प्रेस मीटिंग, दोपहर १२.०० बजे, १३ अगस्त २०१०, मलेशिया
प्रश्न : आप ११ साल बाद मलेशिया आये हैं। इस बार मलेशिया आने की कोई ख़ास वजह है?
श्री श्री रवि शंकर : यहां के उन लोगों का प्रेम जो कि इतने सालों से भारत आते रहे हैं...मैंने उनसे वादा किया था कि मैं इस साल अवश्य ही मलेशिया आऊंगा, और मुझे अपना वादा पूरा करना था।
प्रश्न : क्या आपको इतने सालों के बाद मलेशिया में कुछ फ़र्क दिख रहा है?
श्री श्री रवि शंकर : बहुत फ़र्क है...बुनियादी सुविधाओं में विकास हुआ है...बाकी का अभी मुझे देखना बाक़ी है, मैं कल रात ही तो आया हूं। अभी तो आया हूं, एक ही रात में कोई विचार नहीं बना सकता! आज मैं लोगों से मिलूंगा, और कल से पेनांग में विश्व के दक्षिण पूर्वी भाग से आये सभी शिक्षकों के साथ एक चार दिवसीय कार्यशाला होगी, तथा मौन, ध्यान और साधना होगी। हां, मलेशिया से कई लोग नियमित रूप से हमारे बैंगलोर स्थित आश्रम में आते रहे हैं। मैं उनसे योरोप और अमरीका में भी मिलता रहता हूं, और वे हमेशा पूछते रहते हैं, ‘आप कुआला लंपुर कब आयेंगे? मलेशिया कब आयेंगे?’ तो, इस बार मैंने समय निकाल ही लिया!
प्रश्न : आप तो हमेशा विश्व भ्रमण करते रहते हैं। विश्व में हो रहे बदलाव को आप किस नज़र से देखते हैं?
श्री श्री रवि शंकर : आप जानते हैं, विश्व का मतलब ही बदलाव है। कुछ बदलाव लाभदायक सिद्ध हुये हैं और कुछ विघटनशाली हैं। आप देखें तो पायेंगे कि मानवीय गुणों में विघटन आया है, तनाव बढ़ रहा है, प्रदूषण और पर्यावरण की समस्यायें हैं, परिवार छोटे-छोटे परिवारों में विभाजित होते जा रहे हैं, आर्थिक रूप से असुरक्षा बढ़ी है, विश्व के बाज़ार के विघटन से लोगों को बहुत फ़र्क पड़ा है। पर साथ ही बहुत से सकरात्मक विकास कार्य भी हुये हैं। लोग पर्यावरण के प्रति जागरूक हो गये हैं, करुणा बढ़ी है, लोग विनाश से त्रस्त लोगों की मदद करने के लिये आगे आ रहे हैं। तो, आप देख सकते हैं कि दोनों ही तरह के बदलाव हो रहे हैं। आवश्यकता है समाज में सकरात्मकता को बढ़ावा देने की और तनाव को कम करने की। और ऐसा संभव करने के लिये ये श्वांस प्रक्रियायें आवश्यक हैं। इससे लोगों में अपनापन बढ़ता है, विभिन्न संप्रदायों में, तथा विभिन्न उम्र के लोगों में एक जुड़ाव आता है।
प्रश्न : गुरुजी, हम पत्रकार बहुत तनाव का सामना करते हैं। हमें खबरे एकत्र कर के रिपोर्ट कर के लेख लिखने पड़ते हैं। ध्यान करने का समय नहीं है। ध्यान के अलावा कोई विधि है जिस से हम उस तनाव से निबट सकें जो कि अपने कंप्यूटर के सामने होने पर या अपने बौस की वजह से हमें होता है?
श्री श्री रवि शंकर : कुछ लंबी गहरी सांसें! आप ये नहीं कह सकते कि आपके पास सांस लेने का समय नहीं है! कुछ सांसें लो और ये जान लो कि उस परेशानी से निबटने की क्षमता तुम में है। ये भरोसा रखो कि, ‘मुझ में किसी भी समस्या से निबटने की क्षमता है। मैं तनाव से निबट सकता हूं। मुझ में ये क्षमता है।’ इस से स्वयं में विश्वास जागृत होगा।
प्रश्न : आप खुद को तनाव से मुक्त कैसे करते हैं? आप तो हर समय ही व्यस्त रहते हैं...
श्री श्री रवि शंकर : मैं तनाव को अपने भीतर ही नहीं आने देता हूं! तनाव से मुक्त होने के लिये पहले तनाव को भीतर लेना होना, है कि नहीं? मैं उसे वही से फ़िल्टर कर देता हूं।
प्रश्न : ये आप कैसे करते हैं?
श्री श्री रवि शंकर : ये अभ्यास से होता है, साथ ही एक बृहद दृष्टिकोण से कि सब काम ठीक तरह से हो जायेगा। देखो, हमारे पास कुछ ही समय होता है और बहुत से काम रहते हैं। इतना कुछ हम ऊर्जा के निम्न स्तर से कैसे कर सकते हैं? तो, हमें अपनी ऊर्जा को बढ़ाना होगा, कार्य को कुशलता से करना होगा, समय का ठीक उपयोग करना होगा। इस सब के लिये हम आर्ट आफ़ लिविंग के कोर्स सिखाते हैं। ये कोर्स इन तीनों ही आयामों में मदद करता है। ये आपके जीवन काल में उत्कृष्ठ गुणवत्ता जगाता है और आपकी ऊर्जा के स्तर को बढ़ाता है, अंतर्ज्ञान को बढ़ाता है।
प्रश्न : आप विश्व भ्रमण में इतने व्यस्त रहते हुये भी अपने स्वास्थ्य को कैसे बनाये रखते हैं?
श्री श्री रवि शंकर : मैं चिंता नहीं करता हूं! मैं बिल्कुल चिंता नहीं करता। और जब आप उच्च ऊर्जा के क्षेत्र में होते हैं, और सब खुश रहते हैं, और आप अपनी ऊर्जा के स्तोत्र से जुड़े होते हैं तो आप एक कठिन दिनचर्या भी संभाल सकते हैं।
प्रश्न : क्या आपका भोजन कुछ विशेष होता है, और क्या आप व्यायाम करते हैं?
श्री श्री रवि शंकर : मैं २० मिनट व्यायाम करता हूं और शाकाहारी भोजन लेता हूं।
प्रश्न : आपके इतने सारे अनुनायी क्यों हैं? क्या वे इसलिये आपके अनुनायी है क्योंकि आप एक गुरु हैं?
श्री श्री रवि शंकर : ये तो आप को उनसे ही पूछना होगा! उन सब के पास अलग अलग कारण हो सकते हैं – मैं उनकी तरफ़ से नहीं बोल सकता हूं। एक चीज़ मैं देखता हूं कि लोग इतने प्रसन्न और कृतज्ञ हो जाते हैं कि वे अपनी कृतज्ञता व्यक्त करने के लिये आते हैं। दुनिया में बहुतों की कायापलट हो रही है। लाखों लोग अपने निजी जीवन में, कामकाजी जीवन में, सामाजिक जीवन में सकरात्मक रूप से बदल रहे हैं। दुनिया में कई जगह ये कोर्स हो रहे हैं – विद्यालयों में, कारागृहों में, और व्यवसायिक क्षेत्र में भी...। और समाज के ग़रीब तबके में, हम उन्हें शिक्षित करते हैं, स्वालंबी बनाते हैं, उनका आत्मविश्वास बढ़ाते हैं।
प्रश्न : आपने लोगों में आ रहे बदलाव के बारे में बताया। क्या ये बदलाव आपका अनुनायी बनने से आता है या वे खुद ही बदल जाते हैं?
श्री श्री रवि शंकर : मैं श्रेय लेने में आगे रहता हूं!
मुझे लगता है कि सभी में क्षमतायें होती हैं, उन्हें बस ज़रा से मार्गदर्शन की आवश्यकता पड़ती है। इसीलिये मैंने विभिन्न कोर्स बनाये हैं। बच्चों के लिये कोर्स बनाये हैं कि वे तनाव मुक्त हो सकें। हाल ही में शिकागो में एक कौन्फ़रेंस में शिक्षा के क्षेत्र के विशेषज्ञ आये थे और वे अपने अनुभव बांट रहे थे कि कैसे एक ज़िले के विद्यालयों में ये कोर्स करने के छः महीने बाद बहुत बदलाव आया है। उनमें से एक बड़ा ही विकट शहरी विद्यालय था जिसमें ड्रौपाउट दर और अपराध की दर घट गयी थी। कोर्स से पहले अपराध दर २६८ थी जो कि कोर्स के छः महीने बाद घट कर ६० हो गयी! इस से ये स्पष्ट है कि बच्चों को अहिंसक तौर तरीके सिखाये जा सकते हैं।
प्रश्न : मनुष्य ऐसी स्थिति में रहते हैं जहां सब कुछ उनके नियंत्रण में नहीं होता है। विश्राम करना, ध्यान करना, या लंबी गहरी सांसें लेना भी उनके लिये संभव नहीं हो पाता है। क्या जीवन को सुचारू रूप से चलाने का और कोई तरीका है?
श्री श्री रवि शंकर : एक कहावत है कि तुम युद्धक्षेत्र में जाकर तीरंदाज़ी सीखना शुरु नहीं कर सकते हो। तुम्हें युद्ध की स्थिति आने से पहले ही तीरंदाज़ी सीखनी होगी। तो उस क्षण में जब तुम तनाव महसूस करते हो तो तुम कुछ नहीं कर पाते हो, पर उस स्थिति में आने से पहले कुछ ऐसा करो कि तनाव की वो स्थिति आने ही ना पाये। ‘तुम मंच पर जाकर कोई नई ताल नहीं सीख सकते हो,’ हांलाकि मैं इस कहावत को नहीं मानता असल में कुछ भी असंभव नहीं है।
मैं कहूंगा कि अपने बर्ताव को बदलो, अपने खान पान को बदलो, और जीवन के प्रति अपने दृष्टिकोण को बदलो, अपनी बातचीत की शैली को बदलो, आलोचना से निबटने की क्षमता जगाओ... मोटे तौर पर, जीवन के प्रति अपने दृष्टिकोण को बदलने से बहुत फ़र्क पड़ता है। परमात्मा से निकटता महसूस करने से तुम्हारी कार्यक्षमता बढ़ जाती है।
तो, मैं तुम्हें कई प्रक्रियायें दूंगा, जिन्हें तुम कर सकते हो – सिर की मालिश, आंखों का व्यायाम, सही भोजन, पैदल घूमने जाना, सूर्यास्त को देखना...शायद कुआला लंपुर में इन ऊंची इमारतों की वजह से सूर्यास्त देखना संभव नहीं हो! प्रकृति के साथ रहें। अफ़सोस है कि आमतौर पर हम बस सोफ़े पर बैठ कर टेलिविज़न देखते हैं, और तुरंता भोजन खाते हैं। इस का असर समाज में नज़र आ रहा है। हमें एक स्वस्थ समाज बनाने के लिये अपनी आदतों को बदलना होगा।
प्रश्न : आपको किन चीज़ों से प्रसन्नता होती है?
श्री श्री रवि शंकर : जब हर आंसू एक मुस्कुराहट में परिवर्तित हो जाता है तो मुझे प्रसन्नता होती है। और ऐसा हर समय होता रहता है।
प्रश्न : हम जानते हैं कि प्रेम से हम एक बुरे व्यक्ति को अच्छा व्यक्ति बना सकते हैं, बुरी आदतों को सुधार सकते हैं। पर हम प्रेम से अपराधियों और माफ़िया के लोगों को कैसे सुधार सकते हैं?
श्री श्री रवि शंकर : ओह! हमारे पास इसके कई उदाहरण हैं! आप जानते हैं कि हम कारागृहों में कोर्स कराते हैं। हर अपराधी के भीतर एक प्रताणित व्यक्ति मदद के लिये पुकार रहा होता है। तो गर आप उस प्रताणित व्यक्ति को चंगा कर दें तो अपराधी ग़ायब हो जाता है। ये हम एक बहुत बृहद स्तर पर कर रहे हैं। विभिन्न सामाजिक मान्यताओं वाले इस देश मलेशिया में एक अपनेपन के भाव का जागृत होना बहुत आवश्यक है। सभी को सदभाव के साथ रहना है। सदभाव कहीं बाहर से नहीं लाया जा सकता है, इसे भीतर से ही लाना है। ये भीतरी सदभाव और सौहार्द तभी आता है हब हम तनाव से मुक्त हो और जीवन के प्रति एक बृहद दृष्टिकोण रखते हों।
प्रश्न : सुदर्शन क्रिया से बीमारियों से लड़ने में क्या मदद मिलती है?
श्री श्री रवि शंकर : सुदर्शन क्रिया से कई बीमारियों की रोकथाम हो जाती है। ओस्लो यूनिवर्सिटी के एक प्रोफ़ेसर जो कि जीन्ज़ पर काम कर रहे हैं, कहते हैं कि हाइपर्टेंशन और कैंसर इत्यादि को बढ़ावा देने वाले ३०० क्रोमोज़ोम, प्राणायाम और सुदर्शन क्रिया की वजह से उन बीमारियों को बढ़ावा नहीं दे पाते हैं। तो, अगर कोई व्यक्ति नियमित रूप से इनका अभ्यास करता रहे तो इन बीमारियों के होने की संभावना घटती जाती है।
प्रश्न : हम प्रेम की शक्ति का प्रयोग कर के प्राकृतिक प्रकोपों को कैसे रोक सकते हैं या शांत कर सकते हैं?
श्री श्री रवि शंकर : ये धीरे धीरे होगा। अगर तुम पेड़ पौधों से और अधिक प्रेम करने लगो तो इसका प्रभाव ज़रूर होगा। तुम जानते हो कि खनन कार्यों से हमने सबसे बड़ी विनाशकारी समस्या बना रखी है। हम पृथ्वी के अंदरूनी भाग पर बमबारी करते हैं। पृथ्वी जीवंत है, जड़ नहीं। तो जब हम हम उसके पेट में बम फोड़ते हैं तो उस में कंपन होता है, और अधिक भूकंप आते हैं। प्राकृतिक आपदाओं का एक बहुत बड़ा कारण ये खनन कार्य हैं। दूसरा कारण है पेड़ों को काटना। पेड़ लगाने के प्रति तो जागरूकता हुई है, पर खनन कार्यों में बमबारी से हो रही हानि के प्रति लोग चुप हैं। हमें इसे संभालना हैं।
प्रश्न : विकास कार्यों में और धरती को बचाने में समतुलना कैसे लाई जाये?
श्री श्री रवि शंकर: साइकिल पर अपना संतुलन कैसे बनाते हो? उसी तरह! प्राचीन भारत में एक प्रथा थी कि यदि आप को एक पेड़ काटना पड़े तो उसे काटने से पहले एक प्रणाली अपनाई जाती थी, जिसमें उस पेड़ से वादा किया जाता था कि ५ नयें पेड़ लगाये जायेंगे, तदुपरान्त ही उस पेड़ से उसे काटने की अनुमति मांगी जाती थी। ये पेड़ से बात करने जैसा था।
आदिवासी इलाकों में लोग पर्यावरण की बहुत देखभाल करते थे। वे पहाड़ों, नदियों, पेड़ों को पूजनीय मानते थे। पूजा के भाव से प्रकृति का सम्मान करने लगते हैं, और उसकी देखभाल करते हैं। नेटिव अमरीकन प्रकृति को पूजनीय मानते थे और वे कभी बमबारी से धरती को नहीं फोड़ सकते थे।
प्रश्न : योग और सुदर्शन क्रिया में क्या अंतर है?
श्री श्री रवि शंकर : अफ़सोस है कि योग को केवल शारीरिक व्यायाम तक ही सीमित समझा गया है। उसके आगे आती है सांस, और फिर आता है मन। ऊर्जा के भीतरी स्तोत्र तक पंहुचना बहुत आवश्यक है। ध्यान के बिना योगासन पूर्ण नहीं हैं। सुदर्शन क्रिया तुम्हें गहरे ध्यान में ले जाती है जहां शरीर, सांस और मन एक ही ताल में आकर अपने भीतरी स्तोत्र से जुड़ जाते हैं।
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