परमात्मा कभी भी आपको आत्मबोध से वंचित नहीं करेंगे!!!


०७.०२.२०१२, सत्संग, बैंगलुरू आश्रम
प्रश्न : गुरूजी, मौसम फिर से बदल रहा है। क्या आप हमें 'आहार-विहार', भोजन और दिनचर्या के महत्त्व के बारे में बता सकते हैं जो हमें बदलते मौसम के साथ बना के रखना चाहिए। यह हमें कैसे प्रभावित करता है?
श्री श्री रविशंकर : प्राचीन काल के लोगों ने इस पर काफी खोज की है। आज के आधुनिक युग के आहार विशेषज्ञ (नूट्रिशनिस्ट) ने भी इस पर खोज की है और आप अगर इसे गूगल पर जा कर देखें तो आपको इस संबंध में बहुत सारी जानकारी मिलेगी कि आप इस मौसम में  क्या चीज़ें है जिसे आप खा सकते है, आज सारा ज्ञान उंगलियों पर मौजूद है!
आयुर्वेद के अनुसार तीन मौसम हैं वात, पित्त और कफ। जब गर्मी का मौसम आएगा तो पित्त बढ़ जायेगा, इसलिए आपको पित्त को कम करने वाली चीज़ों का सेवन करना होगा।
प्रकृति ऐसी है जो सिर्फ वही वस्तु पैदा करती है जो उस मौसम के अनुकूल होती है। जैसे ठण्ड के मौसम में कद्दू और आवंला उगते हैं। यह ठण्ड में आवयश्क होते हैं और गर्मी में, तरबूज और गन्ना की पैदावार होती है और गन्ने का जूस बनता है।तरबूज कभी भी ठण्ड में नहीं आते हैं और हम कभी भी तरबूज को ठण्ड में नहीं उगाते। तरबूज हमेशा अभी के (गर्मी) मौसम में ही आता है। इसीलिए प्रकृति ने फल, सब्जी और सभी चीज़ें इस तरह कर रखी हैं कि वह समय और मौसम के अनुकूल हैं। लेकिन आज हम प्रकृति से भी आगे पहुँच गए हैं और हमारा शरीर इसी के हिसाब से ढल गया है। जबकि आप जब ऐसे मौसम होते है जहाँ केला, पपीता और आम उगते हैं वहां पर सेब कभी नहीं उगेंगे। आज हम यहाँ पर भी सेब खा सकते है, हम दूसरे जगहों से भी सेब यहाँ ले आये है।
जिस मौसाम में सेब उगते है, उसी मौसम में केला नहीं होता। नाशपाती, सेब, आड़ू, बेर, स्ट्रॉबेरी और चेरी यह सभी फल एक ही मौसम में उगाये जाते है, क्या ऐसा नहीं है?
जबकि आप वहाँ पाएंगे कि लोग पपीता और केला खा सकते है, जो वहाँ नहीं उगते। यह एक आदर्श है, पर आपको इसकी चिंता करने की जरुरत नहीं है क्योंकि आज आपका शरीर को सेब, अनानस सभी चीज़ों की आदत हो गई है, पर आप इस बात पर ध्यान दें कि एक समय के भोजन में आप एक ही तरह की चीज़ें खाएं।
मनन लीजिये आप केला, पपीता, चीकू और नारियल का सेवन एक साथ करते हैं, यह सभी ट्रोपिकल फल है। उसके बाद आप दूसरे समय में सेब, चेरी, और सभी एक जैसे फल एक साथ खा सकते हैं।

प्रश्न : गुरूजी, पूर्णिमा के दिन गहन पूजा का क्या महत्त्व है?
श्री श्री रविशंकर : प्राचीन सभ्यता के अनुसार पूर्ण चंद्रमा और नया चंद्रमा दोनों ही के उत्सव समान होते है, और उत्सव के समय हम बहुत से दिए जलाते हैं। जब कभी भी आप उत्सव देखते हैं तो, बहुत से दिए और बिजली से रोशनी क्रम में करते हैं, ऐसा है कि नहीं?
क्रिसमस की लाइट; उसे भी क्रिसमस की लाइट इसीलिए कहते हैं क्योंकि क्रिसमस के समय आप सभी जगहों को रोशन करते हैं। दीपावली में, बहुत सारे दिए जलने से उत्सव का माहौल हो जाता है। इसे ही गहन पूजा कहते हैं।
हमारा जीवन भी प्रकाश के समान है, इसलिए हम सभी को अपने अन्दर ज्ञान का प्रकाश करना चाहिए और उसे प्रेम के प्रकाश से रोशन करना चाहिए।
आप यहाँ भारत में पायंगे कि, दिए में पांच बत्तियां होती है और यह पांच बत्तियां पांच इन्द्रियों का प्रतीक होती हैं। यही मनोकामना है कि हमारी पांच इन्द्रियों में सदैव सजगता और प्रकाश बना रहे। 
हमारा शरीर दिए के सामान है और इसमें पांच इन्द्रियां हैं जो हमेशा सजग रहें।

प्रश्न : प्रिय गुरूजी, जब हमारे जीवन में सब बहुत बढ़िया चल रहा हो तो, फिर हम सहजता और नम्रता कैसे बनाये रखें ?
श्री श्री रविशंकर : सहजता बनाये रखना कठिन हो जाता है। बस आप स्वाभाविक बने रहें इतना ही काफी है और सेवा करें।
'सुख में सेवा और दुःख में त्याग' - अगर आप किसी दुखी व्यक्ति को सेवा करने को कहंगे तो वो नहीं करेगा। जब कोई परेशान या उदास है, और आप उन्हें सेवा करने को कहें तो वह नहीं कर पाएंगे। वह अपने दुःख में इतने डूबे हुए होंगें कि वह कुछ भी करने कि हालत में नहीं होंगें। उस समय उन्हें बस छोड़ देना चाहिए। जब आप उदास हों सब छोड़ दें और जब आप खुश हों तो सेवा करें। बस यही नियम बना कर रखें, सब बढ़िया होगा!

प्रश्न : गुरूजी, बहुत तरह की साधना, बहुत सारे चलन, पूजा, आसन, ध्यान, कीर्तन और प्रार्थना हैं। हमें यह कैसे पता चलेगा कि कौन सा सबसे सही है और कब करना उचित है?
श्री श्री रविशंकर : ध्यान सबसे उचित है। 
हर चीज़ का एक महत्व होता है। हर चीज़ का मान होता है, पर ध्यान से आप बहुत ही शांत हो जाते है, आप बहुत ही गंभीर हो जाते हैं। यह आपका उत्थान करता है, और पूजा, भजन और सभी चीज़ों को यह महत्व देता है। सेवा और सभी चीज़ों का महत्व और भी बढ़ जाता है जब आपके जीवन में ध्यान होता है। 

प्रश्न : गुरूजी, मुझे ऐसा महसूस होता है कि ईश्वर ने मुझे बिना किसी रूकावट के सभी सांसारिक वस्तु दी हैं पर आत्मबोध के विषय में मुझे अभी तक अनदेखा किया है और अभी तक मुझे वंचित रखा है? यह प्रतीक्षा क्यों है?
श्री श्री रविशंकर : नहीं, आपको वंचित नहीं रखा गया है। परमात्मा ने आपको कभी भी आत्मबोध से अनदेखा नहीं किया है। आप अपनी साधना, और सेवा करते रहें। और आप एडवांस कोर्से में यह समझ पायेंगे, जब आप 'मै' ध्यान में 'मै' बोलेंगे, तब आपको ऐसा पता लगेगा कि सब कुछ एक सपने जैसा है। सब कुछ बदलता रहता है, पर मुझ में कुछ ऐसा है जो नहीं बदलता। यही सही है!
ऐसा मत सोचें कि आपका आत्मबोध किसी एक दिन आत्मा की तरह आपके सामने आएगा और आप से कहेगा कि 'मैं यहाँ हूँ'! यह कभी नहीं होने वाला है।
आत्मा नाही ज्ञान का विषय है और नाही जानने का विषय है वह अपने आप में पहचान है।

प्रश्न : गुरूजी, हमें जीवनसाथी का चुनाव करने की क्या आवश्यकता है? जीवन अधिक सहज होगा जब हम या तो सबसे प्रेम करें या फिर किसी से भी नहीं?
श्री श्री रविशंकर : अब आप यह बताएं कि आपकी समस्या क्या है? आपका कोई जीवनसाथी है या नहीं? फिर मैं आपको बताता हूँ। या फिर कोई जिसे आप पसंद करते हैं, आपकी गर्लफ्रेंड आपसे चुनने और शादी करने के लिए कह रही है? मैं जानता हूँ कि क्या घट रहा है! आप मुझसे बहाने बना कर प्रश्न नहीं पूछ सकते हैं। 

प्रश्न : गुरुदेव, मेरे जीवन मैं एक नई समस्या आ गई है, फेसबुक और इंटरनेट की वजह से। मेरी पत्नी मेरे फेसबुक में शामिल मेरी महिला मित्रों को देख कर दुखी हो जाती है, पर जब वह अपने पुरुष मित्रों के साथ इंटरनेट पर होती है तो बड़ी सहजता से उनसे मित्रता करती है। यह मैं कैसे सही करूँ?
श्री श्री रविशंकर : फिलहाल मेरे पास ऐसी समस्या को संभालने का कोई अनुभव नहीं है। आप अपने मित्रों से ही पूंछें, वह ही आपको कोई उपाय सुझा सकते हैं। और क्यों नही आप खुद अपनी पत्नी से ही पूंछें? आप उनसे पूंछें कि इसे कैसे सुलझा सकते हैं। आपको पता है एक कहावत है' चोर को चाबियाँ दे दें, और उसे ही चौकीदार बना दें', इसलिए जब भी कोई समस्या हो उसका समाधान करने की कोशिश करें। आप उन्हीं से इसका समाधान करने का तरीका पूंछें। फिर देखे क्या होता है!

प्रश्न : गुरूजी, आप कभी कभी हम से कहते हैं कि ध्यान के समय एक मनोकामना अपने मन में रख कर बैठें और वह पूरी हो जाएगी। कृपया मुझे बताएं कि क्या यह बात वेबकास्ट के दर्शकों पर भी लागू होती है?
श्री श्री रविशंकर : हाँ, जब आप ध्यान करते हैं तो ऐसा संभव हो जाता है। क्यों नहीं ऐसी कोशिश करके देखें? मैं ऐसी गारंटी तो नही दे सकता, पर आप एसी कोशिश करके देखें|

प्रश्न : आध्यात्मिक मार्गदर्शक वास्तविक में क्या होते हैं? क्या वास्तविक में इनका कोई अस्त्तित्व होता है? कभी-कभी मुझे कुछ अलौकिक चीज़ों की उपस्थिति महसूस होती है। मुझे क्या करना चाहिए? क्या यह स्वाभाविक है?
श्री श्री रविशंकर : नही, आप इसकी चिंता करें। आप इस विषय पर न जायें।
जो भी आपके पास अभी है वह उससे कहीं ऊँचे स्तर का है। अगर आप उन आत्माओं के स्तर में जाते हैं तो आपका स्तर काफी नीचे चला जायेगा। हम जो भी यहाँ कर रहे हैं - वेदान्त, ध्यान और ज्ञान उन सभी का स्तर बहुत ऊपर है। अगर आपको उनके होने का आभास होता है तो आप हाथ जोड़ कर उन्हें कहे बस यही सही है।
लोग ऐसा कह सकते हैं 'वह मार्गदर्शक मेरे पास आते हैं और मुझसे बातें करते हैं', या 'वह मार्गदर्शक यह कहते हैं'
वह है तो पर वह दूसरी दुनिया है, हमें उसके बारे में सोचने की कोई आवश्यकता नही है। यह आवश्यक नहीं है। यह बहुत बड़ी उलझन पैदा कर सकता है, जिसे हम योगमाया के नाम से जानते हैं।

प्रश्न : हठयोग क्या होता है? क्या यह सामान्य योग से भिन्न है? इसकी क्या विशेषताएं हैं?
श्री श्री रविशंकर : हठयोग वह है जिसमें प्रयास की, शक्ति की आवश्यकता हो| जैसे कि आसन इत्यादि में यानि, आसन करते हुए थोडा हठयोग हो ही जाता है, लेकिन इसमें ज्यादा गहन न जाएं, क्योंकि इसमें गहन जाने के लिए यह बचपन से ही शुरू किया जाना चाहिए, इसकी साधना में कई वर्ष लग सकते हैं।
हठयोग पर महारत पा कर (लोगों ने) चलते ट्रक को रोकने या लोहे की सलाख के दो तुकडे करने जैसे काम किये हैं। थोड़ा बहत आसन करने से शरीर स्वस्थ्य रहता है; यह इसकी खूबी है।

प्रश्न : गुरूजी, महारास क्या होता है? क्या श्रीहरि (भगवान श्रीकृष्ण) आज भी महारास करते हैं?
श्री श्री रविशंकर : महारास यही है; सत्संग! जहाँ रस हो, जिसे पाकर सब इतने मस्त हो जाएँ, और प्रेम और आनंद का ऐसा अनुभव करें कि सब तरफ सिर्फ ईश्वर ही नज़र आये, वही है महारास।
जब सबकुछ भूलकर ऐसा अनुभव होने लगे तो जान ले कि महारास, ध्यान हो गया! ऐसे क्षण में इस बात की या उस बात की, कोई आकुलता नहीं बचती; जब सब सांसारिक वस्तुएं पूरी तरह भूल जाएं, मान लें की महारास हुआ। और इसका एक क्षणिक अनुभव होना ही काफी है, ऐसे एक अनुभव के बाद जीवन तन्मयता से, सुन्दरता से चलने लगता है।

प्रश्न : गुरूजी, सिन्दूर का क्या महत्व है? सिंदूर को सुहाग का प्रतीक क्यों माना जाता है? विवाह के बाद भी कुछ महिलाएं सिंदूर नहीं लगाती हैं, ऐसा क्यों?
श्री श्री रविशंकर : (माथे की ओर इशारा करते हुए) सिंदूर जहाँ लग जाता है वहां पिनियल ग्रंथि होती है। ईस उर्जाकेंद्र में, (विशेषकर हल्दी और चन्दन से बने हुए) सिंदूर लगाने से इसकी तरंगें पूरे शरीर को ऊर्जान्वित और मन को शांत और केन्द्रित रखती हैं, यह खासकर उन महिलाओं के लिए अच्छा है जो अधिक भावनात्मक होती हैं। और दूसरे, यह प्रसाधन का हिस्सा है| इससे सौन्दर्य बढ़ता है। विश्व के सभी हिस्सों में ऑस्ट्रेलिया, कनाडा या अफ्रीका में आदिवासी परंपरा में माथे पर किसी--किसी तरह की बिंदी लगाने की प्रथा रही है। भारतीय परंपरा में तो यह बहुत पुरातन है| जब कोई अतिथि घर आता है तो स्वागत में उसे छोटा तिलक लगाया जाता है यह दर्शाने के लिए कि वह सुशिक्षित, सुसंस्कृत, शांत और शालीन है। हल्दी के उपयोग बिना किसी भी शुभ काम की शुरुआत नहीं होती;
(विज्ञान के अनुसार) हल्दी से बेहतर दूसरा एंटी-औक्सिडेंट है ही नहीं; यह कई बीमारियाँ रोकता है। और, किसी वैज्ञानिक ने कहा था कि हमारे भौहों के नीचे, आँखों के बीच और माथे में ऊपर की ओर इन तीन स्थानों पर तीन अलग-अलग तरह के जीवाणु रहते हैं। जब पुरुष भस्म का और महिलायें सिन्दूर का प्रयोग करते हैं तो इन जीवाणुओं के कुप्रभाव से पीनियल ग्रंथि बची रहती है।
बात जो भी हो, इसे अपने संस्कार का एक प्रतीक मान कर इसका प्रयोग करें।
एक बार जब मई मैं राजस्थान गया था, वहां, जीवन-यापन के लिए महिलायें बिंदियाँ बनाती हैं, उन्होंने बताया कि पिछले पांच-सात सालों में उनकी आमदनी घटकर एक चौथाई रह गयी है क्योंकि अब कोई इनका उपयोग नहीं करता, वे बहुत परेशान थीं। मैंने उनसे वायदा किया कि मैं सभी महिलाओं से बिंदी का उपयोग करते रहने की बात कहूँगा ताकि उनका व्यवसाय चलता रहे; इसलिए सभी महिलाओं से मैं हमेशा यह कहता हूँ कि बिंदी अवश्य लगाएं।

प्रश्न : गुरूजी, आप आतंकवादियों और नक्सलियों को तो गले लगा लेते हैं, परन्तु मेरे तरफ देखते भी नहीं। आपके प्रेम में कभी कभी ऐसा विचार आता है कि मैं भी उनकी तरह बन जाऊं!
श्री श्री रविशंकर : तुम मेरे इतने करीब हो, मैं तुम्हे कैसे देखूं? जो दूर हो उसे ही तो देखा जा सकता है; तुम्हारे ह्रदय में मैं हूँ, और मेरे ह्रदय में तुम, तो गले लगाने की आवश्यकता ही कहाँ हैं!

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