ललक चैतना के परिपक्व होने का संकेत है!!!


२२
२०१२ बैंगलुरु आश्रम
मई

प्रश्न : प्रिय गुरूजी, योगसार उपनिषद में आपने कहा है कि भगवान अवैयक्तिक है| गुरु दोनों है, व्यक्तिगत और ईश्वरीय| क्या आप इसके बारे में हमें और बता सकते हैं? भगवान अवैयक्तिक कैसे हैं?
श्री श्री रविशंकर : हाँ, यह दोनों है| जैसे आप तत्व है, फिर भी अरूप है| आपके शरीर का रूप है पर क्या आपके मन का कोई रूप है? नहीं| उसी प्रकार, यह प्रत्यक्ष ब्रह्माण्ड भगवान का रूप है और अप्रत्यक्ष चेतना, अंतरिक्ष एक अरूप रूप है|

प्रश्न : गुरूजी, आपने उपनिषदों में कहा है कि जब तक हमारी आत्मा अपने आप को प्रकट नहीं करना चाहे तब तक हम में ज्ञानोदय नहीं होता| इस पूरे चित्र में लालसा कहाँ आती है? मुझ में कुछ है जो स्वयं को जानना चाहता है पर वो सामने नहीं आता| क्यों?
श्री श्री रविशंकर : हाँ| जब फल पक जाता है तो उसका रंग बदल जाता है| एक सेब जब पक जाता है तो उसका रंग बदल जाता है| जैसे पपीता पकने पर पीले रंग का हो जाता है| उसी तरह ललक चेतना के परिपक्व होने का संकेत है|

प्रश्न : गुरूजी, आत्मा एक है, तो फिर हमारे कर्मों को एक शरीर से दूसरे शरीर तक क्या ले के जाता है?
श्री श्री रविशंकर : हाँ, आत्मा दो स्तर पर होती है; सर्वात्मा, और जीवात्मा| जैसे गुब्बारे के अंदर भी हवा होती है, पर वह गुब्बारे के भीतर भी है, ठीक है न? वह जीवा है| तो जो छाप है वह जीवा बनती है पर हवा जो अंदर है, वह ही बाहर है|

प्रश्न : प्रिय गुरूजी, हर चीज़ का दुष्प्रभाव होता है| ज्ञानोदय के दुष्प्रभाव क्या हैं?
श्री श्री रविशंकर : इसका कोई उल्टा प्रभाव नहीं है, केवल सीधा प्रभाव है| यह सीधा असर करता है|

प्रश्न : प्रिय गुरूजी, हमें बताइए कि श्याम ऊर्जा क्या है? आपने इसके बारे में हाल ही में एक सत्संग में कहा था| इन्टरनेट पर किये व्याख्यानों से समझ पाना कठिन है|
श्री श्री रविशंकर : श्याम ऊर्जा के बारे में बहुत सा ज्ञान है| सारा जगत श्याम ऊर्जा से भरा है| जब वे कहते हैं कि सूर्य गोल है, वो इसलिए क्योंकि सूर्य के आसपास श्याम ऊर्जा है जो उसे गोल रख रही है| सारे तारे, ग्रह आदि सब श्याम ऊर्जा में होते हैं|
जैसे आसमान श्याम है पर सितारे रौशनी का स्रोत हैं| हम सोचते हैं कि ये तारे वस्तु हैं पर विज्ञान कहता है नहीं, यह सितारों के बीच की जगह है जो श्याम ऊर्जा से भरी है, एक गहरे महासागर की तरह| आप उसे नहीं देख सकते पर सितारों के बीच की इस ऊर्जा को श्याम ऊर्जा कहते हैं|
यही शिव तत्व है| पुराने ज़माने के लोग यह जानते थे और उसे शिव तत्व के नाम से जानते थे; सर्वं शिवामयम जगत| सारे ब्रह्माण्ड को शिव तत्व ने जोड़ रखा है|

प्रश्न : अष्टवक्र गीता में आपने बात की है कि महात्मा गाँधी की एक बहुत ही हिंसक मौत हुई थी| क्या आप कुछ कह सकते हैं कि ईसा मसीह को क्यों सूली पर जान देनी पड़ी?
श्री श्री रविशंकर : मुझे नहीं लगता हमें इस पर बहुत ज़्यादा गौर करना चाहिए| क्यों? क्या हुआ और कब? इस ब्रह्माण्ड का और हर घटना के होने का एक ही कारण है, और वो है; परम करना करण्य, सब कारणों का कारण एक ही शिव तत्व, ईश्वरीय इच्छा है| बस इस विषय पर इतना ही समझ लेते हैं|

प्रश्न : कर्म या पाप कौन करता है? क्या वो शरीर है या आत्मा? और यदि आत्मा पाप करती है तो शरीर को क्यों सहना पड़ता है?
श्री श्री रविशंकर : देखो, इन सब बारीकियों और भ्रांतियों में मत जाये| यदि आप इनके बारे में जानने के इच्छुक हैं, तो अनुसंधान करे ;मैं कौन हूँ? क्या मेरा कर्म है या नहीं? यदि कर्म है तो कहाँ है? यह सब आपको बैठ कर सोचना है|
यदि मैं आपको उत्तर दूंगा, तो वो उत्तर आपको संतुष्ट नहीं करेगा क्योंकि वो बराबर अनुभव के स्तर पर नहीं होगा| इसलिये, यदि आप मुझे सुनेंगे, फिर कुछ दिन बाद आपको कुछ और प्रश्न होंगे तो बार बार आप उसी राह पर रहेंगे| उचित है कि आप मौन में रहें, गहरे ध्यान में जायें, और कुछ प्रश्नों के लिये उत्तर स्वयं ही सहज प्रकट हो जायेंगे|

प्रश्न : गुरूजी, अधिकतम प्रयत्न करने के बाद भी मैं असफल क्यों हो जाता हूँ? ऐसी स्थिति में मैं क्या करूं?
श्री श्री रविशंकर : यदि आप सही में वो चाहते हैं जिस ओर आपके प्रयत्न हैं तो उसे पकड़ कर रखिये| पर यदि आपको लगता है उस कार्य में और प्रयत्न करना व्यर्थ है, तो किसी और कार्य की तरफ बाद जाये, जो आसान हो|
एक बार भारत में एक प्रधान मंत्री थे| वे कुछ महीनों के लिए ही इस पद पर थे|
इन सज्जन ने मुझे दिल्ली के बहार अपने खेत पर बुलाया| मैं वहां पर गया| जब मैं वहां था, वे बोले, “गुरूजी, ४० वर्ष तक मैंने सब कुछ किया, अच्छे और बुरे खेल खेले इस कुर्सी को पाने के लिए, प्रधान मंत्री होने के लिए| अब मैं प्रधान मंत्री हूँ तो यह पाता हूँ कि इस कुर्सी के लिए मैंने इतना संघर्ष किया और अब मुझे यह अर्थहीन लगती है| पहले मैं आराम से सो सकता था पर अब ५० पुलीस वाले पहरा देते हीं और मैं अपने ही घर के बाहर नहीं बैठ सकता| जीवन भर का संघर्ष व्यर्थ था|”
मैंने कहा, “इसे समझने के लिए आपको इतने वर्ष लगे| कोई बात नहीं, अब तो आपको एहसास हुआ| बहुत लोग यह समझ भी नहीं पाते|”
जो उत्तर अफ्रीका के शासकों के साथ हो रहा है, हजारों लोगों को मार रहे हैं, केवल सत्ता के लिए| यह मूर्खता है| इन सज्जन को कम से कम इसकी व्यर्थता का एहसास तो हो गया| मैंने उनसे कहा, “आप इस बारे में किस्मत वाले हैं”|
इसी तरह, यदि आप दिल से कुछ पाना चाहते हैं, तो अपना सारा जीवन, सारी शक्ति उसमें डाल दें| पर यदि आपको लगता है कि कुछ और इस से बेहतर है, तो अपने प्रयत्न उसमे डाल दें, उस दिशा में बढ़ जायें|
एक दिन एक युवक मेरे पास आये और कहने लगे कि वो सी ए की परीक्षा में सात वर्ष से असफल हो रहा है और उसके माता पिता चाहते हैं कि वो इस बार भी परीक्षा में बैठे| मैंने कहा, “तुम ऐसा क्यों करना चाहते हो? तुम सात बार असफल हो चुके हो! क्या तुम्हें इस बार सफलता की उम्मीद है?” वह बोला, “नहीं, मुझे सफल होने की कोई उम्मीद नहीं है”|
तो जब आपको कोई उम्मीद नहीं है सफल होने की तो क्यों समय बर्बाद करना? कोई व्यवसाय करो| कोई और नौकरी करो| यह अधिक समझदारी की बात होगी|

प्रश्न : मैं हमेशा ईर्षालु और अहँकारी हो जाता हूँ, और दूसरों से अपनी तुलना करता रहता हूँ| मैं इस आदत से छूटना चाहता हूँ| मुझे क्या करना चाहिए?
श्री श्री रविशंकर : आपका इस आदत को छोड़ने की चाह करना अर्थात आप आधे लक्ष्य तक पहुँच गए हैं| अपने प्रयत्न चालू रखिये| साधना और सत्संग में और रहिये और आप इस आदत से बाहर आ जायेंगे|

प्रश्न : गुरूजी, भगवान का नाम जपने का क्या महत्व है? महाराष्ट्र में कहते हैं यदि व्यक्ति विट्ठल का नाम जपता रहे, तो उसे योग के सारे फायदे मिल जाते हैं|
श्री श्री रविशंकर : हम तो यह हर शाम सत्संग में करते हैं| हम ईश्वर का नाम जपते हैं| हाँ, जैसे जप करते करते आप अजप की स्थिति में आ जाते हैं, जहाँ आप मंत्र दोहराने के लिए दिमाग से प्रयत्न लगाए बिना ही जप करने लगते हैं, आप शांत हो जाते हैं और उस जप से आगे एक समाधि की स्थिति में चले जाते हैं| इसे भाव समाधि कहते हैं|
भाव समाधि एक ऐसा पहलू है जिसका हमें अभ्यास करना चाहिए| पर ज्ञान के बिना भक्ति परिपक्व नहीं होती| ज्ञान और भक्ति दोनों साथ साथ चलने चाहिए|

प्रश्न : गुरूजी, क्या अंडा शाकाहारी है या मांसाहारी?
श्री श्री रविशंकर : सत्संग में बैठकर अंडे के बारे में चर्चा करना, मेरे ख्याल से यह उचित नहीं है| अंडे को छोड़िये, ब्रह्माण्ड के बारे में बात करिये| यहाँ हम शरीर और ब्रह्माण्ड के बारे में चर्चा करते हैं, अंडे के बारे में नहीं| आप गूगल में देख सकते हैं, कि अंडे के क्या फायदे और नुकसान हैं|
कल ही मैंने एक डॉक्टर से सुना, जिन्होंने काफी शोध किया है, कि हमें हर रोज़ १० मिनट के लिए सूरज को ताकना चाहिये| ऐसा कहते हैं, कि हमारी आँखों में कुछ अनूठी कोशिकाएं होती हैं, जो सौर ऊर्जा को सोख लेती हैं, और शरीर में रक्त बनाती हैं| यह कुछ कुछ फोटोसिन्थेसिस जैसा होता है| सूरज की किरणों को सोख कर, पेड़-पौधे उसे क्लोरोफिल में परिवर्तित कर देते हैं|
सूरज की रोशनी में से यही पदार्थ हमारी आँखों की रक्त कोशिकाएं सोख लेती हैं, और फिर उन्हें रक्त में परिवर्तित कर देती हैं| वह बहुत ही अच्छी प्रस्तुति थी| इसलिए, रक्त को शुद्ध करने के लिए या उसका उत्पादन बढ़ाने के लिए, सूरज की ओर ताकिये | हमारे पूर्वज भी तो यही कहा करते थे!
संध्या-वंदन का क्या अर्थ होता है? आप अपने हाथों में जल लेकर, उगते हुए सूरज की तरफ मुहँ करके खड़े हो जाएँ, और तब तक सूरज की तरफ ताकते रहें, जब तक कि वह सारा पानी आपके हाथों से निकल न जाए| आप ऐसा तीन बार करें, और इसमें करीब १० मिनट लगते हैं| इसके बाद आप सूरज की ओर देखते हुए, गायत्री मन्त्र का उच्चारण करें|
इसी तरह शाम को भी करें|
जब आप सूरज की तरफ ताकते हैं, तो शरीर में ऊर्जा का प्रसारण होता है|
ऐसा भी कहते हैं कि हमें ज्यादा से ज्यादा कच्चा और प्राकृतिक भोजन, कच्ची सब्जियां, फल और जूस लेने चाहिये; यही हम सबको लेना चाहिये| हमारे भोजन में ८० प्रतिशत खाना कच्चा होना चाहिये और केवल २० प्रतिशत पका होना चाहिये| और उन्होंने बहुत से लोगों के उदाहरण दिए, जिन्हें ब्रेन ट्यूमर था, कैंसर था, जो केवल तीन हफ़्तों में कच्चे खाने और सूरज की ओर ताकने से ही ठीक हो गये|
हाँ, बेशक सुदर्शन क्रिया से भी लाभ होता है|
और हाँ, वह क्रीम जो हम अपने शरीर पर लगते हैं, अगर आप उस क्रीम को खायेंगे, तो आप मर जायेंगे, क्योंकि उनमें बहुत से हानिकारक केमिकल होते हैं| यही क्रीम है, जिसे हमारा शरीर सोख लेता है| यह सीधा हमारे रक्त-प्रवाह में शामिल हो जाती है| तो इसलिए, हमें अपने शरीर पर कभी भी ऐसा कुछ नहीं लगाना चाहिये, जिसे हम खा न सकें|
इसीलिये, आयुर्वेदिक क्रीम के अलावा कोई भी और क्रीम लगाने का कोई फ़ायदा नहीं है| चूहे मारने की दवा भी क्रीमों में मिलाई जाती है, तो कोई अगर इसे खा ले, तो वह मर जाएगा| त्वचा पर लगाने से कोई भी धीरे धीरे मर जाएगा|
पहले के दिनों में, हम मिट्टी के उघटन लगाया करते थे, दूध की मलाई, बेसन और हल्दी| हमें ये सब इस्तेमाल करने चाहिये, त्वचा को साफ़ रखने के लिए| यही हमें करना चाहिये|
मैं इसके बारे में कुछ सोचता हूँ| हमें कुछ इस तरह के और उत्पाद बनाने होंगे जो बेसन और ऐसी चीज़ों से बने हैं, जो कि खाए भी जा सकते हैं, और शरीर पर लगाये भी जा सकते हैं| मैं अपने डॉक्टर से बात करूँगा, कि वे कुछ ऐसी क्रीम बनाएँ, जिसमे कोई ज़हरीले पदार्थ न हों|

प्रश्न : क्या ज्ञानोदय होने से मनुष्य और अधिक संवेदनशील नहीं हो जाता? अगर हाँ, तो बहुत से ज्ञानी लोग क्यों अवांछित रूप से व्यवहार करते हैं?
श्री श्री रविशंकर : सुनिए, इस दुनिया में हर तरह के लोग होते हैं| अच्छे लोग हैं, साधारण लोग हैं और कुछ निकम्मे लोग भी हैं, और आपको इन सबके साथ चलना है| निकम्मे लोग आपके संकल्प को और अधिक मज़बूत करेंगे, साधारण लोग आपकी कुशलता को बाहर निकालेंगे और अच्छे लोग हमेशा आपको प्रोत्साहन देंगे|
तो आपको इन तीनों तरह के लोगों को स्वीकार करना है|

प्रश्न : जब मुझे मोक्ष के बारे में कुछ पता ही नहीं है, तो मुझे मोक्ष पाने की इच्छा कैसे आएगी?
श्री श्री रविशंकर : जब आपको बंधन का एहसास होगा, तभी आपको मोक्ष पाने की इच्छा होगी| जब आप सुखी है, और किसी तरह का बंधन महसूस नहीं करते, तब आपको मोक्ष पाने की अभिलाषा नहीं होगी|
जो खुशी की इच्छा नहीं रखता, उसे मोक्ष प्राप्त होता है, और जिसे मोक्ष पाने की भी इच्छा नहीं होती, उसे परम प्रेम प्राप्त होता है|
जो लोग प्रेम में होते हैं, उन्हें मोक्ष की ज्यादा परवाह नहीं होती| एक प्रेमी सोचता है, कि मोक्ष क्या है? मुझे इसकी ज़रूरत नहीं है| गोपियाँ यही कहतीं थीं हमें मोक्ष की ज़रूरत नहीं है, हमें किसी ज्ञान की ज़रूरत नहीं है, बस केवल प्रेम में रहने से ही हम प्रसन्न हैं|
प्रेम का स्वभाव ही मोक्ष है|

प्रश्न : गुरूजी, धर्म का ईश्वर के साथ क्या सम्बन्ध है?
श्री श्री रविशंकर : ऐसा क्या है, जिसके साथ ईश्वर का सम्बन्ध नहीं है, यह बताईये? ईश्वर का धर्म के साथ भी सम्बन्ध है, और अधर्म के साथ भी सम्बन्ध है| अधर्म का विनाश कर, धर्म की सत्ता कायम करना, यह भी ईश्वर की जिम्मेदारी| इसलिए ईश्वर हर चीज़ से संबद्ध है|
इसी तरह, पूजा के अनुष्ठान में कहते हैं, धर्मय नमः, अधर्मये नमः| हम दोनों को नमः कहते हैं| यह संसार धर्म और अधर्म का मिश्रण है, और ईश्वर का दोनों के साथ रिश्ता है; अधर्म का विनाश और धर्म की स्थापना|

प्रश्न : शिव तत्व क्या है?
श्री श्री रविशंकर : जब आप कहें, यह नहीं, यह नहीं, यह नहीं, और सब कुछ अलग हटा दें; तब जो बचता है, वही शिव तत्व है|

प्रश्न : गुरूजी, मैंने एक ऑनलाइन व्यापार में बहुत सा पैसा लगाया और वह सारा डूब गया| तब से मुझे सत्संग में कोई दिलचस्पी नहीं रह गयी| मुझे क्या करना चाहिये?
श्री श्री रविशंकर : सुनिए, सब कुछ एक न एक दिन चला जाएगा, हाँ? आपको भी जाना है और मुझे भी जाना है| आम तौर पर, पहले हम जाते हैं, और उसके बाद हमारा व्यापार जाता है| यहाँ पर व्यापार पहले चला गया और उसके पीछे पीछे हम जायेंगे| इसलिए, जो चला गया, उसके बारे में भूल जाईये और आगे बढ़िए|
जब आप पैदा हुए थे, तब तो आप अपने व्यापार के साथ नहीं आये थे| जब आप एक छोटे शिशु थे, किसी ने आपकी देखभाल करी, है न? किसी ने आपको भोजन दिया, आपका हाथ पकड़ कर चलना सिखाया, और आपको सुलाया| इसी तरह कोई न कोई आपकी अब भी देखभाल करेगा|
जिंदगी चलती रहती है, आप किसी चीज़ के बारे में चिंता मत करिये, और बस आगे बढ़ते रहिये|
हाँ, आपको दुःख ज़रूर होगा, आखिर आपने अपनी जिंदगी भर की कमाई किसी में लगाई और वह फेल हो गया, यह स्वाभाविक है कि आपको कष्ट होगा, लेकिन आप अपने कष्ट को त्याग करने के लिए बिल्कुल सही जगह आये हैं|

प्रश्न : लालच का अंत कहाँ है?
श्री श्री रविशंकर : कब्रिस्तान में; आप वहां लालची नहीं हो सकते|
यह बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है, कि लालच ने हमारे समाज में इतनी जड़ पकड़ ली है, बल्कि पूरी दुनिया में ही| ऐसा मत सोचिये, कि भ्रष्टाचार केवल भारत में ही है| मैं जहाँ भी जाता हूँ, यही बात है, बुल्गारिया में भ्रष्टाचार, रूस में भ्रष्टाचार, यूक्रेन में भ्रष्टाचार, हर देश भ्रष्टाचार के कारण त्रस्त है|
ग्रीस में भयंकर भ्रष्टाचार है; वह देश डूब गया है भ्रष्टाचार के कारण| बहुत से देशों में भ्रष्टाचार बहुत बड़ी समस्या है, ऐसा सिर्फ भारत में ही नहीं है|

प्रश्न : गुरूजी, अनहत नाद क्या होता है? उसे कैसे बनाते हैं और उसके फायदे क्या हैं?
श्री श्री रविशंकर : अनहत नाद का अर्थ ही है, कि जिसे किन्हीं दो चीज़ों से उत्पन्न नहीं किया जा सकता, बल्कि वह स्वतः ही उभरता है| आप ध्यान में गहन जायें, सिर्फ ध्यान में ही उसे कभी कभी सुना जा सकता है| ऐसा ज़रूरी नहीं है, कि हर एक किसी को उसे सुनना चाहिये| किसी को अनहत नाद सुनायी पड़ सकता है, किसी को कोई प्रकाश दिख सकता है, किसी को एक उपस्तिथि महसूस हो सकती है,अलग अलग प्रकार के अनुभव हो सकते हैं|

प्रश्न : गुरूजी, हमारी हिंदू पुराणों में कहते हैं, कि यह पृथ्वी एक कोबरा के सिर पर टिकी हुई है, और जब वह कोबरा अपना सिर उठाता है, तो पृथ्वी हिल जाती है| इसके पीछे क्या रहस्य है?
श्री श्री रविशंकर : देखिये, दो तरह के पृथ्वी-बल होते हैं, एक होता है केन्द्राभिमुख बल (सेंटरीपीटल फ़ोर्स) और एक केंद्रत्यागी बल (सेंटरीफ्युग्ल फ़ोर्स)| इन बलों की गति सीधी नहीं होती, बल्कि एक सर्प की तरह होती है| यह तथ्य हमारे पूर्वजों को ज्ञात था| पृथ्वी साँप के सिर पर नहीं टिकी है, लेकिन साँप से उनका अर्थ था, केन्द्राभिमुख बल, और वह जिसे केंद्रत्यागी बल कहते हैं| तो यह तथ्य इन प्रकार उनके द्वारा समझाया गया था| उदाहरण के लिए, भगवान शिव गले में सर्प लिए बैठे हैं,इसका अर्थ है, कि वे गहन ध्यान में हैं, जहाँ उनकी आँखें बंद हैं, जिसका अभिप्राय है कि वे सो रहें हैं; लेकिन वे सो नहीं रहें, अंदर से वे जागरूक हैं| इसे व्यक्त करने के लिए दिखाया गया है, कि शिवजी के गले में एक सर्प लटका हुआ है| नहीं तो क्या कारण है, कि भगवान शिव ने गले में सर्प लटका रखा है? अरे वे तो ब्रह्माण्ड के स्वामी हैं, क्या उन्हें कुछ और नहीं मिला गले में पहनने के लिए? ब्रह्माण्ड के स्वामी चाहें तो अपने गले में अलग अलग तरह के हार पहन सकते हैं, वे एक साँप को गले से क्यों लटकाएंगे? नहीं, हमारे पूर्वजों ने जो भी कुछ कहा, उसके पीछे इतने गहरे रहस्य छुपे हैं|
इसी तरह, पृथ्वी शेष नाग पर टिकी है , नाग मतलब केन्द्राभिमुख बल| एक साँप कभी भी सीधी चाल नहीं चलता, वह घुमावदार तरीके से आगे सरकता है| इसे केन्द्राभिमुख बल कहते हैं| केन्द्राभिमुख बल अर्थात वह जो सीधा नहीं जाता, और पृथ्वी अपनी धुरी पर घूमती है, और साथ साथ सूरज के चारों ओर चक्कर भी लगाती है| तो ये दो तरह के बल हैं ,केन्द्राभिमुख बल और केंद्रत्यागी बल| इसी को पूर्वजों ने कोबरा के रूप में व्यक्त किया है|
और कोबरा किस पर खड़ा है? वह एक कछुए पर स्थित है, और कछुआ प्रतीक है स्थिरता का| यह बहुत रोचक है!
अब यह भी कहते हैं, कि अगर बृहस्पति (जुपिटर) ग्रह नहीं होता, तो पृथ्वी ग्रह बच नहीं सकती थी| बृहस्पति ग्रह क्या करता है, कि बाहरी अंतरिक्ष से जो भी उल्का आते हैं, ब्रहस्पति उनको अपनी तरफ खींच लेता है, और पृथ्वी की रक्षा करता है| बाहरी अंतरिक्ष से इतने सारे उल्का, छोटी आकाशीय वस्तुएं बरसती रहती हैं और बृहस्पति क्या करता है, उन सबको अपनी ओर खींच लेता है और पृथ्वी को बचाता है|
नासा ने इस बारे में बहुत ही सुन्दर एक प्रस्तुति बनाई है|
हमने कहा था, कि गुरु ही इस पूरे ब्रह्माण्ड के रक्षक हैं| इसलिए, इस ग्रह को भी यही नाम दिया गया, गुरु (जुपिटर) क्योंकि यह पृथ्वी की रक्षा करता है|