"अधिक अंतर्ज्ञान का अर्थ है अधिक सफलता"

KPMG magazine से श्री श्री रवि शंकर जी के साक्षात्कार के अंश

प्रश्न : विविधता की सबसे बड़ी महत्ता क्या है?

श्री श्री रवि शंकर :
अब हम दुनिया में अलग थलग नहीं जी सकते। हमारा ज्ञान और संचार विस्तृत होता जा रहा है, और दुनिया और छोटी होती जा रही है, इसलिये अब व्यवसाय, किसी एक भौगोलिक क्षेत्र तक सीमित रह कर पनप नहीं पायेंगे। हमारे पास, विविधता का सम्मान करने के सिवा अब कोई रास्ता नहीं बचता। ये एक आवश्यकता है, इसमें अब कोई विकल्प नहीं है।

ये हमारे स्वभाव में है, बौधिकता और विकास का लक्षण है कि हम ये महसूस करें कि सभी संस्कृतियां, सभ्यतायें, विचारधारायें, सब हमारी हैं।

अफ़सोस है कि अज्ञान की वजह से हुई हूढ़ मत ही हमें विविधता को अपनाने से बाधित करती है। उदाहरण के तौर पर – २५ साल पहले जब हमने योरोप में योग, श्वांस प्रक्रियाओं और ध्यान के बारे में बात की, तब उसे अजीब समझा गया। उस समय पूर्वीय प्रभावों के प्रति पूर्वभावनायें प्रचलित थीं। पर अब लोग ये समझ गये हैं कि योग उनके स्वास्थ्य के लिये अच्छा है, और वे उसे अपना रहे हैं। ठीक उसी तरह आज के समय में कुछ इस्लामिक देशों में योग और ध्यान के प्रति पूर्वधारणायें हैं। इन सभी पूर्वधारणाओं को मिटाना होगा।

प्रश्न : क्या कंपनियों के भीतर विविधता की ओर ध्यान देते ही, उच्च पदों पर महिलाओं की कम प्रतिशत होने पर ध्यान ना देकर, कुछ अधिक करना चाहिये?

श्री श्री रवि शंकर :
कई जगहों पर सबसे पहली कमी लिंग भेद ही नज़र आती है। लिंग भेद आजकल प्रत्यक्ष है। लिंग, धर्म, नागरिकता, सांस्कृतिक भिन्नता, इन सभी को नज़रंदाज़ करना चाहिये।

मैं ये नहीं कह रहा हूं कि आप ज़बरदस्ती किसी विशेष श्रेणी के व्यक्ति को काम दीजिये जब कि वो उसके काबिल ही ना हो। ये भी ग़लत होगा।

पहले काबलियत देखनी चाहिये। उसके बाद ही विविधता पर ध्यान दीजिये। विविधता के नाम पर हम ऐसे लोगों को ले आते हैं जिनकी योग्यता उस काम के काबिल नहीं होती है। इसकी वजह से व्यवसाय को नुक़्सान होता है।

विविधता लागू करने के लिये किसी नियम का सहारा ना लेकर, उसे स्वाभाविक रूप से आने दें। ये हमारे नज़रिये के बदलाव से आना चाहिये, ना कि सरकारी नियमों के तहत।

प्रश्न : नेताओं को शुरुवात कहां से करनी चाहिये?

श्री श्री रवि शंकर
: नेताओं को बोर्डरूम से, दफ़तर से शुरुवात करनी चाहिये। एक उत्सव का माहौल बनाने के लिये, सही मनोभाव की आवश्यकता है, और सही मनोभाव को लाना ही होगा। इसमें टीम की सहभागिता की आवश्यकता हो सकती है, सब को ये मनोभाव अपनाना होगा।

एक उत्सव का माहौल – विश्वास, सहयोग, अपनापन – इन सभी को आना होगा। मुझे यक़ीन है कि लोग खुद को तरोताज़ा करने के इच्छुक होंगे ही, ज़रूरत है सिर्फ़ उनके सामने इसे कारगर तरह से रखने की। उन्हें मौका मिलना चाहिये। जब लोगों में सृजन शक्ति, ताकत और अपनेपन की कमी हो जाती है तो आखिरकर कंपनी को नुक़्सान होता है।

अब नियम और नियंत्रण का सैन्य शासन काम नहीं करता है। केवल प्रेरणा और उत्साहवर्धन ही कारगर तरीके हैं। ऐसा करने के लिये विश्व के विभिन्न भागों में प्रचलित प्राचीन सिद्धांतों को कार्यक्षेत्र में उतारने से काम का माहौल खुशनुमा हो जायेगा।

प्रश्न : क्या अगले २०-३० सालों में विश्व की व्यवस्था प्रणाली कुछ अलग ही होगी?

श्री श्री रवि शंकर :
हम पहले ही ये कह चुके हैं। भूतकाल में विश्व की व्यवसायिक व्यवस्था, वाणिज्य के दबाव पर चलती है, पर आज ग्लोबल मार्केट बहुत खुला हो गया है, और कई विकल्प मौजूद हैं। लोगों में पिछले सालों के मुकाबले, सजगता भी अधिक आ गयी है, और वे भ्रमण करना चाहते हैं। यहां नहीं तो कहीं और अच्छी नौकरी मिल जायेगी। इससे व्यवसायिक दृष्टि एकदम बदल गयी है। पहले ये अंचलों में बंटी हुई थी, क्योंकि आप एक नौकरी करना चाहते थे और नौकरियां कम थी।

प्रश्न : कार्य क्षेत्र को बेहतर कैसे बना सकते हैं?

श्री श्री रवि शंकर :
हमारे कार्यक्रम में एक बात आती है ‘Let out the steam and get into the team’ – ये हमारा नारा है। दूसरे शब्दों में, प्रबंधक का लेबल छोड़कर, अपनी कंपनी में एक खुला भाव लेकर सब के साथ बैठो। बैठ कर उनसे बात करो, उनसे अपना नज़रिया बांटो। इस तरह का आदान प्रदान शिक्षात्मक होता है। इससे लोगों में शक्ति आती है, और आपसी सहयोग बढ़ता है। इसके साथ हम श्वांस प्रक्रियाओं और व्यायाम को जोड़ कर एक ऐसी स्थिति बनाते हैं जिसमें सहभागी, स्वतंत्र हो कर तनाव के भावों को मिटा कर स्थिति को नये दृष्टिकोण से देखते हैं।

किसी भी व्यवसाय में आपको अंतर्ज्ञान की आवश्यकता होती है। जितना ही बौस का अंतर्ज्ञान विकसित होगा, उतनी ही व्यवसाय में सफलता प्राप्त होगी। अधिक अंतर्ज्ञान का अर्थ है अधिक सफलता, और यदि आपका अंतर्ज्ञान ग़लत है तो आप सफलता नहीं प्राप्त कर सकते।

हमारे कार्यक्रम का उद्देश्य है तनाव को कम करना और अंतर्ज्ञान को बढ़ाना – इससे कार्यक्षेत्र में सृजनात्मकता और उत्साह भी बढ़ता है। आज की व्यस्त दुनिया में लोग अक्सर थक जाते हैं और बीमारियां भी बहुत हैं। मानसिक बीमारियों पर योरोपियन यूनियन में ३-४ प्रतिशत GDP व्यय होता है, और ये ख़र्च कई सौ बिलियन यूरोज़ में जाता है।

वर्ल्ड हेल्थ और्गनाइज़ेशन के मुताबिक, योरोप में सभी बीमारियों में २० प्रतिशत हिस्सा मानसिक अस्वस्थता की बीमारियों का है। इस में अवसाद भी शामिल है जो चार में से एक व्यक्ति को जीवन में कभी ना कभी प्रभावित करता है। हमारे कोर्स में सिखाई गयी जीवन को बदल देने वाली प्रणालियों से लोगों को अपनी बीमारियों को मिटाने में बहुत सहायता मिलती है।

प्रश्न : क्या व्यवसायियों के लिये ये संभव है कि अपने दैनिक कार्य कलापों में वे नैतिकता का समन्वय कर सकें?

श्री श्री रवि शंकर
: व्यवसायों में अनैतिकता इसलिये प्रचलित है क्योंकि व्यक्तिगत रूप से लोगों में भय व्याप्त है। इस भय से आध्यात्मिक साधना के द्वारा निबटना होगा।
इस तरह जब आप में भय कम है, जब आप विश्वसनीय बनना चाहते हैं, जब आप प्रतिबद्ध होना चाहते हैं, नैतिक होना चाहते हैं, तब आप कभी ग़लत काम नहीं करेंगे जिनसे कि हज़ारों, लाखों लोग प्रभावित हो सकते हों। इसीलिये व्यवसायों को सामाजिक ज़िम्मेदारी उठानी चाहिये (Corporate Social Responsibility)। ये केवल एक बौधिक वस्तु नहीं है – ये हरेक व्यक्ति के हृदय से आनी होगी।

हमारे जैसे कोर्स इस प्रक्रिया में सहायतार्थ तैयार किये जाते हैं। जिन व्यवसायियों ने ये कौर्पोरेट कोर्स किया है उनके लिये हम ‘व्यवसाय और नैतिकता’ पर सफल सम्मेलनों का आयोजन करते हैं। वे आकर नैतिकता के साथ व्यवसाय करने के अपने सफल अनुभव यहां बांटते हैं।

इससे दूसरे व्यवसायियों को प्रेरणा मिलती है। फिर भी अक्सर लोग ये सोचते हैं कि बिना बे‍ईमानी के सफल नहीं हो सकते हैं। पर, ऐसा नहीं है। ये एक भ्रमात्मक बुलबुला है।

हां, संतुलन की आवश्यकता है – आप सामाजिक ज़िम्मेदारी उठा कर कंपनी को घाटे में नहीं जाने दे सकते हैं। और दूसरी तरफ़, आप अपने कर्मचारियों को परेशान कर के भी फ़ायदे में नहीं रहेंगे, क्योंकि परेशान कर्मचारी अंततः नौकरी छोड़कर चले जायेंगे। इन दोनों ही परिस्थितियों में आपकी नौका डोलने लगेगी। आपको बढ़िया संतुलन बनाये रखना है। आप अपने फ़ायदे पर भी नज़र रखें, कर्मचारियों का भी ख़्याल करें, और सामाजिक ज़िम्मेदारी भी उठायें।

प्रश्न : आपकी संस्था ने २५ सालों में ३० मिलियन लोगों के जीवन को प्रभावित किया है, और साथ ही बहुत प्रगति भी की है। इसकी व्यवस्था आपने कैसे की?

श्री श्री रवि शंकर
: मैंने कोई व्यवस्था नहीं की, मैंने उसे स्वाभाविक रूप से बढ़ने दिया। मैं उसकी प्रगति में रोड़ा नहीं बना। ये संस्था स्वयंसेवियों द्वारा चलाई जाती है, और हमारे पास नेता भी हैं। मेरा बस नाम जाता है सेवा प्रौजेक्टस में, और बाकी सब लोग काम करते हैं!

गंभीरता से बात करें तो, हम जो देते हैं वो लोगों के लिये बहुत उपयोगी है, और हम विविध प्रकार के कार्यक्रम आयोजित करते हैं। हमारा अंतर्ज्ञान काम करता है और हम जो भी परियोजना हाथ में लेते हैं वो सफल होती है।
अब हम १५१ देशों में कार्यरत हैं, और हमारे ४१ मुख्य केन्द्र हैं, और कई शहरों में स्थानीय केन्द्र हैं। हमारे १०० स्कूल भी हैं जिन में शुल्क लिया जाता है, और १०८ स्कूल हैं जो निशुल्क हैं और ग़रीबों के लिये हैं।

इस स्वाभाविक प्रगति के लिये आवश्यक है धैर्य, दृढ़ता और शुद्ध संकल्प! इसमें ध्येय का ठीक ज्ञान होना आ्वश्यक है, ग़लतियों को संभालने का लचीलापन होना आवश्यक है, और अच्छे संकल्प से प्रगति के लिये दूर दृष्टि आवश्यक है।

किसी भी व्यवसाय की स्वाभाविक प्रगति के लिये, नेता को ज्वरित नहीं होना चाहिये, और इल्ज़ामबाज़ी में नहीं पड़ना चाहिये। इसका मतलब है कि उन्हें सीखना चाहिये! भूतकाल से सीखना चाहिये और भविष्य के लिये एक ध्येय होना चाहिये। और उन्हें सबकी इज़्ज़त करनी चाहिये, चाहे कोई अच्छा काम करे या ना करे।

प्रश्न : लोगों को अच्छा महसूस कराने के लिये क्या श्वांस प्रक्रियायें, ध्यान और अंतर्ज्ञान काफ़ी है?

श्री श्री रवि शंकर :
ये सही है! हमें स्कूल या घर पर नकरात्मक भावनाओं जैसे कि दुख, ईर्ष्या, या क्रोध से निबटना नहीं सिखाया गया। इसका ज्ञान नहीं दिया गया। पर अगर आपको अपने क्रोध, अपनी भावनाओं को अपनी श्वांस के ज़रिये संभालना सिखा दिया जाये तो इससे आपको बहुत फ़ायदा होता है। श्वांस और ध्यान के ज़रिये ये ज्ञान पाना संभव है।

मैं सदियों से चीन, जापान और भारत में बौध और हिंदु मान्यताओं के साथ रहा हूं, पर हमारी प्रणाली और पुरानी प्रणालियों में फ़र्क ये है कि, हमारी प्रणाली आज के समय के लोगों के लिये जिनके पास समय की कमी है, उपयुक्त हैं। ये प्रणाली आज के समाज में उपयोगी और सुलभ है।

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