अविनाशी प्रेम को पाया जा सकता है!!!


परम पूज्य श्री श्री रविशंकर जी के द्वारा
कुछ लोग कहते हैं कि जीवन का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना होता है कि कोई इस ग्रह में वापस न आये क्योंकि यह प्रेम से वंचित है। वे सोचते हैं कि यदि प्रेम है तो वह इतना पीड़ापूर्ण क्यों है? कोई भी जीवन में कुछ चाहता है तो वह प्रेम है। हर कोई इंसान उस प्रेम की इच्छा करता है जो कभी मर नहीं सकता, वह प्रेम जिसमें पीड़ा न हो, वह प्रेम जो खिलता है और हर समय के लिए जीवित रहेगा। जीवन का वह बहुमुखी दृष्टिकोण लेने से कोई जीवन को विभिन्न पहलू से देख सकता है और यह अनुभव कर सकता है कि जीवन का उद्देश्य इस किस्म के प्रेम को प्राप्त करना है जो उस आदर्श प्रेम में खिलता है।
यदि आप अत्यधिक सफल हैं और आप के पास बहुत सारा धन है परन्तु आपके जीवन में कोई प्रेम नहीं है तो फिर जीवन सही मायने में सार्थक नहीं होगा, और वह बंजर के जैसा प्रतीत होगा। परन्तु इसके बाद भी कई लोग प्रेम के बिना जीवन जी लेते हैं। क्या आपने यह सोचा है कि ऐसा क्यों होता है? यह आपका अहंकार होता है, जो आपको उस प्रेम को पाने से रोकता है। जब तक अहंकार होगा, प्रेम नहीं हो सकता है और जब प्रेम होता है तो वहाँ पर अहंकार का निशान भी नहीं होता है। अहंकार क्या है? अहंकार का अर्थ है अस्वाभाविक होना। अर्ध ज्ञान अहंकार लाता है परन्तु जब ज्ञान पूर्ण हो जाता है तो अहंकार समाप्त हो जाता है और सरलता का उदय होता है।
अब यह प्रश्न उत्पन्न होता है कि यदि अहंकार इतना अस्वाभाविक होता है तो फिर हर इंसान में अहंकार क्यों होता है? अहंकार इसलिए आवश्यक है क्योंकि वह जीवन में आपके विकास में किसी तरह से आवश्यक है। इसका यह अर्थ नहीं है कि उसे शुरुआत से ही नहीं होना चाहिए। अहंकार आवश्यक है परन्तु ज्ञान के द्वारा आप उससे निकल सकते हैं। नारद भक्ति सूत्र में एक सूत्र है ‘‘ज्ञान स्वाभाविकपन की परत को उतारने में सहायक है‘‘ स्वयं का अवलोकन करने से और ध्यान में स्वयं के और भीतर जाने से कोई अहंकार से परे हो सकता है।
एक बीज पर एक परत या छिलका होता है और जब आप उसे पानी में भिगोते हैं तो वह अंकुरित होता है और छिलका निकल जाता है। उसी तरह अहंकार आवश्यक अस्वाभाविकपन है जो जैसे आपका विकास होता है वह भी बढ़ता है। जब आप दो या तीन वर्ष के शिशु होते हैं तो कोई अहंकार नहीं होता है, आप सम्पूर्ण भोलेपन और आनंद की अवस्था में होते हैं। फिर अहंकार की परत बनती है। ज्ञान इस परत को निकालता है और आपको फिर से शिशु बना देता जो स्वाभाविक, सरल और भोला है। जब आप स्वाभाविक, सरल और भोले होते हैं तो कोई अहंकार नहीं होता है।
अहंकार कोई तत्व नहीं है वह अंधेरे के जैसे तत्वहीन है। अंधेरा सिर्फ प्रकाश की कमी है। अहंकार के जैसा कुछ नहीं है जिसमें कोई तत्व हो। अहंकार सिर्फ संपूर्ण विकास की कमी है, पूर्ण समझ की कमी है। वह सिर्फ परिपक्वता या ज्ञान की कमी है।
हमें कई विषयों की शिक्षा प्रदान की गई है। हम किसी कठिन यंत्र को कैसे चलाना यह जानते हैं परन्तु जब हमारा सामना जीवन को बनाने वाले बल से होता है तो हम लड़खड़ाने लगते हैं। हमें जीवन को कैसे जीना यह कोई नहीं सिखाता है। हमें हमारे स्वयं के मन और अहंकार को समझने के लिए अधिक प्रयास करने होंगे और यह समझना होगा कि हम कौन हैं और यहाँ पर हम क्यों हैं और सिर्फ प्रेम ही हमारे ज्ञान का विस्तार कर सकता है, और जीवन की और हमारे आसपास के विश्व की समझ दे सकता है।
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