सर्वव्यापी चेतना की जागृति का उत्सव मनायें !

सभी पाठकों को ज्ञान के मोती की वेब टीम की ओर से  महाशिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएं !

 २०.०२.२०१२,  "महाशिवरात्रि विशेषांक"
सारी सृष्टि शिव जी का नृत्य या उनकी क्रीड़ा(शिव तांडव) है । उस एक चेतना, एक बीज का नृत्य जिससे विश्व में १० लाख से भी अधिक प्रजातियां प्रकट हुई हैं, वो शिवजी हैं।। सारा विश्व भोलेपन और बुद्धि की शुभ लय से चल रहा है जो शिवजी हैं। शिव ऊर्जा का स्थाई एवं अनन्त स्त्रोत हैं; एक और सिर्फ एक अस्तित्व का अनंत स्वरुप है।
शिवरात्रि का अक्षरशः अर्थ होता है वह रात्रि जो शिव तत्व या अंतर्ज्ञान सिद्धांत के तीन अंग को उत्तेजित करता है। समाधि को कई बार शिव सायुज्य से निर्दिष्टि किया जाता है, यह वह धारणा है, जिसे समझाना कठिन है । कबीर दास इसे कहते हैं “कोटि कल्प विश्राम”। दस लाख वर्ष से अधिक का विश्राम एक क्षण में संजोया हुआ। यह सतर्कता के साथ गहन विश्राम की अवस्था है, जो हर पहचान से मुक्ति प्रदान करता है ।
जब मन दैव की गोद में विश्राम करता है तब वह सही विश्राम है। रात्रि शब्द का अर्थ संस्कृत में होता है वह जो आपको तीन प्रकार की व्यथा से मुक्त करे; परलौकिक, मानसिक और भौतिक। ये तीन अंग शरीर, मन और वाणी को विश्राम प्रदान करता हैं । यह तीन किस्म की समस्याओं से आराम प्रदान करता है । ॐ शांति, शांति, शांति । तीन प्रकार की शांति की आवश्यकता होती है
। शरीर,मन और आत्मा की शांति ।(आध्यात्मिक, आधिभौतिक और आधिदैविक) सिर्फ इन तीनों की उपस्थिति से शांति प्राप्त हो सकती है।
शिवरात्रि तब है, जब शिव तत्व और शक्ति एक हो जाते हैं महाशिवरात्रि से संबंधित एक कथा है, जिसमें शिव और शक्ति का मिलन हुआ था। मौलिक और गतिशील ऊर्जा का अंतर्ज्ञान से विवाह हुआ। शिव मूक साक्षी हैं और शक्ति चित् या चिद्विलास है जो असीमित आकाश में प्रकट होते हुए प्रदर्शित होती है। शिव बिना किसी आकार के अस्तित्व सिद्द करते हैं और शक्ति भूमि पर प्रकट होती है। इसी तत्व और ऊर्जा , प्रकृति और पुरुष, द्रव और गुण, तत्व और उसके गुणों की अंतर्निहित स्वरूप की पहचान महाशिवरात्रि है।
शिव का सम्बन्ध तबाही से किया जाता है। परन्तु बदलाव, बेहतरी के लिए नई शुरूआत तभी हो सकती है जब कुछ बर्बाद होगा। बदलाव का तत्व शिव है। शंकर का अर्थ है जो शांति देता है और सबकुछ अच्छा करता है । शिव तत्व सर्वव्याप्त है। शिवरात्रि इसलिये शुभ है क्योंकि वातावरण अधिक जागृत हो जाता है।
शिवरात्रि सर्वव्यापी चेतना की जागृत अवस्था के उत्सव की रात्रि है जो निद्रा की बेहोशी अवस्था के बिना मनाया जाता है। यह एक अवसर है जब कोई हर किस्म की निद्रा से स्वयं को जागृत कर सकता है। शिवरात्रि में जागरण स्वयं को दबाव में जगा कर रखना या जोर-जोर से भजन गाना नहीं है। यह स्वयं के भीतर आना होता है, और भीतर के विश्राम के प्रति सजग होना है , जो रोज रात्रि हम को निद्रा देती है। जब आप निद्रा की कुछ परत को पार कर लेते हैं तो फिर समाधि या शिव सायुज्य लगता है।
शिव का चिन्हात्मक प्रतिनिधित्व लिंग के द्वारा किया जाता है। दैव लिंग से परे है। इसलिए दैव को एकलिंग कहते हैं या एक लिंग। वह एक लिंग स्वयं या आत्मा है। स्वयं शरीर, मन या बुद्धि से परे है, वह प्रिय और अप्रिय से भी परे है, स्वयं सिर्फ एक है, वह एकलिंग है। शिव शक्ति ( शिव की उर्जा ) सारे लिंग से आती है और शिवरात्रि के दिन विलीन हो जाती है ।
शिव बहुत ही सरल देव है वे भोले हैं, ‘भोलेनाथ’। किसी को उन्हें सिर्फ बेलपत्ती ही भेंट करना होता है। परन्तु इस सरलता में एक गहरा संदेश है; बेल पत्र को भेंट करना यह दर्शाता है कि स्वभाव के तीनों स्वरूप का समर्पण करना; तमस, रजस और सत्व। आपको अपने जीवन के सकारात्मक और नकारात्मक स्वरूप को शिवजी को समर्पित करते हुए मस्त हो जाना है।जीवन मे आनंद का सूत्र स्वयं को भेट करना है ।
कैलाश शिवजी का प्रसिद्ध निवास है। कैलाश का अर्थ है जहाँ पर उत्सव है। इसलिये जहाँ पर भी आनंद और उत्सव है, वहाँ पर शिवजी उपस्थित है। सन्यास और संसार में आप शिव से नहीं बच सकते। उनकी उपस्थिति को हर समय महसूस करना शिवरात्रि का सार है। भगवान शिव को हर समय आँख बंद कर बैठे हुए दिखाया जाता है जिनके गले को नाग लपटे हुए होता है। कोई यह महसूस कर सकता है कि वे सो रहे है परन्तु यह दर्शाता है कि वे भीतर से कैसे है। सर्प के जैसे हर समय जागृत।
उनके चित्र में उन्हें नीले रंग से दर्शाया जाता है। नीला रंग आकाश की विशालता को दर्शाता है। उनके सिर पर चन्द्र, उनके भीतर सब कुछ क्या है, वह दर्शाता है। इसलिये सारे भूत, मृत, राक्षस उनके गुण में संगृहीत है। वे कहते हैं कि शिवजी के जुलुस में सब किस्म के लोग होते हैं। इसलिये इस विश्व में सबकुछ उस उच्चतम आत्मा का है। यह कहा जाता है ‘‘सर्वम् शिवमयम् जगत’~’, यह सारा विश्व शिवमाय है।
शिवरात्रि का महत्व है कि आपके पास जो भी है उसके प्रति सजग होना और उसके लिये कृतज्ञ होना। आनंद के प्रति कृतज्ञ होना जो विकास देती है और उदासी के प्रति भी कृतज्ञ होना जो जीवन में गहराई प्रदान करता है। यह शिवरात्रि का अवलोकन करने का सही तरीका है।

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