समाधि के एक क्षण में सदियों का विश्राम है!!!


२२
२०१२ ध्यान के रहस्य, तीसरा दिन
अप्रैल
हम जो पिछले दो दिन से कर रहे हैं, अब हम उसको संक्षेप में दोहरा लेते हैं| कैसे ध्यान बहुत तरह से किया जा सकता है| ध्यान एक घटना है, यह पहली बात है| दूसरी बात, यह सहज है| ध्यान के लिए मुख्य है सहजता| यह कुछ करना नहीं, बल्कि कुछ न करना है, और यही ध्यान है| ऐसी परिस्थिति पैदा करना जिसमे हमें कुछ न करना हो, इस पर ध्यान देना बहुत महत्वपूर्ण है|
तो यह कैसे हो सकता है? हमनें बहुत से तरीके देखे| शारीरिक क्रिया, योग, ताय ची ये सब मन को कुछ हद तक शांत करते हैं| पूर्ण रूप से नहीं लेकिन कुछ सीमित ध्यानस्थ अवस्था,  व्यायाम और शारीरिक क्रिया से यह आ सकता है|
दूसरा है प्राणायाम| यह और भी महत्वपूर्ण है क्योंकि हमारे पास पांच तत्व है, पंचकोश हैं| शारीरकि, प्राणिक जो जीवन लय कि शक्ति है, फिर हमारा मन या चेतना है; फिर अंतर्ज्ञान का तत्व जो चेतना का और भी शालीन रूप है, और फिर, परम आनंद|
साधारणतः हम सोचते हैं कि मन शरीर के अंदर है, पर यथार्थ में इसका विपरीत है| शरीर मन में वास करता है| मैं अक्सर उदाहरण देता हूँ फेंटम आर्म का| यदि मनुष्य की बांह शरीर से कट भी जाए, व्यक्ति सोचता है वो बांह अभी भी है; यानी, सूक्ष्म शरीर जो अभी भी है|
तो श्वास के तरीकों और व्यायाम से मन बहुत शांत, स्थिर और प्रसन्न बनता है| और हमारी किसी भी पांच इन्द्रियों से मन ध्यानशील हो सकता है| स्वाद, दृष्टि, गंध, ध्वनि और स्पर्श से|
फिर, भावनाओं के ज़रिये; उत्तेजित, सुसंस्कृत भावों से| प्रेम, सहानुभूति, सेवा भाव, ये सब कुछ मात्रा में मन की शान्ति लाते हैं; मन स्थिर और शांत हो जाता है| भावनाओं से आप वही ध्यानशील स्थिति पा सकते हैं|
फिर, बोद्धिक समझ से| एक उदहारण जो मैं देता हूँ, जब आप अंतरिक्ष संग्रहालय में जाते हैं, या कोई अंतरिक्ष की फिल्म देखते हैं तब आप धरती को सारे अंतरिक्ष के संदर्भ में देखते हैं, कि धरती कितनी छोटी है, और कहाँ आप है और कहाँ ये सारी सृष्टि है| यह एहसास जो बुद्धि को उत्तेजित करता है वह जीवन में एक नया संदर्भ लाता है और मन को ध्यानशील बनाता है| मन की गिटपिट बंद हो जाती है|
मन सदैव बोलता रहता है, दूसरों में गलतियां निकालता रहता है| या पाने में, और अचानक आप पाते हैं कि यह सब सृष्टि की और जीवन की विशालता के सामने कितने छोटे हैं, तुच्छ है| जीवन के प्रति यह जागरूकता एकदम से आपको स्थिरता, शान्ति के एक अलग स्तर पर ले जाती है|
तो, बुद्धि को उत्तेजित करने से भी ध्यान होता है|

प्रश्न : भक्ति कैसे अहम् को परिवर्तित कर सकती है, कि हम स्वयं को पा सकें, इस पर कृपया आप कुछ बोल सकते हैं?
श्री श्री रविशंकर : भक्ति क्या है? यह प्रेम का एक रूप है| अहम् क्या है? यह एक दूरी, एक सीमा है; एक दीवार; एक पहचान|
प्रेम इस पहचान को मिटाने का प्रयत्न करता है; प्रेम विलीन करने की कोशिश करता है| अहम् एक तरफापन बना के रखना चाहता है| ये दोनों अलग अलग भूमिकायें निभाते हैं और किसी किसी समय पर एक साथ हो सकते हैं|
तो जब प्रेम है, उस क्षण अहम् नहीं हो सकता, और जब अहम् है तब प्रेम नहीं हो सकता| जब आप कोई चुनौती स्वीकार करते हैं, तब प्रेम काम नहीं करता, अहम् काम करता है| अहम् चुनौतियां ले सकता है| पर जब आप विश्राम करना चाहते हैं और आनंद लेना चाहते हैं, तब अहम् नहीं प्रेम काम करता है| क्या आप समझ रहे हैं मैं क्या कह रहा हूँ?
इसी लिए सृष्टि नें आप में यह दोनों डाले हैं| प्रेम भी और अहम् भी डाला है| पर यदि आप अहम् में उलझे हैं, यह अपने जूतों में फंसे रहने जैसा है| आप नहीं जानते इन्हें अपने पैरों से कैसे निकालें| फिर आप जूतों के साथ ही नहा रहे हैं, जूतों को पहन कर ही सो रहे हैं| आपको पता होना चाहिए कि कब जूते उतारने हैं और आराम से रहना है|
प्रेम पहली चीज़ है जो जीवन में हुई है| जैसे ही बच्चे का जन्म होता है और वो अपनी आँखें खोल कर अपनी माँ को देखता है, वहां प्रेम है| अपनी माँ से मिलने वाली पहली नज़र में वो प्रेम पाता है और माँ को प्रेम देता है| पर तीन साल की उम्र में अहम् आता है| पहचान सशक्त हो जाती है और फिर बढ़ती जाती है, कभी कभी व्यक्ति उसके साथ अटक जाता है|
पर आप जब बहुत बूढ़े हो जाते हैं; बहुत से वृद्ध लोग यदि आप देखें, उनमे कोई अहम् नहीं होता| वे एक बच्चे के जैसे हो जाते हैं| नब्बे साल के उपरान्त लगभग कोई भी अपना अहम् बना कर नहीं रह सकता| तीन साल की आयु से पहले आप अहम् पा नहीं सकते और नब्बे साल के बाद भी आप उसे नहीं पा सकते| यह काफी हद तक यौन क्रिया के जैसा है, जिसके लिए एक उपयुक्त उम्र है, उसके पहले या उसके उपरान्त यह नहीं हो सकता| पर इन सबकी जीवन में अपनी भूमिका है|

प्रश्न : गुरूजी, मेरे कुछ दोस्त हैं, जो सोचते हैं कि धरती विनाश के कगार पर है, इतनी ज़्यादा आबादी, प्राकृतिक संसाधनों के विनाश, जैसे महासागर, जंगल, के होते हुए बहुत से लोग लाचार और हतोत्साहित महसूस करते हैं| मैं उन्हें कहता हूँ कि इस सब के बीच एक दिव्य व्यवस्था है| मेरा प्रश्न है कि क्या मैं उनकी सही चिंता को नज़रअंदाज कर रहा हूँ, या इस ग्रह और इसकी आबादी सुरक्षित है?
श्री श्री रविशंकर : चिंतित होना अच्छी बात है, पर चिंता में बौखलाना नहीं| एक फर्क है इनमें| यदि आप बौखला जायेंगे तो आप इस के बारे में कुछ कर नहीं पायेंगे और बस मन की शांति को खो देंगे| पर साथ ही, आप नहीं कह सकते कि, चलो, भगवान हैं वो सब संभाल लेंगे, हम जैसा कर रहे हैं, वह करते रहते हैं| आप ऐसा भी नहीं कह सकते|
भगवान हमें संसाधन देते रहेंगे चाहे हम इस ग्रह का और भी शोषण करते रहें, सृष्टि किसी तरह हमें और देती रहेगी| आप ऐसा नहीं कह सकते|
हमें इस ग्रह का निश्चित ख्याल रखना है| और जब विनाश का समय आ गया है तो यह चिंता भी आ गयी है| सृष्टि या उस विशाल मन ने करोडों लोगों के मन में यह चिंता डाल दी है| आज अधिक से अधिक आबादी वातावरण को ले कर चिंतित है| आप समझ रहे हैं मैं क्या कह रहा हूँ? आज छोटे छोटे गाँवों में भी लोग चिंतित हैं| दुनिया के दूर दराज़ इलाकों में धरती को बचाने के और जैविक कृषि करने के और रासायनिक खाद का प्रयोग न करने के बारे में वार्ता कर रहे हैं| यह चिंतन आज दूर के क्षेत्रों में भी पहुँच गया है|
और साथ ही लोग हैं जो इसके बारे में क्रोधित हैं, बौखला रहे हैं और उत्तेजित हो रहे हैं| ओह, हम इस ग्रह का विनाश कर रहे हैं| मैं कहूँगा, शांत हो जाईये| बौखलाएं मत, पर चिंता अवश्य करिये|

प्रश्न : समाधि क्या है?
श्री श्री रविशंकर : धि का अर्थ है बुद्धि और समाधि मतलब जहाँ मन में समता है, जहाँ आपका पूरा शरीर तालमेल में है, उसे समाधि कहते हैं|
शरीर, मन, आत्मा, सब में सामंजस्य और स्थिरता|
समाधि कई प्रकार की होती है|
एक होती है लय समाधि, जहाँ संगीत चल रहा है और आप पूर्ण रूप से उसमें डूबे हुए हैं| आप स्वयं को जानते हैं पर नहीं जानते कि कहाँ हैं|
फिर है, प्रज्ञा समाधि, असम्प्रज्नता समाधि इत्यादि|
और एक समाधि है जहाँ विचार होते हैं, ख़याल हैं पर आप बहुत शांत हैं| और एक समाधि है जहाँ कोई विचार नहीं हैं केवल भावनाएं हैं| तो, बहुत प्रकार की समाधि होती हैं|
कहते हैं कि समाधि की खुशी का विवरण ऐसे किया जा सकता है कि, समाधि के एक क्षण में सदियों का विश्राम है|
कोटि कल्प विश्राम; सदियों का विश्राम एक क्षण में, यह समाधि है|
समाधि के एक क्षण से मिला आनंद एक हज़ार यौन सुख के क्षणों के बराबर है| इस लिए, योगी क्यों ब्रह्मचारी होते हैं, यह स्वाभाविक है| ब्रह्मचर्य के लिए आपको प्रयत्न नहीं करना पड़ता, एक और शरीर के साथ अपने शरीर को घिसना नहीं पड़ता परम आनंद प्राप्त करने के लिए| आप बस वहीँ बैठे रहते हैं और परम सुख और आनंद बस आपके अंदर उमड़ आता है|
इसी लिए ब्रह्मचर्य कोई साधना नहीं है, यह एक होना है, जब आपके शरीर का हर कण एक आनंद और हर्ष के अनुभव में है| और यही परम आनंद आप यौन सुख से पाने की चेष्टा करते हैं| मैंने सुना है लोग कभी कभी वो परम आनंद प्राप्त करते हैं, कभी नहीं, पर लोग थक जाते हैं| ऐसा मैंने सुना है|
पर समाधि में आप थकते नहीं हैं उस परम आनंद को अनुभव करने के बाद भी| कोई उत्तेजना नहीं होती, कोई बुखार नहीं होता, कोई थकान नहीं पर एक ऊँचाई प्राप्त होती है जो आपमें ऊर्जा भर देती है| और ऐसे में ब्रह्मचर्य हो जाता है|

प्रश्न : क्या ध्यान किसी के गुजर जाने के शोक से बहार आने में मदद करता है?
श्री श्री रविशंकर : हाँ, इससे सहायता मिलती है|
ध्यान अवश्य शोक से बहार आने में सहायता करता है जब कोई बहुत पास का अगली दुनिया में चला जाता है| देखो, मृत्यु निश्चित है| मृत्यु से अधिक निश्चित कुछ नहीं है| परन्तु, आपने अपना जीवन जिया है, और आपको मरना है| सफल या असफल, आपकी मृत्यु होगी| महान या बदनाम, मृत्यु होगी| अमीर या गरीब, आपको मरना है| बीमार या स्वस्थ, आपको मरना है|
केवल बीमार लोग ही नहीं मरते,स्वस्थ लोग भी मरते हैं| सबको एक दिन मरना है, तो मृत्यु तो अति निश्चित बात है| आप इस सत्य को स्वीकार लो, तो आप कह सकते हैं, अच्छा, अब आप चले गए, अलविदा| मैं आपको कुछ दिन बाद फिर मिलूँगा|
ध्यान ज़रूर आपको शोक से उभरने में सहायक होता है|यही नहीं, जब आप ध्यान करते हैं, उसका स्पंदन उन तक भी पहुँचता है और शान्ति प्रदान करता है|

प्रश्न : जब कोई कठिन परिस्थिति आये, तो मैं उसे स्वीकार करूँ या उसके लिए लड़ूं?
श्री श्री रविशंकर : लड़ो यदि आपको सही लगता है|
यदि आपको लगता है आपने अपना १०० प्रतिशत प्रयत्न कर लिया है और आप लड़ नहीं सकते, तो प्रार्थना करो| सहायता के लिए प्रार्थना करो| पहले आप परिस्थिति को जैसी है वैसे स्वीकार करें | उसके बाद, उसके खिलाफ लड़ें| और लड़ने के बाद, फिर स्वीकार करें | एक संघर्ष के दोनों ओर पर स्वीकृति होनी चाहिए| यही योग का सार है|

प्रश्न : मृत्यु के बाद आत्मा का क्या होता है?
श्री श्री रविशंकर : आत्मा तैयारी करती है वापस आने की| आत्मा जाती है और कतार में लग जाती है| करोड़ों आत्माएं इस दुनिया में वापिस आने के लिए प्रतीक्षा में हैं| इसीलिए, मैं आत्महत्या करना चाहने वाले लोगों को कहता हूँ कि ऐसा मत करें | बहुत प्रतीक्षा के बाद और लंबी कतार के बाद आपको यह जीवन मिला है, उसका नाश मत करें | यह अनमोल है|

प्रश्न : इस शरीर में आने से पहले मैं कहाँ था?
श्री श्री रविशंकर : बहुत अच्छा प्रश्न है| यह शरीर पाने से पहले मैं कहाँ था? हमारी चेतना बहुत पुरानी है; हमारा मन पत्थरों से भी पुराना है| यह एक बहुत महत्वपूर्ण प्रश्न है| इसका उत्तर पाने के लिए उतावले न हों| इसी प्रश्न में आपको उत्तर मिलेगा, और आप गहरे ध्यान में जा पाएंगे, और भी बहुत कुछ| मैं अभी यहाँ हूँ, पर सब जगह भी हूँ|

प्रश्न : क्या ध्यान से बहार आने के लिए घड़ी का अलार्म लगाने की आवश्यकता है?
श्री श्री रविशंकर : नहीं| साधारणतः नहीं, क्योंकि यह झंझोड देता है| पर यदि आप इरादा कर लें कि मैं २० मिनट तक याँ आधे घंटे तक ध्यान करूँगा, तो आपकी आँखें उस समय के बाद खुल जाएँगी| आपके अंदर एक घड़ी है जो आपके इरादों के हिसाब से चलती है| क्या आपने यह अंदरूनी प्रक्रिया कभी आज़माई है? बस अपने मन में एक ध्येय रख लीजिये, कि मुझे सुबह ५ बजे उठाना है और ठीक ५ बजे आपकी नींद खुल जायेगी| आपके अंदर की घड़ी का प्रयोग कीजिये!
ध्यान के लिए २० मिनट याँ आधे घंटे तक बैठिये, बहुत ज़्यादा वक्त के लिए नहीं| जब आप ध्यान से बहार आयेंगे तो भूल जायेंगे कि आपका घर कहाँ है और गाड़ी की चाबियाँ कहाँ हैं!
मैं २० मिनट से आधे घंटे की सलाह दूंगा| इस से ज़्यादा वक्त तक बैठना संभव नहीं है| अपने आप आपकी आंखें खुल जाएँगी और अधीरता होने लगेगी| अपने आप को बहुत ज़्यादा समय ध्यान करने को मजबूर न करें; २० मिनट कम से कम, और अधिकतम, ३० मिनट|

प्रश्न : जब भी में ध्यान के लिए बैठता हूँ, एक दर्द सा क्यों होता है?
श्री श्री रविशंकर : क्या आप जानते हैं कि आपको एक तकलीफ, एक दर्द सा क्यों होता है? ऐसा इसलिए क्योंकि ध्यान उस प्यार को जागृत करता है जो आपके अन्दर है| ये आपके भीतर के उस प्यार को उभार के लाता है| प्यार का सम्बन्ध दर्द से है, क्या आप समझ रहे हैं जो मैं कह रहा हूँ? इसलिए हो सकता है आपको तकलीफ हो, दर्द हो या कुछ और भावनाएं उभरें और आंसू बहने लगें| उस वक़्त उन्हें नापो तोलो नहीं, बस रहने दो उन्हें और उसके साथ रहो| अगर ऐसा बहुत ज्यादा असहनीय हो रहा हो तो कुछ गहरी सांसें लें, कुछ प्राणायाम करें, कुछ श्वास से सम्बंधित क्रिया करें, अभ्यास करें, और तब आप देखेंगे कि सब कुछ शांत सा हो गया है|

प्रश्न : किसी प्रयोजन के लिए कार्य करते समय जिंदगी को कैसे संतुलित करें?
श्री श्री रविशंकर : हाँ, यह एक चुनौती है| जब आप ऐसा इरादा करते हैं, सोचते हैं, और जब आप कहते हैं कि आप यह दोनों कर सकते हैं तब ये परस्पर-विरोधी सा लगता है कि आप अपने कार्य और अपने प्रयोजन में सफल हो जायेंगे |
जब आप कहते हैं कि मेरा प्रयोजन मेरे कार्य से बड़ा है तब आप देखेंगे कि वो दोनों ही कार्य कर सकते हैं | अगर आपका उस प्रयोजन का जुनून अपने कार्य से अधिक हो जाये तब आप कहते हैं कि मैं अपना कार्य छोड़ दूंगा लेकिन अपने प्रयोजन को पूरा करूंगा| ये रास्ता बहुत मुश्किल सा दिखता है लेकिन इस पर चल कर आपको बहुत कुछ मिलता है, ये बहुत संतोष प्रदान करने वाला है|
किसी भी बड़ी चीज़ को पाने के लिए कहीं कहीं कुछ बलिदान तो देना ही पड़ता है| अगर आप संतुलन की बजाय आराम क्षेत्र में रहना चाहेंगे तब दोनों ही ख़त्म हो जाते हैं| लेकिन अगर आप कहें कि मुझे आराम की ज्यादा फिक्र नहीं, ये मेरा ज़बरदस्त जूनून है, और मैं एक बड़ा कार्य करना चाहता हूँ, बस तब आपको उसमें कूद पड़ने की ज़रूरत है|

प्रश्न : गाना गाने से ध्यान में कैसे सहायता मिलती है?
श्री श्री रविशंकर : गाने से मदद मिलती है| गाने से एक जोश वाला माहौल पैदा हो जाता है जिस से प्राण शक्ति बढती है जो मन को शांत होकर ध्यान में उतरने में मदद करता है| इसलिए गाना गाना इस का एक हिस्सा है| क्या आप जानते हो की अंग्रेजी भाषा का ७०% हिस्सा संस्कृत है? आप में से कितने लोगो ने इसके बारे में सुना है? Sister को कहते हैं स्वस, Daughter को कहते हैं दुहिता, और Go को कहते हैं गच्छ| अंग्रेजी भाषा का मूल है संस्कृत|

प्रश्न : ईश्वर ने दुनिया क्यों बनाई?
श्री श्री रविशंकर : ईश्वर को दुनिया क्यों नहीं बनानी चाहिए थी? उसने दुनिया इसलिए बनाई कि आप ये सवाल पूछ सको, अगर वो दुनिया नहीं बनाता तो आप ये सवाल कैसे पूछते? मुझे नहीं पता, कोई अनुमान नहीं है, लगता है भगवान को बेहतर सलाहकारों की ज़रूरत है, उन्होंने चीजों को बहुत जटिल बना दिया है|

प्रश्न : वर्तमान पल को कैसे अपनाएं?
श्री श्री रविशंकर : ऐसे ही, जैसे मैंने आपका सवाल अपना लिया और मैं वर्तमान में भी हूँ| समझ गए? ये स्वाभाविक है| वर्तमान को टाला नहीं जा सकता, जो भी है वो वर्तमान में ही है| यहाँ तक कि भविष्य से सम्बंधित कोई विचार भी वर्तमान में है| आपके भविष्य की चिंता आपको भविष्य में नहीं वर्तमान में है| यहाँ तक कि पिछले समय की यादें भी वर्तमान में हैं| आप वर्तमान से भाग नहीं सकते| आपकी बीते हुए समय की चिंता भी अभी वर्तमान में ही है| आपको सिर्फ यह मानना है कि वर्तमान से भागा नहीं जा सकता उसको टाला नहीं जा सकता!

प्रश्न : क्या क्रोध करना अच्छी बात है?
श्री श्री रविशंकर : अगर आप क्रोध को किसी बात के लिए इस्तेमाल करते हैं और वह आपके वश में है तब वह अच्छा है, और अगर क्रोध आपको वश में कर लेता है तब आप मुश्किल में हो| समझ रहे हैं कि मैं क्या कह रहा हूँ?
आप क्रोध को एक हथियार के जैसे इस्तेमाल कर सकते हैं, लेकिन अगर क्रोध आपको  इस्तेमाल करने लगे तब आप सब कुछ खो देंगे, वह कारण भी जिसके लिए आप क्रोध कर रहे हैं| बहुत से लोग ऐसा करते हैं| जब वो अन्याय के खिलाफ लड़ना चाहते हैं, वह हार जाते हैं, और ये क्रोध पर वश होना ही उस हार की वजह है| तीसरी दुनिया के देशों में और बाकी सब जगह भी, लोग बसें जलाते हैं, रेल जलाते हैं, और इतना नुकसान करते हैं| विश्व के किसी भी जगह, हर दंगे-फसाद के पीछे वे लोग सोचते हैं कि वे अन्याय के खिलाफ लड़ रहे हैं|
मेरे हिसाब से WAR का अर्थ है WORST ACT OF REACTION, अर्थात प्रतिक्रिया व्यक्त करने का सबसे खराब तरीका| एक वजह होती है जिसकी वजह से आप जंग में जाते हैं | हर एक व्यक्ति जो भी जंग में जाता है वो उस जंग को जायज़ ठहराता है, लेकिन इस से इतना नुकसान होता है और आपको कुछ नहीं मिलता| इसलिए ज़रूरत है दूसरे रास्ते ढूँढने की| शांतिपूर्ण, अहिंसक तरीके सबसे अच्छे हैं जैसे गांधीवादी तरीका| अब हमने इसको अपनाया है| आप ने अखबारों में इसके बारे में पढ़ा होगा, IAC- INDIA AGAINST CORRUPTION| यानि कि भ्रष्टाचार के खिलाफ भारत| इसके शुरआती सदस्य हम है| हमने ये आन्दोलन बिना एक जगह भी हिंसा किये हुए सारे देश में चलाया| कोई दंगे फसाद के और न तोड़ फोड़ की| आर्ट ऑफ़ लिविंग मुख्य सहायक था इसका, मुख्य साधन, और हमारे सारे स्वयंसेवियों ने ये सुनिश्चित किया की कोई भी गैर-सामाजिक तत्व इस भ्रष्टाचार विरोधी आन्दोलन का हिस्सा बन पाए| अन्याय और अपराध के खिलाफ लड़ाई, ये किसी भी हद तक जा सकती थी, लोग घर जला सकते थे, और इस तरीके के सब काम कर सकते थे| लेकिन नहीं| अहिंसा के प्रति हमारी वचन-बद्धता थी| और अचानक उस पूरे समय में देश में अपराध कम हुए, सब लोग किसी एक प्रयोजन के लिए एक साथ खड़े हुए|

प्रश्न : पाप क्या है?
श्री श्री रविशंकर : पाप वो है जो आपको दुःख देता है और भविष्य में दूसरो को दुःख देता है| वो, जो आपको थोड़े वक़्त के लिए तो सुख प्रदान करता है लेकिन बाक़ी की उम्र आपको बहुत परेशान करता है| लेकिन वो जो शुरू शुरू में दुखदायी लगे लेकिन आगे आने वाले समय में आपको ऊपर उठा दे वह अच्छा है, उत्कृष्ट है|

प्रश्न : ध्यान का रहस्य क्या है?
श्री श्री रविशंकर : देखो तीन प्रकार का प्रसार या आकाश होता है| एक है बाह्य आकाश जिसमें चारों तत्व रहते हैं| दूसरे प्रकार का आकाश है अन्दर का प्रसार या आकाश, जहाँ से सब विचार और भावनाएं आती है, इसे कहते हैं चित्त आकाश| फिर एक तीसरा प्रकार का आकाश आता है, जहाँ केवल परम आनंद है| ये तीनो आकाश आपस में जुड़े हुए हैं| बाह्य आकाश, बीच में विचारो का सूक्ष्म आकाश और आनंद एवं प्यार का दैवी आकाश| तो जब भी आप उस प्यार, उस ख़ुशी, उस शांति को अनुभव करते हैं, आप उस अन्तः आकाश से जुड़ते हैं| आप सिर्फ उसे छूते हैं और वापस जाते हैं| और वहीँ आपके अन्दर एक ऊर्जा भर देता है| इसलिए उस बढी हुई ऊर्जा से ध्यान होता है| और ध्यान से ऊर्जा बढती है| दोनों ही बातें सत्य हैं, जब आपकी ऊर्जा, प्राण शक्ति बढती है तब ध्यान होता है|

प्रश्न : खुद के प्रति दयालु होना इतना कठिन क्यों है?
श्री श्री रविशंकर : क्योंकि हमें खुद को दोष देने की आदत होती है| आध्यात्मिक पथ पर सबसे पहला नियम है, खुद को दोष देना बंद करे| ये एक नियम है, जब आप इस नियम को अपनाते हैं तभी आप आध्यात्म के पथ पर आगे बढ सकते हैं|
देखो आध्यात्म क्या है? आध्यात्मिक पथ क्या है? ये खुद से, आत्मा से जुड़ना है| खुद से जुड़ने के लिए अन्दर की ओर जाना| अगर आप खुद को दोष ही देते रहेंगे तब आप खुद के नज़दीक कैसे आयेंगे? आत्मा के नज़दीक कैसे जाएंगे? आप कभी भी ऐसे व्यक्ति के साथ नहीं रहना चाहेंगे जो दोष निकालता है| ध्यान के लिए सबसे बड़ी बाधा है खुद को दोष देना| आप कभी शांत नहीं हो पायेंगे, कभी अपने अन्दर नहीं जा पायेंगे, कभी आगे नहीं बढ पायेंगे अगर आप खुद को दोष दोगे| इसलिए खुद को दोष कभी मत दीजिये|

प्रश्न : नृत्य क्या अभिव्यक्त करता है?
श्री श्री रविशंकर : हाँ, जब आप खुश होते हैं तब आपका हर कदम एक नृत्य के जैसे हैं| आप पूरी उम्र नृत्य करते हैं| ज्ञान आपको सभी परिस्थियों में नचाता है| लय में उठाया हर कदम नृत्य है, लय में फैली हर आवाज़ संगीत है| और ज़िन्दगी का प्रसार उत्सव है|

प्रश्न: one world family और one world government के बारे में आपके क्या विचार हैं?
श्री श्री रविशंकर : One World Family, इस वक़्त सबसे उपयोगी एवं व्यावहारिक है| अभी One World Government को मैं राजनेताओं को सोचने को छोड़ता हूँ| उन्होंने world bank तो बना दिया पर मुझे नहीं लगता कि अभी कोई भी राजनेता One World Government के लिए तैयार है| लेकिन कम से कम अगर संयुक्त राष्ट्र पीछे रहने के बजाय ज्यादा मज़बूत, ज्यादा सक्रिय हो जाये तब पूरी धरती के लिए बहुत अच्छा होगा|

प्रश्न : (अश्राव्य)
श्री श्री रविशंकर : सुनो, क्या आप सांस ले रहे हैं ? हाँ, बिलकुल आप ले रहे हैं| ये बात आप भी जानते हैं| मैं भी जानता हूँ और बाकी सब भी जानते हैं| तो ऐसे में क्या हो रहा है? हवा आपके शरीर के भीतर जा रही है और वहीँ हवा आपके शरीर में से बाहर रही है और सारे विश्व में घूम रही है, क्या आप कह सकते हैं कि ये मेरी हवा है? जैसे जैसे आप सूक्ष्म स्तर पर जाते हैं, आप देखते हैं कि आप चीजों पर कब्ज़ा जमा कर नहीं रख सकते| हां, ऊपर ऊपर से आप ये कह सकते हो ये मेरा शरीर है, बिलकुल| तब भी आपके शरीर से हर वक़्त ऊर्जा बाहर निकल रही है, आप ब्रह्माण्ड से ऊर्जा ले रहे हैं एवं वापस दे रहे हैं, ये एक अविरत प्रक्रिया है, आपका शरीर और उसका एक एक कोश हर वक़्त बदल रहा है| आप पूरा समय ऊर्जा का आदान - प्रदान कर रहे हैं| आप ऊर्जा, एक लहर, एक निश्चित स्पंदन के अलावा और कुछ भी नहीं है| एक निश्चित प्रकार की ऊर्जा सुजान है, दूसरी निश्चित प्रकार कि ऊर्जा जेफरी है, और एक दूसरी प्रकार कि ऊर्जा मिचेल है| आप सब एक विशेष प्रकार के टी वी चैनल के जैसे हैं, जैसे कि एक टावर से अलग अलग चैनल का प्रसारण होता है और वह चैनल किसी के भी घर में देखे जा सकते हैं| आप यह नहीं कह सकते कि बीबीसी मेरे घर रहा है तो मेरे पडोसी के घर नहीं सकता| वे सब एक सी लहरें हैं, तरंगें हैं|

प्रश्न : क्या ध्यान करने से इन्कार करना आत्महत्या के समान है?
श्री श्री रविशंकर : नहीं, अगर कोई ध्यान करने से इन्कार करता है और अपने शरीर को अपने हिसाब से चलाना चाहता है तो ये आत्महत्या नहीं है| लेकिन अगर कोई गुस्से की वजह से खुद का गला दबा ले और अपनी ज़िन्दगी ख़त्म कर दे तो वह आत्महत्या है| जहाँ तक मेरा मानना है मैं इसको ही आत्महत्या कहता हूँ| कभी कभी लोग बेहोशी की नींद में चले जाते हैं, कोमा में चले जाते हैं| उन्हें ज़बरदस्ती खिलाना पड़ता है, या उन्हें लम्बे समय तक मशीन पर रखना पड़ता है| मैं ये ही कह सकता हूँ कि उन्हें प्राकृतिक रूप में जाने दो, ज़बरदस्ती मत करो उनके साथ| ये मेरा मानना है, लोगो के इसके बारे में अलग अलग विचार हो सकते हैं| जब आप जानते हैं कि कोई जीवित नहीं रह सकता और पुनः एक सामान्य स्तिथि में नहीं सकता तब उन्हें आलू प्याज के जैसे सिर्फ जिंदा रखने का कोई मतलब नहीं| मैं तो कहूँगा कि सब नलियाँ हटा दो और प्रकृति को अपना काम करने दो|