"रक्षा बंधन पर श्री श्री रवि शंकर जी का कुछ वर्ष पहले दिया हुआ संदेश"

कोपनहैगन, डेनमार्क
२० अगस्त १९९७


ये पूर्णिमा ऋषियों को समर्पित है। इसे रक्षा बंधन भी कहते हैं। बंधन का अर्थ है जो बांधता है, और रक्षा का अर्थ है बचाना। एक ऐसा बंधन जो आपकी रक्षा करता है – ज्ञान के साथ बंधना, गुरु के साथ बंधना, सत्य के साथ बंधना, आत्मा के साथ बंधना – ये सब आपकी रक्षा करते हैं। एक रस्सी का उपयोग आपको बचाने के लिये भी हो सकता है और आपका गला घोटने के लिये भी हो सकता है। आपका छोटा मन और सांसारिकता आपका गला घोट सकते हैं। आपका बृहद मन और ज्ञान आपकी रक्षा करते हैं।

इस बंधन से आप बंधते हैं सत्संग से, गुरु से, सत्य से, ऋषियों के प्राचीन ज्ञान से, और वही आपका रक्षक है। जीवन में बंधन आवश्यक है। उस बंधन को दिव्य बनाइये जिससे कि जीवन बंधन से मुक्त हो।

art of living TV

© The Art of Living Foundation For Global Spirituality