"कोई घटना तुम्हारे केन्द्र को छू नहीं सकती"

वैन्कूवर,
१० जुलाई


कुछ क्षण अपने साथ बैठे व्यक्ति के साथ पहचान करते हैं। हम शब्दों से ज़्यादा अपनी मौजूदगी से अभिव्यक्त करते हैं। शब्दों से ज़्यादा हम अपनी उर्जा से अभिव्यक्त करते हैं। कई बार हम कहते हैं - मुझे अच्छा स्फुरण महसूस नहीं हो रहा। यह बात सत्य है, सही में हम उर्जा का लेन देन ही करते हैं। मैं यहाँ दो घंटे खड़ा होकर प्रेम के विषय में व्याख्या दे सकता हूँ पर हो सकता है वह किसी के दिल में उतरे ही नहीं। पर शिशु की एक नज़र सब कुछ कह जाती है। इसी प्रकार जब हम क्रोधित होते हैं, तनाव में होते हैं तो वही तरंगें दूसरों को प्रतिपादित करते हैं। न घर में और न बाहर किसी ने हमें इन तरंगों को शुद्ध रखने की शिक्षा दी। अपनी उर्जा को शुद्ध रखने के लिए जीवन को विशाल रूप से देखने की आव्श्यकता है। हमारे शरीर में प्रतिदिन लाखों नए कोष पैदा होते हैं और मरते हैं। जब आप मुँह रगड़ कर धोते हो तो मरे हुए कोष दूर करते हो। इतने कोष प्रतिदिन मरते और पैदा हैं पर आप वही रहते हैं।

ऐसे ही, संसार को भी एक बदलते हुए दृश्य स्वरूप देखो। जीवन घटनाओं का क्रम है जिसमें घटनाएँ आती हैं, विलीन होती हैं, तुम अछूते उनमें से गुजर जाओ। तुम एक अनमोल हीरा हो। तुम्हें कोई घटना हिला नहीं सकती, तुम्हारा प्रेम नष्ट नहीं कर सकती। हम घटनाओं से ऊपर हैं, उनसे बढ़कर हैं। चाहे प्रशंसा हो यां निंदा - तुम्हें कुछ छू नहीं सकता, तुम अछूते हो।
तुम एक प्रज्जवलित दीपक हो, एक ऐसा फूल जो सदा सुगंधित है। क्या आप सब यहीं पर हैं? सुन रहे हैं, यां ये बातें काल्पनिक लग रही हैं? ये बातें स्वपन स्वरूप, मिथ्या जैसी लग सकती हैं पर सत्य हैं।
हम सब एक दूसरे के साथ इस सृष्टि में जुड़े हुए हैं, चाहे लोग माने यां न माने, तुम विश्व की आत्मा हो, तुम सृष्टि के केन्द्र हो। और आध्यातमिकता यही है - अपने आप को समस्त सृष्टि से जुड़ा पाना। तुम छोटा अहम नहीं हो, तुम विशाल चेतना हो जिसकी कोई सीमा नहीं, वह असीम चेतना तुम हो।

यह विशाल चेतना हम सब में शिशु रूप में जन्म के साथ होती है, किंतु हम समय के साथ अपने आप को छोटी बड़ी उपाधियों के आवरण से ढकते जाते हैं। हमे आवरण के परे अपना सच्चा स्वरूप देखना होगा, और इसको हासिल करने के लिये उत्तम साधन है, ध्यान।

क्या आप लोगों का ध्यान इधर ही है? अब क्या चल रहा है मन में? और कुछ सुनना है, आगे क्या होगा आदि।

सच्चा ज्ञान वह नहीं जो हम शब्दों से व्यक्त करते हैं। क्या आप लोग सुन रहे हैं? शब्दों से प्रतिपादन केवल घटना मात्र है, अंतराल भरने का माध्यम।

ध्यान के लिये तीन स्वर्णिम नियम हैं :


१) पहले सुखपूर्वक शरीर को ढीला छोड़ कर बैठ जायें। अगले कुछ मिनट में सिर्फ इस एक विचार से बैठें, ’मुझे कुछ नहीं चाहिये’, अगर आपके मन में उठा- मुझे प्यास लगी है, पानी पीना है इत्यादि, तो आप ध्यान नहीं कर रहे।

२) दूसरा नियम यह कि अगले १०-१५ मिनट के लिए ’मैं कुछ नहीं कर रहा हूँ’।

३) और तीसरा - ’मैं कुछ नहीं हूँ’। अगले १०-१५ मिनट के लिए मैं कुछ नहीं हूँ। यदि तुम समझते हो तुम बहुत बुद्धिमान हो तो ध्यान के बारे में भूल जाओ, और अगर समझते हो कि बेवकूफ़ हो तो भी आप उसी किश्ती में स्वार हैं। अगले कुछ क्षंणों के लिए सब धारणाएं जैसे मैं अमीर हूँ, गरीब हूँ, बहुत धार्मिक हूँ यां पापी हूँ इत्यादि सब भूल जाओ, तो आप कुछ नहीं हो!

तुम्हें कुछ नही चाहिये-(अचाह), तुम कुछ नहीं कर रहे हो (अप्रयत्न), और तुम कुछ नहीं हो (अकर्ता)- ये तीन उपाय हैं ध्यान करने के लिये।

प्रश्न : इस ईर्ष्या और घृणा से भरे जगत में विनम्रता और शांति के पथ पर कैसे चला जाये?

श्री श्री रवि शंकर : जगत को ऐसी मान्यता और उपाधि से मत बाँधो। कुछ लोग वैसे हो सकते हैं, उन पर ध्यान न देते हुए आगे बढ़ जाओ। वे अपनी ईर्ष्या में जलते हैं तो जलने दो, तुम उस पर ध्यान न दो। तुम जिस पर ध्यान देते हो, महत्व देते हो - वही बात बढ़ने लगती है। किसी भी संकल्प पर ध्यान देने से वो फलीभूत होने लगता है।

मैंने अपने ५५ साल के जीवन में किसी के लिये अपशब्द नहीं कहे हैं। यह मेरा स्वभाव है। अधिकतम किसी को बेवकूफ कहा होगा पर किसी को बुरा न कहा है, न बुरा चाहा है। यदि तुम्हारा उद्देश्य ठीक है तो मै कहता हूँ, तुम्हें आगे बढ़ने से कोई रोक नहीं सकता है।

यदि कोई ईर्ष्या करे तो क्या करें? आगे बढ़ते जाओ। तुम्हारा ध्यान विशालता की ओर हो, अपने विकास कि ओर हो।

प्रश्न : मैंने आपके सानिध्य में रहने वालों को उनकी क्षमता से भी अधिक विकसित होते देखा है। आप कैसे इन सब लोगों को प्रभावित करते है, प्रेरणा देते हैं?

श्री श्री रवि शंकर : वर्ल्ड बैंक के प्रैज़ीडेंट ने भी यह सवाल मुझसे पूछा था, ’आपकी इतनी सारी योजनाएँ सफलता कैसे पाती हैं? हम भी बहुत से प्रयोजन करते हैं पर हर किसी को सफलता नहीं मिलती।’
सफलता केवल धन पर ही नहीं, अपितु आपके सही उद्देश्य, उस पर ध्यान देने से और स्पष्टता पर निर्भर करती है। हम अपनी दृष्टि को बदल कर देखें तो पायेंगे सब कुछ भीतर से उत्पन्न हो रहा है। अगर मन के भीतर का वातावरण सुखद है, तो बाहर भी अच्छा लगेगा। तो तुम ही इस बदलाव के प्रतिनिधि (कार्यकर्ता) बनो।

प्रश्न : शरीर को आवश्यक्ता से अधिक चलायमन मन के विचारों से कैसे मुक्त किया जाये?

श्री श्री रवि शंकर : सुदर्शन क्रिया, ध्यान, योग और सही भोजन आदि करने से यह ठीक हो सकता है।

प्रश्न : आपने मुझ पर जो इतनी कृपा की है, मैं उसका आभारी हूँ। पर मैं जब भी आपसे मिलता हूँ तो बहुत आँसूं निकलते हैं। ऐसा क्यों होता है?

श्री श्री रवि शंकर : हे भगवान! तुम तो मेरी ये प्रतिष्ठा खत्म कर रहे हो कि जो भी मुझे देखता है वह मुस्कराता है! जब दिल खिलता है तो आँसू निकल पड़ते हैं।प्रेम और आभार के आँसू बहुत कीमती हैं।

प्रश्न : जीवन का उद्देश्य क्या है, इसे कैसे जाना जा सकता है?

श्री श्री रवि शंकर : शांतचित्त होकर अपनी अंतरात्मा को सुनो। आप सबके पास मोबाइल फोन है न? उसको काम में लाने के लिये क्या क्या होना चाहिये? अगर सिम कार्ड नहीं है तो कार्य करेगा क्या? सिम कार्ड है पर तुम बहुत दूर हो तब सिग्नल नहीं पकड़ता है तो क्या वो काम करेगा? और तुम्हें सिम कार्ड, सिग्नल ठीक पकड़ने के साथ यह भी देखना होगा कि बैट्री पूरी है। तो तीनों चीज़ें चाहिये- बैट्री, सिम कार्ड व टावर की नज़दीकी। पर यह तीनों के होने के बाद भी यदि तुम नंबर नहीं लगाओगे तो भी काम नहीं चलेगा। तो ये सब करना पड़ेगा तुम्हें - आध्यात्मिक संबंध टावर समान है, आपका अपना प्रयत्न नंबर घुमाने समान है और ध्यान करना बैट्री चार्ज करने समान है। ये सब हो तो प्रार्थना की सुनवाई होती है। तुम्हारे में भी दूसरों को आशीर्वाद देने और दूसरों की मनोकामना पूरी करने की क्षमता हो सकती है यदि मन शांत और स्थिर हो।

प्रश्न : मुझे कई लोगों के साथ अटपटा सा लगता है, व्यग्रता महसूस होती है, चाहे वो अजनबी ही हों। ऎसा क्यों होता है?

श्री श्री रवि शंकर : इसे एक परीक्षण के रूप में लो और ध्यान करो। ध्यान की गहराई में जाकर देखोगे कि ये व्यग्रता मिट जायेगी। तुम इस संवेदना को अधिक महत्व देते हो। यह जान लो कि तुम इन सब से अधिक विशाल हो। जब तुम अपना दृष्टिकोण बदल लोगे तो ये संवेदनाएँ भी मिट जायेंगी।

प्रश्न : आत्मसम्मान खोने पर जीने का उद्देश्य कैसे ढूँढा जा सकता है?

श्री श्री रवि शंकर : आत्मा नहीं खोई है तो अत्मसम्मान भी कैसे खो सकता है! उठो जागो! तुम को कई अनेक स्वीकार करते हैं और प्रेम करते हैं। तुम इस धरती के एक कीमती फूल हो। कुछ उपयोगी कार्य करो। हर समय केवल अपने बारे में ही विचार मत करो।

प्रश्न : क्रोध क्यों आता है?

श्री श्री रवि शंकर : सब कार्य में निपुणता की इच्छा रखना ही क्रोध का कारण होता है। कुछ हद तक दोष भी स्वीकार करो। किसी भी कार्य में परिपूर्णता असंभव है। किसी भी कार्य में केवल ९५ प्रतिशत पूर्णता हासिल हो सकती है। हाँ, वचन और विचार में १०० प्रतिशत पूर्णता हासिल हो सकती है।

प्रश्न : अफगानिस्तान में शांति के लिये क्या मार्ग है?

श्री श्री रवि शंकर :ये याद रहे कि वहाँ पहले बौद्ध और हिन्दू धर्म के लोग रहते थे, व अफगानियों के पूर्वज योग और ध्यान के साधक थे। यह बात समझने पर लोग कट्टरपंथि भाव छोड़कर विशाल दृष्टिकोण रख सकते हैं। उनका यह सोचना कि ’वे ही स्वर्ग में जायेंगे और अन्य लोग नरक में’, दूसरों के लिये नरक उत्पन्न कर देता है। सबको विशाल दृष्टिकोण रखना होगा। प्रत्येक विध्यार्थी को थोड़ा बहुत उपनिषद, कुरान, गुरु ग्रंथ साहिब आदि का ज्ञान होना चाहिये। जैसे सिख धर्म के गुरु ग्रन्थ सहिब में उपनिषदों का सार है। यह महत्वपूर्ण है कि सब बच्चे इसके बारे में जाने, तब वे विशाल भाव रख सकेंगे। जो बलिदान सिख गुरुओं ने दिया वह अवर्नणीय है। उसके बिना योग और ध्यान इस भूमी से कब के मिटा दिये जाते। सिख गुरुओं ने बलिदान का जीवन बिताया। उन्होंने इस ब्रह्मज्ञान की सुरक्षा की जो सम्पूर्ण विश्व के लिये है। सब को हर धर्म के बारे में थोड़ी जानकारी अवश्य होनी चहिये।

प्रश्न : ध्यान लगाने में सहायक क्या बातें हो सकती हैं?

श्री श्री रवि शंकर : किसी भी अच्छी बात की शुरुआत के लिए ये तीन बातें सहायक हो सकती हैं: लोभ, भय और प्रेम।

कोई आपको लोभ दे कर कहे कि आपको साधना नियमित करने पर लाख डालर मिलेंगे, तो आप करोगे क्या? यह सुन आप पाँच दिन ज्यादा भी करने को तैयार हो जाओगे!

जिससे प्रेम करते हो वह यदि सिगरेट पीने को मना करे, तो आप तैयार हो जाओगे, उनकी बात रख लोगे। भय से भी आप सिगरेट पीना छोड़ दोगे। यदि डाक्टर ने कहा सिगरेट पीना छोड़ दो वर्ना मर जाओगे, तो आप क्या करेंगे? इन तीनों उपायों में से मैं प्रेम का उपाय बेहतर समझता हूँ।

गुरु प्रेम और प्रतिबद्धता का प्रतीक है।

प्रश्न : स्त्री-पुरुष का सम्बंध कैसे मजबूत हो सकता है?

श्री श्री रवि शंकर :मैं कुछ सुझाव दे सकता हूँ।
पहले महिलाओं के लिये: आप सब तैयार हैं? तो पहिली बात, अपने पति के अहम पर कभी चोट न पहुँचायें। कभी यह न दरशायें कि वे किसी काम के नहीं है। यदि आप ऐसा कहती हैं तो वे वैसे ही बन जायेंगे। सब समय प्रशंसा करो और कहो वे सबसे उत्तम हैं, उनकी सराहना करो।

अब पुरुषों के लिये: कभी भी स्त्री की भावना पर चोट न पहुँचायें, न ही उसके परिवार के ऊपर टिप्पणी करें। वो चाहे अपने परिवार के बारे में शिकायत करे, आप चुप ही रहना बेहतर समझें। जिस क्षण आपने अवहेलना में साथ दिया वो पलट कर आप पर ही क्रोध कर सकती है। उसकी भावनाओं का सम्मान करें। उसे खरीददारी पर यां किसी आध्यात्मिक सम्मेलन में जाने से मना ना करें। खरीदारी पर जाना चाहें तो अपना क्रेडिट कार्ड देदें! उसकी भावनओं का ध्यान रखें।
अब पुरुष और महिलाओं के लिए: प्रेम का प्रमाण न माँगें, जैसे-क्या तुम मुझसे सच्चा प्यार करते हो? सोचो कितना बोझिल है यह सिद्ध करना कि तुम किसी से प्रेम करते हो, सच्चा प्यार करते हो। अगर आपको लगे भी कि आप के पति यां पत्नि का प्रेम कम हो गया है तो भी आप यही कहें कि ’तुम मुझे इतना प्रेम क्यों करते हो?’ तब रिश्तों मे मुर्झाहट आ भी गयी हो तो फिर से खिलाहट आजायेगी। प्रश्न वही पूछो जो उपयोगी हो। कभी भी किसी से प्रेम का प्रमाण नहीं मांगो, इसे मान कर चलो कि प्रेम है!

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