२८
२०१२ बद अन्दोगस्त, जर्मनी
अप्रैल
(श्री श्री रविशंकरजी प्रश्नों की भरी हुई टोकरी की तरफ देख कर कहते हैं)
मैं एक बहुत अच्छे प्रश्न से आज शुरू करना चाहता हूँ| सभी प्रश्न एक से हैं, बल्कि हर एक प्रश्न एक सा परिणाम देता है जब वो उसका सही जवाब सुनता है| जब आप सही जवाब सुनते हैं, आप क्या कहते हैं ? "हाँ, मैं मानता हूँ|" जब जवाब सही नहीं होता तब आप नहीं कह सकते की हाँ, मैं मानता हूँ| आप कहते हैं कि नहीं, ये गलत जवाब है| लेकिन जब आपको सही जवाब मिलता है, आप कहते हैं "हाँ|"
तो इस तरह हर जवाब अगर वह सही है तो उसका काम दिमाग को एक हाँ की स्तिथि में लाना है| लेकिन अगर हर जवाब और सवालों को जन्म दे तब ये कभी न ख़त्म होने वाली यात्रा बन जाएगी| एक तरीके से देखें तो यह अच्छा है, क्योंकि इस से दिमाग की कसरत होती है लेकिन उसके अलावा कुछ भी नहीं, यह सिर्फ थोड़ा सा मनोरंजन है बस और कुछ नहीं| तो फिर क्या कोई सवाल नहीं होना चाहिए? नहीं, ऐसा ज़रूरी नहीं| दिमाग की कसरत भी ज़रूरी है| बुद्धि एक बहुत आवश्यक हिस्सा है, यहां तक की सबसे पुराने ग्रंथ भगवत गीता में भगवान श्री कृष्ण ने सब ज्ञान देकर अंत में कहा कि अब आप सोचो, समझो और फैसला लो कि तुम्हारे लिए क्या सही है| फिर उन्होंने कहा, "लेकिन एक बात याद रखो, मैं केवल वही कहूँगा जो तुम्हारे लिए अच्छा है और तुम केवल वही चुनोगे जो मैं कहूँगा"| एक गुरु और एक शिष्य के बीच ये संवाद बहुत रोचक है| हर एक को अपनी ज़िन्दगी में कम से कम एक बार ये ज़रूर पढ़ना चाहिए|
जब आइंस्टीन
समेत विश्व के महान वैज्ञानिको ने इसको पढ़ा, उन्होंने कहा कि उनकी ज़िन्दगी बदल गयी क्योंकि उनसे अब तक यही कहा गया था कि सवाल मत पूछो| धर्म और विश्वास के अर्थ हमेशा ये नहीं कि कोई सवाल मत करो बस आँखें बंद करके अनुसरण करते रहो, बल्कि योग वेदांत ज्ञान ये नहीं कहता है, वो बुद्धि को झटक के नकार नहीं देता| वो कहता है कि अपनी बुद्धि का इस्तेमाल करो, पूरा इस्तेमाल करो, लेकिन ये भी याद रखो कि "सिर्फ बुद्धि ही सब कुछ नहीं| सत्य उसके भी परे है, उस से भी एक क़दम आगे"| इसलिए बुद्धि में अटक मत जाओ, हाँ लेकिन साथ साथ इसे तीव्र भी करो| श्रद्धा और प्यार जो दिमाग से भी परे है वो बुद्धि है|
प्रश्न : बहुत से व्यक्तियों को बहुत छोटी उम्र में ये बात साफ़ होती है कि वो आगे क्या बनना चाहते हैं, डॉक्टर, इंजिनियर, अध्यापक आदि| और वो उस पर डटे रहते हैं, बदकिस्मती से मुझे वैसा महसूस नहीं होता| अब मैं उतना छोटा भी नहीं रहा और इन सब का पता नहीं चलना मुझे डरा देता है, मैं क्या करूँ?
श्री श्री रविशंकर : नहीं, चिंता मत करो| सब कुछ पूर्व नियोजित है| जब तुम्हारे दिमाग में साफ़ न हो कि आप क्या करना चाहते हो तब ध्यान करो और अपने मन की बात सुनो| मैं कहता हूँ, सब पेशे एक से ही हैं| किसी भी पेशे में लोग खुश नहीं हैं| डॉक्टर को देखो, उनकी ज़िन्दगी इतनी दुखी है क्योंकि उन्हें हमेशा बीमार व्यक्तिओं के साथ रहना पड़ता है| दिन के १५ घंटे वो बीमार लोगो के साथ रहते हैं, उनकी समस्याएं सुनते हैं, यहाँ तक कि अगर वो उनको उसका समाधान बताते भी हैं तब भी लोग उनसे वही सवाल बार बार करते हैं| अगर आप किसी को कहो कि नहीं आपको कोई बीमारी नहीं, आप स्वस्थ हैं, वो आपसे नाराज़ हो जायेगा| इसलिए बहुत से डॉक्टर जब आप स्वस्थ होते हैं तब भी आपसे कहते हैं कि नहीं, आप बीमार हैं| ये आपको खुश कर देता है| और तब आप बोलते हो, ये डॉक्टर बहुत अच्छा है, इसने मेरी बीमारी पकड़ ली| डॉक्टर जो शपथ लेते हैं वो आसान नहीं, वो छुट्टी लेकर कहीं आजा नहीं सकते, आधी रात को भी उन्हें कोई फ़ोन आ सकता हैऔर फिर वो पूरी रात डर में रहते हैं| ये उनके पेशे का रहस्य है| जब आपको सिर दर्द होता है तब वो आपको एस्पिरिन दे देते हैं, लेकिन उन्हें भी हमेशा नहीं पता होता कि सारी परेशानियों की क्या दवा है? कभी कभी उन्हें सिर्फ अनुमान लगाना पड़ता है|
इंजिनियर को देखो, दिन रात मशीनों के बीच काम करके वो भी मशीन से बन जाते हैं| उन्हें बनना पड़ता है, ये मैं नहीं कहता, ये खुद इंजिनियर कहते हैं, "ओह ज़िन्दगी कितनी नीरस है, सारा दिन, सारी रात बस मशीन, मशीन और मशीन|" यहाँ तक कि उन्हें सपने में भी मशीन ही नज़र आती है| अगर वो किसी कार के कारखाने में काम करते हैं तब वो सपने में भी कार ही देखते हैं कि एक कार बिना किसी व्यक्ति के अन्दर बैठे हुए भी चल रही है| यहाँ कोई व्यक्ति जो एक कार के कारखाने में काम करता है, बता रहा था कि "उसको सपने में दिखता है कि कार बिना किसी व्यक्ति के चल रही है, कभी बेल्ट पर, कभी ट्रक में और उसमें कोई बैठा नहीं हुआ|"
वकील, उनसे आप उनकी कसम पूछ भी नहीं सकते| वो हर जगह किसी न किसी परेशानी को ढूँढ़ते रहते हैं ताकि उनका जीवन-यापन हो सके| अगर सब जगह एकदम शांति हो जाएगी तब वकील का गुज़ारा कैसे चलेगा? जब दो भाइयो में झगड़ा होता है तब वकील बहुत खुश होता है, वो मुस्कुराता है और कहता है कि अब ठीक है, अब मैं कुछ पैसा बना सकता हूँ| खुशकिस्मती से उन्हें इसके विषय में ज्यादा सोचना नहीं पड़ता क्योंकि ऐसे ही विश्व में सब जगह झगड़े हो रहे हैं, और सब उनके ही पास आते हैं| वो कहते हैं,"आओ मैं आपकी समस्या सुलझाता हूँ|" लेकिन वो इसको जल्दी से नहीं सुलझाते| वो इसको आगे की तरफ टालते रहते हैं, कोई भी वकील किसी भी केस को जल्दी से नहीं सुलझाता, जितना लम्बा केस चलेगा, उतना ही उनके लिए अच्छा है| हर पेशी के लिए वो मुवक्किल से पैसे ले सकते हैं| वो इतने बेवकूफ नहीं कि केस ऐसे ही बना कर उसको हाथ से जाने दें|
आप कोई भी पेशा देखो, उसमें खामियां हैं|
धार्मिक लोग| वो समस्या तो उनसे भी बड़ी है| रामायण में एक बहुत अच्छी कहानी है, आप सुनना चाहोगे?
एक ऐसे ही आवारा कुत्ता था जो सड़क से जा रहा था कि किसी ने उसको पत्थर मारा और उसको भगाया| इसलिए वो कुत्ता दरबार में गया| ये कहा जाता है कि राम के दरबार में जानवरों को भी इन्साफ मिलता था| कुत्ते ने कहा कि "सड़क तो सबके लिए है| सड़क पर कहीं ये नहीं लिखा कि इस सड़क पर चलने की कुत्तों को अनुमति नहीं| मैं सड़क पर जा रहा था, इस आदमी ने मुझे मारा, आपको इसे सजा देनी चाहिए|" भगवन राम ने उस व्यक्ति को पूछा कि क्या वो कुत्ता सही कह रहा है, वो व्यक्ति झूठ नहीं बोल पाया और कहा कि हाँ, उसने कुत्ते को मारा है| उन दिनों में पीड़ित से पूछा जाता था कि गुनहगार को क्या सजा दी जाए| इसलिए जब कुत्ते से पूछा गया कि बताओ इसको क्या सजा दी जाए, जिसने तुम्हें मारा है| तब कुत्ते ने कहा कि इसको किसी धार्मिक संस्था का प्रमुख बना दो| किसी मठ का गुरु बना दो| लोगों ने कहा कि ये तो बड़ी अजीब सी सजा है| तब कुत्ता बोला कि पूछते क्यों हैं? इसको बना दीजिये| मैं भी पिछले जनम में मठाधीश था, देखो मेरा अब क्या हाल हो गया है,तब मैंने मरने से पहले सोचा कि मठ का गुरु बनने से तो अच्छा है कि मुझे गली का कुत्ता बना दिया जाता| देखो इसीलिए इस जन्म में कुत्ता बना हूँ| मुझे तब इतनी तकलीफ हुई| इसलिए इस आदमी को भी किसी मठ का गुरु बना दीजिये| तब इसको पता चलेगा कि कितनी तकलीफ होती है, दर्द क्या है, तकलीफ क्या है, सब पता चल जायेगा|"
ये रामायण में एक बहुत रोचक सी कथा है|
कोई भी पेशा, कोई भी रोज़गार, कोई भी काम इस धरती पर आसान नहीं है| हर पेशा यहाँ मुश्किल है| कोई भी काम आसान नहीं और किसी धार्मिक संस्था का प्रमुख बनना तो और भी मुश्किल है क्योंकि आपको सबका ख्याल रखना पड़ता है| अगर आप किसी व्यक्ति कि तरफ नहीं देखते तो वो शिकायत करता है आपने मेरी तरफ नहीं देखा, कल आपने मुझे दुखी किया| आप यहाँ सबको खुश करने आये हैं लेकिन इस चक्कर में आपने किसी को दुखी कर दिया| जब आप उनकी तरफ देखते हो तब वो कहीं और देख रहे होते हैं| और तब वो ये चाहते हैं कि जब वो चाहें तब ही आप उनकी तरफ देखो वरना वो नाराज़ हो जायेंगे| अब क्या करो? और विज्ञान ने इस समस्या को और भी बढ़ा दिया है| आपको पता है कि मुझे कितनी इ-मेल आती हैं? पिछले कुछ हफ्तों में लगभग १,०१,०००, और मुझे उन सब को पढ़ना होता है| हर हफ्ते लगभग १०००० मेल आती हैं| कभी ८००० कभी २०००, नंबर ज़रूर बदल जाता है लेकिन वो सब इकट्ठी हो जाती हैं| इसलिए किसी भी पेशे में जाने के लिए चिंता मत करो| सारे पेशे एक से ही हैं| कोई भी ऐसी नौकरी ढूँढ लो जिस से तुम्हारी ज़िन्दगी चल सके| आपको बहुत ज्यादा लालची नहीं बनना है और आपको कमी का अहसास भी नहीं करना है| हमें अपने दिल में सोचना चाहिए कि बहुत है, पैसा एक ऐसी चीज़ है जो कभी पूरा नहीं होता| अगर आप देखो, करोडपति व्यक्ति भी यही सोचते हैं कि कैसे वो अपने पैसे को दुगना, तिगना कर सकते हैं| ये दौड़ तो कभी ख़त्म ही नहीं होती| मैं इस साल डावोस में था और वहां सब करोड़पति थे, उनकी आँखों में देखो, उनके चेहरे को देखो| वहां कोई तृप्ति नहीं, कोई ख़ुशी, कोई सुकून नहीं, कोई शांति नहीं, आगे बढ़ने का कोई चिन्ह नहीं|
आप समझ रहे हो मैं क्या कह रहा हूँ| आप एक झोंपड़ी में भी मुस्कराहट ढूँढ सकते हो लेकिन आप एक महल में मुस्कराहट नहीं ढूँढ पाते, आप वहां शायद एक शांत दिमाग भी नहीं ढूँढ सकते|
प्रश्न : हम
अपने बुरे कर्म को कैसे साफ़ करें? मैं अपने प्रति बहुत आलोचनात्मक रहता हूँ| मैं
अपने आप से प्रेम करना कैसे सीख सकता हूँ?
श्री श्री रविशंकर :
भगवान कृष्ण भगवद गीता में कहते हैं कि आप अपने कर्म से नहीं छूट सकते| वह मैं
तुम्हारे लिए करूँगा|
आप बस अपना काम करिये और बुरे कर्म की चिंता मत करिये| इसके लिए आपका गुरु है|
अपने या अपने कर्म के प्रक्षालन की चिंता मत करिये| जब आप ज्ञान का जीवन जीते हैं,
जब आप सत्संग करते हैं, ध्यान करते हैं और जब आप सुदर्शन क्रिया करते हैं, यह सब
अपने आप चला जायेगा| यह सब आप क्यों करते हैं? यह सब आपके बुरे कर्म को मिटा सकते
हैं|
बुरे कर्म क्या हैं? यह आपके मन की बुरी छवियाँ हैं; आपके चेतन में| यदि आप
फिर भी कुछ महसूस करते हैं, तो आप कह सकते हैं, “गुरूजी मैं यह सारी चिंताएं आपको दे रहा हूँ, कृपया इनको
सुलझाइये|” और सब ऐसे ही गायब हो
जायेंगे, ठीक है?
प्रश्न : आप में इतनी सहानुभूति क्यों है? आप
को गुस्सा क्यों नहीं आता यह जानते हुए कि मैंने वहीँ गलती बार बार की है और आपको
निराश किया है| मुझे अपने आप से घृणा होती है|
श्री श्री रविशंकर : चिंता
मत करो| अतीत की चिंता में विचारमग्न मत रहो|
जब एक शिशु चलना शुरू करता है तो बहुत बार गिरता है| पर वह खड़ा होना छोड़ नहीं
देता केवल इस लिए कि वह दस बार गिरा था| वह प्रयत्न
करता रहता है जब तक वह खड़ा होना सीख न जाये|
इस लिए मैं आपसे कहना चाहता हूँ कि आप बहुत अच्छा कर रहे हैं, बस चलते रहिये| कम से
कम आपके पास गलती करने का दर्द है; यह आपको अधिक गलतियां करने से बचायेगा|
आप जानते हैं आप गलतियां क्यों करते हैं? क्योंकि आपको लगता है कि आपको इससे
कोई खुशी मिल रही है| नशीले पदार्थ या शराब का सेवन करना,
धूम्रपान करना बुरा है और सेहत के लिए हानिकारक है पर आप फिर भी करते हैं, क्यों?
क्योंकि आपको लगता है यह आपको कोई खुशी दे रहे हैं| असल में ये
आपको खुशी नहीं देते, केवल खुशी देने का वादा करते हैं|
एक और कहानी है| एक सज्जन बाज़ार गए और एक संत के
आशीर्वाद वाला शंख ले आये| यह एक बहुत ही खास और रहस्यमयी शंख था|
आप उस से जो भी मांगे वो आपको दे देता था| इन सज्जन के एक दोस्त ने उस शंख को देखा
और बहुत उत्तेजित हो गए और उन्हें भी ऐसे ही शंख पाने की इच्छा हो गयी| कई बार आप
कुछ पाना चाहते हैं, इसलिए नहीं कि आपको वो चाहिए, पर इसलिए क्योंकि किसी और के
पास वह है| आपके दोस्त के पास है और इस लिए आपको भी चाहिए| आपके दोस्त ने एक बेंज
या औडी कार खरीदी और अब आपको भी एक औडी कार चाहिए| क्या फर्क पड़ता है? आपको बस एक
कार की आवश्यकता है आने जाने के लिए| पर क्योंकि आपके दोस्त ने बड़ी गाड़ी ली और
आपको भी अब बड़ी गाड़ी चाहिए!
तो उन सज्जन के दोस्त भी शंख लेने बाज़ार गए| दुकानदार ने कहा इस शंख की खासियत
है कि आप जो मांगोगे ये उसका दुगना आपको देगा| जैसे, यदि आपको एक कार चाहिए, तो
शंख कहेगा, एक क्यों आप दो ले सकते हैं|
क्या किसी ने यह कहानी सुनी है? नहीं? आप मेरी किताबें नहीं पढ़ रहे या मेरी
टेप नहीं सुन रहे!
तो उन्होंने वह शंख खरीदा और घर ले गए| उन्होंने शंख से एक किलो सोने के लिए
कहा| शंख बोला, “एक किलो क्यों? दो किलो लीजिए!”
वे बोले, “ठीक है, दो किलो दे दो|”
शंख बोला, “दो क्यों? चार लीजिए|”
वे बोले, “ठीक है, चार दे दीजिए|”
शंख बोला, “चार क्यों? आप आठ लीजिए|”
वे बोले, “ठीक है मुझे आठ दे दीजिए, मुझे और नहीं चाहिए|”
शंख बस गुणा करता गया, पर उसने कुछ दिया नहीं|
वो आदमी बोला, “मुझे कुछ तो दे दो”, तो
शंख ने कहा, “कुछ क्यों? आप बहुत सी वस्तुएं लीजिए|” वो
आदमी अपने कान पकड़ कर चीख उठा|
आदतें ठीक ऐसा ही करती हैं आपके साथ| आदतें केवल खुशी का वादा करती हैं, पर
खुशियाँ देती नहीं हैं| बुरी आदत छोड़ने के लिए आपको इन तीन में से एक की आवश्यकता
है, प्रेम, डर या लालच|
गहरा प्रेम या अपने प्रिय को किया हुआ वादा कि आप उस तरफ नहीं देखेंगे आपको
बुरी आदत से निकाल सकता है| जब डाक्टर आपको कहे कि आप और शराब पीयेंगे तो आपका
गुर्दा क्षतिग्रस्त हो जायेगा और आपकी मृत्यु हो जायेगी, तो आप शराब को हाथ नहीं
लगाएंगे| और यदि कोई आपको कहे कि आप ४० दिन तक शराब नहीं पीयेंगे तो वो आपको एक
करोड़ रूपए देंगे, तो आप कहेंगे, ४० क्यों, मैं ४५ दिन तक ऐसा करूँगा| तो, लालच, डर
या प्रेम आपको बुरी आदतों से बाहर ला सकता है|
मेरा स्वभाव है कृपालु होना| इतने सालों में, लगभग ५६ सालों में, मैंने एक भी
बुरा शब्द किसी से नहीं कहा है| यह कोई उपलब्धि नहीं हैं| हमारा शरीर ऐसा ही बना है
मैं ऐसा ही बना हूँ| मैं बुरे शब्द नहीं बोल सकता चाहे मैं परेशान ही क्यों न हूँ|
मैं बस “अरे मूर्ख!” से ज़्यादा कुछ
नहीं कह सकता| यह भी मैंने बस ७-८ बार कहा होगा, मैं अपनी उँगलियों पर गिन सकता
हूँ| मेरे लिए मुमकिन नहीं है किसी को अपशब्द कहना, या दोष देना| मैंने ऐसा कभी
नहीं किया है| कभी किसी को दुःख नहीं पहुँचाया अपनी तरफ से| फिर भी यदि लोगों को
बुरा लगा है, तो यह उनकी समस्या है, मैं क्या करूं?
प्रश्न : मेरा प्यार, जिसके साथ मैं ४ साल से
हूँ, उसने मुझे कहा है कि वो किसी और से प्रेम करती है| वह उससे ५ महीने पहले मिली
है| मुझे क्या करना चाहिए? मैं उससे बहुत प्रेम करता हूँ और उसे खोना नहीं चाहता|
उसने मुझे इंतज़ार करने को कहा है जब तक कि वो अपना निर्णय ले सके| क्या मुझे
इंतज़ार करना चाहिए या उसे जाने देना चाहिए?
श्री श्री रविशंकर : मैं
एक तरह से आपकी समस्या समझ सकता हूँ| पर दूसरी ओर,
मुझे इसका कोई अनुभव नहीं है| इस लिए मैं आपको राय नहीं दे सकता|
मैं इतना कह सकता हूँ कि कुछ वक्त लीजिए, और मौन में रहिये| अपने
जीवन के बारे में सोचिये, वह पहले कैसा था| जब यह व्यक्ति
आपके जीवन में नहीं था तब भी आप खुश थे? यदि इस व्यक्ति नें आपमें कोई किरण जगाई,
आपको प्रेम का अनुभव कराया, तो बस उनका धन्यवाद करो| भविष्य में
उनके बिना भी आपका जीवन चलता रहेगा|
मैं आपको कहता हूँ, आप ऊंचाइयों में ही जायेंगे| यदि वो व्यक्ति चला जायेगा,
तो आपको कोई और बेहतर व्यक्ति मिलेगा| यह निश्चित है| यह
जानो कि आप केंद्र हो अपने जीवन के, ठीक है?
अपनी आत्मा को दुसरे व्यक्ति में मत डाल दो, उसे अपने में ही रखो| और
यदि वह व्यक्ति वापस आ जाए, तो ठीक है, नहीं तो आगे बढ़ो|
यह ज्ञान आपकी सहायता करेगा ताकि आपका प्रेम घृणा में न बदल जाए| बहुत बार,
लोग किसी को प्रेम करते हैं और वह इतनी कड़वाहट में बदल जाता है कि अविश्वसनीय हो
जाता है! इस लिए, ऐसा मत होने दीजिए| यदि आप किसी
को प्रेम करते हैं, तो उन्हें आज़ाद छोड़ दीजिए| यदि वो आपका
है, तो आपके पास वापस आ जायेगा| यदि वापस नहीं आया, तो वो आपका कभी था ही नहीं| बस
इसको जानो और आगे बढ़ो|
प्रश्न : मैं इस विचार के साथ बड़ा हुआ हूँ कि
भगवान जीवित नहीं हो सकते| अब जब मैं आपसे मिला हूँ और ये सारा
सुन्दर ज्ञान सुना है, तो ऐसा लगता है कि मैं एक जीवित भगवान से मिल रहा हूँ| पर
भगवान जीवित तो नहीं हो सकते| मेरा मन समझ नहीं पा रहा| मैं जानता
हूँ कि आप हैं, आपके ज्ञान और प्रेम के द्वारा मैं आपको पूरी तरह नहीं गले लगा
सकता जब तक आप मनुष्य रूप में हैं| मैं देख सकता हूँ, प्रभु को महसूस कर सकता हूँ,
पर समझ नहीं पा रहा| कृपया मुझे ज्ञान दें|
श्री श्री रविशंकर : भगवान
प्रेम है और प्रेम ही भगवान है, और ये हम सब में है|| ऐसा
कुछ नहीं है जो भगवान न हो, क्योंकि सारी सृष्टि ही प्रेम से बनी है| इस लिए,
भगवान कोई व्यक्ति नहीं है| वह एक मैदान के जैसा है, यदि वह सब जगह है, तो वो आपमें
भी है|
यदि वह हर समय है तो वो यहाँ और अब भी है| आप सही हैं,
कुछ लोग सोचते हैं कि भगवान स्वर्ग में बैठा हुआ कोई है| उसने
सब कुछ रचा है, और अब मृत हो कर जा चुका है| जैसे हम कुछ लोगों का आभार प्रकट करते
हैं, जो इस दुनिया में नहीं रहे, उसी तरह आप भगवान को ऐसे देखते हैं कि वो जा चुके
हैं, और आप उनका धन्यवाद करते हैं|
लोग समझ नहीं पाते; भगवान एक सजीव विद्यमानता है, जो अभी और यहाँ उपस्थित है|
केवल मौन की गहराइयों में आप इसका अनुभव कर सकते हैं|
जब आपका मन शांत हो, और जब आप कहें, “मुझे कुछ नहीं
चाहिए”, जो सब है, वह आप ही हैं| इस भाव के साथ जब आप
बैठते हैं, वह ऊर्जा, वह मौन, वह प्रेम, जो अभी और यहाँ है, आप उसका अनुभव करते
हैं|
इसी लिए, जब लोग भगवान बुद्ध के पास गए और उनसे भगवान के बारे में पूछा, तो
उन्होंने कुछ नहीं कहा और मौन रहे| भगवान बुद्ध ने इश्वर के बारे में कभी कुछ नहीं
बोला| अपने सत्संग में, उनकी यह एक शर्त थी कि कोई भगवान के बारे में न पूछे|
ग्यारह प्रश्न वहां वर्जित थे| उनमे से एक भगवान के बारे में था| यदि आप पूछते
भी, तो भी वो उत्तर नहीं देते थे, क्योंकि लोगों की धारणाएं होती हैं, और वे सोचते
हैं कि वे भगवान के बारे में बहुत कुछ जानते हैं| वे सोचते हैं
कि उन्हें बहुत ज्ञान है और फिर वे इस विषय पर बहस करने लगते हैं|
सबसे उत्तम है भगवान को भगवान पर ही छोड़ दिया जाये| उनको
भी थोड़ा विश्राम चाहिए !
भारत में, भगवान को एक सर्प पर आनंदित मुद्रा में विश्राम करते हुए दिखाया गया
है, और सृष्टि अपने आप चलती रहती है| इस लिए, मैं कहूँगा, कि एक अच्छा मनुष्य बनिये
और बीच बीच में अपनी भीतर की शान्ति का अनुभव करिये| आपको रहस्यों के रहस्य भी समझ
आ जायेंगे, द्वार स्वतः आपके लिए खुल जायेंगे, सहज रूप से| और
फिर आपको इसका आभास होगा कि यही है वह जिसकी सब लोग बात करते हैं; यही है जो
ग्रंथों में लिखा है| बाइबल, कुरान, वेद, सब जगह एक ही बात कही गयी है| यह सत्य
है, यह अब है, यहाँ, मुझ में| यही अनुभूति है|
अब फिर यह मत सोचो कि एक दिन यह बोध मुझे होगा| यह अभी है,
इसी क्षण|
मन को शांत रखो| शान्ति भगवान की ओर पहला कदम है| दूसरा
है खुशी और उल्लास| तीसरा है प्रेम
यह तीन सीढ़ी भगवान के घर को जाती हैं| ज्ञान के मोती की वेब टीम की ओर से परम पूज्य श्री श्री रविशंकर के जन्मदिवस (१३ मई २०१२) पर आप सभी पाठकों को हार्दिक शुभकामनाएं!!!