"जीवन में बुद्धि और भावना का सन्तुलन रखना चाहिये।"

प्रश्न : सेवा से थक जाते हैं, उत्साह नहीं रहता तो खुशी से उत्सव कैसे मनायें?

श्री श्री रविशंकर :
तब तो तुम्हारी सेवा में कोई कमी रह गयी होगी। जब सेवा उत्सव मनाने के भाव से करते हैं तो न थकावट और न ही मुर्झाहट लगती है। देखो भई, तुम सब लोग पिछ्ले दो तीन दिन कितने उत्साहित रहे पूरे दिनभर, और कल रात आप लोग देर रात तक जगे थे, पर मुझे तो कोई भी थका हुआ नज़र नहीं आ रहा !  आप को जो भी इतना लाभ मौन और ध्यान से मिल रहा है उसको सुरक्षित रखिये। हर एक काम में संयम का पालन करना चाहिये, कार्य में, बातचीत में, व्यवहार में - सब में। किसी बात में अतिश्योक्ति न हो, इसका ध्यान रखना चाहिये।

प्रश्न : जीवन में बहुत कुछ मिलता है पर अधूरी इच्छाओं के रहते एक असंतुष्टता की भावना रह जाती है मन में। इससे दुख पहुँचता है, क्या करें, इनसे कैसे निपटें?

श्री श्री रविशंकर :
आपने बेसिक कोर्स किया है न? उसमें क्या सीखा? जीवन में कभी सफलता तो कभी असफलता मिलती है और दोनों को साथ लेकर चलना है। असफलता से आप को कभी खुशी नहीं मिल सकती, उस से दुख ही मिलेगा। तो फ़िर उस समय क्या करें? उसके लिये अपने पास दो उपाय हैं - ’सो वट?’(तो क्या?) और ’सोहम’! अब तुम्हारे पास ये दो कुंजियाँ हैं परिस्तिथि को सम्भालने के लिये!

प्रश्न : गुरुजी,आज मैं सेवा कर रहा था पर ये भूल स्वीकार करना चाहता हूँ कि वह मैं आप का ध्यान आकर्षित करने के लिये कर रहा था।

श्री श्री रविशंकर :
कोई बात नहीं, इतनी ग्लानि महसूस मत करो कि तुमने मेरा ध्यान आकर्षित करने के लिये सेवा की थी। माना गलती हुई पर तुमने सेवा भी तो करी ना! और जैसे जैसे तुम आगे बढ़ोगे सुधार होता जायेगा। बहुत बार लोग प्रश्न भी ध्यान आकर्षित करने के लिये पूछते हैं। मैं जानता हूँ! इसीलिये केवल ध्यान आकर्षित करने में ही रुचि मत रखो - दोनों काम करो।

प्रश्न : हम ने सुना है कि यहाँ कृपा भरपूर मिल रही है पर हम कितना ले सकते हैं ये हमारे पात्र पर निर्भर है, तो हम ज्यादा मिलने के लिये अपने पात्र का आकार कैसे बढ़ायें?

श्री श्री रविशंकर :
योग से योग्यता और पात्रता बढ़ती है। योग, प्राणायाम आदि जो भी तुम सब यहाँ कर रहे हो, वे सभी तरह के गुण कुशलता और पात्रता बढ़ाते हैं। सेवा से भी ये सब बढ़ता है।

प्रश्न : साँस कैसी हो, लंबी, गहरी या धीमी, शांत?

श्री श्री रविशंकर :
आपको कभी लंबी और कभी धीमी दोनों सांस लेनी चाहिए। जब लंबी गहरी साँस लेते हो तो प्राण की ऊर्जा बढ़ती है, और धीमी और शांत साँस से विश्राम मिलता है।

प्रश्न : आज के युग में बहुत लोग शर्करा(Diabetes) की बीमारी से पीड़ित हैं जो सामान्य दवाइयों से दूर नहीं हो सकती है। क्या योग से ठीक हो सकती है?

श्री श्री रविशंकर :
हाँ, कुछ तरह की शर्करा की बीमरी योग और आयुर्वेद के साथ दूर हो सकती हैं, सब प्रकार की नहीं। यहाँ के अनुसंधान केन्द्र में डाक्टर वेदमूर्ताचार्य ने कुछ शोध किया है और ४३ शोध पत्र भी लिखे हैं। आप लोग उनसे बात कर लीजिये। इन्होंने १००० शर्करा के मरीजों पर शोध किया है जो सुदर्शन क्रिया व संतुलित भोजन से इस बीमारी से मुक्त हो गये हैं।

प्रश्न : मुझे हर काम के लिये बहुत प्रयत्न करना पड़ता है और सन्तोष जनक फल भी नहीं मिलता है।

श्री श्री रविशंकर :
तुमने अपने मन में ऐसा संकल्प क्यों धारण कर लिया कि तुम्हे सब काम के लिये बहुत प्रयत्न करना पड़ता है, यां तुम ठीक से कार्य नहीं कर पाते इत्यादि? ऐसी मान्यता तुमने स्वयं अपने ऊपर लाद रखी है। किसी समय ऐसा हुआ होगा पर आगे भविष्य में भी ऐसा ही हो यह ज़रुरी नहीं है।

प्रश्न : चित्त की एकाग्रता बढ़ाने के लिये क्या करना चाहिये?

श्री श्री रविशंकर :
और अधिक एडवान्स कोर्स करो।

प्रश्न : मैं बोध कैसे हासिल करूँ? मुझे भगवान से साक्षात्कार करना है, मुझे बोध प्राप्त करना है।

श्री श्री रविशंकर :
बोध प्राप्त करना है? भगवान से साक्षात्कार करना है? तो सेवा करो और विश्राम करो।

प्रश्न : मैं हर रोज़ अपनी साधना करता हूँ पर हर समय आपके साथ रहूँ यह एक प्रबल इच्छा बनी रहती है और जब दूसरों को आपके साथ बात करते देखता हूँ तो मतिभ्रम में पड़ कर सोचने लगता हूँ कि आप केवल मेरे से ही बात कर रहे हैं- एक बीमरी सी लगने लगी है। अगर मैं आपको देख लेता हूँ या आपका कुछ इशारा देखता हूँ तो कुछ ठीक पाता हूँ खुद को। पर आज सबको मिलते समय आपने मुझे देखा भी नहीं तो मुझे बुरा लगा। अब ये बुरा लगना और ये आपके पास रहने की बीमारी को कैसे दूर करूँ?

श्री श्री रविशंकर :
देखो जिस वक्त तुम्हें यह अहसास हुआ कि ये मोह बीमरी स्वरूप बन रहा है तो तुम उसी वक्त इस से बाहर आ गये। ठीक है कुछ वक्त के लिये किसी का ध्यान आकर्षित करना, पर हर समय ऐसा नहीं करना। तुम अपनी साधना, सेवा, सत्संग करते जाओ, खुश रहो और केन्द्रित रहो। ठीक है, बैठ कर उसका विश्लेषण मत करो- ये भक्ति थी यां मोह? ज्यादा विश्लेषण से परिणाम और भी खराब होंगे। बस सहज रहो, आगे चलते रहो, जो भी हो रहा है उसे स्वीकार करते जाओ, समझे? हमें हमेशा उस चीज़ की प्राप्ति होती है जिसकी हमें सही में जरूरत होती है, है ना? यह एक निर्धारित नियम है, यह जान कर आगे बढ़ते रहो।

प्रश्न : कुछ काम करते समय मैं ये सुनता हूँ कि यह कार्य गुरुजी ने मुझसे करने को कहा, इस से मेरे सामन्य जीवन पर असर पड़ने लगा है, मैं क्या करूँ?

श्री श्री रविशंकर :
संतुलन होना चाहिये तुम्हारे अंतरात्मा की आवाज़ और अपनी आन्तरिक शक्ति पर। जो तुम्हें परेशान कर रही है उसे योग माया कहते हैं। कभी कभी योग माया से भ्रमित मन में विचार आते हैं जो गलत भी होते हैं। इसलिये हमें अपने विवेक और बुद्धि को तीक्ष्ण और स्पष्ट रखना चाहिये। आन्तरिक चेतना के स्तर पर दिखने वाले दृश्य यां झलक और सुनाई पड़ने वाली आवाज़ को सही समझने के लिये विवेक और बुद्धि मे तीक्ष्णता चाहिए। राम कृष्ण परमहंस को भी ऐसी कई झलकियाँ, दृश्य दिखते थे। दुनिया में और भी कई सत्पुरुषों को ऐसे कई झलक दिखने या आन्तरिक आवाज़ सुनने का आभास हुआ है। इसलिये सन्तुलन रखो और धीमी गति से बुद्धि और भावों में समता से आगे बड़ों। जीवन में दोनों- बुद्धि और भावना का, दिमाग और दिल का सन्तुलन होना चाहिये।

प्रश्न : गीता में श्री कृष्ण ने ये संसार गुणों का खेल कहा है - इसका क्या अर्थ है?

श्री श्री रविशंकर :
गीता पर बहस करने में बहुत वक्त लगेगा, तो अभी नहीं करेंगे। फिर से पढ़ो, क्योंकि कभी कभी पढ़ते ही तुरंत समझ आ जाता है, और कभी अनेक बार पढ़ने पर समझ आता है।

प्रश्न : कभी मुझे अच्छा लगता है और कभी बुरा- दोनों में संतुलन कैसे लाऊँ?

श्री श्री रविशंकर :
कुछ दिन मौन रखो और देखो जो उचित है वही भावना प्रेक्षित होंगी।

प्रश्न : मैं पिछले छह साल से सुदर्शन क्रिया कर रहा हूँ और एक नयी जिंदगी जी रहा हूँ। खुशीपूर्वक नकारात्मक विचार रहित जीवन जी रहा हूं पर एक समस्या है - मेरी स्मरण शक्ति पहले जैसी नहीं है अब तो कुछ उपाय करूँ यां ऐसे ही छोड़ दूँ?

श्री श्री रविशंकर :
उम्र के हिसाब से तुम्हें आयुर्वेदिक दवाई लेनी चाहिये जैसे ब्राह्मी, शंख पुष्पी आदि जिससे लाभ मिलेगा। हमारे देश में आजकल जो हमने भोजन प्रणाली बना रखी है वह स्मरणशक्ति के लिये उपयुक्त नहीं है, उसमें स्टार्च, कार्बोहाईड्रेट्स ज्यादा हैं व सब्जी, प्रोटीन्स, फल इत्यादि कम। अपने भोजन में बदलाव करो और देखो कि इनकी मात्रा ज्यादा हो। इसके साथ आयुर्वेदिक दवाइयाँ (ब्राह्मी आदि), प्राणायाम, योग से लाभ होगा।

प्रश्न : आप कहते हैं चुनाव या निर्णय हमारा है और आशीर्वाद आपका पर मैं क्या नौकरी करूं, यह समझ नहीं पा रही। एक नौकरी लेती हूँ और कुछ समय बाद छोड़ देती हूँ - क्या आप मेरे लिये निर्णय ले सकते हैं?

श्री श्री रविशंकर :
जब हम कभी भी कोई काम लेते हैं तो कुछ समय बाद लगता है ये नहीं कुछ और ठीक रहता। जो लोग डाक्टर बने हैं वे सोचते हैं एन्जिनीयर बनते तो अच्छा था, और जो एन्जिनीयर हैं वे सोचते हैं अरे वकील बनते तो अच्छी कमाई रहती! तो हर नियुक्त कार्य में कोई दोष तो मिलेगा ही। इसीलिये मैं कहता हूँ अपनी पसंद का काम हाथ में लो और उसके साथ निभाओ। और मैं आपके लिए कार्यक्षेत्र नहीं चुनूंगा। आप सब अपना कार्य क्षेत्र खुद तय करें, मेरा आशीर्वाद साथ में है ही।

प्रश्न : गुरुजी, समय क्या है? क्या इसको और इसकी गति को बदला जा सकता है?

श्री श्री रविशंकर :
दो घटनाओं के बीच जो दूरी है वह समय है। दुख में समय लंबा और सुख में छोटा प्रतीत होता है, इसकी गति में बदलाव मौन द्वारा किया जा सकता है।

प्रश्न : आपने नारद भक्ति सूत्र में कहा कि सब माया है, तो क्या इसका मतलब है कि हम कोई कार्य नहीं करें?

श्री श्री रविशंकर :
पहले तुम पूरे भक्ति सूत्र की व्याख्या सुनो, आधा यां एक टेप सुन कर कोई धारणा बनाना उचित नहीं है।

प्रश्न : आप से मिल कर भी मैं संतुष्ट नहीं होता - मुझे लगता है आप दूसरों को ज़्यादा वक्त देते हैं। आज भी दर्शन कतार में आप मुझे बिना देखे आगे निकल गये। और मुझे जब आप से बात करने का मौका भी मिलता है तब मैं बोल ही नहीं पाता, क्या बोलूं समझ ही नहीं पाता! फिर लगता है ’अरे मैं ये कहना भूल गया’, ’ये पूछना भूल गया’-और इस तरह अपने दिमाग में विश्लेषण करने लगता हूँ- अब क्या करूँ?

श्री श्री रविशंकर :
कैसे सोचा कि तुम्हें नहीं देखा? मैं हर एक जो दर्शन के लिये आता है उसे देखता हूँ, किसी को भी नहीं छोड़ता! और तुम मिलने पर कुछ भी पूछना भूल जाते हो तो वो भी ठीक है- अब बोल दिये ना!

प्रश्न : सुना है कि अभिमन्यु ने युद्ध की एक कठिन कला "चक्रव्यूह" तोड़ने की कला, गर्भ में ही सीख ली थी। क्या ये सम्भव है कि कोई गर्भ में भी सीख सकता है?

श्री श्री रविशंकर :
हाँ, यह सत्य है।


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