"मन आखिर है क्या?"

प्रश्न : आर्ट आफ़ लिविंग के एक शिक्षक ने कहा था कि, ‘ईशवर, उत्तम है। ईश्वर ने हमें बनाया है, इसलिये हम भी उत्तम हैं।’ यहाँ तक तो बात ठीक लगती है। पर जब हम उत्तम हैं, तो क्या एक इन्जीनियर का काम भी उत्तम नहीं होना चाहिये? पर ऐसा तो नहीं होता।

श्री श्री रवि शंकर : प्रश्न उत्तम है, और उत्तर और भी उत्तम है। सृष्टि में हरेक चीज़ उत्तमता के एक स्तर से दूसरे स्तर पर अग्रसर हो रही है। दूध उत्तम है, और जब वह दही बन जाता है, दही भी उत्तम है। आप दही से क्रीम निकाल सकते हैं, और वह भी उत्तम है। फिर आप मक्खन बनाते हैं और वह भी उत्तम है। ये एक दृष्टि हुई। दूसरी दृष्टि से देखें तो, दूध खराब हो गया तो आप ने उस से पनीर बनाया। जब दही खराब हो गया तो आप ने उस में से मक्खन निकाला। ये देखने का दूसरा तरीका हुआ। आप की दृष्टि पर निर्भर है कि आप कैसे देखें। अनुत्तमता से ही उत्तमता को महत्व मिलता है। है कि नहीं? आप किसी चीज़ को उत्तम कैसे कह सकते हैं?
किसी भी वस्तु को दोष रहित तभी समझ सकते हैं, जब कहीं पर दोष देख चुके हैं। इसलिये दोषयुक्त वस्तु का होना भी आवश्यक है, किसी दोषहीन उत्तम चीज़ को समझने के लिये। तो, दोष ही उत्तम को उत्तम बनाते हैं!

प्रश्न : मैं सोच रहा हूँ कि ये मन आखिर है क्या? क्या यह हमारे दिमाग में किसी एक जगह में है या यह पूरे जगत में व्याप्त है? हाँ, मैं यह भी कहना चाहता हूँ आप सर्वोत्तम हैं!

श्री श्री रवि शंकर : मन, ऊर्जा का स्वरूप है जो कि पूरे शरीर में व्याप्त है। हमारे शरीर के हर कोष से ऊर्जा प्रसारित होती है। आपके आस पास, पूरी ऊर्जा को सम्मिलित रूप से मन कहते हैं। मन, दिमाग के किसी एक भाग में नहीं स्थित है, अपितु शरीर में सभी जगह व्याप्त है।

चेतना विषयक ज्ञान बहुत गहरा है। हमें कभी कभी इस गहराई में जाना चाहिये। जितना गहराई में जायेंगे, उतना ही इसे समझ सकेंगे। जितना समझोगे, उतने ही चकित होते जाओगे! वाह!

तुम्हें पता लोगों का एक भूतिया हाथ होता है, जिसका अर्थ है कि सच में उनका हाथ नहीं है, पर उन्हें फिर भी उस हाथ में संवेदना होती है, पीड़ा और खुजली होती है! जो लोग अपना हाथ या पैर किसी दुर्घाटना वश खो देते हैं, उन्हें बाद में कभी कभी उस खोये हुये हाथ या पैर के अस्तित्व का अभास होता है। हालांकि वो सचमुच नहीं होता है। इस से ये साबित होता है कि मन, शरीर के किसी एक भाग में स्थित ना होकर, पूरे शरीर के इर्द गिर्द रहता है। शरीर का आभा-मण्डल ही मन है। हम सोचते हैं कि मन, शरीर के भीतर है, पर सत्य इसका उल्टा है - शरीर, मन के भीतर है। शरीर एक मोम्बत्ती की बाती की तरह है, और मन इसकी ज्योति है।

प्रश्न : गुरुजी, हम सब यहाँ मौन की गहराई की अनुभूति को समझने आये हैं। मुझे यहाँ बहुत अच्छा भी लग रहा है और मैं एकान्त व मौन में रहना पसंद करने लगा हूँ। पर जब मैं वापस ऑफ़िस या अन्य सामाजिक जगह पर जाऊँगा तो क्या बहुत मौन रखना वहाँ ठीक होगा?

श्री श्री रवि शंकर : संतुलन! जीवन में संतुलन रखो। किसी भी चीज में अति करना ठीक नहीं है। बहुत बोलना भी ठीक नहीं और बहुत मौन भी ठीक नहीं है तुम्हारे लिये इस वक्त।

प्रश्न : हम जानते हैं कि जीवन में भाग्य महत्व रखता है। जीवन में सफलता और असफलता भाग्य से ही संबंधित हैं तो फिर हमारा कार्य भार क्या रह जाता है जीवन में?

श्री श्री रवि शंकर : तुम अपना भाग्य खुद बनाते हो। तुमने कल जो किया वह आने वाले कल का भविष्य होगा और तुम आज जो करोगे वह आने वाले कल के बाद के दिनों का भाग्य बनेगा।

प्रश्न : प्राचीन भारत का इतिहास भरा पड़ा है सिद्ध ज्ञानियों और योगियों की गाथाओं से जिनमें थीं अद्‍भुत अलौकिक शक्तियाँ और सजगता। पर इन कहानियों को कैसे समझा जाये- केवल पौराणिक कहानियों के रूप में या फिर कोई संकेत है कि हम सभी में इस दैवी शक्ति के छुपे होने की सम्भावना है?

श्री श्री रवि शंकर : क्या आप को सबसे पहले उड़ने वाले हवाई जहाज़ के बारे में पता है? सबसे पहले हवाई जहाज़ किसने उड़ाया था? (जवाब आया - राइट ब्रदर्स) यही हम सब किताबों में भी पढ़ते आ रहे हैं, पर यह गलत है। राइट ब्रदर्स से ५० साल पहले, बंगलोर के सुब्रय शास्त्री ने यह कार्य किया था।

वे ध्यान और मौन के बाद एक योगी से मिले थे जिनकी सहायता से और गहरे ध्यान में जाने के बाद उन्हें विमान बनाने का ज्ञान प्राप्त हुआ और उन्होनें विमान बनाये। उसने ‘वैमानिक शास्त्र’ नामक पुस्तक भी लिखी थी और १८०० में एक पारसी व्यक्ति के साथ मिलकर पहला विमान उड़ाया था। पारसी लोग, ईरान से आकर भारत में बसने वाले लोग हैं जो जोरोस्ट्रियन धर्म को मानते हैं। उस पारसी व्यक्ति से मिली आर्थिक सहायता से वह पहला प्लेन बना था जिसमें उन दोनों ने उड़ान भरी थी चौपाटी पर मुम्बई (बॉम्बे) के समुद्र किनारे पर। यह खबर लंदन टाइम्स अखबार में भी छपी थी। परंतु अंग्रेजी हुकूमत के अंतर्गत दोनों को जेल में डाल दिया गया था, और विमान के सब नक्शे भी जब्त कर लिये गये थे। अभी हाल ही में टेलीविजन पर यह खबर दिखायी गयी थी लंदन के अखबार की छवि सहित, जिसमें विमान बनाने के नक्शे के साथ यह खबर छपी थी।

भारद्वाज वैमानिक शास्त्र’ विमान विज्ञान, जो कि ॠषि भारद्वाज द्वारा लिखा गया था उसमें पाँच अलग अलग तरह से विमान बनाने के तरीके आज भी मौजूद हैं। ऋषि भारद्वाज ने अलग अलग विमनों की इंजिन रचना बताई है - सीधा उड़ने वाले विमान हेलीकॉप्टर जैसे और अन्य विमान जो हवाई पट्टी पर दौड़ने के बाद उड़ान भरते हैं उन के लिये भी।

इसके बारे में आपको अधिक जानकारी www.bharathgyan.com वेबसाइट से मिल जायेगी।


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