ग्रेटर वेनकोवर,
ब्रिटिश कोलम्बिया, जुलाई ९:
लक्ष्मी नारायण मंदिर में श्री श्री रवि शंकर द्वारा दिए गए ज्ञान के अंश :
हमारी आवाज़ दृढ़ होनी चाहिए। सत्य और धर्म की आवाज़ धीमि है। जब हिंसा की आवाज़ मज़बूत होती है तो वो मुश्किल का कारण बनती है। जब प्रेम की आवाज़ मज़बूत और हिंसा की आवाज़ धीमि होती है तो उसे सत्युग कहते हैं। श्री राम की आवाज़ रावण की आवाज़ से अधिक दृढ़ होनी चाहिए, तभी सत्य की विज्य होती है। श्री कष्ण के साथ भी ऐसा ही है।
जब जीवन संघर्ष लगे तो हमे ज्ञान में केन्द्रित होने की ज़रुरत है। यहाँ तक कि अर्जुन को भी शुरु में ध्यान करने के लिए और ज्ञान मे रहने के लिए कहा गया था। उसके बाद ही हमे काम करना चाहिए। हमेशा ज्ञान मे रहकर काम करो।
तीन तरह की उत्तमता है :
१. मन की उत्तमता है मन को शांत रखना।
२. बोली की उत्तमता है केवल आवश्यक्ता होने पर ही बोलना। लड़ाई में पड़ने की कोई ज़रुरत नहीं है।
३. फिर कृत में उत्तमता। कृत में शत प्रतिशत उत्तमता संभव नहीं है।
पर साधना, सेवा और सत्संग से मन और वाणी में उत्तमता लाई जा सकती है। एक बार मन और वाणी उत्त्म हो जाएं तो कृत में सहज ही उत्तमता आ जाती है।
मैं बहुत खुश हूँ कि यहाँ मंदिर की देखरेख करने वाले अधिकारी भारतीय सभ्यता का संरक्षण कर रहे हैं। सबको साथ में लेकर चलना और गले लगाना भारत की सभ्यता में है। कोई भी अलग नहीं है। हमने सबको अपना बनाया है। उदाहरण के लिए गुरु ग्रंथ साहिब में ब्रह्मज्ञान को आसान शब्दों में बताया है। यह भारत की विशेषता है। हमे ज्ञान केवल अपने तक सीमित ना रखकर सबके साथ बांटना चाहिए, जिससे सबका हित हो सके। यह भी बहुत ज़रुरी है।
अक्सर लोग पूछते हैं हम इतने देवी यां देवताओं की पूजा क्यों करते हैं। परमात्मा एक है पर फिर भी उसे बहुत नामों से बुलाते हैं। जैसे उसी आटे से कभी हम नूडल्ज़ और कभी समोसा बनाते हैं। पर है तो वो वही आटा। इसी तरह वो एक ही परमात्मा है जिसे हम विभिन्न रूप और रंग में जानते हैं।
आरती का अर्थ है पूर्ण आनंद। जब हमारे जीवन की ज्योति ईश्वर के इर्द गिर्द होती है तो हम पूर्ण खुशी अनुभव करते हैं। हमे रीति-रिवाज़ों के गहरे अर्थ को समझना चाहिए और तभी हम स्वयं खुश रह पाएंगे और औरों को भी खुश कर सकेंगे। हमें दुख और अप्रसन्नता से बाहर आना ही है। हम सबको प्राणायाम करना चाहिए। हमे अपने श्वास पर रोज़ कुछ मिनट ध्यान देना चाहिए। इसे प्राणायाम और क्रिया कहते हैं। इससे लोग आनंद अनुभव कर सकते हैं। भीतर से आनंदित रहना पूर्ण विश्राम है। क्रिया हमे सेहतमंद रहने में, और मन, भावना और बुद्धि को शुद्ध रखने में भी सहायक है। यह हमे ग्लानि से बाहर लाती है और वर्तमान क्षण में रहने में सहायक होती है।
क्या आप मोबाइल का इस्तेमाल करते हैं? अगर आप अंक दबाते रहें पर अंदर सिम कार्ड ना हो तो क्या कोई फायदा होगा? अगर सिम कार्ड है पर रेंज नहीं है तो क्या कुछ होगा? अगर रेंज भी है पर बैटरी नहीं है तो क्या कुछ होगा? साधना सिम कार्ड है, रेंज श्रद्धा है। अगर आप प्रार्थना करते हैं और आपको लगता है कि ईश्वर आपकी प्रार्थना नहीं सुन रहे तो आपके पास सिम कार्ड ही नहीं है। किसी प्रार्थना का असर नहीं होगा ऐसे में। सत्संग चार्ज की तरह है। मंदिर और गुरुद्वारा सोकेट की तरह हैं जहाँ बैटरी चार्ज होती है। अगर हम मंदिर यां गुरुद्वारों में ही झगड़ा करते हैं तो वो शुद्ध चेतना तो रह ही नहीं जाती। वहाँ ईश्वर का वास कैसे होगा?
जहाँ सब खुश होते हैं, वहाँ ईश्वर का वास होता है। जब मन खुश होता है तो हमारा भी काम होता है और हम में दूसरो को ब्लेस करने की क्षमता भी आती है। आत्मा में सब गुण निहित हैं। आत्म ज्ञान से यह सब गुण उजागर होते हैं। अगर आप लोगों को ब्लेस करते हैं, लोगों का शुभ चाहते हैं तो सब होने लगता है।
अगर आपके पास मोबाइल है पर आप नंबर नहीं मिलाते तो क्या कुछ होगा? आपको अपने को प्रकृति से, परमात्मा से और अपनी आत्मा से जोड़ना है। और फ़िर सब कुछ होने लेगेगा।
इसलिए हमने बहुत से लोगों को बलेसर्ज बनाया है जिन्होने ब्लेसिंग कोर्स किया है। वो खुश ही होते हैं और लोगों को ब्लेस कर सकते हैं।
महाराष्ट्र में एक गाँव अपनी बुराई के लिए कुख्यात था और आज वही एक आदर्श गाँव बना है। पहले लोग वहाँ जाने से डरते थे और आज वहीं पर ६०० लोग एक साथ रोज संत्संग कर रहें हैं। उस गाँव मे किसी तरह की कोई बुराई नहीं है। वहाँ कोई नशे नहीं लेता। वहाँ एक दुकान हैं जहाँ कोई दुकानदार नहीं है। लोग वहाँ से सामान लेते हैं और अपने आप पैसे छोड़ देते हैं। वहाँ सब कुछ जैविक(ऑरगैनिक) है। कोई रासायनिक खेती नहीं है और सब के पास रोजगार है। पिछले तीन साल से यह गाँव ऐसा चल रहा है। १८० गाँव इसी दिशा में चल रहे हैं।
हम इस स्वपन को सच का रूप दे सकते हैं। हमारे पास इसे संभव करने के लिए सब कुछ है। आप सब यहाँ इतने खुश हैं। आप इसी खुशी के साथ वापिस जाएं। आप यहाँ अपनी चिन्ताओं के साथ आ तो सकते हैं पर वापिस नहीं ले जा सकते। एक ही शर्त है कि आप अपनी सब चिंताएं यहीं छोड़ कर मुस्कुराते हुए घर जाएं। मैं आपको यह याद दिलाने के लिए हूँ कि ईश्वर हैं और आपके बहुत अपने हैं।
केवल ३० मिनट के ध्यान से ही आप इतने खिल जाते हैं। हम सबको रोज़ ३० मिनट ध्यान करना चाहिए। हम सबको मंदिर जाकर कुछ समय आंखे बंद करके ध्यान करना चाहिए। मंदिर से बिना ध्यान किए वापिस ना जाएं।
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