के लिए जायेंगे| आप स्वयंसेवक है न? समझें? इसलिए, हमेशा बीच का रास्ता लें|

प्रश्न : (अश्राव्य)
श्री श्री रविशंकर : हम से जो भी बन पड़ें, उनकी मदद के लिए वैसा करना चाहिये| मैं आपके साथ हूँ| हम सबको एक टीम बनानी चाहिये, उनसे संपर्क करना चाहिये, उनके लिए नव-चेतना शिविर करने चाहिये और उन्हें शराब की लत से बाहर आने के लिए मदद करनी चाहिये| जिप्सी अल्पसंख्यों के साथ सबसे बड़ी दिक्कत यह होती है कि वे बहुत शराब पीते हैं, और पीते ही रहते हैं| वे अपनी ५०-६० प्रतिशत तनख्वाह शराब पर खर्च कर देते हैं और यहाँ तक की अपनी बीवियों को भी मारते हैं, और वहां महिलाएं इतने दुःख में हैं| हमें यह ज़रूर बदलना चाहिये| हमें उनके लिए मुफ्त कोर्स करने चाहिये|

प्रश्न : मैं विद्यार्थियों के साथ काम करता हूँ| वे परिवार क्यों नहीं बनाते? वे क्यों एक दूसरे को खोज कर कोई रिश्ता नहीं बनाते?
श्री श्री रविशंकर : आप रिश्ते की खोज में हैं? हाँ? ठीक है, हम यहाँ एक वैवाहिक सर्विस शुरू करेंगे| सारे अविवाहित लोग उसमें नाम लिखवा लें|
प्रश्न : मैं बहुत ईमानदारी से ये सारे अभ्यास कर रहा हूँ, लेकिन मुझे लगता नहीं है कि मुझमें कोई बदलाव आया है| मैं अभी भी पाता हूँ कि मैं परेशान हो जाता हूँ, और यह मुझे उदास कर देता है|
श्री श्री रविशंकर : सुनिए, आप अभी कैसे हैं? क्या आप अभी प्रसन्न हैं? अतीत के बारे में भूल जाईये| क्या आप यहाँ होने से खुश हैं? क्या आपको मज़ा आ रहा है? बस!
हम सबके अंदर दो चीज़ें होती हैं| एक जो कभी बदलती नहीं| चेतना का एक अविरल बहाव, जो कभी बदलता नहीं| और उसके आस पास के सारी चीज़ें बदलती रहती हैं| तो जब आप पीछे मुड कर अपनी जिंदगी को देखते हैं, तो आप वह पुराने व्यक्ति नहीं हैं, जो पहले थे| लेकिन आप यह भी देखते हैं, कि आप तो वही व्यक्ति हैं| ये दोनों बातें, साथ साथ हैं|
आपको कब ऐसा लगता है, कि आप बदले नहीं हैं? जब आप दुखी होते हैं? मान लीजिए, किसी ने आपका बटन दबाया, और आपको गुस्सा आ गया, आपने कहा, ओह, मैं तो एकदम नहीं बदला, मुझे तो अभी भी गुस्सा आता है|’ यही दिक्कत है, है न? यह सच नहीं है| अतीत में, आप गुस्सा हुए, लेकिन वह गुस्सा आपके मन में महीनों तक रहा| आपको अभी भी गुस्सा आता है, लेकिन अब वह केवल कुछ मिनटों के लिए रहता है, या जब तक आप शॉर्ट क्रिया नहीं करते, और फिर आप वापस ताज़ा हो जाते हैं|