९
२०१२ मोंट्रियल आश्रम
मई
जीवन में दो तरह की परिस्थितियां आती हैं –
एक जब आप सुखी होते हैं और खुश होते हैं| दूसरी वह, जब आप परेशान और दुखी होते हैं| तो इस खुशी और सुख को बरक़रार रखने के लिए क्या चाहिये? सेवा करने की इच्छा|
जब हम खुश होते हैं, तब हम सेवा नहीं करते| आम तौर पर मन उस दिशा में नहीं जाता| जब आप खुश होते हैं, तब आप सिर्फ मज़े करना चाहते
हैं, और किसी और की परवाह करना, बांटना या सेवा के बारे में
नहीं सोचते| लेकिन यही वह समय है, जब इसकी बहुत ज्यादा ज़रूरत
है| जब आप खुश होते हैं और तब सेवा करते हैं, तब वह खुशी बरक़रार रहती है|
आज हमें क्या चाहिये? जब हम खुश हों, तो सेवा करने की इच्छा हो; और जब दुखी हों, तब सब कुछ छोड़ कर अंतर्मुखी
हो जाएँ| हमें चाहिये कि हम यह प्रार्थना करें, ‘जब मैं दुखी होऊं, तब मुझे सब कुछ त्याग कर
अंतर्मुखी हो जाने की शक्ति दें’|
और दुनिया में रहते हुए और उसका आनंद लेते हुए, अगर हम उसका त्याग कर पाते
हैं, तो यही ज्ञान है|
एक बार एक सत्संग में एक वृद्ध महिला ने पूछा, ‘भगवान ने यह दुनिया इतनी
कष्टदायक क्यों बनाई है?’ उत्तर था, ‘हाँ, भगवान ने इसे ऐसा आपके लिए बनाया है| इतना कष्टदायक होने के बाद भी आप इसका त्याग नहीं कर पाते
हैं और भगवान की तरफ नहीं मुड़ते| (यह कष्टदायक है) ताकि आप
अंतर्मुखी बनें|'
प्रश्न : प्रिय गुरूजी, शिव लिंग का क्या अर्थ है?
श्री श्री रविशंकर : लिंग माने एक पहचान, एक प्रतीक जिसके माध्यम से
आप सत्य को पहचान सकें, कि वास्तविकता क्या है| जो दिखाई नहीं देता, लेकिन फिर भी किसी चीज़ के
माध्यम से उसे व्यक्त कर सकते हैं, वही लिंग है| जब किसी शिशु का जन्म होता है, आप कैसे जानते हैं कि वह नर है या मादा| केवल शरीर के एक हिस्से से आप पता लगा सकते हैं, कि वह शिशु बालक है या बालिका| नहीं तो, बच्चे एक उम्र होने तक एक
जैसे ही लगते हैं| लेकिन एक हिस्सा है, जो बताता है, कि भविष्य में क्या होगा| और इसीलिये जननांगी को लिंग भी कहते हैं| लिंग माने ‘जेंडर’ जैसे स्त्रीलिंग और
पुल्लिंग| लिंग मतलब वह जिसके द्वारा आप उसका पता लगाते हैं, जो अभी तक व्यक्त नहीं हुआ है| यही लिंगम का शाब्दिक अर्थ है|
तो शिवलिंग मतलब कि अभी दिव्यता पूरी तरह से व्यक्त नहीं हुई है| वाकई में दिव्यता अवर्णनीय है; इसे व्यक्त नहीं किया जा सकता; जिसे व्यक्त न किया जा सके, उसे पहचानना| जो एकदम परे हैं, उसे एक प्रतीक के माध्यम से
जानना, यही इसका अर्थ है|
यह पुरातन भाषा इतनी शक्तिशाली है| बस किसी पत्थर को कहीं रख दो, और वह लिंगम बन जाता है, अर्थात, एक पत्थर के माध्यम से मैं उसके बारे में सोच रहा हूँ, जो अभी तक व्यक्त ही नहीं हुआ है|
प्रश्न : क्या एक ब्रह्मचारी का जीवन जीना बीच का रास्ता है? क्या हम बिना पुरुष-स्त्री सिद्धांत के, ईश्वर को पूर्णतः जान पायेंगे?
श्री श्री रविशंकर : देखिये, आप पुल्लिंग और स्त्रीलिंग – दोनों तत्वों से बने हैं| ये दोनों ही स्वरुप आपके अंदर हैं| अब ब्रह्मचर्य ही रास्ता है, ऐसा नहीं है| यह कोई अभ्यास नहीं है| ब्रह्मचर्य तो स्वाभाविक ही
होता है, जब आप यह जान जाते हैं कि आप शरीर नहीं हैं| और पुल्लिंग और स्त्रीलिंग का सम्बन्ध तो शरीर से है, इसका सम्बन्ध चेतना से नहीं हैं| चेतना तो इस सबके परे है|
अब जब आप यह जान जाते हैं, कि चेतना इन सबसे परे हैं, तब आप शारीरिक आनंद के आगे पहुँच जाते हैं| नहीं तो हम न जाने कितने जन्मों से सिर्फ पुल्लिंग और
स्त्रीलिंग को ही जान पाये हैं – एक बिल्ली के रूप में, कभी कुत्ता, घोड़ा या कोई भी जानवर, और मानव भी| तो अगर आप सिर्फ यही जानना
चाहते हैं, तो जानते रहिये| कितने समय तक आप इसे जानना
चाहेंगे? एक समय आएगा, जब आप कहेंगे, ‘बहुत हो गया| अब मैं अंदर जाना चाहता हूँ|’ बस इसी क्षण मन अंतर्मुखी होने लगता है|
इसलिए, हमें हर एक चीज़ को नकार कर आगे नहीं बढ़ते रहना चाहिये| लेकिन जब आपके अंदर ऊर्जा इतना बढ़ जाती है तब आपको एक ऐसा
आनंद चाहिये होता है, जिसमें कोई व्याकुलता और
उत्तेजना न हो| और यही वह है|
इसीलिए कहते हैं, कि समाधि का एक क्षण, सम्भोग के १००० क्षणों के समान है| आपको सम्भोग के एक क्षण में कितना आनंद मिलता है, वैसे १००० क्षण हैं एक समाधि| और समाधि का वह एक क्षण एक
अरब सालों के विश्राम के समान है|
तो क्या आपको वह चाहिये? तब आपको इन साधारण चीज़ों से
ऊपर उठना होगा| देखिये, कुछ पाने के लिए कुछ खोना तो पड़ेगा ही|
अगर आप एक बहुत बढ़िया स्वादिष्ट भोजन का आनंद लेना चाहते हैं, तो आपको पूरा दिन जंक खाना छोड़ना पड़ेगा| अगर आप सुबह से आलू के चिप्स ठूंस ठूंस कर खा रहें हैं, तो आप दोपहर के खाने का आनंद नहीं उठा पायेंगे, क्योंकि आपको उतनी भूख ही नहीं होगी, है न? जब आपको भूख लगी होती है, तभी आप एक स्वादिष्ट खाने का आनंद उठा पाएंगे|
प्रश्न : मेरे जीवन में कुछ ऐसे लोग हैं, जिन्हें मैं माफ करना चाहता हूँ| बहुत बार मैंने प्रयत्न किया कि उन्हें माफ कर दूं, और भूल जाऊं, मगर अचानक मैं भूत काल में
चला जाता हूँ, और उन्हें नापसंद करने लगता
हूँ| मैं क्या करूँ? मैं मुक्त होना चाहता हूँ|
श्री श्री रविशंकर : अभी इसी समय करिये|
उन्होंने वही किया जो उन्हें करना था, उनके पास और कोई चारा नहीं
था| ऐसा मत सोचिये कि वे कोई मुक्त इन्सान थे, जो अपनी मर्ज़ी से आये और गए| उन्हें उस तरह से प्रोग्राम
किया गया था| उस प्रोग्राम को चलाने वाली चिप उनके अंदर थी| वे बिचारे तो उसी तरह से करते गए| उनके लिए करुणा महसूस करिये| उन्होंने जो आपके साथ किया, वैसा करने के लिए वे मजबूर थे| बस, किस्सा खत्म!
प्रश्न : मैं आध्यात्मिकता और सम्भोग के बीच फँस गया हूँ| इन दोनों को साथ साथ लेकर चलने में मैं खुद को दोषी मानता
हूँ| मेरी शादी हो चुकी है और मेरे अपनी पत्नी के साथ अच्छे
सम्बन्ध हैं|
श्री श्री रविशंकर : अगर आपकी शादी हो चुकी है, तो यह आपका धर्म है, आपका कर्तव्य है|
तो जब आपकी शादी हो चुकी है, आपको अपनी पत्नी के साथ ही
आगे बढ़ना है और उन्हें भी आगे बढ़ने में सहायता करनी है| क्या आपने ‘योग वशिष्ट’ पढ़ी है? उसमें लीला की एक कहानी है| योग वशिष्ट पढ़िए|
प्रश्न : मनोवैज्ञानिक और अधिकतर पश्चिमी विचारक कहते हैं, कि हमें खुद ही अपने जीवन का लक्ष्य ढूँढना चाहिये, और जीना चाहिये| क्या हर आत्मा का इस जीवन
में कोई विशिष्ट लक्ष्य है, मोक्ष के अलावा?
श्री श्री रविशंकर : इस ग्रह पर हर एक आत्मा कुछ न कुछ काम कर रही है|
आप जो भी काम करना चाहें, उसे आप चुन सकते हैं, आप जो भी व्यवसाय चुनना चाहें| लेकिन एक समान बात है, जो मनोचिकित्सक भूल जाते
हैं| क्या है वह समान बात?
मानवीय मूल्य और खुशी| आजकल वे इसके बारे में बात
करने लगे हैं|
“क्या आप खुश हैं?” हमें यह पूछने की ज़रूरत है| अगर नहीं हैं, तो अंतर्मुखी होईये, और उस खुशी को ढूँढिये| उसे ढूँढने के लिए कहीं बाहर मत जाईये| जैसे ही आप अंतर्मुखी होते
हैं, सब कुछ अपने आप ही खुलने लगता है|
इसलिए, जीवन का उद्देश्य दुखी रहना नहीं है, और न ही दूसरों को दुखी करना है| अगर आप इस एक बात को गाँठ-बाँध लेते हैं, तो उद्देश्य अपने आप ही व्यक्त हो जाएगा|
ज्यादा से ज्यादा लोगों का ज्यादा से ज्यादा भला करिये| आप जहाँ भी हों, यह पक्का करें, कि वहां आपकी ज़रूरत है| क्या आपने अपना १०० प्रतिशत
दिया है? क्या आपका इस तरह का व्यक्तित्व है, कि जिसे हर कोई अपनी टीम में लेना चाहेगा? क्या आप टीम प्लयेर हैं? अगर नहीं, तो हमें खुद को टीम प्लयेर बनाना होगा| जब हम जीवन की इन गांठों को खोलेंगे, तो जीवन का लक्ष्य अपने आप साफ़ हो जाएगा|
क्या आप जानते हैं, कि आपको जीवन का लक्ष्य
क्यों चाहिये? इसलिए, क्योंकि वह आपका तृप्ति देता है|
किसी भी उद्देश्यपूर्ण कार्य को करने की क्या ज़रूरत है? क्योंकि वह आपको तृप्ति देता है| आप बिनी किसी उद्देश्य के किसी काम को करेंगे, और वह आपको तृप्ति नहीं देगा| इसलिए, आपको उद्देश्य चाहिये, या नहीं चाहिये, यह तृप्ति पाने पर ही निर्भर है|
अगर आप तृप्त हो जाएँ, तब जो छोटा सा काम भी करेंगे, वह भी उपयोगी हो जाएगा|
जब आप कहते हैं, ‘मुझे उद्देश्य चाहिये’, तो मतलब आप उस सबके मध्य में हैं, और आप पूरे समय यह ही सोच रहें हैं, कि आपको उससे क्या मिलेगा? लेकिन जब आप तृप्त होते हैं, तब आपका पूरा जीवन उपयोगी बन जाता है|
और अगर उपयोगी बनना ही आपके जीवन का लक्ष्य है, तो रहने दीजिए| बस यही तो चाहिये| समझ गए? जब आप उपयोगी होते हैं, तब आप बहुत तृप्त होते हैं| यही बात है जो लोगों को अपने ध्यान में रखनी चाहिए, उपयोगी बनना| और जब आप कहते हैं, कि मैं उपयोगी बनना चाहता हूँ, तब आप जहाँ भी हैं, जो भी कर रहें हैं, आप अपने आप ही पायेंगे, कि आप उपयोगी हैं|
प्रश्न : क्या यह संभब है कि मैं आत्मबोध को पा सकूँ, अगर मैं एक बेमानी शादी में
फंसी हूँ? मेरे पति की नकारात्मकता और
क्रोध मुझे दुःख से भर देता है| क्या अभी भी मेरे पास अवसर है?
श्री श्री रविशंकर : हाँ हाँ| अपने पति को धन्यवाद दें| आप बहुत अछे से विकसित हो सकती हैं और सक्षम - संपूर्ण| वे नकारात्मक हैं और आप सकारात्मक हैं| वे आप पर दोषार्पण करें, फिर भी आप मुस्कुराते रहें| आपके पास पूरी संभावना है|
प्रश्न : टोरोंटो विश्वविद्यालय की पाठ्य-पुस्तकों के अनुसार कहा जाता है कि नारी को आत्म-ज्ञान पाने के लिए एक पुरुष के शरीर में पुनर्जन्म लेना पड़ता हैं|
श्री श्री रविशंकर : बिलकुल गलत| तुरंत उन्हें एक पत्र लिखें और बताएं कि यह गलत है| वेदों में ऐसा कहीं नहीं कहा गया है| उन्हें मुझे ग्रंथ का उद्धृत वाक्य देना होगा| यह सत्य नहीं है| हाँ, ऐसा स्मृतियों में है, लेकिन स्मृतियाँ वेद नहीं हैं| वे अलग अलग समय में भिन्न भिन्न राजाओं द्वारा लिखी गयी हैं| प्राचीनकाल में अलग अलग राज्यों के अलग अलग राजा समाज के लिए नियम-कानून लिखा करते थे| उन्ही में से एक मनु- स्मृति है, जिसमें उन्होंने सिर्फ एक बात लिखी है कि औरतें स्वतंत्रता के योग्य नहीं होती क्योंकि वे पिता, फिर पति और अन्त में पुत्र से संरक्षण चाहती हैं| अपने पूरे जीवन में वे संरक्षण चाहती हैं, इसीलिए वे स्वतंत्रता के योग्य नहीं हैं|
लेकिन ऐसा केवल स्मृतियों में है, यानि सिर्फ एक राजा का मानना है| वेदों में ऐसा कहीं नहीं कहाँ गया है कि स्त्रियाँ आत्मज्ञान नहीं प्राप्त कर सकतीं| अनेक साध्वी हुई हैं - गार्गी और मैत्री ने आत्मज्ञान पाया था| उन्हें योग वशिष्ठ पढने के लिए कहिए| योग वशिष्ठ में वेदों के पाठ हैं| वह एक नारी ही है जिसने सर्वप्रथम आत्मज्ञान पाया था, छुदाला| फिर, और दूसरी नारी का नाम लीला था|
लीला और छुदाला, ये वे नारियाँ हैं जिन्होंने सर्वप्रथम आत्मज्ञान पाया था, फिर उनके पतियों ने उनसे यह ज्ञान पाया था|
हमें उन्हें उनके पाठ को बदलने के लिए कहना चाहिए|
प्रश्न : प्रिय गुरूजी, मेरी रूचि आध्यात्मिकता या आत्मज्ञान पाने में नहीं है| मेरी रूचि सिर्फ आपमें है, मैं आपको कैसे पा सकती हूँ?
श्री श्री रविशंकर : आप एक ही बात को अलग-अलग तरीके से कह रहे हैं| मैं अध्यात्म हूँ और आप मुझसे आध्यात्मिकता और आत्मज्ञान को अलग नहीं कर सकते| यह असंभव है| पुराने पाठों में इसे द्रव्य गुण संबंध कहते थे, किसी वस्तु और उसके गुण का आपसी संबंध| केवल गुण के द्वारा ही किसी वस्तु को पहचान सकते हैं|
चीनी का बुरादा और नमक का बुरादा, दोनों ही देखने में एक समान होते हैं, स्वाद के द्वारा ही हम जान पाते हैं कि यह चीनी है या नमक| उसकी मिठास या नमकीन स्वाद के कारण|
मैं जानता हूँ बहुत औरतें अपनी बहुत ख़ुशी या परेशानी की हालत में खीर पुडिंग में नमक डाल देती हैं| ईमानदारी से कहें, आप में से कितने लोगों ने ऐसा किया है? (बहुतों ने हाथ उठा दिये)
यह दूध वाली पुडिंग है और इसका स्वाद नमकीन है|
अत: यह पदार्थ का गुण ही होता है, जो उसे वह पदार्थ बनता है| उनका संबंध अटूट है|
प्रश्न : मैं अपने मन को ढीला छोड़ना चाहता हूँ, मुझे क्या करना चाहिए?
श्री श्री रविशंकर : गाड़ी चलते वक़्त नहीं!
जब पोला और खाली ध्यान चल रहा हो, आप वहाँ बैठें, आपका मन अपने-आप ही पिघलने लगेगा| आप इसे त्यागना चाहते हैं, यही मुश्किल है| जैसे मन है, रहने दें| अगर यह गंदगी से भरा हैं, तो भी रहने दें| आप इससे मुक्त होना चाहते हैं यही मुश्किल है| यह एक बड़ा काम है, इसलिए भगवान के लिए ऐसा न करें| मन भगवान ने दिया है उसे रहने दें - जैसा है उसे रहने दें|
प्रश्न : नकारात्मक, शासन करने वाले, राजनैतिक लोगों से कैसे व्यवहार करना चाहिए? संक्षेप में, हमारे मालिकों से|
श्री श्री रविशंकर : तीन चीजों से - युक्ति, धैर्य और सकारात्मकता| ये काम करने चाहिए|
अगर ये काम न करें, फिर दल बनायें, यह सबसे सरल तरीका है, ज्यादातर लोग ये ही करते हैं| किसी के विरोध में दल बनायें , बहुत आसानी से यह काम कर सकता है| लेकिन इसमें सफलता मिले, ये जरुरी नहीं|
सफलता के लिए कुशलता, धैर्य और सकारात्मकता, ये सभी जरुरी है| यदि आप मुझसे पूछें, प्रार्थना सबसे ज्यादा जरूरी है|
जैसे कि मैंने कल कहा था,सब कुछ एक ही तत्व से बने हैं| अगर आपका ऐसा संकल्प हो कि यह व्यक्ति आज बदल जाये, और आप इस संकल्प के साथ रहेंगे, तो आप देखेंगें कि वह बिलकुल अलग तरह से व्यवहार करेगा|
देखिये इस संसार में बहुत बार हमारे दोस्त हमारे साथ दुश्मनों जैसा व्यवहार करते हैं, और कई बार जिन्हें हम अपना दुश्मन समझते हैं, वे हमारी तकलीफ से हमें मुक्ति दिला देते हैं| इतिहास साक्षी है, अगर हम इतिहास के पन्ने उलटें, तो पायेंगें कि प्रत्येक महाद्वीप में, प्रत्येक देश में, प्रत्येक गाँव में बीते समय में ऐसा हुआ है| सिर्फ एक चीज है जिस पर विश्वास करना श्रेयस्कर है, वह है अस्तित्व, सत्य, चेतना और वही सब कुछ है|
श्री श्री रविशंकर : हाँ हाँ| अपने पति को धन्यवाद दें| आप बहुत अछे से विकसित हो सकती हैं और सक्षम - संपूर्ण| वे नकारात्मक हैं और आप सकारात्मक हैं| वे आप पर दोषार्पण करें, फिर भी आप मुस्कुराते रहें| आपके पास पूरी संभावना है|
प्रश्न : टोरोंटो विश्वविद्यालय की पाठ्य-पुस्तकों के अनुसार कहा जाता है कि नारी को आत्म-ज्ञान पाने के लिए एक पुरुष के शरीर में पुनर्जन्म लेना पड़ता हैं|
श्री श्री रविशंकर : बिलकुल गलत| तुरंत उन्हें एक पत्र लिखें और बताएं कि यह गलत है| वेदों में ऐसा कहीं नहीं कहा गया है| उन्हें मुझे ग्रंथ का उद्धृत वाक्य देना होगा| यह सत्य नहीं है| हाँ, ऐसा स्मृतियों में है, लेकिन स्मृतियाँ वेद नहीं हैं| वे अलग अलग समय में भिन्न भिन्न राजाओं द्वारा लिखी गयी हैं| प्राचीनकाल में अलग अलग राज्यों के अलग अलग राजा समाज के लिए नियम-कानून लिखा करते थे| उन्ही में से एक मनु- स्मृति है, जिसमें उन्होंने सिर्फ एक बात लिखी है कि औरतें स्वतंत्रता के योग्य नहीं होती क्योंकि वे पिता, फिर पति और अन्त में पुत्र से संरक्षण चाहती हैं| अपने पूरे जीवन में वे संरक्षण चाहती हैं, इसीलिए वे स्वतंत्रता के योग्य नहीं हैं|
लेकिन ऐसा केवल स्मृतियों में है, यानि सिर्फ एक राजा का मानना है| वेदों में ऐसा कहीं नहीं कहाँ गया है कि स्त्रियाँ आत्मज्ञान नहीं प्राप्त कर सकतीं| अनेक साध्वी हुई हैं - गार्गी और मैत्री ने आत्मज्ञान पाया था| उन्हें योग वशिष्ठ पढने के लिए कहिए| योग वशिष्ठ में वेदों के पाठ हैं| वह एक नारी ही है जिसने सर्वप्रथम आत्मज्ञान पाया था, छुदाला| फिर, और दूसरी नारी का नाम लीला था|
लीला और छुदाला, ये वे नारियाँ हैं जिन्होंने सर्वप्रथम आत्मज्ञान पाया था, फिर उनके पतियों ने उनसे यह ज्ञान पाया था|
हमें उन्हें उनके पाठ को बदलने के लिए कहना चाहिए|
प्रश्न : प्रिय गुरूजी, मेरी रूचि आध्यात्मिकता या आत्मज्ञान पाने में नहीं है| मेरी रूचि सिर्फ आपमें है, मैं आपको कैसे पा सकती हूँ?
श्री श्री रविशंकर : आप एक ही बात को अलग-अलग तरीके से कह रहे हैं| मैं अध्यात्म हूँ और आप मुझसे आध्यात्मिकता और आत्मज्ञान को अलग नहीं कर सकते| यह असंभव है| पुराने पाठों में इसे द्रव्य गुण संबंध कहते थे, किसी वस्तु और उसके गुण का आपसी संबंध| केवल गुण के द्वारा ही किसी वस्तु को पहचान सकते हैं|
चीनी का बुरादा और नमक का बुरादा, दोनों ही देखने में एक समान होते हैं, स्वाद के द्वारा ही हम जान पाते हैं कि यह चीनी है या नमक| उसकी मिठास या नमकीन स्वाद के कारण|
मैं जानता हूँ बहुत औरतें अपनी बहुत ख़ुशी या परेशानी की हालत में खीर पुडिंग में नमक डाल देती हैं| ईमानदारी से कहें, आप में से कितने लोगों ने ऐसा किया है? (बहुतों ने हाथ उठा दिये)
यह दूध वाली पुडिंग है और इसका स्वाद नमकीन है|
अत: यह पदार्थ का गुण ही होता है, जो उसे वह पदार्थ बनता है| उनका संबंध अटूट है|
प्रश्न : मैं अपने मन को ढीला छोड़ना चाहता हूँ, मुझे क्या करना चाहिए?
श्री श्री रविशंकर : गाड़ी चलते वक़्त नहीं!
जब पोला और खाली ध्यान चल रहा हो, आप वहाँ बैठें, आपका मन अपने-आप ही पिघलने लगेगा| आप इसे त्यागना चाहते हैं, यही मुश्किल है| जैसे मन है, रहने दें| अगर यह गंदगी से भरा हैं, तो भी रहने दें| आप इससे मुक्त होना चाहते हैं यही मुश्किल है| यह एक बड़ा काम है, इसलिए भगवान के लिए ऐसा न करें| मन भगवान ने दिया है उसे रहने दें - जैसा है उसे रहने दें|
प्रश्न : नकारात्मक, शासन करने वाले, राजनैतिक लोगों से कैसे व्यवहार करना चाहिए? संक्षेप में, हमारे मालिकों से|
श्री श्री रविशंकर : तीन चीजों से - युक्ति, धैर्य और सकारात्मकता| ये काम करने चाहिए|
अगर ये काम न करें, फिर दल बनायें, यह सबसे सरल तरीका है, ज्यादातर लोग ये ही करते हैं| किसी के विरोध में दल बनायें , बहुत आसानी से यह काम कर सकता है| लेकिन इसमें सफलता मिले, ये जरुरी नहीं|
सफलता के लिए कुशलता, धैर्य और सकारात्मकता, ये सभी जरुरी है| यदि आप मुझसे पूछें, प्रार्थना सबसे ज्यादा जरूरी है|
जैसे कि मैंने कल कहा था,सब कुछ एक ही तत्व से बने हैं| अगर आपका ऐसा संकल्प हो कि यह व्यक्ति आज बदल जाये, और आप इस संकल्प के साथ रहेंगे, तो आप देखेंगें कि वह बिलकुल अलग तरह से व्यवहार करेगा|
देखिये इस संसार में बहुत बार हमारे दोस्त हमारे साथ दुश्मनों जैसा व्यवहार करते हैं, और कई बार जिन्हें हम अपना दुश्मन समझते हैं, वे हमारी तकलीफ से हमें मुक्ति दिला देते हैं| इतिहास साक्षी है, अगर हम इतिहास के पन्ने उलटें, तो पायेंगें कि प्रत्येक महाद्वीप में, प्रत्येक देश में, प्रत्येक गाँव में बीते समय में ऐसा हुआ है| सिर्फ एक चीज है जिस पर विश्वास करना श्रेयस्कर है, वह है अस्तित्व, सत्य, चेतना और वही सब कुछ है|