१७.०१.२०१२,
ताल निनाद, शोलापुर, महाराष्ट्र
कितना सुन्दर वातावरण है, है ना? ताल निनाद! आर्ट ऑफ लिविंग का जो रिश्ता
शोलापुर के साथ है, वह बहुत पुराना है| तीस साल पहले, जब मैंने सबसे पहले आर्ट ऑफ
लिविंग की संस्था शुरू करने के बारे में सोचा था, तो मैं दुविधा में था; यह आंदोलन
शुरू करूँ या नहीं| मुझे उम्मीद थी कि बहुत लोगों को इससे लाभ मिलेगा, लेकिन मुझे
यह सब करने में थोड़ा संकोच हो रहा था| मुझे महसूस हुआ कि मैं कुछ नहीं करना चाहता
था, सिर्फ ध्यान करना चाहता था, और भगवान की आराधना में डूबना चाहता था|
फिर मुझे हुवली के रेलवे स्टेशन पर एक निर्णय लेना था| अगल बगल प्लेटफोर्म
पर दो ट्रेनें थीं, एक शोलापुर जा रही थी और एक बैंगलोर| अगर मैं बैंगलोर जाता तो मेरी
आर्ट ऑफ लिविंग संस्था की शुरुआत नहीं की होती| मैं अपनी ही संगति में रहता, ध्यान
और योग करता| और अगर शोलापुर की ट्रेन लेता, तो यह निश्चित था कि मुझे यह सब कुछ
छोड़ना पड़ता, और कुछ करना भी होता| तो बिल्कुल आखिरी पल तक मैं बैंगलोर और शोलापुर
के बीच दुविधा में था| मेरे साथ चार और लोग थे| और उन्होंने मुझे कभी भी इस तरह की
दुविधा में पहले नहीं देखा था; कि जाऊं या न जाऊं| मगर उस एक पल में, मैंने अपना
मन बना लिया और शोलापुर आ गया|
जब से मैं शोलापुर आया, सत्संग की श्रंखला शुरू हो गयी| मैं जहाँ जहाँ जा
रहा हूँ, मैंने देख रहा हूँ कि लोग कितने खुश हैं| आप जो एक एक आँसू बहा रहें हैं,
वह इतना शुद्ध है, कि फरिश्ते भी उसके लिए तरस रहें हैं| यह आँसू हैं प्रेम, खुशी,
आनंद और भक्ति के|
ईश्वर के लिए जो भक्ति है, वह राष्ट्र के प्रति भक्ति से अलग नहीं है|
अपने कर्म के प्रति सत्यनिष्ठा और प्रतिबद्धता, दोनों साथ साथ चलनी चाहिए| अगर हम
भीतर से मजबूत हैं, तो हम अपना काम अच्छे से कर पाएंगे|
जीवन में एक
लय होनी चाहिए| अगर जीवन लय से बाहर चला जाता है और बेसुरा हो जाता है, तब वह अपना
सामंजस्य खो देते है| जीवन को एक लयात्मक और सामंजस्यपूर्ण तरीके में लाना , यही
अपने आप में ज्ञान है| अगर भक्ति धुन है, तो ज्ञान ताल है| कब क्या करना है, कैसे
करना है, कितना करना है और कितना नहीं करना है, जीवन में इसका बोध होना बहुत
आवश्यक है|
हमें अपने आप को बदलना चाहिए, अपने जीवन को बेसुरे से सामंजस्य की तरफ
लाना है| हमारा जीवन तालबद्ध और सामंजस्यपूर्ण होना चाहिए, तब आप देखेंगे कि कितनी
शान्ति, खुशी और आनंद होता है| एक दुखी जीवन का मतलब; कहीं तो वह लय के बाहर चला
गया है, कहीं तो वह स्वर-संगति खो गयी है|
इसीलिए हमने जीवन को एक कला कहा है| जीवन कला है न? तो हम कैसे अपने मन पर
काबू करें? अपनी आत्मा को कैसे संभालें, और परिवार को कैसे संभालें, और फिर समाज
को कैसे संभालें?
मैं बहुत खुश हूँ यह जानकर कि शोलापुर के स्वयंसेवकों ने पर्यावरण के लिए
बहुत कुछ किया है| मैं उन सबको मुबारकबाद देना चाहूँगा| आप सब ने साथ मिलकर एक कई
से भरे तालाब को साफ़ किया, जों सालों से सड़ रहा था, और देखिये किस तरह कितनी गैर
सरकारी संस्थाएं आपके साथ जुड़ गयीं| अगर एक व्यक्ति या समूह कोई काम निष्ठा से
शुरू करता है, तो सब उसमें जुड़ जाते हैं|
हमें यही करना है, देश को आगे बढ़ाना है|
मेरा एक सपना है, वह है, कि पूरी दुनिया में अपने देश को नंबर १ बनाना है!
आपको भी मेरे साथ यह ख्वाब देखना होगा|
जब तक आप भी अपने देश को, अपने समाज को मजबूत बनाने का सपना नहीं देखेंगे,
जब तक हम अपने समाज को शराब मुक्त नहीं करेंगे, जात पात और झगड़े, तब तक हम विभाजित
और कमज़ोर रहेंगे|
आज आप सबको एक प्रण लेना होगा| अब आप इस सत्संग में आकर फँस गए हैं, और
जों लोग यह सत्संग देख रहें हैं, आप सबको इसी पल यह प्रतिज्ञा करनी होगी कि, ‘मैं शराब की तरफ देखूँगा तक नहीं और शराब को छूऊंगा नहीं’| यह पहली प्रतिज्ञा है, जो हमें लेनी है|
जो नशा इस सत्संग के स्वर-माधुर्य में आपको अनुभव हो रहा है, क्या उसकी
तुलना या बराबरी आप शराब की बोतल से कर सकते हैं? शराब और बुरी लतें छोड़ दीजिए| यह
पहली प्रतिज्ञा है| हमारा देश आज बर्बाद हो रहा है, सिर्फ इसी वजह से|
और दूसरी बात है, कि एक हिंसा विहीन, तनाव मुक्त समाज की कल्पना| हमारे जो
भाई बहन हिंसात्मक प्रवृत्तियों और कामों में लगे हुए हैं, उन्हें प्रेम से यहाँ
लाईये| हम उनके मन को बदलने के लिए प्रयास करेंगे| वह हो जाता है| हमारा प्रयास
इसी दिशा में होना चाहिए| उनके दिलों में ज़रूर कोई चोट या दर्द होगा| चलिए हम उस
पर दवा लगाएं, मरहमपट्टी करें, और देखें कि वह इंसान अंदर से कितना सुन्दर है| यह
ज़रूरी है|
और हम जाति, संप्रदाय और धर्म के नाम पर विभाजित हैं, इसे भी छोड़ना पड़ेगा|
हम सब एक ही वर्ग के हैं, मनुष्य वर्ग| शोलापुर तो संतो और ज्ञानी पुरुषों का शहर
है| यह तो कितने ही महान लोगों और महान संतों की जन्म भूमि रह चुकी है|
बल्कि यहाँ भी, कितने सारे संत विराजमान हैं| आप सबको उनसे आशीर्वाद मिल
रहा है| वे सब एक ही बात कह रहें हैं और सदियों से कहते आ रहें हैं, ‘जात पात और भेदभाव करना छोड़ दीजिए, हम सब एक हैं’|
जब हम किस अच्छे डॉक्टर के पास जाते हैं, क्या हम उनसे उनकी जाति पूछते
हैं| हम शहर के सबसे अच्छे डॉक्टर के पास जाना चाहते हैं, है ना? और जब हमें किसी
वकील की ज़रूरत होती है, तब भी हम उनसे उनकी जाति नहीं पूछते| हम उनके पास जाते
हैं, जो सबसे मशहूर होते हैं, और सबसे अच्छा काम करते हैं| सिर्फ चुनाव के समय हम
जात पात को अपने साथ लेते हैं| यह गलत है|
सरकार ने समाज में जात पात को बहुत बढ़ावा दिया है| उन्होंने उसे खत्म करने
के लिए कुछ भी नहीं किया है| यह एक वजह है, कि हमारा देश इतना पिछड़ा हुआ है|
राजनीति में भी, अपनी जाति और संप्रदाय के बारे में मत सोचिये, भूल जाईये|
एक अच्छे व्यक्ति को चुनिए, और उसके लिए वोट करिये| वह जिसकी आँखें दूसरों के
प्रति करुणा से नाम हों, जिसके दिल में दूसरों के लिए दर्द हो, और जो त्याग करने
के लिए तैयार हो, ऐसे व्यक्ति को चुनिए| यह मत देखिये कि वह आपकी जाति का है कि
नहीं, या किसी और जाति या धर्म का है| हर जाति और धर्म में अच्छे लोग हैं जो समाज
के लिए काम करना चाहते हैं| ऐसे लोगों को चुनना चाहिए| जाति को आधार मत बनाईये|
और जब भी चुनाव हो रहा हो , तो यह हमारी सामाजिक जिम्मेदारी और कर्तव्य है
कि हम वहां अवश्य जाएँ और वोट करें| क्या होता है, अगर हम ऐसा महसूस करते हैं, ‘ओह! सभी भ्रष्ट हैं, राजनीति भ्रष्ट है, तो वोट क्यों करें?
घर पर बैठना ही बेहतर है! कौन धूप में खड़ा होगा’? इस
विचारधारा से बहुत लोग वोट करने नहीं जाते| शोलापुर में बहुत लोग वोट करने जाते
हैं, यह बहुत ही सजग शहर है| भारत में काफी लोग वोट करने जाते हैं| अमरीका में
केवल २० प्रतिशत लोग वोट करने जाते हैं| कम से कम यह हमारे देश में काफी बेहतर है|
६०, ७० यहाँ तक कि ८० प्रतिशत लोग वोट करने जाते हैं, तो हम लोग जिम्मेदार लोग
हैं| भारत जिम्मेदार लोगों का देश है| तो इसलिए, हमें निश्चय ही जाना चाहिए और वोट
करना चाहिए| और हमें खुद
को किसी सफाई अभियान में भी लगाना चाहिए|
हमें चार क्षेत्रों
में कार्य करने की जरूरत है; सबसे पहले हमें अज्ञानता को दूर करना होगा और अपने आप को अंधविश्वास से मुक्त
करना होगा। हमने कई अंधविश्वास पाल रखे हैं, विशेषकर धर्म के नाम पर जब कि इसकी कोई आवश्यकता नहीं है। आईये
हम सब अज्ञानता और अन्धविश्वास को दूर करें। हमें ज्ञान और मानवीय मूल्यों (धर्म) को बढ़ावा देना होगा। ‘धर्म’
हमें मानवता, करुणा, दया
और जिम्मेदारियों के प्रति वचनबद्धता (प्रतिबद्धता) सिखाता है; इन सभी गुणों को हम अपने भीतर कूट-कूट कर उतारें और उन्हें मुखरित करें| यह सभी गुण हर एक व्यक्ति में उपस्थित रहते हैं। ऐसा
मत सोचो कि ‘यह सब मेरे भीतर नहीं हैं, मैं ईमानदार नहीं हूँ।’ हमारे
भीतर ईमानदारी है। इसे सामने लाने के लिए हमें बस थोड़ा प्रयास करने की जरूरत है। हमारे
भीतर ईमानदारी कहीं छिपी हुई है। इसे बेईमानी ने ढक दिया है।
इसीलिए आज हम सभी
मिल कर ये शपथ लें कि न तो हम रिश्वत लेंगे और न ही कभी देंगे। मैं यहां बैठे उन सभी
लोगों से जो रिश्वत लेते हैं, केवल एक वर्ष के लिए रिश्वत छोड़ने का अनुरोध करता हूँ। मेरे लिए एक वर्ष के
लिए रिश्वत छोड़ दें। देश के लिए ये त्याग करें।
इसके बाद हम देखेंगे कि आगे क्या करना है। जो लोग रिश्वत लेते हैं वे शपथ लें कि मैं
एक वर्ष के लिए रिश्वत नहीं लूंगा और जो लोग रिश्वत देते हैं वे शपथ लें कि वे फिर
कभी भी रिश्वत नहीं देंगे, उनके काम हो जाएंगे। ये जरूरी है!
हमारे आगे बढ़ने
के साथ ही अच्छाई भी संसार में बढ़नी चाहिए,
अच्छाई की सुगंध फैलनी चाहिए। यदि हम सभी हर एक आँसू को पोंछने का संकल्प
लें तो इस देश में दुःख के कोई भी आँसू नहीं रह जाएंगे, केवल
श्रद्धा के आँसू जैसे कि यहां आते हुए मैंने लोगों की आँखों में देखे ही रह जाएंगे।
यहां हजारों लोगों की आँखों में जो आँसू मैं देख रहा हूँ, वही
आँसू मैं पूरे भारत में देखना चाहता हूँ।
इसलिए हमें सबसे
पहले अज्ञानता को दूर करना होगा और फिर इसके बाद हमें अन्याय के विरुद्ध खड़ा होना होगा।
जहां भी अन्याय होगा हम नहीं सहेंगे। इस देश में हम सहनशीलता के नाम पर अत्याचार सहते
रहे हैं, ऐसा नहीं होना चाहिए।
अब अत्याचार के
विरूद्ध खड़े होने का अर्थ गुस्सा होना,
गाड़ियों को आग लगाना या किसी प्रकार की संपत्ति जलाना नहीं है। हम सोचते
हैं कि अन्याय के विरूद्ध हिंसात्मक क्रिया-कलाप इसे दूर कर देंगे,
लेकिन ऐसा नहीं होगा। एक अन्यायपूर्ण कार्य दूसरे अन्याय को कभी समाप्त
नहीं कर सकता। हमें अन्याय के विरुद्ध शांतिपूर्ण क्रांति लाने के लिए एक साथ खड़े होने
की जरुरत है। हम अन्याय सहन नहीं करेंगे।
हर एक व्यक्ति
को अभाव या कमी दूर करने में सहयोग करना चाहिए। आलस्य हमारे देश को निगल रहा है। पिछले
कुछ वर्षों से मैं देख रहा हूँ कि हम लोग आलसी होते जा रहे हैं। मैं जब किसी गाँव में
जाता हूँ तो किसान शिकायत करते हैं कि उनके बच्चे कुछ करना ही नहीं चाहते। यहां तक
कि वे खेतों में जाना ही नहीं चाहते। वो लोग ऐसा कहते हैं। खेती तो बहुत ही पुण्य का
काम है। इसीलिए तो हमारे देश में किसी भी यज्ञ या पूजा से पहले बीज बोने का विधान है।
नवरात्रि में भी तो हम यही करते हैं !!
माता (देवी माँ) के आह्वान
से एक दिन पहले बीज बोए जाते हैं। और बीज के अंकुरित होने के बाद ही माता का आह्वान
किया जाता है। इसी प्रकार किसी भी यज्ञ या पूजा के कार्यक्रम में बीज रोपना सबसे पहला
काम होता है। इसका अर्थ यह है कि हर एक व्यक्ति को बीज बोना और अनाज उगाना चाहिए। हमें
कुछ न कुछ अपने घर में भी सब्जियां आदि उगानी आंरभ करनी चाहिए। यदि हम हर घर में कुछ
न कुछ उगाना आंरभ करेंगे तो हम अपने घर में, इस देश में समृद्धि
लाने में सक्षम हो सकेंगे। आलस्य के कारण अभाव बढ़ा है और हमें इस अभाव को दूर करना
होगा। ये हमारा कर्तव्य है!
इसके बाद हमें
साफ़-सफाई रखनी चाहिए, कहीं भी कोई गंदगी नहीं होनी चाहिए। लोग कहीं भी प्लास्टिक, कपड़े, पेपर आदि फेंका हुआ या गटर को भर कर बहता हुआ देखते हैं तो बिना उस पर ध्यान
दिए वहाँ से गुजर जाते हैं। जैसे हम अपने घर को साफ रखते हैं, वैसे ही हमें अपने आस-पास को भी साफ- सुथरा रखना चाहिए। और जैसे हम बाहर साफ-सफाई रखते हैं
वैसी ही स्वच्छता हमारे भीतर भी होनी चाहिए। अपने मन में विकृति न आने दीजिये,
शांतिपूर्ण और प्रसन्न रहें। और इसीलिए तो आपको ये साधन प्रदान किए गए
हैं -प्राणयाम, सुदर्शन क्रिया और ध्यान
करें।
हम कहते हैं कि
मुझे बहुत गुस्सा आता है, अथवा
ईर्ष्या, द्वेश या और कोई अन्य भाव उठते हैं तो कुछ देर बैठें,
सुदर्शन क्रिया, प्राणयाम एवं ध्यान करें और देखें
कि कैसे आपका चेहरा और हृदय चमकने लगता है।
और आपके सारे काम
हो जाएंगे। ‘जो चाहे करिहो मन माही,
प्रभु प्रताप कुछ दुर्लभ नाहीं’- आप जो इच्छा करेंगे,
वह ईश्वर की कृपा से पूरी हो जाएगी। ईश्वर कहीं आकाश में नहीं हैं;
वे हमारे हृदय में ही रहते हैं। और यदि हम अपने हृदय को साफ रखते हैं
तो ईश्वर, एक शक्ति हमारे भीतर प्रकट हो जाती है। हम जो चाहते
हैं वो हमारे चाहने से पूर्व ही पूरा कर दिया जाएगा। यदि कोई बात तुरंत पूरी नहीं होती
है तो भगवान की मर्जी से पूरा होने में कुछ समय लगेगा, परन्तु
कभी न कभी ये अवश्य ही घटित होगी| हमें सिर्फ धैर्य रखने की जरूरत है। कुछ बीज दो दिन में अंकुरित हो जाते हैं, परन्तु
यदि हम आम का बीज बोते हैं तो इसमें फल लगने में दो, चार या दस साल भी लग जाते
हैं। इसी तरह से कुछ संकल्प तुरंत पूरे हो जाते हैं जबकि कुछ संकल्पों को पूरा होने
में धैर्य और समय लगता है।
आज, मैं आप सब को ये आश्वाशन देता हूँ कि
यदि आप का संकल्प उचित है, दूसरे लोगों के, अपने स्वयं के कल्याण के लिए है तो ये अवश्य ही पूरा होगा। और इसके लिए हमें
क्या करना होगा? हमें कुछ देर मौन रह कर ध्यान करना होगा;
सेवा करना होगा और देश के बारे में सोचना होगा। इस देश में, हर क्षेत्र में युवाओं की जरुरत
है। मैं यहां इतने सारे युवाओं को बैठे देख रहा हूँ। आज कल लोग कहते हैं कि युवा लोग
तबले, मृदंगम् और पखावज के स्थान पर ड्रम को ज्यादा महत्व दे रहे हैं। नहीं ! इन लोगों
को देखो: तीन हजार युवा यहां बैठे हैं और बड़े ही आनंद से ये सब वाद्य यंत्र बजा रहे हैं।
भारत की संस्कृति अनोखी है और संसार के हर एक कोने में इसको महत्व दिया जाता है।
हमारे साधु-संतों का सपना था ‘वासुदेव कुटुंबकम्’ अर्थात विश्व एक परिवार। आज वो सपना
यथार्थ हो गया है। यहां के पूर्व
नगर अध्यक्ष ने कहा कि दस करोड़ रुपए खर्च कर के भी यहां के तालाब को साफ नहीं किया
जा सकता था, परन्तु आर्ट ऑफ लिविंग के स्वयंसेवकों
ने बिना किसी खर्च के ही इस तालाब को साफ कर दिया। इसी तरह से यदि आप सभी स्वयं सेवक
पंद्रह या बीस के समूह में मिल कर सफाई अभियान में शामिल होते हैं तो हम पूरी प्रणाली
को भी साफ कर सकते हैं। इस तरह से पूरे शहर में सफाई हो जाएगी। हम लोग विभिन्न स्थानों
पर फूल और पेड़-पौधे लगा रहे हैं, साफ सफाई
मेंटेन कर रहे हैं। हमें ये नहीं सोचना चाहिए कि ये सरकार का काम हैं। ये हमारा कर्तव्य
है। हम ये करेंगे। जब हम मिल कर एक-दूसरे सहयोग से काम करेंगे
तो हम देश में एक बहुत बड़ी क्रांति देखेंगे। स्वास्थ्य का ह्रास कम हो जाएगा और इसी
प्रकार हमारा मन भी साफ-सुथरा रहेगा।
इस देश में भ्रष्टाचार
एक बहुत बड़ी समस्या है। जहां अपनेपन की भावना समाप्त होती है, वहीं से भ्रष्टाचार का आरंभ होता है।
जहां अपनेपन की भावना समाप्त होती है, ठीक वहीं से भ्रष्टाचार
की शुरुवात होती है। आध्यात्मिकता का उद्देश्य अपनेपन की भावना को बढ़ाना है। ‘हमारे लिए कोई अपरिचित नहीं है, न ही कोई बाहर वाला है।’
इस भावना के साथ यदि हम कोई संकल्प ले कर आगे बढ़ें तो हम एक बहुत ही
बड़ा परिवर्तन ला सकते हैं।
इसमें कोई संदेह
नहीं कि हमें एक मजबूत कानून की जरुरत है। परन्तु यदि हम एक ऐसी स्थिति का निर्माण
कर दें जहां कानून को कुछ करने की जरुरत ही न पड़े तो इससे बेहतर और क्या बात हो सकती
है! और ये सिर्फ जनता के प्रयासों
से ही नहीं होने वाला है। राजनीतिज्ञों को भी इस श्रद्धा, ज्ञान
और ध्यान में आना होगा। यदि वे इस राह में नहीं आते हैं तो वे स्वार्थी बने रहेंगे
और देश को नष्ट करते रहेंगे। वो लोग जो निस्वार्थ भाव से समाज सेवा में लगे हैं,
केवल वे ही देश को आगे बढ़ा सकते हैं। अतः आध्यात्मिकता जीवन की नींव
है। हम ये बात भूल गए हैं और इसीलिए हमें हर तरह की समस्या झेलनी पड़ रही है।
संगीतज्ञों की
ओर मुड़ते हुए गुरुजी कहते हैं: आपको तबला ऐसे बजाना चाहिए कि अंधकार छँट जाए। हमें लगता है कि एक काला बादल
पूरे समाज और दूसरी बातें, हमारे मन को ढके हुए है। जब मन नकारात्मक
होता है तो ये अवसाद (डिप्रेशन) में चला
जाता है। व्यक्ति कुछ नहीं करना चाहता है। किसी-किसी के मन में
ये भावना विकसित हो जाती है कि सब कुछ गलत है, कुछ भी सही या
ठीक नहीं है। कोई नहीं जानता कि हम कहाँ या किधर जा रहे हैं। और वे नकारात्मक दिशा
में सोचना आरंभ कर देते हैं और हर समय नकारात्मक विचारों से घिरे रहते है। इसलिए तबला,
ढोलक और डमरु बजायें। भगवान शिव के हाथ में एक डमरु है। जो इसका प्रतीक
है कि इसकी प्रतिध्वनि या गुंजन द्वारा अवसादग्रस्त मन फिर से ऊपर उठने लगता है।
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