२९.१२.२०११,
जर्मनी
प्रश्न: प्रिय गुरूजी कृपया करके इस वाक्य का अर्थ समझाये, ‘जब आप ऐसे देखते हैं कि कोई उद्देश्य नहीं है फिर वास्तविक उद्देश्य की शुरूआत होती है'?
श्री श्री रविशंकर: आप एक वाक्य कहेंगे और आप चाहते
है कि मैं उस पर टिप्पणी करूं? आप
स्वयं ही टिप्पणी क्यों नहीं करते? मैं
तो कहूँगा कि आपको शब्दों में फँसना नहीं चाहिये, मैं
शब्दों को अर्थ देता हूँ| उसका सार महत्वपूर्ण होता है| सार क्या है? आप मुक्ति महसूस करते हैं और अंतरिक्ष के साथ जुड़ा हुआ
अनुभव करते हैं|
प्रश्न: प्रिय
गुरूजी कल के सत्संग में आपने कहा कि हमें अपनी आत्मा को ज्ञान और विवेक में भिगो देना
चाहिये| लेकिन रोजमर्रा के जीवन में
किस परिस्थिति में किस ज्ञान के सूत्र का उपयोग करना हैं, इसमें भ्रम पैदा हो जाता है| मुझे इसमें मदद करें|
श्री श्री रविशंकर: सिर्फ विश्राम करें, अपने आप वे सूझ जायेंगे| जैसे जब एक बार कम्प्यूटर को प्रोग्राम करते
हैं, तो कैसे ताजा समाचार सी.एन.एन.चैनल के आपके स्क्रीन पर अपने
आप दिखने लगते हैं, चलचित्र की तरह आप के आय पैड पर| आप अपना आय पैड को खोले और उस पर अपने आप ताजा समाचार दिखने
लगते हैं| उसी तरह ज्ञान भी
आपकी चेतना में अपने आप सूझेगा, आपको सिर्फ विश्राम करना है|
प्रयास
और याद रखने का कोई तरीका नहीं हैं उसका उपयोग वहाँ उसी क्षण पर करना होता है|
उस क्षण आपकी स्मृति में जो भी आयेगा
वहीं उस क्षण के लिये उपयोगी होगा| एक विशेष समय के लिये आप स्मृति को याद करने की योजना नहीं बना सकते,
स्मृति स्वाभाविक होती है|
प्रश्न: बुद्धि
से मैं समझता हूँ, धारणा के द्वारा
मैं यह देख सकता हूँ कि सबकुछ एक है और एक ही सब कुछ है| लेकिन अनुभव के स्तर पर मेरा भाग्य अच्छा नहीं था|
इस एक का अनुभव करने के लिये मैं अपने आप
में क्या सुधार कर सकता हूँ?
श्री श्री
रविशंकर: सिर्फ ध्यान, ध्यान
और ध्यान के द्वारा|
प्रश्न: गुरूजी यदि बहुत सारा असीम ज्ञान हमारे आस पास
है तो बेसिक कोर्स में सिर्फ पाँच सूत्र ही क्यों आर्ट ऑफ़ लिविंग के मुख्य सिद्धांत
हैं? इनकी
क्या विशेषता है?
श्री श्री
रविशंकर: पाँच मुख्य सिद्धांत आवश्यक हैं| वे नीव के पत्थर के जैसे हैं| पहला यह है कि विरोधाभास मूल्य एक दूसरे के पूरक
हैं फिर
मन शांत स्थिर हो जाता है और धैर्य स्थापित हो जाता है| दूसरा है कि लोगों को जैसे वे हैं वैसे ही स्वीकार
करें, क्योंकि मन लोगों और
परिस्थिति को स्वीकार न करके परेशान हो जाता है|
इसलिये
यह सिद्धांत मन में मूलतः आवश्यक शांति और स्थिरता लाते हैं| जब मन स्थिर हो जाता है, तो वह और अधिक ज्ञान को ग्रहण करने में सक्षम हो
जाता है और उच्च होने योग्य बन जाता है| जब नीव मजबूत होती है तो उस पर आप सौ मंजिला भवन बना सकते
हैं| उच्च ज्ञान पाने के लिये
आप में मूल ज्ञान होना आवश्यक है और यह मूल ज्ञान बाहरी दुनिया में मन को फँसने से
राहत देता है और स्वयं की ओर आ जाता है| आपका मन और चेतना भिन्न, छोटी और महत्वहीन बातों में फँसा रहता है| और यह मूल सिद्धांत आपको उनमें से बाहर निकालते
है|अपने बिखरे हुये मन को समेट करके उसे उसकी
पहचान दीजिये और उसे अपने स्रोत के पास जाने दीजिये| और उस हद तक यह सूत्र काफी प्रभावकारी और अर्थपूर्ण
है|
प्रश्न: गुरूजी
क्या एक आत्मा के लिये यह संभव है कि वह एक ही समय में एक साथ अवतरित होकर दो से अधिक
शरीर में कार्य कर सके?
श्री श्री
रविशंकर: आम तौर पर नहीं परंतु संभवतः को नकारा नहीं जा सकता| ज्ञानोदयित व्यक्ति और शक्तिशाली आत्मा कुछ हिस्सा
दूसरे शरीर में उपयोग कर सकते हैं| लेकिन सामान्यतः यह संभव नहीं है|
प्रश्न: गुरूजी क्या आप मेरे जैसे विषम चिकित्सकों को आयुर्वेद
का परिचय कराएँगे क्योंकि मैं समग्र दवाइयों में अधिक रूचि रखता हूँ| हमें आयुर्वेद का अभ्यास करने के लिये प्रामाणिक सिद्धांतिक
और व्यवहारिक ज्ञान की आवश्यकता है|
श्री श्री
रविशंकर: निश्चित ही| भारत
में हमारा सर्वश्रेष्ठ आयुर्वेदिक महाविद्यालय है और पिछले वर्ष हमारे महाविद्यालय
के पाँच विद्यार्थी ने उत्कृष्ट अंक प्राप्त किये हैं|
वर्ष २०११
में हमने सबसे उत्तम आयुर्वेदिक औषधालय की शुरूआत की| कोई भी व्यक्ति यदि दंत चिकित्सा कराना चाहता हैं
तो उसका बैंगलुरू आश्रम में स्वागत है| हमारे पास ऐसी प्राचीन तकनीकें हैं जिससे दाँतों को बिना
दर्द, संज्ञाहरण के निकाला
जाता है और खून की एक बूँद भी नहीं निकलेगी| यह कुछ चौकानें जैसी बात है| उसी तरह बवासीर में विषम चिकित्सा में ६०% उसका
फिर से होना संभव हैं परंतु क्षारसूत्र (प्राचीन आयुर्वेदिक तकनीक) के द्वारा उसका
फिर से होना ०.१% होता है और उसका ९९.९% निदान हो जाता है| और ऐसी कई प्राचीन आयुर्वेदिक चौकाने वाली तकनीके
हैं और हमारे पास सबसे सर्वश्रेष्ठ औषधालय उपलब्ध हैं| मेरे मत से सबसे सर्वश्रेष्ठ| यह सही है कि उसे सर्वश्रेष्ठ बनाने के लिये हमने
उस पर काफी पैसा खर्च किया है| और हमारे पास सबसे उत्तम चिकित्सक और आयुर्वेदिक महाविद्यालय हैं|
उड़ीसा
में जो विश्वविद्यालय हम बनवा रहे हैं उसके पहले भवन का उदघाटन आज हमने किया|
अब हमारा विश्विद्यालय भी होगा|
मेरी इच्छा थी कि आने वाली पीढ़ी को
पूर्व और पश्चिम का सबसे उत्तम ज्ञान मिले| यदि कोई विश्वविद्यालय में सेवा करना चाहता है तो उसके
लिये आवेदन करे या अपने बच्चों को उसमें भेजें| भारत में हम पहली बार ओस्टियोपैथी की शरुआत कर रहे हैं|
भारत में ओस्टियोपैथी नहीं है|
इसलिये यदि यहां पर ओस्टियोपैथ हैं,
तो हम उनका विश्विद्यालय में स्वागत
करते हैं| वे विसिटिंग प्राध्यापक
के रूप में कुछ महीनों के लिये आ सकते हैं और यदि कोई वहाँ सेवा करना चाहते हैं तो
उनका स्वागत है|
यदि कोई
फिजियोथैरेपिस्ट हैं तो उनका भी स्वागत है| इस विश्विद्यालय को सरकार की मान्यता प्राप्त है,
इसलिये यह एक प्रामाणिक विश्वविद्यालय
है| योग और निसर्गोपचार पद्धति भी डिग्री और डिप्लोमा के रूप में उपलब्ध हैं| आप इन सब की जानकारी वेब साईट पर ले सकते हैं|
प्रश्न: गुरूजी इसका क्या अर्थ है कि “सबसे सर्वश्रेष्ठ निकल कर आता है जब हम बिना किसी मकसद के कार्य करते हैं”, परंतु मुझे जुनून के साथ काम करना अच्छा लगता है|
श्री श्री
रविशंकर: जुनून के साथ काम करें और आगे बढ़ें|
प्रश्न: स्वयं
की समीक्षा और स्वयं के लिये राय बनाने में क्या अंतर है?
श्री श्री
रविशंकर: स्वयं की समीक्षा का अभिप्राय है, ‘मैं कौन हूँ'? ‘मुझे क्या चहिये’? ‘मैं कहां जा रहा हूँ’? 'जीवन क्या हैं'?
यह सब स्वयं की समीक्षा है| राय या अभिमत आपको नीचे गिरा देते हैं,
लेकिन स्वयं की समीक्षा आपको उठा
देती है| स्वयं की समीक्षा
हमेशा आपको उठा देती है लेकिन राय और अभिमत आपको उदास कर देते हैं|
प्रश्न: जय
गुरुदेव, स्कूल में गणित में कैसे
सुधार करूं?
श्री श्री
रविशंकर: क्या आप बहुत अधिक टीवी देखते हैं? (उत्तर: हाँ)
टीवी सिर्फ
एक घंटा ही देखें| बहुत अधिक
टीवी नहीं, और आप सब्जियां
खाते हैं क्या? (उत्तर : नहीं
)
आपको अधिक
सब्जियां खानी चाहिये|
प्रश्न: जय गुरुदेव, जब आप राजनीतिज्ञ या आतंकवादियों से युद्ध क्षेत्र या द्वंद प्रभावित क्षेत्रों
में मिलते हैं तो क्या होता है? उनके आमंत्रण पर आप
उनसे बात करते हैं या आप उनसे बात करने के लिये प्रयास करते हैं? आप उनसे जो कहते हैं क्या वह उसे सुनना चाहते हैं? आप बुरे और शक्तिशाली लोगों को कैसे प्रभावित करते
हैं?
श्री श्री
रविशंकर: आतंकवादियों में बदलाव लाना आसान है| अपराधियों को भी सुधारना आसान है लेकिन मैं राजनीतिज्ञों
के बारे निश्चित नहीं हूँ| यह
ऐसा है कि किसी सचमुच सोये हुये को जगाना आसान है, लेकिन जो सोये होने का दिखावा करते हैं उन्हें जगाया नहीं
जा सकता| मैं ऐसा नहीं कहता
कि सभी राजनीतिज्ञ बेकार हैं, लेकिन उनमे से अधिकतम असंवेदनशील और स्वार्थी हैं और उन्हें लोगों की चिंता
नहीं है| वे यह नहीं समझते
कि उनका पवित्र कर्तव्य लोगों की सेवा करना है| उन्हें सिर्फ सत्ता और धन चाहिये और वे किसी भी तरह सत्ता
में बने रहना चाहते हैं, और
उन्हें कोई चिंता नहीं हैं कि लोगों और राष्ट्र का क्या हो रहा है| उनका यही रुख चिंताजनक है|
इसलिये
मैं कहूँगा कि जिन युवाओं का आशय राष्ट्र, दुनिया और लोगों की सेवा करना है, उन्हें आगे बढ़कर राजनीति में जाना चाहिये|
लोग जिनके पास नैतिकता और आध्यात्म
है उन्हें राजनीति में जाना चाहिये| इसके लिये हिचकें नहीं| आगे की पीढ़ी के बच्चों के लिये एक बेहतर दुनिया आवश्यक
है| वे ऐसा दुनिया के योग्य
नहीं हैं जो आपदा युक्त हो चुकी है| इसलिये आपका यह पवित्र कर्म है कि मतदान करें|
शिक्षित
और भ्रष्टाचार रहित व्यक्ति के लिये मतदान करें| शिक्षित का अभिप्राय यह नहीं हैं कि उसके पास कई डिग्रीयां
हैं, लेकिन वह जो करुणामय,
ध्यान रखनेवाला और मानवीय मूल्यों
से परिपूर्ण है| हमें ऐसे
लोगों को चुनना होगा और उन्हें यह समझाना होगा कि उन्हें यह पद सेवा के लिये मिला हैं,
तानाशाही या हुकूम चलाने के लिये
नहीं|
प्रश्न: प्रिय श्री श्री, अहंकार का उद्देश्य क्या है? ऐसा लगता है कि जितने भी नकारात्मक गुण हमें कष्ट देते हैं, उन सब के लिए अस्तित्व का यही स्तर जिम्मेदार है| क्या इसके कुछ सकारात्मक पहलू भी हैं?
श्री श्री रविशंकर: हाँ, अहंकार के सकारात्मक पहलू हैं| कौन कहता है कि यह सिर्फ बुरा है? इसका अच्छा पहलू है कि यह अपने साथ चुनौती लेकर आ सकता है, एक दृढ़ संकल्प, कर्म करने की इच्छा| जितने भी कर्म चुनौतीपूर्ण होते हैं, जिनमें दृढ़ संकल्प और जोश चाहिए, वे सब अहंकार के द्वारा होते हैं| एक ऐसा भी अहंकार हो सकता है, सर्व समावेशी है;‘सब मेरे हैं’, यह भी अहंकार है| और, ‘सिर्फ मैं ही अच्छा हूँ’, भी एक प्रकार का अहंकार है, मगर वह उतना अच्छा अहंकार नहीं है| इसलिए, अहंकार को देखने के बहुत से तरीके हैं| अगर आप अहंकार को परिभाषा देते हैं कि वह है, ‘सहजता का अभाव’, या फिर ‘आपके और दूसरे के बीच की दीवार’, तब ऐसे अहंकार से आपको छुटकारा पाना चाहिए| यह बीज के ऊपर का वह आवरण है, जो बीज के अंकुरित होने तक आवश्यक है, और जैसे ही बीज अंकुरित हो जाता हैं, तब उसके चारों ओर का आवरण या झिल्ली उसके अंकुरित होने का रास्ता बनाता है| उसी तरह तीन साल की उम्र तक अहंकार आता है, और तब तक रहता है जब तक आप परिपक्व नहीं हो जाते| आप किशोरावस्था से वयस्क हो जाते हैं, तब तक वह आपकी रक्षा करता है| उसके बाद वह धीरे धीर रास्ता बनाता है एक विस्तृत विचारधारा, व्यापक हृदय, बड़ा दिल और विश्वव्यापी पहचान के लिए| दूसरे प्रकार का अहंकार है, सिर्फ पहचान| तब आपको पहचान की ज़रूरत होती है| ये सभी पहचान, ‘मैं एक ही दिव्यत्व से सम्बंधित हूँ’, ‘मैं एक ही मानव जाति से संबद्ध हूँ’, ‘मैं धर्म के लिए खड़ा हूँ’, अहंकार है| यह अच्छा है कि आपने अन्याय के खिलाफ़ आवाज़ उठा रहें हैं, और आप अज्ञानता के खिलाफ़ लड़ रहें हैं, और आप कह रहें है, ‘मैं यहाँ हूँ ताकि कोई भूखा ना रहे, किसी को कोई अभाव ना रहे’| वह समर्पण भी अहंकार का ही हिस्सा है|ऐसा अहंकार कहलाता है सात्विक अहंकार|
भगवद गीता
में तीन प्रकार के अहंकार का विवरण किया है, सात्विक, राजसिक और तामसिक अहंकार| यह बहुत रोचक है ; आप कभी इसके बारे में पढ़िए|
प्रश्न: प्यारे गुरूजी, मैं जानता हूँ मैं बहुत भाग्यशाली हूँ कि इस जन्म में आपके साथ हूँ| मगर मुझे यह भी लगता है कि आप जो मौका हम सबको देने आये हैं, उसका मैं पूरा फ़ायदा नहीं उठा पा रहा| क्या आप मुझे कृपया यह सलाह दे सकते हैं, कि आपके दिए मौके का हम पूरी तरह से कैसे उपयोग करें?
श्री श्री रविशंकर: मुझे बिल्कुल नहीं पता!
बस विश्राम कीजिये, मस्ती रहिये और उत्सव मनाईये| इतना लोभी होने की ज़रूरत नहीं है|बस विश्राम कीजिये और चीज़ें अपने आप आपकी झोली में गिर जाएँगी; खास तौर पर जब आप यहाँ मौन का कोर्स (एडवांस कोर्स) करने आये हैं| मैं आपसे यह तब नहीं कहूँगा जब आप बाहर जायेंगे, तब तो आपको कुछ करना पड़ेगा| लेकिन जब आप यहाँ मौन के कोर्स में हैं, तो यह ऐसा है जैसे आप एक ट्रेन में हैं, विश्राम करिये| आपको जब पहुंचना है,
तब पहुँच जायेंगे| ट्रेन के अंदर अपना सामान सिर पर रखकर आगे पीछे भागने की कोई ज़रूरत नहीं है,
इससे आप कोई जल्दी नहीं पहुचेंगे| अगर एक हवाई जहाज के अंदर आप अपनी सीट से उठकर भागने लगें, और कहें, ‘मैं और जल्दी पहुंचना चाहता हूँ’, तो आपको शौचालय दिखा दिया जाएगा| (हँसते हुए) एक वही स्थान है जहाँ आप जा सकते हैं, शौचालय| वह भी अगर खाली नहीं है,
तो आपको इंतज़ार करने को कहा जाएगा, मगर वह आपको आपके गंतव्य तक कोई ज्यादा जल्दी नहीं ले जाने वाला|
तो इसलिए, एक बार जब आप यहाँ हैं, ज्ञान में हैं और रहने के लिए तैयार हैं, सारे सत्रों में भाग लीजिए| कोई भी सत्र छोडिये नहीं| भोजन बढ़िया और बहुत अच्छा है, मगर बहुत अधिक ना खाईये| अगर आप बहुत अधिक खायेंगे, तब यहाँ होने के बावज़ूद, आप को नींद आ जायेगी| आपको ये सभी निर्देश पहले ही मिल चुके हैं, है न?
प्रश्न: गुरूजी, मैं इस ग्रह के लिए एक वरदान कैसे बन सकता हूँ? मेरा मतलब है कि मानव होने के नाते हम इस पृथ्वी का कितना विनाश करते हैं, एक पेड़ भी हम से कहीं ज्यादा उपयोगी है| मुझे लगता है,
कि इस पृथ्वी को बचाना मेरा कर्तव्य है, आपकी कोई राय?
श्री श्री रविशंकर: आप बिल्कुल सही गैंग में हैं| हम सब एक ही नैय्या के सवारी हैं, तो हम जो कर रहे हैं, हमें वह करते रहना चाहिए| यदि आप मन को बचा लेंगे, तो इस ग्रह पृथ्वी को भी बचा लेंगे| सबसे पहले अपने मन को बचाते हैं| और हाँ, लाखों लोग इस धरती पर ऐसे हैं, जिन्हें यह ज्ञान चाहिए| चलिए उन सब तक पहुँचते हैं| क्या आप जानते हैं, कि यूरोप का ४० प्रतिशत अवसाद से ग्रस्त है?
४० प्रतिशत स्कूल टीचर, ३० प्रतिशत जनता| ४० प्रतिशत स्कूल टीचर तो मैंने सिर्फ जर्मनी के बारे में पढ़ा है|
ऐसे आर्थिक पतन के बाद तो मुझे यकीन है कि यह ३० से ४० प्रतिशत और बढ़ गया होगा| लोग इतना असुरक्षित महसूस कर रहे हैं, और अवसाद की दवा ले रहे हैं| हमें उन लोगों तक पहुंचना है, इस सुन्दर ज्ञान के साथ जो हमारे पास है| मैं यह भी सोच रहा था कि अगर आपमें से कुछ लोग थोड़ा समय निकालें, तो हम ४-५ के गुट बना कर और इन सब अलग अलग शहरों में जाएँ, अलग अलग नगर और कुछ उत्सव मनाएं|
उन्होंने बर्लिन में इस तरह का प्रोग्राम किया था,
जहाँ हमारे स्वयंसेवक अपने दोस्तों और परिवार वालों को अपने घर आने का निमंत्रण देते थे,
बस यही कुछ २०-३० लोग और अपने टीचर वहां जाकर उन्हें ध्यान कराते थे और चले जाते थे|
लोग इतना अच्छा महसूस करते थे, कि इतनी सारे और अनुरोध आने लगे| सिर्फ दो महीने में ३०० लोगों ने ध्यान सीखा, सिर्फ एक बर्लिन शहर में मात्र ४ टीचरों के द्वारा| इतने लोग सत्संग के लिए आये, और उन्होंने ध्यान किया और उत्सव मनाया|
इसी तरह, यहाँ बहुत से टीचरों ने यही काम किया| स्वामी ज्योतिर्मय पूरे यूरोप में घूमे और बहुत बड़ी लहर लाये| तो मैं चाहूंगा कि आपमें से कुछ लोग, जो दो या तीन महीने का अवकाश ले सकते हैं, और हम सब पूरे यूरोप का भ्रमण कर सकते हैं| क्यों न हम जनवरी या फरवरी से शुरुआत करें और एक ऐसी लहर शुरू करें कि लोग ध्यान कर सकें?
जो लोग समय नहीं निकाल सकते, लेकिन जिनके पास साधन है, तो आप उस प्रोजेक्ट के लिए आर्थिक योगदान दे सकते हैं| और जो लोग आर्थिक योगदान नहीं दे सकते, लेकिन जिनके पास समय है,
तो आप अपना समय खर्च कर सकते हैं|
हम एक लहर ला सकते हैं|छोटे बड़े शहरों में जाईये, पोस्टर लगाईये जो कहें ‘आईये, चलिए ध्यान करते हैं’| मन को खुश कर देने वाला ध्यान, अवसाद से मुक्ति पाईये और इसी तरह की चीज़ें| आप क्या सोचते हैं? क्या यह एक अच्छा आइडिया है?
जैसे मैं यहाँ बैठा था, यह विचार बस मेरे मन में आया कि मैं सभी यूरोप के देशों के साथ बैठूं, और टीचर लाऊँ, और उनके २-३ के गुट बना कर उन्हें सब जगह भेजूं| कभी कभी जब बाहर के लोग आते हैं, तो वे ज्यादा सफल होते हैं| जैसे वह कहावत है,
‘घर की मुर्गी दाल बराबर’, वह कहावत यहाँ चलेगी|
इसी तरह, यूरोप के टीचरों को पूर्व में, अफ्रीका और बाकी किन्हीं देशों में जाना चाहिए| अफ्रीका और अमरीका के टीचरों को यहाँ आना चाहिए| हमें अदल बदल कर देना चाहिए, या ऐसा ही कुछ| यह एक अच्छा आइडिया भी हो सकता है,
तो मैं सोच रहा हूँ कि यह कैसे कर सकते हैं| नीदरलैंड से अलेक्स श्रीलंका और भारत गए थे| भारत में वे इतने सारे गांवों में गए और इतने सारे सत्संग किये और ब्लेसिंग के कार्यक्रम, और बहुत लोग जुड़े| दुनिया को चाहिए कि कोई उनके रोग हर ले| दुनिया की कोई भी सरकार कभी भी यह मानवीय सम्बन्ध नहीं दे सकती|कोई भी आर्थिक व्यवस्था आतंरिक सांत्वना और शान्ति नहीं ला सकती| कोई भी आर्थिक व्यवस्था आपके मन में वह आत्मविश्वास नहीं भर सकती और निराशा को दूर नहीं कर सकती| यह सिर्फ हमारी कोशिश है, यह आध्यात्मिक प्रभाव| मानवीय स्पर्श की ज़रूरत है, मानवीय सोच की लहर, मानवीय देखभाल लोगों को उठा सकती है, और खुशी का भाव ला सकती है| आपको ऐसा नहीं लगता? यही है, जो हमें करना है|
हमारा लक्ष्य, हमारा काम है कि हम खुशी की लहरें लायें, जैसे आप यहाँ देख रहें हैं| आपमें से कितने लोगों को लगता है कि मंत्र उच्चारण से आप खुश हो जाते हैं और उठा हुआ महसूस करते हैं? जिस पल आप इस जगह में आते हैं, आप अचानक खुश नहीं हो जाते? कुछ लोग कहते हैं, कि उनकी ऊर्जा बिल्कुल ही बदल गयी, और वे बहुत उठा हुआ महसूस कर रहे हैं| आपको एक भी चेहरा यहाँ ऐसा नहीं मिलेगा जो खुश न हो, या मुस्कुरा न रहा हो, या दुखी हो| किसी को बहुत ही ज्यादा दुर्भाग्यशाली होना पड़ेगा कि वह ऐसे वातावरण में भी दुखी हैं तो| भगवान ही फिर उनकी सहायता करेगा, अगर कोई ऐसा है तो|
तो चलिए, ऐसा करते हैं, और नए आइडिये सोचते हैं| हम ट्विटर और फेसबुक पर भी जा सकते हैं|
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