"ये मान लो कि तुम अपनी सम्पूर्ण क्षमता को नहीं जानते हो"

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प्रश्न: जीवन और कार्यों के बीच संतुलन कैसे बनायें?

श्री श्री रवि शंकर :
तुम साइकिल पर संतुलन कैसे बनाते हो? इसमे कुछ ‘कैसे’ नहीं है। ये बस हो जाता है।

प्रश्न : ध्यान में जो शांति मिलती है कि ‘सब ठीक है’, इसे बनाये कैसे रखें?

श्री श्री रवि शंकर :
तुम रात में कैसे सोते हो? तुम बस सब कुछ छोड़ देते हो। जब तुम जागते हो तब तुम में स्थितियों से निपटने की शक्ति होती है। ध्यान से भी ऐसा ही होता है।

प्रश्न: मैं जब भी मुश्किलों का सामना करता हूँ, खुद को बेचारा समझने लगता हूँ। इस चक्र से कैसे बाहर आऊँ?

श्री श्री रवि शंकर :
जैसे ही तुम इस चक्र को पहचान जाते हो, वह टूट जाता है। तुम जान जाते हो कि तुम्हारा मन ही बार बार ऐसा चक्र बनाता है, और ये कई बार हो चुका है। ये समझ अपने समय से आती है। और जब ऐसा हो तो कृतज्ञता महसूस करना और प्रसन्न होना। कल्पना करो कि तुम ५-६ साल पहले कहां थे? क्या तुम बदले हो? तब से अब तक कितना अच्छा बदलाव हुआ है, उस पर ध्यान दो। हम जितनी कृतज्ञता महसूस करते हैं, जीवन में उतनी ही अधिक कृपा बरसती है।

आनंद की अनुभूति के लिए पहला कदम है विश्राम। चिंता और कल की महत्वाकांक्षा तुम्हें थका देती है। भूतकाल में आये क्रोध और नफ़रत भी तुम्हारे मन को बांध रहे हैं। इसी तरह, किसी इच्छा की पूर्ति के लिये ज्वरित होने से भी तुम्हारे उत्साह में कमी आती है। जब तुम गहरे विश्राम का अनुभव करते हो तो तुम्हें हरेक बात मज़ेदार लगती है।

प्रश्न :मैं अधिक अनुशासित कैसे बनूं?

श्री श्री रवि शंकर :
तुम अनुशासित क्यों होना चाहते हो? जिससे तुम अधिक खुश रहो? तुम्हारा स्वास्थ्य सुधर जाये? तो, मोटापे का डर या अस्वस्थ होने का डर तुम्हें अनुशासित रखेगा। प्रेम, भय या लालच से जीवन में अनुशासित रहने में मदद मिलती है। अगर कोई कहे कि यदि तुम अनुशासित रहो तो तुम्हें एक मिलियन डालर मिलेंगे, तो इस लालच से तुम अनुशासित बन जाओगे।

प्रश्न : मैं अपने जीवन में आपकी मौजूदगी और अधिक कैसे महसूस कर सकता हूं?

श्री श्री रवि शंकर :
वो तो तुम अभी भी महसूस करते हो। है कि नहीं?

प्रश्न : किसी प्रियजन की मृत्यु हो जाने पर खुद को कैसे संभालें?

श्री श्री रवि शंकर :
जब किसी प्रियजन की मृत्यु हो जाती है, तो उसे बर्दाश्त करो। उस क्षण के साथ रहो। समय के साथ तुम खुदबखुद उसमें से बाहर आ जाओगे। इसमें ‘संभालने’ जैसी कोई बात नहीं है। बस उस ज्ञान में रहो।

प्रश्न: क्या कला का कोई उच्च मक़सद है?

श्री श्री रवि शंकर :
कला का कोई मक़सद नहीं है। ये प्रसन्नता की अभिव्यक्ति है। कला को देखकर दृष्टा को सुकून और आराम मिलता है, पर कलाकार के लिये ये बस एक अभिव्यक्ति है।

प्रश्न : जब भी मैं कुछ पाना चाहता हूं, कई रुकावटों का सामना करता हूं। मुझे क्या करना चाहिये?

श्री श्री रवि शंकर :
तुम जो भी सोचते हो, वैसा ही सामने आता है। अपने आप पर लेबल मत लगाओ। ‘हमेशा’ जैसी बात मत सोचो। ये स्वीकार कर लो कि तुम्हें खुद अपनी क्षमता के बारे में पूरी जानकारी नहीं है। जब तुम सोचते हो कि हमेशा ही तुम्हें रुकावटों का सामना करना पड़ता है, तो ऐसा सोचने से तुम नकरात्मक दिशा में खुद को ले जाते हो। बस ये जान लो कि जो तुम चाहते हो, वही होगा।

प्रश्न : क्रोध से कैसे छुटकारा पाऊं?

श्री श्री रवि शंकर :
सुदर्शन क्रिया करो। श्वांस प्रक्रियायें करो। गाओ और ध्यान करो। चिंता करने से कोई लाभ नहीं है। जीवन में आगे बढ़ो। कल जो हो चुका है उसके पीछे वर्तमान को व्यर्थ मत करो। जागो और कहो, ‘इस से निपटने की हिम्मत मुझ में है।’ यदि कोई और क्रोधित है तो तुम हर युक्ति का प्रयोग कर के उसे शांत करने की कोशिश करो और फिर सब ईश्वर पर छोड़ दो। शिक्षा दो और नज़रंदाज़ करो। उसे कुछ समय दो। माफ़ी मांग लो तो बहुत से लोग बीती बात भुला ही देते हैं। अगर तब भी माफ़ ना करें तो ये अज्ञान के कारण है।

प्रश्न : मुझे भय लगता है कि जीवन में जो कुछ भी मेरे पास है, मैं उसके योग्य नहीं हूं, इसलिये कहीं वो मुझ से छिन ना जाये। मैं क्या करूं?

श्री श्री रवि शंकर :
कृतज्ञ और प्रार्थनापूर्ण रहो। ये जान लो कि जिसने भी तुम्हें ये सब दिया है वो तुम्हारी देखभाल करता है, और तुम से उसे छीनेगा नहीं। सेवा करो। अपना ध्यान इस बात पर लगाओ कि तुम समाज को क्या दे सकते हो। ये भगवान को देना ही हुआ। अगर तुम्हारे मन में नकरात्मक, असुरक्षा के भाव और शक आयें तो ॐ नमः शिवाय का जप करो। इन सब से तुम सही रास्ते पर आ जाओगे। भूतकाल को भाग्य समझो और भविष्य को स्वतंत्र इच्छा। जो होना था, हो चुका है। हम लोग अक्सर इसका उल्टा करते हैं। लोग बेवकूफ़ी में भूतकाल को स्वतंत्र इच्छा से निर्मित समझते हैं और भविष्य को भाग्य समझते हैं। ऐसा करने से तुम केवल वर्तमान में दुखी हो जाते हो।

‘ॐ नमः शिवाय’ हज़ारों सालों से चला आ रहा है। इस की ध्वनि में पंचतत्वों का समावेश है। उदाहरण के लिये – ॐ का अर्थ है दिव्य प्राण शक्ति। मंत्र जप से हमारे भीतर शक्ति का संचार होता है। ये बहुत कारगर है और हमें नित्य ही इसका जप करना चाहिये। ऐसा करने से अवसाद हम से बहुत दूर रहेगा। इसे प्रयोग कर के देखो। तुम पाओगे कि जब भी तुम खुद को कमज़ोर महसूस करते हो, तो ॐ नमः शिवाय कहने से सारी नकरात्मकता मिट जाती है

प्रश्न : माता पिता के लिये आपकी क्या सलाह है?

श्री श्री रवि शंकर :
घोड़े पर बैठना सीखो(हँसी)! जब तुम घोड़े पर बैठते हो तो उसके साथ चलना सीखो। तुम्हें उस की गति के साथ तालमेल रखना होगा, वर्ना तुम्हारी पीठ दुखेगी। माता पिता को ये तालमेल करना होगा। उनके साथ चलो, उन्हें जानो और धीरे से रास्ते पर ले आओ। कभी लगाम को कुछ कसना पड़ता है, कभी उसे ढीला छोड़ना पड़ता है। बच्चों के साथ भी ऐसा ही है। कभी कभी अपनी बात पर अटल रहो, पर कभी उन्हें आज़ादी भी दो।

प्रश्न : क्या आप बता सकते हैं कि मेरे लिये सही व्यवसाय क्या होगा?

श्री श्री रवि शंकर :
चुनाव तुम्हारा, आशीर्वाद हमारा!

प्रश्न : मैं अपने जीवन में नकरात्मकता के चक्र से कैसे बाहर निकलूं?

श्री श्री रवि शंकर :
जब तुम खुद को ऐसे कार्य करते हुये पाते हो जो तुम्हें उस चक्र में ले जाते हैं, तो तुम उस में से निकलने की शुरुवात कर ही देते हो।

प्रश्न:आप कहते हैं कि चुनाव मेरा और आशीर्वाद आपका। मुझे ये कैसे पता चले कि मैंने सही चुनाव किया है?

श्री श्री रवि शंकर :
समय से मालूम हो जायेगा। अगर वो आशीर्वाद से आया है तो अच्छा ही होगा।

प्रश्न : मैं खुद में हिम्मत कैसे लाऊं?

श्री श्री रवि शंकर :
ठीक से विश्राम करो और अपना हृदय सही जगह रखो। हमे शारीरिक और मानसिक, दोनों प्रकार के विश्राम की आवश्यकता है। ये सोचने से कि, ‘ओह! मैंने बहुत काम किया है!’ तुम बोर हो जाओगे। बस इतना जान लो कि जो करने के लिये तुमने ये जन्म लिया है उसके लिये तुम्हारे पास पर्याप्त समय और ऊर्जा रहेगी



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