"हमारे लिए जो ज़रूरी है वो हमको मिलता है"

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बैंगलोर आश्रम, भारत

प्रश्न : गुरुजी, महात्मा गांधी के अहिंसावादी सिद्धांत को जीवन में कितना उतारना चाहिये?

श्री श्री रवि शंकर :
अहिंसा का सिद्धांत अत्यंत प्राचीन समय से चल रहा है। जीवन में अहिंसा तो रहनी ही चाहिए। कभी किसी के भले के लिये अगर उसे थप्पड़ भी मारना पड़ता है, तो मुस्कुराते मुस्कराते मारना चाहिए। देखो, भैंस को आगे बढ़ाने के लिये उसे छ्ड़ी से धक्का भी देना पड़ता है। गाय तो केवल आवाज़ से चल पड़ती है।पर भैंस और गधे के लिये लाठी ज़रुरी हो जाती है। इसे हिंसा नहीं मानते। हिंसा किसे कहते हैं? जब भीतर आक्रोश है, द्वेश है, क्रोध है, उससे जो काम करते हैं वो हिंसा होता है।

प्रश्न : क्या कोई हमें थप्पड़ मारे तो क्या हमें दूसरा गाल भी आगे कर देना चाहिये?

श्री श्री रवि शंकर :
अगर वह व्यक्ति संवेदनशील है, तो दूसरा गाल भी आगे कर दो, वह तुम्हें दोबारा थप्पड़ नहीं मार पायेगा। पर अगर कोई असंवेदनशील हो तो तुम भी उसे दो-तीन लगा सकते हो!

प्रश्न : कभी कभी लोग पूछते हैं कि तुम सिर्फ़ भगवान को क्यों नहीं मानते, गुरु को क्यों मानते हो? मेरा जवाब होता है कि मेरे गुरु ही मेरे भगवान हैं। पर क्या भगवान और गुरु में कोई अंतर है?

श्री श्री रवि शंकर :
ठीक है, तुम्हें लोगों को सफ़ाई देने की ज़रूरत नहीं है। बस मुस्कुराओ। तुम कह सकते हो, ‘क्या तुम नहीं जानते कि आत्मा, भगवान और गुरु, एक ही हैं।’ ये पूरा ब्रह्माण्ड एक ही तत्व से बना है। जैसे, बिजली तो एक ही है, पर वह अलग अलग उपकरणों में अलग दिखती है - बल्ब, पंखा, वातानुकूल, इत्यादि। वैसे ही अलग अलग शरीर और तौर तरीके हो सकते हैं, पर हम सब एक ही तत्व से बने हैं।

प्रश्न : अगर भगवान हमारी कोई प्रार्थना पूरी नहीं कर रहे हैं, तो क्या क्रिया और साधना में मज़बूत करने से वो पूरी हो जायेगी?

श्री श्री रवि शंकर :
धीरज रखो। आशा रखो कि वह पूरी हो सकती है। हमारे लिए जो ज़रूरी है वो हमको मिलता है।

प्रश्न : कभी कभी अपने आप पर मेरा नियंत्रण ढीला पड़ जाता है। ऐसी स्थिति में क्या करूं?

श्री श्री रवि शंकर :
ऐसा कभी कभी होता है तो कोई बात नहीं है। ऐसा हर समय तो नहीं होता है ना? तुम पीछे मुड़कर देखो। (प्रश्नकर्ता अपने पीछे मुड़ कर देखता है, और सभी लोग हँसने लगे।) अभी नहीं! अपने जीवन में पीछे मुड़कर देखो - एक साल, दो साल, तीन साल पहले जाकर देखो कि तुम तब क्या थे और आज क्या हो। तुमने कोई फ़र्क देखा? कितना फ़र्क देखा? तुम कह रहे हो एक महीने में जब से तुम सुदर्शन क्रिया कर रहे हो तुमने बहुत फ़र्क देखा है। तुम आगे भी बहुत फ़र्क देखोगे।

प्रश्न : Art of Living में हम कौन से योग का अभ्यास करते हैं - हठ योग, राज योग, कर्म योग यां ध्यान योग?
श्री श्री रवि शंकर : Art of Living में सब है। सब योग मिलकर Art of Living में हैं। भक्ति योग, कर्म योग, ध्यान योग सब हैं।

प्रश्न : क्या मैं हठ योग का अभ्यास कर सकता हूँ?

श्री श्री रवि शंकर :
तुम जिस भी योग का अभ्यास करो, सहजता और असानी से करो। अपने शरीर को बहुत कष्ट देने की आवश्यकता नहीं है। साधारण और सहज रहो। हठ योग के अभ्यास के लिये कई सावधानियां बरतनी पड़ती हैं।

प्रश्न : गुरुजी, मैं बहुत सारा काम करना चाहता हूँ, पर वह मेरे अधिकार क्षेत्र के बाहर आता है। क्या फिर भी मैं इस बारे में सोचूं और स्वप्न लूँ?

श्री श्री रवि शंकर :
हाँ, तुम्हें ऐसा स्वप्न रखना चाहिये।

प्रश्न: हम राष्ट्र के प्रति अपनी कृतज्ञता जताने के लिये क्या करें?

श्री श्री रवि शंकर :
अपने राष्ट्र के प्रति अपना प्रेम और कृतज्ञता दर्शाने के लिये तुम्हें समाज में बहुत काम करना चाहिये ताकि हमारे गाँव विकास करे और स्वावलंबी बने। समाज को भ्रष्टाचार और हिंसा से मुक्त करने के लिये हमें पूरे दिल से काम करना है। ठीक है?

प्रश्न : मैंने अपने अंतिम साल की परीक्षा दी है और मैं आगे और पढ़ना चाहता हूँ। मैं आगे पढ़ना चाहता हूँ, पर एकाग्रता से पढ़ाई नहीं कर पाता हूँ। मैं क्या करूँ?

श्री श्री रवि शंकर :
अगर तुम एकाग्रता से पढ़ाई नहीं कर पा रहे हो तो इन तीन बातों पर ध्यान दो -

१. तुम्हारा भोजन. अपने भोजन पर ध्यान दो। इस पर ध्यान दो कि तुम क्या खाते हो।

२. क्या तुम कोई शारीरिक व्यायाम करते हो? अगर तुम केवल बैठ कर टी वी देखते रहते हो या कम्प्यूटर पर इन्टरनेट पर काम करते रहते हो, तो शरीर में ऊर्जा का संचार कम होता है। तब तुम आलसी हो जाते हो, और पढ़ने में मन नहीं लगता। तो, कुछ शारीरिक व्यायाम करना आवश्यक है।

३. योग, प्राणायाम, ध्यान और सत्संग में भाग लेना, इत्यादि। इतना करने से तुम्हारे शरीर की सभी आवश्यकतायें पूरी हो जायेंगी। और फिर तुम बैठ कर पढ़ने के लिये अच्छा समय दे सकते हो। इससे तुम्हारी समझने की शक्ति और याद्दाश्त भी बढ़ जायेगी, और तुम कम समय में अधिक ग्रहण कर सकोगे। आगे पढ़ने की तुम्हारे इच्छा है तो पढ़ो, निर्णय तुम्हारा है, और मेरा आशीर्वाद है।

प्रश्न : भगवान शंकर और कृष्ण में क्या फ़र्क है? कुछ लोग शिव की पूजा करते हैं और कुछ लोग कृष्ण की।

श्री श्री रवि शंकर : नाम और रूप अनेक हैं, पर सब एक ही है।

प्रश्न : इनमें से क्या ज़्यादा महत्वपूर्ण हैं - हमारे संस्कार या जाति? जो लोग जातिवाद और धर्मवाद का समर्थन करते हैं, अन्तर्जातीय विवाह का विरोध करते हैं। दोनों में क्या अधिक महत्वपूर्ण है - मानवीय गुणं या व्यक्ति का धर्म और जाति?

श्री श्री रवि शंकर :
मानवीयता को अधिक महत्व देना चाहिये।

प्रश्न: क्या विवाह संबंधों से पहले जन्म-पत्री मिलानी चाहिये? क्या इस में विश्वास करना चाहिये? क्या मांगलिक होने से कोई फ़र्क पड़ता है?

श्री श्री रवि शंकर :
> ये विज्ञान है, पर ये इस पर निर्भर करता है कि बताने वाला कैसा है। कई बार ज्योतिष के नाम पर लोग ठग लेते हैं। जन्म-पत्री मिलाने में कुछ तो है, अगर तुम्हे लगे तो कर सकते हो । ॐ नमः शिवाय का जप करना सब कमियों का उपाय है।

प्रश्न : आप हमारे Art of living के गुरु हैं, पर परिवार में भी गुरु हैं, पारंपरिक धार्मिक क्रियायें हैं, उपासना की अलग पद्दति है, क्या हमें उन्हें भी निभाना चाहिये?

श्री श्री रवि शंकर :
देखो, अगर परिवार में एक परंपरा चली आ रही है बहुत समय से तो उसे करने में क्या हर्ज है? पारिवारिक परंपराओं को निभाना चाहिये।

प्रश्न : असफलता को कैसे स्वीकार करें?

श्री श्री रवि शंकर :
ये जान कर कि ये भविष्य में सफलता की तरफ़ एक कदम है।

प्रश्न : कोर्स करने के बाद आप तीन बार मेरे सपने में आये। दूसरी बार जब आप सपने में आये तो मैंने देखा कि अब आप इस दुनिया में नहीं रहे।

श्री श्री रवि शंकर :
ठीक है। इससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता है। अभी उस बात को होने में बहुत समय बाकी है!

प्रश्न : Art of Living में बहुत सारे अध्यापक हैं जो कि प्रेरणास्रोत हैं। अच्छा अध्यापक होने के लिये क्या योग्यता चाहिये?

श्री श्री रवि शंकर : हाँ, टीचर्ज़ ट्रेनिंग ले लो, और अच्छी तरह से अपने आप को तैयार कर लो।

प्रश्न : मेरे गुरु होने के लिये धन्यवाद। मैं एक सिख हूँ, और हमारे धर्म में हमारे अंतिम गुरु ने कहा था कि अब कोई गुरु नहीं होगा, गुरु ग्रंथ साहिब ही गुरु का स्वरूप है। तो, मेरे परिवार के लोग नहीं चाहते कि मैं किसी को गुरु मानूँ। मैं उन्हें कैसे समझाऊं?

श्री श्री रवि शंकर :
सब ठीक है। वाहे गुरु वाहे गुरु कहो। जो भी धर्म है उन्हें वो निभाने दो, पर वो कोर्स कर सकते हैं और सब से मित्रता कर सकते हैं।

प्रश्न : Art of living के कुछ स्वयंसेवी आपके आशीर्वाद से राजनीति में जाना चाहते हैं।

श्री श्री रवि शंकर :
हाँ, ठीक है। उन्हें राजनीति में जाना चाहिये। राजनीति की सफ़ाई करनी चाहिए जैसे कि Art of Living के स्वयंसेवियों ने यमुना की सफ़ाई की!


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