हांगकांग, ५ जुलाई
आप जो भी देते हैं, वो आपके पास वापिस आता है। कुदरत ऐसी ही है। हम जो दुनिया को देते हैं, वही हमारे पास वापिस आता है।
क्या आप मुझे सुन सकते हैं? (बहुत ही धीमे स्वर में)
हमारी बोली में भी इतना ही प्रभाव होता है, और हमारी आवाज़ अनसुनी रह जाती है। धर्म, शांति और अहिंसा की आवाज़ ऊँची और स्पष्ट होनी चाहिए। तनाव का मुख्य कारण होता है जब हम समझते हैं कि हमे दूसरे ठीक से नहीं समझ रहे हैं। हम सोचते हैं हमें हमारे घर के सदस्य, पति-पत्नि, भाई, बहन, माँ-बाप, यां रिश्तेदार ठीक से नहीं समझ रहे हैं। इस वार्तालाभ की मुश्किल के कारण भावानात्मक तूफान उठता रहता है। बच्चों की शिकायत होती है कि माँ-बाप उन्हे नहीं समझते और माँ-बाप की शिकायत रहती है कि बच्चे उन्हे नहीं समझते। कितने माँ-बाप का यह अनुभव है?
हम सभी को कहीं न कहीं वार्तालाभ में मुश्किल अनुभव होती ही है। कितने लोग इससे सहमत हैं? पति-पत्नि को हाथ उठाने की ज़रुरत नहीं है, मैं नहीं चाहता कि उनके घर पर कोई तूफान आए! यह एक बहुत आम समस्या है कि हम सोचते हैं लोग हमे गलत समझ रहे हैं। पर दूसरों पर इलज़ाम लगाने की बजाए हमें अपने को बेहतर ढंग से अभिव्यक्त करने की आवश्यकता है। यह ऐसा है जैसे अगर मैं आपसे स्वाहिली में बात करूं तो आप समझ नहीं पाएंगे। एक ऐसी भाषा भी है जो सभी समझते हैं, पेड़-पौधे और जानवर भी, और वो भाषा है हृदय की भाषा। उसके लिए आपको शब्दों की ज़रुरत नहीं है, आपका अस्तित्व ही काफी है। अगर आपके पास कोई पिल्ला यां कुत्ता है तो उसको आपके प्रति प्रेम अभिव्यक्त करने के लिए शब्दों की ज़रुरत नहीं पड़ती, केवल उसकी मौजूदगी यां हाव भाव से ही प्रेम झलकता है।
हम इस प्रेम और मासुमियत के साथ ही पैदा हुए थे पर कहीं हमने वो खो दिया है। आप जितने अच्छे हैं, समाज आपको उससे अधिक अच्छा मानता है। अगर आपमें १०० प्रतिशत अच्छाई है तो समाज आपको २०० प्रतिशत अच्छा मानता है। दुनिया आपका सम्मान करती है। आप दुनिया का सम्मान करते हैं तो वही आपके पास वापिस आता है। जीवन में आपकी परिस्तिथि आपके मन में चल रहे भावों का प्रतिबिंब है। मैंने ५४ सालों में कभी किसी के लिए बुरे शब्दों का प्रयोग नहीं किया, कभी किसी को अपमानित भी नहीं किया।
आध्यात्म के सूत्र
१. अपने आप पर इलज़ाम मत दो-अपने आपको यां दूसरों पर इलज़ाम मत दो। ’मैं अच्छा/अच्छी नहीं हूँ, मुझ में यह अवगुण है’ - अगर आप ऐसा करते हैं तो आप कभी आध्यात्मिक नहीं हो सकते। जीवन में अच्छी और बुरी दोनो चीज़ें होती हैं। अगर आप अपने पर ही इलज़ाम देते रहते हैं तो आपकी मुस्कान और आत्म-विश्वास चला जाता है। आप में क्रोध और चिढ़ चिढ़ा पन आ जाता है जो आगे चल कर हिंसा का रूप ले लेता है। हिंसा से मन में आत्म हत्या के विचार आते हैं।
२. दूसरों पर इल्ज़ाम मत दो - हर कोई केवल एक डाकिया है जो आपकी चिट्ठी यां पार्सल आप तक पहुँचाता है। अगर आपने मिर्ची का ऑडर दिया और मिठाई की अपेक्षा कर रहे हैं तो यह देने वाले की गलती नहीं है। यदि आप किसी को उनकी गलती बताना चाहते हैं तो क्रोध से नहीं बल्कि करुणा से बताओ। एक दृढ़ता के साथ मुस्कान और करुणा से गलती बताओ।
३. पूरा विश्व आपका परिवार है और आपका कोई दुश्मन नहीं है - यह आध्यात्म का तीसरा सूत्र है। अगर आप सारे विश्व को अपने परिवार के रूप में नहीं स्वीकार कर सकते तो शुरुआत इससे करो - ’मेरा कोई दुश्मन नहीं है’। ऐसा करते ही जीवन में ऐसी शांति का उदय होगा जिसे आपसे कोई नहीं ले सकता।
प्रश्न : पति-पत्नि के रिश्ते की कामयाबी के लिए क्या ज़रुरी है?
श्री श्री रवि शंकर : मैं महिलाओं और पुरुषों को एक सुझाव देना चाहूंगा, और एक सुझाव दोनो के लिए:
महिलाओं के लिए : अपने पति के अहम को कभी ठेस मत पहुँचाओ। आपको उनके अहम को हमेशा बढ़ावा देना चाहिए। चाहे सारा संसार ही आपके पति के बारे में कुछ भी कहे पर आपको कभी अपने पति को नीचा नहीं दिखाना चाहिए। अगर आपका व्यवहार उन्हे यह दर्शाएगा कि वो किसी काम के नहीं हैं तो वो वैसे ही बन जाएंगे। पुरुष अभिव्यक्त करने में इतने अच्छे नहीं होते, इसलिए महिलाओं को उनसे तारीफ सुनने की अपेक्षा करने की बज़ाए उनकी तारीफ करनी चाहिए।
पुरुषों के लिए : अपनी पत्नि की भावनाओं को कभी ठेस मत पहुँचाओ। वो अपने परिवार के बारे में कभी कुछ भला बुरा कह सकती है पर आप कभी इस विषय में उनका पक्ष मत लेना। अगर आप भी इसमें शामिल हो जाते हैं तो आप पर ही मुश्किल आ जाएगी। अगर वो खरीदारी यां आध्यात्मिक सभा में जाना चाहे तो उसे मत रोको। अगर वो कहीं खरीदारी पर जाना चाहे तो आप उसे अपना क्रेडिट कार्ड दे दो।
दोनों के लिए एक सुझाव : एक दूसरे से अपने प्रति प्रेम का प्रमाण मत मांगो। कभी एक दूसरे से ऐसे प्रश्न मत पूछो, "क्या तुम मुझे सच में प्रेम करते/करती हो? तुम अब पहले जैसा प्रेम नहीं करते/करती?" किसी को अपने प्रेम का प्रमाण देना सिर पर पड़े भारी बोझ के समान है।
शेष अंश अगली पोस्ट में..
© The Art of Living Foundation For Global Spirituality