१९.०१.२०१२
अराजकता के
बाद आनंद है| तूफ़ान के बाद शांति है| यही जीवन की शैली है| एक बार मैं वाशिंगटन
डी.सी. में तीन सौ लोगों के साथ एक सत्संग में था| तभी पीछे से एक लंबा-चौड़ा और
रौबदार आदमी आया, और चिल्लाने लगा, ‘तुम शैतान हो!’ वह ईसा मसीह के नाम पर मुझ पर हमला करने आया था| वह बोला, ‘यह योग, आध्यात्मिकता और हिंदुत्व सब शैतानों के काम हैं| सब
लोग बेहद डर गए थे| कोई अपनी जगह से उठ भी नहीं पा रहा था| वे डर के कारण अपनी सीट
से चिपक गए थे| जैसे ही वह मेरे नज़दीक आया, मैंने अपना हाथ ऊपर उठाया और कहा, ‘रुको! क्या बात है?’ जैसे ही मैंने कहा, ‘रुको’, वह ज़मीन पर गिर गया और
रोने लगा| उसका दिल बदल गया और वह माफ़ी मांगने लगा|
तब मुझे याद
आया कि महर्षि पतंजली ने लिखा है, ‘अहिंसा प्रतिष्ठायाम, तत्
सानिध्य वैरात्यागाह’, इससे यह साबित होता है, कि जब
व्यक्ति के जीवन में अहिंसा स्थापित हो चुकी है, तब उसके निकट आने वाले सभी लोगों
के मन से द्वेष और बैर की भावना विलुप्त हो जाती है| इसलिए, महर्षि की बात पूरी
तरह से झूठ या गलत नहीं हो सकती| इस घटना से यह साबित हो गया| मैं तीन चार अलग अलग
जगहों पर इस बात का साक्षी बन चुका हूँ, जहाँ लोग बहुत गुस्से में मुझे हानि पहुचाने
की चेष्टा से आये थे, और फिर उनमें परिवर्तन हो गया| बल्कि वे तो बाद में आर्ट ऑफ
लिविंग के शिक्षक भी बन गए|
मैं यह कहना
चाहता हूँ, कि आध्यात्मिकता कोई अल्पावधि का मनोरंजन नहीं है, जहाँ आप कोई किताब
पढ़ें और थोड़े बहुत संतुष्ट हो जाएँ और आगे बढ़ जाएँ| यह अपने आप में एक संपूर्ण और
साबित किया हुआ ज्ञान है| ‘जो इच्छा करिहो मन माहि,
प्रभु प्रताप कछु दुर्लभ नाहि’, ईश्वर की कृपा से आपकी जो भी इच्छा
है, उसे प्राप्त करना कठिन नहीं है| मैं यह पूरे आत्मविश्वास के साथ कह सकता हूँ,
कि यही वह शक्ति है, जो काम करती है|
यह काम करती
है, है न? आपमें से कितने लोगों ने अपने जीवन में इसका अनुभव किया है? आप जो भी
इच्छा करते हैं, वे पूरी हो जाती हैं, होती हैं न? दुर्लभ है कि नहीं? चमत्कार
होते हैं कि नहीं? यही बात है| नहीं तो, प्रचारक प्रवचन देते हैं और श्रोता कुछ
देर सुनते हैं, और फिर उन्हें नींद आ जाती है| सुनते सुनते वे सो जाते हैं, और कभी
कभी वक्ता भी सोते सोते बोलते हैं| मैं किसी की बुराई नहीं कर रहा, बस यह हमारे
देश में एक आदत सी बन गयी है, कि वे कहीं से बातें सुनते हैं, और बताते हैं, और
उसे अपने जीवन में नहीं उतारते|
वह जीवन में
व्यक्त कब होती हैं? चार चीज़ें हैं; सानिध्य, सामीप्य, सारूप्य और सायुज्य|
सानिध्य : पहले तो आप गुरु की उपस्थिति में बैठते हैं; फिर सामीप्य के अनुभव करते
हैं; अलगाव की कोई भावना नहीं रहती, कि गुरु कोई और है और मैं कोई और| नहीं! मेरे
अपने| इसीलिए, एक श्लोक है, ‘मन्नत श्री जगन्नाथ’; मेरे ईश्वर सारे जगत के ईश्वर हैं, मेरे गुरु सारे जगत के
गुरु हैं, मेरी आत्मा सारे जगत की आत्मा है; यह भावना है| जब यह आत्मीयता और
अपनेपन की भावना जागृत होती है, सामीप्य हो गया| अगला है सारूप्य, मेरे और गुरु
में कोई अंतर नहीं है| फिर आता है सायुज्य, संपूर्ण विलीन होना, संयोजन|
इसलिए,
सानिध्य आपको सारुज्य की ओर ले जाता है|
प्रश्न:
गुरूजी, हमारे सामने कुछ गलत हो रहा है, लेकिन हम कुछ कर नहीं पाते| क्या करें?
श्री श्री
रविशंकर:
काफी बार, जब कुछ गलत होता है, तब हम अकेले कुछ नहीं कर पाते, लेकिन एक साथ मिलकर
कुछ किया जा सकता है; एक संघ की तरह यह मुमकिन है| अगर एक संघ की तरह भी वह संभव
नहीं है, तब आप कम से कम प्रार्थना तो कर ही सकते हैं, ‘यह व्यक्ति गलत कर रहा है, इसे सजगता का आशीर्वाद दें’| जो भी हम खुद करने में सक्षम नहीं हैं, हमें उसे प्रार्थना
के रूप में समर्पित कर देना चाहिये| ‘यह मेरा काम नहीं है, भगवती
मैया, यह आपका है; भगवान यह आपकी जिम्मेदारी है; गुरूजी यह आपका काम है’| तब भी वह हो जाएगा|
जैसा मैंने
कहा, कि मैं उस आदमी से मुठभेड़ नहीं कर सकता था| वह इतना ताकतवर, विशालकाय, सात
फुट लंबा चौड़ा था, जो मुझ पर हमला करने आया था| क्या हुआ? मैं डरा नहीं| मैंने
चुपचाप कहा, ‘रुको!’ वह
गिर गया, और रोने लगा| ऐसा बहुत बार हुआ है| मैंने तो सिर्फ एक ही उदाहरण दिया है|
प्रश्न: गुरूजी,
ऐसा क्यों लगता है कि हमेशा सत्य ही मुसीबत में होता है? असत्य और झूठ कभी मुश्किल
में नहीं होते, सिर्फ सत्य को ही परेशान किया जाता है?
श्री श्री
रविशंकर: न
तो सत्य और ना ही असत्य को कभी परेशान किया जाता है| सत्य है, पर सत्य के मार्ग पर
चलने वाले परेशान हैं, या जो झूठ बोलते हैं वे खुश हैं; ऐसा नहीं है! सिर्फ ऐसा
लगता है कि जो असत्य के मार्ग पर चलते हैं वे राजा की तरह रहते हैं| यह सिर्फ चंद
दिनों की बात होती है, लेकिन बाद में उन्हें जेल जाना पड़ता है| ऐसा हुआ था न?
हुआ क्या था,
कि कुछ मंत्री थे और उनके कुछ लोग जो खुद को नास्तिक मानते थे और सभी आध्यात्मिक
गुरुओं के विपक्ष में थे| यही सब लोग आयुर्वेद विभाग और स्वास्थ्य विभाग के
अध्यक्ष थे|
चलिए मैं आपको
एक कहानी सुनाता हूँ| हम बैंगलुरू में अपना आयुर्वेदिक कॉलेज चला रहे हैं, जो कि
सबसे उत्तम माना जाता है| राज्य की दस उपाधियों में से हमारे कॉलेज ने पांच जीती
हैं| जब बाकी कॉलेजों की औसत पास प्रतिशत कुछ ५०-६० प्रतिशत होती है, हमारे कॉलेज
ने ९० प्रतिशत प्राप्त की| तो ये लोग कॉलेज में आये,
और एक सी.बी.आई. जांच जारी कर दी| उन्होंने
कहा, कि यहाँ का स्टाफ (कर्मचारीगण) तो बहुत कम है, हॉस्पिटल तो अच्छी हालत में
नहीं है, यह सही नहीं है; और उन्होंने एडमिशन रद्द कर दिए| पचास बच्चे पढ़ रहे थे|
उनके जीवन का क्या होगा, अगर उन्होंने पढ़ाई को बीच में ही छोड़ दिया तो? तो हम फ़ौरन
कचेहरी में गए और ‘स्थगन आदेश’ ले लिया|
उन्होंने दावा
किया, कि केवल आठ शिक्षक पढ़ा रहें थे, जबकि वहां ३५ शिक्षक थे| उन्होंने प्रिंसिपल
को धमकाया, ‘तुम जानते हो हम कौन हैं? हम सी.बी.आई.
से हैं| हमने जो भी रिपोर्ट लिखी है, उस पर हस्ताक्षर करो!’ तो प्रिंसिपल भी क्या करते? उन्होंने कागजों पर हस्ताक्षर कर
दिए, लेकिन साथ में रजिस्टर भी लगा दिया| रजिस्टर में ३५ नाम थे| लेकिन उन लोगों
ने उन्हें उस कागज़ पर हस्ताक्षर करने को कहा जिस पर आठ शिक्षकों की रिपोर्ट थी|
‘यह मेरा काम नहीं है!’ आप
यही मंत्र जपते हैं न? सप्त शती (देवी माता के मान में लिखे ७०० श्लोक) में क्या मंत्र
हैं?
इसलिए सत्य की
हमेशा विजय होती है| हमेशा इस विश्वास के साथ जाईये| सिर्फ ऐसा प्रतीत होता है कि
सत्य को धोखा हो रहा है या जो सत्य का साथ नहीं छोड़ता वह नीचे जा रहा है, लेकिन
भविष्य में, सत्य की विजय निश्चित है|
जब लोग गलत
साधनों का प्रयोग करके ऊपर जाते हैं, तब ऐसा लग सकता है कि वे ऊँचाई पर हैं, मगर
वे निश्चित तौर पर भुगतेंगे|
प्रश्न: गुरूजी,
ज्ञान सूत्र ‘लोगों और परिस्थितियों को वे जैसे भी
हैं, स्वीकार करें’ एक समझौता लगता है|
श्री श्री
रविशंकर: नहीं,
समझौता मत कीजिये| पहले स्वीकार कीजिये, और जब मन शांत
हो जाए, तब लड़िए| अगर आप लड़ना चाहते हैं, तो लड़िए| और अगर आप किसी को थप्पड़ मारना
चाहते हैं, तो मुस्कुराते हुए मारिये, गुस्से से नहीं; वह आपको कमज़ोर बनाता है| जब
आप मुस्कराहट के साथ मारते हैं, तब आप ज्यादा शक्ति के साथ मार पाएंगे| इसीलिए
निर्धारित तरीका है – ‘साम,
दाम, दंड, भेद’| अगर आप शुरुआत ही डंडे से करते
हैं, तो वह सही नहीं है| जब आपको गुस्सा आ जाता है, तब आप सबसे पहले डंडा उठाते
हैं| उससे सब कुछ उल्टा हो जाएगा| नहीं, साम, दाम, भेद और फिर बिल्कुल अंत में,
अगर भैंस के लिए डंडा उठाना पड़े, तो फिर डंडा उठाना चाहिये|
प्रश्न:
गुरूजी, मुझे बहुत गुस्सा आता है| अगर ज़रा सा भी कुछ मेरे मन मुताबिक न हो, तो
मुझे बहुत ज्यादा गुस्सा आ जाता है| इस वजह से कोई भी मेरे पास नहीं रहना चाहता|
मैं कभी कभी इतना अकेला हो जाता हूँ कि आत्महत्या करने का मन करता है| मैं इससे
कैसे बाहर आऊँ?
श्री श्री
रविशंकर: नहीं,
कभी भी ऐसा कदम मत उठाईये| अगर आपको आत्महत्या करने का मन करे, तो पहले आकर मेरी
अनुमति लीजिए| मैं आपको बताऊँगा कि कहाँ से कूदना है, और कब| नहीं तो आप कहीं के भी नहीं रहेंगे| आप बीच में लटके रहेंगे,
न इस दुनिया में न उस दुनिया में| अगर आपको गुस्सा आता है, भस्त्रिका कीजिये, कहीं
बैठ कर सुदर्शन क्रिया कीजिये| साँस के माध्यम से अपने गुस्से को बाहर निकालिए, वह
बाहर आ जायेगा, घबराईये नहीं| पार्ट-२ (एडवांस) कोर्स
करिये| नियमित रूप से ध्यान करिये| इन सबसे बहुत फ़र्क पड़ेगा|
प्रश्न:
गुरूजी, आजकल बच्चे टी.वी. से बहुत आकर्षित रहते हैं ?
श्री श्री
रविशंकर: सिर्फ बच्चे? वयस्क भी तो टी.वी. से कितने आकर्षित रहते हैं|
प्रश्न: गुरूजी,
क्या इस दुनिया को चलाने वाला कोई रेगुलेटर है, या यह स्वयं ही चलती है?
श्री श्री
रविशंकर: आपको क्या लगता है? मैं यह प्रश्न आप पर छोड़ता हूँ| इसके बारे में सोचते
रहिये| क्या इस दुनिया को चलाने वाला कोई है, या यह खुद ही चल रही है? सोचते
रहिये| देखते हैं| इस सोच को कहते हैं तर्क| यह तर्क ही आपको आत्मज्ञान तक ले
जाएगा| कुछ प्रश्न ऐसे होते हैं, जिनके उत्तर जानने वाला आपको नहीं बताएगा| एक
ज्ञानी व्यक्ति इन साधारण प्रश्नों का उत्तर कभी नहीं देगा| यह उनमें से ही एक
प्रश्न है| इसी तरह के बाकी प्रश्न हैं, ‘मैं कौन हूँ’, ‘यह सब क्या है?’ वह इन सबका उत्तर भी नहीं देगा| इससे आप सोचते हैं, और गहन
में जाते हैं|
प्रश्न:
गुरूजी, कृष्ण और अर्जुन के बीच में, अर्जुन कृष्ण से बार बार प्रश्न पूछते थे|
लेकिन कुछ ऐसे भक्त भी होते हैं, जो कभी कोई प्रश्न नहीं पूछते| आपको कैसे भक्त
चाहिये?
श्री श्री
रविशंकर:
मुझे सभी तरह के पसंद हैं| मैं हर तरह के नमूने इकठ्ठा करता हूँ| अंग्रेजी में इसे
असोरटेड नट्स कहते हैं| मेरे आस पास हर तरह के लोग
हैं, सिर्फ एक तरह के नहीं|
प्रश्न: गुरूजी,
आध्यात्मिकता और विज्ञान में हमेशा एक संघर्ष रहा है ?
श्री श्री
रविशंकर: बिल्कुल
भी नहीं| आध्यात्मिकता और विज्ञान में कहाँ संघर्ष है? आध्यात्मिकता शुरू होती है,
जहाँ विज्ञान का अंत होता है| यह संघर्ष हमारे देश में नहीं रहा| यह सिर्फ पश्चिमी
देशों में रहा है, जहाँ धर्म विज्ञान के विरुद्ध था, इसीलिए ये सारे क्षेत्र
संघर्ष में रहे हैं| हमारे देश में, हम पहले तत्व ज्ञान प्राप्त करते हैं, और बाद
में आत्म ज्ञान|
तत्व क्या है?
पहले पांच तत्वों के बारे में ज्ञान प्राप्त कीजिये ; पृथ्वी, अप, तेज/अग्नि,
वायु, आकाश और फिर मन के बारे में ज्ञान, बुद्धि, अहंकार और फिर आत्मा का ज्ञान|
यह भारत में बहुत व्यवस्थित रहा है| ‘ज्ञान विज्ञान त्रिप्तात्मा,
कूटस्थ विजितेन्द्रियः’ जब आप ज्ञान और विज्ञान से
तृप्त हो जायें, यही आत्म ज्ञान है| तो हम कभी भी विज्ञान के विरोध में नहीं हैं|
इसीलिए हमारा देश बहुत आगे था|
क्या आप जानते हैं कि पहला विमान भारत में बनाया गया था? बेंगलुरू के निकट अनेकल
नामक एक गांव है| उस
गांव में सुब्बाराया शर्मा शास्त्री नाम का एक व्यक्ति
था| उन्हें एक संत के द्वारा, विमान
का निर्माण कैसे करना है बताया गया था| उन्होंने विमान के लिए पहला
आरेख बनाया था| फिर, वह
मुंबई चले गए जहाँ उनकी मुलाकात दादाभाई नौरोजी
से हुई जिन्होंने जो उनकी योजना वित्त पोषित की| चौपाटी बीच पर पहली
बार विमान ने उड़ान भरी| विमान पंद्रह मिनट के लिए हवा में था| यह खबर इंग्लैंड के
समाचार पत्र द्वारा प्रकाशित की गई जिसका शीर्षक था, 'भारत से अंतरिक्ष में विमान ने पहली
उड़ान भरी’| तब उन दोनों को अंग्रेजों द्वारा कैद कर लिया गया|
ब्रिटिश ने उन्हें खाका प्रकट करने के लिए मजबूर
किया जो उन्होंने विमान बनाने के लिए
तैयार किया था| और तीस साल बाद, राइट ब्रदर्स ने खाका के आधार पर विमान उड़ाया| उड़ान
सफल नहीं हुई क्योंकि उन्हें केवल भागों में योजना का पता चला,
पूरी तरह से नहीं| उन्होंने संपूर्ण ज्ञान पारित नहीं किया था| राइट भाइयों को उस योजना पर बहुत काम करना पड़ा था, फिर तीस साल बाद वे उड़ान
ले सके| लेकिन यह तथ्य कि पहला
विमान भारत में उड़ाया गया
था भारतीयों को ज्ञात नहीं है, और न हमारे बच्चों को| उन्हें लगता है कि विज्ञान पश्चिम
से आया है| वे कहते हैं कि 'गैलिलियो ने पता लगाया कि पृथ्वी गोलाकार है और सूर्य के
चारों ओर घूमती है’| हमारे
पंडित (विद्वानों) से पूछो, वे इसे 'खगोल' और 'भूगोल' (भू पृथ्वी ; गोल - गोलाकार); यह गोलाकार है
और इसलिए वे इसे 'भूगोल' कहते हैं| हमें यह पहले पता था|
वामपंथियों को जो पाठ्यक्रम तैयार करते हैं को चीन भेजा जाना चाहिए| उन्होंने हमारे देश की शिक्षा प्रणाली को नष्ट कर दिया| और उन्होंने हमारे देश के लोगों का आत्मविश्वास धराशायी किया है| हमारे देश ने इस वजह से सबसे बड़ा नुकसान सहन किया है| कोई नहीं जानता कि इस्पात पहली बार भारत में निर्मित किया गया था| हमारे बच्चों को यह नहीं सिखाया जाता है| पहली सर्जरी को भारत में की गई थी| सुश्रुत ने पहली सर्जरी को यहाँ किया, जब इस दुनिया में कोई नहीं जानता था कि इसे कैसे करना है| हमने एक वेबसाइट शुरू कर दी है, भारत के बारे में अधिक जानना है तो इस वेबसाइट की जाँच कर लें|
वामपंथियों को जो पाठ्यक्रम तैयार करते हैं को चीन भेजा जाना चाहिए| उन्होंने हमारे देश की शिक्षा प्रणाली को नष्ट कर दिया| और उन्होंने हमारे देश के लोगों का आत्मविश्वास धराशायी किया है| हमारे देश ने इस वजह से सबसे बड़ा नुकसान सहन किया है| कोई नहीं जानता कि इस्पात पहली बार भारत में निर्मित किया गया था| हमारे बच्चों को यह नहीं सिखाया जाता है| पहली सर्जरी को भारत में की गई थी| सुश्रुत ने पहली सर्जरी को यहाँ किया, जब इस दुनिया में कोई नहीं जानता था कि इसे कैसे करना है| हमने एक वेबसाइट शुरू कर दी है, भारत के बारे में अधिक जानना है तो इस वेबसाइट की जाँच कर लें|
प्रश्न: गुरुजी, मैं हर जगह प्यार फैलाता हूँ,
लेकिन प्यार के बदले में प्यार नहीं मिलता है| यह मेरे कर्मों की वजह से है?
श्री श्री रविशंकर: मत सोचो कि आपको प्यार प्राप्त नहीं है| यह आ जाएगा| हो सकता है थोड़ी देर हो, लेकिन यह तुम्हारे पास वापस आ जाएगा| आप बस शांत रहो|
श्री श्री रविशंकर: मत सोचो कि आपको प्यार प्राप्त नहीं है| यह आ जाएगा| हो सकता है थोड़ी देर हो, लेकिन यह तुम्हारे पास वापस आ जाएगा| आप बस शांत रहो|
प्रश्न: गुरुजी, बहुत से लोग ‘शानिति’ और ‘साड़े साति’ (अशुभ ग्रहों प्रभाव) के जाल में फंस गए हैं| आप उन्हें
क्या संदेश देना चाहते हैं?
श्री श्री रविशंकर: यह सच है| ग्रह हमें प्रभावित करते हैं| हालांकि, साधक (आध्यात्मिक पथ के लोग) के लिए प्रभाव न्यूनतम होता है| और भक्तों के लिए, प्रभाव नगण्य होता है| ग्रहों का बहुत कम प्रभाव पड़ेगा| यही कारण है कि जब आप साधना करते हैं, आप गाते हैं 'ॐ नमः शिवाय' क्योंकि भगवान शिव सभी ग्रहों के स्वामी हैं| जब घर के मालिक आपके नियंत्रण में है, नौकर क्या करेंगे? आपको 'ॐ नमः शिवाय' मंत्र का जाप करना चाहिए|
श्री श्री रविशंकर: यह सच है| ग्रह हमें प्रभावित करते हैं| हालांकि, साधक (आध्यात्मिक पथ के लोग) के लिए प्रभाव न्यूनतम होता है| और भक्तों के लिए, प्रभाव नगण्य होता है| ग्रहों का बहुत कम प्रभाव पड़ेगा| यही कारण है कि जब आप साधना करते हैं, आप गाते हैं 'ॐ नमः शिवाय' क्योंकि भगवान शिव सभी ग्रहों के स्वामी हैं| जब घर के मालिक आपके नियंत्रण में है, नौकर क्या करेंगे? आपको 'ॐ नमः शिवाय' मंत्र का जाप करना चाहिए|
प्रश्न: गुरुजी, यह सवाल पिछले से जुड़ा हुआ है| 'पित्र
दोष' (दिवंगत आत्मा द्वारा अशुभ प्रभाव) की तरह कुछ है? उनकी मृत्यु के बाद भी क्या
वे हमें किसी मुसीबत में ड़ाल सकते हैं?
श्री श्री रविशंकर: हो सकता है| कुछ आत्मा असंतुष्ट हैं तो हो सकता है कि वे छोटी समस्या दें, लेकिन वे आपको ज्यादा नुकसान देने में सक्षम नहीं हैं| आपको कुछ समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है, लेकिन फिर, मैं आपको बताता हूँ कि यह भक्तों को ज्यादा प्रभावित नहीं करता है| 'ॐ नमः शिवाय' मंत्र गाते रहें और कोई दोष (नकारात्मक प्रभाव) आपके संपर्क में नहीं आएगा क्योंकि भगवान शिव सभी ग्रहों के प्रभु हैं|
श्री श्री रविशंकर: हो सकता है| कुछ आत्मा असंतुष्ट हैं तो हो सकता है कि वे छोटी समस्या दें, लेकिन वे आपको ज्यादा नुकसान देने में सक्षम नहीं हैं| आपको कुछ समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है, लेकिन फिर, मैं आपको बताता हूँ कि यह भक्तों को ज्यादा प्रभावित नहीं करता है| 'ॐ नमः शिवाय' मंत्र गाते रहें और कोई दोष (नकारात्मक प्रभाव) आपके संपर्क में नहीं आएगा क्योंकि भगवान शिव सभी ग्रहों के प्रभु हैं|
प्रश्न: गुरुजी, आप कौन हैं? जब भी मैं आपके बारे
में सोचता हूँ, जवाब नहीं मिलता?
श्री श्री रविशंकर: हाँ, मैं लाजवाब (अथाह) हूँ|
श्री श्री रविशंकर: हाँ, मैं लाजवाब (अथाह) हूँ|
प्रश्न: महाभारत में गुरूजी, कर्ण और अर्जुन के बीच कौन
बेहतर है?
श्री श्री रविशंकर: वैसे भी, महाभारत में भाई लड़े हैं, आप एक और लड़ाई का कारण बन रहे हैं| वे देश के लिए लड़े| अब, इससे आपको कैसे फर्क पड़ता है, कि कौन बेहतर है और कौन बेहतर नहीं है? हर किसी का अपना खाता है| आप मुझे बताओ, आप क्या बनना चाहेंगे, कर्ण या अर्जुन है? सीट खाली है|
श्री श्री रविशंकर: वैसे भी, महाभारत में भाई लड़े हैं, आप एक और लड़ाई का कारण बन रहे हैं| वे देश के लिए लड़े| अब, इससे आपको कैसे फर्क पड़ता है, कि कौन बेहतर है और कौन बेहतर नहीं है? हर किसी का अपना खाता है| आप मुझे बताओ, आप क्या बनना चाहेंगे, कर्ण या अर्जुन है? सीट खाली है|
प्रश्न: गुरुजी, मेरा चिड़चिड़ेपन में, क्रोध का कारण मेरे अतीत के अनुभव हैं| मुझे लगता
है कि मुझे लोगों पर गुस्सा
आने के बाद वे
खत्म हो जाते हैं| क्या
यह ठीक है?
श्री श्री रविशंकर: हाँ, यह ठीक है, लेकिन आप कितनी देर तक यह करेंगे? ऐसा लगता है कि आप क्रोध में आनंद
पाते हैं| देखो, आप लोगों से बात कर उन्हें सूचित कर दें कि आप इस तरीके से अपने गुस्सा
दिखायेंगे| उन्हें बताओ और फिर गुस्सा
करो|
प्रश्न: गुरुजी, मुझे आप की तरह बनने के लिए क्या करना होगा?
श्री श्री रविशंकर: कुछ नहीं, बस आईने के सामने खड़े हो जाओ| अपने आप को देखो| आप वही हैं जो मैं हूँ|
श्री श्री रविशंकर: कुछ नहीं, बस आईने के सामने खड़े हो जाओ| अपने आप को देखो| आप वही हैं जो मैं हूँ|
प्रश्न: गुरुजी, मेरा मन वर्तमान में मौजूद नहीं रहता है| इसे वर्तमान में वापस लाने के लिए मुझे क्या करना चाहिए?
श्री श्री रविशंकर: ठीक है! वह कहाँ जाता है? अतीत में? अतीत, वर्तमान में भी है| अलगाव- देखो सब हो रहा है, पर यह एक सपना है| यह सब एक सपना है, यह सब खत्म हो जाएगा| हमारा पूरा जीवन एक सपना है!
श्री श्री रविशंकर: ठीक है! वह कहाँ जाता है? अतीत में? अतीत, वर्तमान में भी है| अलगाव- देखो सब हो रहा है, पर यह एक सपना है| यह सब एक सपना है, यह सब खत्म हो जाएगा| हमारा पूरा जीवन एक सपना है!
प्रश्न: गुरुजी, आप मेरे (अश्राव्य) पसंदीदा हैं|
श्री श्री रविशंकर: बारहवें अध्याय को पढ़ें| उस अध्याय में, भगवान कृष्ण ने उल्लेख किया है जो उनका पसंदीदा है, वह सभी गुण वहाँ सूचीबद्ध है| जिसका मन कहीं भी आराम नहीं करता है मेरे सिवाय (अश्राव्य)
श्री श्री रविशंकर: बारहवें अध्याय को पढ़ें| उस अध्याय में, भगवान कृष्ण ने उल्लेख किया है जो उनका पसंदीदा है, वह सभी गुण वहाँ सूचीबद्ध है| जिसका मन कहीं भी आराम नहीं करता है मेरे सिवाय (अश्राव्य)
प्रश्न: गुरुजी, यहां तक कि श्री कृष्ण और श्री राम के संबंधित गुरु थे| हमें अपने गुरु के बारे में कुछ बताएं|
श्री श्री रविशंकर: हाँ| यह तो मेरे साथ बचपन से थे| मैंने बहुत लोगों से मुलाकात की| पुस्तक 'गुरू आफ जोय' पढ़ें| इस में सब कहानियां शामिल हैं|
श्री श्री रविशंकर: हाँ| यह तो मेरे साथ बचपन से थे| मैंने बहुत लोगों से मुलाकात की| पुस्तक 'गुरू आफ जोय' पढ़ें| इस में सब कहानियां शामिल हैं|
प्रश्न: गुरुजी, मैं आप के साथ जीना चाहता हूँ| कैसे
मैं ऐसा करने में सक्षम हो
जाऊँगा, मार्गदर्शन कीजिये|
श्री श्री रविशंकर: हाँ, ज़रूर, साथ आना| स्वामीजी से पूछो| पहले उनके साथ रहो, और फिर आप मेरे साथ आने के लिए सक्षम हो जायेंगे| उन सभी लोगों को जो तीन महीने या अधिक के लिए देश के लिए कुछ करना चाहते हैं साथ आने का स्वागत है| यह बिल्कुल ठीक है, अगर आप अपने जीवनकाल के लिए हमें शामिल करना चाहते हैं| हर किसी का स्वागत है| लेकिन आप को बहुत काम करना होगा|
श्री श्री रविशंकर: हाँ, ज़रूर, साथ आना| स्वामीजी से पूछो| पहले उनके साथ रहो, और फिर आप मेरे साथ आने के लिए सक्षम हो जायेंगे| उन सभी लोगों को जो तीन महीने या अधिक के लिए देश के लिए कुछ करना चाहते हैं साथ आने का स्वागत है| यह बिल्कुल ठीक है, अगर आप अपने जीवनकाल के लिए हमें शामिल करना चाहते हैं| हर किसी का स्वागत है| लेकिन आप को बहुत काम करना होगा|
प्रश्न: गुरुजी, मैं सही रास्ते पर चल रहा हूँ या नहीं
इसका मापदंड क्या हैं?
श्री श्री रविशंकर: यदि आपका एक सपना है हर किसी के लिए दीर्घकालिक खुशी, तो यह ठीक है| एक छोटी अवधि के लिए खुशी और लंबी अवधि के लिए दुख सही नहीं है|
श्री श्री रविशंकर: यदि आपका एक सपना है हर किसी के लिए दीर्घकालिक खुशी, तो यह ठीक है| एक छोटी अवधि के लिए खुशी और लंबी अवधि के लिए दुख सही नहीं है|
प्रश्न: गुरुजी, अद्वैत क्या है? हम व्यावहारिक रूप में
यह कैसे समझ सकते हैं?
श्री श्री रविशंकर: यह कुर्सी, मंच और पृष्ठभूमि सभी लकड़ी के बने हैं| जानना कि यह सब लकड़ी से बना है अद्वैत कहा जाता है| लेकिन यह जानना कि मंच, कुर्सी, तम्बू और दरवाजे सब अलग अलग हैं, द्वैत कहा जाता है| दोनों सत्य हैं| यदि आप एक सुनार के पास जाओ, वह सोने का वजन करेगा, चाहे वह झुमके, कंगन, चूड़ियाँ, उंगली की अंगूठी या हार| वह उस में सोने का वजन करेगा| वह उनमे केवल सोने को देख सकता है| लेकिन आप अपने हाथ में हार नहीं पहन सकते हैं और अपने कानों में चूड़ियाँ नहीं पहन सकते हैं| अगर कोई आपको अपने कान में पहनने को हार देता है, तो आप क्या कहेंगे? 'नहीं, कान के लिए एक अलग आभूषण है, और हाथ के लिए एक अलग'| यह द्वैत ज्ञान है| दोनों सत्य हैं| यह सच है और वह भी सच है| ‘यह सब सोना है और और कुछ नहीं' सच है और ‘यह सभी अलग हैं, उंगली की अंगूठियां, कंगन, हार' भी सच है| आप एक हार के लिए एक चूड़ी और एक चूड़ी के लिए एक हार नहीं पहन सकती| क्या आप कर सकते हो? नहीं| यह द्वैत ज्ञान है|
श्री श्री रविशंकर: यह कुर्सी, मंच और पृष्ठभूमि सभी लकड़ी के बने हैं| जानना कि यह सब लकड़ी से बना है अद्वैत कहा जाता है| लेकिन यह जानना कि मंच, कुर्सी, तम्बू और दरवाजे सब अलग अलग हैं, द्वैत कहा जाता है| दोनों सत्य हैं| यदि आप एक सुनार के पास जाओ, वह सोने का वजन करेगा, चाहे वह झुमके, कंगन, चूड़ियाँ, उंगली की अंगूठी या हार| वह उस में सोने का वजन करेगा| वह उनमे केवल सोने को देख सकता है| लेकिन आप अपने हाथ में हार नहीं पहन सकते हैं और अपने कानों में चूड़ियाँ नहीं पहन सकते हैं| अगर कोई आपको अपने कान में पहनने को हार देता है, तो आप क्या कहेंगे? 'नहीं, कान के लिए एक अलग आभूषण है, और हाथ के लिए एक अलग'| यह द्वैत ज्ञान है| दोनों सत्य हैं| यह सच है और वह भी सच है| ‘यह सब सोना है और और कुछ नहीं' सच है और ‘यह सभी अलग हैं, उंगली की अंगूठियां, कंगन, हार' भी सच है| आप एक हार के लिए एक चूड़ी और एक चूड़ी के लिए एक हार नहीं पहन सकती| क्या आप कर सकते हो? नहीं| यह द्वैत ज्ञान है|
प्रश्न: गुरुजी, आप कहते हैं कि अच्छे लोगों को राजनीति
में प्रवेश करना चाहिए| फिर, आर्ट ऑफ़ लिविंग से, क्या मैं राजनीति में शामिल हो सकता हूँ?
श्री श्री रविशंकर: हाँ, ज़रूर, क्यों नहीं? आप राजनीति में शामिल हो जाओ और हम सब आप का समर्थन करेंगे| हमें वास्तविक लोगों के वोट बैंक बनाने की जरूरत है| विभिन्न जातियों के वोट बैंक हैं| अगर हम वास्तविक लोगों के वोट बैंक बना लें, तो सभी नेताओं को उनकी यथार्थता के आधार पर प्रतिस्पर्धा करनी होगी| अब, हम जाति के आधार पर विभाजित हैं, उन्होंने इस अंतर को प्रतिस्पर्धा का आधार बना दिया है| लेकिन अगर हम वास्तविक लोगों के वोट बैंक तैयार करेंगे, तो वे उनकी यथार्थता प्रचार करेंगे और इस आधार पर प्रतिस्पर्धा करेंगे| यह होना चाहिए|
श्री श्री रविशंकर: हाँ, ज़रूर, क्यों नहीं? आप राजनीति में शामिल हो जाओ और हम सब आप का समर्थन करेंगे| हमें वास्तविक लोगों के वोट बैंक बनाने की जरूरत है| विभिन्न जातियों के वोट बैंक हैं| अगर हम वास्तविक लोगों के वोट बैंक बना लें, तो सभी नेताओं को उनकी यथार्थता के आधार पर प्रतिस्पर्धा करनी होगी| अब, हम जाति के आधार पर विभाजित हैं, उन्होंने इस अंतर को प्रतिस्पर्धा का आधार बना दिया है| लेकिन अगर हम वास्तविक लोगों के वोट बैंक तैयार करेंगे, तो वे उनकी यथार्थता प्रचार करेंगे और इस आधार पर प्रतिस्पर्धा करेंगे| यह होना चाहिए|
प्रश्न: गुरुजी, एक कहावत है, 'चोर चोर मौसेरे भाई'| बुरे
हमेशा साथ रहते हैं, लेकिन अच्छे लोग नहीं| क्या
करूँ?
श्री श्री रविशंकर: मैं भी इन लाइनों पर सोच रहा हूँ| सभी अच्छे लोगों को एक साथ लाने के लिए क्या किया जाना चाहिए? वे एक साथ आते हैं| जब हमने बैंगलुरू में रजत उत्सव मनाया, एक हजार संत एक ही मंच पर एक साथ थे| क्या आपने कभी यह होते देखा है? अच्छे लोग साथ आ जायेंगे| सभी मोतियों को सिर्फ एक तार की जरूरत है उन्हें एक साथ पिरोने के लिए|
श्री श्री रविशंकर: मैं भी इन लाइनों पर सोच रहा हूँ| सभी अच्छे लोगों को एक साथ लाने के लिए क्या किया जाना चाहिए? वे एक साथ आते हैं| जब हमने बैंगलुरू में रजत उत्सव मनाया, एक हजार संत एक ही मंच पर एक साथ थे| क्या आपने कभी यह होते देखा है? अच्छे लोग साथ आ जायेंगे| सभी मोतियों को सिर्फ एक तार की जरूरत है उन्हें एक साथ पिरोने के लिए|
प्रश्न: गुरुजी, शादी के दौरान कुंडली मेल से कितना फर्क पड़ता है?
श्री श्री रविशंकर: अगर आपको लग रहा है, तो यह किया जाना चाहिए| अन्यथा, आपके मन में हमेशा एक संदेह रहता है कि क्या यह मेल होगा या नहीं होगा| मेल किया जाना ठीक है| अब लगता है, आप सभी मायनों में दूसरे व्यक्ति को पसंद करते हैं, लेकिन सिर्फ एक ही बात कुंडली में मेल नहीं करती फिर वहाँ एक समाधान है| ध्यान, प्रार्थना, और हवन और सब कुछ सुलझ जाएगा| सभी ग्रहों के लिए कृपा करना मुश्किल नहीं है| 'ॐ नमः शिवाय' मंत्र किया जाना चाहिए|
श्री श्री रविशंकर: अगर आपको लग रहा है, तो यह किया जाना चाहिए| अन्यथा, आपके मन में हमेशा एक संदेह रहता है कि क्या यह मेल होगा या नहीं होगा| मेल किया जाना ठीक है| अब लगता है, आप सभी मायनों में दूसरे व्यक्ति को पसंद करते हैं, लेकिन सिर्फ एक ही बात कुंडली में मेल नहीं करती फिर वहाँ एक समाधान है| ध्यान, प्रार्थना, और हवन और सब कुछ सुलझ जाएगा| सभी ग्रहों के लिए कृपा करना मुश्किल नहीं है| 'ॐ नमः शिवाय' मंत्र किया जाना चाहिए|
प्रश्न: हमें पहले किसकी सेवा करनी चाहिए, हमारे माता
पिता या हमारे गुरू की?
श्री श्री रविशंकर: व्यक्ति को उसकी/उसके माता पिता की सेवा करनी चाहिए, यह स्पष्ट है| उसके बाद दूसरों की, समाज, गुरू, और राष्ट्र की सेवा कर सकते हैं| हम उन को आमंत्रित नहीं करते हैं जिन को अपने माता पिता से अनुमति प्राप्त नहीं है| अपने माता पिता को इस बात के लिए तैयार कर लो| कुछ माताएं हैं जो अपने बच्चों को समाज और राष्ट्र की सेवा करने के लिए कहती हैं|
श्री श्री रविशंकर: व्यक्ति को उसकी/उसके माता पिता की सेवा करनी चाहिए, यह स्पष्ट है| उसके बाद दूसरों की, समाज, गुरू, और राष्ट्र की सेवा कर सकते हैं| हम उन को आमंत्रित नहीं करते हैं जिन को अपने माता पिता से अनुमति प्राप्त नहीं है| अपने माता पिता को इस बात के लिए तैयार कर लो| कुछ माताएं हैं जो अपने बच्चों को समाज और राष्ट्र की सेवा करने के लिए कहती हैं|
प्रश्न: इस दुनिया में सबसे बड़ा कौन है?
श्री श्री रविशंकर: आप!
श्री श्री रविशंकर: आप!
(व्यक्ति द्वारा जवाब): मैं अपनी माँ को महान समझता हूँ|
श्री श्री रविशंकर: आप अपनी माँ को महान समझते हो और इसलिए मैं आपको महान कहता हूँ| क्या मैं सही हूँ? केवल महान, महान को पहचान सकते हैं| देखो, आप को सभी जवाब पहले से पता है, तो आप क्यों मुझे यह जवाब देने को कहते हैं?
श्री श्री रविशंकर: आप अपनी माँ को महान समझते हो और इसलिए मैं आपको महान कहता हूँ| क्या मैं सही हूँ? केवल महान, महान को पहचान सकते हैं| देखो, आप को सभी जवाब पहले से पता है, तो आप क्यों मुझे यह जवाब देने को कहते हैं?
प्रश्न: (अश्राव्य)
श्री श्री रविशंकर: ‘नस्ति तपह प्रानायाम्त परम’; प्राणायाम की तुलना में कोई तपस्या बड़ी नहीं है| सही
ढंग से प्राणायाम करना अपने आप में एक तपस्या है| ‘तपो द्वन्द्व सहनम’ आपको संघर्ष सहन करना चाहिए| आपको दु:ख के समय में उदास
नहीं होना चाहिए और न ही खुशी के समय में उत्साहित| यह तपस्या है| संघर्ष सहन करना तपस्या है| आप यहाँ गर्मी
और सर्दी सहन करते हैं| बैंगलुरू और पुणे में इतना ठंडा या गर्म नहीं है| पुणे
के लोगों को इतना सहन नहीं करना है| इस तरफ, आपको अधिक तपस्या करनी है| देखो, मैंने
कहा इस आकाश में अब बादल हैं| संपूर्ण
प्रकृति मेरी दोस्त है| मैंने इसके साथ एक सौदा किया है|
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