१७.०२.२०१२, बैंगलुरू आश्रम
अपनी खुशी पर हमें संयम रखना
चाहिए| जब हम खुश होते हैं उस खुशी को हमें सही दिशा देनी चाहिए| इसे याद कर ले; सुख
में सेवा, दुःख में त्याग|
जब आप खुश होते हैं, तब सेवा
करें, और जब उदास और दुखी होते हो तो अपना दुःख समर्पित कर दें| यदि आप में समर्पण
का भाव नहीं होगा तो दुःख आपको कभी नहीं छोड़ेगा| जो व्यक्ति दुःख भी नहीं त्याग
सकता उसके लिए कोई राह नहीं है| समर्पण और सेवा को जीवन में साथ चलना चाहिए|
जिस खुशी का हम अनुभव कर रहे
हैं, उसको एक दिशा देनी चाहिए| देखिये, हम कितने प्रफ्फुलित हैं; हम सुबह से ध्यान
कर रहे हैं और बहुत अच्छा महसूस कर रहे हैं| हमें सोचना चाहिए, ऐसा क्या करें कि
सब लोग इस खुशी का अनुभव करें?
सेवा करे, हमें एक
भ्रष्टाचार रहित, हिंसा मुक्त और शोषण मुक्त समाज स्थापित करना है| इस के लिए हमें अज्ञान से लड़ना है| हमारे देश में
विभिन्न प्रकार के अंधविश्वास मौजूद हैं, जिन्हें हमें मिटाना है| निरक्षरता है जिसे हमें हटाना है| हमें अज्ञान से
लड़ना है|
जो लोग इस समय यह कार्यक्रम
देख रहे हैं उन्हें भी प्रतिदिन कुछ समय ध्यान करना चाहिए| ध्यान खुशी बढ़ाता है,
शरीर को स्वस्थ रखता है, बुद्धि को तीव्र रखता है और व्यक्ति को अंतर्ज्ञानी बनाता
है| जो होने वाला है उसका अंदेशा मन में पहले ही हो जाता है|
सभी बुरे विचारों को भी अपना
लें| क्योंकि यदि आप उनको दूर करना चाहेंगे, वे उतनी ही दृढ़ता से आपके साथ रहेंगे|
इस लिए, उनसे हाथ मिला लेंगे तो तुरंत चले जायेंगे|
क्षणे क्षणे उपरमती; धीरे
धीरे जैसे मन विचारों से मुक्त होता है, दो से चार या दस से पन्द्रह मिनट में, मन
स्थिर हो जाता है| जैसे जैसे हम इसका अभ्यास करते रहेंगे, खुशी और शांति जागेगी और
सच्चाई हमारे जीवन का स्वाभाव बन जायेगी| हमें स्वयं को हर समय तैयार रखना चाहिये|
अन्ना जी (अन्ना हजारे) आज
यहाँ आये हैं| अपने जीवन में उनका सदैव एक खुला व्यक्तित्व रहा है; सबके साथ एक गहन
अपनापन| बिलकुल वैसे ही जैसे हम सब यहाँ पूरे खुलेपन से हैं|
इसी तरह आपकी उदारता; अपने
देश के लिए कुछ करने की, त्याग करने की, ऐसा सोचने कि, की मुझे अपने लिए कुछ नहीं
चाहिए, सब कुछ मेरे देश के लिए है| यदि ये भावना हमारे सब युवकों में जागृत हो
जाये तो देश का रूप ही बदल जायेगा| इसे बदलना ही है और हमें वो बदलाव लाना ही होगा| इसके सिवा कोई विकल्प नहीं है|
क्या आप तैयार हैं?
अन्नाजी आपकी फ़ौज तैयार है!
हमारे पास यहाँ फ़ौज तैयार करने का कारखाना है ! अपने स्वयं के भीतर जाये बिना जीवन
सही दिशा में नहीं चलेगा| ना ही कामकाज में सफलता मिलेगी, काम में सफलता के लिए भी व्यक्ति को अपने स्वयं
के भीतर जाना पड़ता है, प्रतिदिन कम से कम कुछ समय के लिए| जब कोई काम में सफलता पाता
है, तब जीवन में स्थिरता आती है और हम शांत होते हैं| और फिर, हम जिसकी भी कामना करते हैं वो होने लगता
है| कितने लोगों ने ये अनुभव किया है?
यह भारत की आध्यात्मिकता का
महत्व है; संकल्प सिद्धि| पराजय हमारे पास नहीं आती|
क्यों? सत्व में वृद्धि के
कारण| जब सत्वगुण बढ़ता है, आप विश्व पर जीत पा सकते हैं| जहाँ भी आप जाये, किसी भी
कोने में, चाहे कोई भी चुनौती हो, आप उसे बहुत सहजता से, मुस्कुराते हुए पार कर
लेंगे|
कैसे? वह एक अकेले व्यक्ति
की या एक छोटे दिमाग की उपलब्धि नहीं होगी| वह एक सर्वव्यापी चेतना, एक परम शक्ति
है; जब हम उसके साथ जुड़ जाते हैं, तभी हमें सफलता और सिद्धि मिलती है|
उत्तर प्रदेश में एक पुरानी
कहावत है, ‘राम झरोखे बैठे सब का मुजरा ले’| यह जीवन में सिद्ध है, यदि आप बिना आध्यात्मिकता के कोई कार्य करोगे, तो कभी
सफलता नहीं पायेंगे|
आध्यात्मिकता हमारा सार है,
हमारी नींव है, और हमारे जीवन का मूल आधार है| इसलिए, इससे जुड़े रहिये, और फिर
देखिये कैसे सबका मन बदलता है, बुरे मन भी बदलते हैं|
इस दुनिया में कोई भी बुरा
नहीं है पर जो बुरे प्रतीत होते हैं, हम उनको भी बदल सकते हैं| इस ज्ञान में बहुत
शक्ति है| इसी लिए इसे ब्रह्म ज्ञान कहा गया है|
कल किसी ने मुझसे पूछा, “ये सब भ्रष्ट लोग यहाँ क्यों आये हैं”? मैंने कहा, “मैं चाहता हूँ आप संसार के सारे भ्रष्ट व्यक्तियों
को यहाँ आश्रम में ले आये| उन्हें कुछ समय यहाँ आ कर बैठने दे और यहाँ के प्रेम को अनुभव करने दें| वे धन को इतना महत्व देते हैं क्योंकि जीवन में
प्रेम नहीं है, त्याग नहीं है, शांति का कोई अनुभव नहीं हुआ है, कोई खुश नहीं
प्राप्त हुई है| यदि वे यहाँ खुशी अनुभव करेंगे तो धन का आकर्षण समाप्त हो जायेगा|
यदि वे आप सबकी तरह उछल और नाच सकें और परम आनंद में गा सकें, तो बाकि हर वस्तु का
आकर्षण समाप्त हो जायेगा| धन, शराब, कुछ नहीं है, उनमें कोई रस नहीं| इसलिए, जीवन में रस आने दीजिये|
तो जैसे आपने जीवन में खुशी
पायी है, इस खुशी को फैलायें, इस रस को अपने आसपास सबको बांटे| उन्हें पीने दो,तुम
भी पीयों औरों को भी पिलाओ| एक शराबखाने में ग्राहकों को शराब देते हैं, खुद नहीं
पीते, पर हम पहले खुद पीते हैं फिर सबको भी पिलाते हैं|
आज अरविन्दजी (अरविन्द
केजरीवाल) भी हमारे साथ बैठे हैं| वे इतने भले हैं, इतने सुस्पष्ट और ज्ञानी हैं|
वे सब ज्ञान रखते हैं| इनके दिल में देश के लिए असीम प्रेम है| हम सब इनके साथ हैं, और इन्हें
भविष्य में देश के लिए बहुत कुछ करना है|
सत्य की आवाज़ बुलंद होनी
चाहिए| अपने स्वर को इतना शक्तिशाली बनायें कि वह हर कोने में सुनाई दे| देश प्रेम
और दैव प्रेम अलग नहीं है| यदि आप भगवान से प्रेम करते हैं, तो आप निश्चित ही अपने देश से प्रेम करेंगे,
क्योंकि ये भगवान का ही तो रचित है! और यदि आप विश्व से प्रेम करते हैं, तो उसका रचियता
जो हमारे भीतर विराजमान है, काम नहीं करेगा|
हम सब भुट्टे के कान कि तरह
हैं| आप पॉपकॉर्न जानते हैं? भुट्टा कड़ा होता है और पॉपकॉर्न नरम और सफ़ेद| उसी
प्रकार, ध्यान और इन प्रक्रियाओं से उत्पन्न ऊर्जा हमारे अंदर के भुट्टे को नरम
पॉप कॉर्न कर देती है| कितना सुन्दर ज्ञान है न ये?
प्रश्न: गुरूजी, हम सबको पूरा
ज्ञान है कि और लोगों को अपना जीवन कैसे व्यतीत करना चाहिए, परन्तु बहुत कम लोगों
को अपने जीवन के बारे में ये ज्ञान है| ऐसा क्यों और हम इसके बारे में क्या कर
सकते हैं?
श्री श्री रविशंकर : क्या अब आप अपने बारे में,
अपने जीवनसाथी या किसी और के बारे में बात कर रहे हैं ?
आपका साथी अवश्य आपको सुझाव
देगा कि आपको कैसे रहना चाहिए, क्या करना चाहिए, आपकी माँ भी आपको परामर्श देंगी,
आपकी बहन अपना हुकुम चलाएगी, और आपकी बेटी भी आपको बताएगी कि पापा आपको ऐसे
व्यवहार करना चाहिए| यहीं महिलाओं के साथ भी होता है| आपके पति भी आपको बताएँगे, आपका भाई भी आपको परामर्श देगा|
आप परामर्शों से घिर
जायेंगे| उनको स्वीकार करिये और सुनिए पर अपने कार्य पर से दृष्टि नहीं हटाईये| अपने लक्ष्य को मत भूलिए| अपने लिए और समाज के लिए एक लक्ष्य बनाइये| आप समाज को कहाँ जाते देखना चाहते हैं? परामर्श
बुरे नहीं होते| आप सभी परामर्शों को नहीं छोड़ सकते| पर साथ ही आप सबको भी नहीं अमल कर सकते| इस लिए, अपना मन खुला रखिये| आप क्या चाहते हैं जीवन में? आपने क्या प्रगति
की है ? इसको देखिये|
कभी कभी हमें अपने स्वयं के मन
की सोच को परखना पड़ता है| हम कहाँ जा रहे हैं ? मुझे क्या चाहिए ? जो मैंने किया क्या वो सही था, या जो
मैं करने जा रहा हूँ, वो सही है? यह आत्मदर्शन आवश्यक है|
प्रश्न : गुरूजी, आपने अभी
विचारों के बारे में कहा| क्या विचारों को रोकने या उनकी श्रंखला को कम करने के
लिए हम कुछ कर सकते हैं?
श्री श्री रविशंकर : विचार आपकी चेतना का हिस्सा हैं| ये आते और जाते
हैं| विचारों से मुक्ति कैसे पाएं? इसके चार उपाय हैं|
एक जब आप स्तब्ध हो जाते
हैं| अगर आपको झटका लगता है, बिजली का झटका भी, तो आपका दिमाग शून्य हो जाता है| मैं नहीं चाहता आप ऐसा कुछ करें या उस स्थिति में
जायें| हर चौंका देने वाली घटना दिमाग में शून्यता ला देती है|
दूसरा है संगीत| यदि आप गा
रहे हैं, या संगीत में हिस्सा ले रहे हैं, तब भी विचार कम हो जाते हैं| कोई भी गहन भावना उस समय के विचारों को कम कर देती
है|
तीसरा है व्यायाम|
और चौथा है प्राणायाम और गहन
ध्यान|
यदि फिर भी आपको बहुत से
नकारात्मक विचार घेरे रहते है, तो आपकी पाचन क्रिया में कुछ समस्या हो सकती है| शंख प्रक्षालन करिये| इस से भी सहायता मिलेगी| यह आपके मन को शांत करेगा| पर, प्राणायाम और ध्यान सबसे उत्तम हैं|
प्रश्न : प्रिय गुरूजी, मूल
रूप से हम सब समान हैं| फिर क्यों कुछ लोग स्वयं और आध्यात्मिकता के बारे में जानने को उत्सुक रहते
हैं और कुछ नहीं ? क्या सबमे एक ही प्राण नहीं है ?
श्री श्री रविशंकर : अलग अलग लोगों की अलग अलग
रुचि होती है| कुछ लोगों को गणित में रूचि होती है| बावा (खुर्शीद बाटलीवाला) से पूछिए; उन्हें गणित में इतनी रुचि है| उन्होंने गणित पर एक विडियो भी बनाया है (a+b)^2
= a^2+2ab+b^2 और इतने लोग ये देखने के लिए इन्टरनेट पर गए कि
सर्वर बैठ गया| ढाई लाख लोग उस साईट पर गए| तो बावा गणित में प्रवीण हैं और वे उस में गहराई से जाते हैं| डी के हरी जी को पूछिए, उन्होंने इतिहास की इतनी
अच्छी तरह खोज की है ! उन्होंने भ्रष्टाचार पर एक पुस्तक लिखी है “यूटर्न इंडिया”| यह एक बहुत अच्छे से सोची हुई योजना है कि कैसे भारत पलट कर एक बेहतर
अर्थव्यवस्था बना सकता है; नीव से ही अर्थव्यवस्था को बदला जा सकता है|
गंगा नदी जिसे हम एक
प्राकृतिक नदी समझते हैं, उन्होंने साबित कर दिया है कि वह मनुष्य द्वारा बनायीं
गयी है| यदि आप “bharatgyaan.com” पर जायें, हेमा और हरी ने अद्भुत कार्य किया है|
इस लिए, यह रुचि है| कुछ लोगों को यह प्रश्न या रुचि होती है, “मैं कौन हूँ?”, “चेतना क्या है?” “मैं खाता पीता और सोता हूँ, पर आखिरकर मैं हूँ कौन?”, “एक दिन मैं मर जाऊँगा, मृत्योपरांत मेरा क्या होगा?”, “मैं कहाँ जाऊं?”
यह प्रश्न आते हैं| ये स्वाभाविक हैं और हमारी बुद्धि की परिपक्वता को
दर्शाते हैं| एक परिपक्व बुद्धिजीवी ही आध्यात्मिकता की ओर जा सकता है| जानने की लगन तब आती है|
तो जब भारत सांसारिक रूप से
समृद्ध था तो आध्यात्मिकता भी जन्मी| जब भारत आध्यात्मिक रूप से चोटि पर था, ठीक उसी समय वह सांसारिक रूप से भी
अत्यंत समृद्ध था| परन्तु आज, वह दोनों में ही नीचे आ गया है| उसे एक यूटर्न की आवश्यकता है|
प्रश्न : गुरूजी, क्या चिंता
से जूझने का कोई उपयुक्त तरीका है? मुझे घर के छोटे कार्यों में भी चिंता होती है|
श्री श्री रविशंकर : उज्जैये प्राणायाम| इसको
बहुत बार करते रहे| आप देखोगे कि आपकी चिंता पहली बार से ही कम होने लगेगी| और नियम से ध्यान भी करो|
प्रश्न : प्रिय गुरूजी, आपने कहा कि फिल्में देखने से
हमारी ऊर्जा का स्तर कम हो जाता है| पर जब मैं आपको देखता हूँ, तो मेरे अंदर और शक्ति आ जाती है|
श्री श्री रविशंकर : ठीक है| तो तुम्हारा अपना अनुभव है| आप जब लोगों को फिल्म देखने जाते हुए देखते हैं, तो उनमें कितनी स्फूर्ति और
जोश होता है| पर जब वे बाहर आते हैं फिल्म देख कर, तो उनके चेहरे कितने थके हुए और बोझिल
लगते हैं| क्या ऐसा नहीं होता ?
मैं नहीं कह रहा कि आप
फिल्में मत देखें| आप देखिये, पर बहुत सी और बहुत बार नहीं| आपको खबरों के बारे में जानकारी
रखनी है पर वहीं हिंसा, घरेलू झगडे, बार बार देखना आवश्यक नहीं हैं| फिर जब आप अपनी आँखें बंद करेंगे, तो वहीं सब
हिंसा आपको अपने मन में दिखाई देगी| यह एक साधक के लिए सही नहीं है|
प्रश्न : प्रिय गुरूजी, मेरे
पास कोई प्रश्न नहीं है| मैं बस कहना चाहता हूँ कि मैं आपसे प्रेम करता हूँ और हर चीज़ के लिए धन्यवाद
करता हूँ| पर बताइए गुरूजी, क्या आप मुझसे कुछ कहना चाहते हैं?
श्री श्री रविशंकर : सुनो, मैं तो हर समय से
कहता आ रहा हूँ ! जो मुझे कहना है मैं वहीँ कहता हूँ, है ना?
प्रश्न : <अश्राव्य>
श्री श्री रविशंकर : देखो,
आपको कभी नहीं सोचना चाहिए कि क्या भविष्य कर्म या नियति है| अतीत को नियति की तरह
देखो, भविष्य को उन्मुक्त निश्चय की तरह और वर्तमान में खुश रहो| यही समझदार तरीका है| हीन बुद्धि वाले अतीत के बारे में अफ़सोस करते रहते
हैं ये सोच कर कि वो अतीत में कुछ भी कर सकते थे, और सोचते हैं कि भविष्य तो पहले
ही निर्धारित है और उसके लिए कुछ नहीं करते, और इस लिए वर्तमान में दुखी होते हैं| तो आपके पास दो विकल्प हैं, समझे?
प्रश्न : शिव लिंग के पीछे
क्या सार है?
श्री श्री रविशंकर : शिव प्रेम है| जो तत्व सर्व व्यापी है, वह शिव है| वो चीज़ जो सब जगह है उसे कैसे पहचानें? एक चिन्ह की
तरह उसे पहचानने के लिए, एक पत्थर रखा जाता है, एक रूप बनाया जाता है|
भगवान उस रूप में नहीं है| वो रूप सिर्फ एक चिन्ह है जो हमें भगवान कि याद
दिलाता है| जैसे आप अपने नानाजी की फोटो को देखते हैं और कहते हैं ये मेरे नानाजी हैं| उस फोटो को देख कर आपको अपने नानाजी, या नानी, या
माँ के याद आ जाती है| पर क्या उस फोटो में तुम्हारे नानाजी या नानीजी हैं? नहीं| उस फोटो के कारण हमें वे याद आ जाते हैं| उसी तरह रूप के माध्यम से हम रूप के पीछे के तत्व की
भक्ति करते हैं|
प्रश्न: कहा गया है कि
इस्लाम और ईसाई धर्म में बहुत समानता हैं और ईसाई धर्म और हिंदू धर्मं में भी| क्या हिंदू और बौद्ध धर्म में भी समानता है?
श्री श्री रविशंकर : हाँ बिलकुल| गौतम बुद्ध जन्म से हिंदू थे| और उसके बाद वे सन्यासी बने| जो ग्रंथों में है और जो गौतम बुद्ध ने कहा उसमे
कोई अंतर नहीं है|
हिंदू धर्म में बहुत सी
प्रथाएं हैं; उन्होंने कहा है इन सब की आवश्यकता नहीं है| जानवरों की हत्या नहीं करनी चाहिए| यज्ञों की
आवश्यकता नहीं है| इस तरह, वे लोगों को लोगों को प्रथाओं से ध्यान की तरफ ले कर गए| बुद्ध ने ध्यान की बात कही है| बौद्ध धर्म में कहा है सब खुश रहें, भगवान हम सब
का ध्यान रखें, यही ग्रंथों में भी कहा है|
प्रश्न : श्रीलंका में तमिल
लोग अभी भी क्यों दुखी हैं? क्या उनका बहुत सा बुरा कर्म है?
श्री श्री रविशंकर : हर समय “क्यों” पूछना एक समस्या है| हम नहीं समझ सकते वे क्यों दुखी हैं| यह पूछो कि उनके लिये हम क्या कर सकते हैं| यह बेहतर है| आप सब उनके लिये कार्य करें| स्वामी सद्योजता और आश्रम के कुछ और सेवक इसके लिए काम कर रहे हैं| आप सब भी इसके साथ जुड़ जाईये| हम सब कुछ पुनः सामान्य कर लेंगे|
प्रश्न : गुरूजी मैं ये मोर
पंख आपको और अन्नाजी को देना चाहता हूँ|
श्री श्री रविशंकर : ये पंख अपने पास रखो, तुम्हें
उड़ना है| हम पहले ही उड़ रहे हैं| तुम्हें इसकी आवश्यकता है, अपने साथ रखो| उड़ना सीखो| मैं पंख लेता नहीं हूँ, पंख देता हूँ!© The Art of Living Foundation