३
२०१२
मई
जब मन आवेश मुक्त, शांत, निर्मल और शान्ति में होता है तो
ध्यान लग जाता है| ध्यान के
द्वारा अपने भीतर के उर्जा स्त्रोत्र को उत्पन्न
करके, आप अपने शरीर को
उर्जा गृह में परिवर्तित कर सकते हैं| ~ श्री श्री रविशंकर
हमारा शरीर एक अनमोल
उपहार है| इसलिए अपने शरीर
का सम्मान करें|
अपने शरीर को पवित्र बनाये रखे क्योंकि
यह एक गतिशील मंदिर है| अंग्रेजी
शब्द "(New) न्यू" संस्कृत शब्द "नर" से लिया गया है| मनुष्य की तंत्रिकाओ में नारायण, परम प्रभु वास करते हैं| इसलिए हमें
अपने शरीर को पवित्र रखना चाहिए क्योंकि हमारे
शरीर की तंत्रिकाओ में भगवान वास करते हैं| "ॐ" शब्द का
बार बार उच्चारण करने से शरीर शुद्ध हो जाता है|
ध्यान स्वयं के स्तर से मन पर प्रभाव डालने का काम करता है| श्वास के द्वारा हम इस प्रभाव को शारीरिक स्तर पर भी ला सकते हैं|
ऐसे कुछ भाव होते हैं जिसे शारीरिक भाषा कहते हैं| वह यह दर्शाता
है कि आपके भीतर क्या है| यदि कोई कठोर
और बुलंद कंधे के साथ चलता है, तो उसकी शारीरिक भाषा से पता चलता है कि
व्यक्ति में बहुत अहंकार और कठोरता है| वे अपनी गर्दन को
मोड़ कर कुछ विशेष ढंग से चलते हैं, वे लोगों
के साथ सहज नहीं होते हैं| इसलिए जितने
कठोर आप उतना ही कठोर आपका शरीर और मन| अपने मन और अहंकार को ढीला करने के लिए, और अपने को विस्तार करने के लिए, आपको आसन और ध्यान करने की आवश्यकता है| आप सिर्फ
मन या शरीर नहीं है| और योग
में, शरीर, श्वास और मन सभी एकजुट हैं|