"नुक्सानदायक आदतों से छुटकारा पाने के उपाय"

प्रश्न : मुझे पता है कि क्या करना अच्छा नहीं है, फिर भी मैं वो क्यों करता हूं? इससे छुटकारा कैसे पा सकता हूं?

श्री श्री रवि शंकर:
तुम जानते हो कि वो करना अच्छा नहीं है, और फिर भी करते हो। तुम ये पूछ रहे हो कि तुम ये क्यों करते हो? ठीक है। तुम प्रार्थना करो कि स्थिति बदल जाये, और ये भी जान लो कि विरोधाभासी मूल्यक, एक दूसरे के पूरक होते हैं। इससे तुम्हें ताकत मिलेगी। और ये भी जान लो कि सब कुछ बदल जाता है।

ज्ञान पर ना चलने के दो ही कारण हैं:

एक तो बुरी आदतें। बुरी आदतें जल्दी नहीं जाती हैं।

दूसरे, कुछ सुख पाने के लालच में तुम ग़लत काम करते हो। उदाहरण के लिये, तुम जानते हो कि अधिक आइसक्रीम खाने से तुम्हारे भीतर चीनी की मात्रा बढ़ जायेगी, तुम्हारे डौक्टर ने भी सावधानी बरतने को कहा है, पर तुम्हारा लालच कहता है, ‘नहीं, मुझे ये खाना है। बस एक दिन और खा लूं।’ तुम ऐसा करते हो क्योंकि इस में तुम्हें स्वाद आता है।

अगर तुम नियमों के उल्लंघन का फल भुगतने के लिये तैयार हो तभी ऐसा करो। तुम जानते हो कि रात्रि आठ बजे के बाद भोजन करना अच्छा नहीं है? यदि तुम ये जानने पर भी ऐसा करते हो तो तुम रात में देर तक जगोगे, डकार मारते रहोगे, अपच से बेचैन रहोगे! अगर ये तुम्हें ठीक लगता है, तो करो।

तो, केवल इन दो बातें के वजह से तुम ज्ञान पर नहीं चलते हो।

तुम जानते हो कि धूम्रपान करना सेहत के लिये हानिकारक है, पर फिर भी करते हो। धूम्रपान से तुम्हें कोई सुख नहीं मिल रहा है, पर उसे छोड़ना बहुत कठिन हो गया है क्योंकि वो एक बुरी आदत बन चुका है।

आदतें सिर्फ़ तीन ही तरह से छूट सकती हैं:

एक तो लालच से। अगर कोई तुमसे कहे कि तुम एक महीने धूम्रपान नहीं करोगे तो तुम्हें एक मिलियन डौलर मिलेंगे, तो तुम कहोगे, ‘एक महीने क्यों, मैं ३५ दिनों तक धूम्रपान नहीं करूंगा। पांच दिन अधिक धूम्रपान नहीं करूंगा, कि कहीं गिनती में कोई कमी ना रह जाये।’ लालच से तुम उन आदतों से छूट सकते हो जो तुम्हें पसंद नहीं हैं।

दूसरा उपाय है भय। अगर कोई कहे कि तुम्हें धूम्रपान करने से विभिन्न प्रकार के कैंसर हो जायेंगे, तब तुम धूम्रपान को हाथ भी नहीं लगाओगे।

तीसरा उपाय है, जिससे तुम प्रेम करते हो उससे वादा करना। अगर तुम अपने प्रियजन से वादा करते हो तब भी तुम धूम्रपान छोड़ दोगे।

मैं इस तीसरे उपाय के पक्ष में हूं।

या फिर, अंततः तुम खुद ही जान जाओगे कि, ‘ओह! इस में बहुत तकलीफ़ है। मैं इस आदत को बरकरार रख कर दुख ही पा रहा हूं।’ तो, एक दिन जब तुम ये जान जाओगे तो वो आदत स्वतः छूट जायेगी।

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