२९
२०१२ नॉर्वे
अप्रैल
एक बात मैं कहना चाहता हूँ, अपने आप को बहुत अधिक मत परखिये| हमारी
यह प्रवृति होती है, हम स्वयं को बहुत अधिक आंकते हैं या औरों को आंकते हैं| या तो
आप स्वयं को दोष देते हैं, या किसी और को| या तो आप
पातें हैं कि आप सही नहीं हैं, या कोई और सही नहीं है| आप को
जागना चाहिए और ऐसे जांचना रोक देना चाहिए|
अपने आप पर इतना सख्त नहीं होइये| एक अद्भुत घटना
का जो हो रही है आप उसका हिस्सा है| जैसे पेड़ हैं,
नदियाँ हैं, चिडियाँ हैं, वैसे ही आप भी यहाँ है|
इतनी चिड़ियाँ जन्म लेती हैं, इतने पक्षी मर रहे हैं| है न? इतने
सारे पेड़ उगते हैं, फिर वो सब गायब हो जाते हैं| इसी तरह इतने
सारे लोग, इतने शरीर आये हैं, और सब चले जायेंगे| और फिर नए लोग
आयेंगे और वो भी चले जायेंगे|
यह ग्रह भी करोड़ों सालों से यहाँ है| अपने जीवन को एक
बड़े सन्दर्भ में देखिये और फिर आप अपने को दोष देना बंद कर देंगे|
आध्यात्मिक पथ का पहला उसूल है, “अपने आप को दोष देना बंद करिये”,
क्योंकि जिसे भी आप दोष देंगे, क्या उनके साथ आप रहना चाहेंगे? क्या आप ऐसे
व्यक्ति का साथ पसंद करेंगे जिससे आप नाखुश हों? नहीं|
इसलिए, यदि आप स्वयं को दोष देंगे तो आप अपने साथ नहीं हो सकते|
अध्यात्मिकता अपने आप के साथ एक मुलाकात है|
यदि आप अपने आप को दोष देते रहे तो अपने आप से मुलाकात नहीं कर पाएंगे| इसलिए, अध्यात्म के पथ का पहला नियम है अपने आप को दोष देना बंद कर दीजिये|
अब यह मत कहना, “ओह, अब मैं दूसरों को दोष दे सकता हूँ”| नहीं! हर बार जब आप किसी को दोष देते हैं, यदि आप उस कारण को एक बड़े प्रसंग में
देखेंगे तो पाएंगे कि यह गलत था और व्यर्थ था|
अब जब आप पाते हैं कि आपके निर्णय गलत थे, तो आप झटपट अपने आप को दोष देने लगते
हैं| इसलिए, जब मैं कहता हूँ कि दूसरों में दोष मत ढूँढो, वो इसलिए
है कि यदि आप दूसरों को दोष देंगे, तो वो वापस आप पर ही आयेगा| आपको
किसी में भी दोष नहीं ढूँढना चाहिए|
इन ५६ सालों में मैंने एक भी बुरा शब्द किसी से नहीं कहा है|
अत्यधिक बुरा शब्द जो मैंने कहा हो वो है, “अरे मूर्ख”| कभी
कभी जब मैं परेशान या गुस्से में था, मैंने बस “अरे मूर्ख!” से
ज़्यादा कुछ नहीं कहा|
मैंने किसी को अपशब्द नहीं कहे, और किसी को दोष नहीं दिया| मेरे
भीतर से यह आया ही नहीं| ऐसा होने के लिए मैंने कुछ नहीं किया;
यह आरम्भ से ही ऐसा है| मैं कभी किसी के साथ दुर्व्यवहार नहीं
कर सकता था; शब्दों से या किसी और तरह से|
जब आप इस पर ध्यान देंगे, जब आप अपशब्दों का प्रयोग बंद कर देंगे, तो आपके
शब्दों में शक्ति होगी आशीर्वाद की| और आपका
आशीर्वाद काम करेगा| आप समझ रहे हैं मैं क्या कह रहा हूँ?
इसलिए, स्वयं को और दूसरों को दोष देना बंद कर दीजिए|
स्थितियां जैसी हैं, वैसी हैं; बस आगे बढ़िये| कभी कभी लोग
कहते हैं, यह व्यक्ति ढोंगी है, यह सच्चा नहीं है|
पर व्यक्ति के पास कोई कसौटी होनी चाहिए कि क्या विशुद्ध है और क्या नकली| बहुत
बार आपके पास कोई कसौटी भी नहीं होती किसी को परखने के लिए और आप बस दोष दे देते
हैं, “ओह, यह तो ढोंगी है”| और बस,
समाप्त| यह एक अचेत प्रवृति है जो समाज में बन गयी है
दूसरों को दोष देने की, और स्वयं को दोष देने की और फिर कसूरवार महसूस करने की| और अध्यात्मिकता का सफर है इस व्यवहार को मिटाना और पलटना| यह
बहुत ही सूक्ष्म चीज़ है|
इसका यह अर्थ नहीं है कि आप अपनी सब गलतियों को सही सिद्ध कर लें| यदि
आप कोई गलती करें, तो आप कहें, “ओह मैं तो अध्यात्म के पथ पर हूँ, मैं
अपनी गलती भी नहीं मान सकता, और अपने आप को दोष भी नहीं दे सकता|
इसलिए, मैंने जो भी किया वह सही था|” नहीं!
यह इतना नाज़ुक संतुलन है| यह अपनी गलतियों को सही मानने का नहीं,
बल्कि अपनी गलती समझ कर साथ ही खुद को दोष न देना है| यदि
आप अपनी गलतियों को नहीं पहचानेंगे, तो आप और बेहतर नहीं हो सकते| पर
साथ ही, यदि आप अपनी गलतियां देख कर इतना दोषी महसूस करेंगे कि खुद को दोष ही देते
रहें, तो भी यह एक नाउम्मीद स्थिति है|
इसलिए, आपको इस नाज़ुक संतुलन की आवश्यकता है| इस तेज धार पर
चलिए, न इस तरफ न उस तरफ|
प्रश्न : यदि हम नगण्य हैं, तो हम क्यों इतना
रुपया, समय, संसाधन और ऊर्जा अपने पर लगाते हैं, यहाँ इस कोर्स में? हमें
आध्यात्मिक क्यों बनना चाहिये यदि हमारा कोई महत्व ही नहीं है? अच्छे हो कर हम
किनकी मदद कर रहे हैं, यदि वो भी तुच्छ हैं?
श्री श्री रविशंकर : क्या आपको इस प्रश्न के उत्तर की
आवश्यकता है? उसका भी कोई महत्व नहीं है ! आप इस प्रश्न से क्यों
चिंतित हैं? कोई फर्क नहीं पड़ता| देखो, जीवन के
बहुत से स्तर हैं, पर ज्ञान के दो स्तर हैं|
पहला है व्यावहारिक ज्ञान और दूसरा विशुद्ध ज्ञान|
व्यावहारिक विज्ञान और शुद्ध विज्ञान|
शुद्ध विज्ञान क्या है? इस कमरे में सब कुछ लकड़ी का बना है| मेज़,
कुर्सी, दरवाज़ा सब लकड़ी के बने हैं| तो सब लकड़ी
हैं, बल्कि सही मायने में, सब परमाणु हैं|
हीरा और कोयला दोनों एक ही पदार्थ से बने हैं| पर आप कोयला
अपने कानों में नहीं लटका सकते और आप हीरा चूल्हे में नहीं डाल सकते| तो,
एक स्तर पर ये दोनों अलग हैं| यह ऐसा है, जैसे कहना कि पानी और बर्फ़
एक ही हैं| पर आप पानी से चाय बना सकते हैं, बर्फ़ से नहीं| बर्फ़
को पहले पानी बनना है, उसके उपरान्त ही आप उससे चाय बना सकते हैं| है न? यह है
व्यावहारिक ज्ञान|
तो, शुद्ध ज्ञान में यह कहा गया है कि आप नगण्य हैं, तुच्छ हैं| क्यों? क्या
इसलिए कि आप अपने जीवन को इस पूरे ब्रम्हाण्ड के सन्दर्भ में देखते हैं? इसका
अर्थ यह नहीं है कि आप भोजन छोड़ दें| यदि आप तुच्छ
हैं, तो जियें ही क्यों? खाएं क्यों? सोयें
क्यों? कुछ भी क्यों करें? है न? आपको
ये सब करने की आवश्यकता है और इसी तरह यह कोर्स करने की भी आवश्यकता है| समझ
गए? यहाँ होने से क्या होता है? दिमाग
स्फूर्तित हो जाता है, शरीर ऊर्जित हो जाता है और ज्ञान आप में बस जाता है| कितनी
सारी बातें होती हैं|
प्रश्न : ध्यान के समय, या विश्राम करते समय
क्या रोना ठीक है?
श्री श्री रविशंकर : रोना ठीक है| एक दो
बार यह ठीक है पर इसे अधिक बढ़ावा न दें| ख़ासकर जब सब
ध्यान कर रहे हों और जब स्थिरता हो, तो ऐसे संवेदनों को महसूस करें और जाने दें|
प्रश्न : दिन में कुछ समय विश्राम करना ठीक
हैं?
श्री श्री रविशंकर : यदि आपकी आयु ४५ से अधिक है तो हाँ,
अन्यथा नहीं|
प्रश्न : यदि मैं कुछ महसूस ही नहीं करता हूँ
तो क्या?
श्री श्री रविशंकर : आप खालीपन महसूस करते हैं? यह कुछ
है!
आप जानते हैं, कभी कभी हम महसूस करना चाहते हैं| आप दूसरों के
अनुभवों को सुनते हैं और आप भी उसे महसूस करना चाहते हैं, और तब ऐसा नहीं होता| कुछ
महसूस करना चाहना छोड़ दीजिए| क्या आप मेरे साथ हैं? देखो,
उम्मीद या अत्यधिक सतर्कता आपको दिमाग के अगले हिस्से में रख देता है और आप बहुत
सतर्क हो जाते हैं| उस समय पर आप सो नहीं सकते, विश्राम
नहीं कर सकते, और आप कोई गहरा अनुभव भी नहीं ले सकते| तो यह
एक कारण हो सकता है|
दूसरा, आप में से बहुत लोगों ने यह पूछा है, “मैं क्या करूं,
मुझे हर समय नींद आ जाती है”|
आपने अवश्य अपने शरीर को ज़रूरी नींद से वंचित रखा होगा, और इस लिए शरीर वो
नींद पूरी करता है| आप बहुत बार सो जायेंगे यदि आपका शक्कर
का स्तर ऊंचा या नीचा है, यह सबसे पहला कारण है|
दूसरा, यदि शरीर में आवश्यक प्राण नहीं है, तो भी आपको नींद आ जायेगी| तो,
कुछ प्राणायाम सहायता करेगा| ध्यान से एकदम पहले, कुछ गहरी साँसें
मदद करेंगी| और शरीर में आवश्यक पदार्थों और चीनी की मात्र को
देखें| कभी कभी उनकी कमी से भी आप थका हुआ महसूस करते हैं
और सो जाते हैं|
एक और कारण है कि शरीर थका हुआ है| कुछ बार होता
है कि आप थके हुए हैं और आपको नींद आती है, और कभी कभी, आप थके हुए होते हैं पर
नींद ही नहीं आती| ऐसा कितने लोगों के साथ होता है? आप को थकान है पर
आपको नींद नहीं आती|
ध्यान में यह सब बातें उलटी हो जाती हैं, और यह एक कारण हो सकता है कि आप
ध्यान में सो जायें| पर कोई बात नहीं|
प्रश्न : मेरा सिर हमेशा गीतों में क्यों झूमता
रहता है?
श्री श्री रविशंकर : ‘हमेशा” मत
कहिये| मुझे नहीं लगता वो हमेशा झूमता है| आपने
अपने दिमाग का वो हिस्सा ज़्यादा प्रयोग कर लिया होगा, अर्थात सिर का दायाँ हिस्सा,
इस लिए स्वाभाविक ही आपको संगीत सुनाई दे रहा होगा|
एक उपाय है कि कुछ समय पहेलियाँ सुलझाने में व्यतीत करे| जैसे
वर्ग पहेली| इससे आप दिमाग का दूसरा हिस्सा प्रयोग करेंगे| आप
बैठ कर अंक गिन सकते हैं; गणित कर सकते हैं या पैसा गिन सकते हैं| ये सब
कार्य करिये जिससे दिमाग के दूसरे हिस्से का संतुलन बन जायेगा| या
कुछ पढ़ लीजिए, या ज्ञान की बातें सुनिए|
अभी आप ज्ञान की बातें सुन रहे हैं तो आपका सिर नहीं झूम रहा|
इसलिए, पढ़ना, सुनना, गिनना, ये सब बातें दिमाग की बाईं तरफ को भी क्रियाशील बनायेंगी|
प्रश्न : हम सब सांस के साथ जन्म लेते हैं, और
सारा ज्ञान अपने अंदर लेकर| फिर क्यों हर व्यक्ति गुरु नहीं है
आपकी तरह? इस ज्ञान का उपयोग कर केवल आप गुरु क्यों बने हैं?
श्री श्री रविशंकर : आप जानते हैं, एक महान रचना में हम सब
यहाँ किसी महान योजना के साथ आये हैं| कुछ ऐसा है कि
आप यह करिये, आप ये करिये, और आप वह करिये|
जब यह इमारत बनी थी, सारा सामान कहीं रखा था| पर फिर
वास्तुकार ने कहा, “यह खिड़की यहाँ होगी, दरवाज़ा यहाँ होगा,
और छत वह होगी”| वास्तुकार ने सब कुछ सोचा और वहां रखा, है न?
वैसे ही हमारा जीवन भी है|
एक श्रेष्ठ योजना ने कहा है, “आप यहाँ जन्म
लेंगे, आप वहां जन्म लेंगे, और आप वहां जन्म लेंगे”|
इसलिए, हम संसार के विभिन्न हिस्सों में जन्म लेते हैं, एक ख़ास समय पर हम सब
साथ आते हैं| इस वास्तविकता में झांकना बहुत दिलचस्प है| हम जो
इस संसार में सोचते हैं कि है, यह उससे बहुत ज़्यादा है| हमें
जो दिखता है वो हिमखंड का सिर्फ़ उपरी हिस्सा है| हम एक मेंडक
के जैसे हैं जो तालाब में बैठ कर सोचता है कि यही पूरा हिमसागर है| हम भी
कुछ उसी प्रकार से अपना जीवन जीते हैं| यदि हम जाग कर
देखें कि इसके परे भी दुनिया है, तो बहुत सी बातें खुल जाएँगी और बहुत बातें समझमें
आने लगेंगी|
इसलिए, इस सूक्ष्म संसार में सारी योजनाएं पहले ही बन चुकी हैं| यदि
किसी को एक डाक्टर बनना है, तो वह हो चुका है| अब आप मुझसे
पूछ सकते हैं, “तो क्या हमारी कोई आज़ाद सोच नहीं है?” मैं
कहता हूँ, हाँ, है| जीवन एक मिश्रण है| नियति और कुछ स्वछन्द सोच का| यह
दोनों का मेल है|
प्रश्न : मेरी बहन की मानसिक अवस्था ठीक नहीं है| वो हमें बहुत परेशान करती है| मैं जितना है सके उस से दूर ही रहता हूँ, लेकिन वो बहुत अकेली है| कैसे अपने और दूसरों के प्रति जिम्मेदारियों को संतुलित रखा जा सकता है?
श्री श्री रविशंकर : जब आप जानते है कि कोई बीमार है तब उनको सुनिये मत, कान बंद करके उनके साथ रहे| आप परेशान होते है क्योंकि आप उनके शब्दों और व्यवहार को अपने दिमाग के
भीतर बैठा लेते हैं| आपको अपने सिर को मज़बूत बनाना होगा जिस से कि आप दूसरों की बातों को अपने सिर में बैठा न
सके और
जब
भी
संभव
है, उनकी मदद करें|
एक
कहावत है, "कोई किसी को सुख और दुःख नहीं देता|" अगर आप कोई दुःख भोग रहे है तो ये आपका अपना ही कर्म है, किसी और ने वो आपको नहीं दिया है| और अगर आप सुख भोग रहे हैं तो वो भी आपके अपने ही कर्म हैं, जो आपको सुख प्रदान कर रहे हैं| जब आप इस बात को जानते हैं तब आप किसी को अपने सुख - दुःख के लिए दोष नहीं देते| जब आपको किसी से ख़ुशी मिलती है तब आप उन्हें दोष देते है कि जितनी ख़ुशी उन्हें आपको देनी चाहिए वो उतनी ख़ुशी आपको नहीं देते| आप समझ रहे है न की मैं क्या कह रहा हूँ? प्यार नफरत में क्यों बदल जाता है? क्योंकि जब आपको कोई प्यार करता है और आपको बहुत ख़ुशी देता है, तब आप उन पर नाराज़ हो जाते हैं क्योंकि आप उस संवेदना के ग़ुलाम से हो गये
होते हैं| इसलिए जब वो आपको वो ख़ुशी नहीं देते तब आप उनके सिर पर
दोष मड़ते
हैं, उनसे नाराज़ होते हैं, नफरत करते हैं, और सारा रिश्ता ख़त्म हो जाता है| ऐसा होता है या नहीं? इसलिए ये बात याद रखें कि आपका सुख, आपकी
ख़ुशी
की
वजह
आपके अपने अच्छे कर्म हैं| बाकी के सब लोग सिर्फ डाकिये के जैसे हैं, उन्हें धन्यवाद दीजिये
तब आपका अपने आस पास के सब लोगों से अच्छा रिश्ता बना रहेगा|
प्रश्न : मुझे अपनी ज़िन्दगी में सही मार्ग पर चलने के लिए आशीर्वाद दीजिये|
श्री श्री रविशंकर : आप सही पथ पर ही है, सही जगह पर| मैं कहता हूँ, विश्राम करें| आराम से
बैठें| देखो आपको केवल कोई रेल-गाड़ी या हवाई जहाज़ में बैठने तक कार्य करना होता है| एक बार आप जहाज़ में बैठ गए तो उसमें आगे पीछे दौड़ने कि कोई ज़रूरत नहीं| ऐसा करने से विमान कोई जल्दी तो पहुंचेगा नहीं| सोचो कि कोई व्यक्ति गाड़ी में अपने सिर पर सामान लेकर दौड़ रहा है क्युं कि मुझे बाकी सब से जल्दी पहुंचना है| अरे आराम करें, अपना सामान नीचे रख दें, आप सही मार्ग पर ही है, ध्यान में ही है|
अगर
आपने
सहज
समाधि ध्यान नहीं सीखा है तो उसको सीखो| अष्टावक्र गीता सुनो| आप में से कितनो ने यहाँ अष्टावक्र गीता सुनी है| क्या उस से आपकी ज़िन्दगी में कोई फर्क पड़ा? बाकी जिन लोगों ने नहीं सुनी, वो भी इसको सुनें| इसे ज़रूर सुनना चाहिए, सुनें, चिंतन करें, मनन करें| रोज़ कुछ देर ज्ञान में बिताना बहुत लाभदायक है| यहाँ Celebrating Life और सच्चे
साधक की अंतरंग वार्ता नाम की पुस्तकें भी हैं| उन किताबो को अपने हाथ में रखें, पन्ने पलटते रहें, पढते रहें| ये आपके सोचने का ढंग, आपके समस्याओं को सुलझाने का तरीका बदल देंगी, इनसे निश्चित रूप से मदद मिलेगी|
प्रश्न : अगर मैं किसी व्यक्ति से संपर्क नहीं रखना चाहता, तो कैसे उनसे संपर्क तोडूं या बिना उन्हें दुःख दिए, प्यार और अपनत्व से साफ़ साफ़ कैसे उनको बताऊँ कि मैं उनसे कोई संपर्क नहीं रखना चाहता?
श्री श्री रविशंकर : जब भी आप ऐसा करना चाहे, कर सकते है, ये कोई बहुत बड़ी बात नहीं है| आप हल्के से कह सकते
हैं| आपको हर एक बात शब्दों से कहने की ज़रूरत नहीं है, ज़िन्दगी इतनी तेज़ी से आगे बढती है, आपको हर बात पर ऐसे अटकने की ज़रूरत नहीं है|
आज
मुझे
ये
अच्छा लगता है, कल मुझे वैसे अच्छा लग रहा था, किसको फिक्र है आपकी भावनाओं की? कौन आपके सुख-दुःख की चिंता कर रहा है? ज़िन्दगी इतनी तेज़ी से भाग रही है, धरती इतनी तेज़ी से घूम रही है, वो सूर्य के इर्द गिर्द तेज़ी से चक्कर लगा रही है| सब कुछ बदल रहा है, पुरानी पत्तियां झड जाती है, नयी आ जाती है| कौन गिनता है कि पेड़ से कितने पत्ते गिरे और कितने नए आये| तो आप क्यों चिंता करते हैं कि
आपको कैसा महसूस हो रहा है या कैसा महसूस नहीं हो रहा है? आपको अपनी सारी भावनाएं एक गठरी में बाँध के समुद्र में फ़ेंक देनी चाहिए और आराम से बैठना चाहिए| किसे फर्क पड़ता है? आपकी भावनाएं भी हर वक़्त बदलती हैं, है कि नहीं? कितनी बार आपकी भावनाएं बदली? कितनी जल्दी बदली, तो इस में इतनी बड़ी बात क्या है? हम ही अपनी भावनाओं का इतना बड़ा मुद्दा बना के बैठते हैं| मुझे ये लगता है, मुझे वो लगता है, अरे क्या फर्क पड़ता है और किसे फर्क पड़ता है? आगे बढ़ो! जो भी आप यहाँ करना चाहते हैं,
करो और ख़त्म करो कहानी| बस वक़्त ऐसे ही भागता है| आर्ट ऑफ़ लिविंग के ३० साल पूरे हो गए, हमने आर्ट ऑफ़ लिविंग १९८२ में शुरू की थी लेकिन हमने अपनी संस्था अभी कुछ महीने पहले ही बनायी है| हमने वेद विज्ञान
महाविद्या पीठ, बैंगलुरु आश्रम १३ नवम्बर १९८१ को स्थपित किया था| क्या हो गया, ३० साल पूरे भी हो चुके हैं| मार्च १९८२ में हमने अपना पहला बेसिक कोर्स किया था| हम ३० में पहले ही प्रवेश कर चुके हैं| वक़्त ऐसे ही चला जाता है| मेरे विचार से इस महीने में ये मेरा १४ वा पड़ाव है, मैं १ अप्रैल से अब तक दुनिया के १४ शहरो में जा चुका हूँ| मुझे सब जगह इतना उल्लास, इतनी ख़ुशी दिखी| जीवन में प्यार के प्रदर्शन, जीवन के प्रदर्शन के लिए वक़्त नहीं है, तो अपनी भावनाओं पर बैठ कर सोचने का वक़्त कहाँ हैं| दुनिया में करने के लिए इतना कुछ है, और करने के लिए कुछ भी नहीं| सब साथ साथ ही चलता है| करने के लिए इतना कुछ है और तुम्हारे करने के लिए कुछ भी नहीं| सब हो चुका है| पूर्णसंतुष्टि!
प्रश्न : क्या आत्मा बाकी की ६ परतो के बिना अस्तित्व में रह सकती है?
श्री श्री रविशंकर : हाँ, बिलकुल| बाकी कि ६ परतें अपनी खुद की ही परछाईं हैं| जैसे मकड़ी, वो अपना जाल अपनी ही थूक से बनाती है लेकिन फिर भी वो अपने जाल के बिना रह सकती है| ऐसे ही ये सब परतें आत्मा ने स्वयं बनायीं हैं, लेकिन इन सब के बिना भी वह रह सकती है|
प्रश्न : मैं जानता हूँ कि मौन खुद के बेट्री चार्ज करने के जैसा है लेकिन ये अकेले होने का भाव सा क्यों आ जाता है? लोगों के साथ बाँटने को इतना कुछ है|
श्री श्री रविशंकर : ये अकेलेपन की भावना दो पड़ाव के बीच की एक क्षणिक स्तिथि है| जब आप इस दुनिया में आये आपको कभी ये अकेलापन नहीं लगा, भले ही आप जुड़वाँ बच्चो जैसे क्यों न आये है, ये भी वैसे ही है जैसे आप इस दुनिया में अकेले आये होते| और जब हम इस दुनिया से जाएँगे, तब हम अकेले ही जायेंगे| ये ऐसा ही है कि आप बैठ कर कहते रहे, मैं अकेला हूँ, मैं अकेला हूँ, नहीं! इसको छोड़ दो और और इस भावना में गहन तक जाओ, तब आप देखोगे कि कोई दूसरा तो है ही नहीं|
प्रश्न : गुरुजी, मैं कैसे सफल और प्रसन्न हो सकता हूँ?
श्री श्री रविशंकर : सफल होने के लिए आपको ३ चीजों की आवश्यकता है,
१:
कौशल
२:
ऊर्जा और
३:
उत्साह
अगर
आपके पास,
कौशल
है, ऊर्जा है और आप कुछ करते नहीं तब आप कभी सफल नहीं हो सकते| और अगर आप बिना किसी कौशल के अगर कोई कार्य करते हैं तब भी आप सफल नहीं हो सकते| और अगर आपके पास, उत्साह और कौशल तो है लेकिन ऊर्जा नहीं तब भी आप सफल नहीं हो सकते| सफल होने को ये तीनो चीज़ें चाहिए, कौशल, ऊर्जा और उत्साह| आपको उत्साही होना चाहिए, मेहनत करनी चाहिए तभी आप सफल हो
सकते हैं| तीनो की ही ज़रूरत है|
ऐसे
भी
लोग
हैं
जो
बैठ
कर
सिर्फ योजनायें ही बनाते रहते हैं| वो अपनी सारी उम्र इस में ही निकल देते
हैं और
करते
कुछ
भी
नहीं| लगभग १५-२० साल पहले बैंगलुरु
सत्संग
में
एक
युवा
आता
था, वो हर महीने २५ पुस्तक खरीदता था, "सफलता कैसे पाएं" और "पैसा कैसे बनाएं" और वो उन पुस्तकों को पढता ही रहता था, और योजनायें बनाता था| हर बार मेरे पास यहाँ आता और कहता कि मेरे पास ये बहुत अच्छी पुस्तक है, बहुत अच्छी योजना है कृपया मुझे आशीर्वाद दीजिये| मैं कहता, ठीक है जाओ ऐसा करो| अगले हफ्ते वो अलग किताब के साथ आ जाता और फिर वही आशीर्वाद मांगता| एक साल बीत गया, मैंने धीरज रखा और सोचा कि एक दिन वो कोई कार्य ज़रूर शुरू करेगा| लेकिन उसने कोई कार्य शुरू नहीं किया, वो सिर्फ किताबें खरीदता रहा, मुझसे सलाह मांगता रहा, और बड़ी बड़ी योजनायें बनता रहा, उन्हें कंप्यूटर पर टाइप करता रहा बस| हमारे पास बैंगलुरु आश्रम में कृषि के लिए १०० एकड़ ज़मीन है, और ये साहब, ये कंप्यूटर पर बैठते हैं, और योजनायें बनाते थे कि कहाँ वो बीज बोयेंगे, कहाँ फसल काटेंगे, वो कृषि विभाग के अध्यक्ष थे| आश्रम के सब व्यक्ति कहते कि ये सिर्फ कंप्यूटर पर ही खेती करते हैं| वो अपने कमरे में बैठ कर योजनायें बनाते और कभी खेत में बीज बोने नहीं जाते| उसी तरीके से ये आदमी सिर्फ किताबें खरीदता और उनको पढता रहता| एक दिन मैंने उसको बुलाया और कहा कि बस अब और आशीर्वाद नहीं, मैं नहीं चाहता कि मेरा आशीर्वाद इस तरीके से बेकार किया जाए| आशीर्वाद भी तभी काम करता है जब आप मेहनत करते हैं| इसलिए अब ये सब किताबें एक तरफ रखो, अब और कोई पुस्तक मत पढो, एक विचार उठाओ और उस पर काम करो और आप सफल हो जाओगे| मैंने ऐसा क्यों कहा| क्योंकि कई बार व्यक्ति बड़े विचारों को हकीक़त का जामा नहीं पहनाते और कुछ लोग ऐसे हैं कि बिना सोचे, बिना किसी योजना के सिर्फ मेहनत करते रहते हैं, वो भी सफल नहीं हो पाते| इसलिए आपको दोनों ही करने हैं| बिना आशीर्वाद के कुछ नहीं होगा| मैं जानता हूँ, आशीर्वाद ज़रूरी है लेकिन केवल आशीर्वाद से कुछ नहीं
होगा, क्योंकि मेहनत तो आपको करनी ही होगी| हाँ, आशीर्वाद के साथ काम आपको सफल बना देगा| मैं तो कहूँगा कि कड़ी मेहनत के बाद भी आप सफल होगे, और वह सफलता होगी आपके आत्म-विश्वास के रूप में| सच्ची सफलता ये है कि आप कितने आत्मविश्वासी हैं, आप कितना मुस्कुराते हैं, और कितनी निडरता से आप चलते हैं, ये दिखता है आपकी सफलता में|
प्रश्न : मैंने पार्ट १ कोर्स किया है और २ बार एडवांस
कोर्स
भी
किया
है| मैं पिछले एक वर्ष से अपने क्षेत्र में सेवा कर रहा हूँ| मेरे क्षेत्र में कोई अध्यापक नहीं है, क्या मैं एक अध्यापक बन सकता हूँ?
श्री श्री रविशंकर : बिलकुल| मैं और ज्यादा से ज्यादा लोगों को अध्यापक बनाना चाहता हूँ, जितने अध्यापक हो सकें उतने, जिस से कि हम ज्यादा से ज्यादा लोगों को इस पथ पर ला सकें| आप में से कितने लोग अध्यापक बनना चाहते है? हाँ, आप सब को अध्यापक बनना चाहिए, आप आस पास के लोगों के लिए कितना कुछ कर सकते हैं| बहुत अच्छी बात है|