"अगर तुम्हें लगे कि तुम्हारा कुछ नुक्सान हुआ है, तो इस से अधिक फ़ायदा आगे होने वाला है"

फ़्रान्स, वैल डि कौन्सोलेशन

२८ जुलाई २०१०


पहले ये विश्वास रखो कि तुम्हारे साथ केवल अच्छा ही होगा। एक बार इस पथ पर आ जाने के बाद, जान लो कि तुम्हारे जीवन के हर कदम पर अच्छा ही होगा।

ये विशवास रहे कि, ‘मेरे साथ केवल अच्छा ही हो सकता है।’ और फिर, ‘विपरीत मूल्य एक दूसरे के पूरक हैं! तो, अगर तुम्हें लगे कि तुम्हारा कुछ नुक्सान हुआ है, तो इस से अधिक फ़ायदा आगे होने वाला है। कुछ अच्छा होने वाला है। तो, पहले तो ये ठीक तरह समझ लो, और ऐसा ही इरादा रखो।

दूसरी बात, ये जान लो कि पृथ्वी पर अच्छे लोग हैं, जो कि बहुत दयालु और सुहृद हैं, और आवश्यकता पड़ने पर लोग हमारी मदद करेंगे। आवश्यकता पड़ने पर ये दुनिया हमारी मदद करेगी। दुनिया में बुरे व्यक्ति बहुत ही कम हैं। बुरे व्यक्ति भी केवल ऊपरी रूप से बुरे हैं, उन व्यक्तियों के भीतर भी कुछ अच्छाई छुपी है। कोई भी व्यक्ति जो १०० प्रतिशत बुरा हो, पृथ्वी पर हो ही नहीं सकता है। तो, हर व्यक्ति में कुछ अच्छाई होती है, और उस अच्छाई को बढ़ाना हमारा काम है। हमारा जन्म इसी काम के लिये हुआ है।

तो, लोग अच्छे हैं! दुनिया अच्छी है! यहाँ अच्छे लोग हैं! और जब मुझे आवश्यकता होगी तो वे मेरी मदद करेंगे। तो, जीवन में कोई असुरक्षा की भावना नहीं रहेगी।

तीसरी बात, एक वैश्विक शक्ति है जो मेरे भीतर है, बाहर है, और पूरे ब्रह्माण्ड में है। इस विश्व में जो कुछ भी हो रहा है उसके लिये ये शक्ति ही ज़िम्मेदार है। समस्त सृष्टि इस शक्ति की वजह से ही है, और वह शक्ति मेरी भी देखभाल करती है। कुछ लोग उस शक्ति को ईश्वर कहते हैं, कुछ लोग उसे किसी और नाम से पुकारते हैं। पर उसे किस नाम से पुकारा जाये, ये महत्वपूर्ण नहीं है। एक शक्ति है, जो बहुत करुणामयी है। वह तुम्हारे साथ है, और तुम्हारी मदद करेगी। वह आज भी तुम्हारी मदद कर रही है।

देखो, जब तुम छोटे बच्चे थे, और अपनी नाक भी साफ़ नहीं कर सकते थे, खड़े भी नहीं हो सकते थे, तब क्या प्रकृति ने तुम्हारी देखभाल नहीं की थी? (सभी श्रोताओं ने जवाब दिया, ‘हाँ।’) जब तुम बूढ़े हो जाओगे, तब भी तुम्हें मदद की आवश्यकता होगी, है ना? कोई तुम्हारी आवश्यकताओं की पूर्ति करेगा। तो, जब तुम बहुत छोटे थे, किसी ने तुम्हारी देखभाल की थी, और जब तुम बूढ़े हो जाओगे तब भी कोई ज़रूर तुम्हारी देखभाल करेगा। तो ये विचार उस व्यक्ति के दिमाग में कौन डालता है कि वह तुम्हारी देखभाल करे? ये वही शक्ति है। तो, हमेशा तुम्हारी देखभाल होती रही है?

जब तुम स्वस्थ और बलिष्ठ हो, तब भी ये जान लो कि एक शक्ति है जो तुम्हारी देखभाल करती है। अगर हम ये बात समझ जायें तो बहुत इत्मीनान हो जाता है, आराम मिलता है, और मन से असुरक्षा की भावना और सभी भय चले जाते हैं। बहुत विश्राम, आत्मविश्वास, विश्वास और सभी कुछ आ जाता है। जीवन में जिस भी चीज़ की आवश्यकता होती है, वह अपने आप आ जाती है। तो, जब हम कमज़ोर थे, किसी ने हमारी देखभाल की थी, और अगर हम भविष्य में कभी कमज़ोर पड़े तब भी कोई हमारी देखभाल करेगा। आज भी कोई हमारी देखभाल कर रहा है, और हमें भी वैसा ही करना चाहिये। जैसे भी हो सके, जहाँ भी ज़रूरत हो, हमें भी देखभाल करनी चाहिये। यही मनुष्य जीवन है।

मनुष्य जीवन के दो ध्येय हैं। एक तो है कि तुम ने क्या लिया, और दूसरा है कि तुमने क्या दिया। तो, दुनिया से क्या ले सकते हो? धन तो तुम दुनिया से बाहर नहीं ले जा सकते हो। तुम करोड़ों डालर कमा सकते हो, पर तुम्हें इसे यहीं छोड़ कर जाना होगा। ये तुम्हारे साथ नहीं जा सकता। इतने करोड़ों डालर या यूरो से तुम इतनी ही मदद ले सकते हो कि तुम्हारे लिये भोजन, कपड़ों, बिस्तर, सोने के लिये कमरे, और थोड़ी बहुत यात्रा की व्यवस्था हो जाये। बस इतना ही।

धन तुम्हें आनंद नहीं दे सकता। हमें धन से आनंद की अपेक्षा नहीं करनी चाहिये। अगर हम ऐसा करते हैं तो हम अक्लमंद नहीं हैं। अगर हम समझते हैं कि धन से हमें आनंद मिलेगा, तो ये ऐसा ही है कि अगर कोई कहे कि, ‘मैं सिक्के खा कर अपनी भूख मिटा सकता हूँ।’ भूख मिटाने के लिये तुम्हें भोजन चाहिये, ना कि यूरो या सिक्के। बस इतना ही है। तुम्हें धन से आनंद प्राप्त करने की उम्मीद नहीं करनी चाहिये। तुम यूरो से भोजन ख़रीद सकते हो, ये एक दूसरी बात है।

अंततः धन से आनंद नहीं ख़रीदा जा सकता है। हमें ये ठीक तरह जान लेना चाहिये। जीवन में सहूलियतों के साथ रहो, पर तुम्हें मिला क्या? सहूलियत, एक छोटी बात है। तुम अपने साथ क्या ले जा सकते हो? जो तुम्हारे साथ जा सकता है, वो है ज्ञान। तुम्हारी चेतना में जिसकी छाप पड़ती है, वो है ज्ञान। तो, तुमने कितना ज्ञान कमाया है?

किताब में कुछ पढ़ना ज्ञान नहीं है। ज्ञान, सजगता से मिलता है। तुम कितने सजग हो? तुम्हारा मन कितना विशाल हुआ है? और देने में, तुमने दुनिया को कितना प्रेम दिया है?

तो, तुमने कितना प्रेम दिया है?

और कितना ज्ञान लिया है?

यही दो प्रश्न पूछे जायेंगे, और यही तय करते हैं कि तुम्हारा जीवन कितना फलित हुआ है? तो, हम सभी सही पथ पर हैं।


क्या तुम सब खुश हो? (एक ज़ोरदार, ‘हाँ,’ की गूँज।) ये सदभाग्य बहुत सुंदर है। कुछ दिन पहले, २५ जुलाई को हमने गुरु पूर्णिमा मनाई। इस दिन हम ज्ञान और प्रेम का उत्सव मनाते हैं। पूर्ण चँन्द्रमा, प्रेम का द्योतक है। पूर्णिमा की चांदनी में टहलना कितना सुंदर होता है! चँन्द्रमा बहुत ही रूमानी होता है। है ना? तो, ज्ञान, रूखा सूखा नहीं होता है। ज्ञान बहुत ही रूमानी और प्रेम से भरा हुआ होता है। हमने गुरु पूर्णिमा पर यही उत्सव मनाया था। हमने गुरु परंपरा में सभी गुरुओं को धन्यवाद दिया। हज़ारों सालों से इस परंपरा ने ज्ञान को सहेज कर हम तक पँहुचाया है।

तो, सभी अपने जीवन में आये इस सुंदर ज्ञान के लिये धन्यवाद देते हैं। जब हम अपने जीवन को बदलने वाले, जीवन को ऊर्ध्वगामी बनाने वाले ज्ञान के लिये धन्यवाद देते हैं तो यही एक उत्सव है। हम महसूस करते हैं कि जीवन में और अधिक कृपा बरस रही है। इस कृपा के प्रति कृतज्ञता महसूस करने से और कृपा मिलती है। और अधिक कृपा का अर्थ है, जीवन में और अधिक आनंद, और अधिक ज्ञान का आविर्भाव।


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