संकट के समय ही विश्वास की भूमिका बनती है!!!


२०१२ मॉन्ट्रियल, कनाडा
मई

यह पूरी सृष्टि एक ही ऊर्जा से बनी है| सब कुछ सिर्फ एक ही चीज़से बना है|
जब भी आप को कुछ परेशानी हो, तब अगर आप इस सिद्धांत को दोहराएँ, ‘कि सिर्फ एक ही ऊर्जा से सब कुछ बना है, इसलिए बहुत सारी संभावनाएं हैं’, तब आपको बहुत राहत मिलेगी| क्या आप समझ रहें हैं, मैं क्या कह रहा हूँ?
तीन प्रकार की बुद्धि होती हैं :-
एक वह बुद्धि, जो निष्क्रिय है, या काम ही नहीं करती; सोयी हुई, नींद में और सिर्फ नकारात्मकता से भरी हुई| यह है तामसिक बुद्धि|
फिर है, राजसिक बुद्धि| ज़्यादातर लोगों में राजसिक बुद्धि होती है| प्रत्येक व्यक्ति राजसिक बुद्धि से ही काम करता है| राजसिक बुद्धि माने, प्रत्येक वस्तु और जीव को अलग अलग समझना| ‘यह व्यक्ति अलग है, वह व्यक्ति अलग है, यह व्यक्ति ऐसे बर्ताव करता है, वह महिला वैसे बर्ताव करती है, इस तरह के अंतरों में ध्यान केंद्रित करना| यह सोचना, कि इतने सारे लोग हैं, इतने सारे व्यक्तित्व हैं, और इसे ही सत्य समझना| ऐसा करने में, या तो कभी आप बहुत ऊपर होते हैं, और कभी एकदम नीचे| यह है राजसिक बुद्धि|
और फिर है सात्विक बुद्धि, जो हमारे विकास का लक्ष्य है|
सात्विक बुद्धि देखती है, कि इतने सारे अंतरों के पीछे केवल एकही है| यही सत्य है| इन सबके पीछे केवल एक ही सत्य है| यह एकही है, जो इतने सारे रूपों में प्रकट हो गयी है|
मैं आपको एक उदाहरण देता हूँ| क्या आपने कठपुतलियों का नाच देखा है?
एक राजसिक बुद्धि सारी कठपुतलियों को अलग अलग पात्र की तरह देखती है| सात्विक बुद्धि कहती है कि केवल एक ही व्यक्ति इन सब गुड़ियों को नचा रहा है| दरअसल यह एक अकेले का खेल है|
एक इन्सान जो परदे के पीछे खड़ा है, वह स्टेज पर अपनी दसों उंगलियों का उपयोग करके अलग अलग कहानियां बना रहा है और उन्हें नचा रहा है|
क्या आपने वे कठपुतलियों के नाच देखें हैं? वे अपनी दसों उंगलियों में एक एक धागा बाँध लेते हैं और फिर सारी कठपुतलियों को नचाते हैं|
तो एक सात्विक बुद्धि होने का मतलब है यह देखना, कि सिर्फ एकही है, ‘एकही सत्य, ‘एकही सच्चाई, एक ही चेतना जो इस पूरी सृष्टि के पीछे है| जब मन में यह सत्य अच्छी तरह से स्थापित हो जाता है, तब हम अंतरों को देखेंगे भी और समझेंगे भी, लेकिन हम उनसे विचलित नहीं होंगे|
एक मकान जिसकी नींव बहुत मज़बूत होती है, वह भूकम्प में भी नहीं गिरता| उसमें झटकों को सहने की क्षमता होती है| एक असली अवशेषक होता है हमारे मन में गहरा छुपा यह ज्ञान कि सब कुछ एक ही चेतना से बना है|
सारे भौतिक द्रव्य एक ही चेतना से बने हैं| मैं वह चेतना हूँ, और बाकी सब भी वह चेतना है| जो यह बात जानता है, वह मुक्त है| इसी को मुक्तिकहते हैं| ‘मैं इतना मुक्त हूँ| मुझे कोई भी/कुछ भी विचलित नहीं कर सकता|’
आप जानते हैं, आर्ट ऑफ लिविंग को ३० बरस हो गए, लेकिन हम कभी भी किसी बड़े विवाद में नहीं फंसे| हमारा काफी मान-सम्मान था, बहुत सहज संस्था जो विश्व भर में फैली हुई थी| अभी हाल ही में एक विवाद हुआ, और सारी मीडिया और उच्च राजनेता, वे सब मेरे एक वाक्य पर छींटाकशी करने लगे|
तो हमारे कुछ टीचर और स्वयंसेवक बहुत घबरा गए| ‘ऐसा क्यों हुआ? हे भगवान, यह तो नकारात्मक प्रचार हैऔर इसी तरह की बातें!
मैंने कहा, ‘कोई बात नहीं
मैंने यह वाक्य कहा था कि सरकार को स्कूल नहीं चलाने चाहिये| अगर आप देखें, कि जो स्कूल गैर सरकारी, मिशनरी या धार्मिक संस्थाएं चलाती हैं, उनसे कोई भी हिंसक छात्र बाहर नहीं निकलते| वे हिंसा केवल सरकारी स्कूलों में ही सीखते हैं|
देखिये, सरकार के कोई भी नेता, अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों में नहीं भेजते| वे सब अपने बच्चों को प्राइवेट स्कूल में भेजते हैं| तो जब मैंने ऐसा कहा, तो बिल्कुल धमाका हो गया!
मैंने यह एक मीटिंग में कहा था, जहाँ मैं किसी संस्था की रजत जयंती समारोह में गया था|
तो फ़ौरन हमारे ए बी सी (आर्ट ऑफ लिविंग ब्यूरो ऑफ कम्युनिकेशन) से फोन आया, रात को दस बजे, और वे बोले, ‘गुरूजी, यह टीवी चैनल इसके बारे में पूछ रहें हैं, हमें क्या कहना चाहिये?’
मैंने कहा, ‘विवाद होने दो, कोई बात नहीं| कोई उत्तर मत दो, और कुछ मत कहो|’
देखिये, इस विवाद की वजह से क्या हुआ? नेशनल टीवी पर बहुत से चैनलों पर वाद-विवाद हुए,क्या श्री श्री सरकारी स्कूलों के पक्ष में हैं?’ ‘उन्हें ऐसा कमेन्ट नहीं करना चाहिये था, उन्हें माफ़ी मांगनी चाहियेइसी तरह की बातें|
काफी लोग इसे देख रहें थे, कुछ पक्ष में, कुछ विपक्ष में|
और उन्होंने हमारे लोगों को भी बुलाया| हमारे टीचर गए, बैठे, और हमने आज तक जितना भी काम किया है, उन्होंने वह सब बताया| इस तरह पूरे देश को पता चला कि हमने कितना अच्छा काम किया है, नहीं तो ऐसे तो कभी मौका नहीं मिलने वाला था|
कि हम १८५ नि:शुल्क स्कूल चलाते हैं, यह सब टीवी पर आ पाया| तो जो बात शुरुआत के एक-दो दिन में हमारे खिलाफ़ थी, वह अंत में हमारे पक्ष में हो गयी|
मैं यह कहना चाह रहा हूँ, कि क्योंकि ऊपरी तौर से चीज़ें भले ही अलग दिखें, अंदर से वे सब एक ही हैं| इसलिए, उलझिए मत| विचलित मत होईये| शांत और धीर मन से, यह जानिये, कि सब कुछ एकसे ही बना है, और वह एकचीज़ से ही मैं भी बना हूँ, और यही सब कुछ है|
अगर यह ज्ञान अभी समझने में थोड़ा मुश्किल लग भी रहा है, तो मैं आपसे कहता हूँ, कि यह असंभव नहीं है| बेशक, जब आप सत्संग में बैठते हैं, तब आपको यह समझ में आता है, तब यह मन में घंटी बजाता है, मगर जब फिर आप रसोई में जाते हैं, तब सब बदल जाता है| आप घर वापस जाते हैं, और ज्यादा बिगड़ जाता है| यह क्या है, ‘सब कुछ एक है’? ‘मैं तो अभी परेशान हूँ’, ‘यह व्यक्ति मेरी बात नहीं सुनता’, ‘यह व्यक्ति मेरे बारे में शिकायत कर रहा है’, और इसी तरह की तमाम बातें| मगर मैं कहता हूँ, कि यह ज्ञान असंभव नहीं है|
जब सात्विक बुद्धिमानी, सात्विक बुद्धि आती है, तब उसे कहते हैं सत्व शुद्धि| जब निर्मल बुद्धि आपके अंदर उभरती है, तब वह आपको अंदर से एकदम मुक्त कर देती है, शारीरिक कचरे से मुक्ति, भावनात्मक कचरे से मुक्ति और धारणाओं के कचरे से मुक्ति|
हम अपने दिमाग में इतना कचरा इकठ्ठा कर लेते हैं| हम सोच लेते हैं कि लोगों का स्वभाव ऐसा होना चाहिए, वैसा होना चाहिये, जबकि ऐसा नहीं होता है| और हम चाहते हैं, कि लोग ऐसे या वैसे बर्ताव करें| ऐसा क्यों होना चाहिये?
जीवन आपके लिए बहुत से ताज्जुब प्रस्तुत करेगा| कभी कभी आप सोचते हैं, कि फलां व्यक्ति आपका बहुत अच्छा मित्र है, और अचानक आप मुड़कर देखते हैं, कि वही व्यक्ति आपके लिए इतनी परेशानियां खड़ी कर रहा है| आपमें से कितने लोगों को ऐसा अनुभव हुआ है? (बहुत लोग अपना हाथ उठाया)
(श्री श्री हँसने लगते हैं) देखिये!
क्योंकि सिर्फ एक ही चेतना है जो पूरे पहिये को घुमा रही है, पूरी सृष्टि को चला रही है|
जो इसका अनुभव अपने मन में कर लेता है, और जिसे इसका एहसास खुद में हो जाता है, वह कहता है, ‘आह! मुक्ति! अब मुझे इस व्यक्ति, और उस आदमी, और वह महिला और वह व्यक्ति के बारे में बैठ कर नहीं सोचना!
यह सब आपके दिमाग में घूमता रहता है| ऐसा होने की ज़रूरत नहीं है| सब कुछ एक ही चेतना है| हर एक कोई, एक गुड़िया के जैसे है, जो उंगली में बंधे धागे को पकड़े हुए ऊपर नीचे कूद रही है, ऐसे वैसे बर्ताव कर रही है, और उनके कर्म उन्हें नचा रहें हैं|
क्या इस ज्ञान से स्वतंत्रता महसूस नहीं होती? असीमित स्वतंत्रता!!
तो यह किस तरह की स्वतंत्रता लाता है? यह हमें लालसाओं से स्वतंत्र करता है, और घृणाओं से स्वतंत्र करता है|
जब आप यह जानते हैं, तो शारीरिक स्तर पर आप सभी तरह के राग, जैसे शराब, ड्रग्स और इसी तरह की हानिकारक बंधनों से छुटकारा पा सकते हैं| ये बंधन हमने खुद ही अपने मन में बना रखें हैं|
फिर भावनात्मक कचरा इस व्यक्ति ने मेरी तरफ देखा’, ‘उस व्यक्ति ने मेरी तरफ नहीं देखा’ ‘मैं उससे प्रेम करता हूँ, और उसने मेरी बात का जवाब नहीं दिया’, ‘पहले तो वे मुझसे प्रेम करते थे, मगर अब उन सबको न जाने क्या हो गया हैये सब बातें नहीं होंगी| यही सब भावनाओं का कचरा जो हम अपने दिमाग में संजोये रखते हैं, अपने प्रेम को साबित करने में लगे रहते हैं, और दूसरे के प्रेम का सबूत मांगते रहते हैं, यह सब कुछ खत्म हो जाएगा|
और फिर धारणाओं का कचरा| बहुत सारे पोथी ग्रंथ लिखे गए हैं, इतनी किताबें लिखी गयी हैं, सारी धारणाओं के ऊपर| यह ऐसे ही हुआ, कि जिस व्यक्ति ने कभी आज तक हाथी को देखा तक नहीं, वह हाथी के ऊपर बड़ी बड़ी किताबें लिख रहा है|
ज़रा सोचिये, जब पहले टीवी भी नहीं था, एक किसी ने सिर्फ हाथी का एक चित्र देखा है, वह भी हाथ से बना हुआ रेखाचित्र, और वे हाथी पर निबंध लिख रहें हैं, कि उसका व्यवहार कैसा है, और उसे किस तरह से रखना चाहिये| बिल्कुल ऐसा ही हुआ है!
जिन लोगों को चेतना के बारे में न्यूनतम जानकारी है, वे बैठ कर किताबों पर किताबें लिख रहें हैं, और संस्करण छाप रहें हैं, और वे बहुत बिकती भी हैं! यह तो सबसे मजेदार बात है|
तो आपको इस तरह के भावनात्मक कचरे से छुटकारा मिलता है| इस इन्सान को सुनना, वह इन्सान, यह इन्सान नहीं!! हर एक कुछ एक ही चीज़ से बना है|
कितनी सुंदर है न यह बात? बहुत अच्छा!

प्रश्न : प्रिय गुरूजी, आपने कहा है कि भूत और भविष्य वर्तमान में ही व्यक्त होते हैं| आपने यह भी कहा है कि समय रैखिक नहीं है, जैसे कि हम सोचते हैं| मैं इसके बारे में सोच रहा हूँ, और थोड़ा उलझन में हूँ| क्या आप इसके बारे में थोड़ा और विवरण देंगे?
श्री श्री रविशंकर : सिर्फ थोड़ी उलझन में? आपको तो बहुत उलझन में होना चाहिये| (सब लोग हँसते हैं)
यही तो मेरा काम है; आपको बेहद उलझन में डाल देना!
भविष्य की सारी योजनाएं आज वर्तमान में हैं, है न? वे इसी क्षण में हैं| भूतकाल की सारी चिंताएं भी इसी क्षण में हैं| सिर्फ इसी क्षण का अस्तित्व है| सारा भूत, सारा भविष्य, सब कुछ इसी क्षण में ही मौजूद है|

प्रश्न : आपने अष्टावक्र गीता में कहा है, कि एक मन को बनने के लिए ८४ जीवन चाहिये| इसका क्या अर्थ है?
श्री श्री रविशंकर : हाँ, यह सही है, ८४ अलग अलग जीवन लगते हैं|
हाँ, इतने सारे शरीर हैं, उन सबको लांघ कर आप आज यहाँ आये हैं, इस वक्त| यह ८४ वा  भी हो सकती है!

प्रश्न : ऐसा क्यों है, कि सिर्फ कुछ ही लोग भगवान को पाना चाहते हैं, और कुछ लोगों को इसकी कोई परवाह नहीं है?
श्री श्री रविशंकर : ऐसा क्यों है, कि मेपल का वृक्ष केवल यहाँ कनाडा में उगता है, और फ्लोरिडा में नहीं?

प्रश्न : दुनिया में इतनी गरीबी क्यों है?
श्री श्री रविशंकर : ताकि आप उसे महसूस करें, और उसके बारे में कुछ करें| अगर विपरीत परिस्थितियां नहीं होंगी, तो आप उनके बारे में जान भी नहीं पायेंगे|
क्योंकि बीमारी है, इसीलिये स्वास्थ्य का महत्व है| क्योंकि गरीबी है, इसीलिये धन का महत्व है| है न? विपरीत मूल्य एक साथ रहते हैं और एक दूसरे के पूरक है| मैं यहाँ गरीबी की तरफदारी नहीं कर रहा हूँ, मुझे गलत मत समझियेगा|

प्रश्न : मेरे पति को डर है कि क्योंकि मैं क्राइस्ट को अपना उद्धारक नहीं समझती इसलिए, हम दोनों स्वर्ग में साथ नहीं होंगे| उनकी ईसाईयत बहुत मज़बूत है| मैं सोचती हूँ, कि क्या वाकई हम दोनों एक ही स्वर्ग में हो पायेंगे?
श्री श्री रविशंकर : अपनी खातिर, उनसे बहस मत करिये, और अपने लिए यहाँ नरक मत बनाईये| उनसे कहिये, ‘हाँ बिल्कुल, मैं उसी स्वर्ग में जाने के लिए छोटे रास्ते से जा रही हूँ| बस इतना ही है| और ईसाह मसीह ने ही मुझसे ऐसा करने को कहा है, और मैं बिल्कुल वैसा ही कर रही हूँ|’ उनसे यह कह दीजिए|

प्रश्न : प्रिय गुरूजी, मैं जिस भी लड़की को पसंद करता हूँ, वह मुझसे दूर भाग जाती है| मैं क्या करूँ?
श्री श्री रविशंकर : आप जिस तरह से अपने प्रेम को व्यक्त करते हैं, उसमे वाकई कुछ गड़बड़ है| आप का प्रेम इतना प्रबल है और आप उसे बहुत ज़ोर लगा कर व्यक्त कर रहें होंगे|
देखिये, अगर आप एक फ़व्वारे के नीचे खड़े हैं, और उसकी धार इतनी तेज है, तो निश्चय ही लोग उससे थोड़ी दूर खड़े हो जायेंगे| क्या आप समझ रहें हैं?
ज़रा सोचिये, आप एक फ़व्वारे के नीचे खड़े हैं, और फ़व्वारा इतना तीव्र है, कि उससे आपको चोट लग रही है, और वह आपके बाल तक उखाड़ रहा है| आप बिल्कुल भी उस फ़व्वारे के नीचे खड़ा होना पसंद नहीं करंगे, वह कष्टदायक होगा|
तो देखिये, कि आप अपने प्रेम को ज़रा मृदुता से व्यक्त करें, कोमलता से, और बहुत ज्यादा नहीं| कभी कभी बहुत ज्यादा अभिव्यक्ति भी दम घोंटने लगती है| और शायद ऐसा ही हो रहा है|
अच्छा है, कि आप मौन कार्यक्रम’ (एडवांस कोर्से ) में हैं| शांत होकर इसके बारे में दोबारा सोचिये|

प्रश्न : गुरूजी क्या आप हमें अपेक्षा कम करने की तकनीक सिखा सकते हैं| मेरे कार्य स्थल पर मैं बहुत सारी योजना बनाता हूँ जिसके कारण मुझे बहुत अपेक्षा करनी पड़ती है|
श्री श्री रविशंकर : कोई बात नहीं, अपेक्षा करे और फिर उसे छोड़ दीजिये|

प्रश्न : हम ध्यान के उपरान्त विश्राम क्यों करते हैं? ध्यान तो अपने आप में ही विश्राम है|
श्री श्री रविशंकर : हाँ कभी कभी जब अधूरे अनुभव हो या तनाव का निष्काशन हो तो शरीर थोड़ा विश्राम लेने का अनुभव चाहेगा| प्रत्येक ध्यान में भीतर इतना बदलाव होता है| क्योंकि इतने सारे बदलाव होते हैं, यह अच्छा होगा कि कुछ समय के लिए शरीर विश्राम करे यदि आवश्यक हो तो|
यह अनिवार्य नहीं है कि सभी ने लेट कर विश्राम करना चाहिये| लेकिन यदि शरीर की आवश्यकता हो तो फिर आप को विश्राम करना चाहिये| इसलिए हमने यह कहा है कि यदि लेट कर विश्राम करने का मन करे तो लेट कर विश्राम कर सकते हैं|
सभी सूचनाओं को माप कर उचित रूप में बताया जाता है| अन्यथा हमने कहा होता कि सभी लोग लेट कर विश्राम करे|”
यह कोई आदेश नहीं है, यदि आपका मन लेट कर विश्राम करने का करे तो आप ऐसा कर सकते हैं| यह अच्छा भी है| यह रक्त संचालन के लिए अच्छा है और अधिक विश्राम देता है|

प्रश्न : लोग आपसे किस किस्म के प्रश्न पूंछे, इसमें आपकी इच्छा क्या है?
श्री श्री रविशंकर : क्या मैं गुरूजी से यह प्रश्न पूँछ सकता हूँ?’ यह पूंछना एक अच्छा प्रश्न होगा|

प्रश्न : गुरूजी मेरे मन की प्रवृत्ति नकारात्मकता के ओर जाने की है, मुझे क्या करना चाहिये? यह मेरी प्रवृत्ति है| मैं इससे मुक्त होकर सकारात्मकता बनना चाहता हूँ| इस क्षण पर मैं बहुत कमजोर महसूस कर रहा हूँ|
श्री श्री रविशंकर : कौन कहता आप कमजोर है? आप सूर्य है तो आप कमजोर कैसे हो सकते हैं? चलो अब जाग जाओ| अपने आपको को कमजोर होने का लेबल न लगाये|
यदि कोई सिंह अपने सिर पर स्टिकर लगाये कि वह एक भेडीया है, तो उस पर कोई विश्वास नहीं करेगा| एक सिंह यह कहता जा रहा है कि मैं भेडिया हूँ, मैं एक भेड हूँ|’ आप भी यहीं कर रहे हैं|
अब उस लेबल को निकाल कर फेंक दो| यह कभी मत कहना कि आप कमजोर है| आपका अतीत कैसा भी हो, अब वर्तमान में आ जाये और आगे बढ़े| कोई बात नहीं यदि आप १० या १०० बार असफल हो जाये, मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता, लेकिन आप चलते रहे| खड़े हो जाये और दौड़ते जाये, कोई बात नहीं यदि आप गिर पड़ते हैं, फिर से खड़े हो कर दौड़ते जाये| यही एक साधक के गुण है|
जब आप एक बच्चे थे तब आप पूरी तरह से खड़े होने से पहले कितने बार गिरे थे| आप घिसटते और रेंगते रहते थे और खड़े होने का प्रयत्न करते थे लेकिन फिर आप खड़ा होना और चलना सीख ही गये| यह बिलकुल वैसे ही है| लेकिन यह बिलकुल मत कहिये कि मैं दस बार गिर गया इसलिए मैं अब कभी खड़े होकर चल नहीं सकता| मैं एक बिल्ली की तरह दो हाथ और दो पैरों के सहारे चल सकता हूँ| मैं कभी खड़ा नहीं हो सकता ऐसा कहने में कोई अर्थ नहीं है|
आप एक पक्षी की तरह है, आप गिर भी सकते है, आपके पास पंख है| जाग जायें और फिर से उड़ने लगे|
एक हफ्ते के लिए यहाँ आये और आध्यात्म से सम्बन्ध महसूस करे फिर एक गुरु और परंपरा यह कहेगी, मैं कमजोर हूँ,यह बिलकुल स्वीकार योग्य नहीं है, यह अज्ञानपूर्ण वक्तव्य है|

प्रश्न : विवाह का क्या उद्देश्य है?
श्री श्री रविशंकर : आप यह एक गलत व्यक्ति से पूँछ रहे हैं| जो शादी शुदा हैं आप उनसे यह प्रश्न कीजिये| मैं यह कहूँगा कि यह एक महत्वपूर्ण संस्था है| यदि आपको बच्चे चाहिये तो निश्चित ही आपको शादी करनी चाहिये और फिर बच्चे होने पर उन्हें शुरुआत से अच्छी शिक्षा देनी चाहिये|
शादी निश्चित ही एक संस्था है जिसमे आप निर्मल बन कर अपने साथी से कहे कि मैं अपनी सारी इच्छा तुम्हे देता हूँ और तुम्हारी सारी इच्छायें ले लेता हूँ|’
आप अपनी इच्छायें बाँट ले जिससे दुसरे की जिम्मेदारी आपकी इच्छा पूरी करने की हो नाकि अपनी खुद की|
एक भक्त अपनी सारी इच्छायें भगवान को दे देता है| यह मेरी इच्छायें हैं अब यह मेरी नहीं रही कृपया आप इनको पूरा करे| मैं मुक्त हूँ| मैं अपनी सभी इच्छायें आपको समर्पित करता हूँ|’
जब आप अपनी इच्छायें दे देते हैं तो फिर वह आपको परेशान नहीं करती| उसी तरह शादी के बाद पति अपनी पत्नी से कहता है कि मैंने अपनी सभी इच्छायें तुम को दे दी और अब मैं इच्छाओं से मुक्त हूँ| मैं वही करूँगा जो तुम चाहोगी”| उसी तरह पत्नी भी अपने पति से कहती है मैंने अपनी सभी इच्छायें तुम को दे दी और अब मैं इच्छाओं से मुक्त हूँ| मैं वही करूँगी जो तुम चाहोगे”|
इस तरह दोनों एक दुसरे की इच्छा पूरी करने के लिए प्रतिबद्ध हो जाते हैं| यह अपनी इच्छा का बलिदान है इस विश्वास के साथ कि दूसरा व्यक्ति आपका ख्याल रखता है|
एक नाव में दो जापानी यात्रियों की एक छोटी सी कहानी है| एक नवविवाहित जोड़ा नाव में सफर कर रहा था| वे अपने हनीमून पर जा रहे थे| इतने में तूफान के कारण नाव लहराने लगी और वह महिला परेशान हो गयी लेकिन वह पुरुष बहुत शांत था और हमेशा की तरह मुस्कुरा रहा था| महिला ने प्रश्न किया मैं इतनी चिंतित हूँ कि यह नाव कभी भी डूब सकती है लेकिन तुम फिर भी बहुत शांत हो| तुम्हे इस बात की चिंता नहीं हैं हम दोनों डूब कर मर सकते हैं’| फिर उसने एकदम से अपना चाकू निकाला और उस महिला के गर्दन पर तान दिया| वह महिला इस कृत्य पर हँसने
लगी और उसने कहा कि क्या यह वक्त खेलने का है| अभी भविष्य के बारे में सोचने का समय है’|
पुरुष ने कहा, तुम भयभीत क्यों नहीं हो? मैंने तुम्हारी गर्दन पर चाकू तान रखा है और मैं तुम्हे मारने वाला हूँ’|
महिला हँसने लगी और उसने कहा, जब चाक़ू तुम्हारे हाथ में है तो मुझे घबराने की क्या जरुरत है? मुझे पता है तुम मुझे हानि नहीं पहुँचाओगे’|
पुरुष ने कहा मेरा भगवान और प्रकृति से वैसा ही सम्बन्ध है| जब मेरा जीवन उसके हांथो में हैं तो वह इस तूफान में मुझे मरने नहीं देगा| वह मुझे गिरने नहीं देगा| मुझे चिंता इसलिए नहीं है क्योंकि मेरे जीवन की डोर उनके हांथो में हैं| फिर मैं चिंता क्यों करु?
उसी क्षण से वह महिला भी आध्यात्मिक बन गयी और कहानी में तूफान उसी क्षण थम गया| तूफान थमने से दोनों प्रार्थनापूर्ण हो गये|
संकट के समय ही विश्वास की भूमिका बनती है और सबसे विनोदपूर्ण बात यह है कि संकट के समय लोग विश्वास खो देते हैं| जब उसकी सबसे ज्यादा आवश्यकता होती है तब लोग विश्वास खो देते हैं| इसलिए विश्वास भी एक उपहार है और यह आपकी बनायी हुई बात नहीं है|
कोई भी यह नहीं कह सकता, मुझे इतना विश्वास है, फिर भी मेरे साथ ऐसा क्यों हुआ?’
आपने कौनसी बड़ी बात कर दी? विश्वास आपको दिया गया है| यह वहीँ बात है कि आपको नाव के साथ में डांड़ भी दिया गया है| इसलिये विश्वास को आपने विकसित नहीं किया लेकिन उसकी आवश्यकता संकट से समय सबसे अधिक होती है| यह भी एक उपहार है और ध्यान देने के लिए यह अत्यंत महत्वपूर्ण बात है| फिर आता है, इसके बाद क्या? इसके बाद कुछ नहीं|
विश्वास को कैसे बढ़ाये?’ कुछ भी न करे सिर्फ विश्राम करे| आप कुछ कर भी नहीं सकते|
मैं आप से सिर्फ कर्ता भाव निकालने की बात कर रहा हूँ| फिर आप पूंछेंगे कर्ता भाव को मैं कैसे छोडू’|
लोग सबसे मूर्खतापूर्ण प्रश्न यही पूंछते हैं| मैं कर्ता भाव को कैसे छोड़ू? मैं आप से कह रहा हूँ कि आप कर्ता नहीं है|
सबसे पहले कर्तापन होना चाहिये उसे छोड़ने के लिए| आप कर्ता नहीं हो| इसके लिए आप कुछ भी नहीं कर सकते| इसके सारे रास्ते बंद हो चुके हैं और सब कुछ हो चुका है|
इससे भारी मुक्ति मिलती है, मैं किसी के लिए कुछ भी नहीं कर सकता’| अब मुझ से यह मत पूंछना, मैं क्या कर सकता हूँ जब मैं किसी के लिए कुछ भी नहीं कर सकता?’ (श्री श्री मुस्कुराते हैं)

प्रश्न : क्या प्रत्येक व्यक्ति के लिए आध्यात्मिक पथ अद्भुत होता है? यदि हाँ तो हम व्यक्तिगत मार्गदर्शन आपसे कैसे पा सकते हैं?
श्री श्री रविशंकर : हां हम व्यक्तिगत तौर पर भी और साथ में सब के साथ सिखाते हैं| ७ अरब लोग हैं और बहुत कम प्रशिक्षक हैं, इसलिए हम सबको सिखाते हैं|
इन ७ अरब लोगों में ०.०००००००००००००१% लोग हैं शायद उन में से आप एक हो सकते हैं|

प्रश्न : गुरूजी मैं जीवन के एक कठिन दौर से गुजर रहा हूँ और एक के बाद एक समस्याओं ने मुझे घेर रखा है| मैं इसका समाधान आध्यात्मिक, व्यावहारिक और ज्योतिष शास्त्र में ढूंढ़ रहा हूँ लेकिन कुछ भी काम नहीं आ रहा| मैं अपनी साधना निरंतर करता हूँ, मुझे क्या करना चाहिये?
श्री श्री रविशंकर : फिर भी जीवन चल रहा है|पीछे मुड के देखो तो पता चलेगा कि यदि इन में से कोई भी समस्या का समाधान आपने यदि नहीं किया होता तो क्या आप आस्तित्व में होते| आप ने पीछे मुड़ कर वास्तविकता को देखना चाहिये या किसी और से इसकी समीक्षा करने को कहना चाहिये| पिछले १० वर्षों में आप की बहुत सारी समस्या थी? क्या आप को १० -१५ वर्षों में एक भी समस्या का समाधान नहीं मिला?
फिर किसी समस्या का समाधान करने की जरूरत नहीं है क्योंकि जो भी समस्या आई वह चली गई और आप फिर भी जीवित है और अपनी साधना कर रहे हैं| यह बहुत बड़ी बात है| इसका अर्थ है कि समस्याएं आप का कुछ भी बिगाड़ नहीं पायी| वे आई और चली गयी और आपको उनका समाधान पाने की भी आवश्यकता नहीं पड़ी| आप समझ रहे हैं ना मैं क्या कह रहा हूँ? इसका आप कोई सामान्य अनुमान न लगाये और कोई लेबल न लगाये, मेरा जीवन असफल रहा और मुझे बहुत सारी समस्यायें हैं| मुझे हर समय समस्या होती है? यह संभव नहीं है|
उनके तरफ देखो जिनकी और भी बड़ी समस्यायें हैं, आप मेरी कितनी समस्यायें हैं उसे देखे| क्या आपको पता है एक दिन में मुझे कितने प्रश्नों का उत्तर देना होता है? किसी ने कहा गुरूजी यदि आपने १० डॉलर भी प्रति प्रश्न लिया होता तो आप बिल गेट्स से बड़े आदमी बन गये होते’| यदि उस व्यक्ति से मैं सहमत नहीं होता तो शायद हाँ! क्या आपको पता है मुझे रोज कितने ईमेल आते हैं? १०१,००० ईमेल|
पिछले १ महीने में मैंने १२ देश और १८ शहरों का दौरा किया और दिन में मैं १९ घंटे व्यस्त रहता हूँ| इस लंबी यात्रा से मैं अभी आया हूँ और तुरंत १०० से अधिक प्रश्न होंगे और मुझे उनके उत्तर देने होंगे|
लोग जैसे हैं उन्हें स्वीकार करे| और कई विक्षिप्त,पागल,दीवाने और कई प्रकार के नमूने होते हैं| क्या आपने मुझे उनके प्रति कभी भी नाराज़ होते हुए देखा है?
ऐसी परिस्थिति में समझदार रहना भी एक बड़ी समस्या है| मैंने सुना है मनोविशेषज्ञ अपने व्यवसाय में कुछ समय बाद खुद ही रोगी बन जाते हैं क्योंकि वे लोगों की समस्याओं को सुनते रहते हैं|
माइकेल  फिश्मन एक बार डॉक्टर और उनके मरीजों का कोर्से ले रहे थे और वे बता रहे थे कि गुरूजी यह पहचान पाना बहुत मुश्किल हो रहा था कि कौन डॉक्टर है और कौन मरीज|” वह समूह ही ऐसा था|
मुझे नहीं पता कि यह कहा तक सही है लेकिन मैने लोगों से सुना है कि जो लोग अपने क्षेत्र में डॉक्टर होते हैं, वह अंत में खुद ही रोगी बन जाते हैं|
हाल में एम्स में एक शोध हुआ था, उन्होंने बताया कि ७८% डॉक्टर खुद बीमार है और वे रोगी बन गये है| यह रिपोर्ट चौकानें वाली है ना? इसलिए जिनकी बड़ी समस्याए हैं, यदि आप उनको देखेंगे तो आपको अपनी समस्या कुछ भी नहीं लगेगी| इस संसार में काफी सारी समस्यायें हैं| किसे समस्या नहीं है? ईसाह मसीह को भी यहाँ पर समस्या थी| पूरा केथोलिक आंदोलन ईसाह मसीह की समस्यों के कारण हुआ नाकि उनके द्वारा प्रदान की गई शिक्षा के कारण| वह पीड़ा पर ही केंद्रित था ना? शिक्षा तो वहाँ निश्चित है लेकिन पीड़ा मुख्य बिंदु है| क्रिसमस ईसाई धर्म का प्रतिक नहीं हैं लेकिन वह क्रॉस या सूली पर चढ़ना| भगवान श्री कृष्ण के साथ भी वैसे ही अंत तक समस्यायें थी| अंत में उनको सब कुछ छोड़ना ही पड़ा| उन्होंने अपने सभी नागरिकों को कहा कि आप सब लोग उत्तर की ओर जाये क्योंकि यह शहर डूबने वाला है’| उनके ही वंश के लोग आपस में लड़ रहे थे और बहुत घमंडी हो गये थे| भगवान श्री कृष्ण के वंश के लोग, उनके सैनिक और उनके मंत्री इतने घमंडी हो गये थे कि वे सोचते थे कि उनका भगवान श्री कृष्ण पर मालिकाना हक है और क्योंकि उनका ज्ञानोदय हो चुका था, वे सोचते थे कि हम भगवान श्री कृष्ण के परिवार से हैं तो हमारा कोई क्या बिगाड़ सकता है? वे इस घमंड के साथ आपस में लड़े और सबका और अपना विनाश कर दिया| इसलिए मैं इस संसार में पूर्णता को नहीं देखता क्योंकि यह संसार अपूर्ण है| जितनी भी पूर्णता इस संसार में आप ला सके उसे लाये और फिर हाथ धो कर आनंद उठाये| निश्चित ही आप जो कर सकते हैं उसे करे लेकिन इसका यह अर्थ नहीं है कि आप किसी बात को अपूर्ण ही छोड़ दे, नहीं| आप यहाँ इसलिए है कि आप जितना भी पूर्णता का स्तर यहाँ पर ला सके उसे लाये और उसमें जितने भी गुण अर्जित कर सके उसे करे| जितना आप चलेंगे उतने ही गुण, कौशल और प्रतिभाएं आपके जीवन में खिल उठेंगी और आपका जीवन उतना ही आनंदमय होगा| इसलिए यदि आप कुछ नहीं करेंगे तो आप दुखी होंगे| इसलिए आपको जो भी कुछ करना आवश्यक है उसे करे और मुक्त हो जाये|