जुलाई १०, वेनकोवर, कैनेडा :
कोई भी तकनीक काम नहीं करती! वो तुम हो जिसके कारण तकनीक काम करती है, तुम्हारी श्रद्धा। जब तुम्हारा इरादा है और उस पर तुम ध्यान देते हो तो वैसा होने लगता है। अगर तुम्हारा इरादा नहीं है, तो वो काम नहीं करेगी। सुदर्शन क्रिया का प्रभाव होता है क्योंकि उसके पीछे इरादा है। किसी भी काम की पूर्ति के लिए उसके लिए इरादा, फिर उस पर ध्यान देना और वो होने लगता है।
अब हम कुछ प्राणायाम करते हैं। नाड़ी शोधन प्राणायाम से शुरु करते हैं। जब हमारी बाहिनी नासिका सक्रिय होती है तो दिमाग का दाहिना हिस्सा सक्रिय होता है, और जब दाहिनी नासिका सक्रिय होती है तो दिमाग का बाहिना हिस्सा सक्रिय होता है। दिमाग का दाहिना हिस्सा संगीत है और दिमाग का बाहिना हिस्सा तर्क। तो जिनकी दाहिनी नासिका सक्रिय है वो मुझे बेहतर समझ सकते हैं। और अगर दोनो सक्रिय हैं तो आप ध्यान में है। केवल दाहिनी नासिका सक्रिय होने से ध्यान नहीं होता। जब भी आप अपनी आँखे बंद करते हैं यां खोलते हैं तो आपकी स्थिति बदल जाती है। भोजन के बाद दाहिनी नासिका सक्रिय होनी चाहिए। जब दाहिनी नासिका सक्रिय होती है तो पाचन प्रक्रिया ५० प्रतिशत तेज़ होती है।
बाहिनी यां दाहिनी नाड़ी की सक्रियता बदलती रहती है क्योंकि हम प्राणों के सागर में रहते हैं।किस समय कौन सी नासिका सक्रिय होगी यह स्थान और वातावरण पर निर्भर करता है। अगर आप किसी मंदिर, गुरुद्वारे, चर्च यां किसी भी ऐसी जगह के पास जाते हैं जहाँ आध्यात्मिक उर्जा अधिक है तो दोनो नासिकाएं सक्रिय होती हैं। जब किसी पूजा के स्थान पर लोग पूर्ण भक्ति में होते हैं तो ऐसा होता है। जब आप किसी आध्यात्मिक गुरु से मिलते हैं तो ऐसा होता है। जब आप किसी आध्यात्मिक व्यक्ति से मिलते हैं तो आपकी आवाज़ आपको स्वयं बता देगी।
प्रश्न : गुरुजी हमे वादा कीजिए कि आप हर साल वेनकौवर आएंगे?
श्री श्री रवि शंकर : आपको पता है, मेरे लिए साल में ७०० दिन हैं!
प्रश्न : आप कहते हैं ध्यान में बैठते समय कोई प्रयत्न नहीं करना, पर मन का एक हिस्सा कुछ प्रयत्न करना चाहता है क्योंकि कुछ ना करने का भाव मन में उठता है। उस भाव के साथ क्या करूँ?
श्री श्री रवि शंकर : भस्त्रिका और आसन करो। उसमे प्रयत्न लगाओ। जब आप ध्यान के लिए बैठते हैं तो कोई प्रयत्न लगाने की आवशयकता नहीं है। जैसे ट्रेन पकड़ने के लिए प्रयत्न करना पड़ता है पर एक बार जब आप ट्रेन में बैठ गए तो केवल आराम से बैठना ही होता है। ट्रेन में भागने से आप अपने लक्ष्य पर जल्दी नहीं पहुँचते। एक बार चढ़ने के बाद आप केवल विश्राम करते हैं।
प्रश्न : इच्छाओं पर नियंत्रन कैसे करें?
श्री श्री रवि शंकर : इस क्षण में रहो। इच्छा का अर्थ है किसी आने वाले क्षण में सुख मिलने की चाह। अभी इसी क्षण में खुश और आनंदित रहो, बच्चों की तरह। अगर आप एक बच्चे से पूछते हैं कि उन्हें क्या चाहिए तो वो सहज ही कहता/कहती है - ’कुछ नहीं’, क्योंकि वो वर्तमान क्षण से खुश हैं।
प्रश्न : क्या आप लोगों का औरा देख सकते हैं?
श्री श्री रवि शंकर : इसमें कौन सी बड़ी बात है? तुम भी देख सकते हो।
प्रश्न : सिर दर्द और थकान से कैसे मुक्त हो सकते हैं?
श्री श्री रवि शंकर : योगा और प्राणायाम से।
प्रश्न : आप कैसे जान सकते हैं कि कोई उत्तर भीतर से आ रहा है यां तर्कसंगत मन से?
श्री श्री रवि शंकर : इसका कोई मापदंड नहीं है।मन जितना शांत होता है, तुम्हे सही उत्तर मिलता है।
प्रश्न : नकारात्मक विचारों के प्रवाह को कैसे रोक सकते हैं?
श्री श्री रवि शंकर : नकारात्मक विचार तीन कारणों से होते हैं - अगर रक्त का प्रवाह सही नहीं है,लसीका प्रणाली (lymphatic system) सही नहीं है यां मल त्याग (bowel moment) अनियमित है। आप फल आहार से अपनी आत्रें साफ कर सकते हैं। प्राणायाम से भी मदद मिलेगी। कुछ दिनों के लिए त्रिफला (आयुर्वेदिक परिशिष्ट) ले सकते हैं। योगा, प्राणायाम और ध्यान करो। तुम्हे फर्क अवश्य महसूस होगा। सामुहिक साधना से भी मदद मिलेगी।
प्रश्न: विचार अंदरूनी हैं यां बाहरी?
श्री श्री रवि शंकर : विचार मन में है। मन तुम्हारे चारों और है - अंदर भी और बाहर भी।
प्रश्न : हम ईश्वर के सामने रोते क्यों हैं? हम स्वयं को ईश्वर के पास कैसे ला सकते हैं?
श्री श्री रवि शंकर : जब तुम आंसु बहाते हो तो तुम्हे राहत महसूस होती है। मन की छाप धुल जाती है।
ईश्वर से निकटता के लिए तुम्हे कोई चेष्टा करने की आवश्यकता नहीं है। ईश्वर तुम्हारे सब से पास है। तुम खुद को कुछ भी मानते हो - अच्छा यां बुरा, ईश्वर तुम्हारे चारों और है। जैसे हवा तुम्हारे चारों और है। ईश्वर से कोई बचाव नहीं है, जैसे हवा तुम्हारे चारों और है चाहे तुम जाग्रित हो यां सुप्त हो। जब तुम्हे गर्मी लगती है तो तुम पंखे के सामने खड़े हो जाते हो। पंखा केवल उसी हवा को प्रवाह में लाता है जो वहाँ पहले से ही है। सत्संग पंखे की तरह हैं। मास्टर यां गुरु पंखे की तरह है। उसी से तुम हवा का प्रवाह महसूस करते हो।
प्रश्न : कृप्या सत चित आनंद का अर्थ बताएं?
श्री श्री रवि शंकर : सत का अर्थ है ’जो है’, चित वो है जो जानता है और आनंद का अर्थ है भीतरी खुशी।
प्रश्न : कोई अपने बचपन की छाप से कैसे बाहर आता है?
श्री श्री रवि शंकर : उसकी छाप पहले ही जा चुकी है। अगर तुम सोचत्ते हो कि उसकी छाप अभी भी मन पर है, तो उसे झाड़दो। स्मृति से दर्द को अलग करो। पर अगर तुम ऐसा करने के लिए प्रयत्न करते हो तो तुम स्मृति में उसे वापिस लकर आते हो। पर ध्यान में तुम दर्द को किसी घटना से जुड़ा हुआ नहीं बल्कि एक स्पंदन के रूप में अनुभव करते हो। जीवन का पहला अनुभव दर्द का ही था जब, एक छोटे से रास्ते के ज़रिए, माँ के गर्भ से बाहर आए थे। उससे पहले आप संपूर्ण आनंद में थे, आपको कुछ खाने की भी ज़रुरत नहीं पड़ती थी। फिर अचानक आप रोते हुए बाहर आए। आपने एक नए जन्में शिशु के चेहरे का भाव देखा है? यह ऐसा है जैसे वो १० घंटे के कड़े श्रम के बाद बाहर आया होता है। पहला अनुभव दर्द का होता है। और फिर बच्चा अपनी माँ की आँखों में देखता है और प्रेम का अनुभव करता है। तो दर्द को किसी घटना के साथ मत जोड़ो।
प्रश्न: किसी से बिछड़ने के दर्द से कैसे बाहर आ सकते हैं?
श्री श्री रवि शंकर : उज्जई श्वास।
प्रश्न : जब किसी की मृत्यु हो जाती है तो रिश्ते का क्या होता है? क्या उसी व्यक्ति से कोई रिश्ता अगले जन्म में फिर बनता है?
श्री श्री रवि शंकर : दोनों संभावनाएं हैं। कुछ रिश्ते खत्म हो जाते हैं और कुछ अगले जन्म तक चलते हैं।
प्रश्न : हम मन में चल रहे हाँ और ना के द्वंद से कैसे बाहर आ सकते हैं?
श्री श्री रवि शंकर : केवल मुस्कुराओ। जैसे परिस्तिथि आती है उसे स्वीकार करो।
प्रश्न : क्या यह हमारी ज़िम्मेदारी है कि हम बच्चे को जन्म दें? यां यह हम ईश्वर की इच्छा पर छोड़ सकते हैं?
श्री श्री रवि शंकर : अगर आप संतान चाहते हैं तो यह आप पर है। यह बहुत सीधा है। संतान चाहने का विचार भी सृष्टि के किसी नियम के आधार पर आ सकता है।
प्रश्न : कोई हमेशा प्रतिबद्ध कैसे रह सकता है?
श्री श्री रवि शंकर : क्या आपको उत्तर चाहिए? क्या उत्तर लेने के लिए प्रतिबद्ध हैं? चलो देखते हैं आप कितनी देर उत्तर लेने के लिए प्रतिबद्ध रह सकते हैं? आपको पता है, केवल एक प्रतिबद्धता जैसा कुछ नहीं है। समय समय पर आपको प्रतिबद्धताएं लेनी होती हैं जीवन में। यह आपके स्वभाव का हिस्सा है। अगर आप कमज़ोर हैं तो आप हर रोज़ अपनी प्रतिबद्धता तोड़ते हैं। अगर आप मज़बूत हैं तो आप उस पर डटे रहते हैं। कोई मज़बूत कैसे होता है? प्राणायाम और ध्यान से।
प्रश्न : ध्यान में नींद आ जाना गलत है क्या?
श्री श्री रवि शंकर : जब तक आप खर्राटे नहीं लेते और औरों को परेशानी नहीं होती, तब तक ठीक है! ध्यान गहरा विश्राम है। समाधि क्या है? एक मिलियन वर्षों के विश्राम जितना है यह। अगर एक क्षण के लिए भी ध्यान होता है, और आप उससे पहले यां बाद में सोए भी रहें तो कोई बात नहीं।
प्रश्न : कृप्या अपने और दूसरों के प्रति क्षमा भाव के बारे में बताएं?
श्री श्री रवि शंकर : अगर तुम्हे लगता है कि क्षमा करना मुश्किल है तो मत करो। जो आसान लगे उसे करो। अगर माफ करना मुश्किल है तो कभी माफ मत करो। अगर किसी के प्रति कोई शिकायत है तो सारा जीवन उसे अपने अंदर रखो। फिर तो तुम्हे उस भाव के साथ खुश रहना चाहिए। क्या किसी के लिए घृणा के भाव से तुम खुश रह सकते हो? अगर किसी ने कोई गल्ती की तो यह उनकी मुश्किल है, तुम्हारी नहीं। तुम्हे जो आसान लगे वो करो।
संघर्ष तब है जब हम क्षमा करना चाहते हैं पर कर नहीं पाते। हमे हर अपराधी को एक विपत्ति - ग्रस्त यां हालात के शिकार के रूप में देखना चाहिए। अगर किसी ने तुम्हारे साथ कुछ गलत किया तो निश्चय ही वो खुश नहीं था। नहीं तो उसने वैसा नहीं किया होता। वो तुम्हारी तरह सभ्य और परिष्कृत नहीं था। यह किसकी गल्ती है? अगर उसमें ज्ञान होता तो वो वैसा नहीं करता। इसलिए करुणा का भाव रखो।
प्रश्न : घरेलु हिंसा के बारे में बताएं औए कोई इसके साथ कैसे रह सकता है?
श्री श्री रवि शंकर : घरेलु और सामाजिक हिंसा, दोनो ही तनाव के कारण होती हैं। लोगों को कभी यह नहीं सिखाया गया कि तनाव से किस तरह मुक्त हों। किसी को आध्यात्म का ज्ञान नहीं दिया गया। क्या आपको नहीं लगता ध्यान और सुदर्शन क्रिया का यह ज्ञान सब तक पहुँचना चाहिए? अहिंसा का यह ज्ञान सब तक पहुँचना चाहिए?
लोगों तक यह ज्ञान पहुँचाना है। आप घरेलु हिंसा को ऐसे ही स्वीकार नहीं सकते। लोगों में ज्ञान लेकर आओ, उन्हे शिक्षित करो। इसके लिए अपना शत प्रतिशत लगादो। फिर आप देखेंगे उनका पूर्ण व्यवहार बदल गया है।
भारत में ७०० परिवारों का एक गाँव है नान्देड़। उसमें गाँवों में होने वाली आम चुनौतियाँ थी - शराब, कर्ज़ा आदि। एक ’आर्ट ऑफ लिविंग’ के अध्यापक ने इसे एक चुनौती की तरह लिया और छोटे समुहों में कोर्स लेने शुरु किए। कुछ ही महिनों में गाँव में एक विशाल बदलाव आया। अब सब लोग इकट्ठा होकर वहाँ सत्संग करते हैं। कोई भी शराब, सिगरेट यां किसी तरह का नशा नहीं करता। वहाँ किसी तरह का कोई जुर्म नहीं है। गाँव में एक दुकान है जो विश्वास पर चलती है, उसमें कोई दुकानदार नहीं है और लोग ज़रुरत का सामान लेकर पैसे डिब्बों में छोड़ जाते हैं। यह पिछले तीन साल से बिना किसी चोरी के ऐसे चल रहा है। सारा गाँव ऑरगैनिक है, और वहाँ कोई भी बिना रोज़गार के नहीं है। सारे गाँव में किसी दरवाज़े पर लौक नहीं है। एकता दर्शाने के लिए सभी घरों में गुलाबी रंग का पेंट है। गाँव में सभी स्वावलंबी हैं और वातावरण के प्रति सम्मान रखते हैं। उन्हें सबसे आदर्श गाँव का इनाम भी मिला। कर्नाटक में १८० गाँव और कुल ५०० गाँव इसी राह पर चल रहें हैं।
प्रश्न : मृत्यु के भय से कैसे बाहर आएं?
श्री श्री रवि शंकर : अगर तुम एकांत होकर केवल अपने बारे में ही सोचते रहोगे तो तुम्हे मृत्यु का भय लगेगा। जब तुम एक बार सेवा में लग जाते हो तो मृत्यु का कोई भय नहीं रहता। एक आतंकवादी किसी ध्येय के लिए प्रतिबद्ध होता है, इसलिए वो मत्यु से नहीं डरते। अगर तुम दूसरों का भला करना चाहते हो, तो इसके लिए तुम्हारी प्रतिबद्धता इस भय से तुम्हे दूर रखेगी।
प्रश्न : पृथ्वि पर रहने वालों के लिए आपकी क्या सलाह है? हम किस तरह रह सकते हैं कि ५० - १०० साल बाद भी ताज़ा हवा उपल्ब्ध हो?
श्री श्री रवि शंकर : कुदरत की देखभाल करो। कुदरत के लिए सम्मान रखो जैसे हर देश के मूल समुदाय कुदरत का सम्मान करते हैं। वातावरण का सम्मान करो। एक जगह ऐसी है जहाँ एक पेड़ काटो तो उसके बदले अगले ४० दिनो में ५ पेड़ लगाने की ज़िम्मेदारी ली जाती है। हमे कुदरत का सरंक्षण करना ही है।
प्रश्न : ऐसे में क्या करना चाहिए जब आप किसी से प्रेम करें पर वो आपसे प्रेम ना करे?
श्री श्री रवि शंकर : उन्हे यह पूछने की बजाए कि वो आपसे प्रेम क्यों नहीं करते, आप यह पूँछे कि वो आपसे इतना प्रेम क्यों करते हैं। आप उनसे कहें कि जितना प्रेम वो आपसे करते हैं आप उसके लायक नहीं हैं। जीवन में किसी भी मुश्किल का सामना एक अंदाज़ से करें।
पूरा जीवन एक खेल की तरह हैं। जीवन संघर्ष नहीं है। कुछ भी आपको खत्म नहीं कर सकता। आप अमर हैं। आपकी आत्मा अमर है। अगर अभी यह समझ नहीं आ रहा तो कोई बात नहीं। मैं वही कहुँगा जो मुझे पता है और किसी दिन आप भी इससे सहमत हो सकें। किसी भी चीज़ से डरने की ज़रुरत नहीं है। हमारे पास कोई विकल्प ही नहीं है।
प्रश्न : आप पाकिस्तान में तीन सेंटर स्थापित करने में कैसे सफल हो सके?
श्री श्री रवि शंकर : पाकिस्तान में लोग बहुत अच्छे हैं। वो बस सुदर्शन क्रिया करते हैं। हमारे अध्यापक हैं वहाँ। जब आप किन्ही धारणाओं में फंस जाते हैं तो यह एक पिजरें में कैद हो जाने जैसा है। जब आपका अनुभव होता है तभी आप पिंजरे से बाहर आ पाते हैं।
प्रश्न : कृप्या हमें बताएं कि २०१२ में क्या होगा?
श्री श्री रवि शंकर : वर्ष 2012 एक आकर्षण का केन्द्र बन गया है। यह एक सनसनी बन गई है। कोई भी ख़बर बिना सनसनी के अच्छी नहीं मानी जाती। हमारे पास और काम होगा करने को। लोग और आध्यात्मिक होंगे। यह एक फैशन ही नहीं पर एक ज़रुरत होगी। सुनहरा समय आ ही गया है।
मुझे लगता है मैने अब सब कह दिया है। बहुत बातें बिना शब्दों के कही जाती हैं। कुछ बातें शब्दों से भी नहीं कही जाती, कही भी जाएं तो समझ में नहीं आएगा।
जब आप घर जाएं तो यह सोचकर जाएं कि आप बहुत भाग्यशाली हैं। आप बहुत सुंदर हैं। इस ज्ञान को याद रखें और मुस्कुराहट फैलाएं। चिंता कम करके सबके जीवन में खुशहाली बिखराएं। आप यह काम करें और ईश्वर को आपके जीवन की देखरेख करने दें|
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