१८.०१.२०१२
धान और पोहा में क्या फर्क
है? धान सूखा और सख्त होता है, किन्तु पोहा सफ़ेद, हल्का और खाने योग्य होता है| चावल और मुरमुरे
में क्या फर्क है? चावल सख्त होता है| उसे सीधा नहीं खा सकते| उसे पानी में भिगोकर पकाना पड़ता है| जब वह नर्म हो
जाता है, उसे खा सकते है|किन्तु मुरमुरा अन्दर से खाली होता है|वह खाने योग्य होता है| वह पका होता है| उसी तरह, सत्संग द्वारा, सेवा द्वारा, अपनापन की अनुभूति द्वारा, चावल को
मुरुमुरा और धान को पोहे में परिवर्तित कर देता है| यह दैवी
कृपा है| हम अन्दर से खिलते है, हर्षित होते है| तत पश्चात् जीवन जीने योग्य (उपयुक्त) होता है|
अन्यथा, जो हमारे पास है,
हम उसके लिए रोते है, और जो हमारे पास नहीं है, उसके लिए भी रोते है| हम रोते रहते
है| कुछ लोग इसीलिए रोते है कि उनकी शादी नहीं हुई हैं| कुछ लोग शादी द्वारा होने वाली मुसीबतों की वजह से रोते हैं| खुश हो जायें! जो भी आप करे, खुश रहें| यह धर्म का सन्देश है|
आज सभी धर्मो के नेता मंच
पर विराजमान है| आप सभी को वे आशीवाद देने यहाँ आये है| वर्कारी
संप्रदाय के सर्वोच्च संत, गुरुद्वारा से ग्रंथिजी और मस्जिद से इमाम आये हुए है| यह भारत, सभी धर्मों का एक गुलदस्ता है| हम सब एक हैं| एक रोशनी (नूर) है| गायों के रंग अलग हो सकते हैं, लेकिन दूध हमेशा
एक रंग का ही होता है| दूध हमेशा सफेद होता है| संन्यासी
विभिन्न संप्रदायों के हो सकते हैं, लेकिन उनका मत एक है| ('सब
संतान एक मत') वह क्या है? भगवान के साथ जुड़ना| और भगवान कहाँ है? आकाश
में नहीं है, भगवान हमारे दिल में हमारे भीतर है| यदि आप उसे
भीतर महसूस करेंगे, बाहर भी आप उसे ही देखेंगे, फिर सब कुछ वही हो जाता है|
मैं अक्सर कहता हूँ कि
लोग कहते है ईश्वर नज़र नहीं आता, मैं कहता हूँ, ईश्वर के अलावा कुछ नज़र नहीं आता| हर एक बच्चे की आखों में देखे, हर बूढ़े व्यक्ति
की आँखों में देखे, युवा की आखों में देखे, उनके भीतर के चंचलता को देखे, ईश्वर वही
रहता है, सभी के भीतर बसता है|
भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में कहा
है, 'यो माम पश्यति सर्वत्र सर्वम च मई पश्यति, तस्याहं ना प्रनाश्यामी स च में न प्रनाश्यती| जो व्यक्ति मुझे हर जगह देखता है और मुझमें सब कुछ देखता है, उसका कभी विनाश
नहीं होगा, मैं हमेशा उसके साथ हूँ और वह हमेशा मेरे साथ है|
मेरे यहाँ आने का एकमात्र उद्देश्य यही है, आप को यह याद दिलाना कि भगवान मौजूद है| वह कोई अन्य जगह में नहीं है या कोई है जो एक समय में अस्तित्व में रहा होगा; यह मामला नहीं है| वे यहाँ है, इसी वक्त| भगवान मतलब वही सिद्धांत जो सर्वव्यापी है, जो सब में है, और अनन्त है| ऐसा नहीं है कि वह पांच हजार साल या दो हजार साल पहले अस्तित्व में थे, या किसी एक समय अस्तित्व में थे और आज नहीं है| ऐसा नहीं है| वह अभी यहाँ मौजूद है, हमारे भीतर| हम सभी को यह बात याद रखने की जरूरत है|
यदि आप पूछे, 'गुरुजी, इसका क्या लाभ है?' तो मैं कहता हूँ कि 'आपको क्या नहीं मिलेगा?' सब कुछ! हम जो भी चाहते हैं वह काम सहज ही हो जाएगा| एक तृप्ति की भावना होगी, शरीर स्वस्थ रहेगा, समाज में सदभाव होगा, शांति, प्रेम होगा, परिवार के भीतर शांति का माहौल होगा, और जो भी आप इच्छा करते है, वह पूरी होता है|
आप में से कितने लोगों को लगता है कि आप का काम हो रहा है? यह एक सिद्ध ज्ञान है| कई युगों से, लोगों ने कहा है कैसे ध्यान और प्राणायाम के माध्यम से, आप भीतर की शक्ति को जगा सकते है| एक बार यह ऊर्जा पैदा होते ही, देवी शक्ति के साथ कड़ी स्थापित हो जाएगी|
मेरे यहाँ आने का एकमात्र उद्देश्य यही है, आप को यह याद दिलाना कि भगवान मौजूद है| वह कोई अन्य जगह में नहीं है या कोई है जो एक समय में अस्तित्व में रहा होगा; यह मामला नहीं है| वे यहाँ है, इसी वक्त| भगवान मतलब वही सिद्धांत जो सर्वव्यापी है, जो सब में है, और अनन्त है| ऐसा नहीं है कि वह पांच हजार साल या दो हजार साल पहले अस्तित्व में थे, या किसी एक समय अस्तित्व में थे और आज नहीं है| ऐसा नहीं है| वह अभी यहाँ मौजूद है, हमारे भीतर| हम सभी को यह बात याद रखने की जरूरत है|
यदि आप पूछे, 'गुरुजी, इसका क्या लाभ है?' तो मैं कहता हूँ कि 'आपको क्या नहीं मिलेगा?' सब कुछ! हम जो भी चाहते हैं वह काम सहज ही हो जाएगा| एक तृप्ति की भावना होगी, शरीर स्वस्थ रहेगा, समाज में सदभाव होगा, शांति, प्रेम होगा, परिवार के भीतर शांति का माहौल होगा, और जो भी आप इच्छा करते है, वह पूरी होता है|
आप में से कितने लोगों को लगता है कि आप का काम हो रहा है? यह एक सिद्ध ज्ञान है| कई युगों से, लोगों ने कहा है कैसे ध्यान और प्राणायाम के माध्यम से, आप भीतर की शक्ति को जगा सकते है| एक बार यह ऊर्जा पैदा होते ही, देवी शक्ति के साथ कड़ी स्थापित हो जाएगी|
देखो, एक सेल फोन को चलाने
के लिए, तीन चीजे आवश्यक हैं: एक सिम कार्ड, एक बैटरी जिसमे चार्ज है और नेटवर्क
सीमा के भीतर ही रहना पड़ेगा| अगर फोन में सिम कार्ड है, लेकिन
बैटरी में कोई चार्ज नहीं है, तो उसका क्या उपयोग होगा? वह काम नहीं करेगा| आजकल, हर कोई एक सेल फोन का उपयोग करता है, तो वे सभी सेल फोन की भाषा को
समझते हैं| उसी तरह हमारे जीवन में जो श्रद्धा है, वह 'सीमा'
है, हम जो आध्यात्मिक क्रिया (साधना) करते है, वह 'चार्ज' है, और सेवा सिम कार्ड का
काम करता है| हमें यह याद रखना पड़ेगा कि तीनो चीज़े हमारे जीवन
में जरुरी है|
"कोई व्यक्ति गैर नहीं है| सभी मेरे अपने हैं", यह रवैया, इसी भावना को सत्संग
कहते है| सत्संग का
मतलब यह नहीं है, सिर्फ भजन किया और चले गए| इसका मतलब है सत्य के संग| सच क्या है? कोई भी
व्यक्ति गैर नहीं है| कोई मनुष्य सिख, ईसाई, हिंदू या मुसलमान
हो सकता है;सभी मानव एक ही ईशवरीय शक्ति से सम्बंधित
है| वेदों ने उजागर किया, ‘सकला वेद प्रतिपाद्य आत्मा रूपं', मेरे भीतर वहीँ छिपा है| उस शक्ति को पहचाने| फिर चेहरे पर वह
मुस्कान होगी जो कभी मिटाई नहीं
जा सकती| क्या हमे जीवन से यही नहीं चाहिए; एक मुस्कान जो कभी
मिटायी नहीं जा सकती, एक प्यार जो कभी कम न हो, एक जीवन जो कभी
न टूटे| वह कभी नहीं टूटता, लेकिन यह लगता है कि टूटा हुआ है|
जीवन एक अनन्त धारा है| हम यहाँ कई युगों
से आते रहे है| यहाँ आ रहे हैं| आप यहाँ
कई बार आए हैं, और मैं भी| हम सब इस ग्रह पर कई बार आये है| यह है कि आप भूल गए| यही कारण है कि आप इतने परेशान रहते हैं| हालांकि, जैसे
जैसे आप साधना, ध्यान, प्राणायाम और सुदर्शन क्रिया करना शुरू करते है, एक नई रोशनी
दिखाई देने लगती है| एक उद्गार निकलता है - 'वाह! मैं बेवजह परेशान रहा, न तुक न किसी कारण के लिए| इस ज्ञान को जगाना चाहिए| क्या आप इस तरह से महसूस करते
है? आप में से कितने लोगो को लगता है कि आपका जीवन बदल गया है? और जब हम बदलते है, हम दूसरों को प्रेरणा देने के लिए सक्षम हो
जाते है| ऐसा लगता है कि धुळे में बहुत सारे फूल हैं! (वह
जगह जहाँ सत्संग का आयोजन किया गया था)| हर किसी के लिए इस तरह
की विशाल माला! हालांकि, मैं आप जैसे खिले फूल चाहता हूँ, जो कभी नहीं मुरझाए|
तीस साल बीत चुके हैं, इस अभियान को मैंने द्वारा शुरू किये हुए| एक सौ बावन देशों में, लोग सत्संग, साधना और भक्ति में लगे हुए हैं| लेकिन यह पर्याप्त नहीं है| अभी बहुत लंबा रास्ता तय करना है| हमे इस देश में अभी कई सुधार लाने है| आप सब यह सोचिये की बारहवीं सदी में, हर प्रान्त में कितने सारे संत थे, जो भजन और कीर्तन करने के लिए सड़कों पर निकल पड़े थे| अठारहवें सदी में एक अंग्रेज ने लिखा, 'मैंने भारत भर में यात्रा की, लेकिन मुझे एक भी भिखारी कंगाल, या अशिक्षित व्यक्ति नहीं मिला| इतना समृद्ध देश था यह| लेकिन पिछले दो तीन सौ वर्षों में, देखो हम कहाँ गिर गए है (पतन होना), क्या दशा हुई है हमारी| वे कहते हैं कि अंग्रेजो ने सोने की नौ सौ जहाज भरके यहाँ से सोना लिया| वे लूटते लूटते थक गए| इतना समृद्ध राष्ट्र था हमारा, जब हमारे देश ने आध्यात्मिक ऊंचाइयों को प्राप्त किया|
तीस साल बीत चुके हैं, इस अभियान को मैंने द्वारा शुरू किये हुए| एक सौ बावन देशों में, लोग सत्संग, साधना और भक्ति में लगे हुए हैं| लेकिन यह पर्याप्त नहीं है| अभी बहुत लंबा रास्ता तय करना है| हमे इस देश में अभी कई सुधार लाने है| आप सब यह सोचिये की बारहवीं सदी में, हर प्रान्त में कितने सारे संत थे, जो भजन और कीर्तन करने के लिए सड़कों पर निकल पड़े थे| अठारहवें सदी में एक अंग्रेज ने लिखा, 'मैंने भारत भर में यात्रा की, लेकिन मुझे एक भी भिखारी कंगाल, या अशिक्षित व्यक्ति नहीं मिला| इतना समृद्ध देश था यह| लेकिन पिछले दो तीन सौ वर्षों में, देखो हम कहाँ गिर गए है (पतन होना), क्या दशा हुई है हमारी| वे कहते हैं कि अंग्रेजो ने सोने की नौ सौ जहाज भरके यहाँ से सोना लिया| वे लूटते लूटते थक गए| इतना समृद्ध राष्ट्र था हमारा, जब हमारे देश ने आध्यात्मिक ऊंचाइयों को प्राप्त किया|
किसी ने मुझे हाल ही में पूछा, 'गुरूजी, इतना आध्यात्मिकता होने
के बावजूद, हमारे देश में गरीबी क्यों है? जब आध्यात्मिकता
अपनी चरम पर थी, तब गरीबी नहीं थी| भ्रष्टाचार मौजूद नहीं था| यह कहाँ था, बारहवीं सदी
में, सोलहवीं सदी में,
जब देश में इतने सारे संत थे, और आध्यात्मिकता की ऐसी लहर उठी थी?
कर्नाटक में, पुरानधारा दासा, रामानुजाचार्य, माधवाचार्य, कनका दासा ने पांडुरंग विट्ठला के बारे में इतने सारे भजन गाए| यहाँ, महाराष्ट्र में, नाम देव, संत तुकारामजी, न्यान्देव महाराज जैसे संत हुए| महाराष्ट्र में गरीबी कहाँ थी? उत्तर भारत में, हमारे पास कबीर, मीरा, गुरु नानक देव और कई सूफी संत थे| एक संत थे, शिशुनाला शरीफ जो काबुल, अफगानिस्तान से कर्नाटक आये, और गोविंदाचार्य के शिष्य बन गए| अपने गीतों के लिए वो आज तक प्रसिद्ध हैं| इसी तरह पंजाब में बुल्लेह शाह थे जिन्होंने कई सारी कविताओ और सूफी गीतों की रचना की| जब आध्यात्मिकता इस देश में समृद्ध हुई, न तो गरीबी थी, और न ही बीमारी है, और न ही भ्रष्टाचार था| आज हमने सब कुछ खो दिया है| भ्रष्टाचार की इतनी वृद्धि हुई है कि लोग परेशांन हो गए है| इस प्रक्रिया में हमने हमारे अध्यात्म को भी खो दिया| धर्म के नाम पर सिर्फ औपचारिक रूप से लोग अनुष्ठान या समारोह करते हैं| यह नहीं होना चाहिए| मानवता जागृत होनी चाहिए और मानवता जागृति को ही मैं अध्यात्मिकता कहूँगा|
कर्नाटक में, पुरानधारा दासा, रामानुजाचार्य, माधवाचार्य, कनका दासा ने पांडुरंग विट्ठला के बारे में इतने सारे भजन गाए| यहाँ, महाराष्ट्र में, नाम देव, संत तुकारामजी, न्यान्देव महाराज जैसे संत हुए| महाराष्ट्र में गरीबी कहाँ थी? उत्तर भारत में, हमारे पास कबीर, मीरा, गुरु नानक देव और कई सूफी संत थे| एक संत थे, शिशुनाला शरीफ जो काबुल, अफगानिस्तान से कर्नाटक आये, और गोविंदाचार्य के शिष्य बन गए| अपने गीतों के लिए वो आज तक प्रसिद्ध हैं| इसी तरह पंजाब में बुल्लेह शाह थे जिन्होंने कई सारी कविताओ और सूफी गीतों की रचना की| जब आध्यात्मिकता इस देश में समृद्ध हुई, न तो गरीबी थी, और न ही बीमारी है, और न ही भ्रष्टाचार था| आज हमने सब कुछ खो दिया है| भ्रष्टाचार की इतनी वृद्धि हुई है कि लोग परेशांन हो गए है| इस प्रक्रिया में हमने हमारे अध्यात्म को भी खो दिया| धर्म के नाम पर सिर्फ औपचारिक रूप से लोग अनुष्ठान या समारोह करते हैं| यह नहीं होना चाहिए| मानवता जागृत होनी चाहिए और मानवता जागृति को ही मैं अध्यात्मिकता कहूँगा|
तो आज हम एक प्रतिज्ञा करते है कि हम रिश्वत
नहीं लेंगे न देंगे| यह अत्यंत जरुरी है| हम सभी सौ प्रतिशत मतदान सुनिश्चित करने में मदद करेंगे| जब कभी चुनाव होता है, हम मत देंगे और जो मत नहीं देते, हम सुनिश्चित करेंगे की वे भी अपना मत
दें| सभी को मतदान करना चाहिए| तीसरा, हम
अपना ध्यान स्वछता पर केन्द्रित करेंगे; हमारे भीतर और समाज के भीतर| यदि जीवन चावल है, वह खाने योग्य तभी
बनता है जब उसे भजन कीर्तन और प्रेम के पानी में उबाले या अगर उसे सत्संग और ज्ञान
के धूप में तपाया जाए, वही चावल का परिवर्तन मुरमुरे में हो जाता है, जो खाने योग्य
होता है| उसी तरह, आओ सत्संग, ज्ञान और ध्यान के द्वारा हम सब खिल जाए और यह पर्याप्त
नहीं है कि सिर्फ हम ही खिल जाए, दूसरो तक भी यह पहुचना चाहिए| हमे यह सेवा करनी होगी| अब मुझे बताओ, कितने लोगों को शरीर में दर्द, सिरदर्द, पैर, उपरी और नीचे की पीट में दर्द है?
यह क्यों है आप को पता है? क्योकि हम यूरिया और अन्य रसायन मिलाते है जो ज़मीन और पानी को प्रदूषित कर देती है| जब हम ऐसी मिटटी में उगा हुआ अनाज खाते हैं तो हमें पीठदर्द, सिरदर्द, सिर से पैर
के अन्गुते तक दर्द होता है और हमारा ह्रदय कठोर हो जाता है|
पूरे शरीर में दर्द होता है और ह्रदय निष्टुर होता है| इसीलिए
हमे जैविक खेती, मतलब रसायन मुक्त
खेती करनी चाहिए| हमें पानी और ज़मीन को ज़हरीले पदार्थो से रक्षण
करना होगा| हमे आयुर्वेद का उपयोग करना चाहिए| हमारे देश की यह पौराणिक परंपरा है, और हम उसे भूल भी चुके है| हमे आयुर्वेदिक औषधियों का उपयोग करना चाहिए| आयुर्वेद
में, उपचार से ऐसे रोग को ठीक किया जा सकता है, जिनका उपचार एलोपेथिक औषधियों से नहीं
होता| उदहारण के तौर पर, संधिवाद वती से
जोड़ो का दर्द और शरीर का दर्द मिटाया जा सकता है| दो से तीन बार
त्रिफला लेने से, पेट को साफ़ किया जा सकता है| जब पेट साफ़ होता
है, रोग भी ठीक होने लगते है| हम बेवक्त पद्धति से खाना खाते
है| जब भी हमे कुछ मिलता है,तो हम पेट खा लेते हैं और फिर बीमार पड़ते है| शरीर आयुर्वेद
और योगासन से साफ़/स्वस्थ होता है| प्राणायाम द्वारा, मन, प्राण
शुद्ध, स्थिर और कम्पन रहित होता है और
चित में, अमल, आवरण और विक्षेप दूर होता है| भजन और कीर्तन द्वारा,
मन और भावना शुद्ध होती है| ज्ञान के द्वारा, बुद्धि शुद्ध होती
है| हमे बैठकर ज्ञान का श्रवण करना चाहिए| "जीवन क्या है? मैं कौन हूँ? मुझे क्या चाहिए जब हम ऐसा विचार करते है,
बुद्धि शुद्ध होती है| प्राणायाम द्वारा, बुद्धि शुद्ध होती है| स्वयं की शुद्धिकरण के लिए, ध्यान करना चाहिए|
जिस तरह से, शरीर की पुष्टि
के लिए अन्न है, आत्मा के लिए, ध्यान को पुष्टि वर्धक मान लीजिये| थोड़े थोड़े समय
के लिए बैठिये और शांत हो जाए, आप में एक गज़ब का आत्मविश्वास पैदा होगा| दान के द्वारा धन की शुद्धि होती है| अगर हम कमाया हुआ
सौ प्रतिशत अपने आप पर खर्च करते है, वह सही नहीं है| हमे अपने
आय में से दो, तीन, पाच या दस प्रतिशत तक समाज और दूसरो पर उपयोग करना चाहिए| थोडा सा घी, अन्न को शुद्ध करता है| कहते है, अगर आप
चावल या रोटी ऐसे ही खाते हे (घी के बिना), चुकी वो कार्बोहाइड्रेट है, इसिलए उसका
जल्द ही खंड/शक्कर में परिवर्तित होने की सम्भावना काफी ज्यादा है| तबीब का कहना है, आधा चमच घी, या केवल एक बूँद घी मिलाने ने से, पाचन धीमा
हो जाता है और मधुमेह या हृदयरोग बिशाक्त नहीं होता| कुछ प्रमुख
ह्रदय चिकित्सको का यह मत है कि, ज्यादा नहीं, थोडा सा, आधा चम्मच या उससे भी कम मेद या घी या कोई स्निग्ध पदार्थ जरुर खाना चाहिए|
हमारे समाज की यह प्रथा है, पंडित और पुरोहित कहते थे, अन्न शुद्धि,
के लिए केवल एक बूँद घी अन्न पर उडेलना चाहिए| जो भोजन पकाते
है, वह पकाते वक्त केवल आधा चमच घी मिला सकते है|
सेवा से कर्मों
की शुद्धि होती है। सब के लिये सेवा
महत्वपूर्ण है। अपना घर और शहर स्वच्छ रखना चाहिये। धुले मे जहाँ भी कचरा एकठ्ठा हुआ
है उस कलोनी के सब लोगो ने रविवार सुबह नौ से ग्यारह बजे एकत्र हो के परिसर की सफ़ाई करनी चाहिये। जहाँ भी नालियोँ में कचरा
भरा है एकत्र होकर गंदी नालियाँ साफ करनी
चाहिये। पेड लगाने चाहिये। मैने आते वक्त रास्ते में बहुत सुखापन देखा। सुखापन
रहा तो भुगर्भीय जल का स्तर और नीचे
चला जायेगा। यहाँ पानी का अभाव हैं अगर हमें
और पानी लाना है तो हमे उसके लिये काम करना पडेगा। प्रार्थना करनी पडेगी। प्रार्थना
का भी पानी पर असर होता हैं। दिल से निकली हुई आवाज सुनी जाती है। प्रार्थना के साथ आप ने अपना
कर्तव्य भी करना चाहिये। पेड लगाने चाहिये बारिश का पानी बारिश के दिनों मे एकत्र करना
चाहिये। अगर हम हर घर में कुछ ना कुछ करेंगे तो इससे बडा परिवर्तन होगा। अगर आप के
मन मे कोई चिंता परेशानी है तो मुझे दे दिजिये। वो सब मुझे दे दिजिये। मै यही चाहता
हूँ कि आप अपना जीवन ईश्वर पर केंद्रित करें और हँसते हुये खुशी सें गुजारें। मुझे आप के चेहरे
पर जितनी ज्यादा प्रतिबद्धता प्रेम और भक्ति दिखेगी उतना और आनंद मुझे मिलता है मुझे बस यही चाहिये। हर इंसान खिलके उठना चाहियें। भारत
का मतलब ही यही है कि यहाँ अभूतपूर्व
सुंदर लोग रहते है। मकर संक्राती अभी मनाई गयी है। तिलगुल घ्या गोड गोड बोला। मकर संक्रांती का
संदेश ही यही है कि हमनें तिल की तरह अपने आप को सधारण समझना चाहिये। अपने आप को बहुत ज्यादा महत्वपूर्ण व्यक्ति न समझे । एक तिल की तरह समझे । एक तिल को देखें वह बाहर से काला होता है और
अंदर से सफ़ेद।लेकिन आज कल उलटा है लोग अंदर से तो काले है लेकिन बाहर से सफेद दिखते हैं। हमें अंदर से भी साफ होना
चाहिये।हम तिल की तरह सामन्य है और गुड की तरह मीठे है| इस संदेश को न भूलिये। तो क्या है हम तिल भी और गुड भी।
मैं चाहता हूँ इस देश के हर गाँव मे अध्यातमिकता
की एक लहर उठे। हर गाँव मे लोग सत्संग करें कीर्तन करें भजन और ध्यान करें। एक सुंदर वातावरण फैलेगा, तो आप ये प्रतिज्ञा लें कि दस दस लोग मिलकर गाँव गाँव जायेंगे
कीर्तन करेंगे उनको ध्यान करवायेंगे और पूरे वातावरण को परिवर्तित करेंगे।
आप में से कितने युवा एक आदर्श दिव्य समाज के निर्माण के लिये छ: महिने या एक साल समर्पित करने के लिये तैयार है। मुझे सिर्फ युवाओं कि जरुरत है| तन से या मन से मन से युवा यानी जो बढती उम्र के बावजुद फुर्तीले
है। ऐसे मन से युवा भी चलेंगे। हम एक कार्यक्रम बनायेंगे जिसमे हम गाँव गाँव
मे जायेंगे और शराब और अन्य नशा को
छुडवाऐंगे और उन लोगों को घुल मिलके एकत्र रहनें के लिये प्रोत्साहित
करेंगे। आज कल एक प्रमाणपत्र बनाने के लिये रिश्वत देनी पडती है। अगर हमारे अंदर सत्य
और ईमानदारी है और हम यह तय करते है कि हम रिश्वत नही देंगे तो सारे सरकारी अधिकारी और कर्मचारीयों
को हमारी माननी पडेगी। अखिर उनमें भी थोडी इन्सानियत है। यह मत सोचिये कि वे जानवर है।हर एक के अंदर कही भगवतता छुपी होती हैं। हमें सिर्फ उसको उजागर करना है।
यह सच है कि आप सब दूध के धुले हैं यानी आप शुद्ध है, कितना अच्छा वचन है लेकिन यह
एक ताने की तरह प्रयोग होता है। जब एक काले तिल को धोते है तो वो सफेद
हो जाता है। वैसे ही हमारी गलतियाँ पाप बाहर के है उनको प्राणायाम ध्यान सेवा और महान
विचारों से धो डालिये। पूरी तरह से धो डालिये।
प्रश्न : मैं सेवा करना चाहता हूँ लेकिन शुरुवात कैसे करुँ।
श्री श्री रविशंकर : आप अपना नाम कार्यालय में दर्ज कराइये
हम आपको शामिल करवायेंगे। एक युवाचार्य आपको सेवा में शामिल करवायेंगे। किसी शिक्षक
के साथ जुड जायिये।
प्रश्न : गुरुजी मेरे पहिले से
एक गुरु है; मुझे आपसे मंत्र मिलेगा क्या।
श्री श्री रविशंकर : देखिये आप किसी और गुरु के साथ जुडे है तो उससे कोई परेशानी नही है। सिर्फ ऐसा सोचिये कि आप उनके
आशीर्वाद से सत्संग मे आये है। एक मे सब को देखिये और सब मे एक को।
प्रश्न : गुरुजी लोकपाल विधेयक से भ्रष्टाचार खत्म होगा या हमे और कुछ करना
पडेगा।
श्री श्री रविशंकर : लोकपाल विधेयक एक रोग के उपचार की तरह है जो रोग होने के बाद
करते है। मैं यह नही मानता कि एक कानून
से सब भ्रष्टाचार थम जायेंगा। लेकिन कानून बहुत जरुरी है । वह कहते है ना भय बिन प्रीत
ना होई गोसाई। इसिलिये भय जरूरी है। अगर डर है तो भ्रष्टाचार बंद होंगा। लेकिन
सिर्फ डर से काम नही चलेंगा। लोगों
को उसकी भी आदत हो जायेगी।एक अध्यात्मिक
जागृति होनी चाहिये| एक लहर समाज मे उठानी चाहिये
तब ही भ्रष्टाचार खत्म होगा। जब आत्मीयता खत्म होती है तो भ्रष्टाचार शुरु होता है। इसिलिये
अगर हम एक सौहार्दपूर्ण वातावरण तैयार करेंगे तो लाभकारी होगा। और अच्छे लोगों को चुनना चाहिये। अच्छे लोग राजनीति में आने चाहियें। यह जरुरी है।
प्रश्न :
गुरुजी आप सोनेगढ मे कब आयेंगे वहाँ बहुत ज्यादा धर्म परिवर्तन हो रहा है। हम क्या करें।
श्री श्री रविशंकर : देखो धर्मिक परिवर्तन नही होना चाहिये। यह देश के लिये अच्छा नही है। किसी ने अपना धर्म नही छोडना चाहिये। हमारा
प्राचीन धर्म है।इसमें सहिष्णुता है। यह
सबको अपनाता है। सबका ज्ञान अपनाता है। आप अपना धर्म त्याग क्यों करते हैं? जो और धर्मों के प्रेषितों ने कहा है वो हमारे धर्म में पहले से ही कहा गया है। भगवान
श्रीकृष्ण ने भी कहा है मैं आपको आप के सब पापों से मुक्त करुंगा। आप मुझ में शरण लें। मैं आपको सब पापों से मुक्त करुंगा। तो सबमे आस्था रखे। लेकिन अपना धर्म छोड कर दूसरा धर्म अपनाना ठीक नही
है। यह अपने पुर्वजों के प्रति असम्मान है।क्या आपके माता पिता दादा परदादा क्या मुर्ख थे? क्या इस देश की सभ्यता ठीक नही थी? जब हम अपनी विचारधारा छोड
कर किसी और की विचारधारा अपनाते हैं इसका मतलब है हमारी विचारधारा ठीक नही है। जब तक आप किसी विचारधारा की निंदा नही करते तब तक आप उसे अस्वीकार नही कर सकते। इसिलिये यह ठीक नही है।अपने धर्म की आलोचना ना करे और उसे अस्वीकार न करे। जिन्होने धर्म छोड
दिया है उनको वापस आने के लिये कहें। धर्म का मूल प्रेम है। प्रेम के पथ पर चलें और
किसी का अपमान न करें किसी के बारे मे बुरा न कहें। किसी को यह नही कहना चाहिये कि सिर्फ
मेरा धर्म ठीक है और सब गलत है। अगर कोई ऐसा कहता है तो आप सिर्फ हँस दीजिये और आगे बढ़े। कुछ मत सुने।
प्रश्न : गुरुजी भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को धर्म
के लिये युद्ध के लिये कहना और ओसामा ने जिहादीयों को युद्ध के लिये कहना इसमें फर्क
क्या है।
श्री श्री रविशंकर : आतंकवादी एक कायर होता है। वह सामने आकर युद्ध नही
करता। कायर छुपके घात करता है। भगवत गीता कही भी आतंकवाद की पुष्टी नही करती। वह कहती है अपना कर्तव्य कीजिये। एक पुलीस वाले को अपना कर्तव्य करना पडता है। अगर वह कहे मैं पुलीस का काम
छोड कर, केले बेचता या सब्जी
बेचता हूँ। मैं डंडा या बंदूक नही
पकडूँगा कोई बुद्धीमान व्यक्ति क्या कहेगा तुम अपना काम करो अगर आप पुलीस वाले हो तो पुलीस का काम करो।यही भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को कहा अपना काम करो। अपनी जनता की रक्षा
करो। उन्होने यह नही कहा कि
निहत्ते लोगों की हत्या करो। कभी नही। यह गलत है और इस तरह से सोचना भी गलत है। इसलिये आतंकवादी को
हम कायर कहते है। उसमे कोई वीरता नही है लेकिन युद्ध में लड़ने मे
वीरता है। आप यह नही कह सकते
कि विश्व के सारे सैनिक आतंकवादी
है। फौजी जवान या पुलिस आतंकवादी
नही है। कानून और व्यवस्था बनाये रखने के लिये
उनको यह करना पडता
है। और भगवान श्रीकृष्ण सिर्फ
कहते है कि अपको
अपने धर्म का पालन करना है। ओसामा बिन लादेन ने ये नही कहा। उन्होने कहा जो मेरे धर्म
के नही है उन्हे मार दो और कैसे छुपके से। वह युद्ध
के लिये सामने कभी नही आया। वह पाकिस्तान मे छुपके रहा। ये मुशरर्फ के लिये भी अच्छा था। ओसामा को पकडने का कारण देकर उन्होने
अमेरिका को अच्छी तरह से ऐठा। उन्होने ओसामा को पकडने के नाम से अमेरिका से करोडो डॉलर लिये। वे जानते थे कि ओसामा पाकिस्तान या उनके लिये सोने के अंडे
देने वाली मुर्गी
है। मुशरर्फ ने ओसामा को पकडने के बहाने से काफी पैसे बनाये और ओसामा को पकडा भी नही।क्यों पकडते? कायरों
को कभी भी वीर सैनिकों
की तरह नही देखा जायेगा। वे बिलकुल उलट होते है। इसलिये भगवत गीता आपको वीर होने कि शिक्षा देती है न कि कायर होने की।
प्रश्न : गुरुजी कुछ समय कुछ काम करते समय हमे यह पता होता है कि यह गलत है। फिर भी हम करते है। तो कोई इसको नियंत्रित कैसे
करें।
श्री श्री रविशंकर : मुख्य बात यह है
कि आपको ऐसा लगता है कि आपको यह करने से खुशी मिल रही है। प्रलोभन या सुख की चाह वहाँ छुपी हुई है तभी गलत काम होता है।
प्रश्न : गुरुजी इन दिनों छोटा परिवार रखने कि सिफारिश कि जाती
है। क्या इससे मातृक या
पितृक रिश्तों के एक बडे परिवार जैसे कि मौसी या चाचा को धक्का
लग रहा है।
श्री श्री रविशंकर : नही परिवार एकत्रित होना चाहिये। छोटा होना जरूरी नही
है। एक समय था जब लोग सोचते थे कि ज्यादा जनसंख्या
हमारे देश के लिये श्राप है।
अब वे अलग तरह से सोचते है। जनसंख्या एक वरदान है। इसे श्राप की तरह न देखे । अगर
आज ब्राजील, चीन और भारत शक्तिवान है तो इसका कारण जनसंख्या है और कुछ भी नहीं । यह देश विश्व
का सबसे बड़ा बाजार है।
अगर जनसंख्या कम होती तो हम और घोटालों से जूझते और प्रगति की कोई बात नही होती। इसका मतलब यह नही कि मैं जनसंख्या और बढाने की बात कह रहा हूँ । मैं यह नही कह रहा हूँ कि हमे
जनसंख्या और बढानी चाहिये लेकिन उसको
एक श्राप की तरह भी नही देखना चाहिये। यह हमारे लिये वरदान भी हो सकती है।
प्रश्न : गुरुजी ऐसा कहा जाता है कछुऐ की चाल से ही बाजी जीती जाती है। लेकिन यह आज के जमाने मे सही शिक्षा नही लगती। इस शिक्षा का आज
का संस्करण क्या होना चाहिये?
श्री श्री रविशंकर भीतर से शांत रहिये और कृत्य मे तेजी रखिये। बजाय अगर आप कृत्य मे शांत है और अंदर से विचलित है तो अच्छा नही है। अंदर
शांत होना चाहिये और कृत्य मे
तेजी चाहिये। लोग उल्टा करते है सोचते बहुत तेजी
से है लेकिन बाहर कृत्य बहुत धीमें से करते है। अंदर से बेचैन होते है और भागते रहते है
आर फिर बीमार होते है।
प्रश्न : गुरुजी लक्ष्मी की प्राप्ती का कोई आसान तरीका बतायें।
श्री श्री रविशंकर: कठोर
परिश्रम और आत्मविश्वास। आत्मविश्वास, संकल्प
और परिश्रम साथ चलना चाहियें।
प्रश्नः स्वप्न और वास्तविकता मे संतुलन कैसे बना के रखे। स्वप्न से और पाने की इच्छा होती है लेकिन जीवन
की वास्तवीकता हमे यथार्थावादी बनाती है।
श्री श्री रविशंकर: हाँ दैनिक जीवन
और स्वप्न मे तारतम्य होना चाहिये। आपने सोलापुर मे कल हुये तालनीनाद कार्यक्रम शायद देखा होगा। पहले लोग कहते थे कि तीन हजार लोगों के लिये तबला एक साथ बजाना मुश्किल होगा। वे कहते थे ताल नही बनेगा। लेकिन ताल साध्य हुआ पहली बार एक विश्वकिर्तीमान स्थापित हुआ और तीन हजार लोग एक साथ आये । हमें असंभव को संभव करना
चाहिये। मैं यह कहूँगा मुझे असंभव को
संभव करने की आदत हो गयी है। तो निश्चित रूप से बड़े स्वप्न देखिये और उसके साथ काम करते रहिये और उसी समय
मन मे वैराग्य रखिये।
वैराग्य का अर्थ सब भगवान का है भगवान की इच्छा है, मुझे
कुछ नही चाहिये तब आप अपने कर्मों से कीर्ती पायेंगे।
प्रश्न : अभी कुछ समय
पहिले मैंने सुना
कि पंढरपुर के हमारे एक युवाचार्य के आशिर्वाद से एक लकवा
मारा हुआ कोई व्यक्ति ठीक हुआ।
क्या हम भी इस तरह से आशीर्वाद दे सकते
है।
श्री श्री रविशंकर: हाँ यदि आप भी ध्यान
करते है ध्यान की गहन मे जाते है
और भक्त बनते है तो आपके आशिर्वाद भी काम करेंगे। जितने
हम पूर्ण होते है उतने हमारे आशीर्वाद असरदार
होते है। जितने लोग आज यहाँ बैठे हो हम थोडी देर बाद ध्यान करेंगे आप अपनी एक इच्छा
की पूर्ती की कामना कीजिये आपको
वह मिल जायेगी। देखते रहिये। तुलसीदासजी का एक दोहा है
‘ज़ो इच्छा करीहो मन माही प्रभु प्रताप कछु दुर्लभ ना ही’। जब हम भक्त
बनते है, नही
हम बन नही सकते हम अभी भी है; इस
विश्वास के साथ रहे कि ईश्वर के भक्त
होने के बाद हमारी ईच्छाऐ पूर्ण होंगी ।
प्रश्न : गुरुजी क्या
सुंदर लडकी से शादी करनी चाहिये या विद्वान लडकी से। दोनो मे से मैं किसका चुनाव करुँ।
श्री श्री रविशंकर: आप
ये मान कर क्यों चल
रहे है कि सुंदरता
और बुद्धिमत्ता एक साथ नही हो
सकती। क्या इनमे से एक एक ही
है? अगर यह स्थिति है
तो मैं यही कहूँगा बुद्धिमान बेहतर है। सुंदरता होती है लेकिन चली जाती है लेकिन बुद्धिमता रहती है लेकिन यह मत सोचिये कि
दोनो विशेषतायें एक साथ नही हो सकती। आपको दोनों साथ साथ मिल सकती है।
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