१५.०१.२०१२
मुझे विश्वास है
कि शिक्षा के
द्वारा व्यक्ति मजबूत
होता है
और दुख
से दूर
किया जा
सकता है| यदि कोई आलोचना करता है, आलोचना
को साहसपूर्वक सुन सकते हैं और जब आलोचना या टिप्पणी की पेशकश करनी है,
उसे धैर्य
और आत्मविश्वास के साथ बिना किसी हिचकिचाहट के, दे सकते हैं|
वहाँ कोई
कायरता नहीं होनी चाहिए,
वहाँ खुशी
और मानसिक
तृप्ति की भावना होनी चाहिए; यह ज्ञान है| ज्ञान जीवन में अज्ञान के अंधेरे को हटा देता है, आपको हर्षित बना देता है| ज्ञान के बिना, हम जीवन में उदास रहते हैं| जो भी उदास है समझ ले, कि उन्मे ज्ञान का अभाव है| दुख का कारण क्या
है?
आपने जो
भी प्राप्त
किया है,
अंततः उससे दूर जाना होगा, हम यह सब पीछे छोड़ जाएगे|
यहाँ कुछ भी नहीं रह जाएगा, सब कुछ बदल जाएगा|
यहाँ कुछ भी स्थिर नहीं है, ना
तो हमारा शरीर, और ना ही हमारा
घर,
हमारा पेशा, हमारी प्रतिष्ठा ; हमें एक दिन इन सभी से परे जाना होगा| फिर डर किस बात का?
तो, यह बेहद आवश्यक है
कि अज्ञान का उन्मूलन हो| कई गांवों में लोग अपने बच्चों को स्कूल नहीं भेजते हैं| वे अध्ययन नहीं करते| शिक्षित लोग
गांवों में, पिछड़े क्षेत्रों
में दुर्लभ
होते जा
रहे हैं| हमें उन्हें शिक्षा प्रदान करने की जरूरत है|
इसी तरह, हर क्षेत्र में, हमें ज्ञान प्राप्त करने की जरूरत है| कौन सा भोजन और हमें इसे कैसे खाना चाहिए, हमें इस का ज्ञान नहीं है| आलू, चावल, रोटी; हम केवल कार्बोहाइड्रेट खाते है| आलू स्टार्च और कार्बोहाइड्रेट है, चावल और रोटी भी| हमें हमारे भोजन में केवल एक पोषक तत्व मिलता है| दाल का एक छोटा सा भाग जोड़ने से, भोजन संतुलित नहीं होता है| यही कारण है कि अम्लता उत्पन्न हो जाती है, लोग बीमार पड़ जाते है, उन्हे मधुमेह हो जाता है|
इसी तरह, हर क्षेत्र में, हमें ज्ञान प्राप्त करने की जरूरत है| कौन सा भोजन और हमें इसे कैसे खाना चाहिए, हमें इस का ज्ञान नहीं है| आलू, चावल, रोटी; हम केवल कार्बोहाइड्रेट खाते है| आलू स्टार्च और कार्बोहाइड्रेट है, चावल और रोटी भी| हमें हमारे भोजन में केवल एक पोषक तत्व मिलता है| दाल का एक छोटा सा भाग जोड़ने से, भोजन संतुलित नहीं होता है| यही कारण है कि अम्लता उत्पन्न हो जाती है, लोग बीमार पड़ जाते है, उन्हे मधुमेह हो जाता है|
यदि आप उत्तर भारत में जाते है तो, वे खाते है बैंगन, आलू,
टमाटर, केवल यह
तीन चीज़ें|
इसके अलावा,
वे घर
पर कोई
अन्य सब्जी
नहीं पकाते| यदि कुछ और पकाया जाता है, तो वह केवल त्योहारों के
दौरान| इतना तेल और मिर्च, आलू, बैंगन और टमाटर के साथ साथ| इन तीन में पोषण का
महत्व शून्य है| इनमें खनिज नहीं
होते
हैं| भिंडी, लौकी, गाजर और कई अन्य सब्जियों को हम सब भूल जाते हैं|
भारत में
इतने सारे
सब्जियों को जैसे परवल, लौकी नहीं उगाई जाती| सब्जियों के विभिन्न प्रकार को उगाना चाहिए|
भोजन का
ज्ञान होना चाहिए|
तो, अज्ञानता सफाया
का होना चाहिए, और
उसके बाद, अन्याय
को समाप्त
करना चाहिए,
जहाँ कहीं
भी अन्याय
है जाति
के नाम
पर, धर्म
के नाम
पर| हाल ही में, एक सांप्रदायिक हिंसा
बिल सरकार
द्वारा शुरू किया जा रहा है|
यदि आप
इसे देखे, यह
खतरनाक है, एक कठोर बिल है| यह लोकपाल विधेयक
में भी पेश किया जा रहा है कि, जो शिकायत दर्ज करता है उसे दो साल सजा हो जाती, पर
जिस
व्यक्ति के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई जा रही है उसे छह महीने सज़ा होती है '!
यह सब राष्ट्र के साथ अन्याय है| वे जनता की आवाज नहीं सुनते| इसके बजाय, वे उसका पालन करते है जो कुछ भी आलाकमान कहते हैं! हर कोई कहता है, ' आलाकमान के आदेश का पालन करे| ' यह कहाँ से आ रहा है?
हमारे राष्ट्र की गरिमा और प्रतिष्ठा को सही ठहराने की जरूरत है| एक सदियों पुरानी परंपरा है| हम इस परंपरा का सम्मान नहीं कर रहे हैं|
यह सब राष्ट्र के साथ अन्याय है| वे जनता की आवाज नहीं सुनते| इसके बजाय, वे उसका पालन करते है जो कुछ भी आलाकमान कहते हैं! हर कोई कहता है, ' आलाकमान के आदेश का पालन करे| ' यह कहाँ से आ रहा है?
हमारे राष्ट्र की गरिमा और प्रतिष्ठा को सही ठहराने की जरूरत है| एक सदियों पुरानी परंपरा है| हम इस परंपरा का सम्मान नहीं कर रहे हैं|
जब कोई पूछता है कि हमारा कर्तव्य क्या है, वे कहते हैं 'राष्ट्रीय ध्वज को कायम रखना|
राष्ट्रीय ध्वज को कायम रखना
क्या एक
कर्तव्य है? धर्म या कर्तव्य एक
आदमी को स्थिर करता है|
जब कर्तव्य
का ज्ञान
नहीं है,
वे कहते
हैं धर्म
केवल राष्ट्रीय
ध्वज को
बनाए रखना है| लोग इतने शर्मीले क्यों हैं? इस देश का धर्म क्या इतना बेकार है?
सीधे खड़े हो जाये और अन्याय को प्रबल नहीं होने दीजिये| हमें अन्याय के खिलाफ लड़ना होगा|
तीसरा 'अभाव', हमें अभाव के खिलाफ लड़ना होगा|
भारत दुनिया में अनाज का सबसे बड़ा उत्पादक है, सब्जियों का सबसे बड़ा उत्पादक, दूध का
सीधे खड़े हो जाये और अन्याय को प्रबल नहीं होने दीजिये| हमें अन्याय के खिलाफ लड़ना होगा|
तीसरा 'अभाव', हमें अभाव के खिलाफ लड़ना होगा|
भारत दुनिया में अनाज का सबसे बड़ा उत्पादक है, सब्जियों का सबसे बड़ा उत्पादक, दूध का
सबसे बड़ा उत्पादक है| इस सब के बावजूद, हम हमेशा से अभाव
में
रहते हैं| सब्जियों की कीमत आसमान को छू गई, और दो या तीन महीने बाद, यह अचानक गिर गई| इससे
किसानों को भारी नुकसान हो
गया
था| पंजाब में आलू एक रुपया प्रति किलो के लिए बेचा जाने लगा|
योजना सही नहीं है| हमारी कोई कृषि योजना नहीं है अन्यथा, सिर्फ तीन महीनों में इस तरह कीमतों में भारी उतार - चढ़ाव कैसे हो सकते हैं?
हमारी वितरण प्रणाली दोषपूर्ण है| कुछ लोग पर्दे के पीछे गड़बड़ करने की कोशिश कर रहे हैं, चीजों के उत्पादन को जमा कर और नुकसान उत्पन्न कर रहे हैं| यह सही नहीं है| हमें अभाव के खिलाफ लड़ना और देश में समृद्धि में वृद्धि करनी है| बस कल ही, मैंने कुछ व्यापारियों के साथ एक बातचीत की थी, और उन्होंने कहा, 'गुरुजी, सब कुछ रुक गया है| सभी व्यापारी निराश और दुखी हैं, कोई काम नहीं हो रहा है|
हमारी वितरण प्रणाली दोषपूर्ण है| कुछ लोग पर्दे के पीछे गड़बड़ करने की कोशिश कर रहे हैं, चीजों के उत्पादन को जमा कर और नुकसान उत्पन्न कर रहे हैं| यह सही नहीं है| हमें अभाव के खिलाफ लड़ना और देश में समृद्धि में वृद्धि करनी है| बस कल ही, मैंने कुछ व्यापारियों के साथ एक बातचीत की थी, और उन्होंने कहा, 'गुरुजी, सब कुछ रुक गया है| सभी व्यापारी निराश और दुखी हैं, कोई काम नहीं हो रहा है|
यह हमारी सरकार की नीति बन गई है, यही वजह है! हमें अभाव
को हटाना होगा|
एक देश
में जहां
व्यापारी समृद्ध
है,
वहाँ कोई
अभाव नहीं होगी तो, व्यापारियों को इस बारे में सोचना होगा|
मुझसे इस महीने के अंत में विश्व आर्थिक मंच को संबोधित करने के लिए अनुरोध किया गया है| दुनिया में प्रत्येक देश
को एक अद्वितीय चुनौती
का सामना
करना पड़
रहा है| स्थिति पर विचार के बिना, एक ही कानून सब पर लगाया गया है|
यह काम
नहीं करेगा|
यही जो
अमेरिका में काम कर सकता है भारत में काम नहीं करेगा|| जो
भारत
में काम
करेगा ऑस्ट्रेलिया में
काम नहीं
करेगा| हमारे देश के अनुसार यहाँ क्या करने की जरूरत है अभाव को दूर
करने के लिए
कुछ हमें
इसके बारे में सोचना होगा|
यह नहीं हो
कि वाशिंगटन
से हमें
किसी की आज्ञा
हो, और
हमारे मंत्रियों को
आसानी से आदेश को स्वीकार करना चाहिए|
यह काम
नहीं करेगा| यह नहीं है?
अगला, हमें हमारे मन के अंदर और बाहर अशुद्धता को दूर करना है| हम इतना कचरा हमारे मन में भर लेते हैं! यह आवश्यक है कि हम अपने आप को क्रोध और लगाव से मुक्त करे| इस सब से ऊपर उठना है|
तो याद रखे, कि हमें इन चार बातों के अंत की दिशा में काम करने की जरूरत है: अज्ञानता, अन्याय, अभाव और अशुद्धता|
जब आप चलें, तो जांच ले, कौन सा नथुना खुला है - दाएँ या बाएँ वाला| जो भी पक्ष खुला है, वही पैर पहले आगे कि और रखे| यदि आप नाक की जाँच के बाद कार में पहले पैर रखते है, तो आप के साथ दुर्घटना कभी नहीं होगी! यह ज्ञान शास्त्रों में है, यह सभी रहस्य है कि जिनका खुलासा नहीं किया जाता हैं| लेकिन मैं कहता हूँ, व्यक्त करता हूँ और सब को बताता हूँ|
अगला, हमें हमारे मन के अंदर और बाहर अशुद्धता को दूर करना है| हम इतना कचरा हमारे मन में भर लेते हैं! यह आवश्यक है कि हम अपने आप को क्रोध और लगाव से मुक्त करे| इस सब से ऊपर उठना है|
तो याद रखे, कि हमें इन चार बातों के अंत की दिशा में काम करने की जरूरत है: अज्ञानता, अन्याय, अभाव और अशुद्धता|
जब आप चलें, तो जांच ले, कौन सा नथुना खुला है - दाएँ या बाएँ वाला| जो भी पक्ष खुला है, वही पैर पहले आगे कि और रखे| यदि आप नाक की जाँच के बाद कार में पहले पैर रखते है, तो आप के साथ दुर्घटना कभी नहीं होगी! यह ज्ञान शास्त्रों में है, यह सभी रहस्य है कि जिनका खुलासा नहीं किया जाता हैं| लेकिन मैं कहता हूँ, व्यक्त करता हूँ और सब को बताता हूँ|
यदि दाया नथुना खुला है, तो आप खाना खाना
चाहिए,
अगर बाया खुला है, पानी पीना चाहिए|
यदि आप
उल्टा करते हैं, तो आप बीमार पड़ जाएगे|
जब बाया नथुना खुला है, यदि कोई खाता है, और पीता है
जब दाया नथुना खुला है, वे तीन महीने के भीतर बीमार पड जाएगा - सिर दर्द, पीठ दर्द, या ऐसी किसी भी बीमारी से| तो हमें क्या करना चाहिए? रात के खाने के बाद, जब आप अपने दाएँ पक्ष पर सोते है, बाएँ नथुने से काम करेंगे|
आपको निश्चित रूप
से थोड़ी
देर के
लिए हर
रोज प्राणायाम
करना चाहिए| इसके अलावा, भस्त्रिका हर रोज करना चाहिए| दोनों महत्वपूर्ण हैं| कितने लोग समाज के लाभ के लिए काम करने को तैयार हैं? (लगभग हर किसी ने हाथ उठाया)|
हर कोई
तैयार है, यह अद्भुत है! जैसा कि मैंने कल कहा, देश में जागृति महाराष्ट्र से
शुरू होगी, अगर आप देश के लिए छह महीने समर्पित
करेंगे|
कितने लोग छह महीने के लिए हमारे लिए काम करने को तैयार हैं? आपको पता है कि आपको क्या करने की जरूरत है?
चार समूह बनाए: अज्ञान, अभाव, अन्याय, और अशुद्धता, और गांव - गांव में पदयात्रा
पर जाए और आदर्श दिव्य समाज निर्माण योजना
( ए डी एस एन वाय) में हर किसी को शामिल करे| हर किसी से सदस्य बनने के लिए पूछे| हर कोई एक बड़ी क्रांति से जुड़ा होना चाहता है| यह बहुत आसान है|
उनसे कहे,
'हमें यह
सब एक
साथ करना
है| हमें देश भर में दस करोड़ नागरिकों का एक
डेटाबेस तैयार करना है| '
वोट बैंक की खातिर सभी नेता जाति और धर्म का उपयोग कर रहे हैं| हमें ईमानदारी की भूमिका
के साथ एक वोट बैंक बनाना चाहिए? ईमानदार लोगों
का वोट
बैंक होना
चाहिए? फिर, सभी ईमानदार लोग
वोट करने
के लिए
आते हैं,
कार्यालय में ईमानदार लोगों
का चुनाव
होगा|
आजकल, बेईमान, असामाजिक तत्वों, अपराधियों को टिकट दिया जा रहा हैं क्योंकि उनके पीछे वोट बैंक है| तो, अगर अच्छे लोगों का वोट बैंक बनाया जाता है, अच्छे और सात्त्विक लोग उपर आ जाएगे| ये लोग हर किसी को न्याय देंगे, और देश में सुधार होगा|
आजकल, बेईमान, असामाजिक तत्वों, अपराधियों को टिकट दिया जा रहा हैं क्योंकि उनके पीछे वोट बैंक है| तो, अगर अच्छे लोगों का वोट बैंक बनाया जाता है, अच्छे और सात्त्विक लोग उपर आ जाएगे| ये लोग हर किसी को न्याय देंगे, और देश में सुधार होगा|
यह विचार मुझे आज आया था|
हाल ही में, मुझे दिल्ली में कुछ उद्योगपतियों को संबोधित करने के लिए आमंत्रित किया गया था| कुछ शीर्ष उद्योगपति उपस्थित थे| लोग सोच रहे थे व्यवसायी सहमत होंगे या नहीं, क्या होगा| आयोजक डर रहे थे| मैं उठ खड़ा हुआ, और कृत्रिमता के साथ, मैंने सबको संबोधित किया : 'देवियो और सज्जनो, मैं यहाँ गिनती कर रहा हूँ कि कितने गधे यहाँ पर हैं!' मेजबान हैरान था और कांपना शुरू किया, 'गुरुजी क्या कह रहे हैं?' मैंने कहा, 'हाँ, आप एक गधे हैं| जब आप सहजता और अज्ञान की स्थिति बनाए रखे हैं, मैं क्या कह सकता हूँ? और आप ज्ञान के बारे में शर्मिंदा हैं| तो आप एक गधे है! '
मैंने उन्हें डांट दिया, भले ही यह मेरा स्वभाव नहीं है, लेकिन उन्हें यह सभी पसंद है और कुछ हद तक जागृत थे| हर कोई प्रसन्न था| ज्ञान में, भले ही आप डाँट दे, यह केवल लाभप्रद है| अज्ञानता में, अगर आप प्यार करते हैं, तो भी आप केवल नुकसान पाते है|
हाल ही में, मुझे दिल्ली में कुछ उद्योगपतियों को संबोधित करने के लिए आमंत्रित किया गया था| कुछ शीर्ष उद्योगपति उपस्थित थे| लोग सोच रहे थे व्यवसायी सहमत होंगे या नहीं, क्या होगा| आयोजक डर रहे थे| मैं उठ खड़ा हुआ, और कृत्रिमता के साथ, मैंने सबको संबोधित किया : 'देवियो और सज्जनो, मैं यहाँ गिनती कर रहा हूँ कि कितने गधे यहाँ पर हैं!' मेजबान हैरान था और कांपना शुरू किया, 'गुरुजी क्या कह रहे हैं?' मैंने कहा, 'हाँ, आप एक गधे हैं| जब आप सहजता और अज्ञान की स्थिति बनाए रखे हैं, मैं क्या कह सकता हूँ? और आप ज्ञान के बारे में शर्मिंदा हैं| तो आप एक गधे है! '
मैंने उन्हें डांट दिया, भले ही यह मेरा स्वभाव नहीं है, लेकिन उन्हें यह सभी पसंद है और कुछ हद तक जागृत थे| हर कोई प्रसन्न था| ज्ञान में, भले ही आप डाँट दे, यह केवल लाभप्रद है| अज्ञानता में, अगर आप प्यार करते हैं, तो भी आप केवल नुकसान पाते है|
प्रश्न:
गुरूजी, आप एक शक्तिशाली चुम्बक की तरह हैं| हम आपको जितनी बार भी देखें, या आपसे
मिलें, हमें तृप्ति नहीं मिलती| ऐसा क्यों है?
श्री श्री
रविशंकर: वह मुझे नहीं पता! आप बताईये कि आपको ऐसा क्यों लगता है, आप मेरे आस पास
घेराव और धक्कामुक्की क्यों करते हैं? जो मैं हूँ, सो आप हैं; जो आप हैं, वही मैं
हूँ|
प्रश्न: गुरूजी,
साहस और निश्चितता में क्या अंतर है, और आज के सन्दर्भ में कौन सा बेहतर है?
श्री श्री
रविशंकर: निश्चित रहिये और साहस के साथ जीवन जीईए| बुरा काम करने में शर्म आनी
चाहिए, लेकिन अन्याय के विरूद्ध और कर्तव्य के लिए खड़े होईये, उसमें शर्माना नहीं
चाहिये|
प्रश्न:
गुरूजी, ईसाई धर्म में एक संकल्पना है, फरिश्ते और देवदूतों की| क्या हिन्दुत्व
में भी ऐसी कोई धारणा है?
श्री श्री
रविशंकर: हाँ, हाँ, हाँ, हाँ!! इनमें से काफी धारणाएं हिंदुत्व में भी हैं| ईसाई
धर्म में वे कहते हैं, ‘ईसा मसीह ने क्रॉस पर मर के
सबके पापों को ले लिया है’| भगवान कृष्ण ने भी यही कहा
है, ‘मैं तुम्हें सभी पापों से मुक्ति दे
दूंगा, बस मेरी शरण में आ जाओ|’
'अहम त्वं
सर्व पापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचा|’ इसी तरह सभी देवदूत – देवी और देवता क्या है? उर्दू में उन्हें फरिश्ते कहते हैं|
इतने सारे यक्ष, यक्षिणी, देवता – ये सभी आखिरकार ऐनजल्स हैं|
प्रश्न:
गुरूजी, एक आत्म-ज्ञानी के क्या लक्षण होते हैं, मेरी बहुत प्रबल इच्छा है कि मैं
आत्म-ज्ञान को प्राप्त करूँ|
श्री श्री
रविशंकर: यह तो बहुत अच्छी बात है| इस इच्छा को बनाएँ रखें| आप सही जगह पर हैं|
बिल्कुल सही जगह!
प्रश्न:
(अश्राव्य – यह प्रश्न ‘अंतर्राष्ट्रीय महिला सम्मलेन’ के
बारे में था)
श्री श्री
रविशंकर: एक महिला सम्मलेन है, जो आर्ट ऑफ लिविंग अगले महीने आयोजित कर रहा है|
काफी सजगता आ गयी है, मगर अभी और आने की ज़रूरत है| कल मैंने दिल्ली में देखा कि
महिलाएं बिंदी नहीं लगाती हैं| यह फैशन है! पूरी दुनिया में केवल एक ही ऐसा देश है
जहाँ बिंदी लगाने की प्रथा है, और वह है भारत| तो हमें भारत की पहचान को बनाएँ
रखना है| अब तो पाकिस्तान में भी हम उनसे बिंदी लगवा रहें हैं| यहाँ आप करते ही
नहीं हैं!
प्रश्न:
गुरूजी, ब्रह्माण्ड की शुरुआत क्या है और क्या भगवान के अस्तित्व का कोई प्रमाण
दिया जा सकता है?
श्री श्री
रविशंकर: बिल्कुल! इससे पहले की आप ब्रह्माण्ड की शुरुआत के बारे में जानें, यह
बताईये की टेनिस की गेंद का मूल केंद्र कहाँ है? देखिये, अगर आप रैखिक सोचेंगे, तो
हम उम्मीद करेंगे कि हर एक चीज़ कहीं शुरू हो, और उसका कहीं अंत हो| लेकिन अगर आप
गोलाकार सोचेंगे, तो ना कोई शुरुआत है, ना कोई अंत| तीन चीज़ें हैं, जो ना तो कभी
शुरू हुई हैं, और ना ही कभी खत्म होंगी – प्रकृति, प्राणी और
परमेश्वर| ये तीन चीज़ें कभी प्रारंभ नहीं हुईं और ना ही कभी अंत होंगी|
उदाहरण के
लिए, आपने जितने भी आभूषण पहने हैं, वे सोने के हैं| अगर आप उन्हें अलग अलग
देखेंगे, तो वह है, ‘द्वैत’,
लेकिन अगर आप उन सबको सोने का बना हुआ देखेंगे, तो वह है ‘अद्वैता’| यह सभी लकड़ी है अद्वैता|
लेकिन दरवाज़ा अलग है, टेबल अलग है, कुर्सी अलग है – कोई
टेबल पर बैठता है और अपना खाना कुर्सी पर रखता है, तो आप उसे क्या कहेंगे, पागल?
द्वैत माने, सब कुछ अलग है| अद्वैता माने सब कुछ एक ही है| ये दोनों साथ साथ
चलेंगे या नहीं? ये मूर्ख लोग इन दोनों के बीच इतना विभाजन करते गए और बिना वजह की
बहस में पड़ गयें, और देश को बर्बाद करते गए|
प्रश्न: गुरूजी,
हमारे देश में इतने सारे साधुसंत हैं, जो धर्म का प्रचार कर रहें हैं| फिर भी,
हमारे देश की हालत सुधर क्यों नहीं रही है?
श्री श्री
रविशंकर: उनके होने के बावजूद यह हालत है, अगर वे ना होते, तो देश कहाँ होता? यह
तो अकल्पनीय है! बीस साल पहले, पिंपरी में इतने सारे अस्पताल नहीं थे| शायद एक या
दो अस्पताल रहें होंगे| आज इतने सारे अस्पताल खुल गयें हैं, और फिर भी इतने लोग
बीमार पड़ रहें हैं| तो क्या इन लोगों की बीमारी के लिए ये अस्पताल जिम्मेदार हैं?
अगर अस्पताल नहीं होते, तो ज्यादा बीमारी होती| है न?
प्रश्न:
गुरूजी, जीवन क्या है?
श्री श्री
रविशंकर: बहुत बढ़िया सवाल है! यह बहुत ज़रूरी है| इसे ऐसा ही रखिये! एक दिन, मैं
इसका जवाब दूंगा| आप उसका इन्तेज़ार करिये, और जब तक आप इसे समझ नहीं पायेंगे, मैं
भी आपको जवाब देने का इन्तेज़ार करूँगा|
प्रश्न: गुरूजी,
हमारे देश में १००० में से ९९९ लोग बेईमान हैं| सिर्फ कुछ लोगों के जुड़ जाने से हम
इस देश में कैसे परिवर्तन ला सकते हैं?
श्री श्री
रविशंकर: यह धारणा मत बनाईये कि १००० में से ९९९ लोग बेईमान हैं| सिर्फ आप एक
ईमानदार हैं, यह धारणा मत बनाईये! जो लोग इस तरह से सोचते हैं, वे गुस्से में रहते
हैं, और किसी काम के नहीं रहते| ऐसा मत सोचिये|
मैं बिल्कुल
विपरीत सोचता हूँ| ९९५ में से ५ बेईमान हैं| त्रेतायुग में, ५ ईमानदार थे और १००
बेईमान थे| मगर कलयुग का प्रभाव ऐसा है, कि केवल ५ लोग बेईमान हैं और १०० लोग
ईमानदार हैं| गरीबी से दुखी ये १०० लोग सोये हुए हैं जबकि वे ५ कहीं चढ़ पहुंचे
हैं| अब समय आ गया है कि उन पाँचों को नीचे उतारा जाए, और उन्हें सबक सिखाया
जाए|आपके अंदर बहुत शक्ति है|
जितने लोग
यहाँ है, क्या वे अच्छे लोग नहीं हैं? किसी की भी आँखों में देखिये| वे सब अच्छे
लोग हैं| उन्होंने शायद एक-दो गलतियाँ कर दी होंगी| अगर कोई एक बार गलती करता है,
तो क्या आप उन्हें हमेशा के लिए ‘बेईमान’ की उपाधि दे देंगे? यह गलत है!
आस पास
देखिये| हज़ारों अच्छे लोग हैं| कल मैंने देखा, कि लाखों लोग सत्संग के लिए आये थे|
इतना जोश था, इतना प्रेम था| सब लोग सेवा करने के लिए तत्पर हैं| ज़रा देखिये, सब
लोग अपने हाथ खड़े कर रहें हैं| क्या ये सब लोग बेईमान होंगे? जो लोग सेवा करने के
लिए तैयार हैं, क्या आप उन्हें बेईमान कहेंगे?
प्रश्न:
गुरूजी, मेरा स्वभाव बहुत मस्तमौला है, और मैं चीज़ों को बहुत टालता हूँ| इस आदत पर
कैसे काबू पाऊँ?
श्री श्री
रविशंकर: प्रण लीजिए, वादा करिये कि मैं ऐसे काम करूँगा| अगर आप कभी वादा तोड़ देते
हैं, तो फिर से वादा करिये| हार मत मानिये|
प्रश्न: गुरूजी,
भ्रष्टाचार के विरूद्ध लड़ाई में, अगर आपके घरवाले ही भ्रष्ट हैं, तो उन्हें कैसे
बदलें?
श्री श्री
रविशंकर: आप अपने संकल्प के साथ आगे बढ़ें, और देखिये कि वे भी उसमें जुड़ें| इस
दुनिया में, जो सफल है, हर एक कोई उसके पीछे लग लेता है| अगर आप शांति और धैर्य के
साथ इस मार्ग पर चलेंगे, तो सब आपके पीछे चलेंगे|
प्रश्न: गुरूजी,
कुछ सांसारिक समस्याओं के कारण, मैं आत्महत्या करना चाहता हूँ|
श्री श्री
रविशंकर: बिल्कुल भी नहीं! ऐसा करने से पहले, मेरे पास आईये, मेरी अनुमति लीजिए,
फिर करिये! मैं बताऊँगा कि कहाँ से कूदना है और कैसे आत्महत्या करनी है| यह निर्णय
आप खुद मत लीजिए|
मुझे आपकी
ज़रूरत है! आप क्यों अपनी जिंदगी खोते हैं? आपको क्या चाहिए, मुझे बताईये? रोटी,
कपड़ा और मकान? मैं आपकी जिंदगी के बदले आपको वह सब देने के लिए तैयार हूँ| आप बस
बैठे रहिये| बिल्कुल चिंता मत करिये, और मेरा काम करिये| आपको प्रतिष्ठा मिलेगी,
आदर मिलेगा, ज्ञान, जो भी कुछ आपको चाहिये| क्या कारण है, कि आप आत्महत्या करना
चाहते हैं? आपकी शादी नहीं हो पायी, इसलिए? या आपकी शादी हो गयी, इसलिए? दोनों ही
हालत में, मैं आपकी मदद करूँगा| परेशान मत होईये| अगर आपकी शादी नहीं हुई है, तो
मैं आपकी शादी करवा दूंगा| अगर आपकी शादी हो चुकी है, तो मैं आपके पति/पत्नी से
बात करूँगा| अगर वे नहीं समझते हैं, तो मैं आपको सन्यास लेने का सुझाव दूंगा| आगे
बढ़िए| आत्महत्या कर के आप क्या हासिल करेंगे?
आत्महत्या
बिल्कुल भी नहीं करनी चाहिये| वे सब जिन्हें हल्का सा भी संदेह है, या ऐसी कोई
भावना है, फ़ौरन उन्हें मेरा फोटो दिखाईये और बताईये, ‘देखिये, इनकी अनुमति के बिना मत जाईये, नहीं तो आपको वहां ऊपर
भी प्रवेश नहीं मिलेगा!!’
आप बीच में
लटके रहेंगे, न इस दुनिया में, न उस दुनिया में| क्यों ऐसा काम करते हैं? पहले
अनुमति लीजिए, वीसा लीजिये|
प्रश्न:
गुरूजी, आज भी हमारे देश में जाति के नाम पर भेदभाव होता है| क्या यह हमारे भ्रष्ट
नेताओं की वजह से है, या यह हमारे शास्त्रों के अनुसार है?
श्री श्री
रविशंकर: नहीं, यह शास्त्रों के अनुसार नहीं है| आप देखेंगे, कि दो मुख्य ऋषियों – भारद्वाज और वशिष्ट – को छोड़कर, अन्य सभी ऋषियों
का नीच जाति में जन्म हुआ था| दलितों में से एक थे – वेद
व्यास; वाल्मीकि भी दलित थे| तो वे सभी महान संत जिनकी पीढ़ियों से हमारी पहचान बनी
है, वे सब भी अलग अलग जातियों से थे – कोई क्षत्रिय थे, तो कोई
कुम्हार|
यहाँ,
महाराष्ट्र में, बहुत से भक्त थे जो उच्च जातियों से नहीं थे, मगर अलग अलग जातियों
से थे|
जब हमें कोई
अच्छा वकील चाहिये होता है, तब हम उनकी जाति के बारे में नहीं पूछते| जब डॉक्टर
चाहिये होता है, हम उनकी जाति नहीं देखते| जब हमें व्यापार करना होता है, तब हम
नहीं पूछते कि जाति क्या है| हम एक अच्छे व्यापारी के साथ व्यापार करते हैं| अगर
परियोजना अच्छी है, तो हम उसमे जुड़ जाते हैं| सिर्फ जब हमें वोट करना होता है, हम
सोचते हैं, कि किस जाति को इस क्षेत्र से टिकट दिया जाए| ऐसा मत करिये! जब तक
राजनीति से जातपात को अलग नहीं किया जाएगा, जाति के आधार पर भेदभाव इस देश से नहीं
जाएगा| राजनीति ने जातपात को पकड़ रखा है| इसे राजनीति से हटा देना चाहिये|
प्रश्न:
गुरूजी, हमारे देश में यह मानना है, कि सब कुछ किस्मत से होता है और भगवान के
द्वारा होता है, और हम अपना कर्म नहीं करते| क्या ज्यादा आवश्यक है?
श्री श्री
रविशंकर: भाग्य में श्रद्धा और कर्तव्य के प्रति निष्ठा| दोनों को साथ में लेकर
चलिए|
प्रश्न:
गुरूजी, आधुनिक युवा देश की हालत देखकर दुखी हैं| युवाओं के लिए आपका क्या सन्देश
है?
श्री श्री
रविशंकर: देश की हालत देखकर आप दुखी हैं, लेकिन मुझे देखकर क्या आपके अंदर आशा जागी
है कि नहीं? अगर नहीं, तो कम से कम यहाँ इकट्ठे लोगों को देखकर अपनी आशा जगाईए|
जागिये!! मुझे
आप जैसे युवा चाहिये जो देश के लिए कुछ करना चाहते हैं| आप आगे आईये| हम साथ में
महाराष्ट्र के एक गाँव से दूसरे गाँव में जायेंगे और ज्ञान का प्रचार करेंगे|
चलिए, हम हर जगह आनंद की लहर लाते हैं|
प्रश्न:
गुरूजी, भगवान कृष्ण को सर्वोच्च विश्व का स्वामी क्यों मानते हैं? आपको देख कर
हमें वैसी ही अनुभूति क्यों होती हैं?
श्री श्री
रविशंकर: वे कहते हैं, ‘मन्नत श्री जगन्नाथ’ : मेरे गुरु सबके गुरु हैं, मेरे गुरु जगतगुरु हैं, मेरी
आत्मा सबकी आत्मा है| ऐसी भावनाएँ आना वैध है, स्वाभाविक है और सार्वभौमिक स्वीकार
किए जाते हैं|
प्रश्न:
गुरूजी, मैंने सुना है कि जब आपके दिल में प्रेम भरा हो, और जब आप अपने गुरु के
प्रति इतने करुणामय हों, तब जब भी आप गुरु के बारे में सोचते हैं, वे अगर वहां
शारीरिक तौर से उपस्थित नहीं भी हैं, तो भी अपने आप ही आपकी आँखों से आँसू आ जाते
हैं| ये आँसू मोती की तरह होते हैं, और मैंने सुना है, कि ये आँसू इतने अनमोल होते
हैं कि फरिश्ते भी उन्हें बटोरने के लिए भागते हैं| आप कब फरिश्ता बनेंगे और मेरे
अनमोल आँसू बटोरने के लिए मेरी तरफ भागेंगे?
श्री श्री रविशंकर: इससे पता चलता है कि आप कितने
अच्छे हैं! बहुत बढ़िया!© The Art of Living Foundation