"हमें भीतर की संपन्नता तथा बाहर की कार्यशीलता की आवश्यकता है"

आज श्री श्री ने क्या कहा..

५ अगस्त, २०१०, वोबर्न, मैसाच्यूसेट्स, अमरीका

जब तुम ट्राफ़िक में फंस जाते हो तो क्या करते हो? (श्रोता अपना अपना मंतव्य देते है।) तुम ईश्वर से सच्ची प्रार्थना कर सकते हो कि वो ट्राफ़िक जाम हटा दें। तुम अपनी कार में बजते हुये संगीत का आनंद ले सकते हो। तुम बाहर निकलने का सबसे नज़दीकी रास्ता ले सकते हो। तुम सिर्फ़ ट्राफ़िक का आनंद ले सकते हो या फिर किसी मंत्र का जप कर सकते हो।

उस समय क्या नहीं करना चाहिये? शिकायत। बस शिकायत करना बंद कर दो और तुम पाओगे कि तुम अपना उत्साह बनाये रख सकते हो।

हम जन्म के साथ इस जीवन में बहुत उत्साह लाते हैं, पर धीरे धीरे वह कहीं खो जाता है। जैसे जैसे हमारी उम्र बढ़ती है, हम सकारात्मक दृष्टिकोण से नकारात्मक दृष्टिकोण की ओर खुद को मोड़ लेते हैं। तो ट्राफ़िक जाम को एक मौका समझो अपने दृष्टिकोण को मोड़ने के अभ्यास के लिये।

हर घटना एक मौका है अपने ज्ञान को और गहरा बनाने के लिये। कोई अप्रिय घटना कहीं ना कहीं उस ज्ञान को उजागर करती है जो कि जन्म से ही हमारे साथ है। सकरात्मक या नकरात्मक, हर घटना हमारे भीतर के ज्ञान को उजागर करती है। अगर कोई घटना हम पर हावी हो जाये तो हम अपनी बुद्धि खो देते हैं। तब हमें मदद की आवश्यकता पड़ती है। यहाँ सत्संग का महत्व है। हम सब साथ में मिल कर गाते हैं और बोझ हट जाता है। हरेक व्यक्ति को जीवन में कुछ समय निकालना चाहिये, जीवन के सत्य को जानने के लिये। ये सत्संग है। सत्य के संग रहना सत्संग है। जीवन में सत्य का संग करते चलो। कुछ ही पल काफ़ी हैं शांति, स्थिरता और ताक़त लाने के लिये।
कई लोगों के मन में ऐसी धारणा होती है कि ये उबाऊ होगा। उन्हें लगता है कि ज्ञान बड़ा गंभीर होता है। मैं कहता हूँ, ज्ञान की तरफ़ जाओ तो मज़ा तुम्हारा पीछा करेगा। पर, अगर मज़े का पीछा करोगे तो दुख ही हाथ लगेगा। आत्मज्ञान वो चीज़ है जो तुम्हें फिर से बच्चे जैसी मस्ती देता है। ये भीतर से उत्साह लाता है। यही आध्यात्म है।
ये महसूस करो कि सब ठीक है। तब तुम भीतर जाकर ध्यान कर पाओगे। ध्यान में उतरते वक्त यह रवैया अपनाना ज़रुरी है कि सब ठीक है। पर जब तुम ध्यान से बाहर आते हो तो पाते हो कि बहुत कुछ है जिसे ठीक करने की आवश्यक्ता है। तुम जीवन और विश्व में समस्याओं के प्रति फिर सजग हो जाते हो। और फिर ध्यान से जगी उर्जा का प्रयोग तुम्हें इस बारे में कुछ करने ले लिए करना चाहिये।

ध्यान का अर्थ है भीतर से मुस्कुराना, और सेवा का अर्थ है इस मुस्कुराहट को औरों तक पँहुचाना। तो, पहले तुम्हें ये जान कर भीतर जाना होगा, कि, ‘सब ठीक है।’ ये जान लो कि तुम सुरक्षित हो, और तुम्हारी देखभाल हो रही है। ये विश्वास ज़रूरी है। ये ध्यान है।

फिर जब तुम कर्मक्षेत्र में बाहर आओ तो तुम्हें नज़र आयेगा कि क्या ठीक नहीं है और तुम उसके लिये काम करोगे। किसी बाध्यता से कर्तव्य पूरा मत करो। उसे तुम्हारे स्वभाव से आने दो, ना कि कर्तव्य की बाध्यता से। अगर तुम कर्तव्य का बोझ महसूस करते हो तो उसमें सुंदरता नहीं रह जाती। बस, मुस्कुराओ और सेवा करो। अक्सर हम सेवा करते समय मुस्कुराते नहीं हैं। लोग थक जाते हैं और सेवा के नाम पर दूसरों को खिजा देते हैं। और अक्सर, जो लोग सुखी होते हैं, वे सेवा नहीं करते हैं! दोनों प्रकार के लोग सिर्फ़ एक पैर पर ही चल रहे हैं। तुम्हें दोनों गुणों की आवश्यकता है – भीतर की संपन्नता तथा बाहर की कार्यशीलता।

प्रश्न-उत्तर अगले पोस्ट में पढ़ियेगा..


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