मुझे अपनी परेशानियाँ दे दीजिये और दिल से सेवा, साधना और सत्संग में जुट जाये!!!


मेरे यहाँ आने का एकमात्र उद्देश्य है कि आप को बताना कि परमात्मा मौजूद है और उसे आप से बहुत लाड़ प्यार है| हिंदी में एक दोहा हैजो इच्छा करियो मन माहि, प्रभु प्रताप कछु दुर्लभ नाहीं, जिसका अर्थ है किभगवान की कृपा से, जो कुछ भी आप चाहो, प्राप्त करना कठिन नहीं होगा| यह एक सिद्ध तथ्य है| हालाँकि, आपको पहले विश्वास होना चाहिए कि परमात्मा मौजूद है| परमात्मा सर्वव्यापी है, जिसका अर्थ है कि परमात्मा हम में से हर एक के भीतर है| दिव्य शाश्वत है, जिसका अर्थ है कि यह अब मौजूद है, इस पल मौजूद है| हमें सिर्फ यह विश्वास होना चाहिए और शांत होना चाहिए| किसी भी प्रयास की जरूरत नहीं है| विवेक, विश्वास और विश्राम; यह तीन महत्वपूर्ण हैं|
जहाँ कहीं
भी अराजकता है, कीर्तन (भक्ति गीत) शुरू कर लो और अराजकता कम हो जाएगी| यही हुआ जब देश संकट में फंस गया था| महात्मा गांधी जी ने तब क्या किया? वे कई स्थानों पर गए और उन्होंने सत्संग का आयोजन शुरू कर दिया| हर किसी ने गाना शुरू कर दिया, “ईश्वर आल्लह तेरो नाम, सब्को सन्मति दे भग्वान, और देश को एक धागे में बुना गया| अराजकता और अशांति एक क्रांति में तब्दील हो गई| आज भी हमें इस की आवश्यकता है| इस देश में एक शांतिपूर्ण क्रांति की जरूरत है| जहाँ अज्ञानता, अन्याय, अभाव और स्वच्छता की कमी है, उस जगह एक शांतिपूर्ण क्रांति की आवश्यकता है ताकि अज्ञान नष्ट हो जाए, लोग अन्याय के खिलाफ खड़े हो, अभाव का अंत और हार तरफ स्वच्छता दिखने लगेगी| केवल कीर्तन य क्रांति ला सकता है| जब भी इस देश में एक समस्या आई, संतों, बुद्धिजीवियों और इस देश के महात्मा (महान आत्मा) आगे आए और देश को एक नई आशा दी|
आज, हम फिर से उस दोराहे पर खड़े हैं, जहां देश में अनिवार्य रूप से आध्यात्मिकता की एक लहर की आवश्यकता है| अध्यात्म का क्या मतलब है? थोड़ी देर के लिए कहीं बैठ कर और कीर्तन करना? नहीं, मेरे प्रिय! आध्यात्मिकता का मतलब है एकता की भावना| आत्मावत सर्व भुतेशु यह पश्यति स पन्डितह| जो अपने आप में हर कोई देखता है और खुद को हर किसी में देखता है वह एक आध्यात्मिक व्यक्ति, एक भक्त बुलाया जाएगा| तो, अध्यात्म का क्या मतलब है? यह एकता की इस भावना का खिल जाना| “कोई भी नहीं अजनबी है, सब मेरे अपने हैं, अगर यह लग रहा है, तो यह आध्यात्मिकता है|
अपनेपन में वृद्धि होनी चाहिए| जहाँ अपनापन समाप्त होता है, भ्रष्टाचार शुरू होता है| आज तक एक भी व्यक्ति अपने ही लोगों के साथ भ्रष्ट नहीं हुआ है| वह यह नहीं कर सकता| यदि भ्रष्टाचार इतना बढ़ गया है, इसका मतलब है अपनापन समाप्त हो गया है| दुर्व्यवहार, कदाचार, और भ्रष्टाचार अपने ही लोगों के साथ नहीं किया जाता| यह लोगों के साथ किया जाता है जो अपने नहीं है| हाँ, हमें इस के लिए एक सख्त कानून की जरूरत है, लेकिन मुझे नहीं लगता है कि अकेला कानून इसे हटा देगा| मुझे विश्वास है कि कानून वहाँ होना चाहिए, लेकिन नागरिकों को जागना चाहिए| हम सब जाग सकते हैं, हम भ्रष्टाचार को हटा सकते हैं| हिंसा समाप्त की जा सकती है|
आज सुबह मैंने पढ़ा है कि नक्सलियों तेरह से चौदह के आसपास लोग मार दिए| मैंने उन्हें बस कल ही बुलाया था|
हम कल नक्सल प्रभावित क्षेत्र में गए थे, औरंगाबाद जिले में| मुझे बताया गया था कि लगभग चार से पांच लोग आज आत्मसमर्पण करेंगे, लेकिन कुछ अपरिहार्य परिस्थितियों के कारण, वे नहीं कर सके| मैं उन युवाओं को बधाई देता हूं, जो अज्ञान के बाहर, नक्सल आंदोलन में शामिल हो गए थे और अब समझ गए है कि हिंसा से समस्या हल नहीं होगी| मैं आपको बताना चाहता हूँ कि वे बहादुर लड़के हैं, जो अपनी जान दांव पर लगाकर जंगलों में तपस्या कर रहे हैं| उनकी आँखें आँसुओं से भरी हैं और उनके दिल दुख रहे हैं कारण है कि वे गरीबी और जातिगत भेदभाव का भारत से सफाया चाहते हैं जिस के कारण सभी समानता का आनंद ले के| हालांकि, जो पथ उन्होंने अपनाया है, वह सही नहीं है| यही कारण है कि मैं उन्हें बताता रहता हूं और कल भी उन्हें बताया कि उन्हें हिंसा का रास्ता त्यागना चाहिए और आगे आना चाहिए, हम उनके साथ हैं| मैं भी भारत को ऊपर देखना चाहता हूं, नंबर एक देश| मैं इसे ताकतवर और इस दुनिया के सबसे अच्छे राष्ट्र के रूप में देखना चाहता हूं|
आर्ट ऑफ़ लिविंग ने
तीस साल पूरे कर लिए है| जहाँ भी आप जाओगे, आप भारत की आध्यात्मिकता देखेंगे| २० नवंबर को, जब मैं उत्तरी ध्रुव के अंतिम शहर, टॉम्सो गया, मैं ने उन से पूछा कब सूरज वहाँ उगेगा| उन्होंने कहा २० जनवरी को| हाँ पूरे दो महीने के लिए अंधेरा है| सूरज उन दो महीनों के दौरान वहाँ नहीं उगता है| वहाँ जनसंख्या साठ हज़ार है| ऐसी जगह में भी, एक हजार लोग 'ओम नमः शिवाय' मंत्र के लिए एक साथ बैठते हैं, ध्यान और प्राणायाम करते हैं| उन्होंने अपने जीवन में एक परिवर्तन अनुभव किया है| इसी तरह, अगर आप टिएर्रा डेल फ़ुएगो, दक्षिण ध्रुव के एक शहर जाओगे, हजारों लोग प्राणायाम, ध्यान और सुदर्शन क्रिया कर रहे हैं| वे इस से लाभान्वित हो रहे हैं|
मैं यह एक कारण के लिए कह रहा हूँ
; आध्यात्मिक ज्ञान भारत की ओर से मानव जाति के लिए एक उपहार है| हालांकि, हम इस ज्ञान का सम्मान नहीं करते| हमें अब यह करने की जरूरत है| हम इसे वह सम्मान नहीं दे रहे हैं जिसकी यह हकदार है| अगर हम इसे वह सम्मान देना शुरू कर दे जिसका वह हकदार है, यह भूमि जहां बुद्ध, महावीर, माँ सीता, जनक और अष्टवक्र पैदा हुए थे तब यह एक बार फिर गौरव को हासिल करेगी| एक समय था जब मगध, पाटलीपुत्र (अब पटना) भारत की राजधानी थी| हालांकि, यह समय के पहिए की गति के दौरान कहीं खो गई| एक बार फिर, इस जगह के नागरिक जागेंगे, अपनी विरासत को याद करेंगे, युवाओं को हिंसा का रास्ता त्यागना होगा और वे महान ऊंचाइयों को प्राप्त करेंगे|
मैं यह भी चाहता हूँ कि बिहार में सौ प्रतिशत साक्षरता हो जाए| मैं नीतीश जी (बिहार के मुख्यमंत्री) और मोदी जी (बिहार के उप मुख्यमंत्री) की टीम को बधाई देता हूँ, क्योंकि पिछली बार की तुलना में यहां एक उल्लेखनीय परिवर्तन, देख सकते हैं| गांवों में लोग पहले से ज्यादा खुश हैं| हालांकि, हमें अभी भी एक बहुत कुछ करना है, और चीजों पर बहुत काम करना है| साक्षरता का स्तर बढ़ाने के लिए और लोगों को निडर होकर चलने में सक्षम होना चाहिए|
अब इतना डर ​​नहीं है, लेकिन हमें प्रगति के पथ पर चलने के लिए बहुत काम करना है| कई कठिनाइयां आई और हम उन परिस्थितियों से साहस के साथ उभरे है| हिम्मत मत हारो, साहस के साथ आगे बडो, मुझे बहुत यकीन है कि बिहार भारत में एक मजबूत राज्य के रूप में उभरेगा|
हम सब को यहाँ शपथ लेनी होगी ; हम न ही रिश्वत दे और न ही रिश्वत ले| अगर कोई रिश्वत लेने की इस आदत में है, तो मैं उन्हें अनुरोध करना चाहता हूँ के एक साल के लिए इस आदत से तोड़ ले लो, सिर्फ मेरे लिए| सिर्फ एक साल के लिए प्रतिज्ञा ले लो है कि हम रिश्वत स्वीकार नहीं करेंगे| कोई समस्या नहीं है अगर आप कुछ नुकसान सहन कर ले| हालांकि, आपको बहुत लाभ होगा कि आपको आशीर्वाद के साथ सम्मानित किया जाएगा| सभी जीवनकाल के लिए यह प्रतिज्ञा ले और सभी स्वीकारकर्ता यह प्रतिज्ञा ले, अगर वे हिचक रहे हैं, तो वे कम से कम एक साल के लिए प्रतिज्ञा ले| हम समाज में यह माहौल पैदा करेंगे| कानून इस बीमारी का इलाज है| लेकिन यह आध्यात्मिकता का काम हमला होने से पहले बीमारी को रोकने है| हमें अज्ञान को हटाने और फिर अन्याय के खिलाफ खड़े होने की जरूरत है|
इस जातिगत भेदभाव का प्रचलन शास्त्रों में कहीं भी उल्लेख नहीं किया गया है| भगवान शिव को एक अछूत बुलाया गया था, दलित समूह के एक सदस्य| एक हजार के आसपास ऋषि मुनी (महान संत) इस राष्ट्र ने दिए है, और उनमे से केवल कुछ ही उच्च वर्ग से थे| उनमें से कई दलित समूह से, पिछड़े वर्गों से थे| यह कहा गया है जन्मना जयते शूद्र, कर्मणा जयते द्विज'| जन्म से नहीं, आपकी जाति को आपके कर्मों (कर्म) के द्वारा तय किया जाता है| सभी जातिया बराबर हैं और इस देश में प्रत्येक का सम्मान किया गया है| हम यह भूल गए हैं| जब हमें एक अच्छे डॉक्टर की जरूरत होती है, हम उसकी जाति या धर्म नहीं पूछते है| यह वकीलों के मामले में भी होता है| केवल जब राजनीति तस्वीर में आती है, हम जाति के बारे में बात करते हैं| इसके अलावा, जब यह आजीविका के बारे में और बेटी की शादी के बारे में बात होती है, तो गांवों में जाति की चर्चा होती है| हमें इन तीन क्षेत्रों से जाति को दूर करना चाहिए, आजीविका, बेटी, और राजनीति| तब भारत बहुत तेज गति से प्रगति करेगा और एक सर्वोच्च राष्ट्र के रूप में उभरेगा| और महिलाओं का सम्मान किया जाना चाहिए| एक देश में जहां महिलाए अत्याचारों के लिए अधीन हैं, कभी प्रगति नहीं होगी| यह बहुत महत्वपूर्ण है| अन्याय के खिलाफ खड़े हो जाओ|
हम सब को पर्यावरण के लिए, और किसानों के लिए भी कुछ योगदान देना चाहिए| हमारे देश में कोई समुचित योजना नहीं बना रहा है| आलू की कीमत आसमान छूने लगी है और कभी कभी बड़ी तेजी से नीचे जाती है| किसान सबसे अधिक प्रभावित होता है| वे बहुत प्रयास करते है और अभी तक उन्हें कोई उम्मीद नहीं है| जब मैं गया में था और जब मैंने महाराष्ट्र में भी किसानों की एक रैली को संबोधित किया, मुझे बताया गया था कि अगर एक लड़के खेती में लगे हुए है, किसी को खेती में शामिल लड़के के साथ अपनी बेटी की शादी नहीं करनी है| यह शर्त के रूप में उनके द्वारा कहा जाता है| यदि किसान खुश है, तो वह फसल जो कि उस खुशी से काटनेवाला है, हम उस के साथ अच्छे स्वास्थ्य में रहते है| यदि किसान खुश नहीं है तो हमारा स्वास्थ्य खराब हो जाएगा|
जिन लोगो ने गीता नहीं पढ़ी है उन्हें यह कम से कम एक बार पढ़नी चाहिए| इसमें सात सौ श्लोक है| आइंस्टीन, सभी समय के महानतम वैज्ञानिकों में से एक ने कहा, 'गीता पढ़ने के बाद मेरा जीवन बदल रहा है| महात्मा गांधी ने इसे हर दिन पढ़ा| मैं आप के साथ एक उदाहरण बाँटता हूँ, शायद यह कोई नहीं जानता है| मेरे गुरू पंडित सुधाकर चतुर्वेदी रेवाड जेल में महात्मा गांधी के साथ थे| वह उके साथ चालीस वर्षों के लिए थे| वह चारों वेदों के ज्ञाता है (और इसलिए चतुर्वेदी)| जि दिन कस्तूरबा गांधी का निधन हो गया, महात्मा गांधी बाहर आए, आँसू उकी आँखों से नीचे गिर गए और पंडित सुधाकर चतुर्वेदी (जो बेन्गालुरि के रूप में जाने जाते थे) से बात की| महात्मा गांधी जी ने कहा, बेन्गालुरि, आज गीता के दूसरे अध्याय को पढ़ते है| आज के दिन बापू (गांधीजी प्यार से बापू के रूप से जाने जाते थे, जिसका मतलब पिताजी है) का परीक्षण है, मैं स्तिथप्रग्य (स्थिर बुद्धि) हूँ या नहीं'| तो उन्होंने दूसरा अध्याय पढ़ दिया, स्तिथ प्रज्न श्यक भाषा समाधिस्थ्स्या केशवा, स्थितधिह किम प्रभाशेता किम सिता व्रजेत किम(अध्याय द्वितीय सुराह ५४)'| आँखें बंद कर, उन्होंने वह कविता सुनी, और आँसू उकी आँखों से नीचे गिर गए| उन्होंने कहा, 'आज मेरे लिए परीक्षण का दिन है| और गीता के समर्थन के साथ, मैं यह दु: ख सहन कर रहा हूँ| जिन लोगो ने इसे नहीं पढ़ा है इसे एक बार पढ़ना चाहिए| यह अधिकतम एक सप्ताह में पूर्ण हो जाएगी|
गीता में सब कुछ की चर्चा की है, मन के बारे में भोजन के विभिन्न प्रकार के बारे में: सात्त्विक
राजसिक और तामसिक, और हमारी प्रकृति के बारे में| यदि आप कुछ लोगों को कुछ काम दे वे आलस्य करते हैं| अन्य लोगों का कहना होगा कि वे यह नहीं कर सकते| हम मानसिकता के विभिन्न प्रकार देख सकते हैं| एक मानसिकता है कि अगर आप उन्हें कुछ काम दे, वे कहते हैं, 'हाँ, यह हो जाएगा!' यह एक सात्त्विक रवैया (ध्रुति) है| तो फिर एक राजसिक और तामसिक रवैया है| आपका रवैया किस प्रकार का है आप पहचान करने में सक्षम हो जाएगे| जब आपको एक काम सौंपा जाता है, आप इसे करने के लिए उत्साहित हैं या आप इसे नजरअंदाज करते हैं, आपके व्यक्तित्व का एक परीक्षण है| इसे 'स्वाध्याय' (आत्मनिरीक्षण) कहा जाता है|
आर्ट ऑफ लिविंग का प्रथम भाग कोर्स पाँच बिंदुओं पर आधारित हैं। विरोधाभास परिस्थिति हम्ररे जीवन मे स्वाभविक है। हमे उन परिस्थितियों मे अपने आपको संतुलित रखना पडेगा। दुखः के समय न ज्यादा उदासीन होना चहिये ना ही खुशी के समय ज्यादा उल्हासित।हमे अपने मन को सम स्तिथि मे रखने के लिये प्रयत्न करना चहियें। दुसरा बिंदु है लोग जैसे है वैसे उन्हे अपनायिये। हम चाहते है हर कोई हमारे कहने के अनुसार चले। ऐसा होता है क्या? ये नामुमकीन है।हर व्यक्ती का सोचने का तरीका अलग होता है। इस लिये दुसरा बिंदु है लोग जैसे है वैसे उन्हे अपनायिये और फिर उनकी सोच में परिवर्तन लाने के लिये प्रयत्न किजियें। अगर आप पहिले हि हुक्म देते है कि जैसा मै कहता हुँ वैसा किजियें ये हर घर मे होता है।जिसके परिणाम स्वरूप घर मे वाद विवाद होते हैं। पति पत्नी मे, भाई बहेन मे, सास बहू मे, पिता पुत्र मे। ज्ञान के प्रसार से ये दुसरे व्यक्ती को न समझने की वजह से होने वाले झगडे सुलझ सकते हैं। लाखों घरों मे इस बिंदु को माना है और उन घरों मे परिवर्तन आया हैं।तीसरा बिंदु है जब हम गलती करते हैं तो हम कहते है हम क्या कर सकते हैं।ये तो बस हो गया।हम अपने आप को असहाय् बताते हैं। लेकिन जब दुसरे गलती करते हैं तो हम उस को जान बुझके किया हुआ समझते है। ये गलत हैं। हमे इस बिंदु पर कुछ रोशनी डालनी पडेगी। चौथा बिंदु है हमे दुसरे क्या कहेंगे या सोचेंगे ये सोचके फुटबॉल की तरह हमारे विचार बदलने नही चाहिये। बाकि लोग को आपके बारे में जो कहना है वो कहने दो। ऐसे भी लोग होते है च्छे काम करने वालो की आलोचना करते हैं और गलत काम करने वालों को सहयोग देते है।हमे आपने जीवन को दुसरों की राय पर निर्भर नही करना चाहिये। पाँचवा बिंदु वर्तमान क्षण में जीने पर जोर देता हैं। भूतकाल को भूल जायीयें भविष्य के लिये योजना बनायीये लेकिन वर्तमान क्षण में जीवन व्यतीत किजियें। ये पाँच बिंदु है। और इन पाँच तत्वों कि मदद से हम ध्यान की गहराई में उतरते है और फिर हम जान जाते है कि मैं प्रेम का फव्वार हूँ। मेरे हर एक अणु में ॐ की गुँज प्रतिध्वनीत हो रही हैं। हमे ये अनुभव से महसूस होता हैं।मैं आपको आज एक चीज़ करने की विनंती करता हूँ । आप दो सूची बनाइये पहली आपकी क्या जरुरतें हैं और दुसरी हमने जिंदगी मे कितनी जिम्मेवारीयाँ उठाई हैं। अगर आपकी जिम्मेवारीयाँ जरुरतों से कम है तो आप जीवन मे सुखी नही होंगे। लेकिन अगर आपकी जरुरतें जिम्मेवारीयों से कम है तो आप जिंदगी मे खुश होंगे।एक और रहस्य मेरे पास है कि अगर आपको अपने लिये कुछ नही चहिये तो एक विस्मयकारी शक्ती का आपमें उदय होगा जिससे आप औरों की भी जरुरते पूरी कर सकेंगे। अगर आपको अपने लिये कुछ नही चाहिये और आप दुसरों को आशिर्वाद देते हैं तो उनका काम हो जायेगा। नवरात्रीयों मे अष्टमी के दिन हमारे देश में हम नन्ही बच्चियाँ जिनको कन्या कहते है उनकी पूजा करते है जिसको कन्या पूजन कहते है।क्या आप जानते है; हम क्यों यह करते हैं। क्योंकि बच्चे के मन मे उनके भोलेपन में ईश्वर की झलक होती है। शक्ती जो ईश्वर का स्त्री लिंगी रुप है का वहाँ वास होता हैं। हर एक मे यह शक्ति होती हैं। लेकिन हमारी इच्छाऐ अभिलाषा तनाव इस शक्ति को ढक देती है। अगर आप बच्चों से पुछेंगे आप को क्या चाहियें तो वो सहजता से कहेंगे मुझे कुछ नही चहियें।ये उनका उत्स्फुर्त उत्तर होता हैं। जब आपको कुछ नही चाहिये तब जो दुवाये निकलती है वे मुर्त रुप जरूर लेंगी। इसी लिये आप बुजुर्ग और साधु संतो से आशिर्वाद लेते हो क्योंकि उनको कुछ नहीं चाहियें। मुझे कुछ नही चाहियें बाकी लोग सुखी और संपन्न हो। जब लोगों की ऐसी मानसिकता होंगी तो उनके आशिर्वाद फलिभूत होंगे।
मैने लाखों लोगों को संपन्न जीवन जीते हुये  देखा है क्योंकि वो जीवन में सही दिशा में एक कदम उठाते हैं। जीवन से अज्ञान, अन्याय और अभाव मिट जाता है। फिर स्वच्छता आ जाती हैं। हमे अंदर से स्वच्छ होना चाहियें। हमें हमारा हृदय और वातावरण स्वच्छ रखना चाहियें। यहाँ काई ऐसे लोग है जो उनके वॉश बेसिन भी साफ नही रखते। हमरा घर साफ रखने का खयाल हमें क्यों नही आता। और अग घर साफ रखेंगे तो कचरा रस्ते पर फेकेंगे। रस्ते साफ नही रखेंगे। जितने लोग हम यहाँ बैठे है अगर एक महिने में दो घंटे हम पटना को साफ रखने के लियें देते है तो पटना और चमक जायेगा। सिर्फ दो घंटे हर महिने के पहिले रविवार को। इस तरह का हमारा पहिला अभियान हमने महाराष्ट्र के जालना मे किया। हर घर का एक सदस्य हात में झाडू लेकर आया और तीन घंटो मे शहर इतना सुंदर दिखने लगा कि महापौर भी भौचक्के रह गयें। उन्होने कहा कि हमारे समाज मे भी ऐसा हो सकता है।फिर जब कॉमनवेलथ खेलों से पहिले सरकार ने दिल्ली कि स्वच्छता के लिये घुटने टेक दिये तो आर्ट ऑफ् लिविंग के पाँच हजा कार्यकर्ता रोज सामने आये और दिल्ली के अलग अलग हिस्सों मे जकर दिल्ली को स्वच्छ कर दिया। मेरी दिल्ली मेरी जमुना अभियान ने बडा परिवर्तन लाया। मैने उनको कहा कि अगर हम एक कदम उठाते है तो प्रकृति दस कदम उठायेगी। मैने कहा मुझे यमुना मे मछली देखनी है।ये एक कुडे कचरे की नदी बन गयी थी। मथुरा मे जब लोग यमुना का पानी हाथ में लेते है तो उसमें किडें आते है। पाँच सौ ट्रक भरके गंद यमुना से निकाला गया । और ये सब किसने किया ये सब हम लोगों ने सत्संगीयों ने, साधको ने किया। और उसके बाद जो बाढ आयी उसने यमुना मे मछली लायी। निसर्ग ने बाढ से और स्वच्छता लायी मैं यह कहता हूँ कि हर पटनावासी ने महिने मे दो घंटे समाज के लियें बिताये तो हम इस शहर को स्वच्छ कर सकते है। तो ये चौथा मुद्दा था गंद हटाना। ये चार मुद्दे थे।अज्ञान, अन्याय, अभाव और अशुचिता जिनको हटाना हैं। इसी को सत्संग कहते हैं।एक सेल फोन को ठिक तरह से काम करने के लिये क्या चाहियें। आप को सिम कार्ड,भरी बैटरी और नेटवर्क चाहिये। ये तीन चीजे हैं विश्वास, बुद्धि और विश्राम। शांती से बैठ कर ध्यान करना विश्राम हैं। फिर ईश्वर को महसूस करने में कोई देरी नही हैं। अगर आपके पास ये तीन चीजें हैं तो आप ईश्वर के संपर्क मे जुडे रहेंगे। आज अपनी सारी समस्याऐ मुझे समर्पित कर दीजिये मैं आपकी चेहरे पर कभी न मिटने वाली मुस्कान देखना चहता हूँ । अपना पूरा जीवन हँसते हुये बिताऐ। मुझे अपनी परेशानियाँ दे दीजिये और दिल से सेवा,साधना और सत्संग में जु जाये



मैं डेढ महिने पहिले अमेरिका में था वहाँ मैं एक शास्त्रज्ञ से मिला जिन्होने ॐ शब्द पर शोध किया है। उन्होने ये कहा कि उन्होने ॐ के जाप का ध्वनीमुद्रण किया और पाया कि उसकी तरंगे और पृथ्वी की अपने आस पर घुमते वक्त पैदा होने वाली तरंगे एक ही लय की है। इसी वजह से पुरातन काल से चाहे वो बुद्ध हो जैन हो सिख हो हिंदु हो यहाँ तक शिंटो या ताओ धर्म में भी ॐ को मह्त्व दिया गया है। इसको अनाहत नाद कहते है वो नाद जो किसी आघात से उत्पन्न नही हुआ। जब आप ध्यान की गहरई मे जायेंगे तो आपको ये नाद सुनाई देंगा। ईस्लाम मे आमीन और ईसाई आमेन इन थोडे भिन्न रुप से इसे प्रयोग करते है। मन को शांत रखने मे ॐ की महत्वपुर्ण भुमिका हैं।
मैं हर बार कहता हूँ वसुधैव कुटुंबकम्। सर्व विश्व एक परिवार हैं। भारत से इस कल्पना का सृजन हुआ हैं। जब चीन मे मेरा स्वागत हुआ तो कहा गुरुजी हमारे सरकारी तौर पर रिश्ते जैसे भी हो लेकिन भारत और चीन का संबंध बहुत पुराना हैं। बुद्ध धर्म का प्रसार भारत से निकलकर पहले चीन मे हुआ हमारा तत्व ज्ञान भी एक दुसरे के नजदीक है। इस तरह से उन्होने मेरा स्वागत किया। उन्होने कहा चीन मे मानवीय मुल्यों का पतन हो रहा है इसलिये उन्होने मुझे बुलाया और आर्ट ऑफ लिविंग के केंद्र शुरु करने के लिये कहाँ। जब ईराक के प्रधानमंत्री ने मुझे वहाँ बुलाया था तो एक पत्रकार ने पूछा उनको भारत से क्या चहिये। उन्होने सबसे पहले यह कहा उनको भारत कि अध्यात्मिक शक्ती चाहिये, अध्यात्मिक ज्ञान चाहिये। अलग अलग धर्म पंथ, जाति, संस्कृति के लोग शांती से रहते हैं, ये आपकी संपत्ती है और यही उनको उनके देश मे भी चहिये। हमें वो शक्ती चाहियें। हमारे वो लोग जो आपके प्राणायाम,सुदर्शन क्रिया, ध्यान करते है वो सदा हँसते रहते हैं। वो सुखी रहते है और हर चुनौती का सामना करने के लिये तैयार रहते है।उनमे बहुत उत्साह भरा होता है। हमे सबको ऐसा बनाना हैं। दुसरा वो चाहते है हमारे उद्योगपति वहॉ जाये और खनिज तेल निकाले।वो तेल उनको देना चाहते है न कि अमेरीका को। और तीसरी बात उन्होने सूचना प्रौद्योगिकी के बारेमें की। वो चहते है भारत उनको सूचना प्रौद्योगिकी के बारे मे शिक्षा दे। भारत के युवा सूचना प्रौद्योगिकी के तकनिक के लिये मशहूर है वो चाहते है उनके युवा भी वैसे ही हो। फिर उन्होने वहॉ के पचास युवाओं को बैंगलुरू मे प्रशिक्षण के लिये भेजा ताकि वो शांती दूत बने। उनको डेढ महिना प्रशिक्षण दिया। मोरक्को के लोगों ने तीन महिने का प्रशिक्षण लिया।फिर उन्होने सारी जगह शिक्षा दी और अब हजारो लोग ध्यान, प्राणायाम और योग कर रहे है और लाभ उठा रहे हैं। आप लोगों ने भी योग और आसन थोडी देर रोज करने चहीये।

प्रश्नः गुरुजी जीवन में हमे समझौते करने पडते हैं। आकांक्षाओं के चक्रवात मे मानवीय मूल्यों का जतन कैसे करे।
श्री श्री रवीशंकर: आपके श्रद्धा से। हमारी महत्वाकांक्षाऐ पूर्ण होगी कोई जल्दी नही है। और मानवीय मूल्य क्या है औरों के साथ वो नही करना जो हम नही चाहते वो हमारे साथ करें।हम दुसरों के साथ बिलकुल वैसा ही व्यवहार करे जैसा हम चहते है वो हमारे साथ करें।

प्रश्नः गुरुजी आजकल हम हर जगदेख रहे है लोग राजनीति का खेल खेल रहे है। क्या अध्यात्मिक लोगों को राजनीति से दूर रहना चाहिये।
श्री श्री रवीशंकर: राजनीति का मतलब क्या है। इसका मतलब है कि एक जगह कि नागरिकों की क्या जरुरते है जैसे कि परिवाहन,शिक्षण, सुरक्षा यही राजनीति है। अध्यात्मिकता और है ये जनसामन्य के उन्नती के कार्य का क्षेत्र है। राज्यकर्ता समाज सुधारक नही हो सकता और समाज सुधारक कभी राज्यकर्ता नही होना चाहिये। ये दोनो काम अलग अलग लोगों ने करने चाहिये लेकिन एक दुसरे के सहयोग से। यह अच्छा होगा कि राज्यकर्ता अध्यात्मिक लोगों की सलाह से शासन करें।इसिलिये इस देश मे हमेशा से वो लोग हुऐ है जो निष्पक्ष सलाह देते है जैसे कि पत्रकार या अध्यात्मिक गुरु। वो किसी पक्ष के साथ नही होते। वो ईश्वर के साथ जुडे होते है और सत्य के लिये खडे रहते है। वो सत्य को सामने रखते है और उसके अनुसार सलाह देते है। यहीं करना चाहिये।

प्रश्न: गुरूजी, जीवन का उद्देश्य क्या होना चाहिए – धन, प्रसिद्धि, पद या कुछ और?
श्री श्री रविशंकर: संतोष|

प्रश्न: भारतीय पौराणिक कथाओं में देवताओं के वाहन बहुत छोटे पशु होते हैं, जैसे गणेशजी और उनका मूषक| इसका क्या अभिप्राय है?
श्री श्री रविशंकर: मैंने एक कैसेट बनाई है गणेश रहस्य, आपको उसे सुनना चाहिए| मैंने सारे चिन्हों के विवरण दिए हैं – हाथी का महत्व, मूषक, और बाकी सब| यह सब बहुत प्रतीकात्मक है| हम कहते हैं कि हर देवी देवता एक विशेष पशु की सवारी करते हैं| हर पशु धरती पर एक नियत कंपन, एक नियत लौकिक शक्ति लाता है| इस कारण वैज्ञानिक कहते हैं की अगर एक भी पशु इस ग्रह से लुप्त हो गया, तो पूरे ग्रह का पतन हो जाएगा|

प्रश्न: कैसे निश्चित करें कि हमारा निर्णय ठीक है या नहीं?
श्री श्री रविशंकर: समय आपको बताएगा| अपनी बुद्धि का प्रयोग करें| आपकी अन्तर्भावना आपको बता देगी कि यह ठीक है या नहीं| यदि वह बुरा है तो आपको कचोटेगा और यदि वह बुरा नहीं है तो आपको शान्ति, तनाव मुक्ति और खुशी देगा|

प्रश्न: गुरूजी, कहा जाता है कि हमें हमेशा सकारात्मक सोचना चाहिए परन्तु मेरा मन सदैव नकारात्मक हो जाता है| इस को कैसे संभालूं?
श्री श्री रविशंकर: अपने शरीर को शुद्ध बनाइये| थोड़ा त्रिफला चूर्ण दो तीन बार सप्ताह में ले| यदि आपकी पाचन क्रिया साफ़ है, तो आपका मस्तिष्क भी ठीक से काम करेगा| यदि आपको कब्ज़ हो तो आपके विचार अस्त व्यस्त हो जाते हैं| शरीर की शुद्धि के लिए सप्ताह में कम से कम एक बार त्रिफला लेने से भी चलेगा| आयुर्वेदिक दवाइयाँ शरीर को शुद्ध करती हैं| प्राणायाम प्राण, या जीवन शक्ति को शुद्ध करता है| भजन और सत्संग मन को शुद्ध करते हैं| ज्ञान बुद्धि को शुद्ध करता है और उसे और तीव्र बनाता है| दान धन को शुद्ध करता है|
अपनी आमदनी का दो प्रतिशत सामाजिक कार्यों के लिए अलग रखना चाहिए| यदि आप एक हज़ार रुपये कमाते हैं और सब अपने पर ही व्ययित कर देते हैं तो यह सही नहीं है| कम से कम दो, तीन या चार प्रतिशत भी सामजिक कार्यों के लिए अलग रखना चाहिए| इस्लाम ज़कात को प्रतिपादित करता है, जिस में आपको अपनी आमदनी का निम्नतम दस प्रतिशत समाज पर खर्चना होता है| यह हमारे धार्मिक ग्रंथों में भी कहा गया है कि हमारी आमदनी का बीस प्रतिशत समाज सेवा के कार्यों पर लागत होना चाहिए| अब, बीस प्रतिशत आपके लिए बहुत अधिक और असाध्य हो जाता है| इसलिए, आपको निम्नतम दो तीन प्रतिशत तो बचाना चाहिए| आज के कलयुग में यदि आप इतना भी करते हैं तो ये भी अच्छा होगा|
जैसे आप धन को दान से शुद्ध करते हैं, उसी प्रकार आप भोजन को घी से शुद्ध करते हैं| मैथिली ब्राह्मण कहते थे कि चावल पर आधा या एक चम्मच घी डालने से चावल शुद्ध हो जाते हैं| कुछ लोग सोचते हैं कि यह हमारी अंध विश्वासी प्रथा है| परन्तु एक हृदय विशेषज्ञ ने एक बार कहा था, कि यदि हम बिना घी के चावल खाते हैं तो वह शीघ्र चीनी में परिवर्तित हो जाते हैं| और फिर हम हृदय,मधुमेह आदि बिमारियों का सामना करते हैं| यदि हम एक चम्मच घी इस में डाल दें तो यह एक जटिल कार्बोहाइड्रेट बन जाता है, जिससे पाचन धीमी गति से होता है और आपको कभी ह्रदय और मधुमेह की बिमारी नहीं होगी| ऐसा ह्रदय विशेषज्ञ कहते है| इसलिए, जो हमारे पूर्वज कहते थे वो सही ही है|
ऐसा ही हल्दी के साथ भी है| आप इसके बिना भोजन नहीं बना सकते| हर स्थान पर लोग, कश्मीर से कन्याकुमारी तक, हल्दी का प्रयोग करते हैं| तीस साल पहले भारत में लोग कहते थे कि हल्दी मात्र एक रंगद्रव्य है और इसका कोई खाद्य गुण नहीं है| अमरीका ने इस पर शोध किया और साबित किया कि यह एक है और इसमें कैंसर के रोकथाम की शक्तियाँ हैं| और इस प्रकार हमनें फिर से इसका प्रयोग करना आरम्भ किया| प्राचीन समय में कैंसर की कोई घटनायें नहीं होती थीं परन्तु आजकल सब जगह आपको कैंसर से पीड़ित लोग मिलेंगे| पहले हल्दी का बहुत प्रयोग होता था| इसे आयुर्वेद में व्यवस्थापक कहा जाता था| इसलिए हमें पुनः आयुर्वेद की ओर जाना होगा| इस में बहुत से स्वास्थ्य उपाए हैं जिनका विश्व आज बहुत सम्मान करता है|

प्रश्न: गुरूजी, आप कहते हैं हमें अवश्य मत देना चाहिए| परन्तु हम कैसे जानें कि कौन बेहतर या अधिक अच्छा है? हमें तो सब एक से प्रतीत होते हैं|
श्री श्री रविशंकर: आध्यात्मिक ज्ञान के हिसाब से यदि आप सब को एक सा पाएं तो ठीक है| अन्यथा, आपको उन सबको अनुचित नहीं कहना चाहिए| हर क्षेत्र में कुछ ऐसे व्यक्ति हैं जो बुरे हैं| कुछ व्यक्ति संत की पोशाक पहन लेते हैं, कुछ किताबें पढ़ लेते हैं और ज्ञान का प्रसार करते हैं पर पाप भी करते हैं| ऐसे ही लोग चिकित्सकों में भी होते हैं जो लोगों के गुर्दे चुरा लेते हैं| वकीलों में भी ऐसे लोग होते हैं| हर व्यवसाय में ऐसे लोग होते हैं| परन्तु यदि आप कहें कि सब चिकित्सक बुरे हैं, सब संत बुरे हैं, सब वकील और अधिकारी बुरे हैं तो यह सही नहीं है| सब अधिकारी बुरे नहीं हो सकते| सब पुलिस वाले भ्रष्ट नहीं हो सकते| कुछ पुलिस वाले हैं जो बहुत अच्छे हैं| इसलिए अगर हम सब को एक ही मापदंड से नापें तो हमारे निर्णय गलत होंगे| इस लिये, पहले पता करिये कौन सा व्यक्ति सबसे अधिक योग्य है| इसके लिए कोई कसौटी नहीं है| आपको अपने दिल से पूछना होगा| आपका दिल आपको बताएगा कि वह व्यक्ति सही है या नहीं|

प्रश्न: गुरूजी, अपने दिल और दिमाग में से मुझे किसकी सुननी चाहिए?
श्री श्री रविशंकर: यदि आपको व्यापार करना है तो अपने दिमाग कि सुनिए| परन्तु यदि आपको जीवन व्यतीत करना है तो अपने मन कि सुनिए| अपना जीवन जीते समय आपको दिमाग का प्रयोग और व्यापार करते हुए दिल का प्रयोग नहीं करना चाहिए| अन्यथा आप दोनों दशाओं में असफल होंगे|

प्रश्न: गुरूजी, एक साधारण व्यक्ति समाज को सुधरने के लिए क्या कर सकता है?
श्री श्री रविशंकर: केवल वह व्यक्ति जो स्वयं को साधारण समझता है, वह ही एक परिवर्तन ला सकता है| जो स्वयं को असाधारण या खास समझता है वह परिवर्तन नहीं ला सकता| यह नहीं सोचिये कि आप साधारण हैं इसलिए कुछ नहीं कर सकते| आप बहुत कुछ कर सकते हैं| अब तक जो मैंने कहा वह सब आप कर सकते हैं|

प्रश्न: गुरूजी आप कहते हैं कि हर जीव में भगवान है| मैं आप में भगवान को देख पाता हूँ, परन्तु दूसरों में मैं भगवान को कैसे देखूं?
श्री श्री रविशंकर: खिडकी में से सूरज दिखता है| परन्तु दीवार के पीछे भी सूरज हैं| इसको स्वीकार करो| कुछ जान के चलो, कुछ मान के चलो, प्रेम से सबको गले लगाके चलो| जीवन चंद दिनों की बात है|  

प्रश्न: गुरूजी, क्रोध को कैसे काबू (नियंत्रित) करें? बहुत बार संकल्प लेने पर भी क्रोध से वशीभूत हो जाता हूँ|
श्री श्री रविशंकर: आपको निपुणता अति प्रिय है| इस कारण आप क्रोधित हो जाते हैं| आपको कुछ स्थान अपूर्णता के लिए भी छोड़ देना चाहिए| सब कुछ को एक सपने की तरह देखिये| अपने जीवन को देखिये और अब तक जो हुआ है उस को निहारे| आप विद्यालय गए, उसके उपरान्त, महाविद्दालय और फिर कार्यालय| आते समय आप यातायात में फंसे थे और सारा समय शिकायत कर रहे थे| परन्तु जब आप जायें तो एक मुस्कान के साथ जायें| आते समय भी वही यातायात था और जाते समय भी आप वही यातायात पायेंगे| जाते समय आपको मुस्कान के साथ जाना चाहिए| सब कुछ आपकी मनःस्थिति पर निर्भर करता है|

प्रश्न: गुरजी, क्या सब कुछ सहने का अर्थ संतोष और स्वीकृति है?
श्री श्री रविशंकर: नहीं! मैं आपको नहीं बता सकता कि संतोष क्या है| यदि आपने अपने जीवन में कभी संतोष का अनुभव नहीं किया तो आप कभी भी संतोष नहीं अनुभव कर सकते| आपने अवश्य ही इसका अनुभव किया होगा| आपको सिर्फ अपने मन को शांत करना होगा| आपकी समस्या का मूल कारण क्या है? उसे यहाँ लाईये| यहाँ आईये, दस मिनट बैठिये और समर्पण करिये| जब आपका मन शांत होगा, आप स्वयं जान जायेंगे कि संतोष क्या है? सब कुछ यहीं रह जाएगा और आप को जाना होगा| उन सब को जिन्हें आप अतीत में जानते थे वह सब इस ग्रह को छोड़ चुके हैं| क्या आपको स्मरण नहीं है? हम में से कितने लोग जा चुके हैं और उसी प्रकार हमें भी जाना होगा| यदि आप इतना भी अनुभव कर सकते हैं, संतोष स्वतः आपको प्राप्त होगा|

प्रश्न: गुरूजी, क्या हमें अपने संबंध अपने स्वाभिमान की कीमत पर भी बचाने चाहियें?
श्री श्री रविशंकर: मैं इस प्रश्न में नहीं उल्झूंगा| आप सोच कुछ और रहे हैं और पूछ कुछ और रहे हैं| मैं आपको उत्तर दूंगा और आप इसे अपरोक्ष या परोक्ष रूप में करेंगे और कहेंगे कि गुरूजी आपने ही ऐसा कहा था| नहीं| स्वाभिमान कुछ और है और अहंकार कुछ और| अहंकार बनावट को जन्म देता है और स्वाभिमान वह है जो कोई आपसे छीन नहीं सकता| यदि आप में स्वाभिमान है तो करोड़ों लोग भी आपको अपशब्द कहें, आप फिर भी सदा मुस्कुराते रहेंगे| आलोचना को स्वीकार करिये| यह दूसरे व्यक्ति का विकल्प है कि वह क्या कहना चाहते हैं| किसी ने मुझे कुछ कहा| मैंने कहा उन्हें पूरा अधिकार है अपनी अज्ञानता प्रदर्शित करें| है के नहीं? हम अपने मन को क्यों विकृत करें? किसी भी कीमत पर इसे बचाइए|

प्रश्न: जीवन में सफलता को कैसे मापें? बहुत परिश्रम करने के बाद भी हमें फल क्यों नहीं मिलता?
श्री श्री रविशंकर: किसी भी सफलता के लिए पांच तत्व आवश्यक हैं| परिश्रम मात्र से फल नहीं मिलेगा| परिश्रम, आशीर्वाद, भाग्य, औज़ार और सही मनःस्थिति होनी चाहिए| यदि आपके पास यह सब है तभी आप यह कर पाएंगे|

प्रश्न: मैं जानता हूँ कि मैं जो कर रहा हूँ वह अनुचित है| परन्तु मैं अपने आप को रोक नहीं पता| क्यों?
श्री श्री रविशंकर: यह इस लिए कि आपको कहीं एक छोटी सी आशा है कि आपको उस में खुशी प्राप्त होगी| परन्तु जब तुम ध्यान में उस से भी बड़ी खुशी पाओगे तो आप स्वयं ही उसे त्याग देंगे| इस लिए, आपको प्राणायाम और ध्यान करना चाहिए| लाखों लोग यह कर के अपनी बुरी प्रवृत्तियां छोड़ पाए हैं| चिंता मत करो|

प्रश्न: क्या हमें नियति पर विश्वास करना चाहिये?
श्री श्री रविशंकर: यदि आप में विश्वास हैं तो आप अपनी नियति स्वयं बना सकते हैं|

प्रश्न: व्यक्ति अपने जीवान को सफल कब माने?
श्री श्री रविशंकर: आप जब भी मुस्कुराएं और जब आप व्यथा में भी मुस्कुराएं, तो जान लीजिए कि आप सफल हैं!

प्रश्न: कौन अधिक महत्वपूर्ण है – कर्म या भाग्य?
श्री श्री रविशंकर: आप दूरदर्शन के कार्यक्रम पहले सुनना चाहते हैं या देखना? दोनों साथ साथ चलते हैं| यदि दो दुकानें एक साथ हैं, तो एक का लाभ होता है, और दूसरे का नुकसान| क्यों? कुछ अदृश्य व्क़स्तु है| परन्तु हम वह अदृश्य वास्तु बना सकते हैं| अपनी नियति को मत कोसो| आप अपनी नियति बदल सकते हैं| भारत के नौजवान इतने शक्तिशाली हैं कि वे अपना भाग्य बदल सकते हैं| आशा खोने का कोई कारण नहीं है| यदि आप में से कोई भी सोचता है कि कोई रास्ता नहीं बचा और आप बहुत दुखी हैं तो आर्ट ऑफ लिविंग के शिक्षकों को मिलें| यदि आप में से कोई भी आत्म हत्या करना चाहते हैं, तो इस दिशा में कुछ भी करने से पहले मुझसे इस बात कि अनुमति लेनी होगी| अन्यथा, आपको यहाँ भी प्रवेश नहीं मिलेगा और वहाँ भी| आप बीच में फँस जायेंगे| और आप जानते हैं कि मैं आपको अनुमति नहीं दूंगा|

प्रश्न: अधिक विध्यार्थी आत्म ह्त्या कर रहे हैं| क्यों?

श्री श्री रविशंकर: इस लिए, क्योंकि किसी ने उन्हें आध्यात्मिकता का ज्ञान नहीं दिया| किसी ने उन्हें प्राणायाम और ध्यान करना नहीं सिखाया| हम यह सिखाने के लिए तैयार हैं| येस+ कोर्स अब हर महाविद्यालय में होता है| आई आई टी के युवक यहाँ बहुत से महाविद्यालयों में येस+ कोर्स पढ़ा रहे हैं| आपका जीवन बदल जायेगा| जब भी आपका मन उदास हो, आप आत्म हत्या का सोच सकते हैं पर आपको कभी भी ऐसा नहीं करना चाहिये| और अगर आप कोई और कष्ट अनुभव कर रहे हैं, तो मन ही मन उसे मुझको समर्पित कर दीजिए| आप उस से बहार आ जायेंगे, तुरंत|

प्रश्न: सफलता का मूल मंत्र क्या है?
श्री श्री रविशंकर: असफलता को स्वीकार कर पाना ही सफलता का मूल मंत्र है|

प्रश्न: हमारे जीवन का उद्देश्य क्या होना चाहिये?
श्री श्री रविशंकर: जो जानता है वह बताएगा नहीं और जो बताएगा, वो जानता नहीं है|

प्रश्न: क्या हमें ज्योतिष शास्त्र में विश्वास करना चाहिए?
श्री श्री रविशंकर: ज्योतिष शास्त्र एक विज्ञान है, परन्तु ज्योतिषी वैज्ञानिक नहीं होते| बहुत बार, वे कभी कुछ कहते हैं और कभी कुछ और| यदि आपकी कुंडली में कुछ दोष है तो इसे साधना, सेवा और सत्संग से ठीक किया जा सकता है| हमें समझना चाहिए कि हमारा अतीत हमारी नियति था और हम अपने भविष्य को बदल सकते हैं|

प्रश्न: मेरा पढ़ने का मन नहीं करता|
श्री श्री रविशंकर: कुछ प्राणायाम और साधना करो और आप ध्यान लगा पाओगे|

प्रश्न: भारत आध्यात्मिकता में आगे है पर फिर भी इतना पिछड़ा हुआ है| क्यों?
श्री श्री रविशंकर: कौन कहता है कि भारत पिछड़ा हुआ है? क्या आप जानते हैं कि आज अमरीका सबसे अधिक ऋणग्रस्त देश है? उनकी आर्थिक स्थिति बहुत बुरी है और वे बहुत अधिक ऋणग्रस्त हैं|




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