"एक पत्थर, महसूस नहीं कर सकता है पर एक मनुष्य महसूस कर सकता है"
२२ जुलाई २०१०, हार्टफ़ोर्ड, कनेक्टिनट
प्रश्न : मेरे आस पास हो रहे अन्याय पर मुझे अक्सर क्रोध आता है, पर मैं यह समझता हूँ कि प्रेम और समझ की भी आवश्यकता है। मैं इन भावनाओं को संतुलित कैसे करूं?
श्री श्री रवि शंकर : जब कई तिनके मिलाकर एक झाड़ू बनाया जाता है तब वह एक बड़े कमरे की सफ़ाई उन अलग अलग तिनकों से बेहतर कर सकता है। उसी तरह, एक संघ में रह कर आप अधिक प्रभावी कार्य कर सकते हैं, बजाये कि कोई काम अकेले करने के। चाहे सेवा कार्य हो या अन्याय के विरोध में कार्य करना हो, आपको मिलकर काम करना चाहिये। ये बहुत आवश्यक है।
अन्याय तो है। इस स्थिति को बदलना आपका काम है। चीनी भाषा में ‘मुसीबत’ और ‘नये अवसर’, दोनों ही शब्दों के लिये एक ही शब्द है। अगर आप केवल समस्या देखेंगे तो निराश हो जायेंगे। ये अच्छा नहीं है। मिलकर इस पर काम कीजिये और देखिये कि आप क्या कर सकते हैं। दुनिया के कई भागों में भ्रष्टाचार बहुत फैला हुआ है। हर काम के लिये धन खर्च होता है। हमारे संघ ने भ्रष्टाचार का विरोध कर के काफ़ी उपलब्धि प्राप्त की है।
हमारे युवाओं ने रिश्वत देने से इंकार कर दिया। जब अफ़सरों ने इस तरह का रवैया देखा, तो उनके लिये भी यह एक नई बात थी। आखिर वे भी इंसान हैं। आयुर्वेद की परियोजनाओं के लिये हमें १० लाइसेंसों की आवश्यकता थी। लोगों ने कहा कि उन्हें पाने में २ साल लग जायेंगे! हमने इन लाइसेंसों के लिये मांग पत्र भरा और रिश्वत ना देने का संकल्प किया। हम ने निश्चय किया कि आवश्यकता पड़ने पर हम ५० चक्कर लगाने को तैयार थे, पर रिश्वत देने के लिये तैयार नहीं थे। एक महीने के भीतर हमें सभी १० लाइसेंस मिल गये! तो, अन्याय के विरोध में ज़रूर लड़ो, पर बिना क्रोध के। शांत मन से लड़ो। भगवदगीता में भी ऐसा ही कहा गया है।
प्रश्न : मेरे पिता का देहान्त हुये अभी कुछ ही समय हुआ है। मैं ये जानना चाहता हूँ कि वे कैसे हैं, कहाँ हैं, और मेरे बारे में क्या सोचते हैं?
श्री श्री रवि शंकर : जो लोग दूसरी तरफ़ जा चुके हैं, वे आप पर आशीर्वाद बरसाते हैं। वे आपको नाप तौल की दृष्टि से नहीं देखते हैं, और ना ही आपके बारे में चिंता करते हैं। वे जानते हैं कि आप सुरक्षित रहेंगे।
प्रश्न : इच्छाओं को त्यागना चाहिये, पर क्या मुक्ति की इच्छा रखना ठीक है? ये इच्छा कब छूटेगी?
श्री श्री रवि शंकर : हाँ। मुक्ति की इच्छा होना ठीक है।
प्रश्न : अगर ईश्वर हमारे भीतर है, तो वे हमें सदा ही अच्छे कार्यों की तरफ़ प्रेरित क्यों नहीं करता है? विश्व में इतनी हिंसा और गुनाह क्यों है?
श्री श्री रवि शंकर : एक फ़िल्म की कल्पना करो जिस में कोई विलेन ना हो। कल्पना करो कि केवल एक हीरो है, जो खाता है, सोता है, और बस यूं ही रहता है, कोई काम नहीं करता है! क्या तुम ऐसी फ़िल्म देखोगे? विरोधाभासी मूल्य एक दूसरे के पूरक होते हैं। कांटे और पंखुड़ियां, दोनो ही हैं। आप दोनों में से किसी को भी चुन सकते हैं।
ईश्वर आपके भीतर हैं। कभी वे सोते हैं, कभी छुप जाते हैं, कभी जागृत होते हैं और कभी नाचते हैं। थोड़ी साधना के बाद ईश्वर जागृत हो जाते हैं। तब वे चैतन्य होते हैं। अपने भीतर के देवी देवता को जगाओ!
एक पत्थर, महसूस नहीं कर सकता है पर एक मनुष्य महसूस कर सकता है। अपने भीतर के देवत्व को जगाना अति आवश्यक है। इीलिये भारत में सुबह कुछ स्तोत्र गाये जाते हैं, ‘हे ईश्वर, आप जागे और हमें आशीर्वाद दें!’ एक स्तर से ये अजीब लगता है क्योंकि बच्चे को जगाना माता पिता का कार्य है, परंतु यहाँ मनुष्य, ईश्वर के लिये गाते हैं कि जागो और सृष्टि को आशीर्वाद दो। इस विरोधाभास में अस्तित्व का गहरा रहस्य छुपा है।
प्रश्न : प्रेम हमेशा आसक्ति के साथ क्यों आता है? क्या ये संभव है कि आप अपने जीवन साथी को प्रेम भी करें पर साथ ही वैराग्य भी रहे?
श्री श्री रवि शंकर : आसक्ति से पीड़ा आती है, पर पीड़ा के बिना तो कुछ भी नहीं है। हम इस दुनिया में पीड़ा के साथ ही आते हैं। जन्म की प्रक्रिया ही बहुत पीड़ादायक होती है। नौ महीनों तक हम आराम से थे। अचानक हमारे आस पास का सागर गा़यब हो गया और हमें बाहर आना पड़ा! आसक्ति तब होती है जब आप अपने अस्तित्व पर केन्द्रित ना होकर बाहर की दुनिया को देखते हैं। नियंत्रण करने की इच्छा, प्राप्त करने की इच्छा, संचय करने की इच्छा, पीड़ा लाती है। जब हम विश्राम में होते हैं, संतुष्ट होते हैं, तब प्रेम ही आनंद में परिवर्तित हो जाता है। मांग और नियंत्रण केवल पीड़ा लाते हैं। प्रेम के साथ ज्ञान ही इसकी काट है।
प्रश्न : मैं क्रोध को कैसे काबू में करूं?
श्री श्री रवि शंकर : उत्तमता के प्रति तुम्हारे प्रेम से ही क्रोध का जन्म होता है। अपने जीवन में तृटियों के लिये स्थान रखो। उन सब बातों की एक सूची बनाओ जो तुम्हें खराब लगती हैं। फिर अपने आस पास के लोगों से कहो कि वे उस सूची में लिखी सभी बातें करें! जब तुम क्रोधित हो जाओ तो उस संवेदना को महसूस करो। देखो तुम्हारे दांत कैसे भिंच जाते हैं। मन कैसा हो जाता है। कुछ लंबी गहरी सांसे लो और देखो अगर पहले की संवेदना से कुछ फ़र्क है। हालांकि क्रोध के मामले में मेरा अनुभव नहीं है, क्योंकि मुझे ये समस्या कभी नहीं हुई है। तो मेरी सलाह, अच्छी नहीं भी हो सकती है! तुम और लोगों से पूछो। यहाँ कई ऐसे लोग हैं जो तुम्हें बता सकते हैं। सुदर्शन क्रिया के नियमित अभ्यास से क्रोध शांत पड़ जाता है।
प्रश्न : जीवन का उद्देश्य क्या है? हम जन्म लेते हैं, पढा़ई करते हैं, काम करते हैं, और एक दिन मर जाते हैं। मैं जीवन के प्रति आसक्ति को खोता जा रहा हूँ।
श्री श्री रवि शंकर : अच्छा है। तुम ठीक रास्ते पर हो। जो तुम कह रहे हो वो हमारी intro talk की तरह है। कल्पना करो कि हम ८० साल तक जीते हैं, तो उस में से २०-२५ साल तो सोने में चले जाते हैं। १० साल बाथरूम में गुज़र जाते हैं। १० साल ट्राफ़िक में गुज़र जाते हैं। फिर कितने साल हम दुखी रह कर बिताते हैं। अंत में केवल २-३ साल ही हम प्रार्थना, सेवा इत्यादि में बिताते हैं।
ये अच्छा है कि तुम इस बारे में सोच रहे हो। तुम सही रास्ते पर हो।
प्रश्न : अगर कोई ऩज़दीकी व्यक्ति किसी बीमारीवश मृत्यु की ओर अग्रसर हो, तो क्या करें?
श्री श्री रवि शंकर: उन्हें आशीर्वाद दो। जीवन चलने दो, गाओ, नाचो, ध्यान करो। अगर तुम बीमारी के बारे में अधिक सोचोगे तो तुम्हारी ऊर्जा कम हो जाती है। बदलाव कभी भी आ सकता है। चिकित्सा की आवश्यकता है, पर विश्वास भी रखो। दैवी कृपा हर वक्त तुम्हारे साथ है। कभी भी कुछ भी हो सकता है।
प्रश्न : क्या ये संभव है कि हम सभी को आत्मज्ञान हो जाये?
श्री श्री रवि शंकर : हाँ। कभी भी! बीज तो है, वो कभी भी अंकुरित हो सकता है। वो कभी भी एक बड़ा पेड़ बन सकता है।
प्रश्न : १५ साल से मैं एक ही नौकरी कर रहा हूँ, और मेरा अधिकारी मेरी इज़्ज़त नहीं करता है। क्या मैं नौकरी छोड़ कर, अपना व्यवसाय शुरु करूं? कृपया मेरी मार्गदर्शन कीजिये।
श्री श्री रवि शंकर : ये चुनाव तुम्हें करना है, आशीर्वाद मुझे देना है।
प्रश्न : वैदिक ज्ञान में सृष्टि के नियमों का सत्य दिया गया है। क्या आधुनिक विज्ञन भी इसका एक अंश है?
श्री श्री रवि शंकर : हाँ। ज्ञान अनंत है। कई ऋषि, आज के वैज्ञानिक बन कर आये हैं। वे ब्रह्माण्ड की खोज में लगे रहते हैं। हर चीज़ को आदर देना चाहिये, चाहे नई हो या पुरानी। आजकल Quantum Physics की कई खोजें सामने आ रही हैं। इनमें वैदिक ज्ञान से बहुत समानता है। उदाहरण के रूप में, Dark matter तथा String Theory, दोनों के ही बारे में प्राचीन ज्ञान में बताया गया था। एक वैज्ञानिक Dr.Hans-Peter Dürr, नें मुझे बताया कि वे जब भी व्याख्यान देते हैं, उन्हें लगता है कि वे वेदान्त की बात कर रहे हैं। ये पूरा विश्व एक ही वस्तु से बना है। कोई दूसरा नहीं है। यह वेदान्त है। प्राचीन ऋषि तथा आधुनिक वैज्ञानिक, दोनों ही एक ही बात कहते हैं।
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