"समर्पण से जीवन पवित्र हो जाता है"

प्रश्न : पंडित, ज्योतिषाचार्य और मनोवैज्ञानिकों के भविष्य कथन को कितना महत्व देना चाहिये?

श्री श्री रवि शंकर : इसको हल्के रूप में लेना चाहिये क्यों कि सब बदल रहा है। आप को ज्योतिषी जो भी बताये उसे पूरी नहीं मान लेना चाहिये। ज्योतिष शास्त्र विज्ञान है, पर सब ज्योतिषी वैज्ञानिक नहीं हैं, इसलिये सोच समझ कर मानना चाहिये।

प्रश्न : प्रिय गुरुजी, मैं पिछले बीस साल से अपनी आमदनी का एक हिस्सा समाज के उद्धार के लिये देता आ रहा हूँ। क्या आप आध्यात्मिक पथ पर दान के महत्व पर प्रकाश डालेंगे?
- आपका आभारी और स्नेही


श्री श्री रवि शंकर : हाँ। हाँ, समाज को किसी भी रूप में कुछ वापस लौटाना बहुत महत्वपूर्ण कार्य है। एक कहावत है - ‘एक बूँद घी, चावल को पवित्र कर देता है’। जैसे थोड़ा सा घी चावल को पवित्र कर देता है, वैसे ही दान भी धन को पवित्र कर देता है। जब आप अपने अर्जित धन का एक हिस्सा किसी अच्छे कार्य हेतु दान में देते हो, तो आपका जो बचा हुअ धन रहता है, वह पवित्र होता है। इसी तरह तन शुद्ध होता है स्नान से, मन शुद्ध होता है प्राण शक्ति से - प्राणायाम व ध्यान से, और बुद्धि शुद्ध होती है ज्ञान से। हम जब ज्ञान की बातें सुनते हैं तो पवित्र होते हैं।

जब तुम ज्ञान की बातें सुनते हो, जैसे योग वशिष्ठ, अष्टावक्र गीता आदि, तो अंदर से एक ‘वाह!’ का स्फुरण होता है। तो जैसे बुद्धि पवित्र होती है ज्ञान से, वैसे जीवन पवित्र होता है समर्पण से।

प्रश्न : प्रिय गुरुजी, हम कई लोग जो आध्यात्म के पथ पर हैं, केवल अपने लिये ही दिव्यता नहीं चाहते, समाज के अन्य लोगों के लिये भी चाहते हैं। क्या ऐसा दिव्य मानवों का समाज इस धरती पर कभी हुआ है और क्या हम ऐसे समाज की कल्पना अपने भविष्य के लिये कर सकते हैं? क्या यह सपना एक पागलपन होगा?

श्री श्री रवि शंकर : तुम्हें पागल बन कर ही कल्पना करनी चाहिये, हरेक व्यक्ति को कोई स्वप्न देखना चाहिये। जानते हो, जो भी तुम्हे असम्भव लगे, उसका तुम्हें स्वप्न देखना चाहिये और उसे सम्भव में परिवर्तित करना चाहिये। हमने ऐसा एक गाँव में कर दिखाया। यह एक बदनाम ग्राम था, जहाँ कोई भी पाँच-छह बजे के बाद नहीं जाता था। वहाँ चोरी, लूट और अन्य अपराधों का बोल बाला था। वहाँ हमारे एक आर्ट ऑफ लिविंग टीचर ने जाकर तीन महीनों में उस ग्राम का नक्शा ही पलट दिया! उस ग्राम को अपना कर, सबको कोर्स कराया । हैरानी की बात यह कि अब वहाँ छोटे, बड़े, सब गाते, नाचते हैं सत्संग में और उन्होने खुद नियम बना लिया है कि वहाँ नशेबाजी करने वाले को दंड भुगतान करना होगा। परिणाम स्वरुप यह पूरा ग्राम अब नशामुक्त है और लोग रासयनिक मुक्त खेती भी करते हैं। मैं उस ग्राम की एक सी.डी. लाया हूँ यहाँ।

मेरे पिछले दौरे के समय स्वमी प्रज्ञापाद्जी ने मुझे बताया कि इस गांव में एक दुकान है जहाँ पर कोई दुकानदार नहीं होता और दुकान ठीक रूप से चलती भी है। लोग सामान लेते हैं और पैसे वहाँ पड़ी टोकरी में डाल देते हैं। अन्य लोग आश्चर्यचकित हैं कि यह ग्राम ऐसे ढाई साल से इसी तरह चल रहा है, जहाँ कोई पहरेदार नहीं, कोई चोरी नहीं! और वहाँ कोई ताला भी अब नहीं लगाता है - किसी भी घर के दरवाजे पर ताला नहीं है। ऐसा ग्राम जहाँ दरवाजे बिना ताले के हैं, यह ग्राम स्वावलंबी और आत्मनिर्भर ग्राम बन गया है। यहाँ पूरे ग्राम के पीने के लिये शुद्ध पानी की व्यवस्था है, पूरा ग्राम गुलाबी रंग से पुता हुआ है। सबने एकता दिखाते हुये गुलाबी रंग से ही अपने मकानों को रंगना मंजूर किया। भारत सरकार और महाराष्ट्र सरकार ने इस ग्राम को पुरस्कार स्वरूप धन राशि देकर और सर्वश्रेष्ठ आदर्श ग्राम की उपाधि से सम्मानित किया है। और आप जिसे पागलपन का स्वप्न कहते हैं, वैसा ही एक स्वप्न, सिर्फ एक टीचर ने देखा और उसे साकार भी कर दिखाया!

इस ग्राम के परिणाम को देख कर अब हमारे साथ १८० ग्राम, आदर्श ग्राम बनने की कतार में लग गये हैं!

नई दिल्ली में कुछ अपने स्वयंसेवियों ने [common-wealth games कामनवेल्थ] एशियन गेम्स के पहले नगर की सफाई करने की सोची, क्योंकि वहाँ लोग कचरा कूड़ा आदि निकाल कर सड़कों पर ड़ाल देते हैं जिससे बहुत गंदगी फैली हुई है। तो इन सेवकों ने इस विचार को फलीभूत करने की सोची।

लोग अक्सर सरकार को दोष देते रहते हैं पर कार्य नहीं करते।सरकार पर निर्भर होने के बदले में इन मुठ्ठीभर आर्ट ऑफ लिविंग स्वयंसेवकों ने कार्य करना शुरु किया | उन्होंने लाखों लोगों को झाड़ू लेकर आने और प्लास्टिक व अन्य कचरा हटाकर, पूरे नगर की सफाई करने के लिये प्रेरित किया! १२ सितम्बर से चल रहा है यह कार्य और १० लाख लोगों को शामिल कर लिया है इस अभियान में। दिल्ली की सरकार जो अब तक आर्ट ऑफ लिविंग के किसी कार्य में सहायता देने में रुचि नहीं दिखा रही थी, किसी समारोह में शामिल नहीं होती थी, अब अचानक जागी है उनकी मदद के लिये! अब सरकार घोषणा कर रही है आर्ट ऑफ़ लिविंग के सुंदर कार्य का!

इसलिये जो तुम चाहते हो उस पर जरुर सोचो, विचार करो, और स्वप्न देखो कि क्या करना चाहते हो। यह शायद तत्काल फलीभूत ना हो पाये पर समय के साथ होगा!

प्रश्न : मैं अपनी शारीरिक इच्छाओं पर कैसे विजय पाऊँ?

श्री श्री रवि शंकर : य़ह तुम्हारी उम्र पर निर्भर करता है। यदि तुम नव-वयस्क हो, तो यह भावनाएं उठना स्वाभाविक है। तुम उसके लिये ज्यादा कुछ नहीं कर सकते हो। अपने आप को कार्य में व्यस्त रखो।
जब ज्यादा खाली समय पास में होता है, तो मन कामवासना की ओर भागता है। क्या तुमने इस बात पर गौर किया है, कि जब परीक्षा का समय होता है या अत्यन्त व्यस्त होते हो, या जब कुछ हासिल करना हो, किसी खेल कूद में भाग लेना हो या मन किसी अन्य विचार में उलझा हो तो आपको कामवासना का विचार नहीं सूझता है और ना ही कामवासना हावी होती है दिमाग पर। पर जब तुम खाली, बेकार बैठे रहते हो तब यह भूत जैसे सवार हो जाती है दिमाग पर। देखो, सम्भोग क्रिया कोई खराब बात नहीं है पर इसी में सब समय ध्यान लगा रहे, यह खतरनाक है। किसी समय एक तरह के सम्भोग में तृप्ति न होने पर दूसरे तरीकों पर जाने लगते हैं लोग, और मन में अनेक विभिन्न भ्रान्तियाँ और विकृतियाँ जन्म लेने लगती हैं।

सबसे अच्छा और सरल उपाय है प्राणायाम, जिसके करने से राहत मिलती है। और, अपने भोजन पर ध्यान देना। यदि तुम बहुत अधिक खाते हो तो अधिक शक्ति भी एकत्रित हो जाती है, जो फिर किसी और रूप में बाहर होने का रास्ता ढूँढती है। और यदि तुम किसी भी सृजनात्मक कार्य में व्यस्त नहीं रहते हो तब तो अवश्य ही अर्जित शक्ति दूसर रास्ता अपनायेगी। तो थोड़ा ध्यान भोजन की ओर देना। इसीलिये यह कहावत है कि, यदि जीभ पर काबू नहीं तो जननेन्द्रियों पर भी काबू नहीं, क्योंकि जननेंद्रिय और जीभ का एक दूसरे से संबंध है। भोजन और कामवासना का ताल-मेल है। कामवासना के विकारों से बचने का उपाय है हल्का और संयमित भोजन और प्राणायाम। प्राणायाम से अधिक मात्रा में उठने वाली प्रवृतियों पर काबू पाया जा सकता है।

संगीत, नृत्य आदि में रुचि, कुछ सृजनात्मक कार्य, चित्रकारी, लेखन, सुंदर वस्तुओं में रुचि आदि, ये सब भी सहायक होते हैं। जब तुम प्रसन्न रहते हो तब मन में काम वासना कम रहती है। पर यदि तुम दुखी, बैचेन, व्याकुल रहते हो तो तुम्हारा झुकाव कामवासना की ओर ज्यादा होगा। इसलिये ये सब बातें ध्यान में रखते हुए और अपने को व्यस्त रखकर तुम आसानी से सब दुविधाओं से पार हो सकते हो।

क्योंकि काम वासना में बहुत रुझाव रखने पर भी बात में अच्छा नहीं लगता और, इस प्रवृति को पूरा छोड़ने पर भी विक्षिप्त सी अवस्था में पड़ सकते हो। यह वयस्कपन की दुविधापूर्ण समस्या है, जिसका कोई आसान हल नहीं सिवाय अपने आप को खूब व्यस्त रखने के।
फिर इसके बाद है अधेड़ आयु के लोगों की मुश्किल!

मैं सब आयु के लोगों को ध्यान में रखते हुए इस समस्या का उपाय बता रहा हूँ। और ये सब बताये उपाय भी काम में नहीं आयें तो बस फिर वक्त का इन्तजार करो! जैसे जैसे उम्र बढ़ेगी, ये इच्छायें भी कम होती जायेंगी। तो समय खुद इसका समाधान कर देगा, हो सकता है जब तुम ६०, ७० या ८० वर्ष के हो जाओ| तब तुम चेतना का एक नयापन अनुभव कर सकोगे, मन शांत होगा ही और नई चेतना महसूस करोगे।

प्रश्न : हम बार बार जन्म और मृत्यु का अनुभव क्यों करते हैं?

श्री श्री रवि शंकर : शायद धरती को गले लगाने के लिये!


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