०३.०२.२०१२,
बैंगलुरू आश्रम
प्रश्न: एक
माँ होने के नाते, मैं किस तरह अपने बच्चों को और अधिक रचनात्मक और ना कि सिर्फ
जानकारी रखने वाले, बना सकती हूँ?
श्री श्री
रविशंकर: लोगों के साथ ज्यादा मेल-मिलाप से| बच्चों को दूसरे बच्चों के साथ खेलने
दें| उनसे कुछ सेवा के कार्य करवाएं| उनसे कुछ काम करवाएं और उन्हें हर सामाजिक और
आर्थिक स्तर के लोगों से घुलने-मिलने दें|
प्रश्न: गुरूजी, मैं एक युवा लड़की हूँ और विद्यार्थी हूँ| जब मैं अपने
माता-पिता से पूछती हूँ कि मेरा धर्म क्या है, तो वे कहतें हैं पढाई| क्या खेलना
मेरे धर्म का हिस्सा नहीं है? कृपया मार्ग दर्शन करें|
श्री श्री
रविशंकर: हाँ! जब पढ़ें तब पढ़ाई करें और जब खेलें तब खेलें|
प्रश्न: गुरूजी, अगर मैं आपका काम करता हूँ, तो क्या मुझे अपने बुरे
कर्मों पर थोड़ी छूट और अच्छे कर्मों पर बोनस मिल सकता है?
श्री श्री
रविशंकर: बेशक!
प्रश्न: गुरूजी,
आप हमेशा कहते हैं कि जब हम ईश्वर के करीब होते हैं, तब हमारी इच्छाएं पूरी हो
जाती हैं| यह कितना सत्य है! लेकिन जिन लोगों का आध्यात्मिक की ओर झुकाव नहीं
होता, उनकी भी इच्छाएं बिना किसी मुश्किल के पूरी हो जाती हैं| तो फिर फ़र्क क्या
है?
श्री श्री
रविशंकर: आप उनसे पूछिए कि उन्हें कैसा महसूस होता है|
आप जानते हैं,
कि जब आप जागृत होते हैं, तब आप में आध्यात्मिक झुकाव होता है, तब आप उसका और अधिक
आनंद ले पाते हैं| आप पीछे मुड़कर देखिये, अपनी खुद के जीवन में, जब आपने कोई भी
ध्यान नहीं किया था, तब भी आपकी इच्छाएं पूरी होती थीं, मगर वह आज जैसा नहीं है,
है ना?
आपने मज़े
किये, आप किसी यात्रा पर गये और आपने प्रकृति को देखा| मगर आज आप ध्यान करने के
बाद, आध्यात्मिक मार्ग पर प्रवेश करने के बाद इसमें महत्वपूर्ण अंतर है|
प्रश्न:
गुरूजी, मैं जानना चाहता हूँ कि शिवलोक, ब्रह्मलोक और विष्णुलोक क्या है? ऐसा क्या
है जो उन्हें भिन्न बनाता है?
श्री श्री रविशंकर: बहुत से संसार हैं और समय के बहुत सारे आयाम हैं और
इसीलिए कहते हैं, कि एक मानव वर्ष, पित्रलोक का एक दिन होता है| हमारे लिए जो एक
साल होता है, तो किसी दूसरे आयाम में, उसमें से छह महीने का एक दिन होता है और छह
महीने की रात|
अगर आप खगोल के विद्यार्थी होते, तो आप यह जानकर मुग्ध हो जाते, कि समय के
अलग अलग आयाम हैं, यह बहुत ही रोचक है| आपको और अधिक खगोल पढ़ना चाहिये; दोनों शास्त्रीय खगोल और आधुनिक खगोल| तब आपको समय के बारे
में और अस्तित्व के अलग अलग आयामों के बारे में बहुत सी जानकारी मिलेगी|
अब जैसे देखिये, आपको जिस तारे की रोशनी आज दिख रही है, वह आज ही नहीं आयी
है| वह चार वर्ष पुरानी है| यह रोशनी चार साल पहले आनी शुरू हुई थी और आज आप तारे
को देख पा रहें हैं| आप तारे को देख आज रहें हैं, लेकिन कोई ज़रूरी नहीं कि तारा आज
भी वहां हो! यह तो चार साल पुरानी तस्वीर आप देख रहें हैं| क्या आपने इसके बारे
में सुना है?
प्रश्न: गुरूजी, इस व्यवसायी दुनिया में कैसे रहें? मैं अपने आपको अकेला
और अलग महसूस करता हूँ, जब मुझे लगता है कि लोग मुझसे सिर्फ तभी मित्रतापूर्ण होते
हैं, जब उन्हें मेरी ज़रूरत होती है| आज व्यवसाय का अर्थ है न तो प्रेम और न ही
सच्ची मुस्कुराहट| क्या करूँ?
श्री श्री
रविशंकर: कम से कम आप उन्हें दीजिए| अगर उनके पास नहीं है, तो आपके पास तो है| सही
है न?
तो आप वहां
चन्द्रमा की तरह चमक सकते हैं|
प्रश्न: मैं
मृत्यु के बिना जीवन को नहीं समझ सकता| गुरूजी, कृपया मुझे बताईये, कि मैं जिंदा
रहते हुए मृत्यु को कैसे जानूं?
श्री श्री
रविशंकर: ध्यान| गहन ध्यान माने कुछ ना होना और कोई न होना|
प्रश्न: गुरूजी, मैं अपनी आत्मा और समाज के बीच फंसा हूँ| मेरी आत्मा इस
दोहरी दुनिया से नफरत करती है और इस समाज को मेरे जैसे मुक्त मानव लोग पसंद नहीं
हैं| क्या मैं अपनी आत्मा का या फिर इस समाज का बलिदान करूँ?
श्री श्री
रविशंकर: आपको कुछ भी बलिदान करने की आवश्यकता नहीं है| आप अपनी आत्मा को भी सहेज
कर रखिये और समाज में भी सफल होईये, यही कौशल है|
पूरा जीवन एक ऐसा ही कार्यक्रम है जिसमें असीमता को एक छोटे से सीमित बर्तन
में रखना है| हमारा शरीर सीमित है मगर हमारी चेतना असीमित है| पूरी कुशलता और
तकनीक सिर्फ उन्हें साथ रखने में ही है| यही योग है| यही कर्म में कुशलता है|
प्रश्न: गुरूजी, मैं २१.१२.२०१२ के बारे में आपके विचार जानना चाहता हूँ|
एक जापानी राजकुमारी और इंटरनेट पर बहुत से अन्य स्त्रोतों ने लिखा है कि अंधकार के
तीन दिन होंगे| सत्य क्या है?
श्री श्री रविशंकर: आपको पता है डॉ. डी.के. हरि ने एक किताब लिखी है और कल
ही मैंने उस किताब का विमोचन किया है; २०१२| बस उस किताब को ले लीजिए| वह शायद
ऑनलाइन भी उपलब्ध होगी| उन्होंने २०१२ का बहुत ही वैज्ञानिक विश्लेषण किया है और
उसका वास्तव में अर्थ क्या है और किस तरह मयन को उनका कैलेंडर मिला| आपको पता है,
बहुत समय पहले मयन भारत का ही अंश थे| वे श्रीलंका से थे| रावण मयन वंश का ही था|
तो डॉ. हरि और डॉ. हेमा ने बहुत ही अच्छा विश्लेषण किया है| मैंने सिर्फ उस पर नज़र
डाली थी और मुझे लगा कि वह बहुत रोचक थी| इसीलिए आपको पढ़नी चाहिये| मैंने अभी तक
नहीं पढ़ी है, लेकिन वह बहुत रोचक है| उन्होंने बहुत से चित्र भी डालें हैं|
मैं आपको बता
रहा हूँ कि कुछ नहीं होगा| यह दुनिया विलुप्त नहीं होने वाली| यह वैसे ही चलती
रहेगी जैसे कि आज तक चलती आ रही है|
प्रश्न: कहा गया है कि यह दुनिया वास्तविक नहीं है बल्कि सिर्फ हमारे मन
का एक भ्रम है| इस नज़रिए से हम भगवान कृष्ण और भगवत गीता में उनके दिए ज्ञान को
कैसे देखें? क्या वे भी भ्रम थे?
श्री श्री
रविशंकर: पहले मुझे यह बताईये कि क्या यह प्रश्न वास्तविक है या भ्रम है?
अगर प्रश्न
वास्तविक है, तो उत्तर भी वास्तविक होगा| अगर प्रश्न भ्रम है, तो सभी कुछ भ्रम है|
आपकी समीक्षा की भावना भी भ्रम है, तब फिर उसका उत्तर क्यों दिया जाना चाहिये| समझ
गए?
दो आयाम होते
हैं| मैं हमेशा कहता रहता हूँ| एक होता है क्वांटम आयाम|
परमाणु के
स्तर पर सभी कुछ एक है| क्वांटम यंत्र विज्ञान में सभी कुछ परमाणु है, यह ज़मीन,
कुर्सी, दरवाज़ा, खिड़की; यह सब एक ही तत्व से बना है और शास्त्रीय स्तर से यह सब
भिन्न है| कुर्सी दरवाजे से अलग हैं| आप जाकर दरवाज़े पर नहीं बैठ सकते या दरवाज़े की जगह कुर्सी का
उपयोग नहीं कर सकते| तो ये सब अलग हैं|
रसायन विज्ञान
में, पीरीओडिक टेबल होता है जो अलग अलग तत्वों के बारें में बताता है| फिर क्वांटम
भौतिकी है, जो कहती है कि हम सब सिर्फ एक ‘वेव फंक्शन’ हैं| तो ये दोनों हीं ज़रूरी हैं और दोनों ही सही हैं| समझ
गए? यह द्वैत है, और वह अद्वैत है| और भगवत गीता दोनों के ही सन्दर्भ में है| वह
आपको अद्वैत में ले जाती है और आपको द्वैत से जोड़ देती है| द्वंद्व और आपको परम
सत्य का बोध भी करा देती है| दोनों!
प्रश्न: ऊष्मप्रवैगिकी
(थर्मोडायनमिक्स) के हिसाब से जब कोई अधिक ऊर्जा के स्तर से नीचे ऊर्जा के स्तर पर
आता है, तो उत्क्रम माप (एन्ट्रापी) बढ़ जाती है और स्थिरता आ जाती है| लेकिन जब हम
ध्यान करते हैं, तो हमारे शरीर और मन दोनों की ऊर्जा बढ़ती है और स्थिरता भी बढ़ती
है| यह कैसे होता है? इसके पीछे क्या सिद्धांत है?
श्री श्री
रविशंकर: बहुत विज्ञान है, आप रिसर्च पर रिसर्च करते जाईये| चेतना के बारे में
कितना कुछ है जानने को| जब ध्यान करें, तब सिर्फ ध्यान करें|
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