हम इस ब्रह्मांड में तिल की तरह हैं!!!


१४.०१.२०१२, पिंपरी, (पुणे)महाराष्ट्र
मकर संक्राति, पूना और मेरे बीच कुछ तो है। हर वर्ष इस समय आप कुछ ऐसा करते हैं, और मुझे यहाँ खींच लाते हैं। इसलिये मैं फिर से कहूँगा, तिल गुड़ लो, और मीठा मीठा बोलो। आज मुझे लगा कि तिल बाहर से काला होता है और भीतर से सफेद होता है। यदि यह बाहर से सफेद होता और भीतर से काला होता तो क्या होता?आज तिल और गुड़ ने देश को एक संदेश दिया है, “भीतर से शुद्ध बने रहें।”
अगर आप तिल को घिसेंगे तो यह बाहर से भी सफेद हो जायेगा। हम इस ब्रह्मांड में तिल के दाने की तरह हैं। यदि आप देखें तो इस ब्रह्मांड में हमारा अस्तित्व क्या है; जीवन क्या है? कुछ भी नहीं, एक तिल के दाने की तरह; केवल एक कण मात्र! अति सूक्ष्म। हमें इस संदेश को याद रखने की आवश्यकता है।
हम छोटे और मीठे हैं, गुड़ में मिले तिलों की तरह। इसलिये छोटे और मीठे रहें और आप असल में बड़े बन जायेंगे। और यदि आप सोचेंगे कि आप अपने क्षेत्र या स्थिति में ऊँचे व महत्त्वपूर्ण हैं तो आपका पतन शुरु हो जायेगा। यह प्रयोगात्मक सच्चाई है। हम देखते हैं कि ऐसा हज़ारों लोगों के जीवन में होता है। जिस क्षण अहंकार हावी होता है या यह भ्रम होता है कि मैं कुछ हूँ, पतन शुरु हो जाता है। मैं बहुत शक्तिशाली हूँ; बस यह सोचा, और आपकी शक्ति का ह्रास शुरु। यहाँ महाराष्ट्र में शक्ति और भक्ति दोनों का मेल है| शिवाजी की शक्ति और तुकारामजी की भक्ति भारत में उत्थान लाई। ऐसा लगता है कि लोग इस सच्चाई को भूल गये हैं। आजकल वे केवल शक्ति के प्रदर्शन में लगे रहते हैं। शक्ति के साथ भक्ति भी आवश्यक और बहुत ही जरूरी है। मैं तो कहूँगा चार चीज़ें चाहिये : शक्ति, भक्ति, युक्ति और मुक्ति। यदि इनमें से एक भी कम है तो जीवन सफल नहीं होगा। समाज में सफल होने के लिये शक्ति और युक्ति की आवश्यकता है और यदि आप व्यक्तिगत और आध्यात्मिक जीवन में सफलता का अनुभव करना चाहते हैं तो भक्ति और मुक्ति की आवश्यकता है। हमें चारों के साथ चलने की आवश्यकता है।इसलिये यही संदेश है : भक्ति और शक्ति का मेल। हमारे देश में इसी की आवश्यकता है। यह देश के लोगों की आत्मा को मज़बूत करेगा।जहाँ भी मैं जाता हूँ, लोग यही प्रश्न करते हैं, गुरुजी, इस देश का क्या होगा?
किसान नाखुश हैं वे कहते हैं हम सब्जियां उगाते हैं और कीमतें गिर जाती हैं। हम किस ग़ारंटी पर सब्जियां उगायें? ऐसे लगता है मानो हमारे हाथ काट दिये गये हों।
व्यापारी नाखुश हैं; उद्योगपति नाखुश हैं। कोई नहीं जानता कि कब किसको जेल में डाल दिया जायेगा। और तो और वकील तथा न्यायधीश भी नाखुश हैं। वे कहते हैं कि “भगवान ही बचाये इस देश को।”
राजनीतिज्ञों से पूछो। कोई नहीं जानता कि उनकी स्थिति क्या है। वे खुद ही भ्रमित और खिन्न हैं। वे अपनी पार्टी के लोगों से नाखुश हैं और दूसरी पार्टी के लोगों से भी। उनके अपने भीतरी द्वन्द्व ही अनगिनत हैं। और धीरे धीरे भ्रष्टाचार का यह दानव ईश्वर का स्थान लेने की कोशिश कर रहा है अर्थात यह सर्वव्यापी होता जा रहा है।
मैंने कहा, “कदापि नहीं! मैं इसे इतने निकट नहीं आने दूँगा।” इसीलिये सब जगह मैं यह कह रहा हूँ कि लोगों को न तो रिश्वत देनी चाहिये और न ही लेनी चाहिये। जहाँ पर भी अपनेपन का भाव होगा वहाँ भ्रष्टाचार टिक ही नहीं सकता। जहाँ सूर्य होता है वहाँ अंधकार ठहर ही नहीं सकता। जहाँ अपनापन होता है, वहाँ कोई बुराई, कोई हिंसा नहीं होती।
पर आजकल जो कोई अच्छा काम करने निकलता है लोग उस पर भी दोष लगाने की कोशिश करते हैं। वे ऐसा करेंगे ही, स्वाभाविक ही है। पर इस से कुछ नहीं होगा।
सच्चाई की सदा जीत होती है, और अवश्य ही होगी भी। मकर संक्राति के इस अवसर पर मैं आपको यह विश्वास दिलाना चाहता हूँ, यह आशा, कि यह देश आगे बढ़ेगा; उन्नति करेगा।
और वे सब जो कि गलत करने में लगे हैं, भ्रष्टाचार और कालेधन में लिप्त हैं, उन सबको भुगतना होगा। उन सबको सज़ा अवश्य ही मिलेगी।इसलिये भक्ति जीवन का सार है, इस विश्व का ; इसको पकड़ कर रखें, और इसे जाने न दें। तब देखें कि हमारे आत्मविश्वास में कितनी बढ़ोतरी होती है। शक्ति बढ़ेगी, तो नये विचार आने शुरु होंगे और कुशलता बढेगी, और आप कठिनाइयों व परेशानियों से मुक्त हो जायेंगे।
मेरे यहाँ आने का उद्देश्य आपको यह याद दिलाना है कि ईश्वर आपके भीतर बसते हैं और उन्हें पाने के लिये आपको कुछ भी करने की आवश्यकता नहीं है।
होता क्या था गुरु कहते गये, यह करो, वो करो और शिष्यों को समझ नहीं आया कि क्या करें, क्या नहीं और गुरु व शिष्य दोनों ही निराश हो गये।
मैं कहता हूँ कि आपको कुछ भी करने की आवश्यकता नहीं है। केवल कुछ समय के लिये बैठें और उस से जुड़ने की कोशिश करें।
देखिये, जब बहू या दामाद आपके परिवार में शामिल होते हैं तो आपको उनसे संबंध बनाने में कितना समय लगता है? पाँच मिनट! एक बार मंगलसूत्र बँधता है तो एक रिश्ता जुड़ जाता है। कल तक जो अजनबी होते हैं आज एक दूसरे के हो जाते हैं। ऐसा ही है न?
ईश्वर के साथ जुड़ने में तो इतना समय भी नहीं लगता। रिश्ते बनाने के लिये तो ढेर सा पैसा खर्च करना पड़ता है। लाखों रुपये खर्च करने के बाद आप किसी को अपना दामाद या बहू स्वीकार करते हैं। पर ईश्वर से संबंध जोड़ने में इतना सा समय भी नहीं लगता। वास्तव में कुछ भी नहीं लगता। आपको बस इतना करना होता है कि विश्वास करें : ईश्वर मेरे हैं, मेरे भीतर हैं और अभी, यहीं हैं। इस विश्वास के साथ थोड़ी देर बैठने पर मन पूर्णत : शांत हो जाता है, भय मिट जाता है और दु:ख दूर हो जाते हैं, तब चेतना में प्रसन्नता और संतुष्टि दिखाई देती है। आप कह सकते हैं, ”गुरुजी, इन सब बड़ी बड़ी बातों को सुनना अच्छा लगता है, पर मुझे इनकी अनुभूति नहीं होती।”
जैसा आप सोचेंगे, वैसा ही होगा। यदि आप सोचेंगे कि यह तो बहुत मुश्किल है तो यह मुश्किल ही होगा।
यदि एक बच्चा यह सोचता है कि एसएससी की परीक्षा पास करना बहुत कठिन है तो आठवीं, नवीं तक पहुँच पाना भी कठिन हो जायेगा। वह सातवीं में ही फेल हो जायेगा। आई.ए.एस तो उसके लिये असंभव हो जायेगा।
कुछ लोग सोचते हैं कि आई.ए.एस की परीक्षा पास करना बहुत ही कठिन है, या फिर कोई विषय बहुत ही कठिन है तो वह कठिन ही हो जाता है। आप वहाँ कभी पहुँच नहीं पाते।
लोगों के लिये किसी चीज़ से छुटकारा पाने का बेहतरीन बहाना है, यह कहना कि यह बहुत कठिन है।
यह कठिन नहीं है; आपमें केवल इच्छा होनी चाहिये, करने की चाह। और ईश्वर प्रकृति से अलग नहीं है। वे प्रकृति के साथ हैं। जैसे तिल में तेल होता है, वैसे ही ब्रह्मांड में परमात्मा है। वह हर दिल में वास करता है। यह ही आत्म का ज्ञान है।
आप प्रात: व सायं कुछ क्षणों के लिये शांत होकर बैठ सकते हैं और विचार कर सकते हैं, यह जीवन क्या है? मैं यहाँ कितनी देर रहूँगा; शायद दो दिन दस या बीस साल या फिर पचास साल? जब तक भी मैं यहाँ हूँ मुझे इस संसार से क्या चाहिये? मैं जाने से पहले इस संसार को क्या देकर जा सकता हूँ?
हमारे मन में ऐसे प्रश्न उठने चाहिये। यदि ऐसे प्रश्न आपके मन में उठेंगे तब मैं कहूँगा कि आप स्नातक हैं। जब विद्यार्थियों को जबरदस्ती स्कूल और कॉलेज भेज दिया जाता है तो वे बाहर नाखुश होकर निकलते हैं, और उनकी चेतना से सब मूल्य मिट जाते हैं। वे कितने अप्रसन्न दिखते हैं।एक शिक्षित व्यक्ति वो है जो कि सदा मुस्कुराता रहता है। प्रसन्नता उसे कभी नहीं छोड़ती, और उसे कभी भी प्रेम की कमी नहीं होती। मैं ऐसे व्यक्ति को ही अच्छा पढ़ा-लिखा, शिक्षित व ज्ञानी कहूँगा।हमें जीवन के हर क्षेत्र में ऐसे व्यक्तियों की आवश्यकता है, विशेष रूप से शिक्षा के क्षेत्र में।
मैं नववर्ष के दौरान जर्मनी में था और वहाँ, लोगों ने मुझे बताया कि ४०% शिक्षक अवसादग्रस्त हैं। मैंने कहा, अगर ४०% शिक्षक मानसिक तौर पर अस्वस्थ हैं तो वे छात्रों को क्या पढायेंगे?” उनके चेहरे देख कर तो छात्रों का घर वापस भागने का मन करेगा। कौन ऐसे शिक्षकों के साथ स्कूल में बैठना चाहेगा? ईश्वर की कृपा है कि अभी भारत में ऐसी स्थिति नहीं है। यदि स्कूल के शिक्षक ही अवसादग्रस्त हैं तो यह छात्रों के लिये बहुत ही प्रतिकूल वातावरण है। ऐसा ही तब भी होता है जबकि अत्यधिक समृद्धि होती है। पिछले माह जब मैं आईआईटी, खड़गपुर गया तो मुझे बताया गया कि परिसर में सबसे अधिक बिकने वाली दवा अवसादमुक्त करने वाली दवा है। मैं सभी माता-पिता से अपने बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य का ध्यान रखने का आग्रह करता हूँ। हमेशा यह कह कर उन पर बोझ न डालें, पढ़ो, प्रतिस्पर्धा करो और अच्छा प्रदर्शन करो। इन बच्चों पर इतना अधिक बोझ डाल दिया जाता है कि वे अवसादग्रस्त हो जाते हैं और स्कूल व कॉलेज में आत्महत्या करने लग जाते हैं। उन पर अच्छे प्रदर्शन का दबाव डालने की अपेक्षा उन्हें यह सिखायें कि एक प्रभावशाली व समझदार इंसान कैसे बनना है। उन्हें योग, ध्यान व प्राणायाम सिखायें, और तब आप उनमें अद्भुत प्रतिभा का विकास होते हुये देखेंगे। अपने बच्चों को येस+ कोर्स करने को कहें। आर्ट ऑफ लिविंग के कोर्स का यह लाभ है कि व्यक्ति भीतर से विकसित होता है और सभी अवरोध मिट जाते हैं। देखिये, यहाँ बहुत से लोग कितने खुश दिखाई दे रहे हैं। जो भी खुश व मस्त दिखाई दे रहा है, यह जान लीजिये कि उसने कोई न कोई कोर्स कर रखा है। यह सत्य है। और यदि कोई उदास चेहरे के साथ दिखाई दे रहा है तो जान लीजिये कि न तो उसने कोर्स किया है और न ही गुरुजी की बात को सुना है।
कुछ वर्ष पहले जब इज़राइल ने लेबनान पर आक्रमण किया था, तो हम वहाँ पर आर्ट ऑफ लिविंग का केन्द्र भी चला रहे थे। मैंने अपने लोगों से स्वयंसेवकों व शिक्षकों से बात करने और यह पता करने के लिये कहा कि सब ठीक है न। जब उन्होंने फोन करा तो पता चला कि वहाँ के स्थानीय लोग सत्संग कर रहे थे। सब तरफ बम बरस रहे थे और ये लोग सत्संग कर रहे थे। उन्होंने बताया, ओह, गुरुजी, हम बहुत खुश हैं। मुझे उनकी चिंता हो रही थी और वे कह रहे थे कि वे खुश हैं। कभी कभी यह बहुत ही अस्वाभाविक लगता है। ऐसा हो नहीं सकता। वे कह रहे थे, गुरुजी, हम सेवा में लगे हैं और बमबारी के बावजूद भी हमें कोई डर नहीं लग रहा। क्यों? क्योंकि यह विश्वास है कि ईश्वर है। मैं ऐसा ही कुछ सुनना चाहता था।जो कोई जीवन की सारी परिस्थितियों में चाहे सुखद हों या असुखद मुस्कुराता रहता है उसने कुछ तो पा लिया है। हर छोटी समस्या पर रोना नहीं चाहिये और न ही छोटी छोटी बातों के लिये लोगों को मारना शुरु कर देना चाहिये।
आशा न छोड़ें। आशा व हिम्मत के साथ जीवन में शांतिपूर्ण क्रांति लायें।
जीवन एक ऐसा संघर्ष है जो हमें आगे बढ़ने में मदद करता है। कुछ लोग संघर्ष करते हैं और तबाही लेकर आते हैं। हमारा संघर्ष उसी संघर्ष से संघर्ष करना है ताकि हमारा राष्ट्र आगे बढ़ सके। परमात्मा से प्यार और राष्ट्र से प्यार दोनों एक जैसे हैं। हम इन दोनों को अलग नहीं कर सकते।
कुछ लोग कहते हैं गुरुजी, आप भ्रष्टाचार के बारे में क्यों बात करते हैं। आपका काम लोगों को ध्यान करवाना और भजन करवाना है। आप आराम से अपना काम कीजिये। आप दूसरों की परेशानी में क्यों पड़ते हैं। यह काम दूसरों को करने दीजिए। मै कहता हूँ नहीं।
जीवन बटा हुआ नहीं है। अगर किसी की आँखों में आँसू हैं और आप उस पर बिना ध्यान दिए भजन कर रहे हैं तो यह सही नहीं है। अगर आप उनके आंसुओं को खुशी के आंसुओं में नहीं बदल सकते तो कम से कम उन्हे पोंछ दीजिए। सत्संग में नमकीन आँसू मीठे आंसुओं में बदल जाते हैं। अगर लोग खुशी में रोते हैं तो वह ठीक है। जब इंसान अपना दिल खोल के बात करता है और रो पड़ता है वह आँसू मीठे होते हैं। हमारा लक्ष्य गुस्से को मुस्कान में और आंसुओं को मीठे आँसू बनाने का होना चाहिए। यही मेरा सपना है।
एक ऐसा भारतवर्ष हो जहाँ किसी भी तरह का दुर्व्यवहार, अत्याचार, आतंक, परेशानी न हो बल्कि सब जगह बस मुस्कराते चेहरे हों| सब जगह भजन, कीर्तन हो और सब जगह अपनापन दिखाई दे।
आने वाली पीढीयों के लिए मेरा यही सपना है। हमें अपने पीछे एक ऐसा भारतवर्ष छोड़ कर जाना है जहां सब लोग बिना किसी डर के जी सकें| इसके बारे में आपका क्या विचार है? आप में से कितने लोग इस सपने का हिस्सा बनना चाहते हैं?
हमारा जीवन धरती पर बहुत कम समय के लिए है लेकिन जब तक हम यहाँ हैं हमें बिना किसी डर के कुछ न कुछ अच्छे काम करते रहना चाहिए।
महाराष्ट्र एक ऐसा प्रांत है जो बहादुर योद्धाओं के लिए जाना जाता है। भारत में क्रांति की शुरुआत यहीं से हुई थी और मुझे पूरा विश्वास है कि वैसी ही क्रांति महाराष्ट्र से दुबारा शुरू होगी।
एक ऐसी धर्म की लहर चले जो सारे देश में फैल जाए।
क्या अब भी आप मुझसे पूछेंगे की गुरुजी, हम इसके लिए क्या करें।
सबसे पहले आपको खुद को मजबूत बनाना पड़ेगा और अपने दिल और दिमाग को साफ रखना पड़ेगा।
हमें भ्रष्टाचार के खिलाफ खड़े होना चाहिए। आपको ऐसा लगेगा का की यह संभव नहीं है। यह कहना आसान है लेकिन वास्तविक जीवन में करना काफी मुश्किल है। नहीं हमें ऐसा नहीं सोचना चाहिए। कम से कम एक साल के लिए हमें प्रयास करना चाहिए और फिर देखते हैं की यह कैसे काम करता है। मैं भी देखूंगा और आप भी देखिए। अगर यह काम नहीं करता तो मैं भी कोशिश नहीं करूंगा और सब भगवान पर छोड़ दूंगा। लेकिन कम से कम एक साल से लिए हम सब को कोशिश करनी चाहिए।
और हम सब को मतदान करना चाहिए। जब चुनाव का समय आता है हम सोचते हैं वैसे भी सब पार्टी एक जैसी हैं, सब बेकार है, हम मतदान करने क्यों जाएँ? हम क्यों अपना बहुमूल्य वोट को किसी के पक्ष में डाले? इससे अच्छा होगा की हम मतदान ही न करें।  
बहुत से लोग मतदान करने ही नहीं जाते।
मैं समझता हूँ कि लोग लाइन में देर तक खड़े रहने से परेशान हो जाते हैं। वह यह भी सोचते हैं कि आजकल वोट डालने जाने का कोई फायदा नहीं है क्योंकि आज कल रिश्वत दे कर वोट खरीद लिए जाते हैं।
नहीं, हमें ऐसा नहीं सोचना चाहिए।
अगर कोई अपने पक्ष में वोट डालने के लिए आपको पैसे दे रहा है तो पैसा ले लीजिये लेकिन उसके लिए वोट नहीं डालिए। यह उनकी मेहनत की कमाई नहीं है। यह आपका पैसा है जो आपने उन्हे कर के रूप में दिया था और यह उनके पास पड़ा था। इसलिए अगर वह आपको वो पैसा दे रहे हैं उसे ले लीजिये और अपने पास रख लीजिये।
जो लोग पैसे के बदले वोट मांगते हैं, उन्हे चुनाव में हरा देना चाहिए।
 हमें अपने शहर को साफ रखने के लिए भी काम करना चाहिए।
वातावरण को साफ रखना हर एक इंसान की जिम्मेदारी है। मैं हमेशा कहता हूँ की गुरु कचरे के डिब्बे के समान हैं।
आपकी जो भी परेशानी है, आपके मन में किसी के लिए भी कड़वाहट है कुछ इच्छा है, कुछ दुश्मनी है, सब मुझे दे दीजिये। आपको जो भी दुख है, मुझे दे दीजिये। मैं कचरा इकट्ठा करता रहता हूँ।
जहां भी मैं जाता हूँ लोग मुझे फूल देते हैं और साथ में एक चिठ्ठी देते हैं। चिठ्ठी में तीन चीज़ें होती हैं :
    १.    गलत काम जो उन्होने किए हैं।
२.   उन्हें जो परेशानी हैं।
३. उनकी इच्छायें।
मुझे लगता है मैं अपना कर्तव्य ठीक से निभा रहा हूँ।
आध्यात्मिकता में और इस देश के ज्ञान में इतनी शक्ति है कि न तो सिर्फ हमारी मनोकामना पूरी होती है बल्कि हम में यह भी क्षमता है कि हम दूसरों को आशीर्वाद दे सकें और उनकी मनोकामना भी पूरी कर सकें। और वह पूरी भी हो जाती है। यही है ज्ञान की शक्ति।
ऐसा नहीं है की सिर्फ गुरु ही आशीर्वाद दे सकते हैं, हर वह व्यक्ति जो सेवा, साधना और सत्संग में लगा है, उसके पास यह शक्ति है। यह तीनों ज़रूरी हैं।
अगर इसमें से एक का भी अभाव है, तो वह काम नहीं करती। अगर आप कहते हैं की कि साधना करता हूँ, लेकिन सेवा नहीं करता तो यह काम नहीं करेगा।

प्रश्न : गुरुजी, मकर संक्रांति का क्या महत्व है और हम अपने त्योहारों को क्यों भूल रहे हैं?
श्री श्री रविशंकर : मकर संक्रांति का महत्व है मकर के दौरान सूर्य उत्तरायण होता है, जिसका मतलब है मकर में सूरज का उत्तर की दिशा की तरफ चलना जो ठंड के खत्म होने का भी प्रतीक है। एक फसल के कटने के बाद दूसरी फसल के लिए बीज बोने का समय।
एक साल में १२ संक्रांति होती हैं, उस में से मकर संक्रांति को सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है क्योंकि इस संक्रांति से उत्तरायण से पुण्य काल शुरू हो जाता है। उत्तरायण पुण्य काल को देवताओं(परमात्मा) का समय भी कहा गया है। वैसे तो सारा साल ही शुभ माना जाता है, लेकिन इस समय को और भी शुभ माना जाता है। इसके बाद ही सब त्यौहार शुरू होते हैं।

प्रश्न : गुरूजी, हमारी इच्छाओं और विचारों का स्रोत क्या है? हम इन्हें कैसे संभालें या कैसे इन्हें छोड़ दें?
श्री श्री रविशंकर : अच्छा, क्या आप इस विचार को त्यागने के लिए तैयार हैं?
अगर मैं इस सवाल का जवाब नहीं दूँ, तो आप क्या करेंगे? क्या आप इस सवाल को पकड़े रहेंगे?
आपके मन में कितने विचार आते हैं, आप यह पता लगाए कि वह कहाँ से आते हैं? थोड़े समय के लिए बैठें और देखें, आप यह जान लेंगे कि यह विचार आपके अन्दर से ही आ रहे हैं। आप देखें कि वह अन्दर से कहाँ से आ रहे हैं। आपको कोई जवाब नहीं मिलेगा और वास्तव में यह विचार उसी जगह(स्थान) से आ रहे है जहाँ शून्यता निवास करती है। वह स्थान जहाँ सब शून्य है। अगर आप ध्यान की और गहराई में जायेंगे तब आप और ज्यादा पता लगा पाएंगे।
 प्रश्न : गुरूजी, मैं कोई भी निर्णय लेने से पहले बहुत हिचकिचाता हूँ, मैं हमेशा उलझन में रहता हूँ, मैं क्या करूँ?
श्री श्री रविशंकर : ऐसा मत कहिए की आप हमेशा उलझन में रहते हैं। अगर आप हमेशा ऐसे रहते तो आपको पता भी नहीं चलता। आप कुछ अंतराल के बाद ऐसा करते हैं और इसीलिए आपको पता है। जब आप द्विविधता के श्रेष्ठ स्तर पर पहुँच जाते हैं, तभी आपके ऊपर प्रज्ञता का उदय होता है। हम ज़्यादातर हर चीज़ को शाश्वत बना देते हैं। जैसे कि "मैं हमेशा गलती करता हूँ"। अगर कोई हर वक़्त गलती करता है, तो वह उसे गलती समझेगा भी नहीं। कुछ लोग कहते हैं "इस शहर में हर कोई बीमार है"। पूरे शहर में हर कोई कैसे बीमार हो सकता है? लोग हर चीज़ को शाश्वत और व्यापक बना देते हैं। ऐसा नहीं करना चाहिए।

प्रश्न : गुरूजी, मैं अपने जीवन को और अधिक सार्थक कैसे कर सकता हूँ?
श्री श्री रविशंकर : आप एक तथ्य को मान लीजिए कि जब से आपने ज्ञान में रूचि ली हैं, तब से आपका जीवन सार्थक हो गया है। अगर आप सत्संग में बैठते हैं, तो आप यह समझ लीजिए कि आपके जीवन ने सफलता के पथ पर प्रगति करना शुरू कर दिया है।

प्रश्न : गुरूजी, मैं एक गृहिणी हूँ और मेरा दायरा मेरे घर और मेरे परिवार तक ही सीमित है। आपका आशीर्वाद मेरे साथ है लेकिन फिर भी मैंने देखा हैं की कुछ लोग जिन में मेरे से ज्यादा कमियाँ हैं, वह मुझ से ज्यादा समृद्ध हैं। और इतनी मेहनत और दुःख दर्द उठाने के बाद भी हम समृद्ध नहीं बन पा रहे हैं? ऐसा क्यों हैं?
श्री श्री रविशंकर : ऐसा लगता है कि जो लोग बुरे काम कर रहे हैं, वह खुश हैं, लेकिन ऐसा नहीं हैं। ऐसा सिर्फ लगता है। यह एक भ्रम है। ऐसा कुछ दिन तक लग सकता है लेकिन एक दिन वह लोग ज़रूर गिरेंगे और खुद को नहीं बचा पाएंगे।

प्रश्न : गुरूजी, क्या ध्यान ही सच को जानने का एक मात्र मार्ग है?
श्री श्री रविशंकर : ध्यान उसी तरह है, जैसे प्यासे को पानी। ध्यान के ज़रिये आंतरिक शांति मिलती है, आत्मा का उत्थान होता है। अगर आप मुझसे पूछेंगे, "क्या पानी प्यास बुझाने का एक मात्र तरीका है"? क्या भूख मिटाने का एक मात्र तरीका खाना है? मुझे क्या कहना चाहिए? हाँ।
थकान को दूर करने के लिए क्या सोना ही एक मात्र तरीका है? निस्संदेह।

प्रश्न : गुरूजी, आपकी मुस्कान का राज़ क्या हैं?
श्री श्री रविशंकर : अब यह राज़ नहीं रहा है। अब यह राज़ मैं सब को बता रहा हूँ वह है; आर्ट ऑफ़ लिविंग 

प्रश्न : गुरूजी, जिम्मेदारियों को सँभालते हुए भी हम कैसे खुद को ओजस्वी(उर्जावान) बनाए रखें।
श्री श्री रविशंकर : ध्यान से! इसके साथ साथ भक्ति, कौशल, शक्ति और मुक्ति इन चारों को साथ में ले कर आप हमेशा ओजस्वी बने रह सकते हैं।

प्रश्न : गुरूजी, कुछ रैपिड फायर प्रश्न हैं! 
श्री श्री रविशंकर : हाँ हाँ, पूछिए!
गुरूजी क्या हैं?
वह बच्चा जो बड़ा होने से इंकार करता हैं!
प्रश्न : राजनीति?
श्री श्री रविशंकर : अपरिहार्य
प्रश्न : धर्म?
श्री श्री रविशंकर : जीवनरेखा, या हो सकता हैं मृत्युरेखा
प्रश्न : क्रोध?
श्री श्री रविशंकर : परिहार्य।
प्रश्न  : डर?
श्री श्री रविशंकर : उल्टा प्यार।
प्रश्न : हर्ष?
श्री श्री रविशंकर : आपकी प्रकृति।
प्रश्न : ज्ञान?
श्री श्री रविशंकर : जो खुशी लाता है।
प्रश्न : शराब?
श्री श्री रविशंकर : जो दुख लाती है।
प्रश्न : भक्त?
श्री श्री रविशंकर : भाग्यशाली हैं।
प्रश्न : अव्यवस्था?
श्री श्री रविशंकर : परमानन्द को जन्म देने वाली।
प्रश्न : आपकी मुस्कान?
श्री श्री रविशंकर : अविस्मरणीय।
प्रश्न : प्रार्थना?
श्री श्री रविशंकर : यह काम करती है।
प्रश्न : रिश्ते?
श्री श्री रविशंकर : यह हर समय काम नहीं करते।
प्रश्न; युवा?
श्री श्री रविशंकर : जिम्मेदारी। जो कोई जिम्मेदारी लेता है वह युवा है।
प्रश्न : बुद्धिमान?
श्री श्री रविशंकर : जो जिम्मेदारी निभाता है।
प्रश्न : दुनिया?
श्री श्री रविशंकर : मानवता के लिए एक उपहार है।
प्रश्न : सच?
श्री श्री रविशंकर : भगवान।
प्यार?
एक और रूप।
प्रश्न : प्रौद्योगिकी?
श्री श्री रविशंकर : इसके मायने आराम लाने के लिए हैं।
प्रश्न : सेवा?
श्री श्री रविशंकर : जिससे आप बच नहीं सकते।
प्रश्न : भविष्य?
श्री श्री रविशंकर : जो कि आप उज्वल बना सकते हैं।
प्रश्न : भगवान?
श्री श्री रविशंकर : प्यार।
प्रश्न : जीवन?
श्री श्री रविशंकर : प्यार।

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