१५ जुलाई, मोन्ट्रियल आश्रम
प्रश्न : जब सेना में सिपाही किसी को मारते हैं तो क्या बुरा कर्म बनता है?
श्री श्री रवि शंकर : एक पुलिस अधिकारी का उदाहरण लेते हैं। एक पुलिस वाला समाज में शांति बनाने का अपना काम करता है, तो यह बुरा नहीं है। सेना में सिपाही अपने आदेश का पालन कर रहा है, वह उसका काम है। जिसने आदेश दिया उसका कर्म बनता है।
प्रश्न : क्या आप solar plexus और सूरज के साथ हमारे संबंध के बारे में बताएंगे? इस संबंध को, हमारे nervous system को और शरीर की प्रतिरक्षा को कैसे बढ़ाया जा सकता है?
श्री श्री रवि शंकर : प्राणायाम और ध्यान से। बस इतना जान लो कि संबंध है। आप अपने आसपास की हवा से संबंधित हैं। आप चाहें जानते हैं यां नहीं, पर ऐसा है। हमारे शरीर में गुरुत्वाकर्षण का केन्द्र solar plexus है, और सौर मंडल का केन्द्र सूरज है।
प्रश्न : समाज के उत्थान का आपका लक्ष्य क्या आप पर कभी बोझिल लगता है? ऐसे में क्या आपकी मदद करता है?
श्री श्री रवि शंकर : आप सबका सहयोग मदद करता है। जब आप लोग लिखते हैं, इस बारे में बात करते हैं। संसार में पक्षपात को खत्म करना है। यह बहुत कम है पर इस अवरोध को मिटाना है। और आप सब इसे कम करने में सहायता कर सकते हैं।
प्रश्न : भगवद गीता मेरे दिल के बहुत पास है, पर फिर भी एक बात मुझे दुविधा में डालती है। और वो यह कि जब अर्जुन युद्ध छोड़ कर समाज से दूर जाना चाहता था तो श्री कृष्ण ने उसे अपनी ज़िम्मेदारी को निभाते हुए युद्ध में डटे रहने के लिए कहा। श्री कृष्ण का यह सुझाव अहिंसा के मार्ग पर चलने के विरोध में प्रतीत होता है। क्या यह इस्लाम और ईसाइ धर्म के 'Just War' के समान है?
श्री श्री रवि शंकर : गीता का सार यही है कि कृत में आस्क्त हुए बिना अपना काम करते रहना। यह योग के बारे में है, युद्ध के बारे में नहीं बल्कि आपके रवैये के बारे में। जब आपके सामने युद्ध जैसी कोई घटना आ जाए तो खुद को कैसे संभालते हैं? जीवन में सबसे बुरी घटना यही होगी कि आपको युद्ध करना पड़े, और वो भी किसी दुश्मन से नहीं पर अपने लोगों से। जब आपको अपने ही भाई, बहनों यां रिश्तेदारों से लड़ना पड़े तो परिस्तिथि कैसे संभालें? जिसे आप पसंद नहीं करते, जो आपको दुश्मन लगता है, उसके साथ युद्ध करना आसान है। पर किसी ऐसे के साथ लड़ना जो आपके परिवार का हिस्सा है, यह सबसे बुरा है। अगर आप ऐसी परिस्तिथि में भी अपने आपको संभाल सकते हैं तो आप किसी भी परिस्तिथि में अपने आपको संभाल सकेंगे। यही गीता का सार भी है। कार्य में कुशलता योगा है।
ऐसा ही ज्ञान अष्टावक्र द्वारा राजमहल में दिया गया था। जब आप में ऊर्जा है, उत्साह है और आप मुक्ति चाहते हैं, यह राजा जनक की स्थिति थी। पर जब आप पूर्ण उदास हैं और मन में हलचल है, तो यह अर्जुन की स्थिति थी। उस समय उसे वही ज्ञान भगवद गीता में दिया गया।
प्रश्न : क्या हम अपने पिछले कर्मों का प्रभाव मिटा सकते हैं? क्या गुरु ऐसा कर सकते हैं?
श्री श्री रवि शंकर : हाँ।
प्रश्न : क्या मानवता के दायरे के अंदर ईश्वर को उतना ही प्रेम करना संभव है जितना वो मुझे करते हैं। मैं ईश्वर को और प्रेम करना चाहता हूँ पर यह अहंकार, मन और शरीर बाधक बन जाते हैं। मैं इस अवरोध को कैसे पार सकता हूँ?
श्री श्री रवि शंकर : प्रेम का स्वभाव ही ऐसा है कि लगता है काफी नहीं है। प्रेम में ऐसा लग ही नहीं सकता कि इतना बहुत है। जब आप प्रेम में होते हैं तो आप सोचते हैं आपको और करना है, और देना है, और प्रेम करना है। कुछ और का भाव, कुछ अधूरा होने का भाव, यह प्रेम का स्वभाव है। इसीलिए प्रेम अनंत है। इसका कोई अंत नहीं है, कोई सीमा नहीं है। इससे कभी ऊब ही नहीं सकते।
प्रश्न : मैने आपको कहते हुए सुना और मैं ऐसा मानता भी हूँ कि ईश्वर सब जगह है। तो फिर पूजा का कितना मह्त्व है और ऋषिकेश जैसी धार्मिक जगह पर जाने का कितना महत्व है?
श्री श्री रवि शंकर : यह ऐसा है जैसे आप घर पर खाना खाते हैं और कभी आप किसी रेस्ट्रोरेंट में भी जाते हैं। आप रेस्ट्रोंरेंट में इसलिए नहीं जाते क्योंकि घर पर भोजन नहीं है। पर आप इसलिए जाते हैं क्योंकि आप सभी व्यंजनों का एक जैसा आनंद उठाते हैं।
प्रश्न : जीवन में दुर्घटनाओं और बीमारियों की क्या वजह है? हम अपना इतना ध्यान रखते हैं पर फिर भी यह सब जीवन में होता है। ऐसा क्यों?
श्री श्री रवि शंकर : जब हम नियम तोड़ते हैं तो ऐसा होता ही है। जैसे सिगनल पर लाल यां हरी बत्ती का नियम तोड़ते हैं तो दुर्घटना होने की संभावना अधिक ही होती है। किसी और के नियम तोड़ने से भी ऐसा होता है। आप अकेले नहीं है, हम जीवन में और बहुत से कारणों से जुड़े हुए हैं।
प्रश्न : क्या angels होती हैं? आप उनके बारे में कुछ बताएं।
श्री श्री रवि शंकर : हाँ, angels होती हैं और सबके लिए अच्छी कामनाओं से तृप्त होती हैं। वो यहाँ बैठे भौतिक शरीर वालों के रूप में ही नहीं बल्कि ईश्वरीय भी होती हैं।
प्रश्न : मैं बहुत अधिक भविष्य में ही उल्झा रहता हूँ। मन में कुछ ना कुछ भविष्य के बारे में चलता रहता है। मेरी बहुत कोशिश के बावजूद भी मैं इस से बाहर नहीं आ पा रहा हूँ। मुझे क्या करना चाहिए?
श्री श्री रवि शंकर : अधिक ज्ञान और ध्यान।
प्रश्न: एक युवक होते हुए मुझे अपने को वृद्धावस्था की ओर बढ़ते हुए देखना अच्छा लगता है, पर फिर भी मुझे वृद्धावस्था की कई बीमारियों और अन्य चीज़ों से डर लगता है। क्या किसी मानव के लिए यह संभव है कि वो इन सब बीमारियों से ऊपर उठ जाए?और अगर हाँ, तो यह कैसे संभव है?
श्री श्री रवि शंकर : तुम पहले ही सही काम कर रहे हो - यह ज्ञान, यह पथ, योग। जैसे जैसे तुम वृद्ध होते हो योगा करते रहो, सही आहार, सही विश्राम, और जीवन के प्रति सही नज़रिया रखो।
प्रश्न : क्या आप औरोबिन्दो के बारे में कुछ बता सकते हैं?
श्री श्री रवि शंकर : आपको पता है, जब आप औरोबिन्दों के बारे में पूछ रहे हैं, आप पहले ही उस बारे में जानते हैं। वो चाहते थे अधिक से अधिक लोग ध्यान करें। तो जो बीज उन्होने बोया था, उसका लक्ष्य था सामूहिक चेतना पर और अधिक पहुँच, यह अभी हो रहा है।
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